Sunday, 28 February 2021

पञ्चगव्य -2:-

पञ्चगव्य -2:-

#- स्वरभेद - अजमोदा , हल्दी , आवंला , यवक्षार तथा चित्रक के ( 2-3 ग्राम ) चूर्ण को मधु व गौघृत की मात्रा विषम होनी चाहिए। सबको आपस में मिलाकर चाटने से स्वरभेद दूर होता है । ( मात्रा 1- से 2 ग्राम तक दिन में तीन बार दे सकते है।

#- स्वरभेद ( गले की ख़राश )- चित्रक और आँवला के क्वाथ से सिद्ध गौघृत का सेवन करने से गले की ख़राश में लाभ होता है ।

#- संग्रहणी - चित्रक के क्वाथ और कल्क से पकाए गौघृत को 5-10 ग्राम की मात्रा में प्रात: सायं भोजनोपरान्त सेवन करने से संग्रहणी में लाभ करता है ।

#- बवासीर - चित्रक मूल को पीसकर मिट्टी के बर्तन में लेप कर, इसमें गौदूग्ध से दही जमाकर , फि उसी बर्तन मे बिलोकर उस छाछ को पीने से बवासीर में लाभ होता है ।

#- श्वित्र ( सफेद दाग )- लाल चित्रक मूल को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर लगाने से सफेद दाग मे लाभ होता है ।

#- मण्डल कुष्ठ - लाल चित्रक मूल को पीसकर गोमूत्र मे मिलाकर लगाने से मण्डल कुष्ठ में लाभ करता है ।

#- गण्डमाला - नील चित्रक मूल को पीसकर गौमूत्र मे मिलाकर लेप करने से गण्डमाला में लाभ होता है ।

#- दुर्बलता - चीकू ( नोजबेरी ) के पके फलो का 1-2 फलो का प्रतिदिन गौदूग्ध के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट होकर बलवृद्धि होकर दुर्बलता का शमन होता है।

#- कण्ठमाला - चीड़ की काष्ठ या गंध विरोजा को गोमूत्र में घिसकर कण्ठमाला पर लेप करने से लाभ होता है।

#- चीड़ काष्ठ के चूर्ण के साथ अगरू , कूठ , सोंठ तथा देवदारु चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर रख लें ,2-4 ग्राम चूर्ण को गोमूत्र में पीसकर पीने से कास- श्वास में लाभ होता है ।

#- उदरकृमि - चीड़ के तैल में आधा भाग विडंग के चावलों को गोमूत्र में भिगोकर धूप मे रखकर सुखाकर चूर्ण बनाकर रोगी को पिलाने से तथा वस्ति देने से आंत के कीड़े नष्ट होते है।
#- घाव - गंध विरोजा को पीसकर , व्रण को गोमूत्र से धोकर व्रण पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

#- दाद -दाद- खाज के स्थान को गोमूत्र से धोकर गंधविरोजा को त्वचा पर लगाने से दाद, खाज, खुजली का शमन होता है ।

#- दाद -दाद- खाज के स्थान को गोमूत्र से धोकर गंधविरोजा को त्वचा पर लगाने से दाद, खाज, खुजली का शमन होता है ।

#- फोड़े - फुन्सियों पर - गरमी के कारण यदि शरीर में छोटी- छोटी फुन्सियां निकल आई हो तो चीड़ चीड़ तैल को लगाकर 5 मिनट बाद गोमूत्र से धो देने से लाभ होता है।

#- छर्दि ( जी मचलाना ) - चुक्रिका के ताज़े पत्तों का रस 5-10 मिलीग्राम में गौतक्र ( छाछ ) मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पित्तज छर्दि का शमन होता है।

#- अतिसार - चुक्रिका , चांगेरी , छोटी दुग्धिका का यूष बनाकर 20 मिलीग्राम यूष में गौ-दही , गौघृत तथा अनार बीज मिलाकर खाने से अतिसार में लाभ होता है ।

#- टी. बी. के कारण अतिसार - क्षय रोगियों को अतिसार होने पर चांगेरी , चुक्रिका तथा छोटी दुध्धी के ( 15-20 मिलीग्राम ) पत्र स्वरस से बने खड्युष में गौघृत तथा अनार का रस मिलाकर पीने से लाभ होता है ।

#- रक्तार्श ( खूनीबवासीर )- 10-15 मिलीग्राम चुक्रिका स्वरस तथा गौ- दही से बने खड्युष के सेवन से रक्तार्श में रक्त का बहना रूक जाता है।

#- कामला - 10-15 मिलीग्राम चुक्रिका पत्र- स्वरस में गौतक्र ( छाछ ) मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने पीयलिया में लाभ होता है ।

#- मिर्गी - समभाग काली तुलसी , कूठ , हरीतकी , भूतकेशी तथा चोरक को गोमूत्र में पीसकर उबटन बनाकर लगाने तथा गोमूत्र से स्नान करने से मिरगी में लाभ होता है।

#- मानसिक रोग - मण्डूकपर्णी तथा चोरक से सिद्ध गौघृत को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मानसिक रोगों में लाभ होता है ।
#- उन्माद - ब्राह्मी , हींग तथा चोरक के चूर्ण से पकाए गये पुराण गौघृत को मात्रानुसार प्रयोग करने से उन्माद में लाभ होता है।

#- अपस्मार - समभाग वचा , अम्लतास का गुद्दा , बकायन की छाल ब्राह्मी , हींग , चोरक तथा गुग्गुल से बनाए कल्क को गौघृत के साथ पकाकर 3 ग्राम की मात्रा में प्रयोग करने से वातज , कफज , तथा वातकफज अपस्मार में लाभ करता है।
#- विष - काकण्ड फल चूर्ण में चौलाई स्वरस , गोमूत्र को मिलाकर प्रयोग करना सभी प्रकार के विषों में लाभदायक होता है। चौलाई का साग विषपिडित व्यक्ति को खाने के लिए देना उपयुक्त रहता है।

#- सर्पविष - चौलाई मूल, गम्भारी का फल , अपामार्ग , अपराजित मूल, बिजौरा नींबू की जड़ ,मिश्री श्लेष्मातक की छाल के कल्क को गोमूत्र मे घोलकर पीनें से या नस्य लेने से तथा अंजन करने से सर्पविष में लाभ होता है ।

#- सर्पविष - 1-2 ग्राम चौलाई मूल चूर्ण को गोमूत्र में पीसकर , चावल के धोवन में मिलाकर पीने से सर्पविष में लाभ होता है ।

#- मूषक - विष :- मूषक दंश के कारण यदि लालास्राव , हिक्का तथा वमन हो रहा हो तो चौलाई मूल कल्क व गोमूत्र को सम्भाग लेकर शहद में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।

#- कीट विष - समभाग चौलाई मूल चूर्ण तथा निशोथ के चूर्ण में मात्रानुसार गौघृत मिलाकर पीने से विरेचन द्वारा शरीर का शोधन होकर कीट विष के प्रभाव का शमन होता है।

#- कृत्रिम विष- 1-2 चौलाई मूल को चावल के धोवन से पीसकर गौघृत मिलाकर सेवन करने से कृत्रिम विष ( दूषीविष ) का शीघ्र शमन होता है।

#- उदररोग- लाल मरसा ( लाल चौलाई ) मधुर, लवण, कटू, शीत, गुरू, रूक्ष, पित्तशामक , वातकफवर्धक , रेचक, सारक , मलभेदक तथा विष्टम्भी होता है।चौलाई पंचाग उबालकर उसका रस निकालकर गौघृत में मिलाकर प्रयोग करने से लाभदायक होता है ।

#- नखशोथ ( नाखूनों की सूजन ) - लाल मरसा चौलाई की जड़ को गौमूत्र में पीसकर नाखूनों पर लेप करने से नखशोथ का शमन होता है।

#- व्रण - मरसा चौलाई के पंचाग का काढ़ा बनाकर गोमूत्र में मिलाकर घाव को धोने से घाव जल्दी से भरते है।

#- त्वचारोग- मरसा चौलाई के पंचाग को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर लगाने से दाद, खाज- खुजली व त्वकविकारों में लाभ होता है।

#- विष - जटामांसी , केशर , तेजपत्र , दालचीनी , हल्दी , तगर, चन्दन, आदि को गोमूत्र में पीसकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से तथा 1-2 बूँद नाक में डालने से तथा आँख में अञ्जन करने से तथा सूजन वाले स्थान पर लेप के रूप में प्रयोग करने से स्थावर व जड्गम विष के कारण उत्पन्न विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- खालित्य ( गंजापन ) - जटामांसी, बला, कमल,कूठ का पंचाग समभाग लेकर गोमूत्र मे पीसकर लेप करने से बालों का गिरना ( झड़ना ) कम हो जाता है।

#- केशवर्धनार्थ ( बाल को लम्बा करना ) - समभाग जटामांसी , कूठ , काला तिल , सारिवा, नीलकमल को गौदूग्ध में पीसकर लेप तैयार करके इसमें आवश्यकतानुसार शहद मिलाकर सिर पर लेप करने से बाल लम्बे व घने होते है।

#- हिक्का- श्वास - हल्दी, तेजपत्र, एरण्ड की जड़ , कच्ची लाख , मन: शिला , देवदारु , हरताल तथा जटामांसी को पीसकर वर्ति ( बत्ती ) बनाकर गौघृत में भिगोकर उसका धूआँ पीने से स्रोतो में चिपके हुए कफ को पतला करके बाहर निकालकर हिक्का - श्वास में लाभ करता है। ,

#- कास - मन:शिला , हरताल , मुलेठी , नागरमोथा , जटामांसी तथा इंगुदी से धूम्रपान करने के उपरान्त गुड युक्त गुनगुने गौदूग्ध के साथ सेवन करने से कास में लाभ होता है।

#- गठिया रोग- जटामांसी , राल, लोध्र, मुलेठी , निर्गुण्डी के बीज , मुर्वा , नीलकमल, पद्माख और शिरीष पुष्प इन 9 द्रव्यों को चूर्ण बनाकर उसमें शतधौत गौघृत मिलाकर लेप करने से वातरक्त ( गठिया ) में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - जटामांसी , कालीमिर्च , सैंधानमक , हल्दी, तगर, सेहुंड की छाल, गृहधूम ( घर का धुआँ , धुआशा ) गोमूत्र , गोरोचन, पलाशक्षार को मिलाकर पीसकर लेप करने से कुष्ठरोग ठीक होता है।

#- झाईयां - जटामांसी , हल्दी को गौदुग्ध में घोटकर उबटन की तरह चेहरे पर लेप करने से व्यंग्य तथा झाई मिटती है व त्वचा की काँति बढ़ती है।

#- उन्माद - जटामांसी आदि द्रव्यों से निर्मित 5-10 ग्राम महापैशाचिक गौघृत का सेवन करने से उन्माद , अपस्मार तथा चतुर्थकज्वर में अत्यन्त लाभ होता है यह बुद्धि तथा स्मृतिवर्धक है तथा बच्चों के शारीरिक विकास में बहुत ही सहायक होता है।

#- कुमार रसायन ( बच्चों की रसायन )- सफेद सरसों , वचा, जटामांसी , क्षीरकाकोली , अपामार्ग , शतावरी , सारिवा, ब्राह्मी, पिप्पली , हल्दी, कूठ, सैंधानमक , से पकाये गौघृत को 500 मिलीग्राम की मात्रा में केवल दूध पीने वाले बच्चों ( क्षीरप ) को खिलाने से शिशु का शारीरिक एवं मानसिक विकास , बल, मेधा तथा आयु की वृद्धि होती है।


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