(२३)-१-गौ- चिकित्सा - गर्दन रोग ।
गर्दन रोग -
===============
१ - नमका या चिकवा रोग
===========================
कारण व लक्षण - इस रोग में गर्दन सूजकर अकड़ जाती हैं । और ऐसी कठोर पड़ जाती हैं कि वह दायें- बाँये अथवा ऊपर नीचे किसी भी तरफ़ झुकायें नहीं झुकती हैं ।
१ - औषधि - पूँछ के नीचे गुदामार्ग के ऊपर नस मे फस्त लगा देनी ( खोल देनी ) चाहिए और रोगी पशु को नाक से १०-१५ ग्राम सरसों का तेल पिलाना चाहिए ।
२ - औषधि - रोगी पशु को सात- आठ दिन तक प्रतिदिन आधा किलो पुराना गुड़ खिलाना चाहिए ।
३ - औषधि - रोगी पशु को आठ दिन तक दवा करने पर भी आराम नहीं होता हैं तो " गर्दन की नस चढ़ाना " रोग में जिन दवाओं का विवरण किया गया हैं गेरू - साबुन वाले योग का उपयोग करना चाहिए ।
४ - दागना - यदि किसी दवा से आराम नही आ रहा है तो गर्दन में गोलाकार दाग चारों ओर से दाग देना चाहिए । मेरूदण्ड के दोनों तरफ़ पूँछ से गर्दन तक दाग दें और इसके बाद ४-४ अँगुल पर बीच- बीच में दाग कर देना चाहिए तथा पूँछ उठा कर नीचे के भाग में दाग दें । दागने बाद भी दवा वही चलाते रहें ।
२- गर्दन की नस चढ़ना
======================
कारण व लक्षण - यह रोग अक्सर गाड़ी में चलने वाले पशुओं को होता हैं । प्राय: यह रोग झटका लगने से हो जाता हैं । इसमें गर्दन की नस चढ़ जाती हैं तथा पशु अकड़ा सा खड़ा रहता हैं । वह इधर- उधर नहीं देख पाता हैं और चरने के लिए मुँह नहीं खोल पाता हैं ।
१ - औषधि - बाँबी ( दीमक ) की मिट्टी और भेड़ के गोबर को गाय की बछिया के मूत्र में पीसकर गरम करके मालिश करना लाभकारी सिद्ध होता हैं ।
२ - औषधि - गेरू और साबुन को समान भाग लेकर सरसों के तेल में पकाकर ४-५ दिन तक मालिश करने से नस ठिकाने बैठकर गर्दन सीधी हो जाती हैं ।
३ - पनियारी
==============
कारण व लक्षण - पशुओं के मुख व चौहर के बीच में जो ख़ाली स्थान होता हैं - इस रोग में उस पर सूजन हो जाती हैं । यह सूजन बढ़कर दाढ़ी से गर्दन तक फैल जाता हैं । इस रोग से पीड़ित पशु का मुख नहीं खुलता हैं । पशु खाना- पीना छोड़ देता हैं तथा वह अत्यन्त बैचनी की िस्थति में रहता हैं ।
१ - औषधि - इस रोग को ठीक करने का सर्वोत्तम उपाय हैं - लोहे की छड़ को लाल करके सूजन को दाग देना चाहिए ।
२ - टोटका - बकरे के सिर पर जहाँ गूद्दी होती हैं वहां के बाल लेकर व पत्थर का चूना लेकर आपस में मिलाकर रोगग्रस्त स्थान पर लेप करने से आराम आता हैं ।
४ - कण्ठमाला
===============
कारण व लक्षण - इस रोग को गण्डमाल के नाम से भी जानते हैं । यह रोग पशुओं की गर्दन की नस के उपर फुन्सियो के रूप में होता हैं । कुछ समय पश्चात् ये फुन्सियाँ फूटने लगती हैं ।
१ - दागना - सर्वप्रथम समस्त फुन्सियाँ को लोहा गरम करके दाग देना चाहिए ।
२ - औषधि - इसको दागने की एक यह भी विधी हैं - सेहुड़ की दूध वाली डाल लेकर उससे कण्ठ को गोद दें ।
३ - औषधि - सरसों का तेल ३ पाँव , पुरूष के सिर के बाल १ छटांक , तेल को आग पर चढ़ाकर उसमें बाल डालकर औटायें जब बाल जलकर राख हो जायें तो उसमें आधा पाँव देशी साबुन डाल दें । इस मरहम को तैयार करके दागे हूए स्थान पर जहाँ कण्ठमाला है उस पर लगायें ।
५ - गर्दन तोड़
============
कारण व लक्षण - इस रोग में पशु की गर्दन नहीं घूमती । वह अकड़ जाती है । उसे बुखार रहता है । वह खाना- पीना छोड़ देता है । समय पर ठीक इलाज न होने पर पशु मर जाता है ।
१- औषधि - घुड़बचर १२० ग्राम , लहसुन ६० ग्राम , गुड २४० ग्राम , अजवाइन ६० ग्राम , इन्द्रायण का फल ३० ग्राम , पानी १२०० सबको बारीक कूट - पीसकर और पानी में उबालकर कुनकुना रहने पर , रोगी पशु को बिना छाने , पिला दिया जाय । दवा दोनों समय, अच्छा होने तक देनी चाहिए ।
---------------------- @ -----------------------
५ - गर्दन व रीढ़ का अकड़ जाना ।
=======================
कारण व लक्षण - पशु को समय पर पानी न मिलने से यह रोग हो जाता है । पहले तो रोगी पशु को किसी नदी या तालाब में पाँच दिनों तक ख़ूब तैराना चाहिए । फिर उसके सिर को एक अच्छी रस्सी में बाँधकर वृक्ष आदि के ऊपर रस्सी डालकर उसके अगले दोनों पाँव ज़मीन से छुड़ा देने चाहिए । यानि पशु अगले पाँव से टंग जायें । यह कार्य बहुत जल्दी और केवल तीन मिनट तक ही किया जायें। फिर रोगी पशु की बेची पर लगभग एक रूपये के सिक्के के बराबर उस जगह के बाल खुरचकर निकाल दिया जाये ओर इस खुरचे हुए स्थान पर आक ( मदार ) के दूध में ,५ ग्राम रूई को भिगोकर चिपका दिया जाय । ऐसा बिना खुरचे भी ६ दिन तक लगाया जाय ।
१ - औषधि - - आबाँहल्दी २५० ग्राम , फिटकरी २५० ग्राम , सज्जी २५० सबको बारीक पीसकर छान लेना चाहिए और गोमूत्र या भैंस का मूत्र ४८० ग्राम , दवा १२० ग्राम इस हिसाब से मिलाकर , बिना छाने,एक समय रोगी पशु को आठ दिन तक पिलायी जाये ।
२ - औषधि - मेंथी का बीज ४८० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ ३ लीटर , मेंथी के बीज को बारीक पीसकर , छाछ में मिलाकर , ८ घन्टे पहले गलना चाहिए । रोगी को दोनों समय ८ दिन तक पिलाना चाहिए । बाद दिन में एक समय आराम होने तक देना चाहिए । और उसकी खुराक बंद करके हरी घास खिलायी जायें ।।
३ - औषधि - फिटकरी ४८० ग्राम , काला नमक १२० ग्राम , आबाँहल्दी ४८० ग्राम , सज्जी ४८० ग्राम , ढाढ़न के बीज ५५० ग्राम सबको बारीक पीसकर और छानकर उनमें गोमूत्र ४८० ग्राम, और दवा १८० ग्राम , दोनों को मिलाकर रोगी पशु को सुबह बिना छाने , ११ दिन तक , बोतल या नाल से पिलाया जाय ।
४ - औषधि - रोगी पशु की रीढ़ पर तिल का तैल ४० ग्राम , पिचकारी में चमड़ी के भीतर उतारा जाय और उस स्थान को ख़ूब मसल दिया जाय, ताकि तेल सब जगह मिल जाय । जिस दिन दवा उतारें , उस दिन नीचें उतारें । दूसरे दिन नीचे से उपर मालिश करें और नीम के पानी से सेंकें ।
५ - औषधि - मेंथी के बीज ४८० ग्राम , पवाडिया ( चक्रमर्द ) के बीज ४८० ग्राम , नमक ३६ ग्राम , पानी ४ लीटर , बीजों और नमक को महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , ख़ूब उबालें ,ठन्डा होने पर दोनों समय ,१५ दिन तक रोगी पशु को खिलायें ।
# - १० ग्राम भुई कोला ( पाताल तुमड़़ी ) बिदारीकन्द उबाल और छानकर काम में लिया जायें ।
५ - औषधि - रोगी नर पशु की कमर व गर्दन में पिचकारी से दवा उतारी जाय,भुई कोला का तेल बना करकें - भुई कोला ( पाताल तुमड़़ी ) ४०० ग्राम , अलसी का तैल १००० ग्राम ,पाताल तुमड़़ी को तैल में पकाकर तैयार कर लें ।
--------------------------- @ ----------------------------
६ - कन्धो में सूजन और पेशाब चढ़ जाना
===========================
कारण व लक्षण - जब बैल पेशाब करता है तो उसे रोक देना चाहिए । उस समय उसे चलाया नहीं जाना चाहिए । गोबर निकालते ( टट्टी करते ) समय भी उसे आराम देना चाहिए । ऐसा न करने पर कंधा की बिमारी हो जाती है । उसके शरीर के अन्दर पेशाब ( मूत्र ) भर जाता है । कन्धे पर काफ़ी सूजन आ जाती है । यह रोग केवल बैल को ही हो जाती है ।
१ - औषधि - सुई लगाकर पिचकारी से उसका मूत्र कन्धा में से निकालकर बाहर फेंक दें । बाद में नीम के उबले हुए पानी से घाव को धोयें तथा कपड़े से उसकाे पोंछ दें । अामचूर का तेल १२० ग्राम ,सिंगदराद पत्थर९० ग्राम , लेकर सिंगदराद को महीन पीसकर दोनों को मिलाकर गरम करके मालिश करें । दोनों समय, सुबह- सांय नीम के पानी से घाव धोते रहना चाहिए ।
--------------------------- @ ----------------------------
७ - कन्धा तिड़कना
===================
कारण व लक्षण - यह रोग बैल व भैंसे मे होता है जोत को ढिला रखने पर गाड़ी मे काफ़ी दिनों तक न जोतने पर और फिर अचानक जोतने पर बैल का कन्धा तिडक जाता है । उससे ख़ून निकलने लगता है । उस पर मक्खियाँ गिरने लगती है । लापरवाही के कारण घाव हो जाता है और उसमें कीड़े भी पड़ जाते हैं ।
१ - औषधि - पहले रोगी पशु के कंधे को नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से सेंकना चाहिए , फिर रूई से उसे साफ़ कर देना चाहिए ।
२ - औषधि - पहले रोगी पशु के कन्धे को नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से सेंकना चाहिए , फिर रूई से उसे साफ़ कर देना चाहिए ।
३ - औषधि - अमचूर का तैल २४ ग्राम , सिंगदराद १२ ग्राम , सिंगदराद को पीसकर छान लें और अमचूर के तैल में मिलाकर गरम कर लें । गरम करते समय दवा को हिलाते रहना चाहिए , जिससे दवा अच्छी तरह मिल जाय । फिर गुनगुना दवा से पशु के कन्धे पर दोनों समय , अच्छा होने तक , मालिश करते रहें ।
४ - औषधि - रतनजोत का दूध २४ ग्राम , को रोगी पशु के कन्धे पर दिन में तीन बार , अच्छा होने तक ,लगाते रहे ।
५ - औषधि - गधापलास की गीली लकड़ी के काँटे साफ़ कर उसे आँच पर जला लें और ठंडा होने पर रोगी पशु के कन्धे पर २४ ग्राम , नारियल तैल लगाकर लकड़ी से घाव पर दोनों समय ,अच्छा होने तक रगड़े । इससे पशु जल्दी अच्छा होगा ।
६ - औषधि - नीम का तैल १२ ग्राम , मिस्सी ९ ग्राम , नीम के तैल को रोगी पशु के घाव पर लगाकर मिस्सी को बारीक पीसकर लगायें ।
--------------------------@---------------------------
८ - कन्धे में गाँठ पड़ना
====================
कारण व लक्षण - अक्सर बैलों को जोतने पर , जोत ढीली रहने पर , नया बैल होने पर , छोटे-बड़े बैलों को एक साथ जोतने पर , बैलों को लगातार १५ दिनों तक न जोतने के बाद यकायक जोतने पर बैल के कन्धो पर सूजन आ जाती है । यह सूजन धीरे - धीरे गाँठ का रूप धारण कर लेती है । इससे पशु को बहुत कष्ट होता है ।
१ - औषधि - कन्धे की गाँठ को पहले नीम के उबले हुए पानी में दोनों समय , क़रीब आठ दिनों तक , सेकें । गरम ईंट से गाँठ सेंकने से पशु को आराम होता है ।
२ - औषधि - अमचूर का तैल ४८ ग्राम , सिंगदराद २४ ग्राम , सिंगदराद को महीन पीसकर कपड़े में छानकर तैल गरम करते समय मिला दें । उसे हिलाते रहे । फिर गुनगुना होने पर पंशु के कन्धे पर दोनों समय ,अच्छा होने तक लगायें ।
३ - आक ( मदार ) का दूध छ: माशा ( ९ ग्राम ) रोगी पशु को बेची पर चाक़ू से एक रूपये के बराबर जगह खुरचकर बाल उड़ा दें । फिर उसी स्थान पर रूई से आक का दूध लगा दें । प्रतिदिन सुबह ६ दिन तक दूध लगायें ऐसा करने पर पहले कन्धे पर सूजन आयेगी । नसें तंग होगी , लेकिन उसके बाद गाँठ गल जायेंगी । गँवारपाठा का गूद्दा निकालकर पशु के कन्धे पर लगाना चाहिए ।
४ - औषधि - मदार की जड़ ६ माशा रोटी में डालकर पशु को आठ दिन तक खिलानी चाहिए ।
९ - बैल व भैंसा की गर्दन में मूतार
=======================
कारण व लक्षण - मूतार ( बैल - भैंसा ) की गर्दन में सूजन आने के बाद पक जाना -- यह बिमारी वज़न ढोनेवाले पशुओं की गर्दन में हो जाता है ।गर्दन में सूजन आ जाती है। एसे में किसान को जुताई नहीं करनी चाहिए ।
१ - औषधि - असली रूमीमस्तगीं ५ ग्राम , राल २० ग्राम , गूगल १० ग्राम , मूर्दा सिंह १० ग्राम , सिन्दुर १० ग्राम , नील ३ ग्राम , मोमदेशी ३० ग्राम , इन सभी दवाओं को कूटकर १५० ग्राम ,सरसों के तैल मे मिलाकर एक उबाल देकर डिब्बे में रख लें और पशु को धूप में बाँध कर उसकी गर्दन पर लगाये ।
दवाई को हाथ से नही लगानी चाहिए , किसी लकड़ी की चम्मच से लगाना चाहीए , दवाई गर्दन पर पतली- पतली दवा लगाना चाहिए नहीं तो गर्दन को जला देगी , और ध्यान रहे जबतक ठीक न हो जबतक पशु को हल व बूग्गी में नहीं जोड़ना चाहिए ।
१० - जहरवात ( जहरबाद ) गर्दन में सूजन
==============================
कारण- लक्षण - इस रोग में पशु की गर्दन में बहुत अधिक सूजन आ जाती हैं । यह कष्टदायक व्याधि हैं पशु दाना-खाना लेने में असमर्थ रहता हैं ।
१ - औषधि - सोंठ, पीपल , कालीमिर्च , ज़ीरा सफ़ेद , ज़ीरा काला , कुटकी , चिरायता , चीता ( चित्रक) बायबिड्ंग , काकडासिंगी , सभी को ५०-५० ग्राम , लेकर कूटपीसकर - कपडछान करके रख लें । बण्डार २०० ग्राम , लहसुन २०० ग्राम , पीसकर मिला लें , इस दवा को ८-९ दिन तक रोज़ाना जौं के आटे में मिलाकर पशु को खिलाना चाहिए ।
२ - औषधि - काली जीरी ५ ग्राम ,कुटकी १० ग्राम , बण्डार १० ग्राम को बराबर में मिलाकर पीसछानकर दिन मे ४-५ बार जौं के आटे में मिलाकर खिलाने से आराम आता हैं ।
३ - औषधि - चीता , चिरायता , काकडासिंगी , जवाॅखार , कुटकी , भाँग , बड़ी पीपल, पीपरामूल , ढाक के बीज , गुगल , संभालू के सूखे पत्तें । मरोड़ फली , सभी को २५०-२५० ग्राम , लें । सज्जीखार , सेंधानमक , कालाजीरा , सफेदजीरा घुड़बच , हींग , अजवायन देशी , अजवायन खुरासानी , राई , अदरक , इन्द्रायण के फल , नीम के पत्ते , बेलगिरी , कालीमिर्च , इन्द्रजौं , गिलोय , छोटी हरड़ , सभी को ५००-५०० ग्राम , लें। बड़ी हरड़ , बण्डार , कचरी , सोंठ , बहेड़ा , सहजन ( सोहजना ) की छाल , पुदिना , प्याज़ , प्रत्येक १-१ किलो लें । कुचला छिला हूआ ३ छटांक , सुहागा फूला ७५ ग्राम , फिटकरी फूला ७५ ग्राम , सबको लेकर कुटपीसकर ७५-७५ ग्राम के गोले बना लें और दिन में तीन बार पशु को खिलाने से जहरवात बिमारी ठीक हो जायेगी ।
४ - औषधि - कालीजीरी , मकोय , बण्डार , सममात्रा में लेकर पीसकुटकर लेपबनाकर लेप को गुनगुना कर रोगग्रस्त स्थान पर लगाकर महुआ का पत्ता बाँधने से लाभकारी सिद्ध होता हैं ।
--------- ० --------
११ - जहरवात
=============
कारण व लक्षण - यह रोग अधिकतर मादा ( दूध देने वाले ) पशुओं के थन और साधारण पशुओं के गले ( कण्ठ) में होता है । पहले गले या कण्ठ और थन में एक गाँठ पैदा होती है । कुछ ही घण्टों बाद वह बड़ा रूप धारण कर लेती है । यह रोग हर जगह हो सकता है ।
गाय को छूने पर वह गरम मालूम होती है । गाँठ का आकार ३-४ इंच तक होता है । पशु खाना पीना और जूगाली करना बन्द कर देता है । उसे बुखार चढ़ आता है । गले पर सूजन आ जाती है , जिससे साँस लेने में उसे कठिनाई होती है । कभी - कभी इसका आक्रमण थनों पर भी होता है । थन ख़राब हो जाते है । थनों और दूग्धकोष पर सूजन आ जाती है , कभी - कभी छिछडेदार और रक्तमिश्रित दूध निकलता है । समय पर इलाज न होने से थन बेकार हो जाते है । यह बीमारी कभी एक , दो , तीन , चारों थनों में हो जाती है । उपचार उचित समय पर न होने के कारण गर्दन के रोग वाला पशु जल्दी मर जाता है ।
१ - औषधि - रोग - स्थान को नीम के उबले पानी को गुनगुना होने पर दिन में ३ बार सेंका जाय । फिर नारियल का तैल या नीम के तैल की मालिश की जाय । इससे गाँठ को गरम होने में सहायता मिलेगी ।
२ - औषधि - सत्यनाशी की जड़ १२० ग्राम , गुड़ २४० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , जड़ को बारीक पीसकर , गुड़ मिलाकर , पानी में घोलकर , रोगी पशु को ( बिना छाने ही ) , दो बार पिलाना चाहिए ।
३ - औषधि - हुलहुल का पुरा पौधा ( मच्छुन्दी ) १२० ग्राम , इसको बारीक पीसकर , रोटी के साथ रोगी पशु को दोनों समय , खिलाया जाय । अथवा इसको बारीक पीसकर ७२० ग्राम , पानी के साथ बिना छाने पिलाया जाय । दवा जादू का - सा असर दिखायेगी ।
टोटका -:-
४ - औषधि - जिस व्यक्ति की सबसे छोटी और अँगूठे के पासवाली अंगुली लम्बी करने से मिल जाती है , उसके द्वारा कुँआरी बछडी का गोबर लेकर सूजन के ऊपर गोल चक्कर बनाकर मध्य में चित्र नं० १ की तरह चीर देना चाहिए ।
आलोक -:- दोनों उँगलियों को मिलाते वक़्त उसको दूसरी दोनों अंगुलियों को हथेली की और दबाकर अंगुलियाँ मिलाना चाहिए ।
१२ - खाँसना ( ढाँसना )
===================
कारण व लक्षण - प्राय : बदहजमी और सरदी - गर्मी के कारण पशु को खाँसी चला करती है । यह ऐसा रोग है, जिसमें छाती के भीतर फोड़े हो जाते है । और पशु सुस्त रहता है । उसके खानपान में कमी हो जाती है । वह कमज़ोर हो जाता है । अक्सर उसके रोयें खड़े हो जाते हैं । कभी - कभी उसे ज्वर भी आ जाता है । उसका रंग काला पड़ जाता है । अक्सर उसे क़ब्ज़ रहा करती है , नाक वआँख से पानी बहता रहता हैं। और आँख से पानी बहता रहता है । उसकी श्वास की गति बढ़ जाती है । कभी-कभी खाँसते-खाँसते पशु का गोबर निकल जाता है ।
१ - औषधि - धान का छिल्का ४८ ग्राम ,( बिनौला कपास का बीज ) ४८० ग्राम , दोनों को ख़ूब मिलाकर , सूखा ही , आठ दिन तक दोनों समय रोगी पशु को खिलायें ।
२ - औषधि - खड़ी मूँग २४ ग्राम , मीठा तैल १२० ग्राम , खड़ी मूँग को तैल के साथ रोगी पशु को पिलाने से फ़ायदा होता है ।उपर्युक्त मात्रा में प्रतिदिन सुबह- सायं ४-५ दिन तक देने से आराम मिलता है और खाँसी दूर हो जाती हैै । कलई के चूने का पानी १२० ग्राम , चूने को ८ घन्टे पहले गरम पानी में गलाया जाय । फिर ऊपर का स्वच्छ पानी निथारकर रोगी पशु को ६० ग्राम , बोतल द्वारा पिलाया जाय । यह दवा चार दिन तक , दोनों समय ,पिलाये ।
------------ @ ------------
Sent from my iPad
No comments:
Post a Comment