Thursday 3 March 2022

रामबाण –132

आर्तगल ( वनोंकरा )-

 

आर्तगल नाम शायद ही किसी ने सुना होगा। इसको हिन्दी में वनोकरा कहते हैं। आयुर्वेद में वनोकरा का प्रयोग मूल रूप से त्वचा संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा भी यह कई और बीमारियों में फायदेमंद होता है। चलिये इस विरल पौधे के बारे में आगे विस्तार से जानते हैं।  आर्तगल उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों तथा हिमालय क्षेत्रों में 1500 मी की ऊँचाई पर पाया जाता है। इसका प्रयोग त्वचा संबंधी रोगों, सिरदर्द, बुखार, सर्दी-खांसी, अल्सर जैसे अनेक बीमारियों में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

 

आर्तगल का वानास्पतिक नाम Xanthium strumarium L. (जैन्थियम स्ट्रूमेरियम) Syn-Xanthium abyssinicum Wall., Xanthium americanum Walter होता है। इसका कुल  Asteraceae (ऐस्टरेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Cocklebur (कॉकलबर) कहते हैं। Sanskrit-आर्तगल नीलाम्लान, नीलपुष्पा

Hindi-वनोकरा (Banokra); 

English-क्लॉटबर (Clotbur), ब्रॉड कॉकलेबर (Broad cocklebur), लार्ज कॉक्लेबर (Large cocklebur), बर वीड (Burweed); कहते है |

 

आर्तगल का पञ्चाङ्ग कड़वा, शरीर को शुद्ध करने वाला, अवसाद को कम करने वाला, तीखा, कफ और वात को कम करने वाला होता है। यह कुष्ठ, दर्द, खुजली, व्रण या घाव, शोफ (Dropsy) तथा त्वचा संबंधी बीमारियों  में लाभप्रद होता है। इसका प्रयोग कफ संबंधी रोगों, बुखार, मोटापा, सिरदर्द, गुल्म (Tumor) तथा भीतरी विद्रधि (abscess)की चिकित्सा में किया जाता है। आर्तगल के फूल शीत प्रकृति के होते हैं। आर्तगल के पत्ते स्तम्भक, मूत्रल तथा फिरङ्गरोधी (सिफिलिस को रोकने वाला) होते हैं। आर्तगल की जड़ कड़वी , कमजोरी दूर करने वाली , घाव, रोमकूप में सूजन तथा विद्रधि (abscess) को ठीक करने वाली होती है। आर्तगल में पौष्टिकारक गुण होते हैं|

 

*# - हर्पीज जोस्टर -  अगर हर्पिज़ के दर्द और जलन से परेशान हैं तो आर्तगल को पत्ते और जड़ को पीसकर उसका लेप घाव पर लगाने से जल्दी आराम मिलता है।

 

*# - फोड़े-फुंसी -  अक्सर फोड़े-फूंसी किसी बीमारी के वजह से सूखने का नाम नहीं लेते हैं तब आर्तगल का इलाज फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके जड़ और पत्ते का लेप घाव पर लगाने से जल्दी सूखने लगता है।

 

# - सिफलिस - आर्तगल रोग के फल और फूल को पीसकर उसका शरबत बनाकर पिलाने से सिफिलिस रोग में फायदा मिलता है। 

 

# - झाईयां - *आर्तगल के कोमल फल तथा पत्तियों को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की झांईयां दूर होती हैं तथा रोमकूप के सूजन पर लगाने से रोमकूप का सूजन धीरे-धीरे कम होने लगता है। 

 

*# - मूत्रदाह व मूत्राशय की पथरी – आर्तगल पञ्चाङ्ग (10-20 मिली) के सेवन से अनेक मूत्रदाह, मूत्रकृच्छ्र तथा मूत्राश्मरी आदि मूत्र संबंधित बीमारियों तथा श्वेत प्रदर (सफेद पानी) में लाभ प्राप्त होता है।

 

*# - बच्चों के पेट के कीड़े -   अगर बच्चा कृमि के कारण परेशान है तो आर्तगल के 1 चम्मच ताजे पत्र-स्वरस को पानी में मिलाकर पिलाने से उदरकृमियां दूर होती हैं।

 

# - मात्रा - 10-20 मिली आर्तगल पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर इसका सेवन करने से जीर्ण विषमज्वर में लाभ होता है।

 

# -आयुर्वेद के अनुसार आर्तगल  का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है- पत्ता, पञ्चाङ्ग,जड़ ,बीज,फल।

 

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