(५)-गौ-चिकित्सा - चेचक,( Cowpox )
पशुओं में चेचक रोग के प्रकार- काऊपाक्स,स्मालपाक्स, आदि ।
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१ - शीतला माता रोग ( Rinder Pest )
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कारण व लक्षण - इस रोग को "कैटिल प्लेग " भी कहते हैं । यह रोग फटे खुरों वाले तथा जूगाली करने वाले पशुओं का सबसे अधिक भंयकर छूत रोग हैं । माता रोग में विषाणु पशुओं के शरीर के श्वेत रक्तकणों में अपनी अन्तिमावस्था में विद्यमान रहते हैं । शुद्ध नस्ल के पशुओं या विदेशी रक्त के मिश्रण द्वारा तैयार की गयी नस्ल के पशुओं में यह रोग शीघ्रता से फैलता हैं । इस रोग के विषाणु पशु की लार , झाग , आँख , नाक से बहने वाले पानी एवं मल- मूत्र में पाये जाते हैं बाद में रक्त द्वारा ही प्लीहा, यकृत तथा लसीका ( लिम्फ ग्रन्थियाँ ) आदि अवयवों में फैल जाते हैं । ये सर्दी तथा नमी में बढ़ते रहते हैं तथा सुरक्षित रहते हैं किन्तु सूर्य की तेज़ धूप में नष्ट हो जाते हैं । ये रोग हवा , पानी , चारे - दाने , बर्तन तथा टहल करने वाले व्यक्ति के द्वारा एक रोगी पशु से अन्य पशुओं में फैलता चला जाता हैं । यह रोग इस रोग से मृत पशुओं की खाल खींचने से भी फैलता हैं ।
# - लक्षण व अवधि - किसी स्वस्थ पशु को इस रोग की छूत लगने के बाद उसमे छ: दिन के बाद इस रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं ।। सबसे पहले पशु को तेज़ बुखार चढ़ता हैं । बखार १०४डिग्री फारेनहाइट से १०६ डिग्री फारेनहाइट तक हो जाता हैं । जोकि ४८ घन्टों में अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता हैं । इस दशा में पशु अत्यधिक सुस्त होकर थर-थर काँपने लगता हैं तथा उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं । आँखों की पुतलियाँ सिकुड़ जाती हैं तथा पीठ कमानी की भाँति मुड़ जाती हैं । पशु चारा-दाना खाना और जूगाली करना बन्द कर देता हैं । पेट में क़ब्ज़ हो जाती हैं तथा १-२ दिन के बाद पशु पतला गोबर करने लगता हैं , फिर उसमें आँव आने लगती हैं । कभी- कभी मल त्याग में ख़ून के क़तरे भी आते हैं तथा यह गोबर बहुत ही दुर्गन्धित होता हैं । रोगी पशु को प्यास अधिक लगती हैं , वह दाँत पीसता हैं , उसके पुट्ठे ऐंठने लगते हैं , कान तथा गर्दन लटक जाती हैं । नाड़ी की गति ७० से १०० प्रति मिनट तक होती हैं । पशु की आँखों से पानी तथा कीचड़ बहने लगता हैं । पशु की दशा बहुत शोचनीय हो जाती हैं । लगभग ७ वें दिन से ९ वें दिन तक पशु के होंठों के भीतर की ओर मसूड़ों तथा मुँह की श्लैष्मिक झिल्ली पर आलपिन की नोंक की भाँति छोटे-छोटे काँटेदार छालें निकल आते हैं , जोकि बाद में बढ़कर फफोलों का रूप धारण कर लेते हैं । इन फफोलों पर भूसी जैसी छाई रहती हैं । इसी प्रकार के छालें बाद में - पशु की आँतों में भी जाते हैं । दस्तों की तीव्रता और मुख के छालों की वजह से कुछ भी खा- पी न सकने के कारण पशु दुर्बल होकर हड्डियों का ढाँचा मात्र रह जाता हैं । सामान्यत: ८-१० दिन तक पशु इस दशा में जीवन - मृत्यु से संघर्ष करता हुआ मर जाता हैं । किन्तु यदि २०-२२ दिन तक पशु इस रोग को झेल जाता हैं , तो प्राय: बच भी जाता हैं । यह रोग गाय , भैंस , बैल आदि पशुओं की ही भाँति भेड़- बकरी में । भी होता हैं जोकि एक ही प्रकार के रोग विषाणुओं द्वारा उत्पन्न होता हैं , किन्तु भेड़ - बकरियों में इसके लक्षण गाय से अलग होते हैं । चेचक या माता के लक्षणों को तीन अवस्थाओं में विभाजित करके अलग - अलग प्रकार से देखा जा सकता हैं --
पहली अवस्था -:- इस दशा में पशु का शरीर गर्म हो जाता है ,मुँह की शलेष्मिक झिल्ली के रक्त - संचालन में बाधा उत्पन्न हो जाती है । पशु को कभी कभी खाँसी आ जाती है । उसका शरीर काँपता है । पशु का गोबर कफयुक्त होता है । उसके रोये खड़े हो जाते है । आँखें लाल हो जाती हैं ।उसे भूख कम लगती है । वह बार- बार दाँत पीसता है ।
दूसरी अवस्था -:- इस अवस्था में श्वास की गति तेज़ हो जाती है ।खाना- पीना जूगाली करना बन्द हो जाता है आँखों में बार -कीचड़ आ जाता है। मुँह मे लाल झिल्ली पर , जिव्हा पर छोटे- छोटे छालें हो जाते है । गोबर पतला व दुर्गन्धयुक्त होता है । गोबर करते वक़्त पशु काँपता है ।
तीसरी अवस्था -:- इस दशा में पशु के मुँह में ख़ूब छालें पड़ जाते है । खाना पीना और जूगाली करना बिलकुल बन्द कर देता है । गोबर खूनमिश्रत बहुत पतला और बहुत बुरी गन्ध वाला होता है । आँख में कीचड़ आता है । तथा आँखों से पानी भी गिरता है । पशु अधिक कमज़ोर व बहुत सुस्त हो जाता है । उसका चलना -फिरना बिलकुल बन्द हो जाता है । मुँह से लगातार दुर्गन्धयुक्त लार गिरती रहती है । अमाशय व दूग्ध कोष मे छालें बड़े - बड़े हो जाने पर से ज़ख़्म हो जाते है । इस दशा में गाभिन पशुओं का अक्सर गर्भपात हो जाता है । गोबर रक्तमिश्रित , पतला और दुर्गन्धयुक्त होता है । पशु असक्त हो जाता हैं तथा नाक- कान व सींग की जड़ में कीड़े पड़ जाते हैं ।
प्रथमावस्था की दवाऐं -
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चेचक ग्रस्त पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए । जिस जगह सर्दी - गर्मी , तेज़ हवा आदि न हो -- ऐसे स्थान में रोगी पशु को रखना चाहिए तथा उस स्थान पर सदैव गन्धक का धूआँ देना चाहिए । आदि उसे दस्त न हों तो ऐसी दशा में जूलाब देना चाहिए ।
१ - औषधि - अरण्डी तेल २५० ग्राम , गर्म पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए ।
२ - औषधि - सरसों का तेल २५० ग्राम और सोंठपावडर २ तौला देना चाहिए ।
३ - औषधि - चावल का माण्ड आधा शेर और नमक २ तौला ( १ खुराक ) पिलानी चाहिए ।
४ - औषधि - त्रिफला का काढ़ा ( हरड़ , बहेड़ा , आँवला - प्रत्येक आधा- आधा छटांक ) पिलाना चाहिए ।
५ - औषधि - हल्दी १ छटांक , और केरला की पत्ती का रस आधा पाँव पिलाना चाहिए ।
६ - औषधि - परवल का पत्ता , नीम का पत्ता , पारिजात ( हारश्रगाँर ) का पत्ता , गुरूच , अरूस , नागरमोथा , चिरायता और कुटकी -- प्रत्येक १-१ तौला लेकर काढ़ा बनाकर पिलायें ।
७ - औषधि - भटकटैया की जड १ छटांक और मिर्च आधी छटांक का काढ़ा बनाकर पिलायें ।
८ - औषधि - प्याज़ का रस २५० ग्राम दिन में २ बार पशु को पिलाना चाहिए ।
९ - औषधि - बेल पत्थर की की पत्ती पीसकर और मट्ठा मिलाकर पिलाना चाहिए ।
द्वितीय अवस्था की दवाऐं
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१ - औषधि - हींग आधा तौला, चिरायते का अर्क आधा छटांक और नमक एक तौला अलसी के माण्ड के साथ ३-३ घन्टे के अन्तराल पर देना चाहिए ।
२ - औषधि - कलमीशोरा और कपूर २-२ तौला लेकर आधा पाँव देशी शराब के साथ दिन में दो बार पिलाना चाहिए ।
# - यह दवा गर्भवती गाय और भैंस को नहीं दी जा सकती हैं ।
तृतीया अवस्था --
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जब दस्तों की अधिकता हो तो नीचे लिखी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए --
१ - औषधि - भूनीं हींग ६ माशा , लालमिर्च ३ माशा , सफ़ेद ज़ीरा ४ तौला , पीसकुटकर सभी को चावल या अलसी के माण्ड या गाय के दूध से बनी छाछ में घोलकर दिन में तीन बार पिलाना चाहिए ।
२ - औषधि - कपूर आधा छटांक , भाँग आधा पाँव , कत्थे का अर्क आधा तौला १ शेर गोंद के पानी में मिलाकर ४-४ घन्टे अन्तराल से देना चाहिए ।
३ - औषधि - सोंठपावडर २ तौला , खडियांँ मिट्टी का चूर्ण १ तौला , अफ़ीम १५ रत्ती - इन सबको अलसी के माण्ड में घोलकर ५-५ घन्टे के अन्तराल से देना चाहिए ।
४ - औषधि - कत्थे का अर्क और अफ़ीम आधा - आधा तौला लेकर अलसी के माण्ड में मिलाकर ५-५ घन्टे के अन्तर से सेवन करना लाभप्रद हैं ।
५ -औषधि - कत्था और दालचीनी आधा-आधा छटांक और अलसी का माण्ड डेढ़ छटांक ४-४ घन्टें के अन्तर पर देना चाहिए ।
६ - औषधि - कत्था , फिटकरी , चिरायता , गेहूँ की मैदा १-१ पैसे भर और गन्ने का शीरा १२५ ग्राम सब को मिलाकर दिन में २ बार देनी चाहिए ।
७ - औषधि - कत्था और अफ़ीम २-२ माशा ,अलसी का माण्ड और गन्ने का शीरा १-१ छटांक लेकर मिलाकर दिन में २ बार देना चाहिए ।
# - जिन दवाओं में शराब व अफ़ीम का प्रयोग हैं , वे दवाऐं गर्भवती गाय और भैंस को सेवन न कराये नहीं नुक़सान हो सकता हैं ।
# - शरीर को धोने की दवा - पशु के रोगमुक्त हो जाने पर गन्ने का सिरका १ छटांक गर्म पानी में मिलाकर पशु के शरीर को धोना चाहिए ।
# - दाना फटने की दवा -- नीम की हरी पत्ती को पानी में पीसकर घर के ऊपर रखना परम लाभकारी हैं ।
# - मेहन्दी या बबूल की पत्ती पीसकर घाव के ऊपर रखना भी लाभकारी हैं ।
# - बलवर्धक दवा -- यदि पशु बहुत दुर्बल हो जाये तो नीचे लिखी दवाओं का प्रयोग करें -
१ - औषधि - गाय के दूध से बनी छाछ में नमक मिलाकर पिलाने से रोगी पशु को शक्ति आता हैं ।
२ - औषधि - सोंठपावडर , सौँफ पावडर , नमक प्रत्येक आधा - आधा पाँव और चिरायते का चूर्ण १ छटांक - इनको कूटपीसकर तैयार करके सुरक्षित रख लें और प्रतिदिन २ बार आधी- आधी छटांक देते रहे ।
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२ -# - चेचक की कुछ अन्य दवायें --
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१ - औषधि - भुई नीम २४ ग्राम , पानी २४० ग्राम , भूईनीम को बारीक पीसकर , पानी में घोलकर , रोगी पशु को दोनों समय आराम आने तक देते रहे ।
२ - औषधि - बेल फल का गूद्दा १८० ग्राम , पानी ९६० ग्राम । गूद्दे को कूटकर पानी में एक घन्टा पहले गलाकर , फिर निचोड़कर छानकर रोगी पशु को दोनों समय आराम होने तक , पिलाया जाय ।
३ - औषधि - मुँह के छालों के लिए -- हरा धनियाँ २४० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , फिर छाने बिना , दोनों समय , रोगी पशु को , आराम होने तक , पिलाया जाय ।
४ - औषधि - सूखी धनियाँ १२० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , धनियाँ को बारीक कूटकर आधा घन्टा पानी में गलाकर , बिना छाने , दोनों समय , आराम आने तक पिलाया जाय। इसमें सौंप भी यही काम करती है ।
५ - औषधि - अलसी का तैल १००ग्राम, दिन में रोगी पशु को पिलाये , जिससे रोगी पशु के मुँह के छालें नरम होगे । घास खाने में उसे सुविधा होगी ।
६ - औषधि - अरणी के पत्तों का रस १२० ग्राम , पानी २४० ग्राम , अरणी के पत्तों को पीसकर और रोगी को दोनों समय , आराम होने तक उक्त मात्रा में पिलाया जाये ।
७ - औषधि - शीशम की पत्ते २४० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , पत्तियों को पीसकर पानी में मिलाकर ,रोगी पशु को दोनों समय , ठीक होने तक पिलाया जाय।
८ -टोटका-:- औषधि - रोगी पशु को धूनी देना -- भूईनीम ६ माशा आग पर रखकर रोगी पशु के चारों ओर विशेषकर मुँह के पास , दोनों समय , आराम होने तक , धूनी देनी चाहिए ।
९ - टोटका -:- औषधि - टेम्पो के फल का गूद्दा ६ माशा आग पर रखकर , रोगी पशु के चारों ओर , विशेष कर मुँह के पास दोनों समय , आराम होने तक , धूनी देनी चाहिए ।
१० - टोटका -:- औषधि - जलजमनी १६० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , जलजमनी को पीसकर , सुबह सायं आराम होने तक पिलायें ।
११ - औषधि - चावल ४०० ग्राम , पानी ३ लीटर चावल को पकाकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , दिया जाय । रोगी को पेटभर हरा चारा खिलाने से पानाकोशी की बिमारी नहीं होगी ।
# - आलोक -:- ध्यान रहे रोगी पशु को , घास छोड़ते ही ज्वार का आटा १/२ सेर और पानी ५ लीटर , दोनों को मिलाकर और पकाकर , आराम होने तक , दोनों समय , खिलाया जाये ।
# - चावल का माँड़ बनाकर भी इसी मात्रा में दें सकते है , जिससे पशु अधिक कमज़ोर नहीं होगा । उसका पेट भी थोड़ा - सा भर जायेगा और पेट की गर्मी शान्त हो जायेगी ।
# - रोगी पशु को गुड व नमक ठीक होने तक कभी न दिया जाय नहीं तो नुक़सान हो जायगा ।
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३ - चेचक रोग की कुछ अन्य आयुर्वेदिक योग ---
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१ - औषधि - कपूर और कलमीशोरा ९-९ माशा , धतुरे के बीजों का बारीक पिसा हुआ चूर्ण और चिरायता ३-३ माशा तथा देशी शराब आधा पाँव लें । पहले कपूर को शराब में घोल लें तदुपरान्त अन्य दवाओं को उसमें घोल लें और पशु को पिला दें । माता रोग के कीटाणुओं को नष्ट करने में यह योग बहुत प्रभावी हैं ।
२ - औषधि - हिना ( मेहन्दी ) के पत्ते २ तौला , नीम के फूल २ तौला , चिरायता १ तौला लेकर सभी को पानी में पकाकर छाकर नमक मिलाकर पशु को नाल द्वारा पिलाने से लाभकारी सिद्ध होता हैं ।
३ - औषधि - बबूल की पत्ती ८ तौला , कत्था ३ तौला , चूना ९ माशा , सभी को बारीक पीसकर देशी शराब १२ तौला , आधा शेर पानी में मिलाकर पशु को नाल द्वारा पिलाने से अतिगुणकारी होता हैं ।
४ - औषधि - चूने का पानी आधा शेर , अफ़ीम ३ माशा , बबूल का गोंद आधा पाँव लेकर चूने के के पानी में अफ़ीम व गोंद को अच्छी तरह मिलाकर घोल लें । इसके बाद इस दवा की तीन खुराक बना लें और एक दिन में ४ -४ घन्टे बाद पशु को पिलानी चाहिए ।
क्योंकि इस रोग में पशु के शरीर में विष और कीटाणु अधिक फैल जाते हैं तो उनको निकालने के लिए पशु को जूलाब देकर २-४ दस्त करा देने चाहिए । परन्तु यह इलाज रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही लाभप्रद हैं जूलाब के लिए नीचे लिखी दवाऐं दें सकते हैं --
# - औषधि - अलसी का तेल आधा लीटर तथा नौसादर १-२ तौला मिलाकर पिला सकते हैं , इससे खुलकर पेट साफ़ हो जायेगा ।
# - औषधि -सरसों का तेल आधा लीटर तथा नौसादर १-२ तौला दोनों को आपस में मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से पशु का खुलकर पेट साफ़ हो जाता हैं ।
# - औषधि - मीठा तेल ( तिल का तेल ) आधा लीटर व नौसादर १-२ तौला मिलाकर पिलाने से भी पेट खुलकर साफँ होता हैं ।
- यदि नौसादर नहीं मिल पाता हैं तो सादानमक पावडर तीनों प्रकार के तेलों में मिलाकर दें सकते हैं । २४ घन्टे में पेट साफ़ हो जाये , तब तब दस्त रोकने के लिए नीचे लिखी औषधियों का प्रयोग करना चाहिए , कहीं अधिक दस्त होने से पशु कमज़ोर न हो जायें , इसलिए दस्तों का रोकना ज़रूरी होता हैं ।
# - औषधि - कालीमिर्च पावडर १ तौला , अजवायन पावडर १ तौला , सोंठपावडर २ तौला , इन तीनों को गुड १२५ ग्राम और चावल का माण्ड लेकर उसमें मिलाकर पशु को नाल द्वारा पिला देने से दस्त रूक जायेंगे और हाँ यह योग क़ब्ज़ तोड़ने के लिए जब जूलाब देते है तब भी इस योग का उपयोग परम गुणकारी सिद्ध होता हैं ।
# - यदि दस्त ऊपर दिये योग से नहीं रूकते है और पशु कमज़ोर होता जा रहा हैं तो आगे जिन दवाओं का विवरण हैं उनका प्रयोग करके पशु को ठीक करें --
# - औषधि - कत्था १ तौला , दालचीनी १ तौला , खडिया मिट्टी २ तौला , और अफ़ीम ४ माशा , सभी को बारीक पीसकर चावल के माण्ड में मिलाकर पशु को पिलाने से लाभँ होता हैं ।
#- इस रोग से पीड़ित पशु । चारा दाना नहीं खा पाता हैं इसलिए उसको खाने में गेहूँ या बाजरे का दलिया या चोकर या दूध या चावल का माण्ड देना चाहिए ।
४ - चेचक रोग की रोकथाम के लिए कुछ विशेष उपाय ---
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१ - माता निरोधक टीका लगवा देना सर्वोत्तम उपाय हैं ।
२ - स्वस्थ पशु को बिमार पशु के रहने के स्थान से तुरन्त अलग कर देना ज़रूरी हैं ।
३ -औषधि - माता निकलने से पहले तीन दिन तक पशुओं को २०-२५ सेमल के बीज ४-४ घन्टे के अन्तर पर खिलाने से पशुओं के शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती हैं और पशु माता रोग के घातक प्रभाव से बचे रहते हैं । तथा बिमार होने का ख़तरा टल जाता हैं ।
३ - औषधि - यदि आस-पास किसी पशु को यह रोग हो गया है तो अपने स्वस्थ पशुओ को प्रतिदिन महुए के फूल खिलाने ज़रूरी हैं और साथ मे २ तौला नमक भी देना ज़रूरी हैं ।
४ - औषधि - नीम की पत्तियाँ और केरला की पत्तियाँ पानी में पीसकर दें सकते हैं ।
५ -औषधि - हल्दीपावडर ४ तौला और गुड १ छटांक का काढ़ा बनाकर पिलाने से भी पशु चेचक से बचे रहगें ।
६ - औषधि - प्याज़ का रस निकालकर १ छटांक पशुओ को देते रहने से भी पशु चेचक से बचे रहते हैं ।
७ -औषधि - लाल दवा ( पौटेशियम परमैग्नेट ) पानी में मिलाकर पशुओं को पिलाने से या पानी को उबालकर ठन्डा करके पिलाते रहना चाहिए ।
८ - पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी नीम की पत्तियों को गरम पानी में पकाकर उस पानी से स्नान करना चाहिए तथा उसके कपड़ों को भी खौलते पानी में डालकर धोने चाहिए जिससे चेचक के किटाणु मर जाए । इतना करने के बाद ही दूसरे पशुओं के पास जाना चाहिए नहीं तो वह भी बिमार हो सकते हैं ।
९ - यदि पशु मर जाये तो उसे जला देना चाहिए नहीं तो गहरा गड्ढा खोदकर ज़मीन में गाड़ देना चाहिए । और ध्यान रहे चेचक से पीड़ित पशु की खाल न उतारने दें ।
५ - चेचक ( काऊपाक्स )
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लक्षण - यह बिमारी हमेशा दूधँ देने वाले मादा पंशुओं को होती हैं । उनके थनों पर आरम्भ में छोटी- छोटी फुन्सियाँ होती हैं । जो ४-५ दिन में मवादयुक्त होकर लगभग डेढ़ सप्ताह तक बढ़ती रहती हैं । उसके बाद उनका शुष्क होना शुरू हो जाता हैं और लगभग २० दिनों तक सुखकर खत्म हो जाती हैं । रोगी पशु का दूधँ घट जाता हैं । और बुखार भी हो जाता हैं । इस रोगी पशु का दूध पीने वाले व्यक्ति को भी बुखार हो जाता हैं । मनुष्य को इस बिमारी से बिमार पशु का दूधँ नहीं पीना चाहिए । ब्लकि यह दूधँ रोगी पशु को ही पिला देना चाहिए ।
१ - औषधि - नीम की हरी पत्तियाँ रोगी पशु को नित्यप्रति खिलानी चाहिए ।
२ - औषधि - हरड़ २ तौला , बहेड़ा २ तौला , आँवला २ तौला , लेकर इन सब को १ किलो पानी में डालकर काढ़ा बनाकर गुनगुना पशु को नाल द्वारा पिलाने से आराम आता हैं ।
३ - औषधि - अलसी का माण्ड और नमक ( कच्ची अलसी आधा शेर कुटकर आधा पाँव नमक और ढाई शेर पानी में ख़ूब पकाकर माण्ड बना लें ) लेकर रोगी पशु को पिलाने से आराम आता हैं ।
४ - फिटकरी या नीम की पत्तियों के ऊबाले हुए जल से थनों को धोयें इससे रोग के फैलने ख़तरा नहीं रहता हैं ।
५ - घाव पर थोड़ी सी नीम की पत्ती ,थोड़ी लालमिर्च दोनों को पीसकर थोड़ा सिन्दुर डालकर मिलाकर एक मिट्टी के बर्तन में रख दें । उसमें थोड़ा सा पानी डालकर जिससे वह सुखँ न जाए पतला सा करके चिड़िया के पंख से पशु के घाओं पर लगना चाहिए ।
६ - छोटी माता ( स्मालपाक्स )
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कारण व लक्षण - मौसम के परिवर्तन , उदर ( पेट ) विकार और । अन्य कारणों से यह रोग हो जाता हैं । यह छूत का रोग हैं । यह रोग ही महामारी बनकर फैल जाता हैं । इस रोग से पहले पशु को सर्दी लगती हैं , फिर आँख - नाक से पानी बहने लगता हैं । शरीर का तापमान १०५-१०६ डिग्री फारेहनहाइट तक बढ़ जाता हैं , पेशाब कम होता हैं , गोबर में भी ख़राबी आ सकती हैं । पशु चारा - दाना खाना छोड़ देता हैं । २-३ दिन बाद शरीर पर छोटी- छोटी फुन्सियाँ नक़ल आती हैं , जो ५-६ दिन में पीव से भर जाती हैं तथा कुछ दिनों बाद सूख जाती हैं । १५-१६ दिनों में पशु ठीक हो जाता हैं ।
७ - गलसुआ रोग
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कारण व लक्षण - गलसुआ एक प्रकार की चेचक हैं । इसमें पशु के दोनों जबड़ों में सूजन आ जाती हैं । जीभ भी फूलकर मोटी हो जाती हैं । इस रोग में इसके आलावा चेचक रोग के ही सब लक्षण दिखाई देते हैं ।
उपचार - इस रोग की प्रमुख दवा या उपाय यह है --" दागना" । लोहे की छड़ को लाल करके एक कान के बाहरी हिस्से से दागना शुरू करें और उसके कण्ठ को बचाते हुए दूसरे कान के बाहरी भाग तक मिला दें । फिर कान के भीतरी हिस्से से कण्ठ को बचाते हुएे दूसरे कान के भीतरी हिस्से तक मिला दें । दोनों लाइनों के बीच में थोड़ी- थोड़ी दूरी पर दाग लगाते रहें ।
१ - औषधि - नीम की पत्तियाँ रोगी पशु को खिलाने से लाभ आता हैं ।
२ - औषधि - हरड़ , बहेड़ा , आँवला , को बराबर मात्रा में लेकर २-२ तौला की खुराक बनाकर १ लीटर पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर पिलायें ।
३ - औषधि - अलसी का माँड़ और नमक ( कच्ची अलसी आधा शेर कुटकर , आधा पाँव नमक और ढाई शेर पानी में ख़ूब पकाकर माँड़ बनाकर ) रोगी पशु को पिलावें ।
४ - औषधि - फिटकरी या नीम की पत्तियों के उबाले हुए जल से थनों को धोयें ।
५ - घाव पर नीम की पत्ती पानी में पीसकर उसमें मिर्च महीन बुरककर और थोड़ा - सा सिन्दुर मिलाकर एक मिट्टी के बर्तन में रख दें । उसमें थोड़ा - सा पानी डाल दें ताकि वह सूखने न पाये , इसके बाद दवा को चिड़िया के पंख से लगायें ।
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