Monday 19 September 2016

नंदी सेवा - गौसेवा- देश सेवा

भारतवर्ष की यह कुछ परम्परा रही है कि अच्छे कार्य की ओर समाज के कुछ ही व्यक्ति अग्रसर होते है पर बुराई का कुछ प्रयास भी नही करना पड़ता की बहुसंख्यक समाज अग्रसर हो जाता है । अच्छाई के साथ कम तो बुराई के साथ तन-मन-धन से बहुत खडे दिखाई देते है । जैसे देशहित व समाजहित के लिए आप मुकदमा लड़ने जाओ तो कोई वक़ील नही मिलेगा और मिला भी तो सस्ता नही मिलेगा पर समाज मे कोई बडी से बडी बुराई का काम करे जैसे देशद्रोह या नरसंहार ,व्यभिचार , आतंकवाद आदि घृणित कार्य करते ही उसके लिए देश के सर्वश्रेष्ठ नामचीन वक़ीलो मे उस व्यक्ति का मुकदमा स्वंय और फ़्री लड़ने के लिए होड़ लग जाती है। मीडिया भी उसे कई दिन तक ऐसे दिखायेगा कि वह इस धरा पर अवतार अवतरित हुआ हो , और तो और इस देश की संसद मे भी देश के विकास के मुद्दों को छोड़कर पूरे सत्र मे सारा विपक्ष उस घृणित अवतार का पक्षधर बनकर एक सत्र भी नही चलने देगा । लेखक , अभिनेता सबके - सब उस बुराई का साथ ऐसे देंगे जैसे इस वसुन्धरा पर सबसे पुण्य का कार्य यही हो । ठीक इसी प्रकार से सुअर का पालन , बकरे का पालन,भैंस का पालन व मुर्ग़ी का पालन तो बड़े स्त्तर पर होता ही है और इनके शोधसंस्थान भी खडे किये गये है । करोड़ों - करोड़ों रूपये भी ख़र्च किये जाते है पर इस धरती व प्रकृति व समाज व संस्कृति को पालित- पोषित करने वाली कामधेनु सभी सुखों के देने वाली ऐसी हमारी गौमाता उस पर शोधसंस्थान व उसके डेयरीफार्म बनाते हुए जान निकलती है और जो है भी उन्हे घाटे का सौदा बताकर बन्दकर देना चाहते है और उत्तरप्रदेश सरकार ने तो लखनऊ का सबसे बड़ा फ़ार्म बन्द ही कर दिया। अब वहाँ कंकरीट जंगल खड़ा करेंगे , मुख्यमंत्री ने इतनी भी ज़हमत नही उठाई कि उसे वहाँ से कही ओर ट्रांसफ़र कर देते और आज हमारे देश की सेना जिस पर हमें गर्व है उसके भी कुछ तथाकथित अधिकारी सेना के अन्दर चलने वाली गौशालाऔं को बन्द करने की सलाह देकर फ़ाइल बन्द करके सरकार को भेज चुके है । अब कहाँ से होगा गौ-पालन व नंदीपालन और कैसे ?

इस धरा पर जब- जब पाप अत्याचार , अन्याय बढ़ा है तब- तब भगवान किसी न किसी रूप मे अवतरित हुए है और उन समस्याओं का उन्मूलन किया गया है । ऐसे ही आज गौवंश के बारे मे कुछ ऐसे सन्त जिनके ऊपर प्रभु कृपा हमेशा बनी रहती है उन सन्तों ने आज गौसंवर्धन का विषय लेकर समाज को चेतना देने का कार्य कर रहे है जैसे स्वामी दत्तशरणानन्द जी पथमेडा,अदृश्य स्वामी काडसिद्धेश्वर जी महाराज कनेरीमठ कोल्हापुर , स्वामी रामदेव जी पतंजलि हरिद्वार , व बाबा रमेश जी वृन्दावन मथुरा आदि सन्तों ने गौवंश को बचाने का बिगुल फूंका है अब इस कार्य मे समाज की व समाज के अन्दर कुछ अच्छे नेताओं की कार्य करने की आवश्यकता है ।

आज समाज मे जो गो-सेवा की चेतना आयी है पर अभी भी नंदीपालन के बारे मे इतने चिंतित नही है जबकि सब जानते है कि नंदी के बिना गाय सम्भव नही , अच्छी गाय नही तो दूध- घी नही , और इन सबसे ज़रूरी है नश्ल- सुधार यदि नश्ल नही सुधरेगी तो अच्छी गाय नही आयेगी और न ही गाय बचेगी क्योंकि अच्छी गाय को कोई नही बेचना चाहता और यदि बेचता भी है को उसके दाम अच्छे ही मिलते है । इसलिए हमें गाय का इतिहास बनाकर रखना ज़रूरी है ओर उसे ऐसे नंदी से गर्भाधान कराये जिस नंदी की माँ ने इस गाय से ज़्यादा दूध दिया हो और उच्छी नश्ल की हो यह सब करने के लिए गौशाला के अन्दर अलग से नंदीशाला होनी चाहिए नंदी को गायों के बीच मे न बाँधना और न ही खुला छोड़ना चाहिए।

नंदीशाला मे गर्भाधान के लिए अलग- कक्ष होने चाहिए जिस नश्ल की गाय हीट पर आये एक कक्ष मे उसी नश्ल के नंदी के साथ गाय को छोड़ना चाहिए और हमेशा प्रकृतिक सम्भोग ही कराना चाहिए ( सम्भोग का अर्थ है समान भोग , गाय को भी सम्भोग क्रिया मे नंदी के बराबर ही आनंद आना चाहिए ) सम्भोग के समय गाय का रोम- रोम पुलकित हो उठता है इस क्रिया से गाय के शरीर की बाहृा ही नही उसकी आन्तरिक नाड़ियाँ भी सक्रीय हो जाती है है जिन के सक्रीय होने के कारण शरीर के अन्दर से आने वाले अण्डाणु के साथ बहुत मात्रा मे स्राव आता है जिसके कारण पुरा शरीर गर्भधारण के लिए तैयार हो जाता है साथ ही साथ गाय को परमआनंद की प्राप्ति होती है । कृत्रिम गर्भाधान से गाय इस सुख से वंचित रहती है इसी कारण कृत्रिम गर्भाधान के रिज़ल्ट ज़्यादा अच्छे नही है । वह तो मजबूरी मे ही कराया जाय तो अच्छा है । एक बात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है की गर्भाधान के समय कोन सा पखवाड़ा चल रहा है सभी गायों का गर्भाधान हमेशा कृष्णपक्ष मे ही कराने के लिए नंदीशाला मे गाय को छोड़ना चाहिए जिसके कारण आपकी गौशाला मे बछडियाँ अधिक होगी और अधिक दूध देने वाली व अच्छी नश्ल की गायों को शुक्लपक्ष मे ही नंदीशाला मे छोड़ना चाहिए क्योंकि शुक्लपक्ष मे गर्भाधान से बछड़े ही पैदा होगे जो बहुत अच्छी नश्ल के होगे भविष्य मे अच्छे नंदी बनेंगे जो नश्लसुधार मे काम आयेंगे न की गोशाला पर बोझ बनेंगे । जिन गौशालाऔं मे बछड़े अधिक होते है , वहाँ के गोपालक अपनी गायों का रिकार्ड नही रखते है और नंदी को गायों की बीच मे ही रखते है इसी कारण से बछड़े अधिक होते है । और फिर रोते है कि बछड़े अधिक है इनका हम क्या करें ।
नंदी महाराज गाय माता से अधिक लाभकारी होते है लेकिन समाज केवल नंदी को गर्भाधान तक ही सीमित रखते है जबकि नंदी गाय से ज़्यादा उपयोगी है , हम एक बार उन तथ्यों पर भी दृष्टि डालते है --

  • जिस खेत मे बैल या नंदी जी के चरण पड़ते हैं उस खेत की ज़मीन से विष समाप्त हो जाता है । क्योंकि नंदी जी के चरणों ( खुरों ) मे सर्प का वास होता है वह ज़मीन के अन्दर का विष खींच लेता है जैसे सर्प ज़हरीली हवा व ज़हर को खाकर विष ऐकेत्र करता है और फिर वैद्य लोग उस विष से उपचारार्थ जीवनदायनी औषधियाँ तैयार करते है और नंदी महाराज कभी भी एक जगह से नही चरते है , वह कही - कही मुँह मारते फिरते है तो इससे फ़सल का बड़ा नुक़सान भी नही होता है और बदले मे असंख्य बैक्टीरियाओं सहित गोबर भी करके जाते है जो कृषि के लिए अति उत्तम है लेकिन साथ- साथ वह मूत्रविसर्जन भी तो करते है जो अपने आप मे महाशक्ति का काम करता है । क्योंकि इसमे युरिया की मात्रा तो बहुत होती ही है पर साथ- साथ यह रोग नाशक व रोगप्रतिरोधक क्षमतावान होता है इसके धरती पर पड़ते ही धरती माता धन्य होकर पुलकित हो उठती है और बदले में किसान को देती हैं ढेर सारा आनाज , जिसके होने से उसे अन्नदाता की उपाधि मिलती हैं ।



  • नंदी महाराज के गुणों का आयुर्वेद मे बड़ा ही मैहत्तम गाया गया है । कोई ऐसा व्यक्ति जिसके स्पर्म ( शुक्राणु ) मर गये हो और वह संतान उत्पत्ति करने मे असफल हो तो ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रतिदिन नंदी महाराज को प्रणाम करके उसके गलकम्बल मे हाथ फिरायें तो कुछ दिनों मे उसके शुक्राणु ज़िन्दा हो जाते है और यदि किसी पुरूष को वीर्यदोष है - वीर्यपतन , वीर्य का पतला होना , वीर्य मे बदबू होना , शीघ्रपतन , व स्तम्भन व बाजीकरण की समस्या है तो उस क्षमता को निमार्ण करने के लिए या महिलाओं के जननांगरोग बांझपन व गर्भस्थ शिशु का बार बार गिर जाना व अण्डाणु न बनना , अन्य योनिविकार तथा महिलाओं मे सैक्स की अनिच्छा होना , इन सबकी एकमात्र रामबाण औषधि है- "नंदीमूत्र अर्क।" इसके प्रयोग से सभी प्रकार के सैक्स सम्बंधी रोग दूर होते है । 



  • जिस महिला को २ माह का गर्भ होने वाला है वह महिला प्रतिदिन नंदी महाराज की नौ परिक्रमा लगायेगी तो ऐसी महिला को गुणवान , शौयर्वान बलिष्ठ , मन चाही संतान प्राप्त होती है । नंदी की कमर पर १५ मिनट प्रतिदिन हाथ फेरने से बल्डप्रेशर नोर्मल होकर धीरे- धीरे यह रोग ठीक होता है तथा नंदी की कमर पर प्रतिदिन १५ मिनट हाथ फिराने से मनुष्य का कम्पन्न रोग दूर होता है , नंदी के कान का मैल निकालकर उसकी चने के बराबर गोली बनाकर नाभि मे रखकर उस पर रूई का फाहा रखकर पट्टी बाँध देने से बच्चों को निमोनिया रोग से मुक्ति मिलती है । नंदीमहाराज के मुख के अग्रभाग ( जो हिस्सा काला है और उस पर हर समय पसीने की बूँदे रहती है ) पर जो पसीने की बूँदे है उनको हाथ के अंगूठे से उतारकर अपने माथे ( आज्ञाचक्र ) पर तिलक करे तो बी० पी ० ( बल्डप्रेशर ) शान्त होकर मन- मस्तिष्क को चन्दन की तरह शीतलता प्रदान करता हैं । नंदी के खुरों के नीचे की मिट्टी का तिलक करने से सौभाग्य उदय होता हैं और भूतबाधा दूर होती हैं । 



  • नंदी के गोमय से जले हुए स्थान पर लगाने से लाभ होता हैं तथा इसके गोमय के लेप से त्वचा मे निखार आता है और नंदीमूत्र की मालिश से सभी प्रकार के चर्मरोग दाद , खाज , खुजली , एक्ज़िमा जेसै भंयकर रोग दूर होते है । जिस व्यक्ति को बालों के रोग - जिसे बालों का गलित व पलित व बालों का झड़ना या बालों मे भंयकर रूसी हो जाय , जो किसी भी दवा से ठीक नही हूई हो ऐसी स्थिति मे नंदीमूत्र से सिर को ३-४ दिन धोयेंगे तो सिर की सारी रूसी ग़ायब होकर बाल मोटे मज़बूत व घनें होगे । जो व्यक्ति प्रत्येक रविवार को नंदी महाराज को तिलक करके उसके पैरो पर जलसिंचन करके पाँच मीठी रोटी अपने हाथ से खिलाकर क्लोक वाइज़ नौ परिक्रमा करेगा तो उस व्यक्ति के शरीर से नैगेटीविटी समाप्त होकर ब्रह्म ऊर्जा ( पोजेटीविटी ) का निर्माण होगा और इस क्रिया को करने वाले व्यक्ति का ओरा ( आभा मण्डल ) यदि नौ फ़िट है तो नौ प्ररिक्रमा करने से उसका आभा मण्डल छत्तीस फ़ीट हो जाता हैं और रविवार सूर्य का दिन होने के कारण से नंदी व सूर्य भगवान की पूजा एक साथ हो जाती हैं, इस कारण से व्यक्ति के जीवन का बड़े से बड़ा संकट दूर हो जाता हैं । मान्यता है कि भगवान शंकर के मन्दिर मे पूजा- अर्चना के बाद यदि मन्नत माँगनी होती है तो नंदी महाराज के कान कहने से ही शंकर भगवान इच्छा पूरी करते हैं । तो जीवित नंदी के कान मे अपनी इच्छा प्रकट करने से सभी कार्य सिद्ध होते है ।


आज हम जो वात्स्यायन मूनि के कामसूत्र का अध्यन कर लाभान्वित होते है इसकी रचना होने मे भी नंदी महाराज का बड़ा योगदान है शात्रोक्त वर्णन हैं कि जिस समय भगवान शंकर जी माता पार्वती को कामशास्त्र का ज्ञान दे रहे थे तब उन्होंने नंदी महाराज को इस अनुपम ज्ञान को लिपिबद्ध करने का आदेश दिया था और इनके द्वारा लिपिबद्ध ज्ञान को बाभ्रव्य जैसे महान आदित्य ब्रह्मचारी ग्यारह ऋषियों के द्वारा इस ज्ञान को सम्पादित किया गया और बाद मे वात्स्यायन मूनि द्वारा इन ग्यारह पुस्तकों मिलाकर एक शास्त्र की रचना की गई जिसे हम आज वात्स्यायन का कामसूत्र के नाम से जानते है ।

।। नंदी महाराज की जय ।।

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