Friday 25 February 2022

रामबाण योग 129

अरलु , कोपल ट्री (Copal tree),

 

आपने अरलु के वृक्ष को सड़कों के किनारे देखा होगा। यह एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद के अनुसार, अरलु के अनेक औषधीय गुण हैं, और बुखारघाव, और गठिया जैसी बीमारियों में अरलु के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। इतना ही नहीं, प्रसव के बाद महिलाओं को होने वाली तकलीफकान दर्द, और बवासीर आदि रोगों में भी अरलु के औषधीय गुण से लाभ मिलता है। आप पाचनतंत्रदस्तसांसों की बीमारी आदि में अरलु के औषधीय गुण के फायदे ले सकते हैं। मुंह के छालेखांसी और जुकाम में भी अरलु से लाभ ले सकते हैं। अरलु का पौधा एक जड़ी-बूटी है। यह सड़कों के किनारे और बाग-बगीचों में मिलता है। आयुर्वेद के अनुसार, अरलु के पौधे के तने, छाल और पत्तों को चिकित्सीय कार्य में उपयोग किया जाता है।

 

अरलु का वानस्पतिक नाम Ailanthus excelsa Roxb. (ऐलेन्थस ऐक्सेल्सा) है|और यह Simaroubaceae (सिमारुबेसी) कुल का है। अरलु के अन्य नाम ये हैं- Hindiअडू, महारुख, मारुख, घोड़ानीम, घोड़ाकरंज, English- कोपल ट्री (Copal tree), वार्निश ट्री (Varnish tree), Tree of Heaven (ट्री ऑफ हैवन),Sanskrit- अरलु, कट्ग, दीर्घवृंत, महारुख, पूतिवृक्ष 

 

# - अरलु और महारलू के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैं-

 

# - अरलु -  अरलु तिक्त, रूक्ष, कफपित्तशामक, वातकारक होता है। यह संग्राही, पाचन, दीपन, ग्राही व विष्टम्भी होता है और कृमि व कुष्ठ का ठीक करता है। इसकी छाल ज्वर और तृष्णा का ठीक करने वाली, संकोचक भूख बढ़ाने वाली, कृमिनाशक और अतिसार, कर्णशूल व त्वचा रोगों को नष्ट करती है।

 

# -महारलू -  मूल छाल का प्रयोग अपस्मार, हृद्य विकार और श्वासकष्ट की चिकित्सा में किया जाता है। छाल का काढ़ा बनाकर पीने से उदरात्र कृमियों विषम ज्वर, रक्तातिसार और प्रवाहिका का ठीक होता है। मूल छाल का काढ़ा बनाकर व्रण को धोने से व्रण का शोधन और रोपण होता है। पत्ते एवं छाल को पीसकर व्रण में लगाने से व्रण का शोधन और रोपण होता है। मोच में लगानेसेमोच का ठीक होता है। मूल काढ़ा में मिश्री और काली मिर्च मिलाकर पीने से श्वास-कास में लाभ होता है।

 

*# - कान दर्द -  कान के दर्द से आराम पाने के लिए अरलु की छाल और पत्तों को पीसकर तिल के तेल में पका लें। इस तेल को छानकर रख लें। इसे 1-2 बूँद कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।

 

*# - मुहं के छाले -  मुंह में छाले होना एक आम बात है। लोग बार-बार इससे परेशान रहते हैं। इसके लिए आप अरलु का सेवन कर सकते हैं। अरलु की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।

 

# - श्वास रोग -  श्वसनतंत्र से संबंधित बीमारी में अरलु का उपयोग लाभदायक होता है। 1-2 ग्राम अरलु की छाल के चूर्ण में बराबर मात्रा में अरलु रस और शहद मिला लें। इसका सेवन करने से सांसों के रोग ठीक होते हैं।

 

# - खाँसी -  आप अरलु से सर्दी-खांसी का इलाज कर सकते हैं। अरलु की छाल का काढ़ा बनाते समय काढ़ा से निकलने वाली वाष्प का भाप लें। इससे खाँसी और जुकाम में लाभ होता है।

 

*# - अतिसार -  1 ग्राम अरलु झार को दूध के दूध के  साथ पीने से दस्त की समस्या ठीक होती है।

 

# - अतिसार -  अरलु की छाल को कूट लें। इसमें बराबर मात्रा में पद्मकेसर मिला लें। आप बिना पद्मकेसर मिलाए, जल से भी पीस सकते हैं। इसका गोला बनाकर, गम्भारी के पत्ते में लपेट लें। पुटपाक विधि से इसका रस निकाल लें। ठंडा होने पर 5 मिली रस में मिश्री या मधु मिलाकर पीने से दस्त में लाभ होता है।

 

# - अतिसार -  अरलु की छाल का पेस्ट बना लें। 2 ग्राम पेस्ट में बराबर मात्रा में गाय का घी मिलाकर, गर्म पानी की भाप से गर्म कर लें। जब यह ठंडा हो जाए तो शहद मिलाकर रोगी को देने से दस्त पर रोक लगती है।

 

# - अतिसार -  अरलु की छाल का पेस्ट बना लें। इसे पुटपाक करके रस निकाल लें। इसे 5-10 मिली मात्रा में पीने से दस्त में लाभ मिलता है।

 

# - अतिसार -  6 ग्राम मोचरस और 10 ग्राम मधु के साथ 5 मिली अरलु रस मिलाकर पीने से हर तरह के दस्त की समस्या में फायदा होता है।

 

*# - दस्त - अरलु की छाल और सोंठ को पीस लें। 2-4 ग्राम की मात्रा को चावल के धोवन के साथ सेवन करने से दस्त ठीक होता है।

 

# - पाचनतंत्र विकार-   5 ग्राम अरलु की छाल को 20 मिली गर्म या ठण्डे पानी में रात भर के लिए भिगोकर रख दें। सुबह छाल को पानी में मसलें, और पानी को छान पिएं। इससे पाचनतंत्र विकार में लाभ होता है।

 

# - बवासीर -  अरलु की छाल, चित्रक मूल, इद्रयव, करंज छाल और सैंधा नमक लें। इन सभी औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2-4 ग्राम की मात्रा में छाछ ( गोतक्र ) के साथ पिएँ। इससे बवासीर में लाभ होता है।

 

*# - प्रसवोपरांत दौर्बल्य -  2-5 मिली अरलु की छाल के रस में शहद मिला लें। इसे प्रसूति स्त्री को पिलाएँ। इससे प्रसव के बाद होने वाली शारीरिक कमजोरी और दर्द में लाभ मिलता है।

*# - प्रसवोपरांत पीड़ा -  जिन महिलाओं को प्रसव के बाद चार-छह दिन तक बहुत दर्द होता है, उनके लिए 5 ग्राम अरलु की छाल चूर्ण में 2 ग्राम सोंठ और 5 ग्राम गुड़ मिला लें। इसकी 10 गोलियां बना लें। 1-1 गोली को सुबह, दोपहर, शाम दशमूल काढ़ा के साथ देने से बहुत लाभ होता है।

 

# - गठिया -  अरलु की पत्तियों को पीसकर जोड़ों पर बाँधने से गठिया के दर्द से आराम मिलता है।

 

# - जोड़ो का दर्द -  1-2 ग्राम अरलु की छाल के चूर्ण को शहद के साथ नियमित तौर पर सेवन करने से जोड़ों के दर्द और सूजन से आराम मिलता है।

 

*# - घाव -   आप घाव होने पर अरलु के फायदे ले सकते हैं। इसके लिए अरलु की छाल का काढ़ा बना लें। काढ़ा से घाव को धोएं। इससे घाव जल्दी भर जाता है।

 

# - बुखार -  10 ग्राम अरलु की छाल को 80 मिली जल में पकाएं। 20 मिली शेष रहने पर ठण्डा करके इसमें शहद मिला लें। इसे सुबह और शाम पीने से बुखार में लाभ होता है।

*# - बुखार - 1-2 ग्राम अरलु की छाल के चूर्ण को शहद या गौ - दही के साथ सुबह और शाम पीने से बुखार ठीक होता है।

 

*# - बालग्रह दोष -  अरलु , वरुण , परिभद्र , तथा अस्फोता के काढ़े से बालक का परिषेक  करने से बालग्रह दोष का प्रतिषेध होता है |

# - अरलु के इन भागों का इस्तेमाल किया जाता है -तना , छाल, पत्ते का प्रयोग होता है |

 # - अरलु को इतनी मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए - रस-10-20 मिली,घनसत्त- 500 मिग्रा,

चूर्ण- 2-3 ग्राम, काढ़ा- 5-10 मिली ले सकते है |

 

 

 

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