Monday, 1 March 2021

रामबाण योग:-1.

रामबाण योग:-1.

#- शिरोरोग( सिरशूल )- चाय ( आसाम टी ) के पत्तों का फाण्ट बनाकर 5-15 मिलीग्राम में पीने से सिरशूल का शमन होता है।

#- नेत्राभिष्यंद - चाय के पत्तों के फाण्ट की 1-2 बूँदों के नेत्रों मे डालने से 2-3 दिन में नेत्राभिष्यंद में पूर्ण लाभ होता है।

#- कण्ठरोग ( कण्ठक्षत - गले मे घाव आदि )- अमाशय की विकृति से या उष्ण द्रव्यों के अतिसेवन से कंठ मे क्षत ( घाव ) हो जाता है । चाय के क्वाथ से दिन में 2-3 बार गण्डूष करने से कण्ठक्षत का रोपण होकर कंठ ठीक होता है।

#- उदररोग ( उदरशूल )- चाय के काढ़े में पूदीना तथा अकरकरा मिलाकर पका लें, फिर 15-20 मिलीग्राम मात्रा पीनें से वायु के कारण उत्पन्न उदरशूल ( पेटदर्द ) का शमन होता है।

#- अग्निदग्ध ( आग से जलना ) - अग्नि, अतिउष्ण जल , गरमतैल आदि से शरीर का कोई भाग जलने पर चाय मिश्रित उबलते हुए पानी या क्वाथ को ठंडा करके उसमें कपड़े की पट्टी भिगोकर उस स्थान पर रखने तथा बार- बार उस पर उसी क्वाथ को थोड़ा - थोड़ा डालते रहने से त्वचा में फफोले नहीं पड़ते तथा त्वचा में दाग आदि विकार नहीं हो पाते है।

#- आग से जले हुएे स्थान पर शालि चावल को पीसकर लेप करने से वेदना का शमन होता है।

#- स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को चाय का अतिसेवन नहीं करना चाहिए । अधिक मात्रा में चाय का प्रयोग करने से शिशुओं में अतिनिद्रा रोग उत्पन्न होता है ।

#- समभाग धान का लावा। कपित्थ, पिप्पली मूल चूर्ण में आवश्यकतानुसार खाने से उल्टियाँ बन्द हो जाती है तथा अरूचि ( भूख न लगना ) का शमन होता है ।

#- चावल ( एशियन राइस ) को पकाकर गाय के दूध से बना तक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से गर्मी , अत्यधिक प्यास, जी मिचलाना , अतिसार मे लाभ होता है ।

#- पाददाह ( पैर के तलवों की जलन ) - शालि चावल के धोवन से पैरों को धोने पर पैरों की जलन शांत होती है।

#- नारियल पानी व उसकी मलाई के खाने से भी हथेली व तलवों की जलन शान्त हो जाती है।

#- सूजन - शालि चावलों को पीसकर पैरों मे लगाने से पैरों की सूजन तथा पैरों की जलन मिट जाती है ।

#- सिरदर्द - चांगेरी( सौवर वीड ) के रस में समभाग प्याज़ का रस मिलाकर सिर पर लेप करने से पित्तज सिरशूल का शमन होता है ।

#- नेत्ररोग - चांगेरी पत्र स्वरस को नेत्रों मे लगाने से नेत्रशूल, दाह आदि नेत्ररोगों का शमन होता है ।

#- कर्णनाद ( कानों के अन्दर आवाज़ उठना ) - चांगेरी के पत्तों का स्वरस की कान में डालने से कर्णनाद , कर्णशूल , शोथ आदि कर्ण - विकारों में लाभ होता है ।

#- मसूड़ों के रोग - चांगेरी के पत्तों का रस का गरारा करने से मसूड़ों की सूजन , वेदना तथा रक्तस्राव आदि विकारों का शमन होता है ।

#- मुख दौर्गन्ध्य - चांगेरी के पत्तों को चबाने से मुँह के अन्दर से आने वाली गन्ध ठीक होती है ।

#- दन्तविकार - चांगेरी पत्तों को सुखाकर चूर्ण बनाकर मंजन करने से दन्त विकारों का शमन होता है ।

#- अजीर्ण रोग - चांगेरी पञ्चांग स्वरस 5-10 मिलीग्राम का सेवन करने से अजीर्ण ( अपच ) का शमन होता है।

#- अग्निमांद्य रोग - चांगेरी पत्रों मे समभाग पूदीना पत्रों को मिलाकर पीसकर थोड़ा काली मिर्च व नमक मिलाकर खाने से जठराग्नि का दीपन कर भूख को बढ़ाता है ।

#- मंदाग्नि रोग - चांगेरी के 8-10 पत्तों की चटनी बनाकर देने से पाचन शक्ति बढ़ती है तथा जठराग्नि मज़बूत होती है ।

#-मूत्राशय शोथ -चांगेरी के पत्तों को शक्कर ( मिश्री ) के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पीने से मूत्राशय शोथ , तृष्णा तथा ज्वर का शमन होता है ।

#- रोमकूप शोथ - चांगेरी पत्रों को पीसकर रोमकूप शोथ पर लगाने से रोमकूप शोथ का शमन होता है ।

#- व्रण शोथ - चांगेरी पञ्चांग को पीसकर व्रण शोथ पर लगाने पीड़ा व दाह का शमन होता है ।

#- रक्तस्राव - 5-10 ग्राम चांगेरी पत्रों के स्वरस के सेवन करने से बाह्य व आन्तरिक रक्तस्राव का शमन होता है ।

#- दाह - चांगेरी के 10-15 पत्रों को पानी के पीसकर पुलटीश बनाकर सूजन पर बाँधने से शोथ के कारण उत्पन्न दाह का शमन होता है ।

#- अन्तर्दाह ( आन्तरिक जलन ) - चांगेरी के 20 पत्तों को धागा मिश्री के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पिलाने से अान्तरिक जलन शान्त होती है ।

#- शीतपित्त - चांगेरी पत्रों के स्वरस 10 ग्राम मे कालीमिर्च चूर्ण 3 ग्राम तथा गौघृत 20 ग्राम मिलाकर शरीर पर मालिश करने से शीतपित्त मे लाभ होता है ।।

#- धतूरे का नशा उतारना - 20-40 मिलीग्राम चांगेरी पत्रों का स्वरस पिलाने से धतूरे का नशा उतर जाता है ।

#- सिरदर्द - चाँदनी ( इस्ट इण्डियन रोज़ बे ) के पौधों से प्राप्त आक्षीर 5 ग्राम को तिल तैल 10 ग्राम में मिलाकर मस्तक पर लगाने से सिर तथा नेत्र वेदना का शमन होता है ।

#- नेत्रविकार - चाँदनी के पुष्पों तथा कालिकाओं को पीसकर नेत्र के बाहर चारों ओर लगाने से नेत्रशूल , नेत्रशोथ तथा लालिमा का शमन करता है ।

#- नेत्रशूल - चाँदनी की मूल 10 ग्राम को नीम के रस 30 ग्राम में उबालकर नेत्रों में अंजन करने से नेत्रशूल का शमन होता है ।

#- दन्तशूल - चाँदनी मूल को चबाने से दाँत की वेदना का शमन होता है ।

#- दन्तकृमि - चाँदनी मूल को मंजन की तरह दाँतो पर मलने से दंतश दन्तकृमि व पूयदन्त ( मसूड़ों से पीव निकलना ) में लाभ होता है ।

#- उदरकृमि - चाँदनी की मूल त्वक को पीसकर कल्क बनाकर 2 ग्राम मात्रा मे सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते है ।

#- अतिसार - चाँदनी पत्रों का स्वरस 5 मिलीग्राम पीने से अतिसार बन्द हो जाते है ।

#- त्वक- विकार - - चाँदनी के पुष्प स्वरस को त्वचा पर लगाने से दाह, वेदना , शोथ तथा दाद का भी शमन होता है ।

#- उदरशूल - चिरबिल्व ,चिलबिल ( जंगल कार्क ट्री )- 5 मिलीग्राम चिलबिल पत्र स्वरस को पीने से उदरशूल का शमन होता है ।

#- कृमिरोग - 10 मिलीग्राम चिलबिल स्वरस मे शहद मिलाकर सेवन करने से उदरकृमियों का शमन होता है।

#- आंत के कीड़े - 4 ग्राम चिलबिल चूर्ण में विडंग चूर्ण मिलाकर सेवन करने से आँत के कीड़े नष्ट होते है ।

#- विबन्ध - चिलबिल काण्ड की छाल का काढ़ा बनाकर 10-20मिलीग्राम मात्रा पिलाने से विबन्ध का शमन होता है ।

#- संधिवात - चिलबिल पत्र को पीसकर लेप करने से जोड़ो की वेदना का शमन होता है ।

#- मसूरिका - 10 मिलीग्राम चिलबिल पत्र स्वरस तथा मिश्री व मधु मिलाकर पीने से शोथयुक्त कफ व पैत्तिक शीतला रोग का शमन होता है।

#- दाद - चिलबिल बीज तथा काण्ड - त्वक को पीसकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से दाद का शमन होता है ।
#- व्रण ( घाव ) पत्र कल्क 10 ग्राम को तिल तैल 100 ग्राम मे मिलाकर पका लें , फिर तैल को छानकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है ।

# - कृमियुक्त दूषित व्रण - चिलबिल के पत्तों को पीसकर उसमें 4 गुणा तिल तैल व करंज तैल समभाग मिलाकर उबालकर छान लें , इस तैल को लगाने से कृमियों का शमन होकर व्रण का शोधन कर व्रण रोपण करता है ।

#- छाजन , पामा - चिलबिल पत्र स्वरस में तिल तैल मिलाकर , पकाकर छानकर , ठंडा करके लगाने से छाजन ( पामा) मिटती है ।


#- चिरायता , कटुरोहिणी , सारिवा आदि स्तन्य शोधन औषधियों का काढ़ा बनाकर 15-30 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से दुषित स्तन्य ( दुग्ध ) का शोधन होता है ।।"

#- स्तन्यशोधनार्थ - केवल चिरायता का क्वाथ 15-30 मिलीग्राम अथवा समभाग चिरायता , सोंठ तथा गुडूची के 15--30 मिलीग्राम काढ़े का सेवन करने से स्तनों का शोधन होता है ।

#- कृमिरोग - प्रांत: काल भोजन से पूर्व( 5-10 मिलीग्राम ) चिरायता ( ब्राउन चिरेता ) स्वरस में मधु मिश्रित कर सेवन करने से आंत के कीड़े नष्ट हो जाते है ।

#- कृमिरोग - किराततिक्त - क्वाथ अथवा फाण्ट को 20-40 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से आँत के कीड़ों का निर्हरण ( बाहर निकलते ) होता है।

#- आमाशयगत - रक्तस्राव - 1-2 ग्राम चंदन कल्क के साथ 5 मिलीग्राम चिरायता स्वरस मिलाकर सेवन करने से आमाशयगत रक्तस्राव का स्तम्भन होता है ।

#- उदरशूल - चिरायता तथा अरण्ड की जड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से उदरशूल का शमन होता है ।

#- अग्निमांद्य - चिरायता का काढ़ा 30 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से जठराग्नि का दीपन होता है तथा पाचन - शक्ति बढ़ती है ।

#- समभाग चिरायता , नागरमोथा , गुडूची तथा सोंठ के काढ़े का सेवन करने से बुखार , अत्यधिक प्यास , भूख न लगना , अग्निमांद्य , ज्वर, तृष्णा , अरूची एवं मुखवैरस्य का शमन होता है ।

#- समभाग चिरायता , कुटकी , नागरमोथा , पित्तपापड़ा तथा गुडूची का काढ़ा बनाकर 10-30 मिलीग्राम मात्रा में नियमित सेवन करने से बार- बार आने वाले ज्वर का शमन होता है ।

#- 2-4 ग्राम चिरायता चूर्ण में मधु मिलाकर खाने से सभी प्रकार के ज्वर का शमन होता है।

#- समभाग चिरायता , नीम ,गुडूची , त्रिफला तथा आमाहल्दी के 30 मिलीग्राम काढ़े का सेवन करने से पित्तज ज्वर , आँतों के कीड़े , दाह , तथा त्वचा की बिमारियों में लाभ होता है।

#- चिरायता , सैंधानमक ,सोंठ, कूठ, चन्दन,तथा नेत्रबाला को पीसकर सिर पर लेप करने से ज्वर का शमन होता है ।

#- सोंठ तथा चिरायता को बिम्बी स्वरस में मिलाकर लेप करने से शोथ का शमन होता है ।

#- कुबडापन - चिरायता को पीसकर उसमें मधु मिलाकर , गरम करके लेप करने से कुबडापन में लाभ होता है ।

#- अतिसार - 1-4 ग्राम चिरौंजी मूल चूर्ण को खाने से अतिसार बन्द हो जाते है ।

#- शिरशूल - चिरौंजी ( कुड्डापाह आलमन्ड ) की गीरी के साथ बादामगीरी, खजूर, ककड़ी बीज और तिल को समभाग लेकर एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें, गौदुग्ध के साथ 5 ग्राम पिलाने से शिरशूल का शमन होता है।


#- अतिसार - 1-4 ग्राम चिरौंजी मूल एवं पत्र को पीसकर उसमें गाय के दूध से बने मक्खन को मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।

#- पोषणार्थ ( बच्चे पोषण हेतू ) - शिशु का स्तनपान छुड़ा देने पर बालक को चिरौंजी बीज , मुलेहटी , मधु , धान का लावा , तथा मिश्री से बनाये गये लड्डू ( मोदक ) का सेवन कराने से शरीर का समुचित पोषण होता है।

#- पुष्टिवर्धनार्थ - ताज़ी चिरौंजी का सेवन करने से शरीर का पोषण होता है लेकिन ध्यान रहे कि चिरौंजी को अधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसके अधिक खाने से अफारा हो जाता है ।

#- मकडी का विष - चिरौंजी के तैल के साथ पीसकर मालिश करने से मकड़ी का विष दूर होता है ।

#- वातरक्त - तिल, चिरौंजी , मुलेहटी , कमलनाल तथा बेंत - मूल इन सब पर द्रव्यों को आवश्यकतानुसार लेकर बकरी के दूध मे पीसकर लेप लगाने से वातरक्त की वजह से होने वाली दाह तथा लालिमा कम होती है ।

#- कण्डु ( खुजली ) - चिरौंजी के बीज को गुलाबजल में पीसकर उसमें सुहागा मिलाकर लगाने से आर्द्र कण्डु ( गिली खुजली ) में लाभ होता है ।

#- भल्लातकजन्य रोग - चिरौंजी बीज और काले तिल को 10-10 ग्राम लेकर 250 मिलीग्राम गौदुग्ध मे पीसकर छानकर मिश्री मिलाकर प्रात: सायं पीने से व चिरौंजी बीज तथा तिल को गौदुग्ध मे पीसकर लेप करने से दाह , शोथ , कण्डु आदि भल्लातकजन्य - विकारों का शमन होता है ।

#- उदररोग - चिलग़ोज़ा ( एडिबल पाईन ) की 5-10 गीरी का सेवन करने से पाचन सम्बन्धी विकारों का शमन होता है । चिलग़ोज़ा गीरी देर पचती है अत: इसका सेवन अत्यधिक मात्रा में करने से अफारा उत्पन्न हो जाता है।

#- नपुंसकता - 1 गिलास गौदूग्ध में 5-10 ग्राम चिलग़ोज़ा गीरी चूर्ण तथा मिश्री मिलाकर पीने से वीर्य का पोषण होता है तथा कामशक्ति बढ़कर नपुंसकता दूर होती है। ।

#- धातुदौर्बल्य - यह बृंहण , बलकारक, स्तम्भक, उत्तेजक, बाजीकारक तथा पुष्टीवर्धक होता है, इसलिए धातुदौर्बल्य में 20-25 बीज गीरी को गौदूग्ध के साथ सेवन करने से लाभ होता है ।

#- चिलग़ोज़ा , बादाम, मुनक्का, छुहारा तथा अंजीर को मिलाकर गौदूग्ध में पकाकर ठंडा करके मिश्री मिलाकर सेवन करने से यह अत्यन्त पौष्टिक , शुक्रल तथा कामशक्तिवर्धक होता है।

#- दुर्बलता - चिलग़ोज़ा की 5-20 गीरी को गौदूग्ध के साथ लेने से हाथो- पैरों की दुर्बलता दूर होकर पौरुष बढ़ता है ।

#- नकसीर - चित्रक के 2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर खाने से नकसीर बन्द होती है ।

#- ज्वर - 18 ग्राम त्रिफला , 18 ग्राम त्रिकटू , 18 ग्राम चित्रक, 18 ग्राम ककुभमूल, 18 ग्राम सालिम , 18 ग्राम बाबूना पुष्प , 100 ग्राम द्राक्षा , 4 ग्राम चिलग़ोज़ा मज्जा , 6 ग्राम नारियल के कल्क को पकाकर गाढ़ा कर, 375 ग्राम मधु मिलाकर अवलेह बनाकर , 5-10 ग्राम अवलेह को प्रात: सायं गौदूग्ध के साथ सेवन करने से जठराग्नि की वृद्धि होकर ज्वर वमन तथा कास का शमन होता है

#- प्रतिश्याय ( ज़ुकाम ) - चित्रक हरीतकी अग्निवर्धक है तथा कष्टसाध्य , क्षय , कास, पीनस, गुल्म आदि का हनन करती है । यह रसायन है तथा प्रतिश्याय की श्रेष्ठ औषधि है ।

#- गण्डमाला ( गले की गाँठें ) - भल्लातक , कासीस, चित्रक, दन्तीमूल से निर्मित चूर्ण में गुड और स्नूही दुग्ध, अर्कदुग्ध मिलाकर लेप करने से गण्डमाला में लाभ होता है ।

#- अग्निवर्धनार्थ - सैंधानमक , हरीतकी , पिप्पली , तथा चित्रक चूर्ण को समभाग मिश्रितकर चूर्ण बनाकर एवं 1-2 ग्राम चूर्ण को गर्म जल के साथ सेवन करने से अग्नि प्रदीप्त होती है । इसके सेवन से घी , माँस और नये चावल का भात क्षनभर मे पच जाता है

#- अग्निमांद्य तथा अजीर्ण - 2-5 ग्राम चित्रक चूर्ण में समभाग वायविडंग तथा नागरमोथा चूर्ण को मिलाकर प्रात: सायं भोजन सेपुर्व सेवन करने से अरूची , अग्निमांद्य तथा अजीर्ण का समन होता है एवं अग्निप्रदीपन होता है ।

#- प्लीहाशोथ - घृतकुमारी के 10-20 ग्राम गूदे पर चित्रक की छाल के 1-2 ग्राम चूर्ण को बुरककर प्रात: सायं खिलाने से प्लीहाशोथ का शमन होता है ।

#- प्लीहाशोथ - चित्रक मूल , हल्दी , अर्क ( मदार ) का पका हुआ पत्ता , धातकी ( धाय के फूल) के फूल का चूर्ण इनमें से किसी एक को गुड के साथ दिन मे तीन बार 1-2 ग्राम तक खाने से प्लीहाशोथ का शमन होता है ।

#- सुख- प्रसवार्थ - 10 ग्राम चित्रक मूल चूर्ण में दो चम्मच मधु मिलाकर स्त्री को चटाने से प्रसव सुख पुर्वक ( नोरमल डिलीवरी ) होता है ।

#- सन्धिवात - चित्रक मूल , ऑवला , हरड़ , पीपल, रेवद चीनी , सैंधानमक को समभाग लेकर चूर्ण बनाकर रखे । 4-5 ग्राम चूर्ण को सोते समय गर्म पानी के साथ सेवन करने से सन्धिवात , वायुरोग व आँतों के रोग मिटते है ।

#- नकसीर - 500 ग्राम लाल चित्रक का चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चाटने से नकसीर बन्द हो जाती है ।

#- आमवात - लाल चित्रक मूल को पीसकर , तैल के साथ मिलाकर पकाकर , छानकर लगाने से आमवात में लाभ होता है ।

#- श्लीपद ( हाथी पॉव )- लाल चित्रक तथा देवदारु को गोमूत्र के साथ पीसकर लेप करने से श्लीपद में लाभ होता है ।

#- शिर: शूल - नील चित्रक मूल का नस्य लेने से शिरशूल में लाभ होता है ।

#- दन्तरोग - नील चित्रक मूल तथा बीज चूर्ण को दातों पर मलने से दन्तपूय ( दातों मे मवाद ) ( pyorrhoea ) तथा दन्तक्षय में लाभ होता है ।



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