गौ- चिकित्सा-२- बुखार ।
फेफड़ों का बुखार ( Contagious Pleuro Pneumonia )
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फेफड़ों का ज्वर प्लूरो निमोनिया की भारत देश के असम प्रान्त मे ही देखने को मिलती हैं , किन्तु संसार मे यह रोग व्यापक रूप से विद्यमान हैं । यह भी एक प्रकार का छूत रोग ही हैं जो कि अन्य स्वस्थ पशुओं मे रोगी पशु की छूत से तीव्रता से से फैलता हैं । यद्यपि यह रोग बहुत धीरे- धीरे बढ़ता हैं । किन्तु रोगी पशु को रोगमुक्त होने में कभी- कभी काफी समय ( महीनों ) लग जाता हैं ।
कारण व लक्षण :- यह रोग " बीवीमाइसीज प्लूरो निमोनिया " के जीवाणु समूह के एक अतिसूक्ष्म जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता हैं । यह जीवाणु गौ - पशुओं के अतिरिक्त अन्य पशुओं में- यह रोग पैदा नही करता हैं । आमतौर पर यह रोग - रोगी पशु के श्वास द्वारा अन्य स्वस्थ पशुओं को लग जाता हैं , क्योंकि जो जीवाणु रोगी पशु की श्वास के साथ बाहर निकलते हैं , वे हवा द्वारा अन्य पशुओं के श्वास में चले जाते हैं , इसके अतिरिक्त रोगी पशु की नाक से बहने वाला पानी तथा लार आदि भी रोगाणु फैलाने में सहायक होते हैं ।
इस रोग की सामान्यवस्था के रोग लक्षण लगभग एक महीने में प्रकट होते हैं , जबकि उग्रावस्था के रोग लक्षण प्रकट होने में मात्र एक सप्ताह का ही समय लगता हैं । इस रोग मे सर्वप्रथम रोगग्रस्त पशु को तीव्र ज्वर होता हैं और निमोनिया के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं और शीघ्र ही पशु को श्वास लेने में कठिनाई अनुभव होने लगती है । श्वास रूक जाने के कारण प्राय: रोगी पशु की मृत्यु भी हो जाती हैं । पशु चारा, दाना,खाना व चरना और जूगाली करना बन्द कर देता हैं तथा उसकी छाती मे दर्द होता हैं । और उसे सूखी खाँसी का ठसका भी लगता हैं । इस प्रकार निमोनिया तथा प्लूरिसी रोगों के मिलेजुले लक्षण इस रोग मे प्रकट होते हैं जोकि फेफड़ों पर अँगुलियाँ रखकर बजाने से स्पष्ट प्रतीत होते हैं । इस रोग में फेफड़ों तथा छाती में एक प्रकार का तरल पदार्थ - सा जमा हो जाता हैं । पशु हर समय गर्दन व सिर लटकायें हुए सुस्त - सा खड़ा रहता हैं तथा उसकी नाक से हर समय पानी बहता रहता हैं ।
मन्दावस्था वाले पशु धीरे-धीरे कमज़ोर होकर लगभग दो महीने में मर जाता हैं । मध्यमावस्था वाले पशु रोग में २ या ३ सप्ताह में पशु की मृत्यु हो जाती हैं तथा उग्रावस्था के रोग में पशु एक सप्ताह में ही मर जाता हैं । जो रोगग्रस्त पशु बच भी जाते हैं - वे दीर्घकाल तक दुर्बल बने रहते हैं तथा उनको खाँसी भी बनी रहती हैं और खाँसी एवं श्वास के द्वारा वे रोग के कीटाणु फैलाते रहते हैं । इस रोग को हमारे देश के विभिन्न प्रान्तों में धस्का , धाँस, फिफडी , फेफड़े का निमोनिया तथा मरी आदि नामों से पुकारा जाता हैं
१ - औषधि - कपूर १ तौला , तारपीन तेल १ छटांक , अलसी का तेल १२५ ग्राम , इन तीनों को मिलाकर पशु के सीने पर इस तेल की मालिश करें तथा थोड़ा- सा मिश्रण पिला भी दें , इस प्रयोग से पशु को तुरन्त आराम आ जायेगा ।
२ - औषधि - तारपीन तैल १ भाग , तिल का तैल १० भाग , दोनो को आपस मे मिलाकर पशु की छाती पर मालिश कर ना चाहिए यह लाभकारी सिद्ध होगा ।
३ - औषधि - नीम के पत्ते , युकलिप्टस के पत्ते , मरूवा तुलसी के पत्ते , सभी के पत्ते २५०-२५० ग्राम लेकर तीन किलो पानी मे १० ग्राम तारपीन तेल डालकर पकायें , ख़ूब उबालें और इस पानी की भाप से रोगी पशु के मुँह पर भपारा देंवें जिससे श्वास द्वारा पशु के फेफड़े में पहुँचने से शीघ्र लाभ प्राप्त होता हैं । सुबह- सायं दिन में २ बार तीन- चार दिन यह प्रयोग करें । इस बात का ध्यान रखें कि यह क्रिया बन्द स्थान में करें , जहाँ कि भाप देते समय या उसके तुरन्त बाद पशु को ठण्डी हवा सीधी न लगें ।
४ - औषधि - उपर्युक्त क्रिया की ही भाँति लोबान और गुगल को आग में जलाकर उसकी धूनी पशु के मुँह पर देना भी लाभकारी हैं । यह धूआँ श्वास द्वारा पशु के फेफड़ों में पहुँच कर फेफड़ों में जमा बलगम तथा जकड़न को दूर करता हैं । यह क्रिया भी ठण्डी हवा से बचाव रंखकर दिन मे २-३ बार प्रतिदिन करनी चाहिए । इस प्रयोग से फेफड़ों की सूजन उतर जाती हैं ।
५ - औषधि - यदि रोगग्रस्त पशु को खाँसी का ठस्का अधिक उठता है तो - कपूर ३ माशा , कलमीशोरा ६ माशा , मुलहटी १ तौला , अलसी ढाई तौला , कालीमिर्च ६ माशा , गन्ने की राब या शीरा पाँच तौला , सबसे पहले सूखी चीज़ों को पीसकर चूर्ण बना लें और फिर सभी को राब या शीरा में मिलाकर पशु को दिन में २-३ बार चटायें । इस दवा को ३-४ बार चटाने से ही खाँसी दूर हो जायेगी ।
यदि पशु को क़ब्ज़ भी हो और वह गोबर सामान्य ढंग से न करता हो तो सर्वप्रथम उसकी क़ब्ज़ दूर करने का प्रयास करना चाहिए । इस हेतू निम्न योग का प्रयोग परम लाभकारी होगा ।
६ - औषधि - सेंधानमक आधा पाव , पिसाहुआ गन्धक डेढ़ छटांक , पिसी हुई सौँफ १ तौला , सब या शीरा डेढ़ छटांक , गरमपानी आधा लीटर - इन सबको मिलाकर पशु को पिला दें । एक या अधिक से अधिक २ बार पिलाने से ही पशु को साफ़ दस्त आकर क़ब्ज़ दूर हो जायेगी ।
चूँकि इस रोग में पशु को तेज ज्वर हो जाता हैं । इसलिए बुखार की तेज़ी कम करने तथा बुखार अधिक न बढ़ने देने के लिए निम्नांकित योग लाभकारी हैं -
७ - औषधि - कपूर ९ माशा , कलमीशोरा ९ माशा , धतुरे के बीज पीसे हुऐ ९ माशा , देशी शराब ढाई तौला और पानी १ लीटर लें । पहले कपूर को देशी शराब में घोलें । तदुपरान्त कलमीशोरा को पानी में घोल लें । पहले कपूर को देशी शराब में घोलें तदुपरान्त कलमीशोरा को पानी मे घोल लें ओर उक्त दोनों घोलो को आपस मे मिलाकर उसमे धतुरे के पीसे हुए बीज मिला दें । यह दवा थोड़ी- थोड़ी करके पशुओ को दिन भर में ३-४ बार पिलायें । यह योग छाती मे जमे हुए कफ ( बलगम ) को निकालेगा , बुखार की तीव्रता को कम करेगा और रोगी पशु की शारीरिक शक्ति को क्षीण नही होने देगा । साधारण निमोनिया में यह योग लाभकारी हैं ।
आलोक- इस रोग से पीड़ित दूधारू पशु का दूध पीने हेतू कदापि उपर्युक्त नही होता हैं । अत: यथासम्भव दूध प्रयोग में न लायें । उसका घी तैयार करके प्रयोग किया जा सकता हैं । रोगी पशु को हवा तथा सर्दी से भी पूर्णरूपेण बचायें ।( किसी बन्द स्थान में झूल आदि डालकर रखें )
परहेज़ - हल्की , सुपाच्य तथा दस्तावर चींजे रोगी पशु को चिकित्सा काल में खाने को देना चाहिए । जैसे दलिया , चोकर, चाय , दूध, आदि , पानी गुनगुना पिलायें ।
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