४६ -गौ - चिकित्सा -पित्तरोग ( पित्तदोष ) ।
१ - पित्तरोग ( पित्ती उछलना )
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कारण एवं लक्षण - यह रोग पित्तविकार के कारण उत्पन्न होता हैं । जब यह पित्त ख़ून मे मिल जाता है तो खाल में चक्कते से पैदा कर देता हैं । जब पित्त ( Bile ) रक्त मे मिलकर खाल के नीचे पहुँचता हैं तो वहाँ पर खुजली उत्पन्न कर देता हैं तथा खाल के ऊपर ददोरे- से पड़ जाते हैं । इनमें तेज खुजली उठती हैं और इस रोग से ग्रसित पशु बेचैन होकर सींगों , खुरों अथवा पेड़ - पौधों या दीवार आदि से रगड़ - रगड़ कर खुजलाता हैं । इस रोग को ही पित्ती निकलना या पित्ती उछलना कहते हैं । अंग्रेज़ी में इस रोग को "आर्टिकेरिया " कहाँ जाता हैं । पित्ती के ददोरे बार- बार मिटते और बनते (उछलते) रहते हैं । यह ददोरे खाल के ऊपर जगह- जगह मच्छर के काटें जैसे गोल - गोल से चक्कते के रूप में होते हैं , जो प्राय : २ या ३ इंच चौड़े होते हैं । सम्पूर्ण शरीर में खाज हो जाती हैं । यह रोग गाय - भैंस को हो जाता है और उनके योनि स्थान पर सूजन आ जाती हैं ।
# - सर्वप्रथम पशु के शरीर से प्रबल वेग को निकालने हेतू कोई जूलाब देना चाहिए । इस हेतू नीचे लिखे योगों का प्रयोग कर सकते हैं ।
१ - औषधि जूलाब - सरसों का तेल आधा लीटर और आधा छटांक सोंठ पावडर मिलाकर नाल द्वारा पिलाये छोटे - बड़े पशु के हिसाब से मात्रा कम ज़्यादा कर लेनी चाहिए ।
२ - औषधि - जूलाब देने के बाद पशु के शरीर पर गेरू और सरसों का तेल आपस मे मिलाकर मलना चाहिए । और इसके बाद पशु को आग तपानी चाहिए ।
३ - औषधि - नीम की पत्तियों को पीसकर पिलाना चाहिए । यह अति लाभकारी होता हैं ।
४ - औषधि - गाय का दूध व गाय के दूध से बना मट्ठा पिलाना गुणकारी होता हैं ।
५ - औषधि - बकरी का दूध पिलाना भी अतिउत्तम होता हैं ।
६ - औषधि - शहद १२५ ग्राम , गेरू पावडर १२५ ग्राम , ताजा पानी ४०० ग्राम मे मिलाकर नाल द्वारा पशु को पिला देना चाहिए । इससे पित्ती के चक्कते शान्त हो जाते हैं ।
७ - औषधि - नीम के पत्ते , शीशम के पत्ते , अडुसा बाँसा के पत्ते प्रत्येक आधा - आधा छटांक मिलाकर आधा लीटर पानी मे उबाले जब तीन चौथाई पानी शेष रह जाये तो छानकर ठण्डा होने पर पशु को पिला दें । इससे पित्ती शान्त हो जाती हैं ।
८ - औषधि - बदन पर मीठा तेल ( तिल का तेल ) की मालिश कर ऊपर से नमक मल देना चाहिए । इससे भी पित्ती शान्त करने का उपाय हैं ।
# - पथ्य - पशु को पित्तकारक कोई भी वस्तु खाने को ना दें । पानी गुनगुना या ताजा पिलायें साथ ही पशु को ऊनी कम्बल उढाकर हवा से पूर्णरूपेण बचाव करें ।
# - इस रोग के शान्त होने पर पशु को अधिक दिनों तक माण्ड व नमक देते रहना चाहिए । ऐसा करने से इस रोग की पुन: होने की सम्भावना नही रहती हैं ।
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