Monday 26 April 2021

रामबाण :- 40 -:

रामबाण :- 40 -:

#- छर्दि - नीम की सात सीकों को 2 बड़ी इलायची और 5 काली मिर्च के साथ महीन पीस लें। इसे 250 मिली पानी के साथ मिलाकर पीने से उलटी बन्द होती है।

#- छर्दि - 5-10 मिग्रा नीम की छाल के रस में मधु मिलाकर पिलाने से उलटी तथा अरुचि आदि में लाभ होता है।

#- छर्दि तथा अरूचि - 20 ग्राम नीम के पत्तों को 100 मिली पानी में पीसकर, छान लें। इसे 50 मिली मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से उलटी तथा अरुचि में लाभ होता है।

#- अरूचि - 8-10 नीम के कोमल पत्तों को घी में भूनकर खाने से भोजन से होने वाली अरुचि दूर होती है।

 

#- बवासीर - 50 मिली नीम तेल (Neem ka Tel), 3 ग्राम कच्ची फिटकरी तथा 3 ग्राम सुहागा को महीन पीसकर मिला दें। शौच-क्रिया में धोने के बाद इस मिश्रण को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाएं। इससे कुछ ही दिनों में बवासीर ठीक होता है।

#- बवासीर - नीम के बीजों तथा बकायन के बीजों की सूखी गिरी, छोटी हरड़, शुद्ध रसौत 50-50 ग्राम तथा गाय के घी में भूनी हींग 5 ग्राम लें। इन सबका महीन चूर्ण बना लें। इसमें 50 ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्का को पीसकर 500 मिग्रा की गोलियां बना लें। 1-2 गोली को दिन में 2 बार बकरी के दूध या ताजे पानी के साथ सेवन करने से सब प्रकार के बवासीर में लाभ होता है। खून गिरना बंद होता है और दर्द भी समाप्त होता है।

#- बवासीर- छिलके सहित कूटी हुई सूखी निबौरी के 1-2 ग्राम महीन चूर्ण को सुबह खाली पेट सेवन करने से बवासीर के रोगी को बहुत लाभ होता है। इसे रात के रखे पानी के साथ सेवन करना है। इसके सेवन के दौरान गाय के घी का प्रयोग अवश्य करें, अन्यथा आँखों की रोशनी प्रभावित हो सकती है।

#- बवासीर - नीम के बीज की गिरी, एलुआ और रसौत को बराबर मात्रा में मिलाकर खरल कर गोलियां बना लें। सुबह एक गोली गौतक्र ( छाछ ) के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

#- बवासीर - नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और जड़ की छाल 200 ग्राम को पीस लें। इसकी 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली को दिन में 4 बार सात दिन तक खिलाएं। इसके साथ ही नीम के काढ़े से मस्सों को धोएं या पत्तों को पीस कर मस्सों पर बाँधें। बवासीर में निश्चित लाभ होगा।

#- बवासीर - 100 ग्राम सूखी निबौली को 50 मिली तिल के तेल में तलकर पीस लें। बाकी बचे तेल में 6 ग्राम मोम, 1 ग्राम फूला हुआ नीला थोथा और इस चूर्ण को मिलाकर मलहम बना लें। इसे दिन में 2-3 बार बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं।

#- ख़ूनी बवासीर - नीम के बीज की गिरी 20 ग्राम, फिटकरी का फूला 2 ग्राम और सोना गेरू 3 ग्राम को पीस लें। इससे मलहम जैसा बना लें। यदि मलहम जैसा बने तो उसमें थोड़ा गाय का घी या मक्खन अथवा गिरी का तेल मिला कर घोटना चाहिए। इसे लगाने से मस्सों का दर्द तत्काल दूर होता है। खून बहना बन्द होता है एवं मस्से मुरझा जाते हैं। इस प्रयोग में कपूर मिला कर एरंड के तेल में भी मलहम बनाया जा सकता है।

#- बवासीर - 50 ग्राम कपूर तथा 50 ग्राम नीम के बीज के गिरी का तेल को मिला लें। इसे थोड़ी मात्रा में मस्सों पर लगाते रहने से लाभ होता है।

 

#- पिलिया - नीम पंचांग के एक ग्राम महीन चूर्ण में 5 ग्राम गाय का घी और 10 ग्राम शहद मिला लें। इसका सेवन करने से शरीर में खून की कमी को दूर होती है और पीलिया ठीक होता है। यदि घी और शहद किसी को अच्छा लगता हो तो एक ग्राम पंचांग चूर्ण को गाय के मूत्र या पानी या गाय के दूध के साथ भी ले सकते हैं।

#- पिलिया - नीम की सींक 6 ग्राम और सफेद पुनर्नवा की जड़ 6 ग्राम को पानी में पीस कर छान लें। कुछ दिनों तक पिलाते रहने से पीलिया में लाभ होता है।

#- पिलिया - नीम का पत्ता (Neem ka patta), गिलोय का पत्ता, गूमा (द्रोणपुष्पी) का पत्ता और छोटी हरड़ (सभी 6-6 ग्राम) लेकर सभी को कूट लें। इसे 200 मिली पानी में पकाएं। 50 मिली शेष रहने पर छान लें। इसे 10 ग्राम गुड़ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया में विशेष लाभ होता है। इस काढ़े के सेवन से पहले 200 मिग्रा शिलाजीत को 6 ग्राम मधु के साथ चाट लें।

#- पिलिया - पित्त की नली में रुकावट होने से पीलिया रोग हो जाए तो 10-20 मिली नीम के पते के रस में, तीन ग्राम सोंठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद मिला लें। इसे तीन दिन सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है। दवा लेते समय घी, तेल, चीनी गुड़ का प्रयोग नहीं करें। खाने में गौदधि ( गाय के दूध से बनी दही ) -भात लें।

#- पिलिया - सुखे हुए नीम के पत्ते , नीम के जड़ की छाल, फूल और फल को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण को एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार गाय का घी एक चम्मच शहद दो चम्मच में मिलाकर अथवा गाय के मूत्र या गाय के दूध या पानी के साथ सेवन करें। पीलिया रोग ठीक होगा।

#- पिलिया - 10 मिली नीम के पत्ते के रस में 10 मिली अडूसा के पत्ते का रस 10 ग्राम मधु मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ होता है।

#- पिलिया - 20 मिली नीम के पत्ते के रस में थोड़ी चीनी मिलाकर, थोड़ा गरम कर सेवन करें। दिन में एक बार तीन दिन तक सेवन करने से भी लाभ हो जाता है।

#- पिलिया, मूत्ररोग - नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद मिलाकर सेवन करने से भी पीलिया, पेशाब संबंधित रोग तथा पेट के रोगों में भी लाभ होता है।

#- पिलिया - 10 मिली नीम के पत्ते के रस में 10 ग्राम मधु मिलाकर 5-6 दिन पीने से पीलिया में बहुत लाभ होता है।

 

#- प्रमेह रोग - प्रमेह रोग को ही डायबिटीज भी कहते हैं। नीम के पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर थोड़े से गाय के घी में अच्छी तरह तल लें। टिकिया जल जाने पर, घी को छानकर रोटी के साथ सेवन करने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।

#- मधुमेह - 10 मिली नीम के पत्ते के रस में मधु मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें। प्रमेह रोग मतलब डायबिटीज में फायदा होता है।

#- मधुमेह - 20 मिली नीम के पत्ते के रस में एक ग्राम नीला थोथा अच्छे से मिलाकर सुखा लें। इसे कौड़ियों में रखकर जला कर भस्म करें। 250 मिग्रा भस्म को गाय के दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करें। प्रमेह यानी डायिबटीज में लाभ होगा।

#- मधुमेह - 40 ग्राम नीम के छाल को मोटा-मोटा कूट कर 2.5 लीटर पानी डाल लें। इसे मिट्टी के बरतन में पकाएं। 200 मिली शेष रहने पर छान कर दोबारा पकाएं और 20 या 25 ग्राम कलमी शोरा चूर्ण चुटकी से डालते जायें और नीम की लकड़ी से हिलाते जाएं। सूख जाने पर पीस-छानकर रख लें। 250 मिग्रा की मात्रा रोजाना गाय के दूध की लस्सी के साथ सेवन कराने से डायिबटीज में जल्द लाभ हो जाता है।


#- पथरी - नीम के पत्तों की 500 मिग्रा राख को कुछ दिनों तक लगातार जल के साथ सेवन करें। इसे दिन में 3 बार खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।

#- पथरी - दो ग्राम नीम के पत्तों को 50 से 100 मिली तक पानी में पीस-छानकर डेढ़ मास तक पिलाते रहने से पथरी टूटकर निकल जाती है। इसे सुबह, दोपहर तथा शाम लेना होता है।
 


#- घाव - 50 मिली सरसों के तेल में 25 ग्राम नीम के पत्तों को पकाकर घोट लें। नीम के पत्ते के काढ़े से घाव को धोकर पोछ लें। उसके बाद राख मिला तेल लगा दें तथा कुछ सूखी राख ऊपर से लगाकर पट्टी बाँध दें। 2-3 दिन में काफी आराम हो जाता है। इसके बाद रोज नीम के काढ़े से धोकर नीम तेल लगाते रहें। घाव तुरंत भरकर सूख जाएगा।
 
#- योनिदर्द - कई बार स्त्रियों को योनि में दर्द हो जाता है। नीम की गिरी को नीम के पत्ते के रस में पीसकर गोलियां बना लें। गोली को कपड़े के भीतर रखकर सिल लें (इसमें एक डोरा लटकता रहे) रोज एक गोली योनिमार्ग में रखने से दर्द में आराम होता है।

#- योनि दर्द - नीम के बीजों की गिरी, एरंड के बीजों की गिरी तथा नीम के पत्ते का रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इसकी बत्ती बनाकर योनि में डालने से योनि का दर्द ठीक होता है।

#- ढीली योनि - नीम के छाल को अनेक बार पानी में धोकर, उस पानी में रूई को भिगोकर रोज योनि में रखें। धोने से बची हुई छाल को सुखाकर जलाकर उसका धुँआ योनि के मुंह पर दें। इसके साथ ही नीम के पानी से बार-बार योनि को धोएं। इन प्रयोगों से ढीली योनि सख्त हो जाती है।
 
#- मासिक विकार - मोटी कूटी हुई नीम की छाल 20 ग्राम, गाजर के बीज 6 ग्राम, ढाक के बीज 6 ग्राम, काले तिल और पुराना गुड़ 20-20 ग्राम लें। इन्हें मिट्टी के बर्तन में 300 मिली पानी के साथ पकाएं। 100 मिली शेष रहने पर छानकर सात दिन तक पिलाएं। मासिक विकारों में लाभ होता है। इसे गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए।
 
#- श्वेतप्रदर - नीम की छाल और बबूल की छाल बराबर-बराबर मात्रा में लेकर 10-30 मिली काढ़ा बनाएं। 10-20 मिली काढ़े का सुबह-शाम सेवन करने से सफेद प्रदर यानी ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।

#- रक्तप्रदर - मासिकस्राव - 10 ग्राम नीम के छाल के साथ बराबर गिलोय को पीसकर दो चम्मच मधु मिला कर दिन में तीन बार पिलाएं। इससे मासिक के दौरान अधिक रक्तस्राव होने में लाभ होता है।

#- मासिक विकार - नीमतैल -4 ग्राम , पुराना गुड 20 ग्राम दोनों को 300 मिली पानी में पकायें , 100 मिली पानी शेष रहने पर छानकर पीयें रूका हुआ मासिकधर्म होने लगता है।


#- प्रसव दर्द - नीम प्रसव के दौरान या बाद में होने वाले परेशानियों को दूर करता है। प्रसव के दौरान ज्यादा दर्द हो रहा हो तो 3-6 ग्राम नीम के बीज के चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है।

#- सूतिका रोग - कष्टप्रसव एवं सूतिका रोग में 3-6 ग्राम निम्ब बीज चूर्ण का सेवन लाभकारी है। नीम के शुष्क फलो का चूर्ण का दाल तथा शाक में छौंक लगाने से वह विशेष गुणकारी एवं अनेक रोगनाशक हो जाता है।

#- प्रसवोपरान्त दूषित रक्त - प्रसव के बाद रुके हुए दूषित खून को निकालने के लिए 10-20 मिली नीम के छाल के काढ़े को 6 दिन तक सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

#- प्रसवोपरान्त रोग - नीम की 6 ग्राम छाल को पानी के साथ पीस लें। 20 ग्राम गाय का घी मिलाकर कांजी के साथ पिलाने से प्रसव के बाद होने वाले रोगों में लाभ होता है।

#- प्रसवोपरान्त बाल सुरक्षा - नीम की लकड़ी को प्रसूता के कमरे में जलाने से नवजात बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है।

 #- सिकता मेह - 10-20 मिलीग्राम निम्बछाल क्वाथ को नियमित रूप से प्रात:काल सेवन करने से लाभ होता है ।
#- सूजाक - 40 ग्राम निम्बछाल को यवकूट करके ढाई लीटर जल डालकर मिट्टी के बर्तन में पकाये , 200 मिली शेष रहने पर छानकर पुन: पकाऐं और 20-25 ग्राम कलमीशोरा चूर्ण चूटकी से डालते जायें और नीम की लकड़ी से हिलाते जायें शुष्क हो जाने पर पीस- छाकर रख लें । 250 मिली की मात्रा प्रतिदिन गाय के दूध की लस्सी के साथ सेवन कराने से शीघ्र लाभ होता है।

#- घाव उपदंश -उपदंश

या

सिफलिस

एक

प्रकार

का

यौन

रोग

होता

है।

इसमें

भी

नीम

से

लाभ

होता

है।

20

ग्राम

नीम

छाल

को

मोटा

कूट

कर

1

लीटर

खौलते

हुए

पानी

में

डालकर

,

रात

भर

रहने

दें।

सुबह

छानकर

50

मिली

की

मात्रा

में

रोगी

को

पिलाएं

और

शेष

पानी

से

लिंग

के

घाव

को

साफ

करें।

इस

प्रयोग

के

दौरान

केवल

गाय का

घी

,

खांड

और

गेहूं

की

पतली

रोटी

खाने

को

दें।



#- गर्भनिरोधक - नीम के शुद्ध तेल में रूई का फाहा गीला करके सहवास से पहले योनि के भीतर रखने से गर्भ स्थापित नहीं होता।

#- गर्भनिरोधक - नीम के तैल में डुबोकर तैयार पिचु को योनि में धारण करने से गर्भ नहीं ठहरता , अत: यह परिवार नियोजन का अच्छा साधन है।

#- गर्भनिरोधक - 10 ग्राम नीम के गोंद को 250 मिली पानी में गलाकर कपड़े से छान लें। इस पानी में 45 सेमी लम्बा और 45 सेमी चौड़ा साफ मलमल का कपड़ा भिगोकर छाया में सुखा लें। सूखने पर 0.3 सेमी व्यास के गोल-गोल टुकडे काटकर साफ शीशी में भर लें। सहवास से पहले एक टुकड़ा योनि के अन्दर रख लें। इससे गर्भ नहीं ठहरता। एक घंटे बाद निकालकर फेंक दें।
 

#- अगर

आप

किसी

प्रकार

के

जीवाणु

के

संक्रमण

से

परेशान

है

तो

नीम

े तैल का

प्रयोग

आपके

लिए

फायदेमंद

हो

सकता

है

क्योंकि

रिसर्च

के

अनुसार

नीम

में

जीवाणुरोधी

गुण

पाए

जाते

हैं।

 

 

#- एंटीबायोटिक - नीम कोमल पत्तियों का सेवन आपको मदद कर सकता है क्योंकि नीम में एक रिसर्च के अनुसार एंटी डायबिटिक की क्रियाशीलता पायी जाती है जिस कारण से यह शर्करा की मात्रा को रक्त में नियंत्रित करने में मदद करता है।
 
#- अस्थमा - नीम का प्रयोग अस्थमा के लक्षणों को कम करने सहायक होता है, क्योंकि नीम में कफ हर गुण होते है जो कि अस्थमा के लक्षणों को कम करने में मदद करते है। 
 
#- कैंसररोधी- रिसर्च में पाया गया है कि नीम पत्रस्वरस 10-20 मिलीग्राम का सेवन कैंसर को फैलने से रोकने में सहायक होता है, क्योंकि इसमें एंटी कैंसरकारी गुण होता है जिस कारण ये कैंसर को शरीर में फैलने से रोकता है। 
 
#- रक्तशोधक - अगर आपके रक्त में अशुद्धियों के कारण आप त्वचा संबंधी विकरो से परेशान हैं तो, नीम पत्रस्वरस का सेवन आपके लिए रामबाण इलाज है, क्योंकि नीम में रक्त शोधक का गुण पाया जाता है। 
 


#- जोड़ो का दर्द - अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान है तो आप नीम के पत्तों का लेप का प्रयोग कर सकते है, क्योंकि नीम में एंटी इंफ्लेमेटरी का गुण पाया जाता है जो कि जोड़ों के सूजन को दूर कर दर्द में आराम देता है। 
 


#- कोलेस्ट्राल - नीम पत्ती का एक्सट्रैक्ट आपके कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है क्योकि रिसर्च के अनुसार नीम पत्ती  मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ने नहीं देती है। 
 
#- मुँह के छालें - यदि आप छालों से परेशान है तो आपके लिये नीम की पत्ती चबाना साथ ही उनको खाना फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि नीम की पत्तियों में रोपण (हीलिंग) का गुण होता है जो कि छालों को जल्दी भरने में मदद करता है। 
 
#- मुँहासे - त्वचा विकार ठीक करने वाला सबसे प्रसिद्ध प्राकृतिक साधन है। साथ ही ये मुंहासो पर दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है यानि की नीम को चेहरे पर सीधे ही लगा सकते है और इसको खाने से भी त्वचा के विकार या बीमारियां ठीक होते है। 
 
#- लीवर - यदि आप लीवर के कारण पाचन संबंधी समस्याओं से परेशान हैं तो, आप नीम पत्रस्वरस का सेवन शुरू कर सकते हैं। क्योकि नीम में हेपटो प्रोटेक्टिव का गुण होता है, जो कि लीवर को स्वस्थ रख कर पाचन की समस्याओं से छुटकारा दिलाता है  
 
#- एंटीवायरल - त्वचा में संक्रमण से राहत दिलाने में नीम पत्रस्वरस से अच्छा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि नीम में एन्टीबैट्रिअल और एंटीवायरल जैसे गुण पाये जाते है जो कि त्वचा के संक्रमण को दूर करने मदद करते हैं। 
 
#- जीव जन्तु विष - दो भाग निबौली में 1-1 भाग सेंधा नमक तथा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद या गाय का घी मिलाकर सेवन करने से वनस्पति तथा जीव-जंतु के विष के प्रभाव नष्ट होते हैं।

#- उलटियाँ - 8-10 पकी कच्ची निबौलियों को पीसकर गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से उलटी हो जाती है।

#- विष के दुष्प्रभाव - इससे अफीम, संखिया, वत्सनाभ आदि के विषों का असर जल्द ही खत्म हो जाता है।

#- विष निषप्रभाव - कहा जाता है कि जब सूर्य मेष राशि में हो तब नीम के पत्ते साग के साथ मसूर की दाल सेवन करने से एक वर्ष तक विष से कोई डर नहीं रहता तथा विषैले जन्तु के काटने पर भी कोई प्रभाव नहीं होता है।
 
#- दातुन - सुबह उठते ही नीम की दातुन करने तथा फूलों के काढ़े से कुल्ला करने से दांत और मसूड़े निरोग और मजबूत होते हैं।

#- आरोग्य - नीम के पेड की छाया , दोपहर को नीम की शीतल छाया में आराम करने से शरीर स्वस्थ रहता है।

#- मच्छर भगाये- शाम को इसकी नीम की सूखी पत्तियों के धुएँ से मच्छर भाग जाते हैं।

#- पाचन - नीम की मुलायम कोंपलों को चबाने से हाजमा ठीक रहता है।

#- कीड़ों से बचाव - नीम की सूखी पत्तियों को अनाज में रखने से उनमें कीड़े नहीं पड़ते।

#- जुएँ - नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर स्नान करने से अनेक रोगों से छुटकारा मिल जाती है। सिर-स्नान से बालों के जुएं मर जाते हैं।

#- कीलमुहासें - नीम की जड़ को पानी में घिसकर लगाने से कील-मुंहासे मिट जाते हैं और चेहरा सुन्दर हो जाता है।

#- गर्भनिरोधक - नीम के तेल में डुबोकर तैयार पोटली को योनि में रखने से गर्भ नहीं ठहरता। इसलिए यह परिवार नियोजन का अच्छा साधन है।

#- रक्तशोधक - नीम के पत्तों का रस खून साफ करता है और खून बढ़ाता भी है। इसे 5 से 10 मिली की मात्रा में रोज सेवन करना चाहिए।

#- बवासीर - रोज नीम के 21 पत्तों को भिगोई हुई मूंग की दाल के साथ पीस लें। बिना मसाला डाले, गाय के घी में पकौड़ी तल कर 21 दिन खाने से और खाने में केवल गौतक्र ( छाछ ) और अधिक भूख लगने पर भात खाने से बवासीर में लाभ हो जाता है। इस दौरान नमक बिल्कुल खाएं (थोड़ा सेंधा नमक ले सकते हैं)
 
#- कामशक्ति -दुर्बलकामशक्ति वालें प्रयोग न करें , नीम कामशक्ति को घटाता है। इसलिए जिनको ऐसी परेशानी हो उन्हें नीम का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

#- शराबियो को नहीं - सुबह-सवेरे उठकर मद्यपान (शराब का सेवन) करने वालों को भी नीम का सेवन नहीं करना चाहिए।

#- नीम के दुष्प्रभाव - नीम के खाने से कोई परेशानी हो रही हो तो सेंधा नमक, गाय का घी और गाय का दूध इसके दुष्प्रभाव को दूर करते हैं।
 




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