रामबाण योग :- 114 -:
अगरू -
प्राचीन काल से ही लोग भारत में अगरु का उपयोग कर रहे हैं। अगरु (agaru)को अगर भी कहा जाता है। इसकी लकड़ी से राल यानी गोंद की तरह का कोमल व सुगन्धित पदार्थ निकलता है, जो अगरबत्ती बनाने व सुगंधित उबटन की तरह शरीर पर मलने के काम आता है।
अगरु , कड़वा और तीखा, पचने में हल्का और चिकना होता है। यह कफ तथा वात को शान्त करने वाला और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। अगरु (agarwood)सुगंधित, लेप लगाने पर शीतल, हृदय के लिए लाभकारी, भोजन के प्रति रुचि बढ़ाने वाला और मोटापा कम करता है। यह त्वचा के रंग को निखारता है। आंख तथा कान के रोगों, कुष्ठ, हिचकी, उल्टी, श्वास फूलना, गुप्त रोगों, पीलिया, खुजली, फुन्सियाँ तथा विष-विकारों की चिकित्सा में इसका औषधीय प्रयोग किया जाता है। अगुरु के सार का तेल भी समान गुणों वाला ही होता तथा पुराने घावों को ठीक करता है। पेट के कीड़े और कुष्ठ रोग को ठीक करता है।
अगरु वृक्ष (agaru tree) विशाल तथा सदा हरा-भरा रहने वाला होता है। कृष्णागुरु को पानी में डालने पर (लकड़ी भारी होने के कारण) डूब जाता है। अगरु की अनेक जातियां होती हैं। (1) कृष्णागुरु (2) काष्ठागुरु
(3) दाहागुरु (4) मंगल्यागुरु, सभी प्रजातियों में कृष्णागुरु सबसे अच्छा माना जाता है। रोगों की चिकित्सा में इसका प्रयोग किया जाता है।
अगुरु की लकड़ी अंदर से एस्कोमाईसीटस मोल्ड (Ascomycetous mold), फेओएक्रीमोनीयम पेरासाईटीका (Phaeoacremonium parasitica) नामक डीमेशीएशस (गहरे वर्ण के कोशिकायुक्त-dark walled) कवक यानी सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होती है। इन कवकों से बचाव के लिए अगरु के वृक्ष से एक विशेष प्रकार का द्रव्य निकलता है। अगरु (agaru) की त्वग्स्थूलता (Tylosis) रोग से असंक्रमित लकड़ी हल्के रंग की और संक्रमित लकड़ी इस द्रव्य के कारण गहरे-भूरे अथवा काले रंग की होती है।
प्राचीन समय में यहूदी धर्म-ग्रन्थों में यह अलहोट नाम से प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त ग्रीक व रोमन में इसे अगेलोकन तथा प्राचीन अरब में अधलूखी एवं ऊद हिन्दी नाम से इनका उल्लेख मिलता है। अगरु (aquilaria agallocha) का वानस्पतिक नाम ऐक्वीलेरिया मैलाकैन्सिस (Latin – Aquilaria malaccensis Lam., Syn – Aquilaria agallocha Roxb. Ex DC.) है। यह थाइमीलिएसी (Thymelaeaceae) कुल का पौधा है। Hindi (agarwood in hindi) – अगर, ऊद, English – Eagle wood (ईगल वुड), अगर वुड (Agar wood), एलो वुड (Aloe wood), कहते है।
#- श्रेष्ठ अगरू के गुण - श्रेष्ठ अगरू जल में डूब जाता है।
#- अगरूकाष्ठ की धूम ( धूआँ ) सुगन्धित एवं वातशामक होता है।
#- सिरदर्द - अगुरु की लकड़ी को चन्दन की तरह घिसकर उसमें थोड़ा कपूर मिलाकर मस्तिष्क पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है।
#- कफज कास ( बलगम वाली खाँसी )- 1-3 ग्राम अगुरु (agar agar powder) के चूर्ण में थोड़ा-सा सोंठ मिलाकर मधु के साथ सेवन करने से कफ के कारण होने वाली खाँसी ठीक होती है।
#- श्वसननली शोथ - अगुरु के चूर्ण तथा कपूर को पीसकर वक्ष स्थल पर लेप करने से श्वसनतंत्र-नलिका की सूजन ठीक होती है।
#- साँस फुलना - पान के पत्ते में दो बूँद अगुरु (aquilaria agallocha) के तेल को डालकर सेवन करने से सांस फूलने के रोग में शीघ्र लाभ होता है। यह गाढ़े बलगम को पतला करने में भी मदद करता है, जिससे फेफड़ों को साफ़ होने में मदद मिलती है।
#- अर्बुद - अंगूर काष्ठ को लगभग 10 ग्राम लेकर उसका क्वाथ बनाकर 20-40 मिलीग्राम मात्रा में नियमित सेवन करने से उदरगत अर्बुद में लाभ होता है।
#- लीवर रोग - सेंधा नमक के साथ अगरु चूर्ण का सेवन करने से पेट और लीवर सक्रिय होते हैं और भूख बढ़ती है। यह लीवर को ताकत देता है और चयापचय प्रक्रिया को बढ़ाता करता है।
#- पेट का कैंसर - अगुरु की लकड़ी को लगभग 10 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना लें। इसे 20-40 मिली मात्रा में नियमित सेवन करने से पेट के कैंसर में लाभ होता है।
#- अपच, वमन - 1-2 ग्राम अगुरु की लकड़ी के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से उल्टी, अपच की समस्या एवं भूख की कमी ठीक होती हैं।
#- ख़ूनी बवासीर - 1-3 ग्राम अगरु चूर्ण में तीन गुणा मिश्री तथा प्रचुर मात्रा में गाय का घी मिलाकर , पकाकर शीतल कर लें। इसके सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
#- मधुमेह, लवणमेह - पाठा का पञ्चाङ्ग, अगुरु की लकड़ी तथा हल्दी को समान भाग में लेकर इनका काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 10-20मिली मात्रा में सेवन करने से डायबिटीज में लाभ होता है।
#- सूतिका रोग - प्रसव के पहले और बाद में अगुरु की लकड़ी का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली की मात्रा में प्रयोग करें। इससे प्रसव होने के बाद के प्रसूति स्त्री के रोगों में लाभ होता है। इसमें अजवायन तथा सोंठ मिलाने से और जल्दी लाभ प्राप्त होता है।
#- सूजन ,वात विकार - अगरु, वात विकार को कम करता है। अगुरु की लकड़ी या पत्तों को पीसकर लेप करें। इससे गठिया, आमवात, जोड़ों की सूजन, लकवा आदि रोगों में लाभ होता है।
#- कुष्ठ , खुजली - मंगल्यागुरु अगरू शीत , गुरू, योगवाही तथा कुष्ठ निवारण में प्रशस्त है । अगरु की छाल के चूर्ण (2 ग्राम) को पांच ग्राम गाय के घी के साथ लेने से कुष्ठ, खुजली आदि चर्म विकारों में लाभ होता है। यह पित्ती से जुड़े खुजली वाले फोड़े और खुजली को भी कम कर देता है।
#- कफज शोथ - चोरक तथा अगुरु को पीसकर लेप करने से कफ के कारण होने वाली सूजन ठीक होती है।
#- बुखार - अगरु ठण्ड व थकान को कम करता हैं। यह बुखार को कम करने में मददगार हैं और शरीर को ताकत देता है। बुखार में इसका काढ़ा पीना लाभदायक होता हैं। अगुरु की लकड़ी डाल कर रखे जल का सेवन करने से बुखार में लगने वाली प्यास शान्त होती है। अगरु को गिलोय, अश्वगंधा और शतावरी के साथ लें। इससे बुखार के बाद होने वाली थकान और शारीरिक कमजोरी में फायदा होता है।
#- रसायन प्रयोग, बुढ़ापा मुक्ति - 2-5 ग्राम अगुरु के काढ़े को एक लोहे के बर्तन के भीतर लेप कर, रात भर छोड़ दें। सुबह 375 मिली जल में इस अगुरु लेप को घोल कर पीना चाहिए। ऐसे ही रोज एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुढ़ापे के कारण होने वाली बीमारियों से मुक्ति मिलती है तथा लंबी तथा स्वस्थ आयु की प्राप्ति होती है।
#- आयुष रसायन - 2-5 ग्राम अगुरु के चूर्ण को गाय के दूध के साथ रोज एक साल तक पीने से बल, आयुष्य आदि रसायन गुणों की प्राप्ति होती है।
#- - पान केनपत्ते में 1-2 बूँद अगुरु तेल डालकर मुख में नियमित धारण करने से बल की वृद्धि होती है।
#- वाजीकरण,कामशक्तिवर्धन - पान के पत्ते में 1-2 बूंद पुराने अगुरु तेल (Agaru Oil) को डालकर मुंह में रखने से ( कामोत्तेजना व वाजीकरण में वृद्धि होती है। ) सेक्सुअल पॉवर या सेक्स की ताकत बढ़ती है।
#- हिक्का रोग - अगरु चूर्ण 4 ग्राम में मधु मिलाकर सेवन करें , हिचकी आने का मुख्य कारण होता है वात दोष का असंतुलित हो जाना। अगरु में वात शामक गुण पाए जाते है इसलिए यह इस रोग को रोकने में मदद कर सकता है।
#शरीर का कोई अंग सुन्न पड़ना - अगरु चूर्ण 5 ग्राम को मधु मिलाकर सेवन करे , शरीर के सुन्न पड़ जाने का मुख्य कारण वात दोष का बढ़ जाना होता है। ऐसे में अगरु के वात शामक गुण शरीर के सुन्नपन को दूर करने में मदद करता है।
#- त्वचारोग - अगरू काण्ड को पीसकर या घिसकर लेप बनाकर लगाने से त्वक विकारो मे लाभ होता है । अगरु में त्वगदोषहर गुण होने के कारण यह चेहरे के दाग धब्बों को कम करने में भी मदद करते हैं।
#- जंघा सुन्न होना - अगरु काण्ड को घिसकर लेप बनाकर लगाने से लाभ होता है , जाँघ का सुन्न होना जाना एक ऐसी अवस्था है जो वात दोष के असंतुलित होने के कारण होती है अगरु में वात शामक गुण होने के कारण यह इस अवस्था से राहत दिलाने में उपयोगी हो सकती है।
#-कृमि रोग - अगरू सार का स्नेह 3-5 ग्राम चूरण में मधु मिलाकर सेवन करने से उदरकृमियों का नाश होता है।
#- व्रण - अगरू काण्ड को घिसकर लेप बनाकर या अगरू तैल लगाने से दुष्ट व्रण का भी शोधन कर रोपण करता है।
#- जांगमविष , विषदंश - अगुरु की लकड़ी को पीसकर लेप करें। इससे सांप, बिच्छु आदि विषैले जीवों द्वारा काटे जाने पर चढ़ने वाले विष उतर जाता है। इससे दर्द आदि विषाक्त प्रभाव खत्म होतेा है।
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