Sunday 13 July 2014

२०- गौसंहिता - गोबर , गोमय

२०- गौसंहिता
 ़़़़़़़़़गोबर,,गोमय ़़़़़़़़़़

१. अपाने सर्वतीर्थानी गोमुत्रे जाहृनवी स्वंय ।
अष्टएैश्वर्यमयी लक्ष्मी गोमय वसते सदा ।।

अथार्त - गाय के मुख से निकली श्वास सभी तीर्थों के समान पवित्र होती है ।तथा गौमूत्र में सदा गंगा जी का वास रहता है ।और आठ एैश्वर्यों से सम्पन्न लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है ।

२. तृणं चरन्ती अमृतं क्षरन्ती :- गायमाता घास चरती है और अमृत की वर्षा करती है तथा गाय का गोबर देह पर लगाकर शरीर शुद्ध करते समय हमारे धर्म-कर्म में महत्व अधिक रहता है।इसलिए धर्मशास्त्र में गौ के गोबर को उच्च स्थान प्राप्त है ।गोबर को सारे शरीर पर मलकर धूप में बैठने से खाज ,खुजली आदि त्वचा रोग नष्ट हो जाते है ।

३. हमारे प्रायश्िचत विधान में पञ्चगव्य( गोबर,गोमूत्र ,दूग्ध ,दही,घी )सेवन का बड़ा मैहत्व बताया गया है । जैसे अग्नि में ईंधन जल जाता है ,से ही पञ्चगव्य प्राशन से पाप के दूषित संस्कार नष्ट हो जाते है ।गोबर रोगों के कीटाणु और गन्ध को दूर करने में अद्वितीय है ।

४. छोटे बच्चों को संस्पर्श के रोग से मुक्त करने के लिए गोबर का तिलक देने की प्रथा है ।भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा में गोबर के भस्म से मूर्ति का मार्जन किया जाता है तथा उिच्छष्ठ स्थान को शुद्ध करने के लिए ,गोबर का चौका लगाया जाता है ।

५. मृतगर्भ ( पेट में मरा हूआ बच्चा ) बाहर निकालने के लिए गोमय (गोबर का रस) ७ तोला,गौदूग्ध में मिलाकर पिलाना चाहिए । बच्चा आराम से बाहर आ जायेगा ।और गोबर को उबालकर लेप करने से गठियारोग दूर होता है ।

६. पसीना बंद करने के लिए सुखाये हुए गोबर और नमक के पुराने मिट्टी के बर्तन इन दोनो के चूर्ण का शरीर पर लेप करना चाहिए ।और गुदाभ्रंश के लिए गोबर गर्म करके सेंक करना चाहिए ।और खुजली के लिए गोबर शरीर में लगाकर गरम पानी से स्नान करना चाहिए ।

७. शीतला माता के फूट निकले छालों पर गाय के गोबर को सुखाकर जलाकर राख को कपडें में छानकर उससे भर दें ।इसपर यही श्रेष्ठ उपाय है ।और साधारण व्रण (घाव) के ऊपर घी में राख मिलाकर लेप करना चाहिए ।गाय के ताजे गोबर की गन्ध से बूखार एंव मलेरिया रोगाणु का नाश होता है ( डा़़. बिग्रेड,इटली )

८. पेट में छोटे -छोटे कीडे हुए हो तो ,गोबर की सफेद राख २ तोला लेकर १० तोला पानी मिलाकर ,पानी कपडें में छान लें । तीन दिन तक सुबह - शाम यही पानी पीलायें ।और रतौंधी में ताजे गोमय को लेकर के आँख में आँजने से दस दिन में राेग से छुटकारा हो जायेगा ।

९. दाँत की दुर्गन्ध,जन्तु और मसूडें के दर्द पर गाय के गोबर को जलावें ,जब उसका धुआं निकल जायें तब उसे पानी में डालकर बुझा लें ,सुख जाने पर चूर्ण बनाकर कपडछान कर लें ,इस मंजन से प्रतिदिन दाँत साफ़ करने से दाँत के सब रोग नष्ट हो जाते है ।

१०. आयुर्वेदानुसार गाय के सूखे गोबर पावडर से धूम्रपान करने से दमे, श्वास के रोगी ठीक होते है ।और हैजा के कीटाणु से बचने के लिए शुद्ध पानी में गोबर घोल कर छानकर पीने से कीटाणुओं से बचाव होता है और हैजा से मुक्त रहते है ।(डा.किंग.मद्रास) ।


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