कारण व लक्षण –
पशु के शरीर में यह एक
प्रकार का रक्तविकार है । अशुद्ध घास, दाना और पानी पीने से यह रोग उत्पन्न हो जाता है । रोगी पशु उदास
रहता है । उसके खाने - पीने तथा जूगाली करने में कुछ कमी आ जाती है । पहले उसके
अगले घुटनों पर सूजन आती है , फिर
पिछले घुटनों पर । इसके बाद शरीर में गाँठ के रूप में सूजन इसी तरह आती और उतरती
है । यह क्रम कई दिनों तक चला करता है । सूजन एक जोड़ से दूसरे जोड़ पर चली जाती
है । कुछ दिन तक पुनः इसी जोड़ पर सूजन आ जाती है । तब पशु काम के लायक नहीं रहता ।
१ - औषधि - हरी मेंथी रोगी पशु को ९६०० ग्राम , प्रतिदिन एक माह तक खिलायी
जाय । इससे उसे अवश्य आराम होगा । पशु भी तैयार हो जायगा ।
२ - औषधि - मेंथी का दाना ७२० ग्राम , पवाडिया ( चक्रमर्द ) के बीज ७२० ग्राम , काला नमक ६० ग्राम , पानी ४००० ग्राम , सबको बारीक पीसकर चलनी
द्वारा छानकर पानी के साथ ८ घन्टे भिगोकर रोगी पशु को , आराम होने तक दिया जाय ।
पशु को खली आदि । देना बन्द कर देना चाहिए । उसे केवल हरा चारा देना चाहिए । उक्त
दवा पशु को सुबह - सायं देनी चाहिए ।
३ - औषधि - साम्राज्य बेला १२० ग्राम , गिरदान १२० ग्राम , नागोरी अश्वगन्धा ४८० ग्राम , काला कुडा़ ६०० ग्राम , सबको बारीक पीस,छानकर चूर्ण बना लेना चाहिए
। रोगी पशु को रोज १०० ग्राम चूर्ण , पानी ४०० ग्राम, में
उबालकर , बोतल
द्वारा, बिना
छाने पिलाये । यह दवा रोगी पशु को २२ दिन तक पिलायी जाय ।
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