Wednesday 30 November 2016

पशु पालन

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Wednesday 23 November 2016

घुमना रोग

कारण व लक्षण –
इस रोग में पशु एक स्थान पर घुमता रहता हैं । उसे बेहोशी हो जाती हैं । बाँधने पर पशु बंधी रस्सी के सहारे खड़ा होता हैं । ऐसा मालूम होता हैं कि उसे आँखों से दिखाई नहीं पड़ रहा हो तो इस रोग में पशु ऐसे घुमता है जैसे कुम्हार अपना चाक घुमाता हैं । इसे ही घुमना रोग कहते हैं ।

१ - औषधि - गाय का दूध १ लीटर में हल्दीपावडर १ छटांक मिलाकर दिन में कम से कम ३ बार पिलाना चाहिए । अधि से अधिक ५-६ बार पिलाना चाहिए ।

२ - औषधि - बकरी का दूध १ लीटर , हल्दीपावडर १ छटांक मिलाकर दिन में ५-६ बार पिलाने से पशु को आराम आता हैं ।

३ - औषधि - असली मलयगिरी चन्दन को पत्थर पर घिसकर १-१ छटांक दिन में ५-६ बार पिलाने से भी लाभ होता हैं ।

४ - औषंधि - अलसी १२५ ग्राम की मात्रा को भिगोकर दिन में ३ बार पिलाने से भी लाभ होता हैं ।

मूर्छा रोग


कारण व लक्षण - 

इस रोग में पशु धीरे- धीरे अलसाने लगता हैं । घुमरी ( घमेर ) आया करती हैं । पशु की बेचैनी बढ़ती जाती हैं । फिर एकाएक पशु ज़मीन पर गिर जाता हैं और मूर्च्छित ( बेहोश ) हो जाता हैं ।

१ - औषधि - नमक १२५ ग्राम , सोंठपावडर १५ ग्राम , गुड़ डेढ़ छटांक , गन्धक चूर्ण डेढ़ छटांक , सभी को दो लीटर गरमपानी में मिलाकर रखें और ठण्डा होने पर नाल में भरकर पशु को पिलाने से आराम आता हैं ।

२ - औषधि - हींग आधा तौला , कालीमिर्च पावडर ५ ग्राम , ज़ीरा पावडर १० ग्राम , अदरक पीसकर १ छटांक , सभी को मिलाकर गरम पानी में मिलाकर नाल द्वारा पिलाना चाहिए , दोनों दवाई के बीच तीन घन्टे होना चाहिए । ये दोनों खुराक एक दिन ही दें सकते हैं ।

३ - औषधि - गाय का दूध १ लीटर में हल्दीपावडर १ छटांक मिलाकर पिलाने से बिमार पशु को बहुत ही लाभ होता हैं । यह दवा दिन में तीन बार देना चाहिए ।

हिरण वाह ( हिरणाबाँय ) पागलपन

कारण व लक्षण –

इस रोग में पशु पागल होकर जानवरों और आदमियों को मारने के लिए दौड़ता हैं । खुर से मिट्टी कुरेदता हैं , मौक़ा पाकर बहुत दूर भागने की कोशिश करता हैं । उसको अपने देह की सुध नहीं रहती हैं और उसकी आँख लाल हो जाती हैं

१ - औषधि - असली मलयगिरी चन्दन को पत्थर पर कूछ बुंदे पानी की डालकर घिसकर पेस्ट बनाकर रोगी पशु को पिलाने से अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता हैं ।

२ - औषधि - गाय का दूध १ लीटर , हल्दीपावडर १ छटांक , दूध में मिलाकर दिन मे ४-५ बार पिलाने से पशु को लाभ होता हैं ।

३ - औषधि - हिरण की नाभि १ छटांक , लालमिर्च १ छटांक , पीसकर गरम पानी में मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से लाभँ होता हैं और पशु जल्दी ही ठीक हो जाता हैं ।

५ - औषधि - बारहसिंगा के के सींग को पत्थर पर कुछ बुंदे पानी डालकर सींग को घीसकर पेस्ट बना लें और पशु को खिलाने से आराम आता हैं ।

६ - औषधि - बाघ का माँस को पानी में पीसकर पशु को पिलाने से आराम आता हैं ।

जकड़ा रोग: कारण और बचाव


कारण व लक्षण - 

यह एक वायु रोग है । इस रोग में पशु का शरीर जकड़ सा जाता है इस लिए इस रोग को जकड़ा रोग कहते हैं । गाय -भैंस के पैरों में वायु विकार के कारण पशु खड़ा नहीं हो पाता हैं ।

१ - औषधि - बकरबेल, हाड़ा बेल , ( । ) यह बेल काष्ठिय पौधों पर चढ़ती है और तने से लिपटी रहती है । और पत्तियों को तोड़ने से इसके डंठल से दूध निकलता है ।

बकरबेल २ किलो की कूट्टी काटकर २० भाग करलें । एक भाग सवा किलो पानी में उबालें और एक किलो शेष रहने तक उबाले यह एक खुराक के लिए प्रयाप्त है । अब मेंथी का चूर्ण १ किलो , कूटकी २०० ग्राम , मालकंगनी २०० ग्राम , कालीजीरी १०० ग्राम , इन दवाइयों को कूटकर चालीस खुराक बना लेंएक खुराक लेकर ।बकरबेल की पानी में बनी खुराक दोनों को मिलाकर सुबह -सायं देने से लाभ होगा यह दवाई दस दिन तक दवाई खिलाऐ । 

मालिश के लिए मरहम-- तारपीन का तेल १५० ग्राम , सरसों का तैल २५० ग्राम , मोम देशी १०० ग्राम , सज्जी १०० ग्राम , मर्दा सिंह २५ ग्राम , को लेकर सज्जी व मूर्दा सिंह को कूटछानकर बाक़ी दवाइयों को मिलाकर किसी बर्तन में रखकर धीमी आँच पर गर्म कर ले , यह मरहम बन जायेगा । एकबार पशु को स्नान के बाद लगाये । लाभ अवश्य होगा ।

पशुओं में गठिया या जोड़ों का दर्द

कारण व लक्षण –

पशु के शरीर में यह एक प्रकार का रक्तविकार है । अशुद्ध घास, दाना और पानी पीने से यह रोग उत्पन्न हो जाता है । रोगी पशु उदास रहता है । उसके खाने - पीने तथा जूगाली करने में कुछ कमी आ जाती है । पहले उसके अगले घुटनों पर सूजन आती है , फिर पिछले घुटनों पर । इसके बाद शरीर में गाँठ के रूप में सूजन इसी तरह आती और उतरती है । यह क्रम कई दिनों तक चला करता है । सूजन एक जोड़ से दूसरे जोड़ पर चली जाती है । कुछ दिन तक पुनः इसी जोड़ पर सूजन आ जाती है । तब पशु काम के लायक नहीं रहता ।

१ - औषधि - हरी मेंथी रोगी पशु को ९६०० ग्राम , प्रतिदिन एक माह तक खिलायी जाय । इससे उसे अवश्य आराम होगा । पशु भी तैयार हो जायगा ।

२ - औषधि - मेंथी का दाना ७२० ग्राम , पवाडिया ( चक्रमर्द ) के बीज ७२० ग्राम , काला नमक ६० ग्राम , पानी ४००० ग्राम , सबको बारीक पीसकर चलनी द्वारा छानकर पानी के साथ ८ घन्टे भिगोकर रोगी पशु को , आराम होने तक दिया जाय । पशु को खली आदि । देना बन्द कर देना चाहिए । उसे केवल हरा चारा देना चाहिए । उक्त दवा पशु को सुबह - सायं देनी चाहिए ।

३ - औषधि - साम्राज्य बेला १२० ग्राम , गिरदान १२० ग्राम , नागोरी अश्वगन्धा ४८० ग्राम , काला कुडा़ ६०० ग्राम , सबको बारीक पीस,छानकर चूर्ण बना लेना चाहिए । रोगी पशु को रोज १०० ग्राम चूर्ण , पानी ४०० ग्राम, में उबालकर , बोतल द्वारा, बिना छाने पिलाये । यह दवा रोगी पशु को २२ दिन तक पिलायी जाय ।

Tuesday 18 October 2016

गाय में गठिया रोग

गठियाँ रोग ( Gout )
कारण व लक्षण -
इस रोग में पशु के ख़ून में विकार उत्पन्न होकर पुट्ठों तथा जोड़ो में सूजन हो जाती हैं तथा उनमें बड़ा दर्द होता हैं । खराब चारा- दाना खाने अधिक समय तक खडे रहने , एकदम तेज गर्मी से ठण्डक में जाने , सीलन युक्त स्थानों पर बँधे रहने पर , आदि कारणों से यह रोग होता हैं । इस रोग से ग्रसित पशुओं के जोड़ो और पुट्ठों में दर्द होता हैं । जोड़ो पर अचानक सूजन हो जाती हैं । पशु चलने - फिरने मे असमर्थ हो जाता हैं तथा बेचैनी से करवटें बदलता रहता हैं । कभी - कभी उसे बुखार भी हो जाता हैं ।

औषधि -
१-सबसे पहले पशु को जूलाब देना होगा । इसलिए अरण्डी तैल आठ छटांक अथवा सरसों के तैल में आधा छटांक सोंठ पावडर मिलाकर पशु को पिलाना चाहिए ।
२-काला नमक आठ छटांक और आधा छटांक सोंठ कुटपीसकर दोनो के आधा लीटर पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए ।
नोट - जूलाब देने के बाद अगली दवाओं का उपयोग करना चाहिए -

३ - गुड १ पाव , सोंठ १ तौला , अजवायन १ छटांक , मेंथी आधा पाव और भाँग १ तौला - इन सब द्रव्यों को घोटकर - पीसकर २५० ग्राम , दूध में गुड़ सहित घोलकर आग पर पकाकर पशु को पिलायें । यह योग गठिया रोग में लाभकारी हैं ।
४ -  दूसरे दिन पशु को निम्नांकित योग को तैयार कर १-१ मात्रा दिन में बार दें । पलाश पापड़ा ( ढाक के बीज ) , अनार की छाल , सौँफ और अमलतास - प्रत्येक १-१ तौला लें । इन द्रव्यों को आधा लीटर पानी में पकायें और जब २५० मिली पानी शेष रह जायें तो गुनगुना - गुनगुना ही पशु को ख़ाली पेट पिलायें ।
५ - उपर्युक्त औषधि मुख द्वारा सेवनीय औषधियों के अतिरिक्त गठिया रोग में , बाहृाउपचार आवश्यक हैं । निम्नलिखित तैलो से जोड़ो पर मालिश करके रूई के फाहों से सेंक करना चाहिए और फिर वही फांहें उन्हीं जोड़ो पर बाँध देना चाहिए , लेकिन उनके हवा न लगे । इससे पशु को दर्द मे आराम आता हैं तथा सूजन भी कम होती हैं
# - इस रोग मे ठण्डी हवा बहुत हानिकारक होती हैं । अत: उससे विशेष रूप से बचाव रखें ।












गठिया नाशक बाहृा उपचारार्थ तेलीय योग

औषधि - 
१-आक ( मदार ) के पत्तों को कुटकर रस निचोड़ लें ओर २५० ग्राम तिल के तेल मे एक लीटर रस मिलाकर आग पर रखकर पकायें । जब रस जलकर तेल मात्र शेष रह जायें तो उसे कपड़े से छान लें । इस तेल की जोड़ो पर मालिश करना लाभकारी हैं ।
२ - कपूर १ तौला पीसकर , तारपीन तेल १ छटांक , दोनो को आपस मे मिलाकर मालिश करना गुणकारी होता हैं ।
३ -  धतुरे के पत्तों का रस १ पाव निकालकर उसे आधा सेर कड़वा ( सरसों ) तेल मे मिलाकर पकायें । जब रस जलकर तेल मात्र शेष रह जायें तो छानकर मालिश के कार्य में लेना लाभकारी होता हैं ।
४ - धतुरा बीज २ तौला पीसकर , तिल का तेल १ पाव , दोनो को मिलाकर १५-२० दिन तक धूप में रखे , बीस दिन के बाद छानकर शीशी भरकर रख लें । इस तेल की मालिश करना भी गठिया मे लाभकारी होता हैं ।
५ - एक पाव लहसुन की पोथियाँ अच्छी तरह कुचलकर उन्हे आधा लीटर तिल के तेल मे डालकर आग पर पकायें जब तेल भलीभाँति पक जायें तो तेल छानकर स्वच्छ शीशी मे भर कर रख लेवें । इस तेल की मालिश भी गुणकारी होती हैं ।
६ - हरी- हरी दूबघास ( दूर्वा ) को १० सेर पानी में उबालकर गरमपानी का जोड़ो वाले स्थान पर भपारा दें और दर्द वाली जगह पर गरम- गरम पानी डालें । इस प्रयोग से पशु का दर्द कम होता हैं ।
७ - पलाश के फूल ( ढाक,टेशू के फूल ) २ किलो , १० सेर पानी में उबालकर गरम - गरम पानी का भपारा दें व पानी डालकर सिकाई करने से भी दर्द कम होता हैं ।
# - औषधि - जब पशु को गठिया रोग मे कुछ आराम हो जायें तथा दर्द कम हो जायें और सूजन भी जाती रहे , पशु आराम से चलने फिरने लगे तो कुछ दिनों तक हवा व सर्दी से बचाते हुए ताक़त प्राप्ति हेतू नीचे लिखे योगों का उपयोग करना चाहिए - -
८ - औषधि - हराकसीस,सोंठ,चिरायता , तथा भाँग अथवा खाने वाला सोडा ( प्रत्येक १-१ तौला ) लेकर आधा लीटर पानी मे घोलकर अथवा गुड की डली में मिलाकर कम से कम सात दिनों तक सुबह के समय पशु को लगातार खिलाना चाहिए । इस प्रयोग से पशु को खोई हुऐ शक्ति पुन: प्राप्त हो जाती हैं ।

पथ्य - इस रोग में पशुओं को बादीकारक या कब्जकारक चींजे कदापि नही खिलानी चाहिए । ब्लकि शीघ्रपाची तथा गरम चींजे जैसे - चाय , दूध , दलिया आदि ही खिलानी चाहिए । चना , मटर , लोबिया आदि द्विदलीय जाति के दाने या ठण्डी वस्तुओं का सेवन वर्जित हैं । पानी भी ठण्डा न देकर थोड़ा गुनगुना पिलाना चाहिए और हवा , सर्दी एवं बरसात से पशु को बचाकर रखना चाहिए । यदि ठण्ड अधिक हो तो पशु को गरम झूल ओढायें तथा उसके बाँधने के स्थान पर उपलो की आग सुलगा देनी चाहिए ।

Wednesday 12 October 2016

गौ-घृत(घी) के औषधीय गुण

गाय को हिंदू धर्म में माँ का दर्जा दिया है।  गाय को यह दर्जा मात्र किसी धार्मिक आज्ञा के कारण नहीं दिया गया अपितु गाय के समस्त गुणों को पहचानने के बाद ही उसे यह दर्जा दिया गया है | गोवंश सैकड़ो साल तक भारतीय समाज आर्थिक आधार रहा है। प्राचीन ऋषि-मुनि भी गाय के औषधीय गुणों से भली-भांति परिचित थे इसीलिए गाय के विभिन्न गुणों के बारे में भारतीय ग्रंथो में विस्तार से वर्णन है | ज्ञानपंती वेबसाइट पर गाय के विभिन्न लाभों के बारे मे एक लेख प्रकाशित हो चुका है और आज हम गाय के घी से घरेलू चिकित्सा के बारे में पढेंगे | आइए जानते है गाय के घी के चिकित्सीय गुण के बारे में -
यौवन : गाय के दूध का घी आपको चिर युवा रखते हुए बुढ़ापे को दूर रखता है.गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है |
बलगम : गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बलगम को बाहर निकालने में सहायता मिलती है ।

अनेक रोगों का नाशक है गौ-घृत 


माइग्रेन : दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह-शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है |
सिरदर्द : सिर में दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो तो गाय के घी की पैरों में तलवे पर मालिश करें |
हाथ-पांव में जलन : होने पर गाय के घी से तलवों में मालिश करें |
गौ घृत – नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरो-ताजा हो जाता है. मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है |
शराब, भांग व गांजे का नशा : 20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है |
कमजोरी : यदि अधिक कमजोरी लगे तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पियें ।

कब्ज : गौ घृत -अमृत समान है | गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है | 

फफोलों पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है |

Friday 30 September 2016

हिंदू धर्म में गाय को बेहद पवित्र और पूजनीय माना जा

हिंदू धर्म में गाय को बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है. सिर्फ गाय ही नहीं बल्कि गाय से मनुष्यों को मिलनेवाली हर चीज़ बेहद पवित्र होती है.
कहा जाता है कि गाय माता में तैंतीस कोटी देवी-देवताओं का वास होता है, जो इंसान गौ सेवा करता है उसके जीवन से एक-एक कर सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं.
आइए नज़र डालते हैं गाय माता से जुड़े कुछ तथ्यों पर, जो गाय को हिंदुओं के लिए पूजनीय बनाते हैं.
गाय से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1 – गाय माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है, उस जगह से सारे वास्तु दोष दूर हो जाते हैं.
2 – गाय के गोबर से बने उपलों से रोजाना घर, दुकान और मंदिर परिसर में धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है.
3 – काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रहों की पीड़ा शांत होती है. जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ सेवा करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है और उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती हैं.
cow4 – गाय को इस धरती पर साक्षात देव स्वरुप माना जाता है. गाय माता के खुर्र में नागदेवता, गोबर में लक्ष्मी जी, मुत्र में गंगाजी का वास होता है. जबकि गौ माता के एक आंख में सूर्य व दूसरी आंख में चंद्र देव का वास होता है.
5 – गाय माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है. किसी व्यक्ति को बुरी नज़र लग जाए तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने पर नज़र उतर जाती है.
6 – गाय माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है. उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है. रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है.
7 – गाय को अन्नपूर्णा देवी और कामधेनु माना जाता है. मान्यता है कि गौ माता का दूध अमृत के समान है, जिसमें सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है.
8 – गाय माता से ही मनुष्यों के गौत्र की स्थापना हुई है. गौ माता चौदह रत्नों में एक रत्न है. कहा जाता है कि गाय को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है.
9 – गाय माता के दूध, घी, मक्खन, दही, गोबर और गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है. इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं. इन पंचगव्य के बिना पूजा पाठ हवन सफल नहीं होते हैं.
10 – तन-मन-धन से जो मनुष्य गाय की सेवा करता है, उसे गौ लोकधाम में वास मिलता है. गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला इंसान सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है और उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती.
11 – अगर आपकी भाग्य रेखा सोई हुई है तो अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गाय को चटाये. गाय अगर अपने जीभ से आपकी हथेली पर रखे गुड़ को चाटती है तो इससे आपकी सोई हुई किस्मत खुल सकती है.
12 – गाय को जगत जननी कहा जाता है उसे पृथ्वी का रुप भी माना जाता है इसलिए गाय के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है. गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तीर्थो के पुण्यों का लाभ मिलता है.
13 – गाय एक चलता फिरता मंदिर है. हम रोजाना तैंतीस कोटि देवी-देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नहीं कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी-देवताओं के दर्शन हो जाते हैं.
14 – कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो और बार-बार प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं हो रहा हो, तो कहा जाता है कि गाय के कान में अपनी परेशानी कहने से रुका हुआ काम बनने लगता है.
15 – मान्यता है कि जब गाय अपने बछड़े को जन्म देती है तब का पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है.
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गाय माता के बिना यह संसार अधूरा है. जो लोग गाय से जुड़े इन तथ्यों को समझते हैं वो लोग गाय को अपनी माता के समान पूजते हैं. जो लोग इन तथ्यों को महज़ ढकोसला समझते है, उनके लिए गाय सिर्फ एक प्राणी है और कुछ नहीं.





Wednesday 28 September 2016

भारतीय नश्ल की गाय व उसकी जीवनचर्या

भारतवर्ष मे गौशाला व गायों और ग्वालों के बीच मे सम्पर्क करते हुए तरह- तरह के अनुभव आये है । जिस तरह से जर्सी, होलेस्टिन गायों की देख- भाल होती है । समाज के पढ़ें - लिखें लोग व एलौपैथिक पशुचिकित्सक उसी प्रकार से भारतीय नश्ल की गायों की देख- भाल व चिकित्सा करते है । कहीं- कहीं देखने मे आता है कि जो धनाड्य गौशाला है उनमें पंखे है कूलर है कुछ मे तो AC तक लगे होते है । फ़व्वारों से गायों को नहलाया जाता हैं व गायों के नीचें पक्का फर्श बनवाया जाता है । बिना आवश्यकता के गायों को टीकें लगाये जाते है ।

जबकि भारतीय नश्ल की गायें कम देखभाल  मे भी खुश रहती है और बिमार भी कम होती हैं व बिमार कम होती है तो टीकों की आवश्यकता नही होती है । देशी गाय कच्चे फर्श पर खुश रहती है पर कीचड़ से कतराती है कीचड़ मे बैठना पसन्द नही करती है । पूरी- पूरी रात खड़ी होकर गुज़ार देती है । इसी कारण से गाय का दूध भी सूख जाता है । देशी गाय के शरीर पर बालों की बनावट घनी व इस प्रकार की होती है की उन्हे थोड़ा सा ही पसीना आते ही गाय को ठंडक का अहसास होने लगता है । और गाय अधिक से अधिक धूप मे खड़ा होना पसंद करती है । देशी गाय धूप मे खड़ी होकर अपनी सुर्यकेतु नाड़ी द्वारा धूप से AOUH ( स्वर्णक्षार ) का निर्माण करती है । गाय का दूध व मूत्र इसी कारण पीला- पीला होता है । गाय के घी-दूध व मूत्र मे पाचक स्वर्ण (Digestible Gold) पर्याप्त मात्रा मे होता है । पाचक स्वर्ण शरीर मे जाकर जल्दी हज़म होकर रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है । इसलिए गाय को पंखे कुलर की आवश्यकता नही रहती है । 

देशी गाय स्वभाव से ही पानी मे नहाने से बचती है यह नहाना पसंद नही करती है । ब्लकि वर्षा मे भीग जाने पर भी बिमार हो जाती है । गौशाला मे गाय को धूप से नही ब्लकि वर्षा से बचाना ज़रूरी हैं । गाय खुले आकाश के नीचे व पेड़ों की छांव मे रहकर खुश व निरोगी रहती है इसलिए देशी गाय को टीकों की आवश्यकता नही पड़ती है । देशी गाय गले मे चैन व रस्सी पसंद नही करती है जो गाय खुटें से बंधी रहती है उनका दूध कम हो जाता है तथा बांझपन की शिकार हो जाती हैं । कभी- कभी गायों को कन्ट्रोल करने के लिए गायों को मोहरा ( मोहरी ) पहनाकर रखना चाहिए लेकिन खुटे से नही बाँधकर रखना चाहिए । देशी गाय अलग- अलग रहना पंसद नही करती बल्कि झुण्ड मे रहकर खुश होती है अपने बच्चे व परिवार की सुरक्षा की चिन्ता ख़ुद करती है । देशी गाय चारे की कुट्टी ( महीन कटा हुआ चारा ) खाना पसंद नही करती बल्कि मोटा- मोटा ( कम से कम ६ इंच लम्बा चारा ) व जमीन पर खडे चारे को खाकर खुश व निरोगी रहती हैं ।

भारतीय नश्ल की गाय अपनी मर्ज़ी से चारा व पानी ग्रहण करते हुएे घुम- फिर कर टहलती हुई अपने कुल के झुण्ड मे रहकर आनंदित होती है । गाय स्वभावतः बेहद संवेदनशील (sensitive ) होती है , गाय कम सुविधा मे स्वछन्द रहकर अपने शरीर मे अत्यधिक रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है जिसके कारण घी- दूध मे भी अधिक रोगप्रतिरोधक क्षमता आती हैं । यदि आपको गाय को दुलारना है तो सिर्फ और सिर्फ उसकी गर्दन के नीचे जो ढीली ढाली त्वचा होती है, उसे सहलाइए. पीठ पे भूल के भी हाथ मत फेरिये.

इसके अलावा एक और बात ये कि गाय सूखी कच्ची मिट्टी पर बैठना या खड़े होना ही पसंद करती है। ईंटों से बने फर्श पर जब दूध से भरे थन वाली गाय बैठती है तो गाय के पैर व ईंट के बीच थन के दब जाने से थन खराब हो जाता है । गाय के अगले पैरो से पिछले पैरो तक फर्श मे ढाल आधा इंच से ज़्यादा होने पर गर्भवती गाय को नीचे बैठते ही योनि बाहर निकल जाती है इस रोग को योनिभ्रशं रोग कहते है। इसलिए भरसक कोशिश कीजिये कि आपकी गौशाला का फर्श मिट्टी का हो. पक्की ईंटों का या पत्थर, concrete का फर्श गाय को पसंद नहीं. पक्के फर्श पर उनके खुर खराब हो जाते हैं. इसके अलावा पक्के फर्श पर बैठ के उनको आराम नहीं मिलता. संभव हो तो फर्श की मिट्टी soft हो, वो जिसे बलुई मिट्टी कहते हैं, बालू मिश्रित.

इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण कि भारत की देशी गाय, गर्म जलवायु का पशु है और गर्मी को पसंद करती है. सर्दियों में देशी गाय परेशान रहती है, ठंडी हवा से बचती है. भरसक गर्म जगह पर रहना पसंद करती है. इसलिए यदि आप गर्मियों में अपनी गाय को AC, या कूलर में बांधते हैं तो आप अपनी गाय पर अत्याचार कर रहे हैं. 

यदि बेतहाशा गर्मी है और तापमान 45 डिग्री या उस से ज़्यादा है तो गौशाला में पेड लगाये सकते है. यदि गाय खुली हवा में पेड़ की छाया में बंधी है तो ये सबसे अच्छा है. खुली हवा में तो पंखे की भी जरुरत नहीं है ।अब गाय के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गाय स्वभावतः बंधन मे  नहीं रहना चाहती. उसे अपनी स्वतंत्रता बेहद प्रिय है. इसलिए, यदि संभव हो तो उसे खूंटे से बाँधने की अपेक्षा एक बाड़े में खुला छोड़ दीजिये. ध्यान दीजिये कि बाड़े में छायादार पेड़ हों. गाय अपनी सुविधानुसार धूप या छाया में बैठ जायेगी.

गाय जंगल/चारागाह में खुला घूम के चरना पसंद करती है और जमीन पर लगी घास चरना पसंद करती है. उसे नांद में भूसा खाना पसंद नहीं. पर आज के युग में न वन रहे न चारागाह. फिर भी आप यदि गाय पालते हैं तो उसे थोड़ी देर के लिए ही सही पर आधा घंटा भी यदि घुमा लाएं, या कहीं खेत में चरा लाएं तो गाय बहुत ज़्यादा प्रसन्न होती है । 

मुझे याद है, मेरे पिता जी को अपने पशु चराना बहुत पसंद था. वो रोज़ाना सुबह १० बजे सभी गाय-भैंस खोल देते थें और उन्हें सामने नहर पे ले जाते थे गायें तो आराम से नहर किनारे चरती रहती और भैंसें सीधे नहर के पानी में घुस के नहाने लगती. दो घंटे बाद गाय तो अपने आप लौट आतीं पर भैंसें नहर से निकलना नहीं चाहती थी. उन्हें ज़बरदस्ती निकालना पड़ता था.

बड़ी मज़े की बात ये कि जो गाय हमेशा बंधी रहती थी वो कभी अगर छुट जाए तो जल्दी पकड़ में नहीं आना चाहती थी ……… She'll enjoy all her freedom and all the shortlived fun ……… पूरी धमाचौकड़ी मचा के, फुल उत्पात करके, घंटा दो घंटा अपने मालिक को परेशान करके ही वापस खूंटे पे आती थी ।

इसका मनोवैज्ञानिक इलाज ये है कि ऐसी गाय को आप रोज़ाना शाम को घुमाना टहलाना चराना शुरू कर दीजिये. वो उत्पात करना बंद कर देगी.
अंत में एक बात, मेरे पिता जी जब तक जिए, उन्होंने अपने पशु अपने बच्चों की तरह पाले. बाकायदा उनसे बात करते थे. अपने हाथ से खिलाते टहलाते थे. और उनकी गाय तो क्या, उनकी आवाज भैंस भी सुनकर रम्भाने लगती थीं.
गाय एक सामाजिक प्राणी है. वो भी आपसे घुल मिलकर स्वत्रंत रहना चाहती हैं । उन्हें भी आपका साहचर्य चाहिए।



यदि बेतहाशा गर्मी है और तापमान 45 डिग्री या उस से ज़्यादा है तो गौशाला में पंखा चला सकते है. यदि गाय खुली हवा में पेड़ की छाया में बंधी है तो ये सबसे अच्छा है. खुली हवा में तो पंखे की भी जरुरत नहीं.अब गाय के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात. गाय स्वभावतः बंध के नहीं रहना चाहती. उसे अपनी स्वतंत्रता बेहद प्रिय है. इसलिए, यदि संभव हो तो उसे खूंटे से बाँधने की अपेक्षा एक बाड़े में खुला छोड़ दीजिये. ध्यान दीजिये कि बाड़े में छायादार पेड़ हों. गाय अपनी सुविधानुसार धूप या छाया में बैठ जायेगी.
गाय जंगल/चारागाह में खुला घूम के चरना पसंद करती है और जमीन पर लगी घास चरना पसंद करती है. उसे नांद में भूसा खाना पसंद नहीं. पर आज के युग में न वन रहे न चारागाह. फिर भी आप यदि गाय पालते हैं तो उसे थोड़ी देर के लिए ही सही, मने अगर आधा घंटा भी यदि घुमा लाएं, या कहीं खेत में चरा लाएं तो गाय बहुत ज़्यादा प्रसन्न होती है.
मुझे याद है, मेरे पिता जी को अपने पशु चराना बहुत पसंद था. वो रोज़ाना शाम लगभग 3 बजे सभी गाय भैंस खोल देते और उन्हें सामने नहर पे ले जाते. गायें तो आराम से नहर किनारे चरती रहती और भैंसें सीधे नहर के पानी में घुस के नहाने लगती. दो घंटे बाद गाय तो अपने आप लौट आतीं पर भैंसें नहर से निकलना नहीं चाहती थी. उन्हें ज़बरदस्ती निकालना पड़ता था.
बड़ी मज़े की बात ये कि जो गाय हमेशा बंधी रहती है, कभी अगर छुड़ा ले तो जल्दी पकड़ में नहीं आना चाहती ……… She'll enjoy all her freedom and all the shortlived fun ……… पूरी धमाचौकड़ी मचा के, फुल उत्पात करके, घंटा दो घंटा अपने मालिक को परेशान करके ही वापस खूंटे पे आएगी.
इसका मनोवैज्ञानिक इलाज ये है कि ऐसी गाय को आप रोज़ाना शाम को घुमाना टहलाना चराना शुरू कर दीजिये. वो उत्पात करना बंद कर देगी. 
अंत में एक बात, मेरे पिता जी जब तक जिए, उन्होंने अपने पशु अपने बच्चों की तरह पाले. बाकायदा उनसे बात करते थे. अपने हाथ से खिलाते टहलाते थे. और उनकी गाय तो क्या, उनकी भैंस भी उनकी आवाज़ सुन रम्भाने लगती थीं.
गाय एक सामाजिक प्राणी है. वो भी आपसे घुल मिल के रहना चाहती हैं. उन्हें भी आपका साहचर्य चाहिए.


Monday 19 September 2016

ज़ुकाम या सर्दी का इलाज कैसे करें

कारण व लक्षण :- 
शरीर के गरम रहने की स्थिति में अथवा उसके तुरन्त बाद ही पशु को ठन्डी जगह में खड़ा कर देना अथवा तेज़ गर्मी के तुरन्त बाद ही मौसम का मिज़ाज परिवर्तित होकर ठण्डक हो जाने ,ठण्डा पानी पी लेने , पशु को ठण्डी जगह में कर देने , पानी से भीगने आदि के कारण पशुओं को सर्दी या ज़ुकाम हो जाता है । इस रोग के आरम्भ में ज्वर ( बुखार ) , बेचैनी , श्वास की तीव्रता , प्यास , लाल रंग का मूत्र, नाक से स्राव, सुस्ती, सूखी खाँसी आदि ज़ुकाम के लक्षण प्रकट होते हैं ।

रोगग्रस्त पशु की नाक से पानी बहने लगता हैं उसे बार- बार छींके आती हैं । नाक की भीतरी झिल्ली लाल हो जाती हैं । ज़ुकाम १-२ दिन में पकने पर नाक से गाढ़ा बलगम आने लगता हैं । रोगी पशु खाँसता हैं उसे साँस लेने में कठिनाई होती हैं , कभी- कभी ज्वर भी हो जाता हैं और पशु खाना- पीना छोड़ देता हैं । शरीर में कम्पन्न होता हैं व कफ उत्पन्न होता है । पशु ठण्ड से सिकुड़ता है और खड़ा रहता हैं । कब्जियत , अधिक गर्मी लग जाने , पसीनों से लथपथ शरीर होने की दशा में में ही ठण्डा जल पीने , जाड़े की ऋतु में बाहर ( खुलेवातावरण मे ) बाँधने अथवा वर्षा में बाहर खड़ा रहने पर बहुत अधिक भीग जाने पर आदि कारणों से भी ज़ुकाम हो जाता है । इस रोग में उपयुक्त वर्णित लक्षणों के साथ ही साथ नाक के अतिरिक्त मुख से भी कफ गिरता है और आँखों से पानी बहने लगता हैं । ज़ुकाम जब प्रबल हो उठता है तो ज्वर ( बुखार ) भी हो जाता हैं ।
उपयोगी औषधि - 
१ - औषधि :- गरमपानी में खानेवाला सोडा २० ग्राम , घोलकर दिन में २-३ बार पिलाने से बहुत लाभ होता हैं ।
२ - औषधि :- आधा लीटर गरमपानी मे ५० ग्राम मुलहटी भली प्रकार मिलाकर सुबह- सायं पिलाना अतिगुणकारी होता हैं ।

३ - औषधि :- तुलसी पत्ते का चूर्ण १० ग्राम , भटकटैया का चूर्ण और २० ग्राम , काली मिर्च का काढ़ा , सभी को आपस में मिलाकर गरम- गरम पिलाने से ठण्ड से उत्पन्न रोग से ज़ुकाम में लाभ आता हैं ।

४ - औषधि :- गन्धक का धूआँ सुँघाने से बहता हुआ ज़ुकाम झड़कर रोगी पशु का शरीर हल्का हो जाता है और बुखार के लक्षण कम हो जाते हैं ।

# - उपयुक्त दवाये शीघ्र प्रभावी हो सके इसके लिए सरसों का तेल २५० ग्राम , सोंठ पावडर २० ग्राम , पिला दें इससे पशु को दस्त हो जायेगा फिर पशु को सुखी घास व चावल का माण्ड पिलाते रहना लाभदायक हैं तथा रात्रि में गरम कपड़े से ढक देना चाहिए ।

५ - औषधि :-किसी चौड़े मुँह वाले बर्तन में पानी खोलाकर उसमें थोड़ा सा तारपीन का तेल डालकर पशु को बन्द स्थान में खड़ा करके उसके नाक , मुँह में भाप दें ( ध्यान रखना चाहिए कि पशु गरम पानी में मुँह ना डाल दें ।

६ - औषधि :- हल्दी , गुगल तथा लौहवान - इन तीनों को कोयलों की जलती हुई अँगीठी में डालकर उसकी धूनी देने से भी ज़ुकाम ठीक हो जाता है ।

# - इन इलाजों के साथ- साथ नीचे लिखी दवाओं के प्रयोग का विशेष लाभ होता है ।

७ - औषधि :- कालीमिर्च पावडर १ तौला , गन्धक पावडर १ तौला , राई पावडर १ तौला , गन्ने का शीरा या गुड़ २५० ग्राम , इन सब को मिलाकर चटनी बना लें और पशु को सुबह- सायं चटाने से लाभकारी सिद्ध होता है ।
८ - औषधि - कालीमिर्च पावडर १ तौला , सोंठ पावडर २ तौला , अजवायन पावडर २ तौला , तथा गन्ने की राब या शीरा २५० ग्राम , लें । इन समस्त दवाओं को मिलाकर चटनी बनाकर पशु को सुबह - सायं दिन में दो बार चटाना गुणकारी है ।

९ - औषधि - तारपीन का तेल व अलसी का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर पशु की छाती पर मलकर ऊपर से रूई के गरम फोहों से सेंकने से खाँसी - ज़ुकाम दोनों में लाभ होता हैं ।

# - पशु हल्का सुपाच्य खाना दें ओर गरम चींजे खाने में देवें गुड़ डालकर चोकर , दलिया , अलसी की चाय पिलायें और ठण्ड से बचाकर रखना चाहिए ।


खाँसी ( Cough )

कारण व लक्षण :-
खाँसी का मूल कारण ज़ुकाम है , ज़ुकाम के बिगड़ जाने से खाँसी हो जाती है । इसके अतिरिक्त यह रोग प्राय: सर्दी - गर्मी , अपच , वायु की धूल आदि के फेफड़ों पर प्रभाव से हो जाता है कभी कभी कोई दवा या खाने- पीने की कोई वस्तु श्वास नली में चले जाने से भी खाँसी होती है । फेफड़ों की नली में कीड़े इकट्ठे हो हो जाने पर उसमें सूजन या ख़राश उत्पन्न हो जाती है इस कारण से भी खाँसी का रोग हो जाता है । छोटे पशुओ , जैसे - भेड़- बकरी , बछड़ा , कटरा तथा लबेराे को घास व चारे के छोटे- छोटे कीड़े पेट में चले जाने से तथा कभी-कभी पानी में लगातार भीगने और सर्दी लग जाने से भी खाँसी का रोग हो जाता है ।
रोग के आरम्भ में पशु को सुखा धस्का उठता है और साँस लेने में कठिनाई होती है तथा गले के नीचे साँय- साँय शब्द की आवाज़ होती हैं । इसके बाद बलगम पैदा होकर तर खाँसी हो जाती है । बछड़ों आदि को कीड़ों के कारण जो खाँसी होती है - उसमें वे गर्दन झुकाकर तथा शरीर को फैलाकर खाँसते है । यदि अधिक दिनों तक उसकी चिकित्सा न की गयी तो सर्दी की खाँसी निमोनिया , दमा आदि का रूप धारण कर लेती है जिसके फलस्वरूप रोगी पशु दुर्बल होकर मर जाता है ।

धँसका :- रोगी पशु के गले में धस्का सा उठता रहता है , जिसके कारण वह खाये- पीयें भोजन को भी भली प्रकार पचा नहीं पाता है और दिन प्रतिदिन कमज़ोर होता जाता हैं ।

तर खाँसी :- तर खाँसी का मूल कारण पशु को ठण्ड लग जाना होता है इसमें रोगी पशु के मुख से कफ निकलता रहता है श्वास में तेज़ी आ जाती है और प्राय मन्द- मन्द बुखार भी हो जाता है जिसके कारण वह कुछ खा- पी नहीं सकता है ।

ख़ुश्क खाँसी :- गले में ख़राश , कफ,न निकलना , पशु के खाँसने पर गले से धुँआँ सा निकलना , प्यास तेज़ी से लगना तथा गर्दन व पैरों की गर्मी प्रतीत होना - आदि इस व्याधि के सामान्य लक्षण हैं ।

औषधि :- 
१. पके हुए अनार का छिल्का १ छटांक , पीसकर गाय के मक्खन में मिलाकर पशु को चटाने से खाँसी में आराम आता हैं ।

२ - केले के सुखने हुए पत्ते की राख २ तौला , गाय का मक्खन या शहद के साथ मिलाकर चटाने से लाभ होता हैं ।

३ - अजवायन १ तौला , नमक १ तौला , और अदरक २ रतौला , गुड़ ५ तौला , लेकर मिला लें , यह एक खुराक है ऐसी ही खुराक प्रतिदिन पशु को प्रात: काल खिलायें ४-५ दिन में ठीक हो जायेगा ।

४ -  यदि कीड़ों के कारण स्वाँस नली में सूजन होने के कारण खाँसी हो गयी हैं तब निम्नांकित योग परम लाभकारी सिद्ध होता हैं । तारपीन का तेल १ छटांक , तथा अलसी का तेल ३ छटांक , लेकर दोनो को दलिया में मिलाकर थोड़ा- थोड़ा पशु को नाल द्वारा पिलायें तो लाभकारी होगा ।

# - यदि दवा पिलाते समय पशु को खाँसी उठे तो उसका मुँह छोड़ देना चाहिए ।

५ - नमक पावडर १ तौला , आक ( मदार ) की जड़ का पावडर १ तौला , हल्दी २ तौला , धतुराफल पावडर ३ माशा , और हींग ६ माशा , लेकर सभी को आपस में मिलाकर आधाकिलो गुनगुने पानी में मिलाकर नाल द्वारा पिलायें यह खाँसी नाशक अच्छा प्रयोग हैं ।

६ -  मुलहटी पावडर १ तौला , नमक पावडर १ तौला , गाय का मक्कखन ४ तौला मिलाकर एक खुराक तैयार हो जाती है , ऐसी ही चार- पाँच खुराक पशु को दिनभर में चटाने से पशु का बलगम पतला होकर बाहर निकलने लगता है ओर पशु ठीक होने लगता हैं ।

७ -  बबूल का गोंद १ तौला , कालीमिर्च पावडर १ तौला , नमक पावडर १ तौला , पीपरामूल पावडर १ तौला , काकडा सिंगी पावडर १ तौला , गन्ने की राब या गुड़ ५ तौला , के साथ मिलाकर चटाना भी लाभकारी रहता है ।

#- धँसका :- धस्का में पशु को चावल का गरम माण्ड पिलायें । जौं के आटे में अडूसे के पत्ते और सांभर नमक डालकर दिन मे ३-४ बार खिलाना उपयोगी रहेगा ।

#- तर खाँसी :- के लिए इन दवाओं का उपयोग कर सकते हैं --

८ - गुड ७० ग्राम , सोंठ पावडर १० ग्राम , मिलाकर गोली बनाकर दिन में दो बार खिलाना गुणकारी होता हैं ।

९ -  फिटकरी को भूनकर पावडर ५० ग्राम , हींग भूनकर ५० ग्राम , सोंठ पावडर ५० ग्राम , कायफल पावडर ५० ग्राम , सुहागा ५० ग्राम , बायबिड्ंग पावडर ५० ग्राम , कुटकी पावडर ५० ग्राम , सफ़ेद ज़ीरा पावडर ५० ग्राम , कालीमिर्च पावडर ५० ग्राम , इसके बाद यह चूर्ण लेकर मेंथी का आटा १ किलो लेकर उसमे मिलाकर थोड़ा पानी डालकर आटा गुथकर ५०-५० ग्राम के लड्डू बनाकर रंख लेवे दिन में तीन बार खिलाने से लाभँ होगा ।

१० - प्याज़ २५० ग्राम , नमक २ तौला , दोनों की चटनी बनाकर खिलाने से लाभँ मिलता हैं । प्याज़ की चटनी बनाते समय पानी का उपयोग नहीं करना होता हैं ।

# - तर खाँसी में पशु को कुछ बास की पत्तियाँ नियमित खाने को देने से जल्दी लाभ होता हैं ।

  ख़ुश्क खाँसी -
१२ - औषधि :- सुखी खाँसी गर्मी से उत्पन्न होती हैं ।पीड़ित पशु के गले में धुँआँ सा उठता है , पशु खाँसने लगता हैं इससे प्यास बहुत लगती हैं ।

१३ -  सेंधानमक और अडूसे के पत्ते का रस ५०-५० ग्राम लेकर जौ के आटे में पानी गुँथकर लड्डू बनाकर खिलाने चाहिए ।

१४ -  पुरानी शुद्ध सरसों का तेल ३०० ग्राम , पिलाने से सूखी खाँसी में लाभकारी होता हैं ।

१५ - गाय का घी व देशीशराब बराबर मात्रा में लेकर घी को पिघलने तक गरम करकें गुनगुना लेकर उसमें शराब मिलाकर पशु को नाल द्वारा पिलाना हितकर होता हैं ।

१६ - गोंद कतीरा १५ ग्राम , देशी बबूल का गोंद १५ ग्राम , रात को पानी में भिगोकर रख दें , प्रात: काल होने पर जब वह फूलकर मोटे हो जाये , जौं का आटा आवश्यकतानुसार लेकर सब को आपसे मिलाकर गुँथकर लड्डू बना लें और रोगी पशु को खिलायें आराम होगा ।

सुखी खाँसी या तर खाँसी का इलाज करने से पहले यह ठीक प्रकार से देख लेना चाहिए कि उसका मूल कारण अधिक गर्मी या ठन्ड लग जाना , बिना मौसम की वस्तु खा जाना या कोई विषैला प्रभाव अथवा किसी अन्य रोग का होना तो नहीं हैं यदि खाँसी का कारण पेट सम्बन्धी या कोई और बिमारी हो तो पहले उसका इलाज कर उसके बाद खाँसीनाशक दवाओं का उपयोग करना चाहिए , कभी- कभी तो मूलरोग के ठीक होते ही खाँसी अपने आप ही ठीक हो जाती हैं ।

नंदी सेवा - गौसेवा- देश सेवा

भारतवर्ष की यह कुछ परम्परा रही है कि अच्छे कार्य की ओर समाज के कुछ ही व्यक्ति अग्रसर होते है पर बुराई का कुछ प्रयास भी नही करना पड़ता की बहुसंख्यक समाज अग्रसर हो जाता है । अच्छाई के साथ कम तो बुराई के साथ तन-मन-धन से बहुत खडे दिखाई देते है । जैसे देशहित व समाजहित के लिए आप मुकदमा लड़ने जाओ तो कोई वक़ील नही मिलेगा और मिला भी तो सस्ता नही मिलेगा पर समाज मे कोई बडी से बडी बुराई का काम करे जैसे देशद्रोह या नरसंहार ,व्यभिचार , आतंकवाद आदि घृणित कार्य करते ही उसके लिए देश के सर्वश्रेष्ठ नामचीन वक़ीलो मे उस व्यक्ति का मुकदमा स्वंय और फ़्री लड़ने के लिए होड़ लग जाती है। मीडिया भी उसे कई दिन तक ऐसे दिखायेगा कि वह इस धरा पर अवतार अवतरित हुआ हो , और तो और इस देश की संसद मे भी देश के विकास के मुद्दों को छोड़कर पूरे सत्र मे सारा विपक्ष उस घृणित अवतार का पक्षधर बनकर एक सत्र भी नही चलने देगा । लेखक , अभिनेता सबके - सब उस बुराई का साथ ऐसे देंगे जैसे इस वसुन्धरा पर सबसे पुण्य का कार्य यही हो । ठीक इसी प्रकार से सुअर का पालन , बकरे का पालन,भैंस का पालन व मुर्ग़ी का पालन तो बड़े स्त्तर पर होता ही है और इनके शोधसंस्थान भी खडे किये गये है । करोड़ों - करोड़ों रूपये भी ख़र्च किये जाते है पर इस धरती व प्रकृति व समाज व संस्कृति को पालित- पोषित करने वाली कामधेनु सभी सुखों के देने वाली ऐसी हमारी गौमाता उस पर शोधसंस्थान व उसके डेयरीफार्म बनाते हुए जान निकलती है और जो है भी उन्हे घाटे का सौदा बताकर बन्दकर देना चाहते है और उत्तरप्रदेश सरकार ने तो लखनऊ का सबसे बड़ा फ़ार्म बन्द ही कर दिया। अब वहाँ कंकरीट जंगल खड़ा करेंगे , मुख्यमंत्री ने इतनी भी ज़हमत नही उठाई कि उसे वहाँ से कही ओर ट्रांसफ़र कर देते और आज हमारे देश की सेना जिस पर हमें गर्व है उसके भी कुछ तथाकथित अधिकारी सेना के अन्दर चलने वाली गौशालाऔं को बन्द करने की सलाह देकर फ़ाइल बन्द करके सरकार को भेज चुके है । अब कहाँ से होगा गौ-पालन व नंदीपालन और कैसे ?

इस धरा पर जब- जब पाप अत्याचार , अन्याय बढ़ा है तब- तब भगवान किसी न किसी रूप मे अवतरित हुए है और उन समस्याओं का उन्मूलन किया गया है । ऐसे ही आज गौवंश के बारे मे कुछ ऐसे सन्त जिनके ऊपर प्रभु कृपा हमेशा बनी रहती है उन सन्तों ने आज गौसंवर्धन का विषय लेकर समाज को चेतना देने का कार्य कर रहे है जैसे स्वामी दत्तशरणानन्द जी पथमेडा,अदृश्य स्वामी काडसिद्धेश्वर जी महाराज कनेरीमठ कोल्हापुर , स्वामी रामदेव जी पतंजलि हरिद्वार , व बाबा रमेश जी वृन्दावन मथुरा आदि सन्तों ने गौवंश को बचाने का बिगुल फूंका है अब इस कार्य मे समाज की व समाज के अन्दर कुछ अच्छे नेताओं की कार्य करने की आवश्यकता है ।

आज समाज मे जो गो-सेवा की चेतना आयी है पर अभी भी नंदीपालन के बारे मे इतने चिंतित नही है जबकि सब जानते है कि नंदी के बिना गाय सम्भव नही , अच्छी गाय नही तो दूध- घी नही , और इन सबसे ज़रूरी है नश्ल- सुधार यदि नश्ल नही सुधरेगी तो अच्छी गाय नही आयेगी और न ही गाय बचेगी क्योंकि अच्छी गाय को कोई नही बेचना चाहता और यदि बेचता भी है को उसके दाम अच्छे ही मिलते है । इसलिए हमें गाय का इतिहास बनाकर रखना ज़रूरी है ओर उसे ऐसे नंदी से गर्भाधान कराये जिस नंदी की माँ ने इस गाय से ज़्यादा दूध दिया हो और उच्छी नश्ल की हो यह सब करने के लिए गौशाला के अन्दर अलग से नंदीशाला होनी चाहिए नंदी को गायों के बीच मे न बाँधना और न ही खुला छोड़ना चाहिए।

नंदीशाला मे गर्भाधान के लिए अलग- कक्ष होने चाहिए जिस नश्ल की गाय हीट पर आये एक कक्ष मे उसी नश्ल के नंदी के साथ गाय को छोड़ना चाहिए और हमेशा प्रकृतिक सम्भोग ही कराना चाहिए ( सम्भोग का अर्थ है समान भोग , गाय को भी सम्भोग क्रिया मे नंदी के बराबर ही आनंद आना चाहिए ) सम्भोग के समय गाय का रोम- रोम पुलकित हो उठता है इस क्रिया से गाय के शरीर की बाहृा ही नही उसकी आन्तरिक नाड़ियाँ भी सक्रीय हो जाती है है जिन के सक्रीय होने के कारण शरीर के अन्दर से आने वाले अण्डाणु के साथ बहुत मात्रा मे स्राव आता है जिसके कारण पुरा शरीर गर्भधारण के लिए तैयार हो जाता है साथ ही साथ गाय को परमआनंद की प्राप्ति होती है । कृत्रिम गर्भाधान से गाय इस सुख से वंचित रहती है इसी कारण कृत्रिम गर्भाधान के रिज़ल्ट ज़्यादा अच्छे नही है । वह तो मजबूरी मे ही कराया जाय तो अच्छा है । एक बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है की गर्भाधान के समय कोन सा पखवाड़ा चल रहा है सभी गायों का गर्भाधान हमेशा कृष्णपक्ष मे ही कराने के लिए नंदीशाला मे गाय को छोड़ना चाहिए जिसके कारण आपकी गौशाला मे बछडियाँ अधिक होगी और अधिक दूध देने वाली व अच्छी नश्ल की गायों को शुक्लपक्ष मे ही नंदीशाला मे छोड़ना चाहिए क्योंकि शुक्लपक्ष मे गर्भाधान से बछड़े ही पैदा होगे जो बहुत अच्छी नश्ल के होगे भविष्य मे अच्छे नंदी बनेंगे जो नश्लसुधार मे काम आयेंगे न की गोशाला पर बोझ बनेंगे । जिन गौशालाऔं मे बछड़े अधिक होते है , वहाँ के गोपालक अपनी गायों का रिकार्ड नही रखते है और नंदी को गायों की बीच मे ही रखते है इसी कारण से बछड़े अधिक होते है । और फिर रोते है कि बछड़े अधिक है इनका हम क्या करें ।
नंदी महाराज गाय माता से अधिक लाभकारी होते है लेकिन समाज केवल नंदी को गर्भाधान तक ही सीमित रखते है जबकि नंदी गाय से ज़्यादा उपयोगी है , हम एक बार उन तथ्यों पर भी दृष्टि डालते है --

  • जिस खेत मे बैल या नंदी जी के चरण पड़ते हैं उस खेत की ज़मीन से विष समाप्त हो जाता है । क्योंकि नंदी जी के चरणों ( खुरों ) मे सर्प का वास होता है वह ज़मीन के अन्दर का विष खींच लेता है जैसे सर्प ज़हरीली हवा व ज़हर को खाकर विष ऐकेत्र करता है और फिर वैद्य लोग उस विष से उपचारार्थ जीवनदायनी औषधियाँ तैयार करते है और नंदी महाराज कभी भी एक जगह से नही चरते है , वह कही - कही मुँह मारते फिरते है तो इससे फ़सल का बड़ा नुक़सान भी नही होता है और बदले मे असंख्य बैक्टीरियाओं सहित गोबर भी करके जाते है जो कृषि के लिए अति उत्तम है लेकिन साथ- साथ वह मूत्रविसर्जन भी तो करते है जो अपने आप मे महाशक्ति का काम करता है । क्योंकि इसमे युरिया की मात्रा तो बहुत होती ही है पर साथ- साथ यह रोग नाशक व रोगप्रतिरोधक क्षमतावान होता है इसके धरती पर पड़ते ही धरती माता धन्य होकर पुलकित हो उठती है और बदले में किसान को देती हैं ढेर सारा आनाज , जिसके होने से उसे अन्नदाता की उपाधि मिलती हैं ।



  • नंदी महाराज के गुणों का आयुर्वेद मे बड़ा ही मैहत्तम गाया गया है । कोई ऐसा व्यक्ति जिसके स्पर्म ( शुक्राणु ) मर गये हो और वह संतान उत्पत्ति करने मे असफल हो तो ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रतिदिन नंदी महाराज को प्रणाम करके उसके गलकम्बल मे हाथ फिरायें तो कुछ दिनों मे उसके शुक्राणु ज़िन्दा हो जाते है और यदि किसी पुरूष को वीर्यदोष है - वीर्यपतन , वीर्य का पतला होना , वीर्य मे बदबू होना , शीघ्रपतन , व स्तम्भन व बाजीकरण की समस्या है तो उस क्षमता को निमार्ण करने के लिए या महिलाओं के जननांगरोग बांझपन व गर्भस्थ शिशु का बार बार गिर जाना व अण्डाणु न बनना , अन्य योनिविकार तथा महिलाओं मे सैक्स की अनिच्छा होना , इन सबकी एकमात्र रामबाण औषधि है- "नंदीमूत्र अर्क।" इसके प्रयोग से सभी प्रकार के सैक्स सम्बंधी रोग दूर होते है । 



  • जिस महिला को २ माह का गर्भ होने वाला है वह महिला प्रतिदिन नंदी महाराज की नौ परिक्रमा लगायेगी तो ऐसी महिला को गुणवान , शौयर्वान बलिष्ठ , मन चाही संतान प्राप्त होती है । नंदी की कमर पर १५ मिनट प्रतिदिन हाथ फेरने से बल्डप्रेशर नोर्मल होकर धीरे- धीरे यह रोग ठीक होता है तथा नंदी की कमर पर प्रतिदिन १५ मिनट हाथ फिराने से मनुष्य का कम्पन्न रोग दूर होता है , नंदी के कान का मैल निकालकर उसकी चने के बराबर गोली बनाकर नाभि मे रखकर उस पर रूई का फाहा रखकर पट्टी बाँध देने से बच्चों को निमोनिया रोग से मुक्ति मिलती है । नंदीमहाराज के मुख के अग्रभाग ( जो हिस्सा काला है और उस पर हर समय पसीने की बूँदे रहती है ) पर जो पसीने की बूँदे है उनको हाथ के अंगूठे से उतारकर अपने माथे ( आज्ञाचक्र ) पर तिलक करे तो बी० पी ० ( बल्डप्रेशर ) शान्त होकर मन- मस्तिष्क को चन्दन की तरह शीतलता प्रदान करता हैं । नंदी के खुरों के नीचे की मिट्टी का तिलक करने से सौभाग्य उदय होता हैं और भूतबाधा दूर होती हैं । 



  • नंदी के गोमय से जले हुए स्थान पर लगाने से लाभ होता हैं तथा इसके गोमय के लेप से त्वचा मे निखार आता है और नंदीमूत्र की मालिश से सभी प्रकार के चर्मरोग दाद , खाज , खुजली , एक्ज़िमा जेसै भंयकर रोग दूर होते है । जिस व्यक्ति को बालों के रोग - जिसे बालों का गलित व पलित व बालों का झड़ना या बालों मे भंयकर रूसी हो जाय , जो किसी भी दवा से ठीक नही हूई हो ऐसी स्थिति मे नंदीमूत्र से सिर को ३-४ दिन धोयेंगे तो सिर की सारी रूसी ग़ायब होकर बाल मोटे मज़बूत व घनें होगे । जो व्यक्ति प्रत्येक रविवार को नंदी महाराज को तिलक करके उसके पैरो पर जलसिंचन करके पाँच मीठी रोटी अपने हाथ से खिलाकर क्लोक वाइज़ नौ परिक्रमा करेगा तो उस व्यक्ति के शरीर से नैगेटीविटी समाप्त होकर ब्रह्म ऊर्जा ( पोजेटीविटी ) का निर्माण होगा और इस क्रिया को करने वाले व्यक्ति का ओरा ( आभा मण्डल ) यदि नौ फ़िट है तो नौ प्ररिक्रमा करने से उसका आभा मण्डल छत्तीस फ़ीट हो जाता हैं और रविवार सूर्य का दिन होने के कारण से नंदी व सूर्य भगवान की पूजा एक साथ हो जाती हैं, इस कारण से व्यक्ति के जीवन का बड़े से बड़ा संकट दूर हो जाता हैं । मान्यता है कि भगवान शंकर के मन्दिर मे पूजा- अर्चना के बाद यदि मन्नत माँगनी होती है तो नंदी महाराज के कान कहने से ही शंकर भगवान इच्छा पूरी करते हैं । तो जीवित नंदी के कान मे अपनी इच्छा प्रकट करने से सभी कार्य सिद्ध होते है ।


आज हम जो वात्स्यायन मूनि के कामसूत्र का अध्यन कर लाभान्वित होते है इसकी रचना होने मे भी नंदी महाराज का बड़ा योगदान है शात्रोक्त वर्णन हैं कि जिस समय भगवान शंकर जी माता पार्वती को कामशास्त्र का ज्ञान दे रहे थे तब उन्होंने नंदी महाराज को इस अनुपम ज्ञान को लिपिबद्ध करने का आदेश दिया था और इनके द्वारा लिपिबद्ध ज्ञान को बाभ्रव्य जैसे महान आदित्य ब्रह्मचारी ग्यारह ऋषियों के द्वारा इस ज्ञान को सम्पादित किया गया और बाद मे वात्स्यायन मूनि द्वारा इन ग्यारह पुस्तकों मिलाकर एक शास्त्र की रचना की गई जिसे हम आज वात्स्यायन का कामसूत्र के नाम से जानते है ।

।। नंदी महाराज की जय ।।