रामबाण योग :- 113 -:
छोटी अरणी
-
अरणी
दो
प्रकार
की
होती
है
,
छोटी
और
बड़ी।
छोटी
अरणी
के
औषधीय
गुण
बहुत
सारे
बीमारियों
के
इलाज
के
लिए
इस्तेमाल
किये
जाते
हैं।
छोटी
अरणी
की
सब्जी
और
चटनी
भी
बनाई
जाती
है।
आयुर्वेद
में
अरणी
का
महत्व
इसके
औषधीय
गुणों
के
कारण
है।
जैसा
कि
पहले
की
कहा
गया
है
कि
अरणी
बड़ी
और
छोटी
दो
प्रकार
के
होती
हैं।
छोटी
तथा
बड़ी
दोनों
प्रकार
की
अरणी
वीर्य
और
रस
में
प्राय
:
समान
गुण
वाले
होते
हैं।
छोटी
अरणी
के
पत्ते
सुगंधित
होते
हैं
इसलिए
खाने
में
उपयोग
करने
के
साथ
-
साथ
औषध
बनाने
में
भी
इसका
प्रयोग
किया
जाता
है।
अरणी का वानास्पतिक नाम Clerodendrum phlomidis L. f. (क्लीरोडेनड्रम् फ्लोमाइडिस)Syn-Volkameriamultiflora Burm.f है। इसका कुल Verbenaceae (वर्बीनेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Wind killer (विन्ड किलर)कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि अरणी और किन-किन नामों से जाना जाती है।
Sanskrit-
क्षुद्राग्निमंथ
,
लघुंथ
,
अरणिका
,
अग्निमंथिनी
;
Hindi-
टेकार
,
उरनी
,
अरणी
लघु
,
तर्कारी
,
छोटी
अरणी
; कहते है।
छोटी अरणी के रस में मधुर,कड़वा, तिक्त होता है और विपाक में कड़वा होता है। वीर्य में गर्म, लघु, दीपन तथा वात-कफ को कम करने वाली होती है। इसका प्रयोग सूजन, पाण्डु या पीलिया, अग्निमांद्य या बदहजमी, विबन्ध या कब्ज, वज़न बढ़ने, सिरदर्द, गुल्म या एसिडिटी, आभ्यन्तर-विद्रधि (पेट के भीतर का घाव) तथा आध्मान (Flatulance) की चिकित्सा में किया जाता है। छोटी अरणी का शाक-सामान्यत गर्म, मधुर, तिक्त रसयुक्त तथा वात का कम करने वाला होता है। अरणी देखने में छोटा होता है लेकिन आयुर्वेद में इसके पौष्टिकता और औषधीय गुणों के कारण उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
#- कान दर्द - अगर कान में दर्द से परेशान रहते हैं तो बेल, एरण्ड, तर्कारी (अरणी लघु), बांस के बीज आदि द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर, 300 मिली आरनाल (काञ्जी) में पकाकर नाड़ीस्वेद करने से वातकफ के कारण होने वाले कान दर्द से राहत मिलती है।
#-कर्णशूल व कर्णपूय -अरणी, नीम तथा धतूरे के पत्तों का रस निकालकर बराबर मात्रा में तिल या सरसों के तेल में पकाकर तेल तैयार होने पर छानकर रखें। इसे 2-4 बूंद कान में डालने से कर्ण पीड़ा, कर्णपूय व कर्णशूल में अत्यन्त लाभ होता है। पूर्ण लाभ होने तक नियमित इसका प्रयोग करें।
#- कानदर्द - अरणी के पत्तों को पीसकर रस निकाल लें। इस रस को गुनगुना करके 2-4 बूंद कानों में डालने से भी कान दर्द आदि समस्याओं से राहत मिलती है।
#- प्रतिशयाय , जुकाम - ( पोटली ) चोरपुष्पी (चोरक), छोटी अरणी की छाल, बालवच, जीरा तथा कलौंजी को कूटकर, चूर्ण बनाकर छानकर रख लें। पोटली में बांधकर सूंघने से प्रतिश्याय को दूर करने में मदद करता है।
#- श्वासरोग आदि - छोटी अरणी के पत्ते को पीसकर रस निकालकर 5-10 मिली मात्रा में सुबह-शाम पीने से सांस संबंधी कष्ट में लाभ होता है।
#- डायबिटीज - छोटी अरणी के पत्ते को पीसकर रस निकालकर 5-10 मिली मात्रा में सुबह-शाम पीने से में लाभ होता है।
#- अरूचि , अपच - छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस अथवा 10 मिली जड़ से बने काढ़े को पिलाने से अरुचि, अजीर्ण,अपच में लाभ होता है।
#- आध्मान- छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस अथवा 10 मिली जड़ से बने काढ़े को पिलाने से अध्मान, अफारा में लाभ होता है।
#- अतिसार या दस्त - छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस अथवा 10 मिली जड़ से बने काढ़े को पिलाने से दस्त,अतिसार मे लाभ होता है।
#- पेट के कृमियों - छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस अथवा 10 मिली जड़ से बने काढ़े को पिलाने से पेट के कृमियों के इलाज में मदद करता है।
#- उदर विकार,वातज गुल्म - छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस अथवा 10 मिली जड़ से बने काढ़े को पिलायें इस काढ़े में 30-40 मिली काढ़े में थोड़ा सरसों का चूर्ण डालकर पीने से वातज गुल्म का इलाज करने में मदद मिलती है।
#- पाण्डूरोग - 5-10 मिलीग्राम छोटी अरणी पत्रस्वरस का प्रात: सायं सेवन करने से पाण्डूरोग में लाभ होता है।
#- यकृतशोथ - 5-10 मिलीग्राम छोटी अरणी पत्रस्वरस का प्रात: सायं सेवन करने से यकृत विकार तथा यकृतशोथ में कुछ दिनों तक पीने से लाभ होता है ।
#- अमाशय शूल - छोटी अरणी के 10-20 ग्राम पत्तों को उबालकर मसलकर छानकर क्वाथ बनाकर पीने से अमाशय शूल में लाभ होता है।
#- प्रमेह - छोटी अरणी के 5-10 मिलीग्राम पत्रस्वरस को प्रात: सायं पीने से प्रमेह में लाभ होता है।
#- अर्श- छोटी अरणी की 10 ग्राम जड़ को 200 मिली पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में सुबह शाम पीने से अर्श , बवासीर में लाभ होता है।
#- पूयमेह - छोटी अरणी की 10 ग्राम जड़ को 200 मिली पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में सुबह शाम पीने से लाभ होता है।
#- फिरंग - छोटी अरणी की 5-10 मिलीग्राम छोटी अरणी पत्रस्वरस का सेवन करने से फिरंग में लाभ होता है।
#- सूजाक - छोटी अरणी की 10 ग्राम जड़ को 200 मिली पानी में पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20 मिली की मात्रा में सुबह शाम पीने से पूयमेह या सूजाक (गोनोरिया) तथा शोथ या सूजन को कम करने में मदद करता है।
#- उपदंश ( सिफ़लिस ) - यौन संक्रमण के कारण उपदंश या सिफिलिस होता है। छोटी अरणी के पत्तों का काढ़ा या रस बनाकर पीने से उपदंश में लाभ होता है।
#- मेदोरोग - 5-10 मिलीग्राम छोटी अरणी के पत्तों का काढ़ा या रस बनाकर पीने से मेदरोग में लाभ होता है।
#- श्वेतप्रदर व गर्भाशयगत सूजन - छोटी अरणी के 5-10 मिली पत्ते के रस में थोड़ा पानी, शहद अथवा मिश्री मिलाकर पीने से प्रदर ल्यूकोरिया, गर्भाशयगत सूजन एवं अन्य गर्भाशयगत बीमारियों में भी लाभ होता है।
#- योनिशैथिल्य ( लूज़ वैजाइना , ढीली योनि ) - त्रिफला, भांग, पठानी लोध्र तथा कच्चे अनार फल की छाल को समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। अब इस चूर्ण में तर्कारी (अग्निमन्थ), छोटी अरणी के पत्तों के रस की भावना को देकर 500 मिग्रा की गोली बना लें। इस गोली को सुबह योनि में रखने से योनि का संकोचन होकर योनिशैथिल्यता (शिथिलता) दूर होता है।
#- शोथ - 10-20 मिलीग्राम छोटी अरणी मूल क्वाथ को पीने शरीर में जहाँ पर भी सूजन होगी वह उतर जायेगी ।
#- वातरक्त ,गठिया - छोटी अरणी के पञ्चाङ्ग का चूर्ण (1-2 ग्राम),रस (5-10 मिली) या काढ़े (20-40 मिली) का सेवन करने से वातरक्त या गठिया में लाभ होता है।
#- ऊरूस्तम्भ व लकवा - लघु अरणी, सहिजन, तुलसी, सोंठ, कुटज तथा नीम के पत्ते, जड़ एवं फल को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना कर, काढ़े से अंगों का मसाज करने से ऊरुस्तम्भ या लकवा में लाभ होता है।
#- बालरोग ( शिशु रोग ) - कपित्थ, बेल, तर्कारी (अरणी लघु), वंशलोचन, एरण्ड तथा करञ्ज को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े से बच्चों का मसाज करने से बाल-रोगों में फायदा मिलता है।
#- रोमान्तिका - छोटी अरणी के जड़ का काढ़ा बनाकर उसको लगाने से रोमान्तिका या रूबेला के लक्षणों से राहत मिलने में आसानी होती है।
#- खुराक - 5-10 मिली रस, 30-50 मिली काढ़ा और 2-4 ग्राम पञ्चाङ्ग चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
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