कारण व लक्षण -
दिमाग़ में गर्मी के प्रवेश अथवा पशु की अतिशय पिटाई से उसके दिमाग़ में दाहकता होने लगती हैं । पशु बेहद शिथिल हो जाता हैं । तन्द्रा आना नेत्रों मे नशीलापन व झपकी- सी रहना तथा प्यास की अधिकता होना इस रोग के प्रधान लक्षण है । इस रोग का प्रभाव यह होता हैं कि पशु उन्मत हो जाता हैं ।
उपयोगी औषधि -
१ - गाय का दूध आधा शेर , अरण्डी का तेल आधा शेर , दोनों को मिलाकर पिलाने से लाभ होता हैं ।
२ - पशु की नाक,कान,आँख में बरगद की पत्तियों के रस की ६-६ बूँद डालने से लाभ होता हैं ।
३ - गाय का या बकरी का दूध १ लीटर , गाय का घी २०० ग्राम , मिलाकर पिलाने से मस्तिक की गर्मी शान्त होती हैं तथा रोगी पशु चुस्ती- फुर्ती का अनुभव करने लगता हैं ।
४ - सोंठ पाउडर २० ग्राम ,शुद्ध सरसों का तेल २५० ग्राम , मिलाकर रोगी पशु को पिलाने से लाभदायक होता हैं । पशु की शारीरिक क्षमता व उम्र के हिसाब से दवा की खुराक कम- बत्ती कर सकते हैं ।
नोट- पशु को हल्का साफ़-सुथरा व सुपाच्य चारा खिलाते रहना चाहिए ।
दिमाग़ में गर्मी के प्रवेश अथवा पशु की अतिशय पिटाई से उसके दिमाग़ में दाहकता होने लगती हैं । पशु बेहद शिथिल हो जाता हैं । तन्द्रा आना नेत्रों मे नशीलापन व झपकी- सी रहना तथा प्यास की अधिकता होना इस रोग के प्रधान लक्षण है । इस रोग का प्रभाव यह होता हैं कि पशु उन्मत हो जाता हैं ।
उपयोगी औषधि -
१ - गाय का दूध आधा शेर , अरण्डी का तेल आधा शेर , दोनों को मिलाकर पिलाने से लाभ होता हैं ।
२ - पशु की नाक,कान,आँख में बरगद की पत्तियों के रस की ६-६ बूँद डालने से लाभ होता हैं ।
३ - गाय का या बकरी का दूध १ लीटर , गाय का घी २०० ग्राम , मिलाकर पिलाने से मस्तिक की गर्मी शान्त होती हैं तथा रोगी पशु चुस्ती- फुर्ती का अनुभव करने लगता हैं ।
४ - सोंठ पाउडर २० ग्राम ,शुद्ध सरसों का तेल २५० ग्राम , मिलाकर रोगी पशु को पिलाने से लाभदायक होता हैं । पशु की शारीरिक क्षमता व उम्र के हिसाब से दवा की खुराक कम- बत्ती कर सकते हैं ।
नोट- पशु को हल्का साफ़-सुथरा व सुपाच्य चारा खिलाते रहना चाहिए ।
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