Tuesday, 13 January 2015

(१८)-गौ - चिकित्सा - न्यूमोनिया ( Pneumonia )

(१८)-गौ - चिकित्सा - न्यूमोनिया ( Pneumonia )

१ - न्यूमोनिया ( Pneumonia ) ( फेफड़ों की सूजन )

कारण व लक्षण :- न्यूमोनिया अर्थात फेफड़ों की सूजन का रोग है , यह एक भंयकर रोग हैं जिसके कारण मृत्यु भी हो जाती है अत: इसके इलाज में देरी व लापरवाही नहीं करनी चाहिए अक्सर खाँसी , ज़ुकाम ,के बाद न्यूमोनिया हो जाने का डर रहता हैं और इसी प्रकार बुखार के बाद भी न्यूमोनिया हो जाता हैं । इस रोग के कारण प्रतिवर्ष हमारे देश में हज़ारों पशु अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं ।
भयानक गर्मी से या सर्दी मे आ जाने से दौड़कर या अधिक परिश्रम करने पर पसीनें में होने पर पानी में भीग जाते हैं या ठन्डा पानी पी लेते हैं तो पशु के फेफड़ों पर सूजन आ जाती हैं और रोग तेज़ी से बढ़कर फेफड़ों को प्राकृतिक कार्य करने से रोक देता हैं जिसके कारण श्वास रूक जाने के कारण पशु की मृत्यु हो जाती हैं । गीलें गन्दे व शीलनयुक्त स्थानों पर पशुओं को नहीं रखना चाहिए या अधिक कमज़ोर पशु पर यह रोग आक्रमण करता हैं , पशु को हर समय तेज़ बुखार रहता हैं पिडित पशु काँपता रहता हैं , फेफड़ों तथा पसलियों में तेज़ दर्द के कारण कराहता तथा छटपटाता रहता हैं , और उसे साँस लेने में कठिनाई होती हैं । पशु के नथुनों बार- बार फूलते हैं पशु दाँत पीसता रहता हैं , अन्त में नाक से ख़ून मिला हुआ बलगम आने लगता हैं , पशु अपने अगले पैरों को चौड़ा करके खड़ा हो जाता हैं तथा उसे बैठने में कष्ट होता हैं , आँखें लाल हो जाती हैं पेशाब का रंग गहरा लाल हो जाता हैं इसके बाद पशु को दस्त भी होने लगते हैं । पशु की साँसें तेज़ और अधुरी चलने लगती हैं और यह लक्षण सात दिन तक बढ़ते है उसके बाद घटने लगते हैं ।

# - ध्यान रहे ---- इस रोग में यदि बुखार बिना इलाज के ही कम हो जाये और बिमार पशु आराम से साँस लेने लगे तो यह अशुभ लक्षण हैं ऐसा होने समझ लेना चाहिए कि पशु की मृत्यु के नज़दीक़ हैं

# - जो ज़ुकाम व सर्दी मे भपारा देने की विधी बतायी गयी हैं वह इस रोग में लाभकारी होता हैं ।

१ - औषधि :- पशु की छाती पर अलसी का लेप लगाकर रूई रखकर कपड़ा बाँध देना चाहिए तथा अलसी के तेल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करना व रूई के फाेहो से गरम- गरम सिकाई करनी चाहिए , यह लाभकारी सिद्ध होता है ।

२ - औषधि :- कपूर ३ तौला , जावित्री ३ माशा , मदार की छाल १ तौला , केसर ६ रत्ती , मुलहटी २ तौला , कलमीशोरा १ तौला , नौसादर १ तौला , अलसी २ तौला , गन्ने का शीरा १ छटांक , सबको आपस में मिलाकर दिनभर में २-३ खुराक देवें तथा पशु को पीने के लिए गुनगुना पानी देना चाहिए ।

३ - औषधि :- सोंठ , काकडासिंगी , छोटी पीपल , चाय पत्ती , प्रत्येक १-१ तौला , अजवायन २ तौला , लेकर मोटा- मोटा कूटकर आधालीटर पानी में डालकर पकायें जब पानी जल कर डेढ़ पाँव रह जायें तब उतारकर उसमें गुड १ तौला , कपूर २ माशा , धतुरा बीज पावडर १ माशा , ढाई तौला देशी शराब मिलाकर यह दवा पशु को नाल द्वारा पशु को पिलाना लाभकारी होता हैं ।


२ - फेफड़ों की सूजन ( निमोनियाँ )
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कारण व लक्षण - यह रोग शीत ऋतु में या वर्षाऋतु में अक्सर होता है । बुखार की हालत में पसीना होने पर बहुत ठन्डा पानी पिलाने से और ठन्डी हवा लग जाने से तथा वर्षा में अधिक समय तक भीग जाने से यह रोग हो जाता है । कभी-कभी पशु को समय पर पानी न मिलने से ,और अधिक प्यास में अधिक पानी पी लेने से यह रोग हो जाता है ।
इस रोग में रोगी पशु बहुत सुस्त रहता है । खाना- पीना और जूगाली करना बन्द कर देता है । उसके रोये खड़े हो जाते है । उसे ज़ख़्म और खाँसी हो जाती है । और पशु का शरीर काँपता है और साधारण ज्वर हर समय बना रहता है । आँखें लाल तथा गहरी हो जाती है,उसकी नाक से बलगम निकलता रहता है तथा नाड़ी तेज़ चलती रहती हैं ,पशु उस बाज़ू दबाव देकर बैठता हैं,जिस बाज़ू के फेफड़े में दर्द होता हैं और पशु बार- बार दाँत पीसता रहता है । रोग शुरू होने के बाद ६-७ दिन में यह बिमारी बढ़ जाती है । रोगी पशु के कान की जड़ ठन्डी हो जाती है , पशु के उपर के होंठ पर पसीने की बूँदें नहीं रहती है यानि होंठ ख़ुश्क बनारहता हैदर उसकी ठन्डी साँसें चलती रहती हैं तथा पशु कराहता रहता और आँखें अन्दर की और धँस जाती है ।

१ - औषधि -भैंसों के लिए- सादा नमक पिसा हुआ ३० ग्राम , नारियल तेल ४०० ग्राम , नमक को तेल में मिलाकर गुनगुना गरम करके रोगी पशु के पूरे शरीर में आधे घन्टा तक मालिश करनी चाहिए , फिर उसके शरीर पर सूखी घास रखकर ऊपर से चार कम्बल ओढाये और उन्हें रस्सी से बाँध देने चाहिए , जिससे घास और कम्बल अपनी जगह से सरकें। पानी गरम करके ठन्डा होने तक पिलाया जाय । रोगी पशु को बन्द कमरे में बाँधा जाय और रोगी पशु को हरी घास व ठन्डी चींजे न खिलायी जाय । केवल सूखी नरम घास व गेंहू का भूसा खिलाया जाय वही उसके नीचे बिछाया जाय इससे पशु को गर्मी पहुँचेगी

# - गाय के लिए- गाय व बैल की केवल हाथ से ही आधा घन्टे मालिश की जाये,और मालिश करने के बाद उपरोक्त विधी द्वारा ही घास व कम्बल बाँध दिये जाये ।

२- औषधि - देशी मुर्ग़ी के २अण्डे , १० ग्राम हल्दी पावडर ,गाय का दूध २ लीटर गरम करके उसमें हल्दी तथा अण्डे को तोड़कर दूध में डाले और अण्डे केछिलके को फेंक दें। तथा दो दिन तक दिन में एक बार , तीनों को आपस में मिलाकर गुनगुना पशु को पिला देना चाहिए ।

# - तीसरे दिन १ लीटर दूध तथा एक अण्डा व ५ ग्राम हल्दी मिलाकर गुनगुना करके पशु को पिला देना चाहिए, अगर आवश्यक हो तो चौंथे दिन भी दें ।

३ - औषधि - इन्द्रायण फल ६० ग्राम , घुड़बच ६० ग्राम , काला ज़ीरा ६० ग्राम , सेंधानमक ६० ग्राम , लहसुन ६० ग्राम , अदरक २५ ग्राम , गुड़ १२० ग्राम , अजवायन ६० ग्राम , पानी १४४० ग्राम , सभी को बारीक कूटपीसकर छलनी में छानकर ,पानी में उबालें ,जब पानी १००० ग्राम रह जाये तब गुनगुनापानी बिना छाने ही पशु को सुबह - सायं आराम होने तक इस मात्रा को पिलाते रहे ।

४- औषधि - अजवायन ६० ग्राम , सोंठ २४ ग्राम , लहसुन ३६ ग्राम , काला ज़ीरा ६० ग्राम , चन्द्रशूर ६० ग्राम , गुड़ ४८० ग्राम , पानी ५०० ग्राम , सभी को बारीक पीसकर पानी में उबालकर काढ़ा बनायें डेढ़ लीटर काढ़ा रहने पर रोगी पशु को दोनों समय बनाकर पिलाना चाहिए और आराम होने तक दवा को पिलाते रहना चाहिए।

५ - औषधि - कालीमिर्च १२ ग्राम , घुड़बच ६० ग्राम , लौंग १२ ग्राम , नमक ३० ग्राम , सभी को बारीक पीसकर ,पानी ५०० ग्राम व देशी शराब ५०० ग्राम को आपस में मिलाकर बिना छाने ही पशु को पिलानी चाहिए और आराम होने तक दोनों समय इसी मात्रा को पिलाते रहना चाहिए ।


३ - दमारोग ( Asthma )
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कारण- लक्षण :- बूढ़े एंव कमज़ोर शरीर के पशु को अधिक दौड़ाने या उससे भारी काम लेने , बदहजमी अथवा खाँसी की शिकायत बहुत दिनों तक बनी रहने और ठीक प्रकार से चिकित्सा न होने पर रोग के बिगड़ जाने के कारण खाँसी या दमा रोग हो जाता हैं । दमा से बिमार पशु को खाँसी जल्दी- जल्दी आती हैं तथा घोर कष्ट के साथ श्वास खींचकर अन्दर लें जाना पड़ती हैं । श्वास खींचने के कारण ही उसकी कोख और पेट में दर्द होने लगता हैं । खाँसी के साथ ही बलगम भी निकलता हैं ।

१ - औषधि :- श्वेत संखिया ५ रत्ती , आटे में मिलाकर खिला देने से पशु का दमा ठीक हो जाता हैं ।

२ - औषधि :- धतुरा बीज १ रत्ती , अफ़ीम १ माशा , दोनों को पीस- घोलकर २५० ग्राम पानी के साथ सेवन कराने से भी दमारोग में आराम आता हैं ।
ये दोनों दवाये पशु को बारी- बारी से १५ दिन तक देते रहने से पशु बिलकुल ठीक हो जायेगा ।

३ - औषधि :- धतुरा बीज १ माशा , कपूर १ माशा , अनार का छिल्का १ तौला , देशी शराब १छंटाक , गन्ने का शीरा १ छटांक , लें । कपूर व धतुरा के बीजों को पीसकर बाँस के पत्तों के रस में मिलाकर शराब के साथँ घोल लें । इसके बाद अनार के छिलके को ५०० ग्राम पानी में पकायें जब पानी जलकर आधा है जाये तब पानी को कपड़े में छानकर पानी को रख लें तथा गुनगुना होने पर उसमें बाक़ी सभी दवाये मिलाकर दिन में दो बार पिलाने से लाभँ होता हैं ।

४ - औषधि :- नौसादर १ तौला , अदरक १ छटांक ,पीसकर गुड १ छटांक , लेकर उसमें मिलाकर पशु को खिलायें यह दवाई ऐसी स्थिति में लाभकारी होता है जब रोगी पशु का बलगम निकलने मे कष्ट होता हैं ।

# - ध्यान रहे पशु को भारी व बादी चीज़ों से बचाना आपकी ज़िम्मेदारी हैं ।




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