Sunday 27 June 2021

रामबाण योग :- 117 -:


रामबाण योग :- 117 -:

अतीस –

आयुर्वेद में अतीस के गुणों के आधार पर इसका प्रयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। वैसे के शिशु संबंधित कई तरह के बीमारियों के लिए अतीस को गुणकारी माना जाता है। असल में अतीस एक प्रसिद्ध वनौषधि है। अतीस सर्दी-खांसी, उल्टी, दस्त, फोड़ा-फून्सी जैसे कई बीमारियों के लिए आयुर्वेद में इलाज के तौर पर प्रयोग किया जाता है। अतीस वनौषधि का ज्ञान हमारे आचार्यों को अत्यन्त प्राचीनकाल से था। प्राय: समस्त रोग को दूर करने वाली होने से यह विश्वा या अतिविश्वा के नाम से वेदों में प्रसिद्ध है। यजुर्वेद अ. 12 मत्र 84 अतिविश्वा परिष्ठास्तेन' इत्यादि जो ऋचा है, उसमें अतिविश्वा' शब्द अतीस के लिए लिया गया
है। चरक संहिता के लेखनीय, अर्शोघ्न इत्यादि प्रकरणों में तथा आमातिसार के प्रयोगों में इसका उल्लेख पाया जाता है। सुश्रुत के शिरोविरेचन अध्याय तथा वचादि, पिप्पल्यादि व मुस्तादिगण में भी इसका उल्लेख है। इस बूटी की विशेषता यह है कि यह विष वर्ग वत्सनाभ कुल की होने पर भी विषैली नहीं है। इसके ताजे पौधों का जहरीला अंश केवल छोटे जीव जन्तुओं के लिए प्राणघातक है। यह विषैला प्रभाव भी इसके सूख जाने पर  ज्यादातर उड़ जाता है। छोटे-छोटे बालकों को भी दिया जा सकता है। परन्तु इसमें एक दोष है कि उसमें दो महीने बाद ही घुन लग जाता है।

अतीस पाचन संबंधी रोग, बुखार, कृमि, बालकों के उल्टी, खाँसी आदि रोगों में विशेष रुप से उपयोगी होता है। अतीस की जड़ भी पाचन संबंधी समस्या में लाभकारी, शक्तिवर्द्धक, कफ दूर करने वाला, बुखार, कृमिरोग, अर्श या पाइल्स, ब्लीडिंग, भीतरी सूजन तथा कमजोरी में फायदेमंद (ativisha benefits in hindi) होता है| अतीस का वानास्पति नाम Aconitum heterophyllum Wall. ex Royle (ऐकोनिटम हेटरोफाइलम) Syn-Aconitum cordatum Royle होता है। अतीस Ranunculaceae (रैननकुलैसी) कुल का है। अतीस को अंग्रेजी में Indian Aconite (इंडियन एकोनाइट) कहते हैं। लेकिन भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में अतीस को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जैसे-Sanskrit-अतिविषा, शिशुभैषज्या, विश्वा, शृङ्गी, अरुणा, प्रतिविषा, उपविषा, भङ्गुरा, घुणवलल्भा, कश्मीरा, शुक्लकन्दा; Hindi-अतीस, अतिविख; Urdu-अतीस कहते है |

अतीस के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में कई बीमारियों के लिए इसका प्रयोग औषधि के रुप में किया जाता है।
चलिये अतीस के फायदों के बारे में विस्तार से जानते हैं कि यह किन-किन बीमारियों में और कैसे उपचार स्वरुप काम करता है। 

# खाँसी –5 ग्राम अतीस के जड़ से बने चूर्ण में 2 चम्मच मधु मिलाकर चटाने से खांसी मिटती है।

#- श्वास रोग - 2 ग्राम अतीस और 1 ग्राम पोखर-जड़ (पुष्कर मूल) के चूर्ण में 2 चम्मच मधु मिलाकर चटाने से सांस संबंधी रोग और खांसी में लाभ होता है। (प्राय: हिमालय के उच्च क्षेत्रों में अतीस और कुटकी ही अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता है।)

# - खाँसी - सोंठ, अतिविषा, नागरमोथा, कर्कट शृंगी तथा यवक्षार से बनाए चूर्ण (1-2 ग्राम) में
मधु मिलाकर सेवन करने से खाँसी से छुटकारा मिलता है।

#-बच्चों की खाँसी - 20 ग्राम अतीस और 15 ग्राम वायविडंग दोनों को कूटकर आधा लीटर जल में पकाएं। जब जल का चौथाई शेष रहने पर उतार लें, ठंडा कर छान लें, फिर मिश्री मिलाकर शरबत की चाशनी तैयार करें। इसके बाद उसमें चौकिया सुहागा की खील 5 ग्राम पीसकर मिला लें। एक वर्ष तक के बच्चे को गाय के दूध में मिलाकर पांच बूंद तक देने से खांसी से आराम मिलता है। इसके अलावा शिशु को महालाक्षादि तेल की मालिश करने  से उनका शरीर पुष्ट होता है और विकास में भी मदद मिलती है। अतीस  सांस संबंधी समस्या और अपच आदि रोगों में भी फायदेमंद होता है।

#- उल्टी, छर्दि - अगर मसालेदार खाना खाने या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के वजह से उल्टी हो रही है तो अतीस (Atees)का सेवन इस तरह से करने पर फायदा (ativisha benefits in hindi) मिलता है। 2 ग्राम
नागकेशर और 1 ग्राम अतीस के चूर्ण को खाने से उल्टी बंद होती है।

#- उल्टीयां -लाल चंदन, खस, नेत्रवाला, कुटज की छाल, पाठा, कमल, धनिया, गिलोय, चिरायता, नागरमोथा, कच्चाबेल, अतीस तथा सोंठ इन औषधियों से बनाए काढ़े में मधु मिलाकर पीने से उल्टी से जल्दी आराम मिलता है।

#- मंदाग्नि - अगर खाना हजम करने में असुविधा होती है और बार-बार एसिडिटी की समस्या हो रही है तो अतीस का सेवन पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। 2 ग्राम अतीस-जड़ के चूर्ण को 1 ग्राम सोंठ या 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ मिलाकर मधु के साथ चटाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।

#- दस्त, अतिसार - अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो अतीस का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।3 ग्राम अतीस के चूर्ण को, 3 ग्राम
इन्द्रजौ की छाल के चूर्ण और 2 चम्मच शहद के साथ देने से अतिसार और रक्तपित्त में लाभ होता है।

#- अतिसार - अतिविषावलेह-(बेल की गिरी), मोचरस, लोध्र, धाय का फूल, आम की गुठली की मींगी, अतिविषा तथा शहद को सही 1-2 ग्राम चूर्ण की मात्रानुसार सेवन करने से  अतिसार या दस्त के गंभीर अवस्था में लाभ होता है।

# बच्चों के दस्त व दर्द और तेज़ बुखार - अतीस के कन्द (bulb) को पीसकर चूर्ण कर शीशी में भरकर रख लें, बालकों में होने वाले (पेट दर्द, ज्वर या बुखार, अतिसार या दस्त आदि) रोगों में यह लाभकारी होता है। बालक की उम्र के अनुसार 250 से 500 मिग्रा तक शहद के साथ दिन में दो तीन बार चटाने से बालकों के सभी रोगों में लाभ होता है।

#- आमातिसार -अतिसार और आमातिसार में 2 ग्राम अतीस के चूर्ण को देकर 8 घण्टे तक पानी में भिगोई हुई 2 ग्राम सोंठ को पीसकर पिलाने से लाभ होता है। जब तक अतिसार नहीं मिटे तब तक रोज देते रहना चाहिए।

#- हैज़ा व प्लेग रोग - अतीस-की जड़ को कूटकर रात में दस गुने जल में भिगो दें। सुबह इसको पकाएं, जब शहद जैसा गाढ़ा हो जाय या गोलियां बनाने लायक हो जाए तो 500-500 मिग्रा की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। विसूचिका (हैजा) में 3-3 गोली 1-1 घण्टे के अन्तर से तथा प्लेग में 3-3 गोली दिन में बार-बार खिलायें।

#- अतिसार - 1 ग्राम से 10 ग्राम तक अतीस को पानी में पीसकर दिन में 2-3 बार, बल और आयु के अनुसार देने से अतिसार में लाभकारी होता है।

#- संग्रहणी व पेचिश - संग्रहणी या पेचिश अगर ठीक नहीं हो रहा है तो अतीस का औषधीय गुण लाभकारी सिद्ध हो सकता है।  अतिसार पतला, सफेद, दुर्गन्ध युक्त हो तो 10-10 ग्राम अतीस और शुंठी दोनों को
कूटकर, 2 ली पानी में पकाएं। जब आधा शेष रह जाए तब छौंककर, फिर इसमें थोड़ा अनार का रस और लवण मिलाकर, थोड़ा-थोड़ा करके दिन में 3-4 बार पिलाने से संग्रहणी और आमातिसार में लाभ होता है। इसके अलावा अतीस के दो ग्राम चूर्ण को हरड़ के मुरब्बे के साथ खिलाने से आमातिसार दूर  होता है।

#-पेट की गड़बड़ी - अक्सर किसी एलर्जी के वजह से या किसी बीमारी के कारण इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम यानि पेट में गड़बड़ी की समस्या होती है। अतीस का सेवन इस रोग में लाभकारी होता है। सोंठ, अतिविषा तथा नागर -मोथा से बनाए काढ़े या पेस्ट को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से आमदोष का पाचन होकर ग्रहणी में लाभ होता है। इसमें गुडुची ( गिलोय ) मिलाकर पीने से विशेष लाभ होता है।

#- पेट दर्द -अंकोल के जड़ की त्वचा का चूर्ण (3 भाग) तथा अतीस-चूर्ण (1 भाग) को मिलाकर 1-3 ग्राम की मात्रा में तण्डुलोदक के साथ पीने से ग्रहणी और पेट दर्द आदि रोग में लाभकारी होता है। 

#- रक्तार्श - अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।अगर समय रहते खान-पान में सुधार नहीं किया तो रक्तार्श में परिवर्तित हो सकता है।अतीस में राल और कपूर मिलाकर इसके धूँएं से सेंकने पर बवासीर के ब्लीडिंग से राहत मिलती है। तथा 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।

#- रक्तप्रदर - इद्रजौ, अतीस, कटुत्रिक, बिल्व, नागरमोथा तथा धाय के फूल, इनका चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर खिलाने से रक्तप्रदर (Metrorrhagia) में लाभ होता है।

#- फोडा-फुन्सीं - फोड़ा-फून्सी अगर सूख नहीं रहा है तो अतीस का इस तरह से प्रयोग करने पर जल्दी सूख जाता है। अतीस के 5 ग्राम चूर्ण को खाकर ऊपर से चिरायते का अर्क पीने से फोड़े-फुन्सी आदि त्वचा रोगों से जल्दी छुटकारा मिलता है।

#- शिशुओं की रोगप्रतिरोधक क्षमतावर्धनार्थ - अगर आप बार-बार बीमार पड़ रहे हैं तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में अतीस बहुत लाभकारी होता है। नागरमोथा, अतीस, काकड़ा सिंगी और करंज के भुने हुए बीज, चारों द्रव्यों को समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाकर, इन्द्रयव की छाल के काढ़े में 12 घण्टे रखने के बाद 65 मिग्रा की गोलियां बना लें। दिन में दो बार सुबह-शाम 1-2 गोली देने से बच्चों के सब रोगों से शांती मिलती है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है।

#- दौर्बल्य - अगर लंबे बीमारी के कारण या पौष्टिकता की कमी के वजह से कमजोरी महसूस हो रही है तो अतीस का इस तरह से सेवन करने पर लाभ लेने के लिए 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।

#- बलवर्धनार्थ – छोटी इलायची और वंशलोचन, इन दोनों के साथ अतीस के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को मिलाकर मिश्री युक्त गाय के दूध के साथ लेने से शक्ति मिलती है एवं यह पौष्टिक व रोगनाशक होता है।

#- ज्वरोपरान्त दौर्बल्य - 3 ग्राम अतीस-चूर्ण तथा 125 मिग्रा लौहभस्म में 500 मिग्रा शुंठी-चूर्ण के साथ
मिलाकर सेवन करने से बुखार के बाद होने वाली दुर्बलता दूर होती है।

 #- श्वास रोग - श्वास सम्बंधित परेशानियां कफ दोष के बढ़ने के कारण होती हैं। अतीस में कफ शामक गुण पाए जाने के कारण यह इसके लक्षणों को कम करने में मदद करती है। 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते
हैं।

#-कृमि- बालरोग - अतीस बालरोग में भी फायदेमंद होती है जैसे- बच्चों के पेट में कीड़े होने आदि परेशानियों में यह अपने कृमिघ्न गुण के कारण लाभ देती है। साथ ही अतीस दीपन पाचन गुण के कारण यह  पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में भी मदद करती है। बच्चों को कृमि की समस्या सबसे ज्यादा होती है, इसके लिए अतीस का सेवन बहुत लाभकारी होता है। 2 ग्राम अतीस (ativisha)और 2 ग्राम वायविडंग का चूर्ण लेकर 1-1 ग्राम शहद के साथ चटाने से बच्चों के कृमि नष्ट हो जाती है।

#- पित्तज रोग - अतीस की तासीर गर्म होने के बाद भी यह पित्तज रोगों में भी लाभ पहुंचाता है। 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।

#- मुखरोग - मुख रोग में पाचन शक्ति का कमजोर होना भी एक कारण होता है इस अवस्था में अतीस का 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं। इसका प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें दीपन -पाचन का गुण पाया  जाता है।

#- वाजीकरण -  आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि न खाने का नियम और न ही सोने का। इसका सारा असर सेक्स लाइफ पर पड़ता है।  5 ग्राम अतीस के चूर्ण को शक्कर और गाय के दूध के साथ मिलाकर पीने से वाजीकरण गुणों (काम शक्ति) की वृद्धि होती है।

#- प्रयोग - आयुर्वेद में अतीस के जड़ का प्रयोग औषधि के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है।



 








 



 





 




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