रामबाण योग 128अर्जुन Arjuna myrobalan (अर्जुन मायरोबलान)
सदियों से आयुर्वेद में सदाबहार वृक्ष अर्जुन को औषधि के रुप में ही इस्तेमाल किया गया है। आम तौर पर अर्जून की छाल और रस का औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अर्जून नामक बहुगुणी सदाहरित पेड़ की छाल यानि अर्जुन की छाल के फायदे का प्रयोग हृदय संबंधी बीमारियों , क्षय रोग यानि टीबी जैसे बीमारी के अलावा सामान्य कान दर्द, सूजन, बुखार के उपचार के लिए किया जाता है।
अर्जुन पेड़ का अर्जुन' नामकरण केवल इसके स्वच्छ सफेद रंग के आधार पर किया गया है। अर्जुन शब्द का संस्कृत में यौगिक अर्थ सफेद, स्वच्छ, होता है। पांडवकुमार अर्जुन से इस पेड़ का कोई खास सम्बन्ध नजर नहीं आता। इस पेड़ के संस्कृत नामों में पार्थ, धनंजय आदि जो पर्यायवाची नाम दिए गए हैं, वे केवल वैद्यक काव्य अर्जुन शब्दार्थ बोधक शब्द की योजना करने के लिए ही दिए गए हैं और उनका कोई खास तात्पर्य नहीं मालूम होता है।
अर्जुन प्रकृति से शीतल, हृदय के लिए हितकारी, कसैला; छोटे-मोटे कटने-छिलने पर, विष, रक्त संबंधी रोग, मेद या मोटापा, प्रमेह या डायबिटीज, व्रण या अल्सर, कफ तथा पित्त कम होता है। अर्जुन से हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण-क्रिया अच्छी होती है। मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन ठीक और सबल होती है। सूक्ष्म रक्तवाहिनियों (artery) का संकोच होता है, इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे सूजन कम होती है।
अर्जुन का वानास्पतिक नाम Terminalia arjuna (Roxb. ex DC.) W. & A. (टर्मिनेलिया अर्जुन) Syn-Pentaptera arjuna Roxb. ex. DC. होता है। अर्जुन Combretaceae (कॉम्ब्रेटेसी) कुल का है और अंग्रेजी में इसको Arjuna myrobalan (अर्जुन मायरोबलान) कहते हैं।
Sanskrit-अर्जुन, नदीसर्ज : , वीरवृक्ष, वीर, धनंजय, कौंतेय, पार्थ : धवल;Hindi-अर्जुन, काहू, कोह, अरजान, अंजनी, मट्टी, होलेमट्ट; आयुर्वेद में अर्जुन के पेड़ का प्रयोग औषध के रूप में फल और छाल के रूप में होता है। अर्जुन की छाल के फायदे में सबसे ज्यादा उपकारी टैनिन होता है, इसके साथ पोटाशियम, मैग्निशियम और कैल्शियम भी होता है।
*# - कान दर्द - 3-4 बूँद अर्जुन के पत्ते का रस कान में डालने से कान का दर्द कम होता है।
# - मुखपाक - अर्जुन मूल चूर्ण में मीठा तैल (तिल तैल) मिलाकर मुँह के अंदर लेप कर लें। इसके पश्चात् गुनगुने पानी का कुल्ला करने से मुखपाक में लाभ होता है।
*# - दिल की धडकन बढना - हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में 1 चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही लाभ होता है।
*# - हृदय रोग - अर्जुन छाल के 1 चम्मच महीन चूर्ण को मलाई रहित 1 कप गाय के दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय को बल मिलता है और कमजोरी दूर होती है। इससे हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।
# - हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना - 50 ग्राम गेहूँ के आटे को 20 ग्राम गाय के घी में भून लें, गुलाबी हो जाने पर 3 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण और 40 ग्राम मिश्री तथा 100 मिली खौलता हुआ जल डालकर पकाएं, जब हलुवा तैयार हो जाए तब प्रात सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि विकारों में लाभ होता है।
*# - हृदय शोथ - 6-10 ग्राम अर्जुन छाल चूर्ण में स्वादानुसार गुड़ मिलाकर 200 मिली गाय दूध के साथ पकाकर छानकर पिलाने से हृद्शोथ का शमन होता है।
*# - हृदय विकार - 50 मिली अर्जुन छाल रस, (यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर, 4 ली जल में पकाएं। जब चौथाई शेष रह जाए तो क्वाथ को छान लें), 50 ग्राम गोघृत तथा 50 ग्राम अर्जुन छाल कल्क में दुग्धादि द्रव पदार्थ को मिलाकर मन्द अग्नि पर पका लें। घृत मात्र शेष रह जाने पर ठंडा कर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रखें। इस घी को 5 ग्राम प्रात सायं गोदुग्ध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से हृद्विकारों का शमन होता है तथा हृदय को बल मिलता है।
*# - हृदय रोग में सारबिट्रेट गोलीका विकल्प - अर्जुन की छाल के कपड़छन चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। इसे सारबिट्रेट गोली के स्थान पर प्रयोग करने पर उतना ही लाभकारी पाया गया। हृदय की धड़कन बढ़ जाने पर, नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुंत शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती तथा एलोपैथिक की प्रसिद्ध दवा डिजीटेलिस से भी अधिक लाभप्रद है। यह उच्च रक्तचाप में भी लाभप्रद है। उच्च रक्तचाप के कारण यदि हृदय में शोथ (सूजन) उत्पन्न हो गयी हो तो उसको भी दूर करता है।
# - एसिडिटी - अर्जुन की छाल के फायदे एसिडिटी से राहत दिलाने में भी बहुत मददगार होते हैं। अर्जुन की छाल के फायदे का पूरा लाभ उठाने के लिए अर्जुन की छाल का प्रयोग कैसे करें, ये जानना बहुत ज़रूरी है। 10-20 मिली अर्जुन छाल के काढ़े का नियमित सेवन करने से उदावर्त्त या पेट की गैस ऊपर आती है और एसिडिटी से राहत मिलती है।
# - जीर्ण ज्वरयुक्त रक्तज-अतिसार और रक्तपित्त में - 5 ग्राम अर्जुन छाल चूर्ण को 250 मिली गोदुग्ध और लगभग समभाग पानी डालकर मंद आंच पर पकाएं। जब दूध मात्र शेष रह जाए तब उतारकर सुखोष्ण करके उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर, नित्य प्रात पीने से हृदय संबंधी विकारों का शमन होता है। यह पेय जीर्ण ज्वरयुक्त रक्तज-अतिसार और रक्तपित्त में भी लाभदायक है।
# - संग्राहिक - अर्जुन की पत्ती, बेल की पत्ती, जामुन की पत्ती, मृणाली, कृष्णा, श्रीपर्णी की पत्ती, मेहंदी की पत्ती और धाय की पत्ती, इन सभी पत्तियों के स्वरस में गौघृत, लवण तथा अम्ल् मिलाकर अलग-अलग मिलाकर खडयूषो का निर्माण करें। ये सभी खडयूष परम् संग्राहिक होते हैं।
# - पित्तज-प्रमेह - अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल के समभाग चूर्ण को पानी में पकाकर शेष काढ़ा बनायें। बचाकर, 10-20 मिली काढ़े में मधु मिलाकर रोज सुबह सेवन करने से पित्तज-प्रमेह में लाभ होता है।
*# - शुक्रमेह - शुक्रमेह बीमारी पुरूषों को होता है। इस रोग में अत्यधिक मात्रा में सिमेन निकल जाता है। अर्जुन की छाल के फायदे का पूरा लाभ पाने के लिए इस तरह से सेवन करने पर शुक्रमेह से निजात पाया जाता है। अर्जुन की छाल या सफेद चंदन से बने 10-20 मिली काढ़े को नियमित सुबह शाम पिलाने से शुक्रमेह में लाभ होता है।
# - मूत्राघात - मूत्र करते समय दर्द या जलन होना मूत्राघात के मूल लक्षण होते हैं। अर्जुन छाल के फायदे का पूरा लाभ पाने के लिए अर्जुन छाल का काढ़ा बनाकर 20 मिली मात्रा में पिलाने से मूत्राघात में लाभ होता है।
# - महिलाओं में रक्तप्रदर - को मासिक धर्म के दौरान जब औसतन दिन से ज्यादा और मात्रा में ज्यादा रक्त का स्राव होता है उसको रक्तप्रदर कहते हैं। अर्जुन छाल के फायदे अत्यधिक रक्तस्राव को रोकने में बहुत मदद करते हैं बशर्ते कि प्रयोग का तरीका सही हो। इसके लिए 1 चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को 1 कप गाय के दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करें। इसके सेवन से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
*# - हड्डी रोग - अगर किसी कारण हड्डी टूट गई है या हड्डियां कमजोर हो गई हैं तो अर्जुन छाल के फायदे बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। एक चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को दिन में 3 बार एक कप गाय के दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती जाती है। अर्जुन छाल का प्रयोग करने से हड्डी के दर्द से न सिर्फ आराम मिलता है बल्कि हड्डी जुड़ने में भी सहायता मिलती है।
*# - टूटी हुई हड्डी - एक चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को दिन में 3 बार एक कप गाय के दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती जाती है। भग्न अस्थि या टूटी हुई हड्डी के स्थान पर इसकी छाल को गाय के घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बाँधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
*# - टूटी हड्डी - अर्जुन की छाल से बने 20-40 मिली क्षीरपाक में 5 ग्राम घी एवं मिश्री मिलाकर पीने से अस्थि भंग (टूटी हड्डी) में लाभ होता है।
*# - टूटी हड्डी - अर्जुन की त्वचा तथा लाक्षा को समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। 2-4 ग्राम में गुग्गुलु तथा गाय के घी मिलाकर सेवन करने से तथा भोजन में गाय के घी व दूध का प्रयोग करने से शीघ्र भग्न संधान होता है।
# -हड्डियों का जोड़ छुटना - समान मात्रा में हड़जोड़, लाक्षा, गेहूँ तथा अर्जुन का पेस्ट (1-2 ग्राम) अथवा चूर्ण (2-4 ग्राम) में गाय के घी मिलाकर गाय के दूध के साथ पीने से अस्थिभग्न एवं जोड़ो से हड्डियों के छुट जाने में लाभ होता है।
# - कुष्ठ में तथा व्रण - अर्जुन छाल के एक चम्मच चूर्ण को जल या गाय के दूध के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को जल में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में तथा व्रण में लाभ होता है। अर्जुन छाल का काढ़ा बनाकर पीने से भी कुष्ठ में लाभ होता है।
*# - अल्सर या घाव - अल्सर या घाव-कभी-कभी अल्सर का घाव सूखने में बहुत देर लगता है या फिर सूखने पर पास ही दूसरा घाव निकल आता है, ऐसे में अर्जुन का सेवन बहुत ही फायदेमंद होता है। अर्जुन छाल को कुटकर काढ़ा बनाकर अल्सर के घाव को धोने से लाभ होता है।
# - मुँहासों तथा व्यंग - आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में मुँहासे से कौन नहीं परेशान है! लेकिन अर्जुन की छाल न सिर्फ मुँहासों से छुटकारा दिलाने में मदद करेगा बल्कि चेहरे की कांति भी बढ़ जायेगी। अर्जुन की छाल के चूर्ण को मधु में मिलाकर लेप करने से मुँहासों तथा व्यंग में फायदा मिलता है।
# - सूजन - अर्जुन का काढ़ा या अर्जुन की छाल की चाय बनाकर पीने से सूजन कम होता है। (गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात् अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर के किसी अंग में सूजन आ जाने पर भी अर्जुन का प्रयोग किया जा सकता है।)
# - सूजन - अर्जुन के जड़ के छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ के छाल के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में नियमित सुबह शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से दर्द तथा सूजन कम होती है।
# - रक्तपित्त - अगर रक्तपित्त की समस्या से ग्रस्त हैं तो अर्जुन का सेवन करने से जल्दी आराम मिलेगा। 2 चम्मच अर्जुन छाल को रात भर जल में भिगोकर रखें, सबेरे उसको मसल-छानकर या उसको उबालकर काढ़ा बनाकर या अर्जुन की छाल की चाय की तरह से पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
# - बुखार - अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में अर्जुन बहुत मदद करता है। अर्जुन छाल का काढ़ा या अर्जुन की छाल की चाय बनाकर 20 मिली मात्रा में पिलाने से बुखार से राहत मिलती है।
# - बुखार - 1 चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को गुड़ के साथ सेवन करने से बुखार का कष्ट कम होता है।
# - रक्तपित्त - 2 ग्राम अर्जुन छाल के चूर्ण में समान मात्रा में चंदन मिलाकर, शर्करा-युक्त तण्डुलोदक (चीनी और चावल से बना लड्डू) के साथ सेवन करने से अथवा अर्जुन छाल से बना हिम, काढ़ा, पेस्ट या रस का सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
# - क्षय रोग या तपेदिक - क्षय रोग या तपेदिक के लक्षणों से आराम दिलाने में अर्जुन का औषधीय गुण काम करता है। अर्जुन की त्वचा, नागबला तथा केवाँच बीज चूर्ण (2-4 ग्राम) में मधु, घी तथा मिश्री मिलाकर दूध के साथ पीने से क्षय, खांसी रोगों से जल्दी राहत मिलती है।
# - हृदय रोग - अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 250 मिली गाय के दूध में 250 मिली पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें तीन ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाए तब उतार लें। पीने योग्य होने पर उसको छान लें और उसका सेवन करें। इससे हृदय रोग होने की संभावना कम होती है तथा हार्ट अटैक से बचाव होता है।
# - आयुर्वेद में अर्जुन के तने की छाल, जड़, पत्ता तथा फल का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।
# - मात्रा - 5-10 मिली अर्जुन का रस , 20-40 मिली पत्ते का काढ़ा , 2-4 ग्राम अर्जुन के चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।