Tuesday, 1 June 2021

रामबाण योग :- 105 -:

रामबाण योग :- 105 -:

बिल्व ( बेल पत्थर ) -

बेल के पेड़ (bilva tree) के बारे में तो आप जानते ही होंगे। बेल का प्रयोग कई तरह के काम में किया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव-पार्वती की पूजा के लिए बेल का उपयोग किया जाता है। अनेक लोग बेल का शर्बत भी बहुत पसंद से पीते हैं। इसके अलावा भी बेल का इस्तेमाल कई कामों में किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार बेल के अनगिनत फायदे हैं जिसके कारण औषधि के रूप इसका प्रयोग किया जाता है। बेल कई रोगों की रोकथाम कर सकता है तो कई रोगों को ठीक करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। आप कफ-वात विकार,बदहजमी, दस्त, मूत्र रोग, पेचिश, डायबिटीज, ल्यूकोरिया में बेल के फायदे ले सकते हैं। इसके अलावा पेट दर्द, ह्रदय विकार, पीलिया, बुखरा, आंखों के रोग आदि में भी बेल के सेवन से लाभ मिलता है। बेल (bael tree) बहुत ही पुराना वृक्ष है। भारतीय ग्रंथों में इसे दिव्य वृक्ष कहा गया है। इस वृक्ष में लगे हुए पुराने पीले पड़े हुए फल, एक साल के बाद पुनः हरे हो जाते हैं। इसके पत्तों को तोड़कर रखेंगे तो 6 महीने तक ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इस वृक्ष की छाया ठंडक देती है और स्वस्थ बनाती है। बेल का पेड़ मध्यमाकार, और कांटों से युक्त होता है। इसके तने की छाल मुलायम, हल्के भूरे रंग से पीले रंग की होती है। नई शाखाएं हरे रंग की, और टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इसका पत्ता हरे रंग का होता है, और पत्तों के आगे का भाग नुकीला और सुगन्धित होता है।इसके फूल हरे और सफेद रंग के होते हैं। इसके फल गोलाकार, अण्डाकार, भूरे या पीले रंग के होते हैं। फल के छिलके कठोर और चिकने होते हैं। इसके बीज 10-15 के समूह में छोटे, सफेद एवं चिकने होते हैं। बेल के पेड़ में फूल और फलकाल फरवरी से जुलाई तक होता है। बेल का वानास्पतिक नाम Aegle marmelos (Linn.) Corr. (एगलि मारमेलोस) Syn-Crateva marmelos Linn है। यह Rutaceae (रूटेसी) कुल का है। Sanskrit-बिल्व, शाण्डिल्य, शैलूष, मालूर, श्रीफल, कण्टकी, सदाफल, महाकपित्थ, ग्रन्थिल, गोहरीतकी, मङ्गल्य, मालूर, त्रिशिख, अतिमङ्गल्य, महाफल, हृद्यगन्ध, शौल्य, शैलके पत्ते, के पत्तेश्रेष्ठ, त्रिके पत्ते, गन्धके पत्ते, लक्ष्मीफल, गन्धफल, दुरारुह, त्रिशाखके पत्ते, शिवम्, सत्यफल, सुनीतिक, समीरसार, सत्यधर्म, सितानन, नीलमल्लिक, पीतफल,सोमहरीतकी, असितानन, कंटक, वातसार, सत्यकर्मा; Hindi-बेल, श्रीफल, कहते है ।

#- सिरदर्द - बेल की सूखी हुई जड़ को थोड़े जल के साथ गाढ़ा पीस लें। इसके पत्ते का पेस्ट बना लें। इसे मस्तक पर लेप करने से सिर दर्द से आराम मिलता है।

#- सिरदर्द - एक कपड़े को बिल्व के पत्ते के रस में डूबोएं। यह पट्टी सिर पर रखने से सिर दर्द में लाभ होगा।


#- जूएँ - बेल के पके फल को दो भागों में तोड़ लें। इसके अन्दर का मज्जा निकाल लें। एक भाग में तिल का तेल, तथा कपूर डाल लें। दूसरे भाग से पहले वाले को ढक दें। इस तेल को सिर में लगाने से जूं खत्म हो जाता है।


#- आँख रोग - बेल के पत्तों पर गाय का घी लगाकर आंखों को सेकें। इसके साथ ही आंखों पर पट्टी बांधें। आप इसके पत्तों के रस को आंखों में डालने से, या इसका लेप लगाने से आंखों के रोग दूर होते हैं। इससे लाभ होता है।
 
#- रतौंधी,नेत्ररोग - दस ग्राम ताजे बेल के पत्तों को 7 नग काली मिर्च के साथ पीस लें। इसे 100 मिली जल में छान लें। इसमें 25 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर सुबह-शाम पिएं। रात में बेल के पत्ते को जल में भिगो दें। इस जल से सुबह आंखों को धोएं।

#- नेत्ररोग - 10 मिली बेल के पत्ते के रस, 6 ग्राम गाय का घी, और 1 ग्राम कपूर को तांबे की कटोरी में इतना रगड़ें कि काला सुरमा बन जाए। इसे आंखों में लगाएं। इसके साथ ही सुबह गौमूत्र से आंखों को धोएं। इससे लाभ होता है।
 
#- बहरापन,कर्णरोग - बेल के कोमल पत्तों को स्वस्थ गाय के मूत्र में पीस लें। इसमें चार गुना तिल का तेल, तथा 16 गुना बकरी का दूध मिलाकर धीमी आग में पकाएं।  इसे रोज कानों में डालने से बहरापन, सनसनाहट (कानों में आवाज आना), कानों की खुश्की, और खुजली आदि समस्याएं दूर होती हैं।
 
#- श्वास, टी. बी रोग - बेल की जड़, अड़ूसा के पत्ते तथा नागफनी और थूहर के पके सूखे हुए फल 4-4 भाग लें। इसके साथ ही सोंठ, काली मिर्च पिप्पली 1-1 भाग लें। इन्हें कूट लें। इसके 20 ग्राम मिश्रण को लेकर आधा ली जल में पकाए। जप पानी एक चौथाई रह जाए तो सुबह और शाम शहद के साथ सेवन कराने से टीबी रोग में लाभ होता है।


#- हृदयशूल - 5-10 मिली बेल के पत्ते के रस में गाय का घी 5 ग्राम मिलाकर चटायें।


#- उदरशूल - 10 ग्राम बेल के पत्ते, तथा 7 नग काली मिर्च पीसकर, उसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर शर्बत बना लें। इसे दिन में 3 बार पिलाएं।

#- उदरशूल - बेल, एरंड, चित्रक की जड़, और सोंठ को एक साथ कूट लें। इसका काढ़ा बना लें। इसमें थोड़ी सी भुनी हुई हींग, तथा सेंधा नमक 1 ग्राम बुरक लें। 20-25 मिली की मात्रा में पिलाने से पेट दर्द ठीक होता है। इन द्रव्यों का पेस्ट बनाकर गर्म करके पेट पर लगाने से भी लाभ होता है।


#- दाह - 20 ग्राम बेल के पत्ते को 500 मिली जल में 3 घंटे तक डुबोकर रखें। हर 2 घंटे पर 20-20 मिली यह जल पिलाएं। इससे शरीर की जलन ठीक होती है।

#- छाती की जलन - छाती में जलन हो तो पत्तों को जल के साथ पीस छान लें। इसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाएं।

#- उदररोग - 10 मिली बेल के पत्ते रस में काली मिर्च तथा सेंधा नमक 1-1 ग्राम मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करें।
 
#- मंदाग्नि - भूख ना लगने, तथा पाचन-शक्ति कमजोर हो जाने पर, बेलगिरी चूर्ण, छोटी पिप्पली, वंशलोचन मिश्री 2-2 ग्राम लें। इसमें 10 मिली तक अदरक का रस, और थोड़ा जल मिलाकर आग पर पकाएं। गाढ़ा हो जाने पर दिन में 4 बार चटाएं।

#- मंदाग्नि - बेलगिरी चूर्ण 100 ग्राम, और अदरक 20 ग्राम को पीस लें। इसमें थोड़ी शक्कर (50 ग्राम), और इलायचीमिलाकर चूर्ण कर लें। सुबह-शाम भोजन के बाद आधा चम्मच गुनगुने जल से लें। इससे आवं का पाचन ठीक होता है, और भूख बढ़ती है।

#- मंदाग्नि - पके हुए बेल फल का सेवन करने से ज्वर ,पाचन शक्ति ठीक होती है।


#- संग्रहणी - 10 ग्राम बेलगिरी चूर्ण, 6-6 ग्राम सोंठ चूर्ण, और पुराने गुड़ को खरल कर लें। इसे दिन में तीन या चार बार गौतक्र ( छाछ )के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सेवन कराएं। भोजन में केवल छाछ दें।

#- संग्रहणी - बेलगिरी और कुटज की छाल का चूर्ण बना लें। इसे 10 से 20 ग्राम तक रात के समय 150 मिली जल में भिगो लें। सुबह इसे मसलकर छान लें, और पिएं।

#- संग्रहणी,पेचिश रोग - कच्चे बेल को आग में सेंक लें। इसमें 10 से 20 ग्राम गूदे में थोड़ी शक्कर और शहद मिलाकर पेचिश रोग में सेवन कराएं।
 
#- दस्त - बेल (bael tree) के कच्चे फल को आग में सेंक लें। 10 से 20 ग्राम गूदे को मिश्री के साथ दिन में 3-4 बार खिलाने से आमातिसार, दस्त में लाभ होता है।

#- दस्त - 50 ग्राम बेल की सूखी गिरी, तथा 20 ग्राम सफेद कत्थे के महीन चूर्ण में 100 ग्राम मिश्री मिला लें। इसकी 1.5 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार सेवन करें। सब प्रकार अतिसारों में रोक लगती है।

#- अतिसार - 200 ग्राम बेलगिरी को 4 लीटर जल में पका लें। जब जल 1 लीटर रह जाये तो छान लें। इसमें 100 ग्राम मिश्री मिलाकर बोतल में भरकर रख लें। इसको 10 या 20 मिली की मात्रा में, 500 मिग्रा भुनी हुई सोंठ मिला लें। इसका सेवन करने से, 2 या 3 बार में ही सब प्रकार के अतिसारों ( दस्त ) (अगर दस्त बहुत हो रहा हो तो 65 मिग्रा अफीम मिला लें) में  लाभ होता है।

#- गर्भवती के दस्त - गर्भवती स्त्री को दस्त होने पर 10 ग्राम बेलगिरी के पाउडर को चावल के धोवन के साथ पीस लें। इसमें थोड़ी मिश्री मिला लें। इसे दिन में 2-3 बार देने से लाभ होता है। 

#- रंगयुक्त दस्त - 5 ग्राम बेलगिरी को सौंफ के अर्क में घिसकर, दिन में 3-4 बार देने से बालक को दें। इससे हरे तथा पीले रंगयुक्त दस्त ठीक हो जाते हैं।

#- दस्त - बेलगिरी पलाश का गोंद लें। इनकी 1-1 ग्राम मात्रा को 2 ग्राम मिश्री के साथ थोड़े जल में खरल कर लें। इसे धीमी आग पर गाढ़ा कर चाटने से दस्त में लाभ होता है।

#- दस्त - बेल का मुरब्बा खिलाने से दस्त में लाभ होता है। पेट के सभी रोगों के लिए बेल का मुरब्बा फायदेमंद है।

#- पुराना दस्त - बेल के कच्चे, और साबुत फल को भून लें। इसे छिलके सहित कूटकर रस निकाल लें। इसमें मिश्री मिलाकर लेने से पुराना दस्त मिटता है। यह प्रयोग दिन में एक या दो बार लगातार 10-15 दिन तक करें।

#- दस्त - बेलगिरी, कत्था, आम की गुठली की मींगी, ईसबगोल की भूसी, और बादाम की मींगी लें। बराबर मात्रा में सभी सामान लें और इसमें शक्कर या मिश्री के साथ 3-4 चम्मच मिलाकर सेवन करें। इससे जीर्णअतिसार , आमातिसार तथा प्रवाहिका व दस्त की गंभीर समस्या में लाभ होता है।

#- दस्त - बेलगिरी और आम की गुठली की मींगी को बराबर मात्रा में पीस लें। इसे 2 से 4 ग्राम तक चावल के मांड के साथ, या शीतल जल के साथ सुबह और शाम सेवन करें। दस्त में यह अत्यन्त निरापद प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली है।

#- रक्तातिसार,पेचिश - बेलगिरी के 50 ग्राम गूदे को 20 मिली गुड़ के साथ दिन में तीन बार खाने से पेचिश में लाभ होता है।

#- दस्त - चावल के 20 ग्राम धोवन में बेलगिरी चूर्ण 2 ग्राम, और मुलेठी चूर्ण 1 ग्राम को पीस लें। इसे 3-3 ग्राम शक्कर, और शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन कराने से दस्त में लाभ होता है।

#- अतिसार, दस्त - बेलगिरी और धनिया 1-1 भाग लें। इन्हें दो भाग मिश्री में मिलाकर चूर्ण बना लें। 2-6 ग्राम मात्रा में ताजा जल से सुबह और शाम सेवन करें। इससे दस्त में लाभ होता है।

#- अतिसार,दस्त - कच्चे बेल (bael tree) को कंडे की आग में भूनें। जब छिलका बिल्कुल काला हो जाय, तब भीतर का गूदा निकालकर 10 से 20 ग्राम तक दिन में तीन बार मिश्री मिला सेवन कराएं।
 
#- तृषा,वमन,दाह,कोष्बद्धता,मंदाग्नि - बेल के पके फल के गूदे को ठंडे जल में मसलकर, छान लें। इसमें मिश्री, इलायची, लौंग, काली मिर्च तथा थोड़ा कपूर मिलाकर शर्बत बना लें। इसे पीने से प्यास, जलन, उल्टी, कब्ज और पाचन विकार ठीक होते हैं। जिन्हें कब्ज की शिकायत हो, वे इसे भोजन के साथ लें।

#- कब्जरोग,दाह - 100 ग्राम गूदे को मसल लें। उसमें इमली के पानी के साथ थोड़ी शक्कर या गौदधि ( दही ) के साथ शक्कर मिलाकर पिएं। इससे कब्ज और शरीर की जलन में लाभ होता है।


#- विसुचिका ,हैज़ा - आम की मींगी और बेलगिरी को 10-10 ग्राम लेकर कूट लें। इसे 500 मिली जल में पकाएं। 100 मिली शेष रहने पर शहद और मिश्री मिलाकर 5 से 20 मिली तक आवश्यकतानुसार पिलाएं। इससे उल्टी और दस्त में लाभ होता है।

#- विसुचिका , हैज़ा - बेलगिरी और गिलोय (1-4 ग्राम) को कूटकर आधा लीटर जल में पकाएं। 250 मिली शेष रहने पर छानकर थोड़ा-थोड़ा पिलाएं। यदि हैजा गंभीर हो तो इस काढ़ा में जायफल, कपूर, और छुहारा मिलाकर काढ़ा बनाएं। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पिलाएं।


#- जलोदर - 20-25 मिली बेल के रस में छोटी पिप्पली चूर्ण एक या डेढ़ ग्राम मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।


#- पिलिया, एनीमिया - 10-30 मिली बेल के पत्ते के रस में आधा ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। सुबह शाम सेवन कराने से पीलिया और एनीमिया रोग में लाभ होता है।
 
#- यकृतप्लीहा शोथ ( सूजन ) - बेल के पत्ते के रस को गर्म कर लेप करने से सूजन में लाभ होता है।


#- मधुमेह - 10-20 ग्राम बेल के ताजे पत्तों (bael leaves) को पीस लें। उसमें 5-7 काली मिर्च भी मिलाकर पानी के साथ सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।

#- मधुमेह - रोज सुबह 10 मिली बिल्व (बेल) के पत्ते के रस का सेवन भी गुणकारी है।

#- मधुमेह - बेल के पत्ते, हल्दी, गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला लें। इनकी 6-6 की मात्रा में लेकर कूटें। इन्हें 250 मिली जल में रात को कांच या मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। सुबह खूब मसल, छान लें। इसकी 125 मिली मात्रा सुबह और शाम 2-3 माह तक सेवन करें। इससे मधुमेह में लाभ होता है।


#- मधुमेह - 10-10 नग बेल के पत्ते, और नीम के पत्ते, तथा 5 नग तुलसी के पत्ते को पीसकर गोली बना लें। इसे सुबह रोज जल के साथ सेवन करें।
 
#- बहुमूत्र,मूत्ररोग - 10 ग्राम बेलगिरी, तथा 5 ग्राम सोंठ को, कूट कर 400 मिली जल में काढ़ा बना लें। इसे सुबह-शाम सेवन कराने से 5 दिन में मूत्र रोग में लाभ होता है।
 
#- श्वेतप्रदर - बेल के पत्ते के रस में शहद मिलाकर सुबह शाम सेवन कराने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
 
#- फोड़-फुन्सियां - बेल की जड़ या लकड़ी को जल में पीसकर उत्पन्न फोड़े-पुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
 
#- कीटदंश - कीटों के काटने पर या आग से जड़ने पर बेल के ताजे पत्तों के रस को बार-बार लगाने से लाभ होता है।
 
#- चेचक रोग - चेचक की बीमारी में, जब शरीर में बहुत जलन और बेचैनी हो, तो बिल्व के पत्ते के रस में मिश्री मिलाकर पिलाएं। इसके साथ ही बेल के पत्तों का पंखा बनाकर हवा दें। रोगी को विशेष लाभ मिलता है।
 
#- वीर्य विकार - केवल बेलगिरी के चूर्ण को मिश्री मिले हुए गाय के दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी, शारीरिक कमजोरी तथा वीर्य की कमजोरी दूर होती है।

#- धातुरोग ( धातरोग ) - 3 ग्राम बिल्व के पत्तों (bael leaves) के चूर्ण में थोड़ा शहद मिलाकर, सुबह-शाम नियमित सेवन करने से धातु रोग में लाभ होता है।

#- शारीरिक दौर्बल्य - 20-25 मिली बिल्व के पत्ते के रस में 6 ग्राम जीरक चूर्ण, 20 ग्राम मिश्री, तथा 100 मिली गाय का दूध मिला लें। इसे पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।

#- शारीरिक दौर्बल्य - बेलगिरी, असगंध, और मिश्री का बराबर मात्रा में चूर्ण बना लें। इसके चौथाई भाग में उत्तम केशर का चूरा मिला लें। 4 ग्राम तक सुबह और शाम खाकर, ऊपर से गाय के गर्म दूध पीने से शारीरिक कमजोरी में लाभ होता है।

#- शारीरिक दौर्बल्य - बेल को सुखा लें। इसके गूदे का महीन चूर्ण बना लें। इसे थोड़ी मात्रा में रोज सुबह और शाम सेवन करें। इससे कमजोरी दूर होती है।


#- दौर्गन्ध्य - बेल के पत्ते के रस को शरीर में लगाकर स्नान करने से शरीर की बदबू दूर होती है।

#- रक्तार्श - बेलगिरी चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर , 4 ग्राम तक शीतल जल के साथ सेवन कराने से रक्तार्श ( ख़ूनी बवासीर ) में शीघ्र लाभ होता है।

#- रक्तार्श - बवासीर के रोगी के मस्सों में विशेष वेदना हो तो बिल्व मूल का क्वाथ तैयार कर सुहाते- सुहाते क्वाथ में रोगी को बैठाने से शीघ्र ही वेदना दूर होती है।

#- मूत्रकृच्छ - बेल के ताज़े फल के गूद्दा को पीसकर गाय के दूध के साथ छानकर उसमें चीनी पावडर मिलाकर पिलाने से पुराने से पुराने मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

#- मूत्ररोग - बेल के कोमल ताज़े पत्र ,श्वेत ज़ीरा 3 ग्राम और मिश्री 6 ग्राम को एक साथ पीसकर बेलकल्क को खाकर ऊपर से जल पीने से 6 या 7 दिन में पूर्ण लाभ होता है। इससे मूत्र के अनेक प्रकार के विकार दूर होते है।

#- मूत्रदाह - 20-25 ग्राम बेलमूल को रात्रि में कूटकर , 500 मिलीग्राम जल में भिगोकर , सुबह- सायं मसलकर ,छानकर मिश्री मिलाकर पीएँ , मूत्रदाह , कष्ट आदि की शिकायत दूर होती है।

#- मूत्ररोग - 25 ग्राम बेल की जड़ , 25 ग्राम अम्लतास की जड़ को कूटकर 500 मिलीग्राम जल में पकाएँ । 125 मिलीग्राम शेष रहने पर प्रात:काल सेवन कराने से 3 दिन में पूरा लाभ होता है। साथ ही बिल्वमूल क्वाथ की उत्तरबस्ति भी दें।

#- अग्निदग्ध - अग्निदग्ध पर बेल के ताज़े पत्तों को पीसकर उनका रस निकालकर बार-बार लगाने से लाभ होता है।

#- कीटदंश - पर बेल के ताज़े पत्तों को पीसकर उनका रस निकालकर बार-बार लगाने से लाभ होता है।

#- व्रण - बेल के पत्तों को बिना जल के पीसकर टिकिया बनाकर व्रण पर बाँधने से लाभ होता है।

#- गलगण्ड - बेल के पत्तों को बिना जल के पीसकर टिकिया बनाकर गलगण्ड पर बाँधने से लाभ होता है।

#- नारू रोग -बेल के पत्तों को बिना जल के पीसकर टिकिया बनाकर नारू पर बाँधने से लाभ होता है ।

#- फोड़े-फुन्सियां - बेल पत्तों को पीसकर , पुल्टीस बनाकर फोड़ो पर बाँधने से अति शीघ्र लाभ होता है।

#- अपच - बेल के पत्तों की पुलटीश , पत्ररस या क्वाथ से प्रक्षालन तथा साथ ही नित्य 25मिलीग्राम पत्रस्वरस का दिन में 3 बार सेवन करने से भयंकर व्रण भी ठीक हो जाता है।

#- गलगण्ड -बेल के पत्तों की पुलटीश , पत्ररस या क्वाथ से प्रक्षालन तथा साथ ही नित्य 25मिलीग्राम पत्रस्वरस का दिन में 3 बार सेवन करने से भयंकर व्रण भी ठीक हो जाता है। ।

#- व्रण - बेल के पत्तों की पुलटीश , पत्ररस या क्वाथ से प्रक्षालन तथा साथ ही नित्य 25मिलीग्राम पत्रस्वरस का दिन में 3 बार सेवन करने से भयंकर व्रण भी ठीक हो जाता है।

#- वातज्वर - बिल्व , अरणी , गम्भारी, श्योनाक तथा पायल, इनकी जड़ की छाल , गलियों , आँवला तथा धनिया को समभाग लेकर क्वाथ बनाकर प्रात:काल सायं 20-20 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है ।

#- यकृतशूल - 10 मिलीग्राम बेलपत्रस्वरस में 1 ग्राम सेंधानमक मिलाकर दिन में 3 बार पिलाने से यकृत शूलमें लाभ होता है।

#- ज्वरातिसार - मिश्री , राल, आँवला, धाय के फूल तथा बिल्व के चूर्ण 1-5 ग्राम को पोस्त डोडे के साथ देने से ज्वरातिसार का शमन होता है।
 



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