पञ्गव्य ३:-
# - पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।
#- सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।
# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।
# - सर्पदंश , बिच्छुदंश -- सर्प या बिच्छु के काटे हुए स्थान पर अपराजिता की जड़ को गौमूत्र मे घिसकर लगाने से ज़हर का असर कम होता है तथा तीन घन्टे की गारण्टी आ जाती है कही भी उपचारार्थ ले जाने के लिए समय मिल जाता है तथा जड़ को पीसकर गाय का घी मिलाकर पिलाने से भी लाभ होता है । यदि ख़ून मे ज़हर मिल गया है तो अपराजिता जड़ चूर्ण १२ ग्राम , अपराजिता पत्र स्वरस १२ ग्राम , कूठ चूर्ण १२ ग्राम , गाय का घी १०० ग्राम गाय का दूध २५० ग्राम मिलाकर पिलाने से आराम आता है तथा शरीर के आन्तरिक विष को वमन या विरेचन कर बाहर निकाल देती है ।
#- सर्पदंश -- अपराजिता की जड़ १० ग्राम। , निर्गुंडी की जड़ १० ग्राम , सोंठ १० ग्राम , हींग ५ ग्राम , , पानी २५० मे पकाकर , छानकर , गाय का घी १०० ग्राम मे मिलाकर उसमें भांगरा रस २५ ग्राम डाले और गाय के दूध से बनी छाछ मे मिलाकर पिलाने से सर्पदंश मे लाभ होता है ।
# - शिरोरोग ( आधाशीशी , माइग्रेन ) -- अपराजिता के फूल तथा पत्तों का रस निकालकर ५-६ बूँद प्रतिदिन नाक में डाले अथवा बीज तथा जड़ के चूर्ण १/२ टी स्पुन गाय के दूध के साथ खाने से आधाशीशी रोग दूर होता है।
# - पुरानी खाँसी -- अपराजिता की जड़ का स्वरस दो तौले , स्वादानुसार शहद , गाय के गर्म दूध २५०ग्राम में ५० ग्राम अदरक पकाकर , शहद व जडस्वरस मिलाकर पिलाने से पुरानी खाँसी दूर होती है।
# - पाण्डूरोग -- अपराजिता की जड़ का चूर्ण , गाय के दूध से बनी छाछ में मिलाकर पीने से कामलारोग, पाण्डूरोग , पीलिया ठीक होते है । तथा यकृतरोग मे जड़ व बीज का पावडर छाछ के साथ देने कारगर लाभ है तथा अपराजिता की पतली- पतली जड़ आधा-आधा इंच के टुकड़े करके सूत के धागे को लालरंग में रंगकर सुखाकर इस धागे में जड़ के टुकड़ों को बाँधकर रोगी के गले में बाँधने से ये रोग ठीक होते है ।
# - गलगण्ड ( घेंघारोग ) -- सफ़ेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के घी या नवनीत में मिलाकर खाने से व गाय के मूत्र सफेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण मे मिलाकर गले पर लेप करने से तुरन्त लाभ आता है ।
#-मानसिक रोग -- जैसे - तनाव ( स्ट्रैस ), तन्त्रिकातन्त्र ( नर्वशसिस्टम ) , अवसाद ( डिप्रेशन ) में सफ़ेद अपूराजिता की जड़ तथा बीजों का चूर्ण आधा चम्मच गाय के दूध के साथ लेने से इनको ठीक करता है तथा मस्तिष्क वर्धन ( मैमोरी बढ़ाने ) के लिए अपराजिता के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ मिलाकर चाटे तथा गाय का दूध पियेंगे तो दिमाग़ का विकास होकर तेज़ करती है तथा नैगेटिविटी के रोगी के गले या बाज़ू मे लाल धागे से सफ़ेद अपराजिता की जड़ को बाँधने से शरीर से नैगेटिविटी को दूर करता है और यदि इसी जड़ को शनिवार के दिन लाल कपड़े मे दरवाज़े पर लटकाये तो घर के अन्दर की ( नकारात्मक ऊर्जा ) नैगेटिविटी दूर होती है तथा स्नायुपीडा में अपराजिता की जड़ व अरणी के छाल व जड़ को तिल तैल मे पकाकर मालिश करने से पीड़ा दूर होती है ।
# - घाव व नारूरोग - अपराजिता की जड़ के रस या पावडर को गाय के घी मे गरम करके मिलाकर ठंडा होने पर लेप करने बूरे से बरा घाव तथा नारूरोग ठीक होते है तथा अपराजिता पुष्पों को सूखाकर चूर्ण या ताज़े फूलो व पत्तों की चटनी बनाकर उसमें शहद मिलाकर लेप करने से घाव तुरन्त भरता है तथा फोड़- फुन्सियों पर पत्तों का लेप करने से दब जाये के यदि उनमें मवाद ( पस ) बनना शुरू हो गया है तो जल्दी ही फूटकर ठीक हो जायेंगे ।
# - सौन्दर्य -- अपराजिता पंचांग की राख या जड़ चूर्ण व ऐलोवीरा का गूद्दा और गाय का ताज़ा नवनीत आपस मे मिलाकर चेहरे पर लगायेंगे तो कील- मुँहासे व उनके निशान , चेहरे की झाइयों को ठीक करता है व चेहरे को कान्तिमान बनाता है तथा ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर का मोटापा बढ़कर घटा हो या ऐसी महिलाएँ जिनके मोटापे के कारण व डिलिवरी ( सन्तान उत्तपत्ति ) के पश्चात शरीर पर स्ट्रेचमार्क बन जाते है या आपरेशन के निशान पर यह दवा लगाने से उनका समूल नष्ट करती है ।
# - हृदयरोग - अपराजिता के दो फूल या आधा चम्मच बीज या जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल सेवन करने से कोलैस्ट्राल कन्ट्रोल कर हृदय को मज़बूत करता है ।
# - पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।
# - कण्ठशोधक -- अपराजिता जड़,पुष्प का चूर्ण, मुलेठी चूर्ण , हल्दी को मिलाकर काढ़ा बनाकर गरारें करने से या सभी चूर्ण को मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने स्वर मधुर होता है तथा कण्ठ सूजन पर पत्तों का लेप लगाने से तुरन्त लाभ होता है ।
# - बुखार - अपराजिता के जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ पिलाने से बुखार ठीक होता है तथा उपरोक्त माला बनाने की विधी से माला बनाकर पहनाने से बार- बार आने वाले बुखार से मुक्ति मिलती है ।
# - अण्डकोषवृद्धि ( पोत्तो में पानी उतरना ) -- अपराजिता के बीजों को पीसकर गौमूत्र में मिलाकर गरम करके हलवा जैसा पेस्ट बनाकर निवाया- निवाया ( त्वचा न जले इतना गरम ) लेकर एक कपड़े के ऊपर फैलाकर पेस्ट को अण्डकोष पर लगोंट की सहायता से बाँधने पर तुरन्त आराम आता है।
# - मूत्र मे जलन -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस को गाय के धारोष्ण दूध के साथ देने से भंयकर से भयंकर जलन तुरन्त शान्त होती है ।
# - शुक्राणु वर्धक -- प्रातःकाल ख़ाली पेट सफेद अपराजित के २-४ सूखे पुष्प पीसकर शहद मिलाकर चाटने से शुक्राणु तीव्रता से वृद्धि करती है तथा शुक्राणुओं को पुष्ट करता है यह सफेद बछड़े वाली गाय का दूध होगा तो सन्तानोत्पत्ति मे बेटा ही होगा ऐसी मान्यता है ।
# - सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।
# - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आता है तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।
#- शिर:शूल - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को गाय के दूध से बने मक्खन तथा मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से शिर: शूल में लाभ होता है ।
#- भगंदर - 2-4 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में शक्कर , मिश्री तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने के बाद गाय का दूध पीने से भगन्दर में लाभ होता है।
#- दौर्बल्य - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को दो गुणा शक्कर मिलाकर गौदुग्ध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होकर शरीर में ताक़त का संचार होता है ।
#- इन्द्रलुप्त ( सिर के बाल झड़ना )- गाय के मूत्र में गुड़हल के फूलों को पीसकर सिर पर लगाने से बाल बढ़ते है तथा गंजापन दूर होता है।
#- बालों का पोषण - गुड़हल के पत्तों को पीसकर लूगदी बनाकर उसमें एक चम्मच गौघृत मिलाकर बालों में लगाकर दो- ढाई घन्टे बाद सिर धोना, इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से बाल स्वस्थ , मज़बूत , घने व लम्बे करके बालों को पोषण मिलता है तथा सिर की खुशकी दूर होती है व सिर मे शीतलता मिलती है।
#- रक्तातिसार ( रक्त का अधिक बहना) - गुड़हल की 10-15 कलियों को 2 चम्मच गौघृत में तलकर उसमें 5 ग्राम मिश्री व 2 ग्राम नागकेशर मिलाकर प्रात: सायं सेवन करने से ख़ून का बहना व ख़ूनी बवासीर में लाभ होता है।
#- रक्ताल्पता ( ख़ून की कमी)- गुड़हल फूल का एक चम्मच चूर्ण , आधा चम्मच सोफ चूर्ण, एक चम्मच मिश्री मिलाकर गाय के दूध में मिलाकर पात: काल पीने से कुछ ही दिनों में ख़ून की कमी दूर होकर शरीर मे स्फूर्ति आयेगी बलवृद्धि होकर चेहरा लाल होकर कान्तिमान बनेगा तथ सौन्दर्य चमकेगा ।
#- प्रदर रोग - गुड़हल के 12 पुष्प की कलियों को गाय के दूध में पीसकर स्त्री को पिलाने से तथा भोजन में दूध का प्रयोग करने से शीघ्र ही श्वेत व रक्तप्रदर में लाभ होता है।
#- प्रदर रोग- गुड़हल की 5 कलियों को गौघृत में तलकर प्रात: सात दिन तक मिश्री के साथ खाने तथा गाय का दूध पीने से श्वेत-रक्तप्रदर रोगों में लाभ होता है।
#- स्मरणशक्ति- वर्धनार्थ :- गुड़हल की फूलों व पत्तों को सुखाकर दोनों को समभाग मिलाकर पीसकर शीशी में भरकर रख लें, एक चम्मच की मात्रा में सुबह- सायं एक कप मीठे गाय के दूध के साथ पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
#- ख़ूनी अतिसार - 2-5 ग्राम जामुन छाल में 2 चम्मच मधु मिलाकर 250 मिलीग्राम गाय के दूध के साथ पिलाने से अतिसार के साथ आने वाला रक्त रूक जाता है।
#- अर्श - 10 ग्राम जामुन के कोमल पत्तों को 250 मिलीग्राम गाय के दूध में घोटकर सात दिन तक सुबह , दोपहर, सायं को पीने से ख़ूनी बवासीर मे गिरने वाला ख़ून बन्द होता है।
#- श्वित्र रोग ( सफेद ) - 1 ग्राम श्वेत जयंती मूल को गाय के दूध के साथ घोट- पीसकर सेवन करने से संफेद दाग मिटते है।
#- मसूरिका( खसरा ) - जयन्ती के बीजों पीसकर , गौघृत मे मिलाकर लगाने से मसूरिका तथा विस्फोट आदि विकारों में लाभ होता है।
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