Sunday 13 February 2022

रामबाण –123

अपराजिता –

बगीचों और घरों की शोभा बढ़ाने के लिए लगाया जाने वाला अपराजिता को आयुर्वेद में विष्णुक्रांता, गोकर्णी ,विष्णुप्रिया , कृष्णप्रिया , शिवप्रिया , दुर्गाप्रिया आदि नामों से जाना जाता है। आयुर्वेद में सफेद और नीले रंग के फूलों वालों अपराजिता के वृक्ष को बहुत ही गुणकारी बताया गया है। अपराजिता का प्रयोग महिला, पुरुष, बच्‍चों और बुजुर्गों के रोगों के उपचार के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। असाध्‍य रोगों पर विजय पाने की इसकी क्षमता के चलते ही ( कभी अपराजित न होने वाली ) इसे अपराजिता नाम से जाना गया है। अपराजिता के बीज सिर दर्द को दूर करने वाले होते हैं। दोनों ही प्रकार की अपराजिता बुद्धि बढ़ाने वाली, वात, पित्‍त, कफ ( त्रिदोषनाशक ) को दूर करनी वाली है। अपराजिता के इस्‍तेमाल से साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों का उपचार किया जा सकता है। यह शरीर के विभिन्‍न अंगों में होने वाले सूजन के लिए भी लाभप्रद है। अपराजिता का लता कोमल होती है। इस पर फूल विशेषकर वर्षा ऋतु में आते हैं। इसके फूलों का आकार गाय के कान की तरह होता है, इसलिए इसको गोकर्णी भी कहते हैं। अपराजिता सफेद और नीले रंग के फूलों के भेद से दो प्रकार की होती है।

नीले फूल वाली अपराजिता भी दो प्रकार की होती है :-

(1) इकहरे फूल वाली

(2) दोहरे फूल वाली।

कहा जाता है कि जब इस वनस्पति का रोगों पर प्रयोग किया जाता है तो यह हमेशा सफल होती है और अपराजित नहीं होती। इसलिए इसे अपराजिता कहा गया है। आमतौर पर अपराजिता के नाम से प्रचलित इस औषधीय वृक्ष को अन्‍य भाषाओं में अल-अलग नाम से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम  Clitoria ternatea L. (क्लाइटोरिया टर्नेशिया) Syn-Clitoria bracteata Poir. और अंग्रेजी नाम Winged-leaved clitoria (विंग्ड लीव्ड क्लाइटोरिया) है, और इसके अन्‍य नाम हैं

Hindi – अपराजिता, कोयल, कालीजार, English – बटरफ्लाई पी (Butterfly pea), ब्लू पी (Blue pea), पिजन विंग्स (Pigeon wings) ,Sanskrit – गोकर्णी, गिरिकर्णी, योनिपुष्पा, विष्णुक्रान्ता, अपराजिता ,Urdu – माजेरीयुनीहिन्दी (Mazeriyunihindi) कहते है |

 

*# - शिरोवेदना – अपराजिता की फली के 2– 4 बूंद रस का नस्य अथवा मूल के रस का नस्य प्रात :

खाली पेट एवम सूर्योदय से पूर्व देने से शिरोवेदना नष्ट होती है |

*# - आधाशीशी रोग -  अपराजिता की फली के बीज और जड़ को बराबर भाग में लेकर जल के साथ पीस लें। इसकी बूंद नाक में लेने से आधासीसी (अर्धावभेदक) में लाभ होता है।

 

*# - शिरोवेदना व आधाशीशी रोग -   ( टोटका ) अपराजिता मूल ( जड़ ) को कान में बांधने से भी लाभ होता है। बीज, जड़ और फली को अलग-अलग भी प्रयोग कर सकते हैं।

 

*# - आँखों के रोग - सफेद अपराजिता तथा पुनर्नवा की जड़ की पेस्‍ट में बराबर भाग में जौ का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह से घोंट लें। अब इसकी बाती( बत्ती ) बनाकर सुखा लें। इस बाती को पानी से घिसकर अंजन (आंखों में लगाने) करने से आंखों से जुड़ी सभी बीमारियों का उपचार होता है।

 

*# - कान दर्द - अपराजिता के पत्‍तों के रस को सुखाकर गर्म कर लें। इसे कानों के चारों तरफ लेप करने से कान के दर्द में आराम मिलता है।

 

*# - दांत दर्द - अपराजिता की जड़ की पेस्‍ट तैयार करें। इसमें काली मरिच का चूर्ण मिलाकर मुंह में रखें। इससे दांत दर्द में बहुत ही आराम मिलता है।  

 

# - कंठ रोग - 10 ग्राम अपराजिता के पत्‍ते को 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। इसका आधा भाग शेष रहने पर इसे छान लें। इस तरह से तैयार काढे  से गरारा करने पर टांसिल, गले के घाव में आराम पहुंचता है। गला खराब होने यानी आवाज में बदलाव आने पर भी यह काढ़े से गराना करना उपयोगी होता है।  

 

# - टुण्डीकेरी शोथ -  10 ग्राम अपराजिता पत्रों को 500 मिलीग्राम जल में क्वाथ कर , आधा शेष रहने पर सुबह-सायं गंडूष करने से टांसिल , गले के घाव तथा स्वरभंग में लाभ होता है |

 

# - गलगंड रोग ( घेंघा रोग ) - सफेद फूल वाली  अपराजिता की जड़ का पेस्‍ट बनाकर उसे गाय के घी में  अथवा गोमूत्र मिलाकर सेवन करें। इससे गले के रोग (गलगण्ड) में लाभ होता है।

 

*# - गंडमाला( अंजीर ) -  सफेद फूल वाले अपरजिता की जड़ को एलोवेरा (Aloe Vera) के ( पत्तो के छिलका में से धागे निकलते है ) रेशों में ( बांधकर  ) पिरोकर हाथ में बांधें। इससे हाल ही में हुआ ( सद्य:उत्पन्न )  गण्डमाला ठीक होता होता है।

 

# -  गलगंड - 1 ग्राम सफेद अपराजिता की जड़ को पीसकर सुबह -सुबह में पीने से तथा चिकना भोजन करने से गलगण्ड में लाभ होता  है।

 

# - गलगंड - सफेद अपराजिता की जड़ के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को गाय के  घी में मिला कर खाएं। इसके अलावा कड़वे फल के चूर्ण को गले के अन्दर घिसने से गलगण्ड रोग शान्त होता है।

 

*# - अपची ( फोड़े ) -  पुष्य नक्षत्र में सफेद अपराजिता की जड़ को उखाड़ कर गले में बांधें। इसके अलावा रोज इसकी जड़ के चूर्ण को गाय के दूध या गाय के घी के साथ खाएं। इससे अपच की समस्या, पेट में जलन आदि में शीघ्र लाभ होता है।

 

# - कास श्वास व बच्चो की कुकुर खाँसी -  अपराजिता की जड़ का शर्बत तैयार कर लें। इसे थोड़ा-थोड़ा पीने से खांसी, सांसों के रोगों की दिक्‍कत और बालकों की कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।

                                        

*# - जलोदर रोग व बालकों का डिब्बा रोग  - आधा ग्राम अपराजिता के भुने हुए बीज का चूर्ण बना लें। इसे चूर्ण को आंच पर भून लें या 1-2 बीजों को आग पर भून लें। इसे बकरी के दूध या बकरी के घी के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे जलोदर (पेट में पानी भरने की समस्या), अफारा (पेट की गैस), कामला (पीलिया), तथा पेट दर्द , बालकों का डिब्बा रोग ( निमोनिया ) में शीघ्र लाभ होता है।

 

*# - बालकों का उदर शूल – अपराजिता के 1-2 बीज को आग पर भूनकर , बकरी के दूध अथवा बकरी के घी के साथ चटाने से अफारा तथा उदरशूल में शीघ्र लाभ होता है |

 

*# - प्लीहा वृद्धी - अपराजिता की जड़ को दूसरी रेचक और पेशाब बढ़ाने वाले औषधियों के साथ मिलाकर दें। इससे तिल्‍ली विकार (प्लीहा वृद्धि), अफारा (पेट की गैस) तथा पेशाब के रास्‍ते में होने वाली जलन ( मूत्राशय दाह ) आदि रोग ठीक होते हैं।  

 

*# - पीलिया रोग -  3-6 ग्राम अपराजिता की मूल  के चूर्ण को गोतक्र ( छाछ ) के साथ प्रयोग करें। इससे पीलिया में लाभ होता है। इसके अलावा आधा ग्राम अपराजिता के भुने हुए बीज का चूर्ण बना लें। इसे चूर्ण को आंच पर भून लें या 1-2 बीजों को आग पर भून लें। इसे बकरी के दूध या बकरी के घी के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे कामला (पीलिया) में शीघ्र लाभ होता है।

 

*# - मूत्र कृच्छ , पेशाब में जलन - 1-2 ग्राम अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के  दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार सेवन करें। इससे पेशाब के रास्‍ते में होने वाली जलन दूर होती है।

 

*# - पेशाब का कम आना - यदि पेशाब कम हो रहा हो तो उसमें भी इसका सेवन करने से लाभ होता है।

 

*# - मूत्राशय की पथरी - अपराजिता की जड़ के चूर्ण को चावलों के धोवन के साथ पीस लें। इसे छानकर कुछ दिन सुबह और शाम से पिलाने से मूत्राशय की पथरी टूट कर निकल जाती है।

 

*# - अंडकोष की सूजन - अपराजिता के बीजों को पीस लें। इसे गुनगुना कर लेप करने से अण्डकोष की सूजन का उपचार होता है।

 

*# - गर्भस्थापनार्थ  -  1-2 ग्राम सफेद अपराजिता की छाल या पत्‍तों को बकरी के दूध में पीस लें। इसे छान कर और शहद में मिलाकर पिलाने से गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है तथा कोई पीड़ा भी नही होती है |

 

*# - गर्भस्थापनार्थ – 1 ग्राम श्वेत अपराजिता की जड को दिन में दो बार बकरी के दूध में पिसकर मधु मिलाकर कुछ दिनों तक पिलाने से गिरता गर्भ भी ठहर जाता है |

 

*# - सुखप्रसव - आसानी से प्रसव के लिए अपराजिता की बेल को महिला की कमर में लपेट दें। इससे प्रसव आसानी से होता है। प्रसव पीड़ा शान्त हो जाती है।

 

 # - पुयमेह, सूजाक रोग  - 3-6 ग्राम अपराजिता की जड़ की छाल, 1.5 ग्राम शीतल चीनी ( मिश्री ) तथा 1 नग काली मिर्च लें। इन तीनों को पानी के साथ पीसकर छान लें। इसे सुबह-सुबह सात दिन तक पिलाएं। इसके साथ ही अपराजिता पंचांग (फूल, पत्‍ता, तना और जड़ , बीज ) के काढ़े में रोगी को बिठाएं। इससे सुजाक में लाभ मिलता है। इससे लिंग संबंधी समस्या के लिए लिंग को काढ़े के पानी में डुबोकर रखना होगा इससे शीघ्र आराम होगा और जल्दी ही  ठीक होता  है।  

 # - गठिया रोग - अपराजिता के पत्‍तों को पीसकर जोड़ों पर लगाने से गठिया में आराम होता है।

# - गठिया रोग - 1-2 ग्राम अपराजिता की जड़ के चूर्ण को गाय के दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार सेवन करें। इससे गठिया में फायदा होता है।

 

*# - हाथीपाँव व नारू रोग  - ( पोटली ) 10-20 ग्राम अपराजिता की जड़ को थोड़े पानी के साथ पीस लें। इसे गर्म कर लेप करें। इसके साथ ही 8-10 पत्तों के पेस्‍ट की पोटली बनाकर सेंकने से फाइलेरिया या फीलपांव और नारु रोग में लाभ होता है।

 

# - हाथीपाँव - धव, अर्जुन, कदम्ब, अपराजिता तथा बंदाक की जड़ का पेस्‍ट तैयार करें। इसका सूजन वाले स्‍थान पर लेप करने से फाइलेरिया या फीलपांव में लाभ होता है।

 

*# - हथेली व उगलियों में होने वाले घाव - हथेली या ऊंगलियों में होने वाले घाव या बहुत ही दर्द देने वाले घावों पर अपराजिता के 10-20 पत्तों की लुगदी को बांध दें। इस पर ठंडा जल छिड़कते रहने से बहुत ही जल्‍दी आराम मिलता है।

 

*# - पकें फोड़े  - 10-20 ग्राम अपराजिता की जड़ को कांजी या सिरके के साथ पीस लें। इसका लेप करने से पके हुए फोड़े ठीक हो जाते हैं।

 

# - सफेद दाग - सफेद अपराजिता की जड़ को ठंडे पानी के साथ घिस लें। इसे प्रभावित स्थान पर लेप करने से 15-30 दिनों में ही सफेद दाग में लाभ होने लगता है।

 

# -सफेद दाग -  दो भाग अपराजिता की जड़ तथा 1 भाग चक्रमर्द की जड़ को पानी के साथ पीसकर, लेप करने से सफेद कुष्ठ में लाभ होता है।

 

# - सफेद दाग - इसके साथ ही अपराजिता के बीजों को घी में भूनकर सुबह शाम पानी के साथ सेवन करने से डेढ़-दो महीने में ही सफेद कुष्ठ में लाभ हो जाता है। इसके साथ ही अपराजिता के बीजो को गाय के घी में भूनकर सुबह-सायं जल के साथ सेवन करने से 45-60 दिनों में ही श्वेत कुष्ठ में लाभ हो जाता है |

 

*# - मुहं की झाईया - अपराजिता की जड़ की राख या भस्म को मक्खन में घिस लें। इसे लेप करने से मुंह की झांई दूर हो जाती है।

 

 # - मधुमेह – अपराजिता मूल चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में लेने से मधुमेह में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए आप अपराजिता का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि अपराजिता में एक रिसर्च के अनुसार एंटी-डायबेटिक गुण पाया जाता है। 

 

# - तंत्रिका तन्त्र की मजबूती - अपराजिता की बेल  बीज व मूल के चूर्ण 2 ग्राम का प्रयोग गाय के दूध के साथ सेवन करने से  तंत्रिका तंत्र को मजबूत किया जाता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार अपराजिता में मेध्य का गुण होता है जिसके कारण ये तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करती है।

 

# - अवसाद -  अपराजिता की मूल व बीजो का चूर्ण 2 ग्राम गाय के घी में मिलाकर प्रयोग करने से  अवसाद को कम करने में भी किया जाता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार अपराजिता में मेध्य का गुण पाया जाता है जो कि मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है जिससे अवसाद के लक्षणों में कमी आती है। 

 

# - भुतोंन्माद चावल के धोवन में श्वेत अपराजिता की मूल को पीसकर उसमे बकरी का दूध या बकरी का घी मिलाकर नस्य देने से लाभ होगा |

 

# - हृदय रोग - अपराजिता के बीज चूर्ण 2 ग्राम लेने से  हृदय को स्वस्थ रखने  में मदद करते है, क्योंकि इसमें एंटी-हिपेरलिपिडिमिक का गुणधर्म पाया जाता है जो कि कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है। 

 

# - अस्थमा - अगर आप अस्थमा की समस्या से परेशान है तो, अपराजिता के पत्ते व मूल का रस 10 मिलीग्राम मधु मिलाकर सेवन करने से आपको इस समस्या को कम करने में मदद कर सकता है। 

 

*# - हर तीसरे दिन आने वाला बुखार - अपराजिता की बेल को कमर में बांधने से हर तीसरे दिन आने वाले बुखार से राहत मिलने में आसानी होती है और अपराजिता का औषधीय गुण इसके इलाज में लाभकारी भी होता है।

 

# - सर्पदंश -  सर्पाक्षी तथा सफेद अपराजिता की जड़ के काढ़े में गाय के घी को पकाएं। इसमें सोंठ, भांगरा (भृंङ्गराज), वच तथा हींग मिला लें। इसे गोतक्र ( छाछ ) के साथ देने से सांप के जहर से होने वाले  सर्पविषजन्य प्रभावों का नाश होता है।

              

# - सर्पदंश – अपराजिता के बीज ठंडे और विषघ्न होते है | अत: अपराजिता बीज चूर्ण में गाय का घी मिलाकर सेवन करने से सर्पदंश में लाभ होता है |

 

*# - अनुभूत -  एक बार हमारे घर पर स्वामी जी रुके हुए थे। पडोस की एक  महिला को बहुत रक्‍त स्राव हो रहा था। स्वामी जी ने  उन्‍हें 10 मिलीग्राम अपराजिता का रस निकालकर उसे 10 ग्राम मिश्री में मिलाकर दिया। इससे उन्‍हें तुरंत आराम आ गया था |

*# - सिर दर्द - कई रोगियों को अपराजिता का रस या जड़ का रस निकालकर उनके नाक में डालने पर उनका सिर दर्द तुरंत ठीक हो गया।

 

 # - अपराजिता सेवन विधि मात्रा  – रस – 10 मिलीग्राम , चूर्ण – 1-2 ग्राम |

 

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