पञ्चगव्य -2:-
#- स्वरभेद - अजमोदा , हल्दी , आवंला , यवक्षार तथा चित्रक के ( 2-3 ग्राम ) चूर्ण को मधु व गौघृत की मात्रा विषम होनी चाहिए। सबको आपस में मिलाकर चाटने से स्वरभेद दूर होता है । ( मात्रा 1- से 2 ग्राम तक दिन में तीन बार दे सकते है।
#- स्वरभेद ( गले की ख़राश )- चित्रक और आँवला के क्वाथ से सिद्ध गौघृत का सेवन करने से गले की ख़राश में लाभ होता है ।
#- संग्रहणी - चित्रक के क्वाथ और कल्क से पकाए गौघृत को 5-10 ग्राम की मात्रा में प्रात: सायं भोजनोपरान्त सेवन करने से संग्रहणी में लाभ करता है ।
#- बवासीर - चित्रक मूल को पीसकर मिट्टी के बर्तन में लेप कर, इसमें गौदूग्ध से दही जमाकर , फि उसी बर्तन मे बिलोकर उस छाछ को पीने से बवासीर में लाभ होता है ।
#- श्वित्र ( सफेद दाग )- लाल चित्रक मूल को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर लगाने से सफेद दाग मे लाभ होता है ।
#- मण्डल कुष्ठ - लाल चित्रक मूल को पीसकर गोमूत्र मे मिलाकर लगाने से मण्डल कुष्ठ में लाभ करता है ।
#- गण्डमाला - नील चित्रक मूल को पीसकर गौमूत्र मे मिलाकर लेप करने से गण्डमाला में लाभ होता है ।
#- दुर्बलता - चीकू ( नोजबेरी ) के पके फलो का 1-2 फलो का प्रतिदिन गौदूग्ध के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट होकर बलवृद्धि होकर दुर्बलता का शमन होता है।
#- कण्ठमाला - चीड़ की काष्ठ या गंध विरोजा को गोमूत्र में घिसकर कण्ठमाला पर लेप करने से लाभ होता है।
#- चीड़ काष्ठ के चूर्ण के साथ अगरू , कूठ , सोंठ तथा देवदारु चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर रख लें ,2-4 ग्राम चूर्ण को गोमूत्र में पीसकर पीने से कास- श्वास में लाभ होता है ।
#- उदरकृमि - चीड़ के तैल में आधा भाग विडंग के चावलों को गोमूत्र में भिगोकर धूप मे रखकर सुखाकर चूर्ण बनाकर रोगी को पिलाने से तथा वस्ति देने से आंत के कीड़े नष्ट होते है।
#- घाव - गंध विरोजा को पीसकर , व्रण को गोमूत्र से धोकर व्रण पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।
#- दाद -दाद- खाज के स्थान को गोमूत्र से धोकर गंधविरोजा को त्वचा पर लगाने से दाद, खाज, खुजली का शमन होता है ।
#- दाद -दाद- खाज के स्थान को गोमूत्र से धोकर गंधविरोजा को त्वचा पर लगाने से दाद, खाज, खुजली का शमन होता है ।
#- फोड़े - फुन्सियों पर - गरमी के कारण यदि शरीर में छोटी- छोटी फुन्सियां निकल आई हो तो चीड़ चीड़ तैल को लगाकर 5 मिनट बाद गोमूत्र से धो देने से लाभ होता है।
#- छर्दि ( जी मचलाना ) - चुक्रिका के ताज़े पत्तों का रस 5-10 मिलीग्राम में गौतक्र ( छाछ ) मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पित्तज छर्दि का शमन होता है।
#- अतिसार - चुक्रिका , चांगेरी , छोटी दुग्धिका का यूष बनाकर 20 मिलीग्राम यूष में गौ-दही , गौघृत तथा अनार बीज मिलाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है ।
#- टी. बी. के कारण अतिसार - क्षय रोगियों को अतिसार होने पर चांगेरी , चुक्रिका तथा छोटी दुध्धी के ( 15-20 मिलीग्राम ) पत्र स्वरस से बने खड्युष में गौघृत तथा अनार का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है ।
#- रक्तार्श ( खूनीबवासीर )- 10-15 मिलीग्राम चुक्रिका स्वरस तथा गौ- दही से बने खड्युष के सेवन से रक्तार्श में रक्त का बहना रूक जाता है।
#- कामला - 10-15 मिलीग्राम चुक्रिका पत्र- स्वरस में गौतक्र ( छाछ ) मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने पीयलिया में लाभ होता है ।
#- मिर्गी - समभाग काली तुलसी , कूठ , हरीतकी , भूतकेशी तथा चोरक को गोमूत्र में पीसकर उबटन बनाकर लगाने तथा गोमूत्र से स्नान करने से मिरगी में लाभ होता है।
#- मानसिक रोग - मण्डूकपर्णी तथा चोरक से सिद्ध गौघृत को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मानसिक रोगों में लाभ होता है ।
#- उन्माद - ब्राह्मी , हींग तथा चोरक के चूर्ण से पकाए गये पुराण गौघृत को मात्रानुसार प्रयोग करने से उन्माद में लाभ होता है।
#- अपस्मार - समभाग वचा , अम्लतास का गुद्दा , बकायन की छाल ब्राह्मी , हींग , चोरक तथा गुग्गुल से बनाए कल्क को गौघृत के साथ पकाकर 3 ग्राम की मात्रा में प्रयोग करने से वातज , कफज , तथा वातकफज अपस्मार में लाभ करता है।
#- विष - काकण्ड फल चूर्ण में चौलाई स्वरस , गोमूत्र को मिलाकर प्रयोग करना सभी प्रकार के विषों में लाभदायक होता है। चौलाई का साग विषपिडित व्यक्ति को खाने के लिए देना उपयुक्त रहता है।
#- सर्पविष - चौलाई मूल, गम्भारी का फल , अपामार्ग , अपराजित मूल, बिजौरा नींबू की जड़ ,मिश्री श्लेष्मातक की छाल के कल्क को गोमूत्र मे घोलकर पीनें से या नस्य लेने से तथा अंजन करने से सर्पविष में लाभ होता है ।
#- सर्पविष - 1-2 ग्राम चौलाई मूल चूर्ण को गोमूत्र में पीसकर , चावल के धोवन में मिलाकर पीने से सर्पविष में लाभ होता है ।
#- मूषक - विष :- मूषक दंश के कारण यदि लालास्राव , हिक्का तथा वमन हो रहा हो तो चौलाई मूल कल्क व गोमूत्र को सम्भाग लेकर शहद में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
#- कीट विष - समभाग चौलाई मूल चूर्ण तथा निशोथ के चूर्ण में मात्रानुसार गौघृत मिलाकर पीने से विरेचन द्वारा शरीर का शोधन होकर कीट विष के प्रभाव का शमन होता है।
#- कृत्रिम विष- 1-2 चौलाई मूल को चावल के धोवन से पीसकर गौघृत मिलाकर सेवन करने से कृत्रिम विष ( दूषीविष ) का शीघ्र शमन होता है।
#- उदररोग- लाल मरसा ( लाल चौलाई ) मधुर, लवण, कटू, शीत, गुरू, रूक्ष, पित्तशामक , वातकफवर्धक , रेचक, सारक , मलभेदक तथा विष्टम्भी होता है।चौलाई पंचाग उबालकर उसका रस निकालकर गौघृत में मिलाकर प्रयोग करने से लाभदायक होता है ।
#- नखशोथ ( नाखूनों की सूजन ) - लाल मरसा चौलाई की जड़ को गौमूत्र में पीसकर नाखूनों पर लेप करने से नखशोथ का शमन होता है।
#- व्रण - मरसा चौलाई के पंचाग का काढ़ा बनाकर गोमूत्र में मिलाकर घाव को धोने से घाव जल्दी से भरते है।
#- त्वचारोग- मरसा चौलाई के पंचाग को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर लगाने से दाद, खाज- खुजली व त्वकविकारों में लाभ होता है।
#- विष - जटामांसी , केशर , तेजपत्र , दालचीनी , हल्दी , तगर, चन्दन, आदि को गोमूत्र में पीसकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से तथा 1-2 बूँद नाक में डालने से तथा आँख में अञ्जन करने से तथा सूजन वाले स्थान पर लेप के रूप में प्रयोग करने से स्थावर व जड्गम विष के कारण उत्पन्न विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
#- खालित्य ( गंजापन ) - जटामांसी, बला, कमल,कूठ का पंचाग समभाग लेकर गोमूत्र मे पीसकर लेप करने से बालों का गिरना ( झड़ना ) कम हो जाता है।
#- केशवर्धनार्थ ( बाल को लम्बा करना ) - समभाग जटामांसी , कूठ , काला तिल , सारिवा, नीलकमल को गौदूग्ध में पीसकर लेप तैयार करके इसमें आवश्यकतानुसार शहद मिलाकर सिर पर लेप करने से बाल लम्बे व घने होते है।
#- हिक्का- श्वास - हल्दी, तेजपत्र, एरण्ड की जड़ , कच्ची लाख , मन: शिला , देवदारु , हरताल तथा जटामांसी को पीसकर वर्ति ( बत्ती ) बनाकर गौघृत में भिगोकर उसका धूआँ पीने से स्रोतो में चिपके हुए कफ को पतला करके बाहर निकालकर हिक्का - श्वास में लाभ करता है। ,
#- कास - मन:शिला , हरताल , मुलेठी , नागरमोथा , जटामांसी तथा इंगुदी से धूम्रपान करने के उपरान्त गुड युक्त गुनगुने गौदूग्ध के साथ सेवन करने से कास में लाभ होता है।
#- गठिया रोग- जटामांसी , राल, लोध्र, मुलेठी , निर्गुण्डी के बीज , मुर्वा , नीलकमल, पद्माख और शिरीष पुष्प इन 9 द्रव्यों को चूर्ण बनाकर उसमें शतधौत गौघृत मिलाकर लेप करने से वातरक्त ( गठिया ) में लाभ होता है।
#- कुष्ठ रोग - जटामांसी , कालीमिर्च , सैंधानमक , हल्दी, तगर, सेहुंड की छाल, गृहधूम ( घर का धुआँ , धुआशा ) गोमूत्र , गोरोचन, पलाशक्षार को मिलाकर पीसकर लेप करने से कुष्ठरोग ठीक होता है।
#- झाईयां - जटामांसी , हल्दी को गौदुग्ध में घोटकर उबटन की तरह चेहरे पर लेप करने से व्यंग्य तथा झाई मिटती है व त्वचा की काँति बढ़ती है।
#- उन्माद - जटामांसी आदि द्रव्यों से निर्मित 5-10 ग्राम महापैशाचिक गौघृत का सेवन करने से उन्माद , अपस्मार तथा चतुर्थकज्वर में अत्यन्त लाभ होता है यह बुद्धि तथा स्मृतिवर्धक है तथा बच्चों के शारीरिक विकास में बहुत ही सहायक होता है।
#- कुमार रसायन ( बच्चों की रसायन )- सफेद सरसों , वचा, जटामांसी , क्षीरकाकोली , अपामार्ग , शतावरी , सारिवा, ब्राह्मी, पिप्पली , हल्दी, कूठ, सैंधानमक , से पकाये गौघृत को 500 मिलीग्राम की मात्रा में केवल दूध पीने वाले बच्चों ( क्षीरप ) को खिलाने से शिशु का शारीरिक एवं मानसिक विकास , बल, मेधा तथा आयु की वृद्धि होती है।
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Sunday, 28 February 2021
पञ्गव्य ३:-
पञ्गव्य ३:-
# - पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।
#- सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।
# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।
# - सर्पदंश , बिच्छुदंश -- सर्प या बिच्छु के काटे हुए स्थान पर अपराजिता की जड़ को गौमूत्र मे घिसकर लगाने से ज़हर का असर कम होता है तथा तीन घन्टे की गारण्टी आ जाती है कही भी उपचारार्थ ले जाने के लिए समय मिल जाता है तथा जड़ को पीसकर गाय का घी मिलाकर पिलाने से भी लाभ होता है । यदि ख़ून मे ज़हर मिल गया है तो अपराजिता जड़ चूर्ण १२ ग्राम , अपराजिता पत्र स्वरस १२ ग्राम , कूठ चूर्ण १२ ग्राम , गाय का घी १०० ग्राम गाय का दूध २५० ग्राम मिलाकर पिलाने से आराम आता है तथा शरीर के आन्तरिक विष को वमन या विरेचन कर बाहर निकाल देती है ।
#- सर्पदंश -- अपराजिता की जड़ १० ग्राम। , निर्गुंडी की जड़ १० ग्राम , सोंठ १० ग्राम , हींग ५ ग्राम , , पानी २५० मे पकाकर , छानकर , गाय का घी १०० ग्राम मे मिलाकर उसमें भांगरा रस २५ ग्राम डाले और गाय के दूध से बनी छाछ मे मिलाकर पिलाने से सर्पदंश मे लाभ होता है ।
# - शिरोरोग ( आधाशीशी , माइग्रेन ) -- अपराजिता के फूल तथा पत्तों का रस निकालकर ५-६ बूँद प्रतिदिन नाक में डाले अथवा बीज तथा जड़ के चूर्ण १/२ टी स्पुन गाय के दूध के साथ खाने से आधाशीशी रोग दूर होता है।
# - पुरानी खाँसी -- अपराजिता की जड़ का स्वरस दो तौले , स्वादानुसार शहद , गाय के गर्म दूध २५०ग्राम में ५० ग्राम अदरक पकाकर , शहद व जडस्वरस मिलाकर पिलाने से पुरानी खाँसी दूर होती है।
# - पाण्डूरोग -- अपराजिता की जड़ का चूर्ण , गाय के दूध से बनी छाछ में मिलाकर पीने से कामलारोग, पाण्डूरोग , पीलिया ठीक होते है । तथा यकृतरोग मे जड़ व बीज का पावडर छाछ के साथ देने कारगर लाभ है तथा अपराजिता की पतली- पतली जड़ आधा-आधा इंच के टुकड़े करके सूत के धागे को लालरंग में रंगकर सुखाकर इस धागे में जड़ के टुकड़ों को बाँधकर रोगी के गले में बाँधने से ये रोग ठीक होते है ।
# - गलगण्ड ( घेंघारोग ) -- सफ़ेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के घी या नवनीत में मिलाकर खाने से व गाय के मूत्र सफेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण मे मिलाकर गले पर लेप करने से तुरन्त लाभ आता है ।
#-मानसिक रोग -- जैसे - तनाव ( स्ट्रैस ), तन्त्रिकातन्त्र ( नर्वशसिस्टम ) , अवसाद ( डिप्रेशन ) में सफ़ेद अपूराजिता की जड़ तथा बीजों का चूर्ण आधा चम्मच गाय के दूध के साथ लेने से इनको ठीक करता है तथा मस्तिष्क वर्धन ( मैमोरी बढ़ाने ) के लिए अपराजिता के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ मिलाकर चाटे तथा गाय का दूध पियेंगे तो दिमाग़ का विकास होकर तेज़ करती है तथा नैगेटिविटी के रोगी के गले या बाज़ू मे लाल धागे से सफ़ेद अपराजिता की जड़ को बाँधने से शरीर से नैगेटिविटी को दूर करता है और यदि इसी जड़ को शनिवार के दिन लाल कपड़े मे दरवाज़े पर लटकाये तो घर के अन्दर की ( नकारात्मक ऊर्जा ) नैगेटिविटी दूर होती है तथा स्नायुपीडा में अपराजिता की जड़ व अरणी के छाल व जड़ को तिल तैल मे पकाकर मालिश करने से पीड़ा दूर होती है ।
# - घाव व नारूरोग - अपराजिता की जड़ के रस या पावडर को गाय के घी मे गरम करके मिलाकर ठंडा होने पर लेप करने बूरे से बरा घाव तथा नारूरोग ठीक होते है तथा अपराजिता पुष्पों को सूखाकर चूर्ण या ताज़े फूलो व पत्तों की चटनी बनाकर उसमें शहद मिलाकर लेप करने से घाव तुरन्त भरता है तथा फोड़- फुन्सियों पर पत्तों का लेप करने से दब जाये के यदि उनमें मवाद ( पस ) बनना शुरू हो गया है तो जल्दी ही फूटकर ठीक हो जायेंगे ।
# - सौन्दर्य -- अपराजिता पंचांग की राख या जड़ चूर्ण व ऐलोवीरा का गूद्दा और गाय का ताज़ा नवनीत आपस मे मिलाकर चेहरे पर लगायेंगे तो कील- मुँहासे व उनके निशान , चेहरे की झाइयों को ठीक करता है व चेहरे को कान्तिमान बनाता है तथा ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर का मोटापा बढ़कर घटा हो या ऐसी महिलाएँ जिनके मोटापे के कारण व डिलिवरी ( सन्तान उत्तपत्ति ) के पश्चात शरीर पर स्ट्रेचमार्क बन जाते है या आपरेशन के निशान पर यह दवा लगाने से उनका समूल नष्ट करती है ।
# - हृदयरोग - अपराजिता के दो फूल या आधा चम्मच बीज या जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल सेवन करने से कोलैस्ट्राल कन्ट्रोल कर हृदय को मज़बूत करता है ।
# - पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।
# - कण्ठशोधक -- अपराजिता जड़,पुष्प का चूर्ण, मुलेठी चूर्ण , हल्दी को मिलाकर काढ़ा बनाकर गरारें करने से या सभी चूर्ण को मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने स्वर मधुर होता है तथा कण्ठ सूजन पर पत्तों का लेप लगाने से तुरन्त लाभ होता है ।
# - बुखार - अपराजिता के जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ पिलाने से बुखार ठीक होता है तथा उपरोक्त माला बनाने की विधी से माला बनाकर पहनाने से बार- बार आने वाले बुखार से मुक्ति मिलती है ।
# - अण्डकोषवृद्धि ( पोत्तो में पानी उतरना ) -- अपराजिता के बीजों को पीसकर गौमूत्र में मिलाकर गरम करके हलवा जैसा पेस्ट बनाकर निवाया- निवाया ( त्वचा न जले इतना गरम ) लेकर एक कपड़े के ऊपर फैलाकर पेस्ट को अण्डकोष पर लगोंट की सहायता से बाँधने पर तुरन्त आराम आता है।
# - मूत्र मे जलन -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस को गाय के धारोष्ण दूध के साथ देने से भंयकर से भयंकर जलन तुरन्त शान्त होती है ।
# - शुक्राणु वर्धक -- प्रातःकाल ख़ाली पेट सफेद अपराजित के २-४ सूखे पुष्प पीसकर शहद मिलाकर चाटने से शुक्राणु तीव्रता से वृद्धि करती है तथा शुक्राणुओं को पुष्ट करता है यह सफेद बछड़े वाली गाय का दूध होगा तो सन्तानोत्पत्ति मे बेटा ही होगा ऐसी मान्यता है ।
# - सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।
# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।
#- शिर:शूल - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को गाय के दूध से बने मक्खन तथा मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से शिर: शूल में लाभ होता है ।
#- भगंदर - 2-4 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में शक्कर , मिश्री तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने के बाद गाय का दूध पीने से भगन्दर में लाभ होता है।
#- दौर्बल्य - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को दो गुणा शक्कर मिलाकर गौदुग्ध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होकर शरीर में ताक़त का संचार होता है ।
#- इन्द्रलुप्त ( सिर के बाल झड़ना )- गाय के मूत्र में गुड़हल के फूलों को पीसकर सिर पर लगाने से बाल बढ़ते है तथा गंजापन दूर होता है।
#- बालों का पोषण - गुड़हल के पत्तों को पीसकर लूगदी बनाकर उसमें एक चम्मच गौघृत मिलाकर बालों में लगाकर दो- ढाई घन्टे बाद सिर धोना, इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ , मज़बूत , घने व लम्बे करके बालों को पोषण मिलता है तथा सिर की खुशकी दूर होती है व सिर मे शीतलता मिलती है।
#- रक्तातिसार ( रक्त का अधिक बहना) - गुड़हल की 10-15 कलियों को 2 चम्मच गौघृत में तलकर उसमें 5 ग्राम मिश्री व 2 ग्राम नागकेशर मिलाकर प्रात: सायं सेवन करने से ख़ून का बहना व ख़ूनी बवासीर में लाभ होता है।
#- रक्ताल्पता ( ख़ून की कमी)- गुड़हल फूल का एक चम्मच चूर्ण , आधा चम्मच सोफ चूर्ण, एक चम्मच मिश्री मिलाकर गाय के दूध में मिलाकर पात: काल पीने से कुछ ही दिनों में ख़ून की कमी दूर होकर शरीर मे स्फूर्ति आयेगी बलवृद्धि होकर चेहरा लाल होकर कान्तिमान बनेगा तथ सौन्दर्य चमकेगा ।
#- प्रदर रोग - गुड़हल के 12 पुष्प की कलियों को गाय के दूध में पीसकर स्त्री को पिलाने से तथा भोजन में दूध का प्रयोग करने से शीघ्र ही श्वेत व रक्तप्रदर में लाभ होता है।
#- प्रदर रोग- गुड़हल की 5 कलियों को गौघृत में तलकर प्रात: सात दिन तक मिश्री के साथ खाने तथा गाय का दूध पीने से श्वेत-रक्तप्रदर रोगों में लाभ होता है।
#- स्मरणशक्ति- वर्धनार्थ :- गुड़हल की फूलों व पत्तों को सुखाकर दोनों को समभाग मिलाकर पीसकर शीशी में भरकर रख लें, एक चम्मच की मात्रा में सुबह- सायं एक कप मीठे गाय के दूध के साथ पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
#- ख़ूनी अतिसार - 2-5 ग्राम जामुन छाल में 2 चम्मच मधु मिलाकर 250 मिलीग्राम गाय के दूध के साथ पिलाने से अतिसार के साथ आने वाला रक्त रूक जाता है।
#- अर्श - 10 ग्राम जामुन के कोमल पत्तों को 250 मिलीग्राम गाय के दूध में घोटकर सात दिन तक सुबह , दोपहर, सायं को पीने से ख़ूनी बवासीर मे गिरने वाला ख़ून बन्द होता है।
#- श्वित्र रोग ( सफेद ) - 1 ग्राम श्वेत जयंती मूल को गाय के दूध के साथ घोट- पीसकर सेवन करने से संफेद दाग मिटते है।
#- मसूरिका( खसरा ) - जयन्ती के बीजों पीसकर , गौघृत मे मिलाकर लगाने से मसूरिका तथा विस्फोट आदि विकारों में लाभ होता है।
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# - पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।
#- सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।
# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।
# - सर्पदंश , बिच्छुदंश -- सर्प या बिच्छु के काटे हुए स्थान पर अपराजिता की जड़ को गौमूत्र मे घिसकर लगाने से ज़हर का असर कम होता है तथा तीन घन्टे की गारण्टी आ जाती है कही भी उपचारार्थ ले जाने के लिए समय मिल जाता है तथा जड़ को पीसकर गाय का घी मिलाकर पिलाने से भी लाभ होता है । यदि ख़ून मे ज़हर मिल गया है तो अपराजिता जड़ चूर्ण १२ ग्राम , अपराजिता पत्र स्वरस १२ ग्राम , कूठ चूर्ण १२ ग्राम , गाय का घी १०० ग्राम गाय का दूध २५० ग्राम मिलाकर पिलाने से आराम आता है तथा शरीर के आन्तरिक विष को वमन या विरेचन कर बाहर निकाल देती है ।
#- सर्पदंश -- अपराजिता की जड़ १० ग्राम। , निर्गुंडी की जड़ १० ग्राम , सोंठ १० ग्राम , हींग ५ ग्राम , , पानी २५० मे पकाकर , छानकर , गाय का घी १०० ग्राम मे मिलाकर उसमें भांगरा रस २५ ग्राम डाले और गाय के दूध से बनी छाछ मे मिलाकर पिलाने से सर्पदंश मे लाभ होता है ।
# - शिरोरोग ( आधाशीशी , माइग्रेन ) -- अपराजिता के फूल तथा पत्तों का रस निकालकर ५-६ बूँद प्रतिदिन नाक में डाले अथवा बीज तथा जड़ के चूर्ण १/२ टी स्पुन गाय के दूध के साथ खाने से आधाशीशी रोग दूर होता है।
# - पुरानी खाँसी -- अपराजिता की जड़ का स्वरस दो तौले , स्वादानुसार शहद , गाय के गर्म दूध २५०ग्राम में ५० ग्राम अदरक पकाकर , शहद व जडस्वरस मिलाकर पिलाने से पुरानी खाँसी दूर होती है।
# - पाण्डूरोग -- अपराजिता की जड़ का चूर्ण , गाय के दूध से बनी छाछ में मिलाकर पीने से कामलारोग, पाण्डूरोग , पीलिया ठीक होते है । तथा यकृतरोग मे जड़ व बीज का पावडर छाछ के साथ देने कारगर लाभ है तथा अपराजिता की पतली- पतली जड़ आधा-आधा इंच के टुकड़े करके सूत के धागे को लालरंग में रंगकर सुखाकर इस धागे में जड़ के टुकड़ों को बाँधकर रोगी के गले में बाँधने से ये रोग ठीक होते है ।
# - गलगण्ड ( घेंघारोग ) -- सफ़ेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के घी या नवनीत में मिलाकर खाने से व गाय के मूत्र सफेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण मे मिलाकर गले पर लेप करने से तुरन्त लाभ आता है ।
#-मानसिक रोग -- जैसे - तनाव ( स्ट्रैस ), तन्त्रिकातन्त्र ( नर्वशसिस्टम ) , अवसाद ( डिप्रेशन ) में सफ़ेद अपूराजिता की जड़ तथा बीजों का चूर्ण आधा चम्मच गाय के दूध के साथ लेने से इनको ठीक करता है तथा मस्तिष्क वर्धन ( मैमोरी बढ़ाने ) के लिए अपराजिता के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ मिलाकर चाटे तथा गाय का दूध पियेंगे तो दिमाग़ का विकास होकर तेज़ करती है तथा नैगेटिविटी के रोगी के गले या बाज़ू मे लाल धागे से सफ़ेद अपराजिता की जड़ को बाँधने से शरीर से नैगेटिविटी को दूर करता है और यदि इसी जड़ को शनिवार के दिन लाल कपड़े मे दरवाज़े पर लटकाये तो घर के अन्दर की ( नकारात्मक ऊर्जा ) नैगेटिविटी दूर होती है तथा स्नायुपीडा में अपराजिता की जड़ व अरणी के छाल व जड़ को तिल तैल मे पकाकर मालिश करने से पीड़ा दूर होती है ।
# - घाव व नारूरोग - अपराजिता की जड़ के रस या पावडर को गाय के घी मे गरम करके मिलाकर ठंडा होने पर लेप करने बूरे से बरा घाव तथा नारूरोग ठीक होते है तथा अपराजिता पुष्पों को सूखाकर चूर्ण या ताज़े फूलो व पत्तों की चटनी बनाकर उसमें शहद मिलाकर लेप करने से घाव तुरन्त भरता है तथा फोड़- फुन्सियों पर पत्तों का लेप करने से दब जाये के यदि उनमें मवाद ( पस ) बनना शुरू हो गया है तो जल्दी ही फूटकर ठीक हो जायेंगे ।
# - सौन्दर्य -- अपराजिता पंचांग की राख या जड़ चूर्ण व ऐलोवीरा का गूद्दा और गाय का ताज़ा नवनीत आपस मे मिलाकर चेहरे पर लगायेंगे तो कील- मुँहासे व उनके निशान , चेहरे की झाइयों को ठीक करता है व चेहरे को कान्तिमान बनाता है तथा ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर का मोटापा बढ़कर घटा हो या ऐसी महिलाएँ जिनके मोटापे के कारण व डिलिवरी ( सन्तान उत्तपत्ति ) के पश्चात शरीर पर स्ट्रेचमार्क बन जाते है या आपरेशन के निशान पर यह दवा लगाने से उनका समूल नष्ट करती है ।
# - हृदयरोग - अपराजिता के दो फूल या आधा चम्मच बीज या जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल सेवन करने से कोलैस्ट्राल कन्ट्रोल कर हृदय को मज़बूत करता है ।
# - पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।
# - कण्ठशोधक -- अपराजिता जड़,पुष्प का चूर्ण, मुलेठी चूर्ण , हल्दी को मिलाकर काढ़ा बनाकर गरारें करने से या सभी चूर्ण को मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने स्वर मधुर होता है तथा कण्ठ सूजन पर पत्तों का लेप लगाने से तुरन्त लाभ होता है ।
# - बुखार - अपराजिता के जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ पिलाने से बुखार ठीक होता है तथा उपरोक्त माला बनाने की विधी से माला बनाकर पहनाने से बार- बार आने वाले बुखार से मुक्ति मिलती है ।
# - अण्डकोषवृद्धि ( पोत्तो में पानी उतरना ) -- अपराजिता के बीजों को पीसकर गौमूत्र में मिलाकर गरम करके हलवा जैसा पेस्ट बनाकर निवाया- निवाया ( त्वचा न जले इतना गरम ) लेकर एक कपड़े के ऊपर फैलाकर पेस्ट को अण्डकोष पर लगोंट की सहायता से बाँधने पर तुरन्त आराम आता है।
# - मूत्र मे जलन -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस को गाय के धारोष्ण दूध के साथ देने से भंयकर से भयंकर जलन तुरन्त शान्त होती है ।
# - शुक्राणु वर्धक -- प्रातःकाल ख़ाली पेट सफेद अपराजित के २-४ सूखे पुष्प पीसकर शहद मिलाकर चाटने से शुक्राणु तीव्रता से वृद्धि करती है तथा शुक्राणुओं को पुष्ट करता है यह सफेद बछड़े वाली गाय का दूध होगा तो सन्तानोत्पत्ति मे बेटा ही होगा ऐसी मान्यता है ।
# - सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।
# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।
#- शिर:शूल - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को गाय के दूध से बने मक्खन तथा मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से शिर: शूल में लाभ होता है ।
#- भगंदर - 2-4 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में शक्कर , मिश्री तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने के बाद गाय का दूध पीने से भगन्दर में लाभ होता है।
#- दौर्बल्य - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को दो गुणा शक्कर मिलाकर गौदुग्ध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होकर शरीर में ताक़त का संचार होता है ।
#- इन्द्रलुप्त ( सिर के बाल झड़ना )- गाय के मूत्र में गुड़हल के फूलों को पीसकर सिर पर लगाने से बाल बढ़ते है तथा गंजापन दूर होता है।
#- बालों का पोषण - गुड़हल के पत्तों को पीसकर लूगदी बनाकर उसमें एक चम्मच गौघृत मिलाकर बालों में लगाकर दो- ढाई घन्टे बाद सिर धोना, इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ , मज़बूत , घने व लम्बे करके बालों को पोषण मिलता है तथा सिर की खुशकी दूर होती है व सिर मे शीतलता मिलती है।
#- रक्तातिसार ( रक्त का अधिक बहना) - गुड़हल की 10-15 कलियों को 2 चम्मच गौघृत में तलकर उसमें 5 ग्राम मिश्री व 2 ग्राम नागकेशर मिलाकर प्रात: सायं सेवन करने से ख़ून का बहना व ख़ूनी बवासीर में लाभ होता है।
#- रक्ताल्पता ( ख़ून की कमी)- गुड़हल फूल का एक चम्मच चूर्ण , आधा चम्मच सोफ चूर्ण, एक चम्मच मिश्री मिलाकर गाय के दूध में मिलाकर पात: काल पीने से कुछ ही दिनों में ख़ून की कमी दूर होकर शरीर मे स्फूर्ति आयेगी बलवृद्धि होकर चेहरा लाल होकर कान्तिमान बनेगा तथ सौन्दर्य चमकेगा ।
#- प्रदर रोग - गुड़हल के 12 पुष्प की कलियों को गाय के दूध में पीसकर स्त्री को पिलाने से तथा भोजन में दूध का प्रयोग करने से शीघ्र ही श्वेत व रक्तप्रदर में लाभ होता है।
#- प्रदर रोग- गुड़हल की 5 कलियों को गौघृत में तलकर प्रात: सात दिन तक मिश्री के साथ खाने तथा गाय का दूध पीने से श्वेत-रक्तप्रदर रोगों में लाभ होता है।
#- स्मरणशक्ति- वर्धनार्थ :- गुड़हल की फूलों व पत्तों को सुखाकर दोनों को समभाग मिलाकर पीसकर शीशी में भरकर रख लें, एक चम्मच की मात्रा में सुबह- सायं एक कप मीठे गाय के दूध के साथ पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
#- ख़ूनी अतिसार - 2-5 ग्राम जामुन छाल में 2 चम्मच मधु मिलाकर 250 मिलीग्राम गाय के दूध के साथ पिलाने से अतिसार के साथ आने वाला रक्त रूक जाता है।
#- अर्श - 10 ग्राम जामुन के कोमल पत्तों को 250 मिलीग्राम गाय के दूध में घोटकर सात दिन तक सुबह , दोपहर, सायं को पीने से ख़ूनी बवासीर मे गिरने वाला ख़ून बन्द होता है।
#- श्वित्र रोग ( सफेद ) - 1 ग्राम श्वेत जयंती मूल को गाय के दूध के साथ घोट- पीसकर सेवन करने से संफेद दाग मिटते है।
#- मसूरिका( खसरा ) - जयन्ती के बीजों पीसकर , गौघृत मे मिलाकर लगाने से मसूरिका तथा विस्फोट आदि विकारों में लाभ होता है।
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पञ्चगव्य -4:-
पञ्चगव्य -4:-
#- बाल रोग - समभाग जायफल तथा मायाफल के चूर्ण को मंद अग्नि पर भूनकर , बारह भाग धागा मिश्री पावडर मिलाकर, 1-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन प्रात: काल गाय के दूध के साथ बच्चों को सेवन कराने से रोगों का शमन होता है तथा बल वृद्धि करता है।
#- वाजिकरणार्थ - अकरकरा,जायफल, जावित्री , इलायची , कस्तूरी , केशर को गौदुग्ध में पकाकर दूध मे धागा मिश्री पावडर मिलाकर पीने से पौरुषशक्ति ( पुरूषत्व ) की वृद्धि होती है ।
#- ग्रहणी - समभाग जायफल , जौ, नागरमोथा , कच्चा बेल चूर्ण ( 1-3 ) ग्राम को गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा गृहणी रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है।
#- आमातिसार - 500 मिलीग्राम जायफल के चूर्ण में गौघृत तथा खाण्ड मिलाकर चटाने से आमातिसार में लाभ होता है।
#- अतिसार - 1-2 जायफल वटी को प्रात: सायं गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से सभी तरह के अतिसार का शमन होता है।
#- अतिसार - 5 ग्राम जीरे को भूनकर तथा पीसकर गौदही ( गाय के दूध से बनी दही ) की लस्सी में मिलाकर सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
#- संग्रहणी रोग - भांग ( विजया ) 100 ग्राम , सोंठ 20 ग्राम और ज़ीरा 400 ग्राम तीनों को बारीक कुटकर छान ले , और छने हुए चूर्ण की 100 खुराक बना लें, इनमें से एक- एक खुराक सुबह- सायं खाने से आधा घन्टा पहले 1-2 चम्मच गौदही ( गाय के दूध से बनी दही ) के साथ सेवन करने से पुरानी से पुरानी संग्रहणी जड़ से समाप्त हो जाती है। पथ्य में चावल, खिचड़ी , गाय के दूध से बनी दही तथा छाछ का प्रयोग करे व हल्का भोजन ग्रहण करे आप निश्चय ही स्वस्थ होगे।
#- अतिसार - ज़ीरा भूना हुआ और कच्ची तथा भूनी हुई सौंफ दोनों को बराबर मिलाकर एक- एक चम्मच की मात्रा में दो या तीन घन्टे बाद ताजे पानी या गौतक्र ( छाछ) के साथ सेवन करने से मरोड़ के साथ होने वाले पतले दस्त , अतिसार बन्द हो जाते है।
#- अगिनमांद्य - जीरे व धनिये के कल्क से पकायें गये गौघृत को प्रात: सायं भोजन के आधा घन्टे पहले सेवन करने से मंदाग्नि और वातपित्तज रोगों में लाभ होता है तथा भूख खुलकर लगती है तथा खाना जल्दी पचता है।
#- अम्लपित्त - समभाग ज़ीरा और धनियां के 120 ग्राम कल्क से 750 ग्राम गौघृत सिद्ध कर प्रतिदिन 10-15 ग्राम घृत का सेवन करने से अम्लपित्त के साथ- साथ विकृत कफ एवं पित्त , अरूचि , मंदाग्नि एवं छर्दि मे लाभकारी होता है।
#- बिच्छुदंश - ज़ीरा और नमक को पीसकर गौघृत और शहद में मिलाकर थोड़ा सा गरम करके बिच्छू के डंक मारे हुए स्थान पर लगाने से बिच्छू का ज़हर उतर जाता है।
#- वृश्चिक दंश , बिच्छुदंश - ज़ीरा मे गौघृत एवं सैंधानमक मिलाकर पीसकर बहुत महीन कल्क बनाकर थोड़ा गर्म कर वृश्चिक दंश - स्थान पर लेप करने से दंशजन्य वेदना का शमन होता है।
#- स्तन्यजननार्थ, स्तनवृद्धि - जीरे को गाय के घी मे भूनकर , भूने हुए आटे के लड्डुओं में डालकर , प्रसूता को खिलाने से माताओं के स्तनों में वृद्धि होती है । प्रसूतिकाल में गौघृत में सेंके हुए जीरे की कुछ अधिक मात्रा दाल में डालकर स्त्री को खिलाना चाहिए ।
#- स्तनवृद्धि - जीरे को गाय के घी में भूनकर इसका हलुआ बनाकर खिलाने से भी स्तनवृद्धि की वृद्धि होती है।
#- स्तन्यक्षय - समभाग सौंफ , सौवर्चल लक्षण तथा ज़ीरा के चूर्ण को गौतक्र ( छाछ ) के साथ नियमित सेवन करने से स्तन्यक्षय में लाभ होता है।
#- स्तन्यक्षय रोग - प्रसूता स्त्री द्वारा समभाग शतावरी , चावल तथा जीरे के चूर्ण का गोदूग्ध के साथ नियमित सेवन करने से स्तन्यक्षय में लाभ होता है।
#- स्तन्यवृद्धि - 10-20 मिलीग्राम ज़ीरा क्वाथ में मधु तथा गौदुग्ध मिलाकर गर्भावस्था की प्रारम्भिक स्थिति में दिन में एक बार प्रयोग करने से गर्भ की वृद्धि में व प्रसव में सहायता मिलती है तथा स्तन्य की वृद्धि होती है ।
#- अग्निदग्ध - ज़ीरा के कल्क में सिद्ध गौघृत में मदनफल तथा राल मिलाकर , अग्निदग्ध स्थान पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
#- वातकफज ज्वर - गुड अथवा मधु के साथ 5-10 ग्राम ज़ीरा कल्क का सेवन कर फिर अनुपान में गौतक्र ( गाय के दूध से बनी छाछ ) पीकर धूप में पसीना निकलने तक बैठने से पसीना होकर वातकफज ज्वर उतर जाता है।
#- नक्तान्ध्य , रतौंधी - जीवन्ती के 5-10 ग्राम पत्तों को गौघृत में पकाकर नित्य सेवन करने से रतौंधी मे लाभ होता है।
#- मुखरोग - समभाग जीवन्ती कल्क तथा गोदूग्ध से विधिवत तैल पाक कर उसमें मधु तथा आठवाँ भाग राल मिलाकर मुख तथा ओष्ठ के घाव पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
#- पार्श्व शूल - जीवन्ती के मूल कल्क में दो गुणा तैल मिलाकर , लेप करने से पसलियों की वेदना का शमन होता है।
#- कास ( खाँसी )- 10-12 ग्राम जीवन्ती आदि द्रव्यों से बने चूर्ण में विषम मात्रा में मधु तथा गौघृत मिलाकर खाने से कास ( खाँसी ) मे लाभ होता है।
#- राजक्ष्मा - 5-10 ग्राम जीवन्त्यादिघृत का सेवन करने से राजक्ष्मा में लाभ होता है ।
#- अतिसार - पुटपाक विधी से निकालते हुए 10 मिलीग्राम जीवन्ती स्वरस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर गौ- तक्र ( छाछ ) पीने से अतिसार में लाभ होता है।
#- अतिसार :- जीवन्ती - शाक को पकाकर गो-दधि ( गाय के दूध से बनी दही ) , अनार तथा गौघृत के साथ मिलाकर खाने से अतिसार मे लाभ आता है।
#- योनि- व्यापद( योनिविकार) :- जीवन्ती से सिद्ध गौघृत को 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से योनिव्यापद ( योनिविकारों ) का शमन होता है।
#- त्वकविकार - जीवन्ती , मंजिष्ठा , दारूहल्दी , तथा कम्पिल्लक के क्वाथ एवं तूतिया ( नीली थोथा ) के कल्क से पकाए गौघृत तथा तैल में सर्जरस तथा मोमदेशी मिलाकर मलहम की तरह प्रयोग करने से बिवाई फटना , चर्मकुष्ठ , एककुष्ठ ,किटिभ कुष्ठ तथा अलसक मे शीघ्र लाभ होता है।
#- ज्वरजन्य दाह - जीवन्ती मूल से बनाये काढ़े ( 10-30 ) मिलीग्राम में गौघृत मिलाकर सेवन करने से बुखार के कारण होने वाली जलन कम होती है।
#- शोथ - जीवन्त्यादि द्रव्यों का यवागू बनाकर , गौघृत तथा तैल से छौंक कर , वृक्षाम्ल के रस से खट्टा कर सेवन करने से अर्श , अतिसार , वातगुल्म , शोथ तथा हृदय रोग का शमन होता है तथा जठराग्नि की वृद्धि होती है।
#- आमातिसार - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर , रोटी को ठंडा करके गौ-दधि मे डालकर खाने से आमातिसार में लाभ होता है।
#- अन्तर्दाह , जलन - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर रात में रख दें , सुबह उसमें कुछ श्वेत ज़ीरा भूनकर मिला ले तथा गौ- तक्र के साथ खाने से जलन मिटती है।
#- धतूरे का विष - ज्वार के स्वरस मे , शक्कर तथा समान भाग गोदूग्ध मिलाकर 20 मिलीग्राम मात्रा में प्रात:सायं , दोपहर पिलाने से धतूरे का विष शान्त हो जाता है।
#- अतिसार - जूही के पत्तों के स्वरस से बनाये खडयुष ( 10-20 ) मिलीग्राम में गौघृत , अम्ल तथा लवण मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।
#- रक्तपित्त - परवल , शलेष्मातक , चौपतिया जूही , वटवृक्ष के अँकुर तथा निर्गुंडी पत्र शाक को गौघृत से संस्कारित कर तथा ऑवला व अनार रस मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।
#- संधिशूल - 1 ग्राम तगर मूल छाल को पीसकर गौ-तक्र ( छाछ ) के साथ पीने से संधिशूल का शमन होता है।
#- तिमिररोग - 20-30 मिलीग्राम त्रिफला के क्वाथ में जौं को पकाकर , उसमें गौघृत मिलाकर खाने आँखों में धून्धलापन, रात को न दिखाई देना, तथा आँखों के सामने रंग- बिरंगी दिखना बन्द होकर तिमिररोग का शमन होता है।
#- प्रतिश्याय - जौं के सत्तू में गौघृत मिलाकर खाने से नज़ला , ज़ुकाम, खाँसी तथा हिचकी रोग में लाभ होता है।
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#- बाल रोग - समभाग जायफल तथा मायाफल के चूर्ण को मंद अग्नि पर भूनकर , बारह भाग धागा मिश्री पावडर मिलाकर, 1-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन प्रात: काल गाय के दूध के साथ बच्चों को सेवन कराने से रोगों का शमन होता है तथा बल वृद्धि करता है।
#- वाजिकरणार्थ - अकरकरा,जायफल, जावित्री , इलायची , कस्तूरी , केशर को गौदुग्ध में पकाकर दूध मे धागा मिश्री पावडर मिलाकर पीने से पौरुषशक्ति ( पुरूषत्व ) की वृद्धि होती है ।
#- ग्रहणी - समभाग जायफल , जौ, नागरमोथा , कच्चा बेल चूर्ण ( 1-3 ) ग्राम को गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा गृहणी रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है।
#- आमातिसार - 500 मिलीग्राम जायफल के चूर्ण में गौघृत तथा खाण्ड मिलाकर चटाने से आमातिसार में लाभ होता है।
#- अतिसार - 1-2 जायफल वटी को प्रात: सायं गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से सभी तरह के अतिसार का शमन होता है।
#- अतिसार - 5 ग्राम जीरे को भूनकर तथा पीसकर गौदही ( गाय के दूध से बनी दही ) की लस्सी में मिलाकर सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
#- संग्रहणी रोग - भांग ( विजया ) 100 ग्राम , सोंठ 20 ग्राम और ज़ीरा 400 ग्राम तीनों को बारीक कुटकर छान ले , और छने हुए चूर्ण की 100 खुराक बना लें, इनमें से एक- एक खुराक सुबह- सायं खाने से आधा घन्टा पहले 1-2 चम्मच गौदही ( गाय के दूध से बनी दही ) के साथ सेवन करने से पुरानी से पुरानी संग्रहणी जड़ से समाप्त हो जाती है। पथ्य में चावल, खिचड़ी , गाय के दूध से बनी दही तथा छाछ का प्रयोग करे व हल्का भोजन ग्रहण करे आप निश्चय ही स्वस्थ होगे।
#- अतिसार - ज़ीरा भूना हुआ और कच्ची तथा भूनी हुई सौंफ दोनों को बराबर मिलाकर एक- एक चम्मच की मात्रा में दो या तीन घन्टे बाद ताजे पानी या गौतक्र ( छाछ) के साथ सेवन करने से मरोड़ के साथ होने वाले पतले दस्त , अतिसार बन्द हो जाते है।
#- अगिनमांद्य - जीरे व धनिये के कल्क से पकायें गये गौघृत को प्रात: सायं भोजन के आधा घन्टे पहले सेवन करने से मंदाग्नि और वातपित्तज रोगों में लाभ होता है तथा भूख खुलकर लगती है तथा खाना जल्दी पचता है।
#- अम्लपित्त - समभाग ज़ीरा और धनियां के 120 ग्राम कल्क से 750 ग्राम गौघृत सिद्ध कर प्रतिदिन 10-15 ग्राम घृत का सेवन करने से अम्लपित्त के साथ- साथ विकृत कफ एवं पित्त , अरूचि , मंदाग्नि एवं छर्दि मे लाभकारी होता है।
#- बिच्छुदंश - ज़ीरा और नमक को पीसकर गौघृत और शहद में मिलाकर थोड़ा सा गरम करके बिच्छू के डंक मारे हुए स्थान पर लगाने से बिच्छू का ज़हर उतर जाता है।
#- वृश्चिक दंश , बिच्छुदंश - ज़ीरा मे गौघृत एवं सैंधानमक मिलाकर पीसकर बहुत महीन कल्क बनाकर थोड़ा गर्म कर वृश्चिक दंश - स्थान पर लेप करने से दंशजन्य वेदना का शमन होता है।
#- स्तन्यजननार्थ, स्तनवृद्धि - जीरे को गाय के घी मे भूनकर , भूने हुए आटे के लड्डुओं में डालकर , प्रसूता को खिलाने से माताओं के स्तनों में वृद्धि होती है । प्रसूतिकाल में गौघृत में सेंके हुए जीरे की कुछ अधिक मात्रा दाल में डालकर स्त्री को खिलाना चाहिए ।
#- स्तनवृद्धि - जीरे को गाय के घी में भूनकर इसका हलुआ बनाकर खिलाने से भी स्तनवृद्धि की वृद्धि होती है।
#- स्तन्यक्षय - समभाग सौंफ , सौवर्चल लक्षण तथा ज़ीरा के चूर्ण को गौतक्र ( छाछ ) के साथ नियमित सेवन करने से स्तन्यक्षय में लाभ होता है।
#- स्तन्यक्षय रोग - प्रसूता स्त्री द्वारा समभाग शतावरी , चावल तथा जीरे के चूर्ण का गोदूग्ध के साथ नियमित सेवन करने से स्तन्यक्षय में लाभ होता है।
#- स्तन्यवृद्धि - 10-20 मिलीग्राम ज़ीरा क्वाथ में मधु तथा गौदुग्ध मिलाकर गर्भावस्था की प्रारम्भिक स्थिति में दिन में एक बार प्रयोग करने से गर्भ की वृद्धि में व प्रसव में सहायता मिलती है तथा स्तन्य की वृद्धि होती है ।
#- अग्निदग्ध - ज़ीरा के कल्क में सिद्ध गौघृत में मदनफल तथा राल मिलाकर , अग्निदग्ध स्थान पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
#- वातकफज ज्वर - गुड अथवा मधु के साथ 5-10 ग्राम ज़ीरा कल्क का सेवन कर फिर अनुपान में गौतक्र ( गाय के दूध से बनी छाछ ) पीकर धूप में पसीना निकलने तक बैठने से पसीना होकर वातकफज ज्वर उतर जाता है।
#- नक्तान्ध्य , रतौंधी - जीवन्ती के 5-10 ग्राम पत्तों को गौघृत में पकाकर नित्य सेवन करने से रतौंधी मे लाभ होता है।
#- मुखरोग - समभाग जीवन्ती कल्क तथा गोदूग्ध से विधिवत तैल पाक कर उसमें मधु तथा आठवाँ भाग राल मिलाकर मुख तथा ओष्ठ के घाव पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।
#- पार्श्व शूल - जीवन्ती के मूल कल्क में दो गुणा तैल मिलाकर , लेप करने से पसलियों की वेदना का शमन होता है।
#- कास ( खाँसी )- 10-12 ग्राम जीवन्ती आदि द्रव्यों से बने चूर्ण में विषम मात्रा में मधु तथा गौघृत मिलाकर खाने से कास ( खाँसी ) मे लाभ होता है।
#- राजक्ष्मा - 5-10 ग्राम जीवन्त्यादिघृत का सेवन करने से राजक्ष्मा में लाभ होता है ।
#- अतिसार - पुटपाक विधी से निकालते हुए 10 मिलीग्राम जीवन्ती स्वरस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर गौ- तक्र ( छाछ ) पीने से अतिसार में लाभ होता है।
#- अतिसार :- जीवन्ती - शाक को पकाकर गो-दधि ( गाय के दूध से बनी दही ) , अनार तथा गौघृत के साथ मिलाकर खाने से अतिसार मे लाभ आता है।
#- योनि- व्यापद( योनिविकार) :- जीवन्ती से सिद्ध गौघृत को 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से योनिव्यापद ( योनिविकारों ) का शमन होता है।
#- त्वकविकार - जीवन्ती , मंजिष्ठा , दारूहल्दी , तथा कम्पिल्लक के क्वाथ एवं तूतिया ( नीली थोथा ) के कल्क से पकाए गौघृत तथा तैल में सर्जरस तथा मोमदेशी मिलाकर मलहम की तरह प्रयोग करने से बिवाई फटना , चर्मकुष्ठ , एककुष्ठ ,किटिभ कुष्ठ तथा अलसक मे शीघ्र लाभ होता है।
#- ज्वरजन्य दाह - जीवन्ती मूल से बनाये काढ़े ( 10-30 ) मिलीग्राम में गौघृत मिलाकर सेवन करने से बुखार के कारण होने वाली जलन कम होती है।
#- शोथ - जीवन्त्यादि द्रव्यों का यवागू बनाकर , गौघृत तथा तैल से छौंक कर , वृक्षाम्ल के रस से खट्टा कर सेवन करने से अर्श , अतिसार , वातगुल्म , शोथ तथा हृदय रोग का शमन होता है तथा जठराग्नि की वृद्धि होती है।
#- आमातिसार - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर , रोटी को ठंडा करके गौ-दधि मे डालकर खाने से आमातिसार में लाभ होता है।
#- अन्तर्दाह , जलन - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर रात में रख दें , सुबह उसमें कुछ श्वेत ज़ीरा भूनकर मिला ले तथा गौ- तक्र के साथ खाने से जलन मिटती है।
#- धतूरे का विष - ज्वार के स्वरस मे , शक्कर तथा समान भाग गोदूग्ध मिलाकर 20 मिलीग्राम मात्रा में प्रात:सायं , दोपहर पिलाने से धतूरे का विष शान्त हो जाता है।
#- अतिसार - जूही के पत्तों के स्वरस से बनाये खडयुष ( 10-20 ) मिलीग्राम में गौघृत , अम्ल तथा लवण मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।
#- रक्तपित्त - परवल , शलेष्मातक , चौपतिया जूही , वटवृक्ष के अँकुर तथा निर्गुंडी पत्र शाक को गौघृत से संस्कारित कर तथा ऑवला व अनार रस मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।
#- संधिशूल - 1 ग्राम तगर मूल छाल को पीसकर गौ-तक्र ( छाछ ) के साथ पीने से संधिशूल का शमन होता है।
#- तिमिररोग - 20-30 मिलीग्राम त्रिफला के क्वाथ में जौं को पकाकर , उसमें गौघृत मिलाकर खाने आँखों में धून्धलापन, रात को न दिखाई देना, तथा आँखों के सामने रंग- बिरंगी दिखना बन्द होकर तिमिररोग का शमन होता है।
#- प्रतिश्याय - जौं के सत्तू में गौघृत मिलाकर खाने से नज़ला , ज़ुकाम, खाँसी तथा हिचकी रोग में लाभ होता है।
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Friday, 26 February 2021
पञ्चगव्य :-5-
पञ्चगव्य :-5-
#- गलगण्ड - सरसों , नीम के पत्ते , सहजन के बीज , अलसी , जौ तथा मूलीबीज को गौ-तक्र ( गाय के दूध से बनी खट्टी छाछ ) में पीसकर गले में लेप करने से गलगण्ड में लाभ होता है ।
#- हृद्रोग , क्षतज श्वास,खाँसी , व वीर्यवृद्धि- पिप्पल्यादि लेह में मधु तथा गौघृत मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से क्षतज-श्वास खाँसी , हृद्रोग तथा कृशता दूर होकर वीर्य की वृद्धि होती है।
#- गुल्म रोग - गुल्म रोगी में यदि पुरीष तथा अधोवायु का अवरोध हो तब जौ से बनाए खाद्य पदार्थों में अधिक मात्रा में स्नेह एवं लवण मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
#- उदरशूल - जौ के आटे में जौ की क्षार एंव गौ-तक्र मिलाकर पेट पर लेप करने से उदरशूल का शमन होता है।
#- विसर्प रोग ( यह त्वचा का संक्रामक रोग है जिसमें त्वचा पर संक्रमण होकर लाल चकत्ते हो जाते है , इनमें भंयकर पीड़ा होती है।) - समभाग जौ तथा मुलेठी से बना कल्क में गौघृत मिलाकर विसर्प पर लेप करने से लाभ होता है। विसर्प रोगी को आहार में फालसा , अंगूर , आदि से सिद्ध जल में जौ का सत्तू तथा गौघृत मिलाकर अवलेह ( हलवा ) बनाकर सेवन करना चाहिए तथा जौ के सत्तू में गौघृत मिलाकर लेप करना विसर्प मे हितकर होता है ।
#- व्रण - समभाग जौ , मुलेठी तथा तिल के चूर्ण में गौघृत मिलाकर गुनगुना करके घाव पर लेप करने से व्रण का रोपण होकर ठीक होता है।
#- व्रण - पीडायुक्त , कठिन , स्तब्ध तथा स्राव-रहित घाव पर गौघृत युक्त जौ के आटे का बार- बार लेप करने से घाव में मृदुता उत्पन्न होकर रोपण होता है।
#- रक्तपित्त - गौघृत युक्त जौ के सत्तू को पानी में घोलकर , मथकर सेवन करने से अत्यधिक प्यास , जलन दाह , तथा रक्तपित्त में लाभ होता है।
#- ज्वरदाह, दौर्बल्य - जौ को गोदूग्ध में पकाकर , इसमें धागामिश्री तथा शहद मिलाकर सेवन से ज्वर दाह, तथा दौर्बल्य मे लाभ होता है।
#- मूत्र- विकार - पक्व तरबूज़ , फल-स्वरस में समान मात्रा में गो- तक्र ( छाछ) तथा स्वादानुसार लवण मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकार , पीलिया , पूयमेह , मधुमेह , तथा मूत्राशय विकारों में लाभ होता है ।
#- पित्ताभिष्यंद - ताड़ वृक्ष ( ब्राब ट्री ( Brab tree ) की नवीन नवीन ( ताज़ी ) ताड़ी से सिद्ध किए हुए गौघृत की 1-2 बूँदों को नेत्रों में डालने से पित्ताभिष्यंद में लाभ होता है।
#- क्षयज- कास - क्षयज- कास के रोगी को मूत्रविवर्णता अथवा मूत्रकृच्छ ( मूत्र त्यागने में कठिनता ) हो जायें तो विदारीकन्द , कदम्ब तथा ताड़ फल के क्वाथ एवं कल्क से सिद्ध किये हुए गोदूग्ध व गौघृत का सेवन प्रशस्त है।
#- कर्णशूल - बिजौरा नींबू , दाड़िम ( अनार ) तिन्तिडीक स्वरस तथा गौमूत्र से सिद्ध तैल को कान में 1-2 बूँद डालने से कर्णशूल का शमन होता है ।
#- अतिसार - तिन्तिडीक त्वक चूर्ण पोटली बनाकर , जल में भिगोकर पोटली से नि:सृत जलीय - तत्व को गो- दधि मे मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।
#- अर्श - त्र्यूषणादि चूर्ण को मात्रानुसार गो-दधि , मद्य , या उष्ण जल के साथ सेवन करने से अर्श ग्रहणी , शूल , अनाह आदि रोगों का शमन होता है।
#- रक्तपित्त - शतावर्यादि गौघृत का सेवन करने से कास , ज्वर , अनाह , विबन्ध , शूल तथा रक्तपित्त का शमन होता है।
#- हिक्का - जामुन तथा तिंदुक के पुष्प और फल के 1-3 ग्राम कल्क में मधु तथा गौघृत मिलाकर खिलाने से बच्चों की हिचकियाँ रूक जाती है।
#- सूर्यावर्त - गोदूग्ध मे तिल को पीसकर वेदनायुक्त स्थान पर लगाने से या मस्तक पर लगाने से सूर्यावर्त नामक शिरोरोग में लाभ होता है।
#- रसायन वाजीकरण - रसायन - एक वर्ष तक 5 ग्राम तिनिश त्वक कल्क या स्वरस को गोदूग्ध के साथ प्रात: काल पीने से या मधु, या गौघृत मिलाकर चाटने से , ओर केवल गोदूग्ध व भात का भोजन करने से ज़रा व्याधि रहित दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।
#- तिल के पुष्प तथा गोक्षुर को बराबर लेकर गौघृत तथा मधु में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन तथा रूसी दूर होती है।
#- अर्श - तिल को जल के साथ पीसकर गाय के दूध से बने मक्खन के साथ दिन में तीन बार भोजन से 1 घन्टा पहले खाने से अर्श में लाभ होता है तथा रक्त का निकलना बन्द हो जाता है।
#- पथरी - तिल पुष्पों के 1-2 ग्राम क्षार में 2 चम्मच मधु और 250 मिलीग्राम गोदूग्ध मिलाकर पिलाने से पथरी गलकर बाहर आ जाती है।
#- पूयमेह , मूत्रदाह - तिल के ताज़े पत्तों को 12 घन्टों तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से अथवा तिल के 1-2 ग्राम क्षार को गोदूग्ध व शहद के साथ देने से पूयमेह में लाभ होता है तथा मूत्रदाह का शमन होता है।
#- वाजीकरण रसायन- रसायन - काले तिल और जल भांगरे के पत्तों को लगातार एक मास तक सेवन करने से जरावस्थाजन्य विभिन्न प्रकार के रोग मिटते है तथा भोजन मे केवल गोदूग्ध का ही सेवन करे।
#- विषमज्वर - तिल की लूगदी को गौघृत के साथ लेने से विषमज्वर में लाभ होता है ।
#- सुर्यावर्त रोग- तिल को गोदूग्ध मे पीसकर मस्तक पर लेप करने से सूर्यावर्त शिरोरोग मे लाभ होता है।
#-शिरोरोग - तीखुर ( एण्डियन ऐरोरूट Indian arrowroot ) तीखुर आदि द्रव्यों से विधीपुर्वक निर्मित महायूर गौघृत का सेवन करने से अर्दित , धातु- विकार , कास, श्वास, योनिरोग , शिरोरोग , आदि का शमन होता है।
#- प्रवाहिका , आन्त्रव्रण - शुष्क प्रकन्द के चूर्ण को गोदूग्ध तथा मिश्री के साथ पथ्य के रूप में प्रवाहिका , आन्तरिक ज्वर , आंत्र व्रण तथा मूत्राशय व्रण की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
#- अग्निदग्ध - तीखुर , प्लक्ष की छाल , लालचन्दन, गेरू एवं गिलोय के चूर्ण को गौघृत में मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
#- विरेचनार्थ - अजमोदा , तवक्षीर , बिदारीकन्द , शर्करा तथा निशोथ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने से सम्यक् प्रकार से विरेचन हो जाता है ।
#- पित्तज विकार- तवक्षीर को गौघृत में मिलाकर सेवन करने से पित्तज- विकारों का शमन होता है।
#- उदर विकार - तीखुर भेद ( वैस्ट इण्डियन ऐरोरूट West I Indian arrowroot ) के 1 चम्मच अरारोट प्रकन्द चूर्ण में दो चम्मच गोदूग्ध मिलाकर , 500 मिली जल के साथ पकायें , फिर उसमें 250 मिली गोदूग्ध तथा थोड़ी शक्कर डालकर पकाएँ , आधा पानी जल जाने पर उतारकर ठंडा करके 125 मिलीग्राम जायफल चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अतिसार , प्रवाहिका , अजीर्ण आदि उदरविकारो मे लाभ होता है।
#- पित्तज विकार- 1-2 ग्राम तीखुर प्रकन्द चूर्ण में 200 मिलीग्राम जल मिलाकर पकाए , फिर उसमें 250 मिलीग्राम गोदूग्ध तथा 50 ग्राम मिश्री डालकर पकाए , दूध मात्रा शेष रहने पर उतारकर सुखोष्ण ( गुनगुना ) सेवन करने से पित्तज- विकार , दाह, मस्तक शूल , नेत्ररोग तथा रक्तार्श में लाभ होता है।
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#- गलगण्ड - सरसों , नीम के पत्ते , सहजन के बीज , अलसी , जौ तथा मूलीबीज को गौ-तक्र ( गाय के दूध से बनी खट्टी छाछ ) में पीसकर गले में लेप करने से गलगण्ड में लाभ होता है ।
#- हृद्रोग , क्षतज श्वास,खाँसी , व वीर्यवृद्धि- पिप्पल्यादि लेह में मधु तथा गौघृत मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से क्षतज-श्वास खाँसी , हृद्रोग तथा कृशता दूर होकर वीर्य की वृद्धि होती है।
#- गुल्म रोग - गुल्म रोगी में यदि पुरीष तथा अधोवायु का अवरोध हो तब जौ से बनाए खाद्य पदार्थों में अधिक मात्रा में स्नेह एवं लवण मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
#- उदरशूल - जौ के आटे में जौ की क्षार एंव गौ-तक्र मिलाकर पेट पर लेप करने से उदरशूल का शमन होता है।
#- विसर्प रोग ( यह त्वचा का संक्रामक रोग है जिसमें त्वचा पर संक्रमण होकर लाल चकत्ते हो जाते है , इनमें भंयकर पीड़ा होती है।) - समभाग जौ तथा मुलेठी से बना कल्क में गौघृत मिलाकर विसर्प पर लेप करने से लाभ होता है। विसर्प रोगी को आहार में फालसा , अंगूर , आदि से सिद्ध जल में जौ का सत्तू तथा गौघृत मिलाकर अवलेह ( हलवा ) बनाकर सेवन करना चाहिए तथा जौ के सत्तू में गौघृत मिलाकर लेप करना विसर्प मे हितकर होता है ।
#- व्रण - समभाग जौ , मुलेठी तथा तिल के चूर्ण में गौघृत मिलाकर गुनगुना करके घाव पर लेप करने से व्रण का रोपण होकर ठीक होता है।
#- व्रण - पीडायुक्त , कठिन , स्तब्ध तथा स्राव-रहित घाव पर गौघृत युक्त जौ के आटे का बार- बार लेप करने से घाव में मृदुता उत्पन्न होकर रोपण होता है।
#- रक्तपित्त - गौघृत युक्त जौ के सत्तू को पानी में घोलकर , मथकर सेवन करने से अत्यधिक प्यास , जलन दाह , तथा रक्तपित्त में लाभ होता है।
#- ज्वरदाह, दौर्बल्य - जौ को गोदूग्ध में पकाकर , इसमें धागामिश्री तथा शहद मिलाकर सेवन से ज्वर दाह, तथा दौर्बल्य मे लाभ होता है।
#- मूत्र- विकार - पक्व तरबूज़ , फल-स्वरस में समान मात्रा में गो- तक्र ( छाछ) तथा स्वादानुसार लवण मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकार , पीलिया , पूयमेह , मधुमेह , तथा मूत्राशय विकारों में लाभ होता है ।
#- पित्ताभिष्यंद - ताड़ वृक्ष ( ब्राब ट्री ( Brab tree ) की नवीन नवीन ( ताज़ी ) ताड़ी से सिद्ध किए हुए गौघृत की 1-2 बूँदों को नेत्रों में डालने से पित्ताभिष्यंद में लाभ होता है।
#- क्षयज- कास - क्षयज- कास के रोगी को मूत्रविवर्णता अथवा मूत्रकृच्छ ( मूत्र त्यागने में कठिनता ) हो जायें तो विदारीकन्द , कदम्ब तथा ताड़ फल के क्वाथ एवं कल्क से सिद्ध किये हुए गोदूग्ध व गौघृत का सेवन प्रशस्त है।
#- कर्णशूल - बिजौरा नींबू , दाड़िम ( अनार ) तिन्तिडीक स्वरस तथा गौमूत्र से सिद्ध तैल को कान में 1-2 बूँद डालने से कर्णशूल का शमन होता है ।
#- अतिसार - तिन्तिडीक त्वक चूर्ण पोटली बनाकर , जल में भिगोकर पोटली से नि:सृत जलीय - तत्व को गो- दधि मे मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।
#- अर्श - त्र्यूषणादि चूर्ण को मात्रानुसार गो-दधि , मद्य , या उष्ण जल के साथ सेवन करने से अर्श ग्रहणी , शूल , अनाह आदि रोगों का शमन होता है।
#- रक्तपित्त - शतावर्यादि गौघृत का सेवन करने से कास , ज्वर , अनाह , विबन्ध , शूल तथा रक्तपित्त का शमन होता है।
#- हिक्का - जामुन तथा तिंदुक के पुष्प और फल के 1-3 ग्राम कल्क में मधु तथा गौघृत मिलाकर खिलाने से बच्चों की हिचकियाँ रूक जाती है।
#- सूर्यावर्त - गोदूग्ध मे तिल को पीसकर वेदनायुक्त स्थान पर लगाने से या मस्तक पर लगाने से सूर्यावर्त नामक शिरोरोग में लाभ होता है।
#- रसायन वाजीकरण - रसायन - एक वर्ष तक 5 ग्राम तिनिश त्वक कल्क या स्वरस को गोदूग्ध के साथ प्रात: काल पीने से या मधु, या गौघृत मिलाकर चाटने से , ओर केवल गोदूग्ध व भात का भोजन करने से ज़रा व्याधि रहित दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।
#- तिल के पुष्प तथा गोक्षुर को बराबर लेकर गौघृत तथा मधु में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन तथा रूसी दूर होती है।
#- अर्श - तिल को जल के साथ पीसकर गाय के दूध से बने मक्खन के साथ दिन में तीन बार भोजन से 1 घन्टा पहले खाने से अर्श में लाभ होता है तथा रक्त का निकलना बन्द हो जाता है।
#- पथरी - तिल पुष्पों के 1-2 ग्राम क्षार में 2 चम्मच मधु और 250 मिलीग्राम गोदूग्ध मिलाकर पिलाने से पथरी गलकर बाहर आ जाती है।
#- पूयमेह , मूत्रदाह - तिल के ताज़े पत्तों को 12 घन्टों तक पानी में भिगोकर उस पानी को पिलाने से अथवा तिल के 1-2 ग्राम क्षार को गोदूग्ध व शहद के साथ देने से पूयमेह में लाभ होता है तथा मूत्रदाह का शमन होता है।
#- वाजीकरण रसायन- रसायन - काले तिल और जल भांगरे के पत्तों को लगातार एक मास तक सेवन करने से जरावस्थाजन्य विभिन्न प्रकार के रोग मिटते है तथा भोजन मे केवल गोदूग्ध का ही सेवन करे।
#- विषमज्वर - तिल की लूगदी को गौघृत के साथ लेने से विषमज्वर में लाभ होता है ।
#- सुर्यावर्त रोग- तिल को गोदूग्ध मे पीसकर मस्तक पर लेप करने से सूर्यावर्त शिरोरोग मे लाभ होता है।
#-शिरोरोग - तीखुर ( एण्डियन ऐरोरूट Indian arrowroot ) तीखुर आदि द्रव्यों से विधीपुर्वक निर्मित महायूर गौघृत का सेवन करने से अर्दित , धातु- विकार , कास, श्वास, योनिरोग , शिरोरोग , आदि का शमन होता है।
#- प्रवाहिका , आन्त्रव्रण - शुष्क प्रकन्द के चूर्ण को गोदूग्ध तथा मिश्री के साथ पथ्य के रूप में प्रवाहिका , आन्तरिक ज्वर , आंत्र व्रण तथा मूत्राशय व्रण की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
#- अग्निदग्ध - तीखुर , प्लक्ष की छाल , लालचन्दन, गेरू एवं गिलोय के चूर्ण को गौघृत में मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
#- विरेचनार्थ - अजमोदा , तवक्षीर , बिदारीकन्द , शर्करा तथा निशोथ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने से सम्यक् प्रकार से विरेचन हो जाता है ।
#- पित्तज विकार- तवक्षीर को गौघृत में मिलाकर सेवन करने से पित्तज- विकारों का शमन होता है।
#- उदर विकार - तीखुर भेद ( वैस्ट इण्डियन ऐरोरूट West I Indian arrowroot ) के 1 चम्मच अरारोट प्रकन्द चूर्ण में दो चम्मच गोदूग्ध मिलाकर , 500 मिली जल के साथ पकायें , फिर उसमें 250 मिली गोदूग्ध तथा थोड़ी शक्कर डालकर पकाएँ , आधा पानी जल जाने पर उतारकर ठंडा करके 125 मिलीग्राम जायफल चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अतिसार , प्रवाहिका , अजीर्ण आदि उदरविकारो मे लाभ होता है।
#- पित्तज विकार- 1-2 ग्राम तीखुर प्रकन्द चूर्ण में 200 मिलीग्राम जल मिलाकर पकाए , फिर उसमें 250 मिलीग्राम गोदूग्ध तथा 50 ग्राम मिश्री डालकर पकाए , दूध मात्रा शेष रहने पर उतारकर सुखोष्ण ( गुनगुना ) सेवन करने से पित्तज- विकार , दाह, मस्तक शूल , नेत्ररोग तथा रक्तार्श में लाभ होता है।
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