Saturday 12 March 2022

रामबाण  योग 137

इंद्रायण, Colocynth (कोलोसिन्थ), Bitter apple (बिटर एपॅल)  

 

इन्द्रायण का प्रयोग भारतवर्ष में अत्यन्त प्राचीनकाल से किया जा रहा है। चरक व सुश्रुत-संहिता में इसका उल्लेख कई स्थानों पर प्राप्त होता है। इसके फल को कब्ज के उपचार के लिए तीक्ष्ण विरेचनार्थ प्रयोग किया जाता है। यह पैत्तिक विकार, बुखार और पक्वाशय के कृमियों पर विशेष उपयोगी है। इसकी जड़ का प्रयोग जलोदर, कामला (पीलिया), आमवात (गठिया) एवं मूत्र सम्बन्धी बीमारियों पर विशेष लाभकारी माना गया है। आयुर्वेद में इंद्रायण का प्रयोग अनगिनत बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसकी तीन जातियां पाई जाती हैं :  1. छोटी इन्द्रायण, 2. बड़ी इन्द्रायण एवं 3. जंगली इन्द्रायण। यह एक ऐसा हर्ब हैं जहां हर प्रकार के इन्द्रायण में 50-100 तक फल लगते हैं। ऐसे अजीब अनजाने हर्ब के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं-

 

इन्द्रायण का वानास्पतिक नाम Citrullus colocynthis (Linn.) Schrad. (सिटुलस् कोलोसिन्थिस्) Syn-Cucumis colocynthis Linnहोता है। इसका कुल Cucurbitaceae (कुकुरबिटेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Colocynth (कोलोसिन्थ), Bitter apple (बिटर एपॅल)कहते हैं। Sanskrit-इन्द्रवारुणी, चित्रा, गवाक्षी, गवादनी, वारुणी Hindi-इनारुन, इन्द्रायण, इन्द्रायन, इन्द्रारुन, गोरूम्ब; Urdu-इद्रायण (Indrayan); कहते है |

 

 इंद्रायण - इंद्रायण प्रकृति से तीव्र रेचक, कटु, तीखा, गर्म, लघु, सर, पित्तकफ से आराम दिलाने वाला, कामला या पीलिया, प्लीहारोग, पेट के रोग, सांस संबंधी समस्या, खांसी, कुष्ठ, गुल्म या वायु का गोला, गांठ, व्रण या घाव, प्रमेह या डायबिटीज, विषरोग, मूढ़गर्भ (Obstructed labour), गलगण्ड या कंठमाला, आनाह (Flatulence), अपची, दुष्टोदर, पाण्डु (Anaemia), आमदोष या गठिया, कृमि, अश्मरी या पथरी, ज्वर तथा श्लीपद (Filaria) आदि बीमारियों में लाभप्रद होता है। इसके जड़ एवं पत्ते कड़वे होते हैं। इसका फल तीखे, सूजन को कम करने वाला, प्रतिविष, विरेचक, कृमि को निकालने में मददगार, रक्त को शुद्ध करने वाला, कफनिसारक, मधुमेह यानि डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक, बुखार से कष्ट से निदान दिलाने में मददगार होता है।

 

# - जंगली इंद्रायण - जंगली इन्द्रायण प्रकृति से कड़वा, तीखा, वात को कम करने वाला, पित्तकारक, दीपन (Stomachic) तथा रुचिकारक होती है। इसकी मूल या जड़  वामक या उल्टी एवं विरेचक होती है। इसकी फलमज्जा तिक्त, कृमिनाशक, ज्वरघ्न, कफनिसारक, यकृत् के लिए बलकारक,एवं विरेचक होती है। इसके बीज शीतल होते हैं।

 

# - लाल इंद्रायण ( बड़ी इंद्रायण ) - यह कटु या कड़वा, तिक्त या तीखा, गर्म, लघु, कफपित्तशामक तथा सारक होता है। इसका प्रयोग कण्ठरोग, कामला या पीलिया, प्लीहा  स्प्लीन रोग, पेट के रोग, श्वास या सांस संबंधी समस्या, कास, कुष्ठ, गुल्म, ग्रन्थि (Grandular swelling), व्रण, प्रमेह, मूढगर्भ(Obstructed labour), आमदोष तथा श्लीपद  (Filaria) आदि की चिकित्सा में किया जाता है।

 

*# - केश कृष्णीकरनार्थ , बाल सफेद होना – ( टोटका ) आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण का सबसे ज्यादा प्रभाव बालों पर पड़ता है, जिसके कारण असमय ही बाल सफेद हो जाते हैं। इंद्रायण में पौष्टिकारक गुण होता है, इन्द्रायण बीज के तेल को सिर पर लगाने से अथवा 3-5 ग्राम इन्द्रायण बीज चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से केश काले हो जाते हैं।

 

*# - सिर दर्द -  दिन भर के तनाव के कारण सिर में दर्द होता है तो इन्द्रायण फल के रस या जड़ के छाल को तिल के तेल में उबालकर, तेल को मस्तक पर मलने से मस्तक पीड़ा या बार-बार होने वाले सिरदर्द का शमन होकर आराम मिलता है।

 

*# - बहरापन  -  इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर, छानकर 2-4 बूँद कान में टपकाने से बाधिर्य (बहरेपन) में लाभप्रद होता है।

 

*# - कान के घाव -   लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल तेल के साथ गर्म करके कर्णपाली व्रण (कान का घाव) पर लगाने से घाव के जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।

 

*# - बच्चों के दांतों के कीड़े – ( टोटका )  बच्चों में दांत में कीड़ा होने की समस्या ज्यादा होती हैं। इसके परेशानी से मुक्ति पाने के लिए इन्द्रायण के पके हुए फल की धूनी (दाँतों में) देने से दाँतों के कीड़े मर जाते हैं।

 

*# - मुहं रोग -  इन्द्रायण तथा पटोल आदि द्रव्यों से पटोलादि काढ़े से गरारा (कवल) करने से अथवा 10-20 मिली पटोलादि काढ़े में मधु मिलाकर सेवन करने से मुखरोगों में लाभ होता है।

 

*# - कास , खाँसी रोग -  इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें काली मिर्च भरकर छेद बंद कर धूप में सूखने के लिए रख दें या आग के पास भूभल (गर्म राख या बालू) में कुछ दिन तक पड़ा रहने दें, फिर फल से काली मिर्च निकालकर फल फेंक दें। काली मिर्च के 5 दाने प्रतिदिन मधु तथा पीपल के साथ सेवन करने से खाँसी में लाभ होता है।

 

*# - श्वास रोग -  ( टोटका ) अगर सांस संबंधी समस्या से परेशान हैं तो इन्द्रायण फल को सुखाकर चिलम में रखकर पीने से सांस लेने में आसानी होती है।

 

# - पेट रोग -  इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट के बीमारियों में लाभ पहुँचाता है।

 

*# - पेचिस व पेट दर्द -  इन्द्रायण के फल में सेंधानमक और अजवायन भर कर धूप में सुखा लें। अजवायन को गर्म जल के साथ सेवन करने से विसूचिका, पेचिश तथा पेटदर्द का शमन  करता है।

 

# - पेचिस रोग -  इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म जल के साथ या 2-5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ खाने से पेचिश में लाभ मिलता है।

 

*# - आँतों के कीड़े – ( टोटका ) इन्द्रायण फल के गूदे को पीसकर गर्म करके पेट पर बांधने से आंत के कीड़े मर जाते हैं।

 

*# - विरेचनार्थ -  इन्द्रायण की फल मज्जा को पानी में उबालकर उसके बाद उसको छानकर गाढ़ा करके उसकी छोटी-छोटी चने के बराबर गोलियां बना लें। 1-2 गोली को ठंडे गाय के दूध के साथ लेने से सुबह विरेचन यानि पेट खाली हो जाता है।

 

# - जलोदर -  इन्द्रायण फल के गूदे में बकरी का दूध मिलाकर पूरी रात रखा रहने दें। सुबह इस दूध में थोड़ी-सी खाण्ड मिलाकर रोगी को पिला दें। कुछ दिन तक पिलाने से जलोदर में लाभ होता है।

 

# - मूत्रकृच्छ  -  इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीस-छानकर, 5-10 मिली की मात्रा में आवश्यकतानुसार पिलाने से मूत्रकृच्छ्र (मूत्र की रुकावट) में लाभ होता है।

 

# - मूत्रकृच्छ -   लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला, सभी को मिलाकर काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़े में शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से मूत्र करते वक्त दर्द होना या रूक रूक कर होने की परेशानी में लाभ मिलता है।

 

*# - स्तनशोथ , स्तनों की सूजन – ( टोटका ) अगर किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण स्तन में सूजन आ गई है तो इन्द्रायण जड़ को पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन के सूजन से आराम मिलता है।

 

# - मासिक विकार -  इन्द्रवारुणी ( इंद्रायण ) के बीज 3 ग्राम तथा 5 नग काली मिर्च, दोनों को पीसकर 200 मिली जल में काढ़ा बना लें। जब चौथाई जल शेष रह जाए तब छानकर पिलाने से मासिकविकारों में लाभ होता है।

 

*# - योनिशूल -  ( टोटका ) इन्द्रायण के जड़ को पीसकर योनि में लेप करने से योनि के दर्द से जल्दी आराम पाने में मदद मिलती है।

 

# - उपदंश , सूजाक -  100 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 500 मिली अरंडी के तेल में पकाकर रख लें। 15 मिली तेल को गाय के दूध के साथ दिन में दो बार पिलाने से उपदंश आदि रोगों में लाभ होता हैं। तेल को शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें और प्रयोग करें।

 

*# - उपदंश वातज वेदना -   इन्द्रायण मूल टुकड़ों को पांच गुने पानी में उबालें, जब तीन हिस्से पानी शेष रह जाए तब छानकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पिलाने से उपदंश और वातज वेदना में आराम मिलता है।

 

 # - उपदंश , सूजाक -  त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ तीनों का काढ़ा बनाकर 30 मिली की मात्रा में दिन में दो बार पीने से सूजाक में लाभ होता है।

 

*# - सुखप्रसव -  ( टोटका ) इन्द्रायण की जड़ों को पीसकर गाय के घी में मिलाकर, भग (योनिच्छद) में लगाने से सुखपूर्व प्रसव हो जाता है।

 

*# सुख प्रसव – ( टोटका )  इंद्रायण फल स्वरस में रुई का फोहा भिगोकर प्रसूता की योनि में रखने से सुखपूर्वक प्रसव होता है |

 

*# - प्रसूता स्त्री के बढ़े हुए पेट को कम करने हेतु – ( टोटका )  इन्द्रायण की जड़ों को पीसकर प्रसूता स्त्री के बढ़े हुए पेट पर लेप करने से पेट अपनी जगह पर आ जाता है।

 

# - संधिगत वायु ( गठिया रोग )  -  इन्द्रायण की जड़ और पीपल के समान मात्रा के चूर्ण को गुड़ में मिलाकर 2-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से संधिगत वात से आराम मिलता है।

 

*# -  गठिया रोग  -  इन्द्रायण की 100 ग्राम फलमज्जा में 10 ग्राम हल्दी तथा  सेंधानमक डालकर बारीक पीस लें। जब पानी सूख जाए तो चौथाई ग्राम (250 मिग्रा) की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम गाय के दूध के साथ देने से गठिया से जकड़ा हुआ रोगी जिसको ज्यादा से ज्यादा सूजन तथा दर्द हो, थोड़े ही दिनों में अच्छा होकर चलने-फिरने लगता है।

 

 

*# -नासाव्रण , निनाई ( नाक के फोड़े-फुंशी ) -  इंद्रायण का औषधीय गुण फोड़ों के इलाज में लाभकारी होता है। सर्दी-गर्मी से नाक में फोड़े हो जाते हैं, जिनमें से सड़ा हुआ पीप निकलता हो, उन पर इंद्रायण फल को पीसकर नारियल तेल के साथ मिलाकर लगाने से लाभ होता है। इसके अलावा लाल इन्द्रायण और बड़ी इन्द्रायण की जड़ दोनों को बराबर पीसकर लेप बनाकर विद्रधि या फोड़े पर लगाने से लाभ होता है।

 

*# - विद्रधि ( बालतोड़ ) -  लाल इंद्रायण की जड़ और बड़ी इंद्रायण की जड़ दोनों को बराबर पीसकर लेप बनाकर दुष्ट विद्रधि पर लगाने से लाभ होता है | 

 

*# - विचर्चिका या खुजली -  इन्द्रायण फल का पेस्ट करके कमजोर यानि जीर्ण तथा तीव्र विचर्चिका या छाजन (खुजली) में लाभ होता है।

 

*# - अपस्मार , मिर्गी – ( टोटका ) इन्द्रायण मूल चूर्ण को नाक में नस्य लेने से (दिन में तीन बार) अपस्मार या मिर्गी में लाभ होता है।

 

*# - मानसिक रोग -  विशाला ( बड़ी इंद्रायण ) के सम्यक पक्व फलों के चूर्ण को भलीभांति प्रकार गोमूत्र से भावित कर नस्य लेने से मानस रोगों में लाभ होता है |

 

*# - प्लेग रोग -  इन्द्रायण मूल की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती हैं) (यथासंभव सबसे निचली या सातवें नम्बर की लें), ठंडे पानी से घिसकर प्लेग की गांठ पर दिन में दो बार लगाएं और डेढ़ से तीन ग्राम तक उसे पिलाना भी चाहिए। इस प्रयोग से लाभ होता है।

 

*# - बुखार -  इन्द्रायण के जड़ के चूर्ण में सर्षप तेल मिलाकर शरीर पर मालिश या उद्वर्तन करने से बुखार का शमन होकर  आराम मिलता है।

 

 

*# - वृश्चिक दंश -  6 ग्राम इन्द्रायण फल का सेवन करने से बिच्छू के काटने से वेदना तथा जलन आदि विषाक्त प्रभावों से आराम मिलता है।

 

*# - सर्पदंश जन्य विषाक्त प्रभावों -   3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण के मूल चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंशजन्य वेदना तथा दाह आदि विषाक्त प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा इन्द्रायण पत्ते के रस (5 मिली) एवं जड़ के काढ़ा (10-30 मिली) का सेवन करने से सर्पदंश जन्य विषाक्त प्रभावों से आराम मिलता है।

 

*# - सर्पदंशजन्य विषाक्त प्रभाव – इंद्रायण पत्र स्वरस 5 मिली एवम इंद्रायण मूल क्वाथ 10-20 मिली का सेवन करने से सर्पदंश जन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है |

 

*# - आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है-पत्ता,जड़,फल और बीज।

 

# - यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए इंद्रायण का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो 0.125-0.5 ग्राम फल का चूर्ण या 1 ग्राम जड़ का चूर्ण ले सकते हैं।

 

# - निषेध -  गर्भिणी, स्त्रियों, बच्चों एवं दुर्बल व्यक्तियों में इसका प्रयोग यथा संभव नहीं अथवा सतर्कता से करना चाहिए।

 

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