Sunday 28 February 2021

पञ्चगव्य -4:-

पञ्चगव्य -4:-

#- बाल रोग - समभाग जायफल तथा मायाफल के चूर्ण को मंद अग्नि पर भूनकर , बारह भाग धागा मिश्री पावडर मिलाकर, 1-2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन प्रात: काल गाय के दूध के साथ बच्चों को सेवन कराने से रोगों का शमन होता है तथा बल वृद्धि करता है।

#- वाजिकरणार्थ - अकरकरा,जायफल, जावित्री , इलायची , कस्तूरी , केशर को गौदुग्ध में पकाकर दूध मे धागा मिश्री पावडर मिलाकर पीने से पौरुषशक्ति ( पुरूषत्व ) की वृद्धि होती है ।

#- ग्रहणी - समभाग जायफल , जौ, नागरमोथा , कच्चा बेल चूर्ण ( 1-3 ) ग्राम को गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा गृहणी रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है।

#- आमातिसार - 500 मिलीग्राम जायफल के चूर्ण में गौघृत तथा खाण्ड मिलाकर चटाने से आमातिसार में लाभ होता है।

#- अतिसार - 1-2 जायफल वटी को प्रात: सायं गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से सभी तरह के अतिसार का शमन होता है।

#- अतिसार - 5 ग्राम जीरे को भूनकर तथा पीसकर गौदही ( गाय के दूध से बनी दही ) की लस्सी में मिलाकर सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।

#- संग्रहणी रोग - भांग ( विजया ) 100 ग्राम , सोंठ 20 ग्राम और ज़ीरा 400 ग्राम तीनों को बारीक कुटकर छान ले , और छने हुए चूर्ण की 100 खुराक बना लें, इनमें से एक- एक खुराक सुबह- सायं खाने से आधा घन्टा पहले 1-2 चम्मच गौदही ( गाय के दूध से बनी दही ) के साथ सेवन करने से पुरानी से पुरानी संग्रहणी जड़ से समाप्त हो जाती है। पथ्य में चावल, खिचड़ी , गाय के दूध से बनी दही तथा छाछ का प्रयोग करे व हल्का भोजन ग्रहण करे आप निश्चय ही स्वस्थ होगे।

#- अतिसार - ज़ीरा भूना हुआ और कच्ची तथा भूनी हुई सौंफ दोनों को बराबर मिलाकर एक- एक चम्मच की मात्रा में दो या तीन घन्टे बाद ताजे पानी या गौतक्र ( छाछ) के साथ सेवन करने से मरोड़ के साथ होने वाले पतले दस्त , अतिसार बन्द हो जाते है।

#- अगिनमांद्य - जीरे व धनिये के कल्क से पकायें गये गौघृत को प्रात: सायं भोजन के आधा घन्टे पहले सेवन करने से मंदाग्नि और वातपित्तज रोगों में लाभ होता है तथा भूख खुलकर लगती है तथा खाना जल्दी पचता है।

#- अम्लपित्त - समभाग ज़ीरा और धनियां के 120 ग्राम कल्क से 750 ग्राम गौघृत सिद्ध कर प्रतिदिन 10-15 ग्राम घृत का सेवन करने से अम्लपित्त के साथ- साथ विकृत कफ एवं पित्त , अरूचि , मंदाग्नि एवं छर्दि मे लाभकारी होता है।

#- बिच्छुदंश - ज़ीरा और नमक को पीसकर गौघृत और शहद में मिलाकर थोड़ा सा गरम करके बिच्छू के डंक मारे हुए स्थान पर लगाने से बिच्छू का ज़हर उतर जाता है।

#- वृश्चिक दंश , बिच्छुदंश - ज़ीरा मे गौघृत एवं सैंधानमक मिलाकर पीसकर बहुत महीन कल्क बनाकर थोड़ा गर्म कर वृश्चिक दंश - स्थान पर लेप करने से दंशजन्य वेदना का शमन होता है।

#- स्तन्यजननार्थ, स्तनवृद्धि - जीरे को गाय के घी मे भूनकर , भूने हुए आटे के लड्डुओं में डालकर , प्रसूता को खिलाने से माताओं के स्तनों में वृद्धि होती है । प्रसूतिकाल में गौघृत में सेंके हुए जीरे की कुछ अधिक मात्रा दाल में डालकर स्त्री को खिलाना चाहिए ।

#- स्तनवृद्धि - जीरे को गाय के घी में भूनकर इसका हलुआ बनाकर खिलाने से भी स्तनवृद्धि की वृद्धि होती है।

#- स्तन्यक्षय - समभाग सौंफ , सौवर्चल लक्षण तथा ज़ीरा के चूर्ण को गौतक्र ( छाछ ) के साथ नियमित सेवन करने से स्तन्यक्षय में लाभ होता है।

#- स्तन्यक्षय रोग - प्रसूता स्त्री द्वारा समभाग शतावरी , चावल तथा जीरे के चूर्ण का गोदूग्ध के साथ नियमित सेवन करने से स्तन्यक्षय में लाभ होता है।

#- स्तन्यवृद्धि - 10-20 मिलीग्राम ज़ीरा क्वाथ में मधु तथा गौदुग्ध मिलाकर गर्भावस्था की प्रारम्भिक स्थिति में दिन में एक बार प्रयोग करने से गर्भ की वृद्धि में व प्रसव में सहायता मिलती है तथा स्तन्य की वृद्धि होती है ।

#- अग्निदग्ध - ज़ीरा के कल्क में सिद्ध गौघृत में मदनफल तथा राल मिलाकर , अग्निदग्ध स्थान पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।

#- वातकफज ज्वर - गुड अथवा मधु के साथ 5-10 ग्राम ज़ीरा कल्क का सेवन कर फिर अनुपान में गौतक्र ( गाय के दूध से बनी छाछ ) पीकर धूप में पसीना निकलने तक बैठने से पसीना होकर वातकफज ज्वर उतर जाता है।

#- नक्तान्ध्य , रतौंधी - जीवन्ती के 5-10 ग्राम पत्तों को गौघृत में पकाकर नित्य सेवन करने से रतौंधी मे लाभ होता है।

#- मुखरोग - समभाग जीवन्ती कल्क तथा गोदूग्ध से विधिवत तैल पाक कर उसमें मधु तथा आठवाँ भाग राल मिलाकर मुख तथा ओष्ठ के घाव पर लेप करने से घाव शीघ्र भर जाता है।

#- पार्श्व शूल - जीवन्ती के मूल कल्क में दो गुणा तैल मिलाकर , लेप करने से पसलियों की वेदना का शमन होता है।

#- कास ( खाँसी )- 10-12 ग्राम जीवन्ती आदि द्रव्यों से बने चूर्ण में विषम मात्रा में मधु तथा गौघृत मिलाकर खाने से कास ( खाँसी ) मे लाभ होता है।

#- राजक्ष्मा - 5-10 ग्राम जीवन्त्यादिघृत का सेवन करने से राजक्ष्मा में लाभ होता है ।

#- अतिसार - पुटपाक विधी से निकालते हुए 10 मिलीग्राम जीवन्ती स्वरस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर गौ- तक्र ( छाछ ) पीने से अतिसार में लाभ होता है।

#- अतिसार :- जीवन्ती - शाक को पकाकर गो-दधि ( गाय के दूध से बनी दही ) , अनार तथा गौघृत के साथ मिलाकर खाने से अतिसार मे लाभ आता है।

#- योनि- व्यापद( योनिविकार) :- जीवन्ती से सिद्ध गौघृत को 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से योनिव्यापद ( योनिविकारों ) का शमन होता है।

#- त्वकविकार - जीवन्ती , मंजिष्ठा , दारूहल्दी , तथा कम्पिल्लक के क्वाथ एवं तूतिया ( नीली थोथा ) के कल्क से पकाए गौघृत तथा तैल में सर्जरस तथा मोमदेशी मिलाकर मलहम की तरह प्रयोग करने से बिवाई फटना , चर्मकुष्ठ , एककुष्ठ ,किटिभ कुष्ठ तथा अलसक मे शीघ्र लाभ होता है।

#- ज्वरजन्य दाह - जीवन्ती मूल से बनाये काढ़े ( 10-30 ) मिलीग्राम में गौघृत मिलाकर सेवन करने से बुखार के कारण होने वाली जलन कम होती है।

#- शोथ - जीवन्त्यादि द्रव्यों का यवागू बनाकर , गौघृत तथा तैल से छौंक कर , वृक्षाम्ल के रस से खट्टा कर सेवन करने से अर्श , अतिसार , वातगुल्म , शोथ तथा हृदय रोग का शमन होता है तथा जठराग्नि की वृद्धि होती है।

#- आमातिसार - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर , रोटी को ठंडा करके गौ-दधि मे डालकर खाने से आमातिसार में लाभ होता है।

#- अन्तर्दाह , जलन - ज्वार के आटे की रोटी बनाकर रात में रख दें , सुबह उसमें कुछ श्वेत ज़ीरा भूनकर मिला ले तथा गौ- तक्र के साथ खाने से जलन मिटती है।

#- धतूरे का विष - ज्वार के स्वरस मे , शक्कर तथा समान भाग गोदूग्ध मिलाकर 20 मिलीग्राम मात्रा में प्रात:सायं , दोपहर पिलाने से धतूरे का विष शान्त हो जाता है।

#- अतिसार - जूही के पत्तों के स्वरस से बनाये खडयुष ( 10-20 ) मिलीग्राम में गौघृत , अम्ल तथा लवण मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।

#- रक्तपित्त - परवल , शलेष्मातक , चौपतिया जूही , वटवृक्ष के अँकुर तथा निर्गुंडी पत्र शाक को गौघृत से संस्कारित कर तथा ऑवला व अनार रस मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है ।

#- संधिशूल - 1 ग्राम तगर मूल छाल को पीसकर गौ-तक्र ( छाछ ) के साथ पीने से संधिशूल का शमन होता है।

#- तिमिररोग - 20-30 मिलीग्राम त्रिफला के क्वाथ में जौं को पकाकर , उसमें गौघृत मिलाकर खाने आँखों में धून्धलापन, रात को न दिखाई देना, तथा आँखों के सामने रंग- बिरंगी दिखना बन्द होकर तिमिररोग का शमन होता है।

#- प्रतिश्याय - जौं के सत्तू में गौघृत मिलाकर खाने से नज़ला , ज़ुकाम, खाँसी तथा हिचकी रोग में लाभ होता है।


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