Wednesday, 28 September 2016

भारतीय नश्ल की गाय व उसकी जीवनचर्या

भारतवर्ष मे गौशाला व गायों और ग्वालों के बीच मे सम्पर्क करते हुए तरह- तरह के अनुभव आये है । जिस तरह से जर्सी, होलेस्टिन गायों की देख- भाल होती है । समाज के पढ़ें - लिखें लोग व एलौपैथिक पशुचिकित्सक उसी प्रकार से भारतीय नश्ल की गायों की देख- भाल व चिकित्सा करते है । कहीं- कहीं देखने मे आता है कि जो धनाड्य गौशाला है उनमें पंखे है कूलर है कुछ मे तो AC तक लगे होते है । फ़व्वारों से गायों को नहलाया जाता हैं व गायों के नीचें पक्का फर्श बनवाया जाता है । बिना आवश्यकता के गायों को टीकें लगाये जाते है ।

जबकि भारतीय नश्ल की गायें कम देखभाल  मे भी खुश रहती है और बिमार भी कम होती हैं व बिमार कम होती है तो टीकों की आवश्यकता नही होती है । देशी गाय कच्चे फर्श पर खुश रहती है पर कीचड़ से कतराती है कीचड़ मे बैठना पसन्द नही करती है । पूरी- पूरी रात खड़ी होकर गुज़ार देती है । इसी कारण से गाय का दूध भी सूख जाता है । देशी गाय के शरीर पर बालों की बनावट घनी व इस प्रकार की होती है की उन्हे थोड़ा सा ही पसीना आते ही गाय को ठंडक का अहसास होने लगता है । और गाय अधिक से अधिक धूप मे खड़ा होना पसंद करती है । देशी गाय धूप मे खड़ी होकर अपनी सुर्यकेतु नाड़ी द्वारा धूप से AOUH ( स्वर्णक्षार ) का निर्माण करती है । गाय का दूध व मूत्र इसी कारण पीला- पीला होता है । गाय के घी-दूध व मूत्र मे पाचक स्वर्ण (Digestible Gold) पर्याप्त मात्रा मे होता है । पाचक स्वर्ण शरीर मे जाकर जल्दी हज़म होकर रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है । इसलिए गाय को पंखे कुलर की आवश्यकता नही रहती है । 

देशी गाय स्वभाव से ही पानी मे नहाने से बचती है यह नहाना पसंद नही करती है । ब्लकि वर्षा मे भीग जाने पर भी बिमार हो जाती है । गौशाला मे गाय को धूप से नही ब्लकि वर्षा से बचाना ज़रूरी हैं । गाय खुले आकाश के नीचे व पेड़ों की छांव मे रहकर खुश व निरोगी रहती है इसलिए देशी गाय को टीकों की आवश्यकता नही पड़ती है । देशी गाय गले मे चैन व रस्सी पसंद नही करती है जो गाय खुटें से बंधी रहती है उनका दूध कम हो जाता है तथा बांझपन की शिकार हो जाती हैं । कभी- कभी गायों को कन्ट्रोल करने के लिए गायों को मोहरा ( मोहरी ) पहनाकर रखना चाहिए लेकिन खुटे से नही बाँधकर रखना चाहिए । देशी गाय अलग- अलग रहना पंसद नही करती बल्कि झुण्ड मे रहकर खुश होती है अपने बच्चे व परिवार की सुरक्षा की चिन्ता ख़ुद करती है । देशी गाय चारे की कुट्टी ( महीन कटा हुआ चारा ) खाना पसंद नही करती बल्कि मोटा- मोटा ( कम से कम ६ इंच लम्बा चारा ) व जमीन पर खडे चारे को खाकर खुश व निरोगी रहती हैं ।

भारतीय नश्ल की गाय अपनी मर्ज़ी से चारा व पानी ग्रहण करते हुएे घुम- फिर कर टहलती हुई अपने कुल के झुण्ड मे रहकर आनंदित होती है । गाय स्वभावतः बेहद संवेदनशील (sensitive ) होती है , गाय कम सुविधा मे स्वछन्द रहकर अपने शरीर मे अत्यधिक रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है जिसके कारण घी- दूध मे भी अधिक रोगप्रतिरोधक क्षमता आती हैं । यदि आपको गाय को दुलारना है तो सिर्फ और सिर्फ उसकी गर्दन के नीचे जो ढीली ढाली त्वचा होती है, उसे सहलाइए. पीठ पे भूल के भी हाथ मत फेरिये.

इसके अलावा एक और बात ये कि गाय सूखी कच्ची मिट्टी पर बैठना या खड़े होना ही पसंद करती है। ईंटों से बने फर्श पर जब दूध से भरे थन वाली गाय बैठती है तो गाय के पैर व ईंट के बीच थन के दब जाने से थन खराब हो जाता है । गाय के अगले पैरो से पिछले पैरो तक फर्श मे ढाल आधा इंच से ज़्यादा होने पर गर्भवती गाय को नीचे बैठते ही योनि बाहर निकल जाती है इस रोग को योनिभ्रशं रोग कहते है। इसलिए भरसक कोशिश कीजिये कि आपकी गौशाला का फर्श मिट्टी का हो. पक्की ईंटों का या पत्थर, concrete का फर्श गाय को पसंद नहीं. पक्के फर्श पर उनके खुर खराब हो जाते हैं. इसके अलावा पक्के फर्श पर बैठ के उनको आराम नहीं मिलता. संभव हो तो फर्श की मिट्टी soft हो, वो जिसे बलुई मिट्टी कहते हैं, बालू मिश्रित.

इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण कि भारत की देशी गाय, गर्म जलवायु का पशु है और गर्मी को पसंद करती है. सर्दियों में देशी गाय परेशान रहती है, ठंडी हवा से बचती है. भरसक गर्म जगह पर रहना पसंद करती है. इसलिए यदि आप गर्मियों में अपनी गाय को AC, या कूलर में बांधते हैं तो आप अपनी गाय पर अत्याचार कर रहे हैं. 

यदि बेतहाशा गर्मी है और तापमान 45 डिग्री या उस से ज़्यादा है तो गौशाला में पेड लगाये सकते है. यदि गाय खुली हवा में पेड़ की छाया में बंधी है तो ये सबसे अच्छा है. खुली हवा में तो पंखे की भी जरुरत नहीं है ।अब गाय के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गाय स्वभावतः बंधन मे  नहीं रहना चाहती. उसे अपनी स्वतंत्रता बेहद प्रिय है. इसलिए, यदि संभव हो तो उसे खूंटे से बाँधने की अपेक्षा एक बाड़े में खुला छोड़ दीजिये. ध्यान दीजिये कि बाड़े में छायादार पेड़ हों. गाय अपनी सुविधानुसार धूप या छाया में बैठ जायेगी.

गाय जंगल/चारागाह में खुला घूम के चरना पसंद करती है और जमीन पर लगी घास चरना पसंद करती है. उसे नांद में भूसा खाना पसंद नहीं. पर आज के युग में न वन रहे न चारागाह. फिर भी आप यदि गाय पालते हैं तो उसे थोड़ी देर के लिए ही सही पर आधा घंटा भी यदि घुमा लाएं, या कहीं खेत में चरा लाएं तो गाय बहुत ज़्यादा प्रसन्न होती है । 

मुझे याद है, मेरे पिता जी को अपने पशु चराना बहुत पसंद था. वो रोज़ाना सुबह १० बजे सभी गाय-भैंस खोल देते थें और उन्हें सामने नहर पे ले जाते थे गायें तो आराम से नहर किनारे चरती रहती और भैंसें सीधे नहर के पानी में घुस के नहाने लगती. दो घंटे बाद गाय तो अपने आप लौट आतीं पर भैंसें नहर से निकलना नहीं चाहती थी. उन्हें ज़बरदस्ती निकालना पड़ता था.

बड़ी मज़े की बात ये कि जो गाय हमेशा बंधी रहती थी वो कभी अगर छुट जाए तो जल्दी पकड़ में नहीं आना चाहती थी ……… She'll enjoy all her freedom and all the shortlived fun ……… पूरी धमाचौकड़ी मचा के, फुल उत्पात करके, घंटा दो घंटा अपने मालिक को परेशान करके ही वापस खूंटे पे आती थी ।

इसका मनोवैज्ञानिक इलाज ये है कि ऐसी गाय को आप रोज़ाना शाम को घुमाना टहलाना चराना शुरू कर दीजिये. वो उत्पात करना बंद कर देगी.
अंत में एक बात, मेरे पिता जी जब तक जिए, उन्होंने अपने पशु अपने बच्चों की तरह पाले. बाकायदा उनसे बात करते थे. अपने हाथ से खिलाते टहलाते थे. और उनकी गाय तो क्या, उनकी आवाज भैंस भी सुनकर रम्भाने लगती थीं.
गाय एक सामाजिक प्राणी है. वो भी आपसे घुल मिलकर स्वत्रंत रहना चाहती हैं । उन्हें भी आपका साहचर्य चाहिए।



यदि बेतहाशा गर्मी है और तापमान 45 डिग्री या उस से ज़्यादा है तो गौशाला में पंखा चला सकते है. यदि गाय खुली हवा में पेड़ की छाया में बंधी है तो ये सबसे अच्छा है. खुली हवा में तो पंखे की भी जरुरत नहीं.अब गाय के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात. गाय स्वभावतः बंध के नहीं रहना चाहती. उसे अपनी स्वतंत्रता बेहद प्रिय है. इसलिए, यदि संभव हो तो उसे खूंटे से बाँधने की अपेक्षा एक बाड़े में खुला छोड़ दीजिये. ध्यान दीजिये कि बाड़े में छायादार पेड़ हों. गाय अपनी सुविधानुसार धूप या छाया में बैठ जायेगी.
गाय जंगल/चारागाह में खुला घूम के चरना पसंद करती है और जमीन पर लगी घास चरना पसंद करती है. उसे नांद में भूसा खाना पसंद नहीं. पर आज के युग में न वन रहे न चारागाह. फिर भी आप यदि गाय पालते हैं तो उसे थोड़ी देर के लिए ही सही, मने अगर आधा घंटा भी यदि घुमा लाएं, या कहीं खेत में चरा लाएं तो गाय बहुत ज़्यादा प्रसन्न होती है.
मुझे याद है, मेरे पिता जी को अपने पशु चराना बहुत पसंद था. वो रोज़ाना शाम लगभग 3 बजे सभी गाय भैंस खोल देते और उन्हें सामने नहर पे ले जाते. गायें तो आराम से नहर किनारे चरती रहती और भैंसें सीधे नहर के पानी में घुस के नहाने लगती. दो घंटे बाद गाय तो अपने आप लौट आतीं पर भैंसें नहर से निकलना नहीं चाहती थी. उन्हें ज़बरदस्ती निकालना पड़ता था.
बड़ी मज़े की बात ये कि जो गाय हमेशा बंधी रहती है, कभी अगर छुड़ा ले तो जल्दी पकड़ में नहीं आना चाहती ……… She'll enjoy all her freedom and all the shortlived fun ……… पूरी धमाचौकड़ी मचा के, फुल उत्पात करके, घंटा दो घंटा अपने मालिक को परेशान करके ही वापस खूंटे पे आएगी.
इसका मनोवैज्ञानिक इलाज ये है कि ऐसी गाय को आप रोज़ाना शाम को घुमाना टहलाना चराना शुरू कर दीजिये. वो उत्पात करना बंद कर देगी. 
अंत में एक बात, मेरे पिता जी जब तक जिए, उन्होंने अपने पशु अपने बच्चों की तरह पाले. बाकायदा उनसे बात करते थे. अपने हाथ से खिलाते टहलाते थे. और उनकी गाय तो क्या, उनकी भैंस भी उनकी आवाज़ सुन रम्भाने लगती थीं.
गाय एक सामाजिक प्राणी है. वो भी आपसे घुल मिल के रहना चाहती हैं. उन्हें भी आपका साहचर्य चाहिए.


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