(२७)-२-गौ-चि०-बाँय - वायुरोग ।
१ - कँपन रोग
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कारण व लक्षण - इस रोग में पशु खड़ा रहे या बैठे रहे वह काँपता रहता हैं - तो यह रोग वायु विकार के कारण होता हैं
१ - औषधि - गेरू २ तौला पीसकर ताज़े पानी में घोलकर नाल द्वारा पिलाने से लाभकारी सिद्ध होता हैं । यह खुराक पशु की उम्र के हिसाब से घटा- बढ़ा लेनी चाहिए ।
२ - औषधि - सरसों का तेल २५० ग्राम , सोंठपावडर २० ग्राम , एक साथ मिलाकर देने पर काफ़ी लाभ कारी सिद्ध होता हैं ।
३ - टोटका - तुम्बें ( तित्त लौकी - कडवी लौकी ) की बेल को रोगी पशु के गले में लपेटकर बाँधने से लाभकारी होता हैं ।
२ - गठियाँ रोग ( Gout )
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कारण व लक्षण - इस रोग में पशु के ख़ून में विकार उत्पन्न होकर पुट्ठों तथा जोड़ो में सूजन हो जाती हैं तथा उनमें बड़ा दर्द होता हैं । खराब चारा- दाना खाने अधिक समय तक खडे रहने , एकदम तेज गर्मी से ठण्डक में जाने , सीलन युक्त स्थानों पर बँधे रहने पर , आदि कारणों से यह रोग होता हैं । इस रोग से ग्रसित पशुओं के जोड़ो और पुट्ठों में दर्द होता हैं । जोड़ो पर अचानक सूजन हो जाती हैं । पशु चलने - फिरने मे असमर्थ हो जाता हैं तथा बेचैनी से करवटें बदलता रहता हैं । कभी - कभी उसे बुखार भी हो जाता हैं ।
१ - औषधि - सबसे पहले पशु को जूलाब देना होगा । इसलिए अरण्डी तैल आठ छटांक अथवा सरसों के तैल में आधा छटांक सोंठ पावडर मिलाकर पशु को पिलाना चाहिए ।
२ - औषधि - काला नमक आठ छटांक और आधा छटांक सोंठ कुटपीसकर दोनो के आधा लीटर पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए ।
# - जूलाब देने के बाद अगली दवाओं का उपयोग करना चाहिए -
३ - औषधि - गुड १ पाव , सोंठ १ तौला , अजवायन १ छटांक , मेंथी आधा पाव और भाँग १ तौला - इन सब द्रव्यों को घोटकर - पीसकर २५० ग्राम , दूध में गुड़ सहित घोलकर आग पर पकाकर पशु को पिलायें । यह योग गठिया रोग में लाभकारी हैं ।
४ - औषधि - दूसरे दिन पशु को निम्नांकित योग को तैयार कर १-१ मात्रा दिन में बार दें । पलाश पापड़ा ( ढाक के बीज ) , अनार की छाल , सौँफ और अमलतास - प्रत्येक १-१ तौला लें । इन द्रव्यों को आधा लीटर पानी में पकायें और जब २५० मिली पानी शेष रह जायें तो गुनगुना - गुनगुना ही पशु को ख़ाली पेट पिलायें ।
५ - औषधि - उपर्युक्त औषधि मुख द्वारा सेवनीय औषधियों के अतिरिक्त गठिया रोग में , बाहृाउपचार आवश्यक हैं । निम्नलिखित तैलो से जोड़ो पर मालिश करके रूई के फाहों से सेंक करना चाहिए और फिर वही फांहें उन्हीं जोड़ो पर बाँध देना चाहिए , लेकिन उनके हवा न लगे । इससे पशु को दर्द मे आराम आता हैं तथा सूजन भी कम होती हैं
# - इस रोग मे ठण्डी हवा बहुत हानिकारक होती हैं । अत: उससे विशेष रूप से बचाव रखें ।
गठिया नाशक बाहृा उपचारार्थ तेलीय योग
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१ - औषधि - आक ( मदार ) के पत्तों को कुटकर रस निचोड़ लें ओर २५० ग्राम तिल के तेल मे एक लीटर रस मिलाकर आग पर रखकर पकायें । जब रस जलकर तेल मात्र शेष रह जायें तो उसे कपड़े से छान लें । इस तेल की जोड़ो पर मालिश करना लाभकारी हैं ।
२ - औषधि - कपूर १ तौला पीसकर , तारपीन तेल १ छटांक , दोनो को आपस मे मिलाकर मालिश करना गुणकारी होता हैं ।
३ - औषधि - धतुरे के पत्तों का रस १ पाव निकालकर उसे आधा सेर कड़वा ( सरसों ) तेल मे मिलाकर पकायें । जब रस जलकर तेल मात्र शेष रह जायें तो छानकर मालिश के कार्य में लेना लाभकारी होता हैं ।
४ - औषधि - धतुरा बीज २ तौला पीसकर , तिल का तेल १ पाव , दोनो को मिलाकर १५-२० दिन तक धूप में रखे , बीस दिन के बाद छानकर शीशी भरकर रख लें । इस तेल की मालिश करना भी गठिया मे लाभकारी होता हैं ।
५ - औषधि - एक पाव लहसुन की पोथियाँ अच्छी तरह कुचलकर उन्हे आधा लीटर तिल के तेल मे डालकर आग पर पकायें जब तेल भलीभाँति पक जायें तो तेल छानकर स्वच्छ शीशी मे भर कर रख लेवें । इस तेल की मालिश भी गुणकारी होती हैं ।
६ - औषधि - हरी- हरी दूबघास ( दूर्वा ) को १० सेर पानी में उबालकर गरमपानी का जोड़ो वाले स्थान पर भपारा दें और दर्द वाली जगह पर गरम- गरम पानी डालें । इस प्रयोग से पशु का दर्द कम होता हैं ।
७ - औषधि - पलाश के फूल ( ढाक,टेशू के फूल ) २ किलो , १० सेर पानी में उबालकर गरम - गरम पानी का भपारा दें व पानी डालकर सिकाई करने से भी दर्द कम होता हैं ।
# - औषधि - जब पशु को गठिया रोग मे कुछ आराम हो जायें तथा दर्द कम हो जायें और सूजन भी जाती रहे , पशु आराम से चलने फिरने लगे तो कुछ दिनों तक हवा व सर्दी से बचाते हुए ताक़त प्राप्ति हेतू नीचे लिखे योगों का उपयोग करना चाहिए - -
८ - औषधि - हराकसीस,सोंठ,चिरायता , तथा भाँग अथवा खाने वाला सोडा ( प्रत्येक १-१ तौला ) लेकर आधा लीटर पानी मे घोलकर अथवा गुड की डली में मिलाकर कम से कम सात दिनों तक सुबह के समय पशु को लगातार खिलाना चाहिए । इस प्रयोग से पशु को खोई हुऐ शक्ति पुन: प्राप्त हो जाती हैं ।
पथ्य - इस रोग में पशुओं को बादीकारक या कब्जकारक चींजे कदापि नही खिलानी चाहिए । ब्लकि शीघ्रपाची तथा गरम चींजे जैसे - चाय , दूध , दलिया आदि ही खिलानी चाहिए । चना , मटर , लोबिया आदि द्विदलीय जाति के दाने या ठण्डी वस्तुओं का सेवन वर्जित हैं । पानी भी ठण्डा न देकर थोड़ा गुनगुना पिलाना चाहिए और हवा , सर्दी एवं बरसात से पशु को बचाकर रखना चाहिए । यदि ठण्ड अधिक हो तो पशु को गरम झूल ओढायें तथा उसके बाँधने के स्थान पर उपलो की आग सुलगा देनी चाहिए ।
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