Monday 14 March 2022

रामबाण –139

अपामार्ग –(Washerman's plant)

 

अपामार्ग को चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा, चिचड़ा भी बोलते हैं। यह एक बहुत ही साधारण पौधा है। आपने अपने घर के आस-पास, जंगल-झाड़ या अन्य स्थानों पर अपामार्ग का पौधा जरूर देखा होगा, लेकिन शायद इसे नाम से नहीं जानते होंगे। अपामार्ग की पहचान नहीं होने के कारण प्रायः लोग इसे बेकार ही समझते हैं, लेकिन आपका सोचना सही नहीं है। अपामार्ग (लटजीरा) एक जड़ी-बूटी है, और इसके कई औषधीय गुण हैं। कई रोगों के इलाज में अपामार्ग (चिरचिटा) के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। दांतों के रोग, घाव, पाचनतंत्र विकार सहित अनेक बीमारियों में अपामार्ग के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।

 

अपामार्ग (लटजीरा) के गुण को आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, और रोगों को ठीक किया जाता है। आप अपामार्ग से खांसी, मूत्र रोग, चर्म रोग सहित अन्य कई बीमारियों का इलाज कर सकते है, अपामार्ग (लटजीरा) एक जड़ी-बूटी है। बारिश के मौसम की शुरुआत में अपामार्ग का पौधा अंकुरित होने लगता है। ठंड के मौसम में फलता-फूलता है, और गर्मी के मौसम में पूरी तरह बड़ा हो जाता है। इसी मौसम में फल के साथ पौधा भी सूख जाता है। इसके फूल हरी गुलाबी कलियों से युक्त होते हैं। इसके बीज चावल जैसे होते हैं। इन्हें ही अपामार्ग तंडुल कहते हैं। इसके पत्ते बहुत ही छोटे और सफेद रोमों से ढके होते हैं। ये अण्डाकार एवं कुछ नुकीले से होते हैं।

अपामार्ग की मुख्यतः दो प्रजातियां होती हैं, जिनका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।

 

1.  सफेद अपामार्ग

2.  लाल अपामार्ग

 

सफेद और लाल दोनों प्रकार के अपामार्ग की मंजरियां पत्तों के डण्ठलों के बीच से निकलती हैं। ये लंबे, कर्कश, कंटीली-सी होती है। इनमें ही सूक्ष्म और कांटे-युक्त बीज होते हैं। ये बीज हल्के काले रंग के छोटे चावल के दाने जैसे होते हैं। ये स्वाद में कुछ तीखे होते हैं। इसके फूल छोटे, कुछ लाल हरे या बैंगनी रंग के होते हैं। लाल अपामार्ग की डण्डियां और मञ्जरियां कुछ लाल रंग की होती हैं। इसके पत्तों पर लाल-लाल सूक्ष्म दाग होते हैं।  

 अपामार्ग (apamarga plan) का वानस्पतिक नाम एकायरेन्थिस् एस्पेरा (Achyranthes aspera L., Syn-Achyranthes australis R. Br.), है, और यह एमारेन्थेसी (Amaranthaceae) कुल का है। अपमार्ग के अन्य ये भी नाम हैं|

# - सफेद अपामार्ग के नाम Hindi – चिरचिटा, लटजीरा, चिरचिरा, चिचड़ा,Urdu – चिरचिटा (Chirchita),English – वाशरमैन्स प्लान्ट (Washerman's plant), रफ चाफ फ्लॉवर (Rough chaff flower); दी प्रिक्ली-चाफ फ्लॉवर (The prickly-chaff flower),Sanskrit – अपामार्ग, शिखरी, अधशल्य, मयूरक, मर्कटी, दुर्ग्रहा, किणिही, खरमंजरी, प्रत्यक्फूली भी कहते है |

 

# - लाल अपामार्ग - Hindi – लाल चिरचिटा, लाल-चिचींडा,Sanskrit – रक्तापामार्ग, वृन्तफल, वशिर, मरकटपिप्पली, कपिपिप्पली,English – परपल प्रिंसेस (Purple princess), पाश्चुरवीड (Pastureweed), प्रोस्ट्रेट पाश्चुर वीड (Prostrate pasture weed),Kannada – उत्तरनी, कहते है |

 

# - सफेद अपामार्ग (लटजीरा) का औषधीय प्रयोग, प्रयोग की मात्रा और विधियां ये हैं-    

 

*# - दांत दर्द - अपामार्ग के 2-3 पत्तों के रस में रूई को डुबाकर फोया बना लें। इसे दांतों में लगाने से दांत का दर्द ठीक होता है।

 

*# - मुंह से दुर्गन्ध - अपामार्ग की ताजी जड़ से रोजाना दातून करने से दांत के दर्द तो ठीक होते ही हैं, साथ ही दाँतों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी, और मुंह से बदबू आने की परेशानी भी ठीक होती है। इससे दांत अच्छी तरह साफ होकर मोती से चमकने लग जाते हैं। 

 

*# - दांतों की मजबूती के लिए -  ( अनुभूत ) हमेशा अपामार्ग के तने से दातुन करने से । बहुत लाभ होता है । बहुत से लोगों के दांत वृद्धावस्था में कमजोर हो जाते हैं। इस दातुन से दांत की मजबूती बनी रहती है। अगर ताजा अपामार्ग नहीं मिलता है तो अपामार्ग के सूखे तने को पानी में भिगोकर दातुन कर सकते हैं।

 

*# - फोड़े-फुंसी व चर्मरोग - चर्म रोग में अपामार्ग (लटजीरा) से औषधीय गुण से लाभ मिलता है। इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी आदि चर्म रोग और गांठ के रोग ठीक होते हैं।

 

*# - मुंह के छाले - मुंह में छाले होने पर अपामार्ग (लटजीरा) के गुण फायदेमंद होते हैं। इसके लिए अपामार्ग के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करें। इससे मुंह के छाले की परेशानी ठीक होती है।

 

*# - भस्मक रोग - बहुत अधिक भूख लगने की बीमारी को भस्मक रोग कहते हैं। इसके उपचार के लिए अपामार्ग के बीजों के 3 ग्राम चूर्ण दिन में दो बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे अत्यधित भूख लगने की समस्या ठीक होती है।

 

*# - भस्मक रोग - अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बना लें। इसे खाने से अधिक भूख लगने की समस्या ठीक होती है।

 

*#- खीर का कमाल – ( टोटका ) अपमार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बना लें। इसकी एक कटोरी खीर  खाने से चालीस दिन तक भूख नही लगती है जो साधू चालीस दिन का चिल्ला खीचते है वह इस खीर का सेवन करते है |

 

*# - भूख कम करने के लिए - अपामार्ग के बीजों को खाने से भी अधिक भूख नहीं लगती है।

 

*# - भूख कम करने के लिए - अपामार्ग (लटजीरा) के बीजों को कूटकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें। इससे भी लाभ होता है।

 

 *# - आँख रोग - 2 ग्राम अपामार्ग की जड़ के रस में 2 चम्मच मधु मिलाएं। इसे 2-2 बूंद आंख में डालने से आंखों के रोग ठीक होते हैं।

*# - आँख रोग - आईफ्लू, आंखों के दर्द, आंख से पानी बहने, आंखें लाल होने, और रतौंधी आदि में अपामार्ग का इस्तेमाल करना उत्तम परिणाम देता है। अपामार्ग की जड़ को साफ कर लें। इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर गौ - दही के पानी के साथ तांबे के बर्तन में घिसें। इसे काजल की तरह लगाने से आंखों के रोग में लाभ होता है।

 

 *# -कटने व छिलने पर खून को रोकना - अपामार्ग के 2-3 पत्तों को हाथ से मसलकर रस निकाल लें। इस रस को कटने या छिलने वाले स्थान पर लगाएं। इससे खून बहना रुक जाता है।

*# - घाव – अपामार्ग , अश्वगंधा , काली मुसली , सुवर्चला तथा ककोल्यादी गण की ओषधियों के कल्क लेप करने से घाव जल्दी से भरता है |

*# - सद्य :छत – जिस स्थान पर चोट लगी हो तो अपामार्ग के पत्तो को हथेली से रगडकर रस को टपका देने से या पत्तो का लेप बनाकर लगाने से  बहता हुआ खून तुरंत रुक जाता है |

# - घाव व कीलक  -  अपामार्ग पंचांग भस्म को हरताल के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर लेप करने से घाव व शीशन कीलक में लाभ होता है |

*# - कंटक जन्य घाव – अपामार्ग के पंचाग के कल्क का लेप करने से बबूल कंटक जन्य घाव का रोपण होता है |

*# - नाडीव्रण – सज्जीखार ,सेंधानमक , चित्रक ,दन्ती भूम्यालकी मूल , श्वेतार्क , अपामार्ग बीज कल्क ,तथा गोमूत्र में सिद्ध तेल के लेप से नाडीव्रण का शीघ्र रोपण होता है |

*# - व्रण – व्रण में पाटन के बाद अपामार्ग बीज चूर्ण युक्त तिलकल्क  का लेप करना प्रशस्त है |

*# - शस्त्र छत – अपामार्ग मूल तथा जल से सिद्ध तेल शस्त्र जन्य छत का स्वेदन करने से पीड़ा का शमन होता है |

# - कटने व छिलने पर - अपामार्ग की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे कटने या छिलने वाले जगह पर लगाएं। इससे आराम मिलता है।

 

*# - घाव को सुखाने के लिए -  पुराने घाव हो गया हो तो अपामार्ग के रस के मलहम लगाएं। इससे घाव पकता नहीं है।

 

*# - घाव - अपामार्ग (लटजीरा) की जड़ को तिल के तेल में पकाकर छान लें। इसे घाव पर लगाएं। इससे घाव का दर्द कम हो जाता है। इससे घाव ठीक  भी हो जाता है।

 

*# - घाव को तुरंत ठीक करने के लिए - लगभग 50 ग्राम अपामार्ग के बीज में चौथाई भाग मधु मिला लें। इसे 50 ग्राम घी में अच्छी तरह पका लें। पकाने के बाद ठंडा करके घाव पर लेप करें। इससे घाव तुरंत ठीक हो जाता है।

 

*# - घाव -  जड़ का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से भी घाव ठीक होता है।

 

*# - घाव -  अपामार्ग , अमलतास , नीम की छाल आदि शोधन द्रव्यों से सिद्ध तेल का लेप करने से घाव

*# -  फोड़े फुंसियाँ व गांठे  -  ( अनुभूत ) अपामार्ग के पत्तो की पुल्टिस बनाकर बांधने से फोड़े फुंसियाँ व गांठे   ठीक होते है |

*# - खुजली - अपामार्ग (लटजीरा) पंचांग से काढ़ा बना लें। इसे जल में मिलाकर स्नान करने पर खुजली ठीक हो जाती है।

*# - दमा रोग -  दमा के इलाज के लिए अपामार्ग की जड़ चमत्कारिक रूप से काम करती है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से श्वसनतंत्र संबंधित विकारों में लाभ होता है।

 

*# - श्वास नली व बच्चो की छाती में जमा कफ -  लगभग 125 मिग्रा अपामार्ग क्षार में मधु मिलाएं। इसे सुबह और शाम चटाने से बच्चों की श्वास नली और छाती में जमा कफ निकल जाता है। बच्चों की खांसी ठीक होती है।

 

*# - बार बार खाँसी आना -  खांसी बार-बार परेशान करती है, और कफ नहीं निकल रहा है या फिर कफ गाढ़ा हो गया है तो अपामार्ग के सेवन से लाभ मिलता है। इस बीमारी में या न्यूमोनिया होने पर 125-250 मिग्रा अपामार्ग क्षार और 125-250 मिग्रा चीनी को 50 मिली गुनगुने जल में मिला लें। इसे सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में लाभ हो जाता है।

 

# - खाँसी -  6 मिली अपामार्ग की जड़  का चूर्ण बना लें। इसमें 7 काली मिर्च के चूर्ण को मिलाएं। सुबह-शाम ताजे जल के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।

 

*# - कुकुर खाँसी -  अपामार्ग (लटजीरा) पंचांग का भस्म बनाएं। 500 मिग्रा भस्म में शहद मिलाकर सेवन करने से कुक्कुर खांसी ठीक होती है।

 

*# -  बलगम वाली खाँसी -  बलगम वाली खासी को ठीक करने के लिए अपामार्ग की जड़ चमत्कारिक रूप से काम करती है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से खांसी ठीक हो जाती है।

 

*# - ठण्ड लगकर चड़ने वाला बुखार -  अपामार्ग (लटजीरा) के 10-20 पत्ते लें। इन्हें 5-10 नग काली मिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बना लें। बुखार आने से दो घंटे पहले 1-1 गोली लेने से ठंड लगकर आने वाला बुखार खत्म होता है।

 

*# - हैजा रोग -  2-3 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को दिन में 2-3 बार ठंडे जल के साथ सेवन करें। इससे हैजा ठीक होता है।

 

# -हेज़ा रोग - अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालें। इसमें थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से भी हैजा में लाभ मिलता है।

 

*# - पेट दर्द व पेट रोग -  20 ग्राम अपामार्ग पंचांग को 400 मिली पानी में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तब 500 मिग्रा नौसादर चूर्ण और 1 ग्राम काली मिर्च चूर्ण मिला लें। इसे  दिन में 3 बार सेवन करने से पेट के दर्द में राहत मिलती है। इससे पेट की अन्य बीमारी भी ठीक हो जाती है।

 

*# - पेट दर्द -  2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिरा) की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के दर्द ठीक होते हैं।

 

*# - खूनी बवासीर -  अपामार्ग की 6 पत्तियों और 5 नग काली मिर्च को जल के साथ पीस लें। इसे छानकर सुबह और शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है। इससे खून बहना रुक जाता है।

 

*# - बवासीर -  अपामार्ग के बीजों को कूट-छानकर महीन चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाएं। इसे 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें। इससे बवासीर में फायदा होता है।

 

# - वातपितज बवासीर -  10-20 ग्राम अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पीस-छान लें। इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाने से पित्तज या कफज विकारों के कारण होने वाले खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है।

 

*# -  गुर्दे की पथरी -  अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में पीस लें। इसे घोलकर पिलाने से पथरी की बीमारी में बहुत लाभ होता है। यह औषधि किडनी की पथरी को टुकडे-टुकड़े करके शरीर से बाहर निकाल देती है। किडनी में दर्द के लिए यह औषधि बहुत काम करती है।

 

*# - पित्त की थेली की पथरी – 50-60 मिलीग्राम अपामार्ग पंचांग क्वाथ को भोजन से पूर्व सेवन करने से पाचक रस में वृद्धि होकर शूल कम होता है , भोजन के 2-3 घंटे पश्चात अपामार्ग पंचाग का गर्म भोजन के 2-3 घंटे पश्चात अपामार्ग पंचाग का गर्म गर्म  50 -60 मिलीग्राम क्वाथ  पीने से अम्लता कम होती है ,तथा श्लेष्मा का शमन होता है , यकृत पर अच्छाप्रभाव होकर पित्तस्राव अधिक मात्रा में होता है , जिसके कारण पित्त की पथरी का शमन होता है |

*# - प्रसवोपरांत योनिदर्द -  अपामार्ग की जड़, पत्ते एवं तना को पीस लें। महिलाएं इसे प्रसव के बाद योनि में लेप के रूप में लगाएं। इससे योनि का दर्द ठीक होता है।

 

*# योनि दर्द व मासिक धर्म में रुकावट -  अपामार्ग की जड़ के रस से रूई को भिगोएं। इसे योनि में रखने से योनि के दर्द और मासिक धर्म की रुकावट खत्म होती है।

 

*# - प्रसव के कारण होने वाला दर्द -  अपामार्ग (चिरचिरा) और पुनर्नवा की जड़ को जल में घिसकर योनि में लेप करने से प्रसव के कारण होने वाला दर्द ठीक होता है।

 

*# - मासिक धर्म -  अपामार्ग (चिरचिरा) पंचांग के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म विकार ठीक होता है।

 

*# - मासिक धर्म की रुकावट - अपामार्ग की जड़ के रस से रूई को भिगोएं। इसे योनि में रखने से मासिक धर्म की रुकावट खत्म होती है।

 

*# - मासिक धर्म में खून न रुकना -  अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते और 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। अब इसे गाय के दूध में मिला लें। इसमें ही 20 मिली या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाने से  मासिक धर्म के दौरान अधिक खून बहने की परेशानी में लाभ होता है। इसे रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें।

 

*# - मासिक धर्म में रक्तस्राव -  अपामार्ग पंचांग के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव की समस्या ठीक होती है।

 

*# - मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्राव -  ( टोटका ) अपामार्ग के पत्ते के रस से सिर पर डालें, पत्ते के रस से योनि पर लेप करें। इससे अधिक रक्तस्राव की समस्या में तुरंत लाभ होता है।

 

*# - गर्भधारण -  अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव के कारण जो स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर पातीं हैं। वे अपामार्ग (चिरचिरा) के औषधीय गुण से लाभ ले सकती हैं। मासिक धर्म खत्म होने के बाद से इस दिव्य बूटी के 10 पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ लें। इसे गाय के 125 मिली दूध में पीसकर छान लें। इसका सेवन करें। ध्यान रखें कि यह उत्तम भूमि में उत्पन्न हुआ हो। इसे 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग अगर एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक 3 बार करें।

 

*# - गर्भाशय की गांठ व रसोली -  रसौली के इलाज में अपामार्ग के फायदे होते हैं। अपामार्ग के लगभग 10 ग्राम ताजे पत्ते एवं 5 ग्राम हरी दूब को पीस लें। इसे 60 मिली जल में मिलाकर छान लें। इसे गाय के 20 मिली दूध में मिलाकर पिलाएँ। इसमें इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह सात दिन तक पिलाएं। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित रूप से करें। इससे गर्भाशय में गांठ (रसौली) की बीमारी ठीक हो जाती है।

 

*# -सुखप्रसव –( टोटका )  महिलाएं प्रसव के समय भी अपामार्ग (चिरचिरा) का उपयोग कर लाभ ले सकती हैं। पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग में से किसी एक औषधि की जड़ को पीसकर नाभि और योनि पर लेप करें। इससे प्रसव में आसानी होती है।

 

*# - सुखप्रसव – ( टोटका ) प्रसव पीड़ा शुरू होने से पहले अपामार्ग की जड़ को एक धागे में बांधकर कमर पर बांधें। इससे प्रसव आसानी से होता है। ध्यान रखें कि प्रसव होते ही जड़ को हटा लें।

 

*# - सुखप्रसव – ( टोटका ) अपामार्ग की जड़, पत्ते एवं शाखाओं को पीस लें। इसे योनि पर लेप करने से सामान्य प्रसव में मदद मिलती है।

 

# प्रजनन रोग -  अपामार्ग के फूलों का पेस्ट बनाकर सेवन करें। इससे प्रजनन से जुड़े रोगों में लाभ होता है।

 

*# - लुयूकोरिया , श्वेत प्रदर -  अपामार्ग पंचांग के रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से ल्यूकोरिया ठीक होता है।

 

*# -  चेचक रोधक तिलक -  ( टोटका )  हल्दी और अपामार्ग की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इसे हाथों-पैरों के नाखूनों और सिर पर तिलक के रूप में लगायें । इससे चेचक नहीं निकलता है। यदि चेचक निकल आया हो तो अपामार्ग (चिरचिरा) की साफ जड़ को पीसकर फुन्सियों पर लगाने से शरीर की जलन शांत हो जाती है।

 

*# कुष्ठ रोग -  अपामार्ग के भस्म को सरसों के तेल में मिलाकर घाव पर लगाएं। इससे कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

 

# - कुष्ठ रोग -  अपामार्ग के रस में पिसे हुए मूली के बीज मिला लें। इसका लेप करने से कुष्ठ रोग में फायदा होता है।

 

*# - साइनस रोग -  सज्जीक्षार, सेंधा नमक, चित्रक, दंती, भूम्यामलकी की जड़, श्वेतार्क लें। इसके साथ ही अपामार्ग (चिरचिरा) बीज का पेस्ट और गोमूत्र लें। इसे तेल में पकाएँ। इसका लेप करने से साइनस जल्द ठीक हो जाता है।

 

*# - आधाशीशी - अपामार्ग के बीजों के चूर्ण को केवल सूंघने से आधासीसी (माइग्रेन) से आराम मिलता है । तथा  जमा हुआ कफ बाहर आना -  अपामार्ग के बीजो का चूर्ण सूंघने से मस्तिष्क के अन्दर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के जरिए निकल जाता है।

 

*# - कान की मवाद व बहरापन -   अपामार्ग (चिरचिरा) की साफ धोई हुई की जड़ का रस निकालें। इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर आग में पका लें। जब तेल केवल रह जाए तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल को गुनगुना करके रोज 2-3 बूंद कान में डालें। इससे बहरेपन की समस्या का इलाज होता है। इससे कान से मवाद बहना रुक जाता है।

 

*# - कान में आवाज आना व बहरापन -  अपामार्ग क्षार का घोल और अपामार्ग के पत्ते का पेस्ट बनाएं। इसमें चार गुना तिल के तेल मिलाएं। इसे पकाएं। इस तेल को 2-2 बूंद कान में डालने से बहरेपन का उपचार होता है। इससे कान के आवाज करने की परेशानी ठीक होती है।

 

# - जोड़ो का दर्द -  अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म कर लें। इन्हें जोड़ों पर बांधें। इससे जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है।

 

*# - जोड़ो का दर्द व गांठ व फोड़े फुंसियाँ  -  जोड़ों के दर्द के साथ-साथ फोड़े-फुन्सी या गांठ वाली जगह पर अपामार्ग (चिरचिरा) के पत्ते पीसकर लेप करने से गांठ धीरे-धीरे दूर हो जाता है।

 

# - जोड़ो का दर्द -  अपामार्ग की जड़ को पीस लें। इसे जोड़ों के दर्द वाले स्थान पर लगाएं। इससे  आराम मिलता है |

 

# - कमर दर्द व जोड़ो का दर्द -  अपामार्ग की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिलीग्राम का  सेवन करें। इससे कमर दर्द और जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है।

 

# - अजीर्ण  -   भोजन उचित तरह से नहीं पचने के कारण भी वजन बढ़ता है। अपामार्ग में दीपन-पाचन गुण होता है। यह भोजन को पचाने में मदद करता है। इससे शरीर के वजन को कम करने में मदद मिलती है। 10-30 मिली ग्राम अपामार्ग पंचांग क्वाथ  का सेवन करने से लाभ होता है |

 

 #  अस्थमा - वात एवं कफ दोष असंतुलित होने के कारण अस्था जैसी बीमारी होती है। अपामार्ग छार  को मधु के साथ सेवन करने से वात और कफ दोषों को संतुलित करने का गुण है। इससे अस्थमा में भी फायदा होता है।

 

*# - विषदंश -  ततैया, बिच्छू और अन्य जहरीले कीड़ों के काटने वाले स्थान पर अपामार्ग (चिरचिरा) पत्ते के रस लगा दें। इससे जहर उतर जाता है।

 

*# - कीटदंश -  अपामार्ग के 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बना लें। इसे कीड़े के काटने वाले स्थान पर लगाएं। इससे घाव बढ़ता नहीं है।

 

* # - सर्पदंश – दंश स्थान को रक्त अपामार्ग पत्र क्वाथ से धोने से विष का प्रभाव का उपशमन हो जाता है |

# - लाल अपामार्ग के निम्न फायदे हैंः-

# - भूख बढ़ाने के लिए -  भूख बढ़ाने में लाल अपामार्ग (चिरचिरा) के औषधीय गुण फायदेमंद होते हैं। लाल अपामार्ग की जड़ या पंचांग का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली मात्रा में काढ़ा का सेवन करें। इससे भूख बढ़ती है।  

 

*# - कब्ज रोग -  1-2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिरा) के तने और पत्ते के चूर्ण का सेवन करने से कब्ज की बीमारी ठीक होती है।

 

*# - पेशाब का रुक-रुक कर आना -  लाल अपामार्ग के पत्ते से बने 10-30 मिली काढ़ा में चीनी मिला लें। इसका सेवन करने से मूत्र रोग जैसे पेशाब में दर्द होना और पेशाब का रुक-रुक कर आने की परेशानी ठीक होती है।

 

# - पेचिश -  लाल अपामार्ग की जड़ या पंचांग का काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पेचिश और हैजा रोग में लाभ होता है।

 

*# - प्रमेह पीडिका – अपामार्ग पत्र से निर्मित कल्क का लेप करने से प्रमेह पीडिका का शमन होता है | 

# - आप अपामार्ग का इस्तेमाल इतनी मात्रा में कर सकते हैं-  ,रस- 10-20 मिली, जड़ का चूर्ण- 3-6 ग्राम,बीज- 3 ग्राम, क्षार- 1/2-2 ग्राम |

अपामार्ग (चिरचिरा) से यह नुकसान हो सकता है-

 

# - पाचनतंत्र विकार वाले रोगियों को अपामार्ग (चिरचिरा) का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।

 

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