Tuesday, 13 January 2015

(३३) - गौ - चिकित्सा .कलीली ।

(३३) - गौ - चिकित्सा .कलीली ।

१ - जूँएँ ,कलीली ( गिचोडी ) या जौबे पड़ना
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कारण व लक्षण - पशुओं के शरीर पर गन्दगी होने से , गोशाला में गन्दगी से शरीर कलीली , जूँएँ आदि पड़ जाती है और ये जन्तु पशु का ख़ून पीते है और उसके शरीर में पलते रहते है ।

सबसे पहले रोगी पशुओं को नहलाना चाहिए । खर्रा , बुरश , मालिश की जाय ।पशु स्वच्छ ओर साफ़ रखे जायँ । पशुओं को हवादार , रोशनीदार मकान में शुद्ध घास और दाना - पानी खाने - पीने को दिया जाय। काठी की रोज़ अच्छी तरह सफ़ाई की जाय । गवान को रोज़ साफ़ किया जाय ।

१ - औषधि - जिस पशु को उक्त जन्तु पड़ जायँ , उसे नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से रोज ५ दिन तक नहलाने से , सब जन्तु मर जायेंगे । रोगी पशु की नीम के तेल से मालिश की जाय ।

२ - औषधि - अरण्डी का तैल लेकर पशु की मालिश की जाय और उसको चरने के लिए छोड़ दें । तैल की चिकनाई से सब जन्तु गिर जायेंगे तथा कुछ तैल लगने से अन्धे होकर गिर और मर जाते है । यह मालिश ४-५ दिन तक करनी चाहिए ।

३ - औषधि - तम्बाकू २४० ग्राम , कपड़ा धोने का सोडा १२० ग्राम , चूना २४ ग्राम , नमक १२० ग्राम ,पानी १८ लीटर सबको महीन पीसकर ,पानी में मिलाकर उबालना चाहिए । फिर गुनगुने पानी से रोगी पशु को अच्छा होने तक ,रोज़ाना नहलाना चाहिए ।

४ - दूद्धी बेल की छाल १९२० ग्राम , पानी १४४०० ग्राम , छाल को बारीक पीसकर , पानी में डालकर , उबाल लिया जाय । फिर उसी गुनगुना पानी से रोगी पशु को रगड़ - रगड़ कर ५ दिन तक नहलाया जाय ।

५ - औषधि - सीताफल की पत्ती २४०,ग्राम , तम्बाकू २४० ग्राम , कपड़े धोने का सोडा २४ ग्राम , चूना १२ ग्राम , अफ़ीम १२ ग्राम , पानी १४४०० ग्राम , सबको बारीक पीसकर , पानी में मिलाकर , उबाला जाय । फिर अफ़ीम मिलाकर गुनगुने पानी से रोगी पशु को , थैले द्वारा , रोज़ नहलाया जाय ।
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२ - तिड़ रोग ( पाट फूटना )
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कारण व लक्षण - यह सफ़ेद रंग के धागे की तरह एक पतला , लम्बा जन्तु होता है । यह जन्तु पशु के शरीर में रहता है । जब बाहर निकलने की कोशिश करता है तो वही से ख़ून की बूँदें गिरना आरम्भ हो जाती हैं । इस रोग में पशु के किसी भी भाग से अचानक रक्त निकलना शुरू हो जाता है । कुछ समय बाद वह अपने - आप बन्द हो जाता है । यह रोग अधिकतर गर्मी के दिनों में हो जाता है ।

१ - औषधि - कोष्ट १ नग , गाय का घी १२० ग्राम , कोष्ट को महीन पीसकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु को ७ दिन तक , रोज़ सुबह पिलाया जाय ।

२ - औषधि - प्याज़ २४० ग्राम , गाय का घी १२० ग्राम , दोनों को मिलाकर रोगी पशु को ७ दिन तक पिलाया जायें ।

३ - औषधि - मालती ( डीकामाली ) ३० ग्राम , पानी २४० ग्राम , मालती को महीन पीसकर ,कपडछान करके पानी में मिलाकर , रोगी पशु को रोज़ सुबह ८ दिन तक पिलाया जाय ।

४ - औषधि - सीताफल ( शरीफ़ा ) की जड़ १० तोला या १२० ग्राम रोटी के साथ , सुबह - सायं १५ दिन तक देनी चाहिए ।

टोटका -:-
# - टिड्डी ( तिड़ जन्तु ) को पकड़कर उसे रोटी के साथ मिलाकर रोगी पशु को दो बार खिलाया जाय ।

# - पशु के रोग स्थान को रूई से साफ़ करके तुरन्त अजवायन का तेल लगा देना चाहिए । किन्तु ध्यान रहे कि अजवायन तैल लगाते समय अन्य भाग मे न लग जाय नहीं तो छालें पड़कर खाल उतर जायेगी ।

# - धतुरा की जड़ ३० ग्राम को लेकर रोटी में दबाकर रोगी पशु को , ८ दिन तक खिलायें ।

# - रोगी पशु के रोगस्थान पर सरिये के टुकड़े को लाल गरम करके तत्काल लगा के दाग देना चाहिए ।


३ - कलीली व जूँएँ
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१ - औषधि - कलीली,जूँएँ ,घाव के कीड़े व पेट के कीड़े - एक मुट्ठी हल्दी व एक मुट्ठी बायबिड्ंग प्रतिदिन देने से ५-७ दिन देने से पेट के कीड़े ,घाव के कीड़े , कलीली, जूँएँ , अन्य कीड़े सभी मर जाते है ।

२ - औषधि - गाय - बैल को यदि घाव में कीड़े होतों २५० ग्राम गौमूत्र से धोकर , दो गोली कपड़ों में डालने वाला कपूर को पीसकर भर दें और पट्टी बाँध दें ,घाव के कीड़े मर जायेंगे फिर साफ़ करकें गाय के घी को गर्म करकें उसमें कोटन शेंककर घाव पर बाँध दें, घी की पट्टी बदलते रहे घाव ठीक होने तक।


३ - औषधि - सरसों तैल १०० ग्राम , २५ ग्राम नमक , ५ ग्राम केरोसिन तैल( मिट्टी तैल ) तीनों को आपस में मिलाकर गाय- बैल के शरीर पर मालिश करके गाय को धूप में बाँध दें तो सभी कलीली भाग जायगी ।

४- औषधि - तम्बाकू १०० ग्राम पीसकर एक किलो पानी में मिलाकर पशुओं के उपर स्प्रे करने से सभी जूँएँ झड़ जायेगी और तम्बाकू तैल में मिलाकर मालिश भी कर सकते है , इससे सभी कलीली व जूँएँ झड़ जायेगी ।

# - गौशाला में मुर्ग़ी पालने से गाय की कलीली को मुर्ग़ी चुग लेती है , और गाय आनंदपुर्वक रहती है ।





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