Wednesday 20 May 2020

अपराजिता के चमत्कारिक गुण--

अपराजिता के गुण व चमत्कार ----  अपराजिता, विष्णुकान्ता, विष्णुप्रिया , कृष्णप्रिया , शिवप्रिया , गौकर्णी , अश्वखुरा , कोयल आदि नामो से जाना जाता है । यह एक लता होती होती है सुन्दर पुष्प लगते है तथा यह दो प्रकार की होती है ,एक नीला फ़ूल व दूसरी सफ़ेद फ़ूल की होती है वैसे तो दोनों के आयुवैदिक गुण समान है पर सफ़ेद पुष्प अपराजिता यह   नकारात्मक ऊर्जानाशक , वशीकरण , चमत्कारिक , तान्त्रिकशक्ति , अध्यात्म , प्रभावशाली  आदि विशेष प्रयोगों में लायी जाती है यह चरपरी, कड़वी , कण्ठशोधक , आँखों के लिए अच्छी , अतिसार लगाने वाली , त्रिदोषनाशक , सौन्दर्यवर्धक , सुजाक, शुक्राणुवर्धक , कायाकल्प , स्तनसंकोचक , कर्णरोग , शोथनाशक , पाराबन्धनकर्ता , जलन , श्वासरोग , शिरोरोग , तनाव , अवसाद , बुखार , स्नायुपीडा ,पाण्डूरोग, कामला ,भूतबाधा ,   पुरानी खाँसी , आधाशीशी , तन्त्रिकातन्त्र के लिए हीतकर , नासारोग, हिचकी , गलगण्ड ( घेंघारोग ) पञ्चकर्म ,  अण्डकोषवृद्धि , मूत्रवर्धक , मूत्राशय पथरी , पाचक , मानसिकरोग , अस्थमा , मासिकधर्म , रक्तरोधक , पित्तशोधक , यकृतरोग , प्रजनन , शुगर , हृदयरोग  , योनिरोग , योनिसंकोचक , गर्भरक्षक , गर्भधारण , अण्डाणु- ( वर्धक, पोषक व रक्षक ), प्रसवकष्ट , योनिभ्रंश रोग।, गूदाभ्रंश रोग ,पेट में पानी , पेटदर्द , उलटी ( उबकाई ) , बालरोग ( बालों का गलित होना , पलित होना , झड़ना आदि ),  ,  , नारूरोग , विषदंश , आन्तरिकविषविरेचक , व्रण ( घाव ठीक करना ) एनर्जी बुस्टर , रसायन  व रोग प्रतिरोधक क्षमता ताका निर्माण करती है । इस द्विव्य औषधि का बिमारियों पर सीधा प्रभाव दिखाई देता है हर जगह जीत ही मिलती है इस कारण भी अपराजिता कहते है।है ।इस द्विव्य औषधि का बिमारियों पर सीधा प्रभाव दिखाई देता है हर जगह जीत ही मिलती है इस कारण भी अपराजिता कहते है।है ।


#- अपराजिता दूर्गा जी का ही एक नाम है ,यह द्विव्य औषधि मानव जाति पर  की बिमारियों पर सीधा प्रभाव दिखाई देता है हर जगह जीत ही मिलती है इस कारण भी अपराजिता कहते है।मानव कल्याण के लिए पृथ्वी पर माँ दूर्गा का आशीर्वाद है  सफेद अपराजिता पार्वती जी को प्रिय है इसलिए इसको अपराजिता कहते है तथा  सफेद अपराजिता के पुष्प शिव को प्रिय है  तो इसीलिए इसको शिवप्रिया कहते है , नीली अपराजिता के पुष्प कृष्ण जी को प्रिय है इसी कारण कृष्णप्रिया कहते है , तथा नीली अपराजिता विष्णु जी को प्रिय है इसीलिए इनको विष्णुप्रिया कहते है। इसीलिए काली माता सफेद अपराजिता पुष्प प्रिय है इसलिए काली पूजा मे सफेद फूल चढ़ाये जाते है । सोमवार के दिन भगवान पर सफेद अपराजिता पुष्प चढ़ाने से शंकर भगवान प्रसन्न होते है।नीला पुष्प अपराजिता को विष्णु जी व कृष्ण जी की पूजा मे चढ़ाने भगवान प्रसन्न होते है ।

१- प्रयोग -- अपराजिता के पुष्प व पत्ति तथा जड़ का प्रयोग अधिक होता है यह स्वाद में चरपरी, कड़वी , कषैली होती है कुछ लोग तो सीधा- सीधा चबाकर भी खाते है , इसका स्वरस , काढ़ा , लेप , पावडर के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

२- शोथ ( सूजन ) -- अपराजिता की जडछाल को जल में घोटकर कर पिलाने से तथा पत्ते, छाल का पेस्ट बनाकर लगाने या अपराजिता पंचांग को पानी में पकाकर निवाय पानी से झराई करने हर प्रकार की सूजन नष्ट होती है ।


३- पुरानी खाँसी -- अपराजिता की जड़ का स्वरस दो तौले , स्वादानुसार शहद , गाय के गर्म दूध २५०ग्राम में ५० ग्राम अदरक पकाकर , शहद व जडस्वरस मिलाकर पिलाने से पुरानी खाँसी दूर होती है।

४- खाँसी , कफ, अस्थमारोग -- अपराजिता के बीजों को तवें भूनकर ठंडाकर चूर्ण बनाकर पिरोने गुड व सैंधानमक बराबर मात्रा में मिलाकर गरम पानी से लेना लाभकारी होता है तथा पत्तों का स्वरस देने से भी अस्थमा में लाभ होता है ।

५- शिरोरोग ( आधाशीशी , माइग्रेन  ) --  अपराजिता के फूल तथा पत्तों का रस निकालकर ५-६ बूँद प्रतिदिन  नाक में डाले अथवा बीज तथा जड़ के चूर्ण १/२ टी स्पुन गाय के दूध के साथ खाने से आधाशीशी रोग दूर होता है।

६- पाण्डूरोग -- अपराजिता की जड़ का चूर्ण , गाय के दूध से बनी छाछ में मिलाकर पीने से कामलारोग, पाण्डूरोग , पीलिया ठीक होते है । तथा यकृतरोग मे जड़ व बीज का पावडर छाछ के साथ देने कारगर लाभ है तथा अपराजिता की पतली- पतली जड़ आधा-आधा इंच के टुकड़े करके सूत के धागे को लालरंग में रंगकर सुखाकर इस धागे में जड़ के टुकड़ों को बाँधकर रोगी के गले में बाँधने से ये रोग ठीक होते है ।

७- हिचकी रोग -- अपराजिता के बीजों को हुक्का चिलम में रखकर धूम्रपान करने से हिचकीरोग में तुरन्त लाभ होता है ।

 ८- पसीने मे बदबू-- अपराजिता बीज पावडर व अदरक रस मिलाकर खाने से आठ दिन मे ही पसीने से बदबू आना बन्द हो जाती है।


९- गलगण्ड ( घेंघारोग ) -- सफ़ेद अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के घी या नवनीत में मिलाकर खाने से व गाय के मूत्र सफेद अपराजिता की  जड़ के चूर्ण मे मिलाकर गले पर लेप करने से तुरन्त लाभ आता है ।



१०- पाचनतन्त्रव पेटरोग -- अपराजिता के दो से चार फूल प्रतिदिन खाने से पाचनतन्त्र मज़बूत होता है तथा पित्त को शुद्ध करती है पेट मे पानी आना व पेट बढ़ना तथा ऐसिडीटी, जलन , पेटदर्द व पाचन समस्या मे अपराजिता बीजचूर्ण को गाय के घी मे मिलाकर खाने से तुरन्त लाभ होता है तथा उबकाई , उल्टी ( वमन ) में अपराजिता के पत्तों के स्वरस देने से लाभ होता है तथा पेचिश मे बीज चूर्ण कारगर है तथा पेट को साफ़ करके रोगाणुओं को बाहर निकालता है

११- मानसिक रोग -- जैसे - तनाव ( स्ट्रैस ), तन्त्रिकातन्त्र ( नर्वशसिस्टम ) , अवसाद ( डिप्रेशन ) में सफ़ेद अपराजिता की जड़ तथा बीजों का चूर्ण आधा चम्मच गाय के दूध के साथ लेने से इनको ठीक करता है तथा मस्तिष्क वर्धन ( मैमोरी बढ़ाने ) के लिए अपराजिता के बीजों का आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ मिलाकर चाटे तथा गाय का दूध पियेंगे तो दिमाग़ का विकास होकर तेज़ करती है तथा नैगेटिविटी के रोगी के गले या बाज़ू मे लाल धागे से सफ़ेद अपराजिता की जड़ को बाँधने से  शरीर से नैगेटिविटी को दूर करता है और यदि इसी जड़ को  शनिवार के दिन लाल कपड़े मे दरवाज़े पर लटकाये तो घर के अन्दर की ( नकारात्मक ऊर्जा ) नैगेटिविटी दूर होती है तथा स्नायुपीडा में अपराजिता की जड़ व अरणी के छाल व जड़  को तिल तैल मे पकाकर मालिश करने से पीड़ा दूर होती है ।

१२- घाव व नारूरोग - अपराजिता की जड़ के रस या पावडर को गाय के घी मे गरम करके मिलाकर ठंडा होने पर लेप करने बूरे से बरा घाव तथा नारूरोग ठीक होते है तथा अपराजिता पुष्पों को सूखाकर चूर्ण या ताज़े फूलो व पत्तों की चटनी बनाकर उसमें शहद मिलाकर लेप करने से घाव तुरन्त भरता है तथा फोड़- फुन्सियों पर पत्तों का लेप करने से दब जाये के यदि उनमें मवाद ( पस ) बनना शुरू हो गया है तो जल्दी ही फूटकर ठीक हो जायेंगे ।

१३- सौन्दर्य -- अपराजिता पंचांग की राख या जड़ चूर्ण व ऐलोवीरा का गूद्दा और गाय का ताज़ा नवनीत आपस मे मिलाकर चेहरे पर लगायेंगे तो कील- मुँहासे व उनके निशान , चेहरे की झाइयों को ठीक करता है व चेहरे को कान्तिमान बनाता है तथा ऐसे व्यक्ति जिनके शरीर का मोटापा बढ़कर घटा हो या ऐसी महिलाएँ जिनके मोटापे के कारण व डिलिवरी ( सन्तान उत्तपत्ति ) के पश्चात शरीर पर स्ट्रेचमार्क बन जाते है या आपरेशन के निशान पर यह दवा लगाने से उनका समूल नष्ट करती है ।

१४- सौन्दर्य -- अपराजिता की जड़ का चूर्ण व पत्तों का स्वरस तथा ऐलोवीरा का गुद्दा मिलाकर चेहरे पर लेप लगाने से  चेहरे की चमक लौटेगी तथा सुन्दरता आयेगी ।

१५- बालरोग ( बालों का गलित, पलित होना )-- अपराजिता व भांगरा के पंचांग लेप व दोनों के स्वरस को पीने से हर प्रकार के बालों के रोग व खोपड़ी मे खुशकी , रूसी आदि रोगों मे कारगर है ।

१६- कर्णरोग - कान की सूजन मे अपराजिता के पत्तों की चटनी मे सैंधानमक मिलाकर लेप को गरम करके कान के चारों तरफ़ लेप करने से कान की सूजन दूर होती है तथा अपराजिता जड़ को सरसों तैल मे पकाकर थोड़ा गरम- गरम कान मे डालने से कान का दर्द दूर होता है ।

१७- शुगर रोग - अपराजिता के दो फूल रोज़ प्रातःकाल ख़ाली पेट खाने से शुगर कन्ट्रोल रहती है या दो फूल की चाय पीने से शुगर लाभ होता है ।

१८- हृदयरोग - अपराजिता के दो फूल या आधा चम्मच बीज या जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल सेवन करने से कोलैस्ट्राल कन्ट्रोल कर हृदय को मज़बूत करता है ।

१९- अतिसार - अपराजिता की जडचूर्ण को गरम पानी से से शरीर अन्दर से सभी विषेले तत्व( टोक्सिन बाहर निकलते है तथा पेट साफ़ करती है और अपराजिता बीज चूर्ण पेचिश को रोकता है ।

२०- त्रिदोषनाशक - अपराजिता पंचांग प्रातःकाल गरम पानी के साथ लेने से वात , पित्त, कफ का नाश कर शरीर को दोषमुक्त रखता है ।

२१- रोगाणुनाशक - अपराजिता पंचांग को प्रातःकाल गरम पानी से लेने पर रोगों का नाश करता है ।

२२- रक्तरोधक - अपराजिता पंचांग का उपयोग करने से ख़ून साफ होकर शरीर को पुष्ट होता है ।

२३- रोगप्रतिरोधक - अपराजिता पंचांग अपार रोगप्रतिरोधक क्षमता निर्माण तर व्यक्ति को निरोगी काया देने मे समर्थ है ।

२४- रक्तरोधक-- शरीर मे छेदन, भेदन व कटने आदि पर जो ख़ून निकलता है उसमें अपराजिता के पत्तों का रस लगाने से ख़ून का बहना बन्द हो जाता है ।

२५- पित्तशोधक - अपराजिता जड़ चूर्ण को गौमूत्र के साथ सेवन करने से पित्त शोधन होता है ।

२६- कायाकल्प - अपराजिता पंचांग व्यक्ति की कायाकल्प करने अभूतपूर्व क्षमता रंखता है ।

२७- स्तन संकोचक - किसी भी कारण से महिलाओं के स्तन ढीले हो गये हो या लटक गये हो तो अपराजिता के फूल,पत्ते,छाल,जड़ का पेस्ट बनाकर रात्रि मे सोते समय स्तनों पर लगाये सोये तो ७-८ दिन मे ही स्तन सुडौल व पुष्ट होकर ढीलापन व लटकन समाप्त होती है ।

२८- श्वासरोग - अपराजिता के बीजों को तवे पर भूनकर पावडर बना ले, पुराना गुड व सैंधानमक अडूसा फूल या पत्ति का चूर्ण को मिलाकर  गरम पानी के साथ लेने से श्वासरोग ठीक होता है ।

२९- आँखरोग - अपराजिता के पत्तों को पीसकर टिक्की बनाकर खीरे की तरह आँखों पर रखने आँखरोग ठीक होते है ।
३०-  कण्ठशोधक -- अपराजिता जड़,पुष्प का चूर्ण, मुलेठी चूर्ण , हल्दी को मिलाकर काढ़ा बनाकर गरारें करने से या सभी चूर्ण को मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने स्वर मधुर होता है तथा कण्ठ सूजन पर पत्तों का लेप लगाने से तुरन्त लाभ होता है ।
३१- पाराबन्धनकर्ता - अपराजिता के पंचांग का प्रयोग पारे को बाँधने के लिए उत्तम मानते है।

३२-  बुखार - अपराजिता के जड़ चूर्ण को गाय के दूध के साथ पिलाने से बुखार ठीक होता है तथा उपरोक्त माला बनाने की विधी से माला बनाकर पहनाने से बार- बार आने वाले बुखार से मुक्ति मिलती है ।

३३- नासारोग -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस की ५-५ बूँदे नाक मे डालने से तथा बीजों का पावडर बनाकर बीजों का रस का नस्य लेने से नासारोग दूर होते है ।

३५- पञ्चकर्म -- अपराजिता के पंचांग का विद्वान वैद्य पञ्चकर्म मे उपयोग लाते है ।

३६ -  ८- अण्डकोषवृद्धि ( पोत्तो में पानी उतरना ) -- अपराजिता के बीजों को पीसकर गौमूत्र में मिलाकर गरम करके हलवा जैसा पेस्ट बनाकर निवाया- निवाया ( त्वचा न जले इतना गरम ) लेकर एक कपड़े के ऊपर फैलाकर पेस्ट को अण्डकोष पर लगोंट की सहायता से बाँधने  पर तुरन्त आराम आता है।

३७ - सूजाक ( लिंग में सूजन ) -- अपराजिता की ताज़ी जड़ का स्वरस आधा कप मे छ: कालीमिर्च पावडर मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

३८ - मूत्रवर्धक -- अपराजिता के दो से चार फूल का सेवन करने मूत्र सम्बंधी समस्या दूर होकर अधिक पेशाब आने लगता है और गुर्दो की सफ़ाई भी हो जाती है ।

३९ - मूत्राशय पथरी -- अपराजिता के जड़ चूर्ण को चावल के धोवन के साथ पिलाने से मूत्राशय की पथरी ठीक होती है ।

४० - मूत्र मे जलन -- अपराजिता के पत्तों के स्वरस को गाय के धारोष्ण दूध के साथ देने से भंयकर से भयंकर जलन तुरन्त शान्त होती है ।

४५ - शुक्राणु वर्धक -- प्रातःकाल ख़ाली पेट सफेद अपराजित के २-४ सूखे पुष्प  पीसकर शहद मिलाकर चाटने  से शुक्राणु तीव्रता से वृद्धि करती है तथा शुक्राणुओं को पुष्ट करता है यह सफेद बछड़े वाली गाय का दूध होगा तो सन्तानोत्पत्ति मे बेटा ही होगा ऐसी मान्यता है ।

४६ - सफेद दाग -- अपराजिता की जड़ को पानी या गौमूत्र मे घिसकर पेट बनाकर सफेद दाग पर लगाने से आराम आता है ।

४७ - गठिया रोग -- अपराजिता के पत्तों का पेस्ट बनाकर जोड़ो के दर्द पर लगाने से तुरन्त आराम आताै तथा अपराजिता की जड़ का २ ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ पीने से लाभ होता है ।

४८ - मासिकधर्म -- अपराजिता के पुष्प का आकार योनि का जैसा होता है। अत: ये समझना चाहिए कि यह योनिरोग मे काम आने वाली है। दो से चार पुष्प प्रात: ख़ाली पेट खोने से मासिकधर्म सम्बंधी दूर होते है जैसे अनियमित महावारी २-४ पुष्प प्रतिदिन खाने से महावारी नियमित होती है । तथा महावारी का रूक- रूक कर आना , अधिक रक्त का बहना , लम्बे समय तक महावारी का चलना , महावारी मे गाढ़ा ख़ून व माँस के टुकड़े आना इन सबको ठीक करती है तथा रुकी हुई महावारी को चालू करती है ।

४९ - योनिरोग -- अपराजिता के २-४ पुष्प प्रतिदिन खाने से योनि का शोधन होता है तथा योनि गर्भधारण के लिए शुद्ध हो जाती है तथा महिलाओं मे स्वस्थ्य पुष्ट अण्डाणु बनने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है ।प्रसव के बाद योनिभ्रंश नहीं होने देती है यदि किसी को योनिभ्रंश तथा गूदाभ्रंश रोग है तो उसको ठीक करती है ।

५० - गर्भधारण --- सफेद अपराजिता के जड़ व छाल को पीसकर शहद व गाय के दूध मे मिलाकर पीने से गिरता गर्भ रूकता है तथा गर्भस्थापन करता है । जिन महिलाओं का बार- बार गर्भ गिरता है उनके लिए अपराजिता के पत्ते,  छाल, जड़ , को पीसकर शहद व बकरी के दूध मे मिलाकर पीने से गर्भपात की समस्या दूर होती है ।

५१ - गर्भधारण -- गर्भवती होने के लिए नीले फूल वाली अपराजिता की जड़ को कुँवारी कन्या द्वारा निकालकर धोकर कुटपीसर बकरी के साथ मिलाकर मासिकधर्म के समाप्त होते ही तीन दिन तक पिलाने से बाँझ स्त्री भी गर्भवती होती है । यह महिलाओं मे अण्डाणु बनाकर उसको पुष्ट करती है और प्रजनन शक्ति को बढ़ाती है व प्रजनन सम्बंधी रोग दूर करती है ।

५२ - प्रसव डिलिवरी कराने के लिए-- अपराजिता की जड़ को लाल धागे मे बाँधकर जिस महिला को प्रसव होने मे दिक़्क़त आ रही है या दर्द अधिक हो रहा है  उस महिला को यह जड़ तगड़ी की जगह बाँधने पर दर्द तुरन्त बन्द होता है और नोरमल डिलीवरी होती है ओपरेशन से बचाती है ।

५३-  बिना दर्द के नोरमल डिलीवरी-- अपराजिता की जड़ प्रभावी है ही लेकिन यदि आप अपराजिता की बेल को महिला की कमर मे दो- तीन लपेटे देंगे। तो भी बिना दर्द के नोरमल होती है ।

५४ - भूतबाधा -- सफेद अपराजिता के जड़ को चावल के धोवन तथा गाय के घी के साथ मिलाकर पिलाने से भूतबाधा ठीक होती है ।

५५ - भूतबाधा -- शनिवार की रात्री मे नीली अपराजिता की जड़ को निकालकर धोकर धूप आदि देकर शुद्ध करने के बाद जड़ को लाल धागे मे बाँधकर रोगी के गले मे पहना कर लाभ मिलता है ।

५६ - सर्पदंश , बिच्छुदंश -- सर्प या बिच्छु के काटे हुए स्थान पर अपराजिता की जड़ को गौमूत्र मे घिसकर लगाने से ज़हर का असर कम होता है तथा तीन घन्टे की गारण्टी आ जाती है कही भी उपचारार्थ ले जाने के लिए समय मिल जाता है तथा जड़ को पीसकर गाय का घी मिलाकर पिलाने से भी लाभ होता है । यदि ख़ून मे ज़हर मिल गया है तो अपराजिता जड़ चूर्ण १२ ग्राम , अपराजिता पत्र स्वरस १२ ग्राम , कूठ चूर्ण १२ ग्राम , गाय का घी १०० ग्राम गाय का दूध २५० ग्राम मिलाकर पिलाने से आराम आता है तथा शरीर के आन्तरिक विष को वमन या विरेचन कर बाहर निकाल देती है ।

५७ - सर्पदंश -- अपराजिता की जड़ १० ग्राम। , निर्गुंडी की जड़ १० ग्राम , सोंठ १० ग्राम , हींग ५ ग्राम ,  , पानी २५० मे पकाकर , छानकर , गाय का घी १०० ग्राम मे मिलाकर उसमें भांगरा रस २५ ग्राम डाले और गाय के दूध से बनी छाछ मे मिलाकर पिलाने से सर्पदंश मे लाभ होता है ।

५८ - चोरों से रक्षा -- सफेद अपराजिता जड़ को पुष्यनक्षत्र से एक दिन पहले अपराजिता के पेड के पास जाकर उसमें एक लोटा जल डालकर लता चरण छू कर  उनका आवाह्न करे कि कल मे चोरी सुरक्षा साकेत वालिए कल पुष्य नक्षत्र मे आपको लेने आऊँगा , हे अपराजिता देवी मेरा कल्याण करे ऐसा निमन्त्रण देकर आये और अग़ल दिन प्रात: नहा- धोकर पूजाकरके अपराजिता जड़ को लाकर सूखाकर पावडर बना ले और शनिवार के दिन शिवमन्दिर मे बैठकर शिव पूजा करके अपराजिता की जड़ व बकरी के दूध मे गोली बना ले तथा इन गोलियों को अपने घर व प्रतिष्ठान मे चारों कोनो मे व ग़ल्ला लोकर , अलमारी मे रखने से चोरी नहीं होगी क्योंकि इसके प्रभाव क्षेत्र मे चोर के आते ही उसका मन बदल जाता है उसे मन मे सकारात्मक विचार पैदा होते है और वह अपना मन बदल लेता है ।

५९ - वशीकरण --- शनिवार के दिन निमन्त्रण देकर रविवार को हस्तपुष्य नक्षत्र होने पर उसमें सफेद अपराजिता के  पुष्प लेकर तथा किसी भी चन्द्रग्रहण या सुर्यग्रहण  के समय मे निमन्त्रित सफेद अपराजिता की जड़ को लेकर रख ले , कृष्णपक्ष की चतुर्थी या अष्टमी शनिवार या रविवार के दिन पड़े तो नहा-धोकर सफेद कपड़े पहनकर शिवमन्दिर मे बैठकर पूजाकरके बकरी के दूध मिलाकर गोलियाँ बना ले , जब भी किसी शुभ कार्य के लिए या प्रियसी के पास जाने से पहले पूजा करके गोली को गंगाजल पत्थर पर घिसकर तिलक लगाकर उनके पास पहुँचे तो वह आपसे प्रभावित होगे और यदि आप भाषण देने जा रहे है तो गोली को मुँह मे रखेंगे तो सभी श्रोता मन्त्रमुग्ध हो जायेंगे व वशीभूत होगे ।

६० - इच्छापूर्ति के लिए -- रविपुष्य य गरूपुष्य नक्षत्र से एक दिन विधिवत निमन्त्रण देकर सफेद अपराजिता की मूल को लेकर अपने पास रखे , जब भी किसी विशेष कार्य हेतु घर से बाहर निकले तो जड़ को लाल कपड़े मे लपेटकर जेब मे या पर्स मे रख ले रुके हुए काम, मुक़दमे मे जीत , आदि असम्भव कार्य सम्भव होते है तथा इच्छापूर्ति होती

६१ - अपराजिता के पुष्पों की चाय पीने पर एनर्जीबुस्टर का काम करती है । तथा अपराजिता पुष्पों को ठंडे दूध या शर्बत मे ग्रैन्डर मे घुमाकर पीने से चुस्ती- फुर्ती व मानसिक व शारीरिक थकान को दूर करती है तथा मस्तिष्क वर्धन करती है और शरीर मे रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करती है तथा शरीर मे से विजातीय तत्वों को निकालकर शरीर शोधन करती है ।

नोट- गर्भवती महिला व बच्चे को दूध पिलाने वाली महिला को अपराजिता प्रयोग मे देते है तो ध्यान रहे कि यदि उनको उल्टी , दस्त , थकान होती है तो यह समझना चाहिए कि यह औषंधि सूट नहीं कर रही है इसको तुरन्त बन्द कर दे ।

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