Wednesday 19 May 2021

रामबाण योग :- 90 -:

रामबाण योग :- 90 -:

अतिबला-

अतिबला का पौधा (atibala ka podha) एक बहुत ही गुणी औषधि है। बहुत सालों से आयुर्वेदाचार्य अतिबला के इस्तेमाल (atibala plant uses) से कई बीमारियों को ठीक करने का काम कर रहे हैं। आप भी अतिबला का उपयोग कर कई रोगों में लाभ पा सकते हैं। यह तीखी, कड़वी, पचने में हल्की, चिकनी, और वात-पित्त को संतुलित करने वाली है। अतिबला से बहुत लाभ होता है। यह मनुष्य की आयु, शरीर का बल, चमक और यौनशक्ति को बढ़ाती है। 
इतना ही नहीं आयुर्वेद में यह भी बताया गया है कि अतिबला  (atibala ka paudha) का अर्क बार बार पेशाब लगने की समस्या को खत्म करता है। इसकी छाल खून का बहाव रोकता है। अतिबला की जड़ दर्दनाशक और बुखार उतारने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अतिबला के बीज कफ निकालने वाले होते हैं। अतिबला की जड़ का तेल दर्दनाशक होता है। अतिबला के जड़, फूल और पत्तों का चूर्ण (Atibala Powder) भी कई रोगों में काम आता है। इसके साथ ही अतिबला और भी कई प्रकार के रोगों में काम आती है। आइए सभी के बारे में जानते हैं।


अतिबला का पौधा एक जड़ी-बूटी है। यह काफी वर्षों तक हरा-भरा रहने वाला, झाड़ीदार पौधा (atibala tree) होता है। इसके रोएं कोमल, सफेद जैसे और मखमली होते हैं। इसके तने गोल और बैंगनी रंग के होते हैं। अतिबला (atibala ka paudha) की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त निम्नलिखित दो अन्य प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा के लिए किया जाता है।
 
  1. Abutilon pannosum (Forst.) Schlect. A. glaucum Sw (घंटिका, कंघिनी)
यह भी अतिबला की ही तरह काफी वर्षों तक हरा भरा रहने वाला, झाड़ीदार पौधा (atibala tree) होता है, लेकिन इसकी लंबाई अतिबला से दोगुनी होती है। इसके फल अतिबला की तरह ही होते है।
कई स्थानों पर इसका प्रयोग अतिबला के रूप में किया जाता है लेकिन यह अतिबला से कम गुण वाला होता है। अतिबला में मिलावट के लिए इसका प्रयोग होता है। यह सूजन को ठीक करता है। इसके साथ ही यह डायबिटीज में फायदेमंद, जीवाणु को समाप्त करने वाला, दर्दनाशक और घावों को ठीक करता है।
 
  1. Abutilon indicum (Linn.) Sweet ssp. guineense (Schum.) Borss. (चर्मिल कंकतिका, चर्मिल अतिबला)
यह अतिबला के समान दिखने वाला पौधा (Atibala kanghi plant) होता है जो समस्त भारत में खरपतवार के रूप में पाया जाता है। इसके फूल हल्की पीली और लाल रंग के या पीले रंग के होते है। फल कंघी के समान दांतों वाले होते हैं। इसका प्रयोग अतिबला के स्थान पर किया जाता है।
यह भी अतिबला का पौधा से कम गुणों वाला होता है। यह पेशाब लाने वाला, खून को रोकने वाला, कफ निकालने वाला, बल प्रदान करने वाला, सूजन को ठीक करने वाला तथा दर्द हरने वाला होता है।अतिबला (atibala ka paudha) का लैटिन नाम ऐबूटिलॉन इन्डिकम (Abutilon indicum (Linn.) Sw., Syn-Abuliton asiaticum (Linn.) Sweet) है। यह Malvaceae (मालवेसी) कुल का पौधा (Atibala kanghi plant)  कहा जाता है। Hindi – कंघी, झम्पी, English – इंडियन मैलो (Indian mallow), कंट्री मैलो (Country mallow),Sanskrit – अतिबला, कंकतिका कहते है।

 #- आँखरोग - अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर ठंडा कर उससे आंखों को धोएं। इससे फायदहोता है। इससे आँखों के अनेक रोगों में लाभ होगा।

 #- दाँत दर्द - अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करें या देर तक मुंह में रख कर कुल्ला करें। इससे दाँतों का दर्द ठीक होता है। मसूड़ों की सूजन का भी समाप्त होती है।


#- कास - अतिबला के फूल के चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में गाय के घी के साथ सेवन करें। इससे सूखी खांसी तथा खून वाली उल्टी में लाभ होता है।

#- खाँसी - अतिबला के बीज तथा वासा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।


#- पेचिश - अतिबला के पत्ते की सब्जी को गाय के घी के साथ सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है।


#- बवासीर - अतिबला की बीजों को कूट कर रात भर पानी में भिगो लें। इस पानी को 10-20 मि.ली. मात्रा में पीने से तथा अतिबला के पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से बवासीर में लाभ होता है।

#- बवासीर - 1-2 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर या अतिबला की जड़ के 20-30 मिली काढ़े का सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

#- बवासीर - अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
 
#- मूत्ररोग ( मूत्रकृच्छ ) - 10-20 मिली अतिबला की जड़ के काढ़ा का सेवन करने से पेशाब में होने वाली सभी प्रकार की परेशानियों ( मूत्र त्याग में कठिनता ) में लाभ होता है।

#-मूत्राश की सूजन व स्राव - अतिबला के बीजों को मोटा कूट कर रात भर पानी में भिगो कर रखें। इस पानी को 10-20 मिली की मात्रा में लें। इसके साथ ही अतिबला के पत्तों के काढ़े की वस्ति (एक आयुर्वेदिक प्रक्रिया) तथा उत्तरवस्ति देने से मूत्राशय के सूजन ठीक होता है। इससे मूत्र मार्ग से होने वाले स्राव बंद होता है।

#- मूत्राशय सूजन - अतिबला पत्रक्वाथ पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से मूत्राशय की सूजन ठीक होती है।

#- बहुमूत्रता , मधुमेह - अतिबला के बीज (बीजबन्द), तालमखाना, मुलेठी, वंशलोचन, शिलारस, सालिम, शुक्ति भस्म लें। इसके साथ ही प्रवाल भस्म, बहेड़ा, हरीतकी, शुद्ध शिलाजीत, इलायची तथा वंग भस्म लें। सभी का सूक्ष्म चूर्ण बना लें और उसमें मधु मिलाकर, 125 मि.ग्राम की वटी बना लें। 1-1 वटी सुबह और शाम सेवन करने से बहुमूत्र तथा डायबिटीज में काफी लाभ होता है।

#- मधुमेह - 1-2 ग्राम अतिबला के पत्तों के चूर्ण का सेवन करने से भी मधुमेह में लाभ होता है। अतिबला के गुण डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद करता है।

#- मधुमेह - अतिबलामूल बीजों से निर्मित शीत कषाय 10-20 मिलीग्राम का सेवन मधुमेह में हितकर होता है।

#- गुर्दे की पथरी - अतिबला पत्तों तथा जड़ का काढ़ा बना लें। इसे 20-30 मि.ली. की मात्रा में सेवन करने से पेशाब के रास्ते की पथरी चूर-चूर होकर बाहर निकल जाती है।


#- रक्तप्रदर - 1-2 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण में चीनी तथा मधु मिलाकर सेवन करने से रक्त प्रदर में बहुत लाभ होता है।


#- सफेद दाग - अतिबला की जड़ का चूर्ण (1-2 ग्राम), चंदन कल्क (1-2 ग्राम), तुवरक तैल (2-5 मिली) तथा बाकुची तेल (2-4 मिली) लें। इसे मिलाकर सफेद दाग पर लेप करने से लाभ होता है।
 
#- घाव - अतिबला के पत्ते तथा फूल का लेप अथवा काढ़ा से घाव को धोने से तुरंत घाव भर जाता है।

 #- घाव- अतिबलामूल पुष्प कल्क या स्वरस को व्रण पर लगाने से व्रण रोपण होता है।

#- मिरगी रोग - 1-3 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण को सुबह और शाम सेवन करने से मिरगी में लाभ होता है।
 
#- उन्माद ( मैनिया ) अतिबला  के 7 पत्तों को पानी में पीस लें। इसका रस निकालकर चीनी मिला लें। इसका सेवन करने से पित्त के बढ़ने से होने वाले उन्माद या मैनिया या मानसिक रोगों में लाभ होता है।
 
#- ज्वर - काढ़े में एक ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाकर या जड़ को रातभर पानी में भिगो कर उस पानी को 10-20 मिली मात्रा में पीने से बुखार उतर जाता है।

#- अतिबलामूल का हिम बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।


#- पिलिया - 1-2 ग्राम अतिबला की जड़ के चूर्ण में शहद मिलाकर या अतिबला की जड़ के 20-30 मिली काढ़े का सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।


#- श्वेतप्रदर - 2-3 ग्राम अतिबला चूर्ण महिलाओ में इन्फेक्शन के कारण होने वाली श्‍वेत प्रदर समस्या को दूर करने में सहायक होती है क्योंकि इसमें एन्टीबैट्रिअल का गुण होता है साथ ही आयुर्वेद के अनुसार अतिबला में बल्य का गुण भी पाया जाता है, जो कि महिलाओं की अंदरूनी कमजोरी को भी दूर करने मदद करता है। 


#- बलवर्धक व वीर्यवर्धक - 5 ग्राम अतिबलामूल चूर्ण का प्रयोग शरीर धातुओं या ऊतकों  को पुष्ट करने में किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अतिबला में बल्य और वृष्य का गुण होता है जो कि धातुओं को पुष्ट करने में मदद करता है। 


#- मसुडों की सूजन व ढीलापन - मसूढ़ों की सूजन ढीलेपन को दूर करने में अतिबला सहायक होती है क्योंकि अतिबला कषाय और मधुर रस होने से ये मसूढ़ों को स्वस्थ बनाती है, जिससे मसूढ़ों का ढीलापन ठीक होता है। 


#- मूत्रमेह - मेह को आयुर्वेद मूत्र संबधी व्याधि माना है। इस प्रकार की समस्या में खरैटी यानि अतिबला मूल क्वाथ 20-30 मिलीग्राम का सेवन फायदेमंद होता है क्योंकि एक रिसर्च के अनुसार अतिबला में ड्यूरेटिक का गुण पाया जाता है, जो मूत्र संबंधी विकारों को दूर करने में सहायक होता है। 


#- दाह - अतिबला के पत्तों को कूट कर रात भर पानी में भिगो दें। उस पानी को 10-20 मि.ली. मात्रा में पिलाने से जलन शान्त होती है।


#- रसायन - 5-10 ग्राम अतिबला की जड़ के काढ़े, चूर्ण (2-3 ग्राम) या रस (5-10 मिली) में 2 चम्मच मधु तथा 1 चम्मच गाय का घी मिला लें। इसे एक वर्ष तक पाचन क्षमता के अनुसार सुबह और शाम सेवन करें। सेवन के कुछ घंटों बाद ,गाय का दूध तथा गाय का घी मिला शालि चावल खाएं। इससे बुद्धि बढ़ती है, शरीर को ताकत मिलती है और याददाश्त भी बढ़ती है।


#- बिच्छुदंश - अतिबला की जड़ को बिच्छू का काटे हुए स्थान पर लगाने से दर्द और सूजन में आराम होता है।
 


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