Friday 18 June 2021

रामबाण योग :- 115 -:


रामबाण योग :- 115 -:

अकरकरा-    

अकरकरा का नाम बहुत कम लोगों को पता होगा। आप ये जानकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि अकरकरा के
औषधीय और आयुर्वेदिक गुण अनगिनत हैं। आयुर्वेद में अकरकरा पाउडर और चूर्ण का उपयोग दवा के रूप में किया जाता है। अकरकरा को सिर दर्द, दांत दर्द, मुँह के बदबू, दांत संबंधी समस्या, हिचकी जैसे बीमारियों के लिए जादू जैसा काम करता है। आयुर्वेद में अकरकरा का प्रयोग लगभग 400 वर्षों से किया जा रहा है।यद्यपि चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, तथापि यह नहीं माना जा सकता कि यह बूटी भारतवर्ष में पहले नहीं होती थी।
भारतवर्ष में पायी जाने वाली यह औषधि प्राय: तीन प्रकार की होती है

1.     Anacyclus pyrethrum (L.) Lag. (आकारकरभ)

2.     Spilanthes acmella var. oleracea C.B. Clarke, Syn-Acmellaoleracea (L.) R.K. Jansen (भारतीय अकरकरा)

3.     Spilanthes acmella var. calva (DC.) C.B. Clarke, Syn Acmellapaniculata (Wall. ex DC.) R.K. Jansen (दीर्घवृन्त अकरकरा)

मुख्यतया आयुर्वेदीय औषधि में Anacyclus pyrethrum (L.) Lagasca का प्रयोग किया जाता है परन्तु इसके अतिरिक्त अकरकरा की दो अन्य प्रजातियाँ प्राप्त होती हैं। जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है, अकरकरा (akarkara plant)में उत्तेजक गुण प्रमाणित में होने से आयुर्वेद में इसे कामोत्तेजक औषधियों में
प्रधानता दी गई है। इसे समान गुण वाली अन्य औषधियों के साथ मिलाकर प्रयोग करने से यह वीर्यवर्धक (सीमन बढ़ाने वाला), और सेक्स की इच्छा बढ़ाने में मदद करता है। कफ तथा शीत प्रकृति वाले व्यक्तियों को अकरकरा
के प्रयोग से विशेष लाभ होता है।

अकरकरा – यह शक्ति बढ़ाने वाला, कड़वा, लालास्रावजनक (Sialarrhea), नाड़ी को बल देने वाला, काम को उत्तेजित करने वाला, वेदना कम करने वाला तथा प्रतिश्याय (Coryza) और शोथ या सूजन को नष्ट करता है। इसकी जड़ हृदय को उत्तेजित करने में सहायक होती है। यह सूक्ष्मजीवाणुरोधी (Antimicrobial) कीटनाशक, दंतकृमि, दांत का दर्द, ग्रसनी का सूजन, तुण्डीकेरी शोथ (Tonsillitis), पक्षाघात या लकवा, अर्धांगघात, जीर्ण
नेत्ररोग, सिरदर्द, अपस्मार या मिर्गी, विसूचिका (Cholera),आमवात तथा टाइफस (Typhus) बुखार को कम करने वाला होता है।

भारतीय अकरकरा - यह रस में कड़वा; गर्म; रूखा, वात पित्त को कम करने वाला, लालास्राववर्धक, उत्तेजक, कफ कम करने वाला, पाचक, पेट दर्द तथा ज्वरनाशक होती है। इसका फूल कड़वा, शरीर की गर्मी कम करने में सहायक और वेदना हरने वाला होता है।
अकरकरा का वानास्पतिक नाम Anacyclus pyrethrum (L.) Lag. (ऐनासाइक्लस पाइरेथम) Syn-Anacyclus officinarum Hayne होता है। अकरकरा Asteraceae (ऐस्टरेसी) कुल का होता है।अकरकरा को अंग्रेजी में Pellitory Root (पेल्लीटोरी रूट) कहते हैं। लेकिन भारत के भिन्न भिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे- Sanskrit-आकारकरभ, आकल्लक; Hindi-अकरकरा;कहतेहै|

#- सिरदर्द – अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो अकरकरा का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी (akarkara benefits in hindi) सिद्ध होगा। अकरकरा के फायदे सिरदर्द से राहत दिलाने में बहुत मदद करता है।

#- सिरदर्द - अकरकरा की जड़ या फूल को पीसकर, हल्का गर्म करके ललाट (मस्तक) पर लेप करने से
मस्तक का दर्द कम होता है। इसके अलावा  इसके प्रयोग से मुख की दुर्गंध भी दूर हो जाती है, एक बार के प्रयोग के लिए एक फूल या थोड़ा कम पर्याप्त होता है।

#- सर्दी-खांसी,दांतदर्द सूजन  - अकरकरा के फूल को चबाने से जुकाम के कारण होने वाला सिर-दर्द तथा मस़ूड़ों की सूजन तथा दांत का दर्द कम होता है।

#- दांत दर्द - अगर दांत दर्द से परेशान हैं तो अकरकरा का इस तरह से सेवन करने पर जल्दी आराम मिलता है। 10 ग्राम अकरकरा की जड़ या पुष्प में 2 ग्राम कपूर तथा 1 ग्राम सेंधानमक मिलाकर, पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का मंजन करने से सब प्रकार के दंत दर्द से राहत मिलती है।

#- मुँह के बदबू - अकरकरा, माजुफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, कालीमिर्च तथा सेंधानमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूड़ों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं तथा मुख की दुर्गन्ध मिट जाती है। इसके अलावा अकरकरा का जड़ा या पुष्प, हल्दी तथा सेंधानमक को बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण में थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर दाँतों पर मलने से दांत का दर्द कम होता है; साथ ही मुख-दुर्गन्ध व मसूढ़ों की समस्या भी दूर होती है। यह एक चमत्कारिक प्रयोग है।

#- दांत की बीमारी - अकरकरा की मूल को चबाने से अथवा मूल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से कवल एवं गण्डूष धारण करने से दंतकृमि (दांत में कीड़ा लगना), दांत दर्द आदि दंत रोगों वातजन्य मुख-रोगों, तालु और गले के रोगों में बहुत लाभ होता है।

#- कंठ को मधुर बनाये अकरकरा - अकरकरा-चूर्ण  को 250-500 मिग्रा की मात्रा में सेवन करने से बच्चों का कंठ स्वर सुरीला हो जाता है। अकरकरा मूल या अकरकरा-फूल को मुंह में रखकर चूस भी सकते हैं यह कण्ठ के लिए बहुत लाभकारी है।

#- हिचकी - हिचकी आने पर आधा से एक ग्राम अकरकरा-मूल-चूर्ण को शहद के साथ चटाएं। हिचकी पर यह चमत्कारिक असर दिखाता है।

#- सांस संबंधी रोग - सांस संबंधी समस्याओं में अकरकरा
का औषधीय गुण  काम आता है। अकरकरा के कपड़छन चूर्ण (कपड़े से छाना हुआ) को सूंघने से श्वास में लाभ होता है।

#- सूखी खांसी - अगर मौसम के बदलाव के कारण सूखी खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो अकरकरा से इसका इलाज किया जा सकता है। 2 ग्राम अकरकरा एवं 1 ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है तथा अकरकरा चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कफज विकारों में लाभ होता है। इसके अलावा दो भाग अर्जुन की छाल और एक भाग अकरकरा-मूल-चूर्ण, दोनों को मिलाकर, पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी आदि हृद्-विकारों में लाभ होता है।

#- पेट दर्द - अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने लगती है। अकरकरा के जड़ का -चूर्ण  और छोटी पिप्पली-चूर्ण को समान मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी भुनी हुई सौंफ मिलाकर, आधा चम्मच सुबह शाम भोजनोपरांत (खाना खाने के बाद) खाने से पेट संबंधी समस्या में लाभ होता है

#- हृदय रोग - दो भाग अर्जुन की छाल और एक भाग अकरकरा की जड़ का चूर्ण, दोनों को मिलाकर, पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, दर्द, कम्पन और कमजोरी आदि हृदय संबंधी रोगों में लाभ होता है।

#- ह्रदय रोग - कुंजन, सोंठ और अकरकरा की 2-5 ग्राम मात्रा को 100 मिली पानी में उबालें, जब चतुर्थांश (1/4 भाग) काढ़ा शेष रह जाए तो इस काढ़े को नियमित रूप से पिलाने से घबराहट, नाड़ीक्षीणता, हृदय की
कार्य शिथिलता आदि हृदय संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है।

#- उदररोग -  पेट संबंधी विभिन्न बीमारियों जैसे पेट दर्द,पेट फूलना,अपच, बदहजमी जैसे बीमारियों में अकरकरा का सेवन फायदेमंद होता है।अकरकरा मूल-चूर्ण (akarkara patanjali) और छोटी पिप्पली-चूर्ण को समान मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी भुनी हुई सौंफ मिलाकर, आधा चम्मच सुबह शाम भोजनोपरांत (खाना खाने के बाद) खाने से उदररोगों या पेटदर्द में लाभ होता है।

#- बदहजमी - अगर आपके व्यस्त जीवनशैली के कारण बदहजमी की समस्या हो गई है तो शुंठी-चूर्ण और अकरकरा दोनों को 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर सेवन करने से मंदाग्नि (Indigestion) और अफारा (Flatulence) में मदद मिलती है।

#- मासिक धर्म - मासिक धर्म या पीरियड्स होने के दौरान बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे-मासिक धर्म होने के दौरान दर्द होना, अनियमित मासिक धर्मचक्र, मासिक धर्म के दौरान रक्तस्राव या ब्लीडिंग कम होना या ज्यादा होना आदि। इन सब में अकरकरा का घरेलू उपाय बहुत ही लाभकारी होता
है। अकरकरा-मूल का काढ़ा बनायें। 10 मिली काढ़े में चुटकी भर हींग डालकर कुछ माह सुबह-शाम पीने से मासिकधर्म ठीक होता है। इससे मासिकधर्म के दिनों में होने वाली दर्द से भी छुटकारा मिलती है।

#- सेक्चुअल स्टैमिना बढ़ाये - 20 ग्राम अकरकरा-मूल को लेकर उसका चतुर्थांश क्वाथ बना लें, अब इस
क्वाथ के साथ 10 ग्राम अकरकरा (akarkarain hindi)मूल को पीसकर पुरुष जननेन्द्रिय (शिश्न) पर लेप करने से, इन्द्रिय शैथिल्यता का शमन होता है। लेप कुछ घण्टों तक लगा रहने दें, लेप लगाते समय शिश्न के ऊपरी भाग (मणी) को छोड़कर लगाएं।

#- साइटिका का दर्द - अगर दिन भर बैठकर काम करने के कारण कमर दर्द से परेशान हैं तो अकरकरा  के जड़ के चूर्ण को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी या साइटिका में लाभ होता है।

#- अर्थराइटिस - अकरकरा की जड़ का पेस्ट या कल्क तथा काढ़े का लेप लगाने के बाद सिंकाई करने से या उससे धोने से आमवात (एक प्रकार का गठिया), लकवा तथा नसों की कमजोरी में लाभ होता है।

#- खुजली -   भारतीय अकरकरा के 5 से 7 ग्राम पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर प्रभावित स्थान को धोने से खुजली तथा छाजन में लाभ होता है।

#- अल्सर - अकरकरा के मूलार्क को घावों में या मूल को पाउडर कर घाव के ऊपर लगाने से घाव जल्दी भरता है व संक्रमण होने की सम्भावना भी नहीं रहती है। इसके अतिरिक्त अकरकरा के ताजे पत्ते व फूल को पीसकर
लगाने से दाद, खाज तथा खुजली ठीक हो जाती है।

#- मिर्गी - अकरकरा के फूल या जड़ को सिरके में पीसकर मधु मिलाकर 5-10 मिली की मात्रा में चाटने से या ब्राह्मी के साथ अकरकरा की जड़ का काढ़ा बनाकर पिलाने से मिर्गी का वेग रुकता है।

#- हकलाना - 2 भाग अकरकरा-मूल-चूर्ण, 1 भाग काली मिर्च व 3 भाग बहेड़ा छिलका लेकर पीसकर रखें, उसे 1-2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो से तीन बार शहद के साथ बच्चों को चटाने से टॉन्सिल में लाभ होता है। जिह्वा पर मलने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। 4-6 हफ्ते या कुछ माह तक प्रयोग करें।

#- लकवा - अकरकरा-मूल को बारीक पीसकर महुए के तेल या तिल के तैल में मिलाकर प्रतिदिन मालिश करने से अथवा अकरकरा की जड़ के चूर्ण (500 मिग्रा-1 ग्राम) को मधु के साथ सुबह शाम चटाने से पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।

#- चेहरे के पक्षाघात (लकवा ) - उशवे के साथ अकरकरा का 10-20 मिली काढ़ा बनाकर पिलाने से अर्दित (मुंह का लकवा) में लाभ होता है। अकरकरा के प्रयोग पक्षाघात में बहुत ही लाभप्रद होता है।

#- बुखार - अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में अकरकरा (akarkara in hindi)  बहुत मदद करता है।

# - बुखार - अकरकरा के 500 मिग्रा चूर्ण में 4-6 बूंद चिरायता अर्क मिलाकर सेवन करने से बुखार
में अत्यन्त लाभ होता है।

# - बुखार - 1 ग्राम अकरकरा-मूल, 5 ग्राम गिलोय तथा 3-5 पत्र तुलसी को मिलाकर काढ़ा बनाकर दिन में 2-3 बार देने से जीर्ण ज्वर, बार-बार होने वाले बुखार व सर्दी लगकर आने वाले बुखार का शमन होता है।

# - स्पर्म काउन्ट बढ़ाये - आजकल की जीवनशैली और आहार का बुरा असर सेक्स लाइफ पर पड़ रहा है जिसके कारण सेक्स संबंधी समस्याएं होने लगी हैं। 1 ग्राम आकारकरभादि चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से स्पर्म का काउन्ट बढ़ता  है|

# - बुद्धि विकास - एक रिसर्च के अनुसार अकरकरा में ब्रेन टॉनिक है साथ हि आयुर्वेद में इसको बुद्धिवर्धक भी
बताया गया है  जिसके कारण यह बुद्धि बढ़ने के सहायक है। 

# - शरीर की शुन्यता और आलस्य - अकरकरा को ब्रेन टॉनिक के रूप में जाना जाता है साथी आयुर्वेद के अनुसार भी शरीर के अंदुरुनी शक्ति बढ़ाने में सहायक है इन्हीं गुणों के कारण अकरकरा शरीर से आलस्य को दूर करने में सहायक है। 







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