Monday 28 June 2021

रामबाण योग :- 118 -:

रामबाण योग :- 118 -:


खुरासानी अजवायन -

खुरासानी अजवायन के वृक्ष हिमाचल में कश्मीर से गढ़वाल तक 8000 से 11000 फीट तक की ऊंचाई पर पैदा होते हैं। यह एक क्षुप जाति का पौधा है। इसका प्रकांड सीधा और पुस्ट होता है। इसमें एक प्रकार की तेज सुगंध आती है, जो कुछ कुछ अग्रियसी होते हैं। इसके पत्ते कटे हुए और कंगुरेदार होते हैं। इसके फूल पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं। इनमें दो बैगनी रंग की धारियां होती हैं। भारतीय चिकित्सकों ने इस औषधि को अजवायन के समान समझकर इसका नाम खुरासानी अजवायन या पारसीक यामानी रख दिया मगर वास्तव में यह औषधि अजवायन के वर्ग की नहीं है, बल्कि उससे बिल्कुल भिन्न बदखन या सोलेनेसोई वर्ग की औषधि है, जिसमें बेलेडोना, धतूरा आदि विषैली दवाइयां सम्मिलित है। यूनानी चिकित्सा मीर मुहममद हुसैन ने बंज के नाम से इस औषधि का वर्णन किया है। जिसकी सफेद काली और लाल भेद से तीन प्रकार की मानते हैं। इसमें सफेद जाति
सबसे उत्तम मानी जाती है। इसके अतिरिक्त इसका एक भेद और होता है, जिसे को ही भंग कहते हैं। यह बहुत ज़हरीली होती है।ख़ुराफ़ाती अजवायन को संस्कृत- परसीक यमानी(Parsik Yamani), तुरुष्का मड़करिनी(Turuska Madkarini)। हिंदी- खुरासानी अजवायन(Khurasani Ajwain)| लेटिन- Hyoscyamus Niger कहते है। आयुर्वेदिक मतानुसार खुरासानी अजवायन अर्थात पारसीक यमानी के बीज तीखे कड़वे, गरम, अग्नि को दीप्त करने वाले, आंतों को सिकुड़ने वाले, मादक, भारी, अग्नि वर्धक तथा अजीरण, पेट के कीड़े, आमसूल और कफ को नष्ट करने वाले होते हैं।

रासायनिक विश्लेषण - Ajwain chemical analysis 
इसके बीजों में हायोसायमीन नामक एक नशीला उपक्षार और एक तेल पाया जाता है। ब्रिटिश फार्मा कॉपियों में इस औषधि के रासायनिक विश्लेषण में पाए जाने वाले उपक्षार का जो अंकड़ दिया हुआ है, उस की अपेक्षा कोलकाता के ट्रॉपिकल मेडिसिन और हायंश स्कूल में इस औषधि का विश्लेषण करने पर यह उपक्षारिय तत्व कम पाया गया। ब्रिटिश फॉर्म कोमियो ने जहां इस औषधि में 1065 उपक्षार तत्व बतलाए गए हैं, वहां यहां पर इसमें केवल तीन उपक्षारि तत्व पाया गया, इससे मालूम होता है कि यूरोप में पाई जाने वाली खुरासानी अजवायन से देशी खुरासानी अजवायन में उपचारित कम है। एलोपैथिक चिकित्सा के अन्तर्गत इस औषधि की समनता एट्रोपिं और बेलेडोना के साथ की जाती है ।

खुरासानी अजवायन वेद नाशक, निद्रा जनक, संकोच विकास प्रतिबंधक, अवसादक और कुछ मुलात्र होता है।
छोटी मात्रा में हृदय की गति को धीमा कर के उसे बल देता है मगर अधिक मात्रा में हृदय के लिए हानिकारक होता है। इसकी अवसादक क्रिया मस्तिष्क पर, ज्ञानेंद्रिय पर, आंतों पर विशेष रूप से दिखाई देती है। इस औषधि के देने से गहरी निद्रा आ जाती है। नींद आने के लिए और वेदना को समन करने के लिए इसी के मुकाबले की दूसरी औषधि अफीम है। परंतु जिन रोगियों को अफीम नहीं दी जाती उन रोगियों को भी यह दी जाती है। अफीम को देने से कब्जियत हो जाती है मगर खुरासानी अजवायन से कब्जियत बिल्कुल नहीं होती बल्कि इसको लेने से दस्त साफ होता है। 

इस औषधि की क्षमता ( समान ) करने वाली दूसरी औषधि धतूरा है। मगर धतूरे की अपेक्षा भी यह श्रेष्ठ है क्योंकि धतूरे से रोगी को भ्रम और मद पैदा हो जाता है। खुरासानी अजवायन से भ्रम नहीं होता। यह औषधि सब स्नायुयो पर शामक असर डालता है, इसलिए इससे मन शांत होता है और सुखपुर्वक गाढ़ी निद्रा आती है। धतूरे से आने वाली नींद गाढ़ी नहीं होती है। औषधि को प्रारंभ में थोडी मात्रा में लेना चाहिए और धीरे-धीरे करके इसकी मात्रा बढ़ाना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए हानिकारक होता है और तमाम उन्नतशील राष्ट्रों के फर्मकोपियो में यह सम्मत है।

#- नशा - खुरासानी अजवायन दूसरे दर्जे में ठंडी और रूक्ष तथा काली खुरासानी अजवायन, तीसरे दर्जे में ठंडा और रूक्ष है। यह नशा लाने वाली और कंठमाला रोग में नुकसान करने वाली है।

#- कामोद्दीपक - खुरासानी अजवाय के बीज 5 मिलीग्राम लेने से लाभ होता है क्योकि यह स्वाद में कुछ कड़वे और कामोद्दीपक है। यह नशीली और नींद लाने वाली होती है।

#- दांतदर्द - खुरासानी अजवाइन पत्ते कफ निस्ससारक हैं। दांतो के दर्द में यह कुल्ले करने में
काम में लिए जाते हैं। इनसे मसूड़ों में खून भी बंद हो जाता है। 

#- छाती की जलन व सूजन - खुरासानी अजवायन के पत्ते पीसकर लेप करने से  संधिवात, यकृत की सूजन और छाती की जलन में भी लाभ पहुंचाता है।

#- पीड़ा - खुरासानी अजवायन के 5 मिलीग्रम पत्तों का स्वरस यकृत की पीड़ा में यह एक उत्तम उपचार है। 

#- अफारा व निद्रा - खुरासानी अजवायन 5 मिलीग्राम की मात्रा में लेने से विरेचक, उपशामाक, पेट के आफ़रे को दूर करने वाली तथा निद्रा कारक है। यह स्वास की बीमारी में भी लाभ पहुंचाता है।

#- श्वास रोग - खुरासानी अजवायन का 5 मिली पत्र स्वरस लेने से श्वास, कुकुर खांसी इत्यादि रोगों में यह उपशामक औषधि की तरह काम में लिए जाते हैं। बच्चों की शिकायतों में जहां पर अफीम काम में नहीं ली जा सकती उसके बदले में यह काम में लिए जा सकते हैं।

#- नज़ला - खुरासानी अजवायन 200-400 मिलीग्राम चूर्ण यह औषधि सब प्रकार के नजले में लाभ पहुंचाने वाली, कफ की खासी को मिटाने वाली, कफ के अंदर खून का आना बंद करने वाली तथा रूक्षता पैदा करने वाली है।


#- आँख ,कान, नाक रोग - खुरासानी अजवायन आंखों से पानी जाने में, कान के रोग में, नाक की तकलीफ में, सिर दर्द में और जोड़ों के दर्द में भी ये मुफीद है।

#- दाँतो की सड़न , श्वास रोग - ( धूम ) खुरासानी अजवायन 200-400 मिलीग्राम , इसका धुआं खाज और खुजली में, दांतों की सड़न में, खांसी में और वायु नालियों के प्रवाह में उपयोगी है। यह पेट के शूल को भी नष्ट करता है।

#- विशेष - खुरासानी अजवायन के बीज मुसलमान वैद्यों के द्वारा कई वर्षों से उपयोग में लिए जा रहे हैं। यद्यपि यह औषधि हिमालय में पैदा होती है फिर भी प्राचीन हिंदू आयुर्वेद ग्रंथों में इसका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता है।

#- खालित्य - खुरासानी अजवायन के बीज स्वरस का सिर पर लेप करने से गंजापन में लाभ होता है।

#- नेत्रजलस्राव - 2-3 ग्राम खुरासानी अजवायन के बीज को कूटकर रात को 100 मिलीग्राम पानी में भिगो दें। प्रात: पानी से आँखें धोने से आँखों से आने वाला पानी व अन्य नेत्र रोगों में लाभ होता है।

#- आँखों की सूजन - खुरासानी अजवायन के पत्तों को गरम करके आँख के उप्र बाँधकर रखने से आँखों की सूजन व पीड़ा में लाभ होता है।

#- कर्णरोग - खुरासानी अजवायन से पके तिल तैल को कान में 2- 2 बूँद टपकानें से कान का दर्द मिटता है।

#- कान रोग - खुरासानी अजवायन के पुष्प स्वरस को कान में डालने से कान के दर्द में लाभ होता है।

#- दन्तशूल - खुरासानी अजवायन के पत्तों का क्वाथ का कवल एवं गण्डूष धारण करने से दंत के दर्द तथा मसूडो से होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है।

#- श्वास रोग - 5 मिलीग्राम पत्रस्वरस में शहद मिलाकर सेवन करने से श्वास कष्ट तथा कुक्कुरकास में लाभ होता है।

#- उदरशूल - खुरासानी अजवायन में गुड मिलाकर गोली बनाकर देने से पेट की पीड़ा मिटती है । इसके 1-2 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम कालानमक मिलाकर खिलाने से लाभ होता है।

#- उदरशूल - 2-4 बूँद खुरासानी अजवायन तैल को एक ग्राम सोंठ चूर्ण में मिलाकर खाने से तथा ऊपर से 15-20 मिलीग्राम गर्म सौंफ का अर्क पिलाने से उदर पीड़ा शान्त हो जाती है। अथवा इसके 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में थोड़ा गुड मिलाकर पिलाएँ ।

#- कृमि विकार - जिस रोगी के पेट में कीडे हो , वह सुबह ही 5 ग्राम गुड खाकर , कुछ समय बाद खुरासानी अजवायन के 1-2 ग्राम चूर्ण को बासी पानी के साथ सेवन करने से आँतों में स्थित कीडे बाहर निकल जाते है।

#- यकृत पीड़ा - खुरासानी अजवायन के तैल को छाती तथा उदर पर लेप तरने से पुरानी यकृत की पीड़ा तथा छाती के दर्द में बहुत लाभ होता है।

#- यकृत पीड़ा - शराब के साथ खुरासानी अजवायन पीसकर उदर के ऊपर लेप करने से यृकतशूल तथा यकृतशोथ का शमन करता है।

#- मूत्ररोग - 15-20 बूँद बीज सत्त् को दिन में 3-4 बार देने से मूत्रेन्दिय सम्बंधी पीड़ा रोगों में मूत्र विरेचन होकर शान्ति मिलती है।
 
#- गुर्दे की पथरी - 15-20 बूँद बीज सत्त् को दिन में 3-4 बार देने से मूत्रेन्दिय सम्बंधी पीड़ा रोग व गुर्दे की पथरी मूत्र विरेचन होकर बाहर निकलकर शान्ति मिलती है।

#- गर्भाशय की पीड़ा - गर्भाशय की पीड़ा मिटाने के लिए खुरासानी अजवायन की बत्ती बनाकर योनि में रखनी चाहिए इससे आराम आता है।

#- स्तनशोथ - खुरासानी अजवायन के पत्रों को पीसकर लेप करने से स्तन की सूजन में लाभ होता है।

#- सन्धिवात - खुरासानी अजवायन बीज को तिल के तेल में सिद्ध कर मालिश करने से संधिवात व गृधसी , कमरदर्द , इत्यादि रोगों में लाभ होता है।

#- आमवात - खुरासानी अजवायन की पत्र व बीज का लेप करने से तथा सूजनयुक्त स्थान पर पत्र कल्क की पुलटीश बाँधने से आमवात तथा वातरक्तजन्य शोथ एवं शूल में लाभ होता है।

#- कम्पवात - खुरासानी अजवायन पत्रों को पीसकर लेप बनाकर लगाने से लाभ होता है।

#- द्रदू - राल , टंकण, गंधक , तथा खुरासानी अजवायन बीज को मिलाकर टिकियां बना ले , इस टिकियां को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर लेप करने से दाद- खाज में लाभ होता है।

#- मानसिक रोग , आवेश - 25-30 मिलीग्राम जल मे 5-10 बूँद खुरासानी अजवायन बीज तैल को मिलाकर पिलाने से स्त्रियों का हिस्टिरिया व शूल में लाभ होता है।

#- मात्रा - 200-400 मिलीग्राम , जलसार 3-6 बूँद , शुष्क सार 15-60 मिलीग्राम , मूलार्क 3-6 बूँद की ही मात्रा प्रयोग करें, अधिक करने पर भ्रम, सूजन, उन्माद , सन्यास, त्वचारोग, आदि रोग हो सकते है।



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