कारण व लक्षण :-
शरीर के गरम रहने की स्थिति में अथवा उसके तुरन्त बाद ही पशु को ठन्डी जगह में खड़ा कर देना अथवा तेज़ गर्मी के तुरन्त बाद ही मौसम का मिज़ाज परिवर्तित होकर ठण्डक हो जाने ,ठण्डा पानी पी लेने , पशु को ठण्डी जगह में कर देने , पानी से भीगने आदि के कारण पशुओं को सर्दी या ज़ुकाम हो जाता है । इस रोग के आरम्भ में ज्वर ( बुखार ) , बेचैनी , श्वास की तीव्रता , प्यास , लाल रंग का मूत्र, नाक से स्राव, सुस्ती, सूखी खाँसी आदि ज़ुकाम के लक्षण प्रकट होते हैं ।
रोगग्रस्त पशु की नाक से पानी बहने लगता हैं उसे बार- बार छींके आती हैं । नाक की भीतरी झिल्ली लाल हो जाती हैं । ज़ुकाम १-२ दिन में पकने पर नाक से गाढ़ा बलगम आने लगता हैं । रोगी पशु खाँसता हैं उसे साँस लेने में कठिनाई होती हैं , कभी- कभी ज्वर भी हो जाता हैं और पशु खाना- पीना छोड़ देता हैं । शरीर में कम्पन्न होता हैं व कफ उत्पन्न होता है । पशु ठण्ड से सिकुड़ता है और खड़ा रहता हैं । कब्जियत , अधिक गर्मी लग जाने , पसीनों से लथपथ शरीर होने की दशा में में ही ठण्डा जल पीने , जाड़े की ऋतु में बाहर ( खुलेवातावरण मे ) बाँधने अथवा वर्षा में बाहर खड़ा रहने पर बहुत अधिक भीग जाने पर आदि कारणों से भी ज़ुकाम हो जाता है । इस रोग में उपयुक्त वर्णित लक्षणों के साथ ही साथ नाक के अतिरिक्त मुख से भी कफ गिरता है और आँखों से पानी बहने लगता हैं । ज़ुकाम जब प्रबल हो उठता है तो ज्वर ( बुखार ) भी हो जाता हैं ।
उपयोगी औषधि -
१ - औषधि :- गरमपानी में खानेवाला सोडा २० ग्राम , घोलकर दिन में २-३ बार पिलाने से बहुत लाभ होता हैं ।
२ - औषधि :- आधा लीटर गरमपानी मे ५० ग्राम मुलहटी भली प्रकार मिलाकर सुबह- सायं पिलाना अतिगुणकारी होता हैं ।
३ - औषधि :- तुलसी पत्ते का चूर्ण १० ग्राम , भटकटैया का चूर्ण और २० ग्राम , काली मिर्च का काढ़ा , सभी को आपस में मिलाकर गरम- गरम पिलाने से ठण्ड से उत्पन्न रोग से ज़ुकाम में लाभ आता हैं ।
४ - औषधि :- गन्धक का धूआँ सुँघाने से बहता हुआ ज़ुकाम झड़कर रोगी पशु का शरीर हल्का हो जाता है और बुखार के लक्षण कम हो जाते हैं ।
# - उपयुक्त दवाये शीघ्र प्रभावी हो सके इसके लिए सरसों का तेल २५० ग्राम , सोंठ पावडर २० ग्राम , पिला दें इससे पशु को दस्त हो जायेगा फिर पशु को सुखी घास व चावल का माण्ड पिलाते रहना लाभदायक हैं तथा रात्रि में गरम कपड़े से ढक देना चाहिए ।
५ - औषधि :-किसी चौड़े मुँह वाले बर्तन में पानी खोलाकर उसमें थोड़ा सा तारपीन का तेल डालकर पशु को बन्द स्थान में खड़ा करके उसके नाक , मुँह में भाप दें ( ध्यान रखना चाहिए कि पशु गरम पानी में मुँह ना डाल दें ।
६ - औषधि :- हल्दी , गुगल तथा लौहवान - इन तीनों को कोयलों की जलती हुई अँगीठी में डालकर उसकी धूनी देने से भी ज़ुकाम ठीक हो जाता है ।
# - इन इलाजों के साथ- साथ नीचे लिखी दवाओं के प्रयोग का विशेष लाभ होता है ।
७ - औषधि :- कालीमिर्च पावडर १ तौला , गन्धक पावडर १ तौला , राई पावडर १ तौला , गन्ने का शीरा या गुड़ २५० ग्राम , इन सब को मिलाकर चटनी बना लें और पशु को सुबह- सायं चटाने से लाभकारी सिद्ध होता है ।
८ - औषधि - कालीमिर्च पावडर १ तौला , सोंठ पावडर २ तौला , अजवायन पावडर २ तौला , तथा गन्ने की राब या शीरा २५० ग्राम , लें । इन समस्त दवाओं को मिलाकर चटनी बनाकर पशु को सुबह - सायं दिन में दो बार चटाना गुणकारी है ।
९ - औषधि - तारपीन का तेल व अलसी का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर पशु की छाती पर मलकर ऊपर से रूई के गरम फोहों से सेंकने से खाँसी - ज़ुकाम दोनों में लाभ होता हैं ।
# - पशु हल्का सुपाच्य खाना दें ओर गरम चींजे खाने में देवें गुड़ डालकर चोकर , दलिया , अलसी की चाय पिलायें और ठण्ड से बचाकर रखना चाहिए ।
शरीर के गरम रहने की स्थिति में अथवा उसके तुरन्त बाद ही पशु को ठन्डी जगह में खड़ा कर देना अथवा तेज़ गर्मी के तुरन्त बाद ही मौसम का मिज़ाज परिवर्तित होकर ठण्डक हो जाने ,ठण्डा पानी पी लेने , पशु को ठण्डी जगह में कर देने , पानी से भीगने आदि के कारण पशुओं को सर्दी या ज़ुकाम हो जाता है । इस रोग के आरम्भ में ज्वर ( बुखार ) , बेचैनी , श्वास की तीव्रता , प्यास , लाल रंग का मूत्र, नाक से स्राव, सुस्ती, सूखी खाँसी आदि ज़ुकाम के लक्षण प्रकट होते हैं ।
रोगग्रस्त पशु की नाक से पानी बहने लगता हैं उसे बार- बार छींके आती हैं । नाक की भीतरी झिल्ली लाल हो जाती हैं । ज़ुकाम १-२ दिन में पकने पर नाक से गाढ़ा बलगम आने लगता हैं । रोगी पशु खाँसता हैं उसे साँस लेने में कठिनाई होती हैं , कभी- कभी ज्वर भी हो जाता हैं और पशु खाना- पीना छोड़ देता हैं । शरीर में कम्पन्न होता हैं व कफ उत्पन्न होता है । पशु ठण्ड से सिकुड़ता है और खड़ा रहता हैं । कब्जियत , अधिक गर्मी लग जाने , पसीनों से लथपथ शरीर होने की दशा में में ही ठण्डा जल पीने , जाड़े की ऋतु में बाहर ( खुलेवातावरण मे ) बाँधने अथवा वर्षा में बाहर खड़ा रहने पर बहुत अधिक भीग जाने पर आदि कारणों से भी ज़ुकाम हो जाता है । इस रोग में उपयुक्त वर्णित लक्षणों के साथ ही साथ नाक के अतिरिक्त मुख से भी कफ गिरता है और आँखों से पानी बहने लगता हैं । ज़ुकाम जब प्रबल हो उठता है तो ज्वर ( बुखार ) भी हो जाता हैं ।
उपयोगी औषधि -
१ - औषधि :- गरमपानी में खानेवाला सोडा २० ग्राम , घोलकर दिन में २-३ बार पिलाने से बहुत लाभ होता हैं ।
२ - औषधि :- आधा लीटर गरमपानी मे ५० ग्राम मुलहटी भली प्रकार मिलाकर सुबह- सायं पिलाना अतिगुणकारी होता हैं ।
३ - औषधि :- तुलसी पत्ते का चूर्ण १० ग्राम , भटकटैया का चूर्ण और २० ग्राम , काली मिर्च का काढ़ा , सभी को आपस में मिलाकर गरम- गरम पिलाने से ठण्ड से उत्पन्न रोग से ज़ुकाम में लाभ आता हैं ।
४ - औषधि :- गन्धक का धूआँ सुँघाने से बहता हुआ ज़ुकाम झड़कर रोगी पशु का शरीर हल्का हो जाता है और बुखार के लक्षण कम हो जाते हैं ।
# - उपयुक्त दवाये शीघ्र प्रभावी हो सके इसके लिए सरसों का तेल २५० ग्राम , सोंठ पावडर २० ग्राम , पिला दें इससे पशु को दस्त हो जायेगा फिर पशु को सुखी घास व चावल का माण्ड पिलाते रहना लाभदायक हैं तथा रात्रि में गरम कपड़े से ढक देना चाहिए ।
५ - औषधि :-किसी चौड़े मुँह वाले बर्तन में पानी खोलाकर उसमें थोड़ा सा तारपीन का तेल डालकर पशु को बन्द स्थान में खड़ा करके उसके नाक , मुँह में भाप दें ( ध्यान रखना चाहिए कि पशु गरम पानी में मुँह ना डाल दें ।
६ - औषधि :- हल्दी , गुगल तथा लौहवान - इन तीनों को कोयलों की जलती हुई अँगीठी में डालकर उसकी धूनी देने से भी ज़ुकाम ठीक हो जाता है ।
# - इन इलाजों के साथ- साथ नीचे लिखी दवाओं के प्रयोग का विशेष लाभ होता है ।
७ - औषधि :- कालीमिर्च पावडर १ तौला , गन्धक पावडर १ तौला , राई पावडर १ तौला , गन्ने का शीरा या गुड़ २५० ग्राम , इन सब को मिलाकर चटनी बना लें और पशु को सुबह- सायं चटाने से लाभकारी सिद्ध होता है ।
८ - औषधि - कालीमिर्च पावडर १ तौला , सोंठ पावडर २ तौला , अजवायन पावडर २ तौला , तथा गन्ने की राब या शीरा २५० ग्राम , लें । इन समस्त दवाओं को मिलाकर चटनी बनाकर पशु को सुबह - सायं दिन में दो बार चटाना गुणकारी है ।
९ - औषधि - तारपीन का तेल व अलसी का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर पशु की छाती पर मलकर ऊपर से रूई के गरम फोहों से सेंकने से खाँसी - ज़ुकाम दोनों में लाभ होता हैं ।
# - पशु हल्का सुपाच्य खाना दें ओर गरम चींजे खाने में देवें गुड़ डालकर चोकर , दलिया , अलसी की चाय पिलायें और ठण्ड से बचाकर रखना चाहिए ।
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