Sunday, 6 March 2022

रामबाण योग 134

इसबगोल , साइलियम (Psyllium)

 

आप इसबगोल (isabgol) के बारे में जरूर जानते होंगे। प्रायः इसबगोल की भूसी का इस्तेमाल कब्ज की समस्या को ठीक करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर लोगों को केवल इतना ही पता होता है, लेकिन सच यह है कि इसबगोल की भूसी के साथ-साथ इसके तने, पत्ते, फूल, जड़ और बीज भी बहुत ही उपयोगी होती हैं। आप इसबगोल का प्रयोग कर अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक कर सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, इसबगोल के प्रयोग से शरीर स्वस्थ बनता है। पेचिश तथा दस्त में यह उपयोगी होता है। इसके बीज पेशाब बढ़ाने वालेसूजन को ठीक करने होते हैं।  इसके साथ ही आप बीज का उपयोग कर कफ की समस्या और वीर्य विकार को ठीक कर सकते हैं। इसकी भूसी मल को हल्का बनाने का काम करती है। यह जलनपेशाब की समस्याओंआमाशय के सूजनदर्दसूखी खांसीत्वचारोग, गठियासूजाकघावबवासीरआदि को भी ठीक करती है।

 

इसबगोल (isabgol) के बीजों का आकार घोड़े के कान जैसा होने से इसे इस्पगोलइसबगोल कहा जाने लगा। इसका उल्लेख प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में मिलता है। 10वीं शताब्दी के पहले से अरबी हकीमों द्वारा दवा के रूप में इसबगोल का प्रयोग किया जाता था। मुगलों के शासनकाल में भी इसबगोल का इस्तेमाल होता था। आयुर्वेद के अनुसार ईसबगोल की तासीर शीत मानी गयी है। 

आज भी पुराने दस्त (Chronic Dysentery) या पेचिश और आंत के मरोड़ों पर इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाता है। यह आंतों के सूजन और जलन संबंधी परेशानियों का ठीक करता है। औषधि रूप में इसके बीज और बीजों की भूसी Isabgol Husk का प्रयोग होता है।

यह दो प्रकार का होता है:

 

1.   इसबगोल

2.  जंगली इसबगोल

 

इसबगोल का लैटिन नाम प्लैन्टैगो ओवेटा  ( Plantago ovata Forssk., Syn – Plantago ispaghulaRoxb.) है और यह प्लैन्टैजिनेसी (Plantaginaceae) कुल का पौधा है। इसबगोल को अन्य इन नामों से भी जाना जाता हैः- Hindi – इसबगोलइश्बगुलइशबघोल

अंग्रेजी – साइलियम (Psyllium), ब्लौन्ड साइलियम (Blondpsyllium), इसबगोल (Isabgol) स्पोजेल सीड्स (Spogel seeds), Sanskrit – अश्वगोलम्ईषद्गोलम्शीतबीजम्स्निग्धबीजम्श्लक्ष्णजीरकम्स्निग्धजीरकम्

 

जंगली इसबगोल - Sanskrit – अश्वगोल वन्य , Hindi – लुहुरीयाइसबगोल जंगली

English – ग्रेटर प्लेनटेन (Greater plaintain), प्लेनटेन रिबग्रास (Plaintain ribgrass)

कहते है |

 

*# मोटापा -  इसबगोल चर्बी को गलाता है। यह अपने वजन से 14 गुणा अधिक पानी सोखता है। यह पाचन को ठीक करता है और इससे फाइबर का एक अच्छा स्रोत है। इसलिए मोटापा कम करने के लिए उपचार के रूप में इसबगोल का प्रयोग किया जा सकता है।

 

*# - खुजली -  जंगली इसबगोल के पत्तों का काढ़ा बनाकर खुजली वाले अंग को धोने से खुजली की परेशानी ठीक होती है।

 

# क्ब्जरोग : एक चम्मच इसबगोल की भूसी को रात में सोते समय गर्म पानी या गाय के दूध के साथ लेने से कब्ज दूर होता  है। इसबगोल की भूसी  त्रिफला चूर्ण को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे लगभग 3 से 5 ग्राम तक रात में गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सुबह मल त्यागने में परेशानी नहीं होती है।

*# - पुराने पेचिश तथा खूनी पेचिश -   दो चम्मच इसबगोल (isabgol) की भूसी को गौ- दही के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से पुराने पेचिश तथा खूनी पेचिश में लाभ होता है।

इसबगोल के बीजों को भूनकर सेवन करने से भी पेचिश ठीक होता है।

 

*# - पेचिश, पेट में मरोड़ की परेशानीअतिसार  -  इसबगोल के बीजों को एक लीटर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो तीन खुराक बनाकर दिन में तीन बार देने से हर प्रकार की पेचिश, पेट में मरोड़ की परेशानीअतिसार इत्यादि में लाभ होता है।

 

# - पेशिस -  100 ग्राम इसबगोल की भूसी में 50-50 ग्राम सौंफ और मिश्री मिलाकर, 2-3 चम्मच की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन करने से अमीबिक पेचिश में लाभ होता है।

 

*# - अमीबिक पेचिश, साधारण और गंभीर दस्त, पेट के दर्द की परेशानी -   इसबगोल के बीजों को पानी में डालकर गाढ़ा काढ़ा बना लें। इसमें चीनी डालकर पीने से अमीबिक पेचिश, साधारण और गंभीर दस्त, पेट के दर्द की परेशानी से आराम मिलता है।

 

*# - बच्चों के दस्त -  बालकों को बार-बार होने वाले दस्त में इसबगोल का प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। इसबगोल (isabgol) के साबुत बीजों को या 10 ग्राम इसबगोल भूसी को ठंडे जल के साथ सेवन करें, या फिर उनको थोड़े जल में भिगोकर फूल जाने पर सेवन करें। इससे आंतों का दर्द तथा सूजन ठीक होता है।

 

*# - बच्चों के दस्त -  1 – 2 ग्राम जंगली इसबगोल के बीज चूर्ण का सेवन करने से दस्त और पेचिश में लाभ होता है।

 

# - सिर दर्द  -  इसबगोल को यूकलिप्टस के पत्तों के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक हो जाती है।

 

# - कफ व जुकाम -  15 – 20 मिली इसबगोल के काढ़ा को पीने से कफ और जुकाम में लाभ होता है।

 

# - खाँसी -  जंगली अश्वगोल के पत्ते के काढ़े का गरारा करने से खांसी में लाभ होता है।

 

*# - कान दर्द -  10 ग्राम इसबगोल के घोल में 10 मिली प्याज का रस मिला लें। इसे गुनगुना करके 1 – 2 बूँद कान में डालें। इससे कान दर्द ठीक होता है।

 

*# - कान दर्द -  1 – 2 बूंद जंगली इसबगोल के पत्तों के रस को कान में डालने से कान दर्द ठीक होता है।

# - मुहं के छालें -  सबगोल (isabgol) के घोल से कुल्ला करने से मुंह के छाले की बीमारी में लाभ होता है।

 

# -दांत दर्द  -   इसबगोल को सिरके में भिगोकर दाँतों के नीचे दबाकर रखने से दाँत दर्द में लाभ होता है।

 

*# - दांतों का दर्द व मसूडों की सूजन -  जंगली इसबगोल के पत्रों को पीसकर उसमें गाय का मक्खन मिलाकर दाँतों पर मलने से मसूड़ों की सूजन दूर होती है।

 

# - श्वास रोग -  इसबगोल के 3-5 ग्राम बीजों को गुनगुने जल से सुबह सेवन करने पर सांसों की बीमारी और दमें में लाभ होता है।

 

*# - खूनी बवासीर -  इसबगोल का शर्बत बनाकर पिलाने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।

 

*# - पेशाब की जलन -  चार चम्मच इसबगोल भूसी को 1 गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें स्वादानुसार मिश्री डालकर पीने से पेशाब की जलन शांत होती है, और खुल कर पेशाब आने लगता है।

 

*# - रुक-रुक कर पेशाब आने की परेशानी  -  एक ग्राम इसबगोल की भूसी में 2 ग्राम शीतल मिर्च तथा 500 मिग्रा कलमी शोरा मिलाकर सेवन करने से रुक-रुक कर पेशाब आने की परेशानी में लाभ होता है।

 

*# - स्वप्नदोष  -  इसबगोल और मिश्री को बराबर मात्रा में मिला लें। इसे एक-एक चम्मच की मात्रा में आधा गिलास गाय के  दूध के साथ सोने से एक घण्टा पहले सेवन करें। इसके बाद सोने से पहले पेशाब कर लें। इससे स्वप्नदोष नहीं होता है।

 

*# - जोड़ों का दर्द -  जोड़ों के दर्द में इसबगोल की पुल्टिस (पट्टी) बांधने से लाभ होता है।

 

# नेत्र रोग : जंगली इसबगोल (isabgol) के पत्तों का काढ़ा बनाकर आंखों को धोने से जलन की परेशानी ठीक होती है।

 

*# - हृदय रोग -  हृदय की स्वस्थ रखने के लिए ईसबगोल का सेवन फायदेमंद होता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार ईसबगोल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करके ह्रदय के क्रियाशीलता बनाये रखता है।

 

*# - डायरिया -  डायरिया की स्थिति में भी ईसबगोल का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि यह आंतो में पानी की मात्रा को नियंत्रित कर डायरिया के वेग को कम करता है। 

 

*# - कफ नि:सारण -  ईसबगोल का सेवन आपको कफ की समस्या से भी राहत दे सकता है क्योंकि ईसबगोल के सेवन से कफ को निकालने में आसानी होती है।

 

# - सिर दर्द -  सिर दर्द में ईसबगोल के का प्रयोग फायदेमंद हो सकता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार ईसबगोल में शीत का गुण पाया जाता है जिसके कारण यह सिर दर्द में आराम देता है। 

 

*# - अल्सर -  ईसबगोल का सेवन अल्सर के लक्षणों को कम करने में सहायक होता है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार इसमें पित्त शमन का गुण होता है जो कि अल्सर के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। 

 

# - पेट की जलन -  ईसबगोल का उपयोग पेट की जलन को शांत करने में मदद करता है क्योंकि ईसबगोल की तासीर ठंडी होती है जो कि पेट के जलन शांत करने में मदद करती है।  

 

# - कोलेस्ट्रॉल को निंयत्रित -   ईसबगोल का उपयोग कोलेस्ट्रॉल को निंयत्रित करने में सहायक होता है क्योंकि रिसर्च के अनुसार ईसबगोल में कोलेस्ट्रॉल को कम करने का गुण पाया जाता है।

 

*# - एसिडिटी -  अगर आप एसिडिटी से परेशान है तो आपको ईसबगोल फायेदा पंहुचा सकता है क्योंकि ईसबगोल में पित्त शमन का गुण पाया जाता है साथ ही ये पाचन शक्ति को भी ठीक रखता है। 

 

*# - मधुमेह -  ईसबगोल का सेवन मधुमेह में लाभकारी होता है, क्योंकि ईसबगोल का सेवन करने से ये शर्करा की मात्रा नियंत्रित होती है। 

 

*# - रक्तचाप को नियंत्रित  -  ईसबगोल का प्रयोग रक्तचाप नियंत्रित करने में मदद करता है, क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार इसमें रक्तचाप को नियंत्रित करने का गुण पाया जाता है। 

 

*# - घाव - जंगली इसबगोल के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से खून का बहना बंद होता है और घाव जल्दी ठीक होता है।

 

*# - कीट दंश -  इसबगोल के पत्तों को पीसकर कीटों के काटे गए स्थान पर लेप करें। इससे सूजन, जलन और दर्द ठीक होते हैं।

 

# - मात्रा – बीज 5 ग्राम , भूसी चूर्ण – 5 – 10 ग्राम, जल या दूध के साथ लें |

 

# - दोष - जंगली इसबगोल के प्रयोग से बेचैनी और त्वचा संबंधी विकार हो सकते हैं। इसे अधिक मात्रा में सेवन करने से ब्लडप्रेशर लो हो सकता है।दस्त की समस्या हो सकती है।

 इसबगोल (isabgol) नाड़ी को कमजोर और भूख को खत्म करने का काम करती है। यह औषधि प्रसूता स्त्री के लिए भी हानिकारक होती है।

 

*# - दर्प नाशक -  इसबगोल के दुष्प्रभावों के निवारण के लिए सिकंज बीज एवं शहद का सेवन करें। 

 

*# - सावधानी -   इसबगोल का प्रयोग गर्भावस्था तथा स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।

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