दाद ( खोंडा ) रोग-
कारण व लक्षण - यह रोग छोटे- छोटे दूध पीते बछड़े व बछडियों को अधिक होता है । जो बच्चे तंग, गन्दी और सुविधाजनक जगह में रहते हैं । सुर्य की धूप और ताज़ी हवा से वंचित रहने से यह रोग होता है । रोगी बच्चों के शरीर पर गोल- गोल चकत्ते पड़ जाते हैं । चकत्तों का रंग काला होता हैं । यह रोग अक्सर गर्दन से मुँह और कान पर शुरू होता है ।
१ - औषधि - मीठे तैल में पूरी और भांजियाँ बनायें । कढ़ाई का जला हुआ तैल रोगी बछड़ों को रोग - स्थान पर दिन में एक बार , अच्छा होने तक , लगायें । आराम अवश्य होगा ।
२ - औषधि - करंज का तैल ९६ ग्राम , गंधक ३० ग्राम , गन्धक को बारीक पीसकर , तैल में मिलाकर , रोग - ग्रस्त स्थान पर , अच्छा होने तक लगायें ।
३ - औषधि - करंज का तैल ९६ ग्राम , गन्धक ३६ ग्राम , नीला थोथा १२ ग्राम , सबको बारीक पीसकर , तैल में मिलाकर , रोग- ग्रस्त स्थान पर सुबह ,आराम होने तक लगायें।
टोटका -:-
४ - औषधि - रविवार के दिन सुबह रोगी पशु के बायें कान में सुई द्वारा काला धागा डालकर बाँध दिया जाय । तथा बछड़ों को सुबह १० बजे तक और शाम को ३ बजे से धूप में ,रोग समाप्त होने तक ,नियमित बाँधने पर , यह रोग अक्सर समाप्त हो जाता हो जाता है ।
२ - चैपा या चर्मरोग
कारण व लक्षण - गोवंश में यह रोग होता है ,उनके शरीर पर दाग से बन जाते है । यह एक प्रकार का चर्मरोग होता है ।
१ - औषधि - संफेद फिटकरी फूला ( फिटकरी को तवें के ऊपर भून ले ) ५०० ग्राम , बाबची १०० ग्राम , शतावर १०० ग्राम , सौँफ १०० ग्राम , अनार दाना १०० ग्राम , कूटपीसकर , ताज़े पानी से ५० ग्राम , रोज़ दिन में एक बार ठीक होने तक देते रहे । और ध्यान रहे की नमक का परहेज़ कराना चाहिऐ ।
३ - खुजली रोग
कारण व लक्षण - अक्सर देखने में आता है कि इस रोग में पशु के गले के बाल उड़ जाते है । गला छिदा- छिदा हो जाता है ।पशु किसी वृक्ष अथवा दीवार से गला रगड़ता हुआ नज़र आता है । यह रोग एक प्रकार के बारीक जन्तुओं से होता है और समय पाकर पुरे शरीर में फैल जाता है ।
१ - औषधि - मैनसिल ६० ग्राम , गन्धक १२० ग्राम , भिलावा २० नग, गाय का घी ४८० ग्राम , पहले इन सब चीज़ों को अलग - अलग पत्थर पर पीस लें । एक चीज को पीसने के बाद हाथ धोकर , फिर दूसरी चीज दूसरे पत्थर पर पीसें । फिर हाथ धोकर तीसरा,तीसरे पत्थर पर पीसें । इस प्रकार सबको अलग - अलग पीसना चाहिए । ऐसा न करने पर आग लग जाती है । भिलावें को भी अधकचरा कूट लेना चाहिए । बाद में इन्हें घी में पकना चाहिए । इसके लिए गाँव या शहर के बाहर कोई एकान्त स्थान चुनना चाहिए । इसका धुँआँ ज़हरीला होता है , इसलिए धुएँ से ख़ुद बचना चाहिए । पकाने के लिए गोबर के कण्डो का उपयोग करना चाहिए ।
मरहम बनाने की विधी -:- पहले लगभग १ किलोवाला मिट्टी का नया बर्तन लेकर उसमें घी डाल देना चाहिए । फिर गरम होने के बाद उसमें पहले मैनसिल , फिर गन्धक क्रमश: डालना चाहिए । अन्त में भिलावा डाल देना चाहिए । ध्यान रहे पकाते समय धुँआ शरीर को न लगने पाये । दवा हिलाने के लिए लकड़ी का एक लम्बा डंडा और बर्तन पकड़ने के लिए एक लम्बी सडासी का उपयोग करना चाहिए । मरहम बनाते समय बर्तन में जब हरे रंग का धुँआँ निकलने लगे तो उसे उठाकर पास में पानी भरें ( लगभग २० लीटरपानी का भोगना होना चाहिए ) भगोने में उँड़ेल देना चाहिए । जब मरहम ठन्डा हो जाय तो उसे हथेली से उठाकर, किसी बोतल में भर लिया जाय । रोगी पशु को दिन में दोपहर के समय धूप में इस मरहम की मालिश की जाय । पशु को मरहम चाटने नहीं देना चाहिए । अगर वह चाटने की कोशिश करें तो उसका मुँह बाँध देना चाहिए । उक्त मरहम का मनुष्य और कुत्ते पर भी प्रयोग किया जा सकता है ।
# - मनुष्य पर प्रयोग करने के बाद उस व्यक्ति को एक घंटे बाद गोबर से फिर साबुन से नहलाया जाय ।
आलोक -:- इस दवा को बनाने में अगर किसी व्यक्ति को असावधानी के कारण हानि पहुँचे तो उसका लेखक जवाबदार नहीं है ।इसे बनाते समय बहुत अधिक सावधानी बरतनी चाहिए ।
२ - औषधि - शु्द्ध गन्धक २४ ग्राम , गाय का दूध ९६० ग्राम , गाय का घी ६० ग्राम , पहले गन्धक को महीन पीसकर घी में पका लें । बाद में उसके दूध मिलायें । फिर रोगी पशु को रोज़ सुबह आठ दिन तक इसे पिलायें । जिस पशु को यह रोग हो जाये , उसे अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए ।
३ - औषधि - गाय का गरम गोबर या तुरन्त का गरम मूत्र में से कोई एक खुजली पर लगाये तो मनुष्य , पशु और कुत्ते , बकरी की बिमारी भी ठीक हो जायेगी ।
कारण व लक्षण - यह रोग छोटे- छोटे दूध पीते बछड़े व बछडियों को अधिक होता है । जो बच्चे तंग, गन्दी और सुविधाजनक जगह में रहते हैं । सुर्य की धूप और ताज़ी हवा से वंचित रहने से यह रोग होता है । रोगी बच्चों के शरीर पर गोल- गोल चकत्ते पड़ जाते हैं । चकत्तों का रंग काला होता हैं । यह रोग अक्सर गर्दन से मुँह और कान पर शुरू होता है ।
१ - औषधि - मीठे तैल में पूरी और भांजियाँ बनायें । कढ़ाई का जला हुआ तैल रोगी बछड़ों को रोग - स्थान पर दिन में एक बार , अच्छा होने तक , लगायें । आराम अवश्य होगा ।
२ - औषधि - करंज का तैल ९६ ग्राम , गंधक ३० ग्राम , गन्धक को बारीक पीसकर , तैल में मिलाकर , रोग - ग्रस्त स्थान पर , अच्छा होने तक लगायें ।
३ - औषधि - करंज का तैल ९६ ग्राम , गन्धक ३६ ग्राम , नीला थोथा १२ ग्राम , सबको बारीक पीसकर , तैल में मिलाकर , रोग- ग्रस्त स्थान पर सुबह ,आराम होने तक लगायें।
टोटका -:-
४ - औषधि - रविवार के दिन सुबह रोगी पशु के बायें कान में सुई द्वारा काला धागा डालकर बाँध दिया जाय । तथा बछड़ों को सुबह १० बजे तक और शाम को ३ बजे से धूप में ,रोग समाप्त होने तक ,नियमित बाँधने पर , यह रोग अक्सर समाप्त हो जाता हो जाता है ।
२ - चैपा या चर्मरोग
कारण व लक्षण - गोवंश में यह रोग होता है ,उनके शरीर पर दाग से बन जाते है । यह एक प्रकार का चर्मरोग होता है ।
१ - औषधि - संफेद फिटकरी फूला ( फिटकरी को तवें के ऊपर भून ले ) ५०० ग्राम , बाबची १०० ग्राम , शतावर १०० ग्राम , सौँफ १०० ग्राम , अनार दाना १०० ग्राम , कूटपीसकर , ताज़े पानी से ५० ग्राम , रोज़ दिन में एक बार ठीक होने तक देते रहे । और ध्यान रहे की नमक का परहेज़ कराना चाहिऐ ।
३ - खुजली रोग
कारण व लक्षण - अक्सर देखने में आता है कि इस रोग में पशु के गले के बाल उड़ जाते है । गला छिदा- छिदा हो जाता है ।पशु किसी वृक्ष अथवा दीवार से गला रगड़ता हुआ नज़र आता है । यह रोग एक प्रकार के बारीक जन्तुओं से होता है और समय पाकर पुरे शरीर में फैल जाता है ।
१ - औषधि - मैनसिल ६० ग्राम , गन्धक १२० ग्राम , भिलावा २० नग, गाय का घी ४८० ग्राम , पहले इन सब चीज़ों को अलग - अलग पत्थर पर पीस लें । एक चीज को पीसने के बाद हाथ धोकर , फिर दूसरी चीज दूसरे पत्थर पर पीसें । फिर हाथ धोकर तीसरा,तीसरे पत्थर पर पीसें । इस प्रकार सबको अलग - अलग पीसना चाहिए । ऐसा न करने पर आग लग जाती है । भिलावें को भी अधकचरा कूट लेना चाहिए । बाद में इन्हें घी में पकना चाहिए । इसके लिए गाँव या शहर के बाहर कोई एकान्त स्थान चुनना चाहिए । इसका धुँआँ ज़हरीला होता है , इसलिए धुएँ से ख़ुद बचना चाहिए । पकाने के लिए गोबर के कण्डो का उपयोग करना चाहिए ।
मरहम बनाने की विधी -:- पहले लगभग १ किलोवाला मिट्टी का नया बर्तन लेकर उसमें घी डाल देना चाहिए । फिर गरम होने के बाद उसमें पहले मैनसिल , फिर गन्धक क्रमश: डालना चाहिए । अन्त में भिलावा डाल देना चाहिए । ध्यान रहे पकाते समय धुँआ शरीर को न लगने पाये । दवा हिलाने के लिए लकड़ी का एक लम्बा डंडा और बर्तन पकड़ने के लिए एक लम्बी सडासी का उपयोग करना चाहिए । मरहम बनाते समय बर्तन में जब हरे रंग का धुँआँ निकलने लगे तो उसे उठाकर पास में पानी भरें ( लगभग २० लीटरपानी का भोगना होना चाहिए ) भगोने में उँड़ेल देना चाहिए । जब मरहम ठन्डा हो जाय तो उसे हथेली से उठाकर, किसी बोतल में भर लिया जाय । रोगी पशु को दिन में दोपहर के समय धूप में इस मरहम की मालिश की जाय । पशु को मरहम चाटने नहीं देना चाहिए । अगर वह चाटने की कोशिश करें तो उसका मुँह बाँध देना चाहिए । उक्त मरहम का मनुष्य और कुत्ते पर भी प्रयोग किया जा सकता है ।
# - मनुष्य पर प्रयोग करने के बाद उस व्यक्ति को एक घंटे बाद गोबर से फिर साबुन से नहलाया जाय ।
आलोक -:- इस दवा को बनाने में अगर किसी व्यक्ति को असावधानी के कारण हानि पहुँचे तो उसका लेखक जवाबदार नहीं है ।इसे बनाते समय बहुत अधिक सावधानी बरतनी चाहिए ।
२ - औषधि - शु्द्ध गन्धक २४ ग्राम , गाय का दूध ९६० ग्राम , गाय का घी ६० ग्राम , पहले गन्धक को महीन पीसकर घी में पका लें । बाद में उसके दूध मिलायें । फिर रोगी पशु को रोज़ सुबह आठ दिन तक इसे पिलायें । जिस पशु को यह रोग हो जाये , उसे अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए ।
३ - औषधि - गाय का गरम गोबर या तुरन्त का गरम मूत्र में से कोई एक खुजली पर लगाये तो मनुष्य , पशु और कुत्ते , बकरी की बिमारी भी ठीक हो जायेगी ।
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