Monday, 9 November 2015

मस्तिक प्रदाह (दिमागी दर्द)

कारण व लक्षण -
                               दिमाग़ में गर्मी के प्रवेश अथवा पशु की अतिशय पिटाई से उसके दिमाग़ में दाहकता होने लगती हैं । पशु बेहद शिथिल हो जाता हैं । तन्द्रा आना नेत्रों मे नशीलापन व झपकी- सी रहना तथा प्यास की अधिकता होना इस रोग के प्रधान लक्षण है । इस रोग का प्रभाव यह होता हैं कि पशु उन्मत हो जाता हैं ।
उपयोगी औषधि -

१ - गाय का दूध आधा शेर , अरण्डी का तेल आधा शेर , दोनों को मिलाकर पिलाने से लाभ होता हैं ।
२ -  पशु की नाक,कान,आँख में बरगद की पत्तियों के रस की ६-६ बूँद डालने से लाभ होता हैं ।

३ -  गाय का या बकरी का दूध १ लीटर , गाय का घी २०० ग्राम , मिलाकर पिलाने से मस्तिक की गर्मी शान्त होती हैं तथा रोगी पशु चुस्ती- फुर्ती का अनुभव करने लगता हैं ।

४ - सोंठ पाउडर २० ग्राम ,शुद्ध सरसों का तेल २५० ग्राम , मिलाकर रोगी पशु को पिलाने से लाभदायक होता हैं । पशु की शारीरिक क्षमता व उम्र के हिसाब से दवा की खुराक कम- बत्ती कर सकते हैं ।

नोट- पशु को हल्का साफ़-सुथरा व सुपाच्य चारा खिलाते रहना चाहिए ।

(९)-२- गौ- चिकित्सा - पेटरोग-अजीर्ण रोग।

(९)-२- गौ- चिकित्सा - पेटरोग-अजीर्ण रोग।

१ - अजीर्ण - पेटरोग

कारण व लक्षण - पित्त, जल , या कठोर भोजन करने से यह बिमारी उत्पन्न होती हैं , पेट में भंयकर दर्द भारीपन , गुडगुहाट , साँस लेने में कष्ट का अनुभव करता है तथा जूगाली नहीं कर पाता हैं , दाँत किटकिटाना इसका प्रमुख लक्षण हैं तथा गोबर पशु या तो करता नही हैं और यदि करता भी हैं तो अत्यन्त दुर्गन्धपूर्ण व कच्चापक्का करता हैं ।
इस रोग में पशु का पेट फुलाता नहीं हैं किन्तु बायीं ओर कुछ भारीपन मालूम होता हैं । पेट पर अंगुली मारने से ढब - ढब शब्द की आवाज़ नहीं आती हैं , ब्लकि पेट कठोर मालूम होता हैं । इस बिमारी में पशु गोबर करता ही नहीं हैं । और अगर करता भी हैं तो खायी हूई वस्तु का कच्चा अंश आने लगता हैं । पशु कभी - कभी नथुनों को ऊपर खिंचता हैं तथा ज़मीन पर दाढ़ी रखता हैं और गले से घों - घों शब्द की आवाज़ आती हैं । कभी - कभी पशु दाहिनी करवट से लेटना चाहता हैं ।

# - पेट फुलने और अजीर्ण में एक विशेष अन्तर हैं कि पेट फुलने पर रोगी पशु बेचैन रहता हैं । अजीर्ण रोग का रोगी पशु बेचैन नहीं रहता ब्लकि चुपचाप लेंटा रहता हैं ।

# - अजीर्ण में पशु को कुछ दिनों तक खाना नहीं देना चाहिए यदि आवश्यक हो तो हरा मुलायम घास व चावल का माण्ड देना चाहिए । इसके आलावा दलिया चोकर व जल्दी पचने वाला चारा ही देना चाहिए ,
क़ब्ज़ व दर्द व पेट सम्बन्धी दवाएँ देते रहना चाहिए तथा अजीर्ण में जूलाब देकर ही अन्य दवाएँ देना चाहिए व दवायें समयानुसार देना चाहिए ।

१ - औषधि - जूलाब , विरेचन विधी - अलसी का तेल ५० ग्राम , मुसब्बर १०० ग्राम , दोनों को पर्याप्त मात्रा में चूल्हे पर पका लें । जब जब वह भलीप्रकार घूल जायें तब उसमें २-३ जमाल घोटें की गीरी डाल दें और आवश्यकतानुसार गन्ने की शीरा मिला लें इसके बाद रोगी पशु की ताक़त के अनुसार देवें । इस दवा से उनका पर्याप्त मल ( गोबर ) बाहर आ जायेगा लेकिन ध्यान रहें की जमालघोटा की गीरी तीन से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए वरना लेने के देने पड़ जायेंगे ।
उपचार- औषधियाँ :- कालीमिर्च १५ ग्राम , भांग पावडर १५ ग्राम , ज़ीरा पावडर ९० ग्राम , पुराना गुड़ १०० ग्राम , देशी शराब १२५ मिलीग्राम , गरमपानी १५०० ग्राम , में मिलाकर पशु को दिन में तीन - चार बार पिलायें ।
२ - औषधि :- बड़ी बच १० ग्राम , कालीमिर्च १० ग्राम , अजमोदा १० ग्राम , हींग १० ग्राम , सेंधानमक १० ग्राम , चने का आटा १०० ग्राम , सभी को मोटा - मोटा कुटकर चने के आटे में मिलाकर गोलियाँ बनाकर रखँ लेंवे , इन गोलियों को दिनभर में आवश्यकतानुसार देनें से लाभ होता है।

३ - औषधि :- सरसों या तिल का तेल ५०० ग्राम , तारपीन तेल २५ ग्राम , मिलाकर नाल द्वारा पिलानें से लाभ होता हैं ।

४ - औषधि :- सोंठ पावडर ५ ग्राम , अरण्डी का तेल ५०० ग्राम , मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता हैं ।
५ - औषधि :- अजीर्णहारी चूर्ण २५-३० ग्राम , रोगी को देते रहने से वह स्वस्थ हो जाता है तथा अन्य रोगों का शिकार होने से बचा रहता है ।

अजीर्णहारी चूर्ण बनाने की विधी -- हल्दी , राईदानें , हींग , सफ़ेद ज़ीरा , काला ज़ीरा , त्रिफला , कालानमक , सेंधानमक , सहजन ( सोहजना ) छाल , त्रिकुटा , अजवायन , सुहागा खील ,फिटकरी खील , चीता , कचरी , बच , बायबिड्ंग , जवाॅखार , सज्जीखार , प्रत्येक वस्तु को समान मात्रा में लेकर कुटपीसकर छानकर रख लें आवश्यकता पड़ने पर पशुओं को देंने से लाभँ होता है ।

६ - औषधि - सेंधानमक , अजवायन , भाँग , नागोरी अश्वगन्धा प्रत्येक को २५०-२५० ग्राम , सोंचर नमक ५०० ग्राम , सांभर नमक सवाकिलो, खुरासानी अजवायन ( अजमेंदा ) ओर सज्जी २५०-२५० ग्राम , इन सबको कूटछानकर बराबर मात्रा में चने के आँचें में मिलाकर रखँ लें १० ग्राम की मात्रा में प्रात: काल पशु को दें इससे लाभँ होगा ।


२ - अपचन
कारण व लक्षण - पशुओ में अपचन की बिमारी के कई कारण होते है -पशु कभी-कभी लालच वंश अधिक खा जाता है, जिससे उसे अपचन या बदहजमी हो जाती है । सडा- गला और गन्दा चारा, दाना खाने से भी अपचन का रोग हो जाता है । पशु कभी-कभी अधिक कमज़ोर हो जाने पर अधिक खा जाता है, परन्तु हज़म न कर पाने के कारण उसे अपचन रोग हो जाता है ।
जब पशु सुस्त एवं चिन्तित मालूम होता है । दिन प्रतिदिन वह अधिकाधिक कमज़ोर होकर सूखता चला जाता है । दूधारू पशु के दूध देने की मात्रा दिनोंदिन घटती जाती है । जूगाली करने में अनियमितता होती है। वह पानी अधिक पीता है । वह मोटा, पर्तदार , सूखापन लिये हुए लेंड़ी की तरह गोबर करता है गोबर करते समय कभी - कभी वह कराहता है। कभी - कभी वह बदबूदार पतला गोबर करता है, उसके मुँह से दुर्गन्ध आती है।

१ - औषधि - मीठा तैल ३६० ग्राम , हींग १२ ग्राम , पानी ४८० ग्राम , काला नमक ६० ग्राम , सबसे पहले पानी को गरम करें । फिर काला नमक महीन पीसकर खौलते पानी में डाल दें और उसे कुछ देर तक उसी में पड़ा रहने दें । जब पानी लगभग ३५० ग्राम , रह जायें तो उसे उतार लें । और उसमें तैल डाल दें । फिर इस घोल को दो बर्तनों के द्वारा ख़ूब फेंट लें । इस तरह घोल कुछ गाढ़ा हो जायेगा । गुनगुने होने पर उसे रोगी को सुबह - सायं रोज़ाना ठीक होने तक पिलाते रहें ।

२ - औषधि - इन्द्रायण २४ ग्राम , गुड़ २४० ग्राम , आँबाहल्दी ६० ग्राम , कंटकरंज ३० ग्राम , फिटकरी २४ ग्राम , पानी ९६० ग्राम , सेंधानमक ६० ग्राम , सबको महीन पीसकर पानी में उबाल दें , फिर दवा ६०० ग्राम , रहने पर रोगी पशु को गुनगुना रहने पर बिना छाने बोतल द्वारा पिला दें । यह दवा रोज़ाना सुबह- सायं ठीक होने तक पिलाते रहें ।

३ - औषधि - बत्तीसा चूर्ण १८० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , पानी को नमक डालकर गरम करना चाहिए । फिर नीचे उतारकर घुड़बच को महीन पीसकर उसमें मिला दें । गुनगुना रहने पर रोगी पशु को रोज़ाना सुबह- सायं ठीक होने तक पिलाते रहें ।

४ - औषधि - घुड़बच १२० ग्राम , नमक ९६ ग्राम , पानी ७२० ग्राम , पानी को नमक डालकर गरम करना चाहिए, फिर नीचे उतारकर घुड़बच को महीन पीसकर उसमें मिला दें, गुनगुना रहने पर रोगी पशु को पिला दें ।सुबह - सायं रोज़ाना ठीक होने तक पिलाते रहें।

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३ - दस्त लगना

अजीर्ण एवं अपन के कारण पशु को कभी - कभी दस्त लग जाते हैं । पशु इस रोग में बार- बार पतला गोबर करता है । पशु कमज़ोर हो जाता है । वह बार- बार थोड़ा - थोड़ा पानी पीता हैं।

१ - औषधि - रोगी पशु को हल्का जूलाब देकर उसका पेट साफ़ करना चाहिए ।रेण्डी का तैल १८० ग्राम , पीसा सेन्धा नमक ६० ग्राम , दोनों को मिलाकर गुनगुना करके रोगी पशु को पिलाया जाय ।

२ - औषधि - गाय के दूध की दही १९२० ग्राम , भंग ( भांग विजया ) १२ ग्राम , पानी ४८० ग्राम , भंग को महीन पीसकर सबको मथें और रोगी पशु को दोनों समय आराम होने तक पिलाया जाय ।

३ - औषधि - विधारा ६० ग्राम , जली ज्वार ६० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ१४४० ग्राम , ज्वार को जलाकर और पीसकर छाछ में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

४ - औषधि - शीशम की हरी पत्ति २४० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , पत्तियों को महीन पीसकर , पानी में घोलकर , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलायें ।

५ - औषधि - विधारा का पेड़ ६० ग्राम , गाय की छाछ ९६० ग्राम , विधारा को महीन कूटपीसकर ,छाछ में मिलाकर , बिना छाने , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

६ - औषधि - मेहंदी १२ ग्राम , धनिया २४० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , दोनों को बारीक पीसकर , पानी में मिलाकर , एक नयी मटकी में भरकर रख दिया जाय । दूसरे दिन सुबह उसे हिलाकर ९६०ग्राम दवा दोनों समय दें । तीसरे दिन ४८० ग्राम , के हिसाब से ,दोनों समय आराम आने तक यह दवा पिलाते रहे ।

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४ - पटामी रोग ( दस्त रोग )

गर्मी के दिनों में यह रोग अक्सर होता है । सूर्य की तेज़ गर्मी के कारण यह रोग उत्पन्न होता है । रोगी को पतले दस्त लगते हैं । उसका गोबर बहुत ही दुर्गन्धपूर्ण और चिकना होता है । गोबर के साथ ख़ून और आँते गिरती हैं । रोगी पशु सुस्त और बहुत कमज़ोर हो जाता है । वह खाना - पीना , जूगाली करना बन्द कर देता है । उसके ओढ़ सूख जाते हैं ।

१ - औषंधि - नीम की हरी पत्ती २४० ग्राम , गाय का घी ३६० ग्राम , पत्तियों को पीसकर उनका गोला बना लें और रोगी पशु को हाथ से खिलाना चाहिए । उसके बाद घी को गुनगुना गरम करके पिलाया जाय । अगर पत्तियों को हाथ से न खाये तो उसको पानी में घोलकर बोतल द्वारा पिला देना चाहिए ।दवा दोनो समय ठीक होने तक पिलाना चाहिए ।

२ - औषधि - अरणी की पत्ती १८० ग्राम , ठन्डा पानी ९६० ग्राम , पत्तियों को महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , बिना छाने , रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

३ - औषधि - विधारा के पेड़ १२० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही १४४० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , बेल को महीन पीसकर , छलनी द्वारा छानकर , दही और पानी में मथकर रोगी पशु को दोनों समय ,आराम होने तक पिलाना चाहिए ।
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५ - पेचिश

कारण व लक्षण - बदहजमी के कारण अक्सर यह रोग हो जाता है । पशु को ज़्यादा दौड़ाने से भी यह रोग हो जाता है । रोगी पशु बार- बार गोबर करने की इच्छा करता है और वह थोड़ा - थोड़ा रक्तमिश्रित पतला गोबर करता है। और गोबर के साथ उसकी आँते भी कट-कटकर गिरती है ।

१ - औषधि - मरोडफली १२० ग्राम , सफ़ेद ज़ीरा १२० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ ९६० ग्राम , उपर्युक्त दोनों चीज़ों को बारीक पीसकर ,छाछ में मिलाकर ,दोनों समय आराम होने तक ,पिलाया जाय ।

२ - औषधि - कत्था १२ ग्राम , भांग,विजया १२ ग्राम , बिल्वफल , बेल के फल का गूद्दा १२० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही ९६० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , कत्था और भांग को बारीक पीसकर , बेल का गूद्दे को पानी में आधे घन्टे पहले गलाकर , उसे मथकर , छान लिया जाय , फिर दही और सबको मिलाकर मथ लिया जाय। रोगी पशु को दोनों समय , आराम होने तक पिलाया जाय ।

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६ - पेट का फूलना

कारण व लक्षण - सडागला चारा - दाना खा लेने से अक्सर पशु का पेट फूल जाता है । वर्षा - ऋतु के शुरू में लालचवश हरा चारा खा लेने से भी पेट फूल जाता है । समय- समय पर पानी न मिलने पर या खाने के बाद एकदम अधिक श्रम करने पर भी पशु का पेट फूल जाता है । कभी- कभी दाने में चूहे की लेंडी ( चूहे की मिगंन ) खा लेने से भी पेट फूल जाता है ।
पशु बेचैन रहता है । वह अपनी बायीं कोख की ओर देखता रहता है । उसका पेट फूल जाता है । फूली हुई कोख को दबाने से पीली - पीली ढोल की भाँति आवाज़ आती है । पेट में गैस भर जाती है । पशु बार- बार उठता - बैठता है ।

१ - औषधि - अम्बर बेल ( विटीश करनोसा ) ६० ग्राम , नमक ६० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ १४४० ग्राम , बेल को महीन कुटकर , छाछ में नमक मिलाकर , गला देना चाहिए । २५ मिनट बाद उसे छानकर , रोगी पशु को सायं - सुबह , पिलाते रहना चाहिए ।

२ - औषधि - इन्द्रायण , कडवी कचरी १ नग ,काला नमक ६० ग्राम , अलसी का तैल ४८० ग्राम , हींग ६ ग्राम , सबको बारीक कूटकर , तैल में मिलाकर , गरम करके , गुनगुना रहने पर , बिना छाने ही दें । एक बार में आराम न हो तो दूसरी बार इसी मात्रा में पिलाया जाय । आराम अवश्य होगा ।

३ - औषधि - अरण्डी का तैल २४० ग्राम , काला नमक पीसकर ६० ग्राम , दोनों को मिलाकर गरम करके , गुनगुना होने पर , रोगी पशु को , बोतल द्वारा , पिलाया जाय ।

४ - औषधि - इन्द्रायण, कडवी कचरी १ नग , कालानमक ३० ग्राम , बकरी का पेशाब ९६० ग्राम , कडवी कचरी को महीन कूटकर , नमक और तैल मिलाकर , उसे गरम करना चाहिए । फिर गुनगुना होने पर रोगी पशु को सुबह - सायं िपलाना चाहिए ।

५ - औषधि - मेंढासिगीं ६० ग्राम , सेंधानमक ६० ग्राम , अजवायन ३० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , सबको महीन पीसकर , पानी में मिलाकर , गरम करके गुनगुना ही रोगी पशु को बिना छाने , पिलाना चाहिए । पुराना रोग होने पर यही दवा एक बार अच्छे होने तक रोज़ पिलायी जाय ।

६ - औषधि - नमक ६० ग्राम , गोमूत्र १४४० ग्राम , दोनों को मिलाकर , गुनगुना करके , पशु को सुबह - सायं , आराम होने तक , पिलाया जाय ।

७- औषधि - नमक १८० ग्राम , पानी १४४० ग्राम , दोनों को मिलाकर , गुनगुना करके , रोगी पशु को सुबह - सायं आराम होने तक , पिलाया जाय ।

आलोक -:- जिस पशु को यह बिमारी हो उसे २४ घन्टे तक चारा नहीं देना चाहिए । उसे केवल पानी पिलाना चाहिए । बाद में हल्की पतली खुराक देनी चाहिए । और अधिक पेट फूलने पर कभी - कभी पशु की बायीं कोख में बड़े इन्जैकशन की सुई लगाने से पेट की गैस निकलेगी ।

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७ - बछड़ों को दूध के दस्त होना

कारण व लक्षण - अपचन और अधिक दूध पीने से , अचानक चोट लगने से ,यह बिमारी हो जाती है । छोटे बछड़ों को जब तक वे घास न खायें , तब तक उन्हें पानी नही ं पिलाना चाहिए । नहीं तो उन्हें दस्त लग जाते है । रोगी बछड़े बार - बार सफ़ेद रंग के पतले दस्त करते रहते हैं । दस्त से दुर्गन्ध आती है । बछड़े सुस्त रहते हैं । उन्हें बुखार भी रहता हैं ।

१ - औषधि - हटानी लोध्र ( महारूख , महावृक्ष की अन्तरछाल ६० ग्राम , गाय का दूध २४० ग्राम , छाल को बारीक कूटकर , दूध में मिलाकर , आधा घन्टे तक पड़ी रहने दें । फिर उसे निचोड़कर , छानकर ,रोगी बच्चे को दोनों समय ,आराम होने तक पिलायें ।

२ - औषधि - कालीमिर्च १२ ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ १२० ग्राम , कालीमिर्च को बारीक पीसकर , छाछ में मिलाकर , बिना छाने , दोनों समय रोगी को अच्छा होने तक पिलाया जाय।

३ - औषधि - मुद्रपर्णी ( खाखर बेली ) का पुरा पौधा ३६ ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ १२० ग्राम ,बेली को बारीक पीसकर , छाछ में मिलाकर , रोगी पशु बच्चे को , दोनों समय , बिना छाने आराम होने तक , पिलायें ।

४ - विधारा के पेड़ ३६ ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ १२० ग्राम , विधारा को पीसकर , छाछ में मिलाकर , रोगी बच्चे को , दोनों समय बिना छाने दें ,आराम आने तक देवें ।

५ - औषधि - ज्वार का आटा १२० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ ३६० ग्राम , ज्वार के आटे का छाछ में मिलाकर , दोनों समय , ऊपर लिखी मात्रा में रोगी बच्चों को , आराम आने तक पिलायें ।

६ - औषधि - रोगी बच्चा जब माता का दूध पीता हो तभी पीछे से उसकी पूँछ खींचकर मूँह से थन छुड़ा देना चाहिए । ऐसा ४-५ बार लगातार , दोनों समय , आराम होने तक , करना चाहिए ।

# - रोगी पशु की पूँछ में झटका न मारें और नहीं खींचें वर्ना उखड़ जाने का भय रहता है जिससे रोगी बच्चे को और अधिक पीड़ा होगी ।

७ - औषधि - रोगी बच्चे की पूँछ की जड़ पर चार तहवाला कपड़ा लपेटकर , ऊपर से सुती से या पतली डोरी से कसकर बाँध देना चाहिए ,जिससे उससे दस्त बन्द हो जायँ । दस्त बन्द होने के बाद उस डोरी को खोल देना चाहिए ।

८ - औषधि - यदि रोगी मादा बच्चा हो उसके मूत्राशय के नीचे और रोगी नर बच्चा हो तो उसके मलद्वार के नीचे एक पतला ३ इंच लम्बा आड़ा दाग दागनी द्वारा लगाना चाहिए ।

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सूई पेट में चले जाना

यदि किसी प्रकार चारा दाना खाने के साथ पशु के पेट में सुई चली जाये तो उसे महाकष्ट होता है । सुई उसकी आँतों मे चूभने लगती है , जिससे उसके पेट में कष्ट होने लगता है , पशु के पेट में दर्द आरम्भ होने लगता है , उसकी भूख प्यास जाती रहती है तथा उसे दिन रात सुस्ती रहती है । आँखों से पानी बहने लगता है और पशु - प्रतिदिन दूबला होता जाता है , शीघ्र चिकत्सा न मिलने के कारण पशु की मृत्यु हो जाती है ।
विषेश - पशु के पेट में सुई चुभने व अन्य प्रकार के दर्द में निम्न अन्तर है --
अन्य प्रकार के दर्द में पशु की आँख से पानी नहीं गिरता हैं , यदि पशु के पेट में सुई चुभने का दर्द होता हो तो - उसकी आँखों से लगातार पानी टपकता है । सुई चुभने के दर्द से पशु दाँत भी किटकिटाता है । इस रोग का तुरन्त निदान करना चाहिए ।


औषधि :-
1- गुलाबजल २५० ग्राम , चूम्बकपत्थर पावडर २० ग्राम , दोनों को आपस में मिलाकर नाल द्वारा पशु को पिलायें । दवाई पिलाने के तीन घन्टे बाद अरण्डी तेल ५०० ग्राम , डेढ़ किलो गाय के दूध में मिलाकर पशु को पिलाने से सुई गुदामार्ग से बाहर आ जायेगी ।

2 - मुनक्का २० ग्राम , पुराना गुड़ २५० ग्राम , अरण्डी का तेल ५०० ग्राम , सनाय पत्ते १२५ ग्राम , गाय का दूध २ किलो , और ताज़ा जल १ किलो , सभी को आपस में मिलाकर पकाते समय दूध का पानी जल जाने दूध को पर छान लें । चुम्बकपत्थर पावडर गुलाबजल में मिलाकर नाल द्वारा पिलानें के बाद इस औषधिनिर्मित दूध को नाल द्वारा ही पशु को पिला देना चाहिए । इस प्रयोग से सुई गुदामार्ग से बाहर आ जायेगी ।

(११)- गौ - चिकित्सा - उल्टी( वमन) होना ।

(११)- गौ - चिकित्सा - उल्टी( वमन) होना ।

उल्टियाँ ( वमन ) होना
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कारण व लक्ष्ण - इस रोग में जुगाली किया हुआ चारा पेट की ख़राबी के कारण पशु निगल नहीं पाता हैं , जिसके कारण पशु सामने चारा होते हुए भी खाने में लाचार हो जाता है यह रोग ख़राब पेट व खराब चारा खाने से होता हैं ।

१ - औषधि :- गाय का दूध १ लीटर , गाय का घी २५० ग्राम , दोनों को आपस में मिलाकर गरम करके गुनगुना - गुनगुना पशु को नाल द्वारा पिलाने तुरन्त लाभकारी सिद्ध होता है यह अनुभूत फ़ार्मुला हैं ।

२ - औषधि - अरण्डी का तेल २५० ग्राम , गाय का दूध २५० ग्राम , या गरम पानी में मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है ।
इस राग से पिडित पशु को तीनदिन तक खाने को नहीं देना चाहिए , इसके बाद पशु को हरी - हरी मुलायम घास व हल्का चारा देना चाहिए ।


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(१४) - गौ - चिकित्सा .तिल्ली ।

(१४) - गौ - चिकित्सा .तिल्ली ।
तिल्ली की बिमारी
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कारण व लक्षण - तिल्ली ( तिल ) की बिमारी वह होती है, जिसमें रोगी पशु बराबर ख़ून फेंकता रहता है । ख़ून के ख़राब आने से फेंकना बन्द कर देता है पशु घास खाना बन्द कर देता है । उसके रोयें खड़े हो जाते है । वह ठण्डा हो जाता है । इलाज समय से न हुआ तो एक - दो दिन में पशु मर जाता है ।

१ - औषधि - कंथार ( गोविन्द फल ) लै० केपीरस केलेनिका -की छाल ४८० ग्राम ,गाय का दूध ९६० ग्राम , कन्थार की छाल को महीन पीसकर , एक घन्टा दूध में गला देना चाहिए । फिर उसे छानकर पशु को पिलाना चाहिए । सुबह - सायं दोनों समय पिलाना चाहिए । ऐसा करने से दो दिन में पशु अच्छा हो जायेगा । अगर पशु को एक दिन में आराम हो जायें तो दूसरे दिन यह दवा नहीं पिलानी चाहिए । गाय के गोबर के कण्डे को जलाकर पशु को सेंकना चाहिए । सुबह - सायं , दोनों समय और सेंक लगाना चाहिए और # प्रकार का दाग बाँयी तरफ़ लगाना चाहिए ।

२ - औषधि - अजवायन २४० ग्राम , मीठा तैल २४० ग्राम , दोनों को मिलाकर पशु को सुबह - शाम , आराम होने तक , पिलाना चाहिए ।

३ - औषधि - प्याज़ का रस ५०० ग्राम , सुबह - सायं , आराम होने तक देना चाहिए ।

४ - औषधि - इन्द्रायण ६० ग्राम , घुड़बच ६० ग्राम , काला नमक ६० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , तीनों को महीन पीसकर , पानी में काढ़ा बनाकर , गरम करके आधा हो जाने पर , बिना छाने , पिला देना चाहिए ।

आलोक -:- ऊपर लिखी दवाईयों की मात्रा बड़ी गायों के लिए लिखी गयी है लेकिन छोटी गायों के लिए दवा की मात्रा कम कर लेनी चाहिए ।
इस बिमारी को फैलाने वाले कीटाणु को अंग्रेज़ी में " बैसिल्लस एन्सथे सिस " कहते है । ठीक वातावरण न मिलने पर , इस बीमारी के कीटाणु " स्पोर " बन जाते हैं । गर्मी , बुखार , गिल्टी -- यह एक छूत की बिमारी है , जो सभी पालतू पशुओं और मनुष्यों को हो जाती है । घरेलू पशुओं में सबसे अधिक यह घोड़ों , भेड़ - बकरियो हिरनों और ऊँटों को होती है । गिद्ध इस बिमारी से इनमुम रहते है। यह बीमारी हर मौसम में हर जगह होती है , परन्तु विशेषकर नीची तराई की जगहों में जहाँ पानी - निकास नहीं होता है । यह बीमारी एक जगह में बार- बार हर साल हुआ करती है । इस रोग के कीटाणु मिट्टी में वर्षों तक सुरक्षित रहते हैं ।
इन कीटाणुओं पर मामूली दवाएँ कोई असर नहीं करती है । इन "स्पोर" को आधे घन्टे पानी में उबाला जाय , तब भी वे नही मरते । स्पोर पशु के शरीर में नहीं मरते । जब पशु का ख़ून बाहर गिरता है , तो ये कीटाणु स्पोर बन जाते है । इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि मरे हुए पशु का ख़ून भूमि पर न पड़े । अगर भूमि में गिर जाय तो उस स्थान को साफ़ कर दिया जाय ।
खाना खाने या पानी पीने से इस रोग के कीटाणु या स्पोर पेट में पहुँचते हैं । पेट में जो रस निकलते हैं । उनसे कुछ कीड़े तो मर जाते हैं । किन्तु स्पोर पर उनका असर नहीं होता । ठीक प्रकार की नमी हवा कम पाने से स्पोर बढ़ते है और ख़ून में मिल जाते हैं । कभी - कभी कुछ ऐसी मक्खियों के काटने पर यह रोग फैलता है , जो कि इस बिमारी से मरे हुए पशु का माँस खा लेती हैं या उस मरे पशु पर बैठी रहती हैं । मनुष्यों में साँस के द्वारा यह कीटाणु शरीर में प्रवेश करता हैं । अंग्रेज़ी में उसे " उलरटर डिसीजेज" कहते हैं । यह बिमारी चारा , दाना , पानी , गोबर - मूत्र ,ख़ून , बर्तनों और आदमियों के ज़रिये या किसी छोटे घाव के द्वारा फैलती है । इस बिमारी से पीड़ित पशु २४ घन्टे से लेकर ३ दिन के अन्दर ही मर जाता है । इस रोग को दो भागों में बाँटते हैं : १. अन्दरूनी या आन्तरिक बिमारी और २. बाहरी बिमारी ।

१ - अन्दरूनी या आन्तरिक बिमारी -:-इस बिमारी में पशु यकायक मर जाता हैं और कोई ख़ास लक्ष्ण नहीं प्रतीत होते । अगर पशु को बिमारी की हालत में देखा जाय तो उसके लक्षण होगें -- तेज़ बुखार , आँखों में बेचनी , पेट में दर्द, पेट फूलना, गोबर या लदी का ख़ून से सना होना , गन्दे रंग की पेशाब , कुछ काला होना , नाक से ख़ून मिला हुआ मवाद - सा निकलना । पशु लड़खड़ाकर ज़मीन पर गिर जाता है । ये ही इस बिमारी के लक्षण है।
कभी - कभी पशु जोश में आ जाता है । उसके पेट में दर्द मालूम होता है । वह पसीने से तर हो जाता है और १०-२४ घण्टे में उसकी मृत्यु हो जाती है ।

२- बाहरी बिमारी - :- इसमे पशु के शरीर के किसी भी हिस्से पर , ज़्यादातर गर्दन या पेट पर कड़ी उभरी हुई सूजन होती है , जिसमें शुरू में दर्द होता हैं । लेकिन बाद दर्द नहीं होता । पशु को बुखार आ जाता हैं । घोड़ों में सूजन गले से शुरू होती है और फिर गर्दन के नीचे हिस्से में होकर सीने तक पहुँचाती है । सिर और गर्दन की सूजन बहुत बढ़ जात है। यहाँ तक कि पशु को हिलते डुलते कठिनाई होती है । भेड़ों में अन्दरूनी या आन्तरिक बिमारी अधिक पायी जाती है और वे मरी हुई पायी जाती । पूँछ के पास उनमें दस्त , ख़ून लगा होता है । इस बिमारी से ८० से ९० प्रतिशत रोगी - पशु मर जाते है ।

लाश का परिक्षण -:- इस रोग के रोगी पशु की लाश का सड़ना शीघ्र आरम्भ हो जाता है । वह बहुत जल्दी फूल जाती है । उसका ख़ून बहुत गाढ़ा हो जाता है और कोलतार की की तरह गहरे काले रंग का - सा हो जाता है । ख़ून जमता नहीं और तमाम प्राकृतिक छिद्रों से -- नाक , मुँह , कान, मूत्रद्वार ,मलद्वार से निकलता है । तिल्ली ५-६ गुनी बढ़ती जाती है और कभी - कभी वह नर्म होकर फट जाती है । भेड़ में ऐसा नहीं होता । ये लक्षण केवल बाहरी बिमारी में पाये जाते हैं ।

कलेजा और गुदा -:- ये लाल रंग और सूजे रंग के हो जाते हैं । इसी प्रकार फेफड़े और मस्तिक लाल , गहरे रंग के हो जाते हैं । घोड़े की आँतों में सूजन पायी जाती हैं ।

आलोक -:- तिल्ली की बिमारी से मरे हुए पशुओं से विशेष सावधान रहना चाहिए । मरे हुए पशुओं को ठीक तरह से ठिकाने लगायाव जाय । उनकी खाल चोरी न जाय और नहीं उसका निरीक्षण किया जाय , जब तक कि उसके लिए ठीक- ठीक प्रबन्ध न कर लिया जाय । ऐसी लाश को जला देना चाहिए या गाड़ देना चाहिए । लाश को एक जगह से दूसरी लें जाना हो तो उसके सब प्राकृतिक छिद्रों को यानी मुँह , नाक , मूत्रद्वार आदि को किसी तेज़ दवा , रूई या कपड़े से दबाकर बन्द कर देना चाहिए , ताकि उनमें से शरीर का मवाद न निकले , क्योंकि, ऐसा होने पर और दवा लगने पर कीटाणु स्पोर में बदल जायेंगे , जो कि वर्षों तक भूमि में जीवित रहते हैं । यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह बिमारी मनुष्यों को हो जाती है । लाश को पानी वाले स्थान पर न गाड़ा जाय ।
इस बिमारी में ऊपर बतायी सभी बातें ध्यान में रखनी चाहिए । जिस जगह बिमारी का असर हो ख़ाली कर देना चाहिए । पानी पीने के स्थानों और चरागाहों को बदल देना चाहिए । चुस्त पशुओं को नये चरागाहों में लें जाना चाहिए ।
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(१५)- गौ - चिकित्सा - पीलिया,यकृतरोग ।

१ - पीलिया ( पाण्डुरोग )( Jaundice )
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कारण- लक्षण :- इस रोग को कामला रोग के नाम से भी जाना जाता है । यह रोग अक्सर जिगर ( यकृत ) ( liver ) के ख़राब हो जानें से होता हैं इस रोग में पशु के मुँह तथा आँखों की झिल्लीयां पीली पड़ जाती हैं , शरीर का पित्त नली में सूजन आ जाने के कारण या पथरी , कीड़ों के जमा हो जाने आदि कारणों से जब आँतों में नहीं पहुँच पाता हैं और ख़ून में मिलकर सारे शरीर में फैल जाता हैं , शरीर की पतली खाल अथवा बारीक झिल्ली द्वारा पीलापन प्रकट होने लगता हैं
पशु इस रोग से पीड़ित होने पर मैटमैला रंग का गोबर करता हैं तथा पेशाब बहुत पीला आता हैं और पशु को क़ब्ज़ हो जाता हैं । भूख और प्यास अधिक लगती है , शरीर का तापमान घटता- बढ़ता रहता हैं तथा रोगी पशु दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होता जाता हैं ।

१ - औषधि - सादा नमक पावडर २५० ग्राम , सोंठ पावडर ३५ ग्राम , चावल का माण्ड १ किलो , सभी को आपस में मिलाकर पिलाने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - हरा कसीस २० ग्राम , चिरायता चूर्ण ३० ग्राम , सोंठ पावडर ३० ग्राम , चावल का माण्ड १ किलो , सभी को आपस में मिलाकर पशु को पिलाने से लाभ होता हैं ।

३ - औषधि - इस रोग में आँवला अवलेह देन २५० ग्राम , प्रतिदिन देना लाभकारी होता हैं ।

४ - औषधि - अमलतास का गूद्दा ३ तौला, इमली के फल का गूद्दा ३ तौला , आधा लीटर गुनगुना पानी में घोंटकर छानकर पशु को पिलाने से पशु को दस्त आकर पित्त बाहर निकल जाता है और रोग ठीक हो जायेगा ।
५ - औषधि - गन्धक पावडर २ तौला , सोंठ पावडर २ तौला , नमक ४ छटांक , एलुवा १ तौला , गन्ने का शीरा या गुड़ २५० ग्राम , गरमपानी १ किलो , सभी को गरम पानी में मिलाकर पिलाने से दस्तों द्वारा पित्त बाहर निकल कर पशु ठीक हो जायेगा ।

६ - औषधि - बन्दाल के फल ६ माशा , पानी ढाई तौला में रात को भिगोकर रख दें तथा सुबह छानकर थोड़ा-थोड़ा पशु के नाक के दोनो नथुनों में डालें । इससे नाक द्वारा पीला - पीला पानी बहकर सारा पित्त निकलकर पशु को आराम हो जायेगा ।

२ - यकृत ( लिवर , जिगर ) में ख़ून का जमा होना
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कारण-लक्षण :- पशुओ को अधिक पौष्टिक खुराक देनें और तद्नुकूल उससे परिश्रम न लेने से उसके यकृत ( जिगर ) में ख़ून जमा हो जाता है । कभी- कभी गर्मी- सर्दी के तेज़ प्रभाव तथा हृदय रोगों के कारण भी जिगर में ख़ून जमा हो जाता हैं ।
जिगर में ख़ून जमा हो जाने पर -- पशु सुस्त रहता हैं अत: वह चुस्ती- फुर्ती से चल-फिर नहीं सकता हैं , उसकी नब्ज़ कमज़ोर होकर धीमी पड़ जाती हैं तथा भूख कम हो जाती हैं और शरीर का तापमान घट जाता हैं , आँखों में पीलापन आ जाता हैं पशु बार-बार अपने दाहिने अंग को देखता रहता हैं तथा दांयी ओर का पेट दबाने पर उसे पीड़ा महसूस होती हैं ।

१ - औषधि - एलुवा १५ ग्राम , नौसादर १५ ग्राम , कलमीशोरा १५ ग्राम , चिरायता चूर्ण १५ ग्राम , जवाॅखार १५ ग्राम , मेग्नेशियम साल्ट १५ ग्राम , आधा लीटर गरमपानी सभी को आपस में मिलाकर पिलाने से ,यकृत में जमा हुआ ख़ून पिघलकर फैल जाता हैं । और पशु को आराम आने लगता हैं ।
इन सभी दवाइयों के उपयोग के साथ- साथ बाहृा उपचार भी किया जाना चाहिए जिससे पशु को जल्दी आराम हो । इसके लिए निम्नांकित योग का लेप बनाकर पशु के जिगर के ऊपर अर्थात दाहिनी ओर पसलियाें के नीचे मलने तथा लगाने से तत्काल लाभ पहुँचता हैं विधी इस प्रकार हैं - -

# - औषधि - उल्क १ छटांक , जरावन्द १ छटांक , मकोय पंचांग पावडर २ छटांक , अंजीर २ छटांक , हींग १ तौला , इन सब को गन्ने के सिरके में पकाकर लेप तैयार करके गुनगुना पशु के जिगर ( दाहिनी ओर की पसलियों के ऊपर )पर लगाने से लाभ पहुँचता हैं ।

# - औषधि - राई का पावडर २५० ग्राम , आवश्यकतानुसार गरमपानी में मिलाकर लेप तैयार करके पशु की दांयी पसलियों पर गाढ़ा -गाढ़ा लेप करने से शीघ्र लाभ पहुँचता हैं । आधा घन्टे बाद लेप छुड़ाकर तारपीन के तेल या तिल के तेल की मालिश करें तो ओर जल्दी आराम होगा ।

३ - यकृत शोथ ( जिगर, लीवर में सूजन का आ जाना )
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कारण- लक्षण :- पशुओं को भारी अथवा देर तक पचने वाले आहार देने, उनसे उचित परिश्रम के काम न लेने पर , सर्दी-गर्मी के प्रभाव या चोट आदि लग जाने से उनके जिगर पर सूजन आ जाती हैं । जिगर के स्थान पर ऊपर से दबाने से पशु को दर्द मैहसुस होता है तथा वह स्थान कुछ ऊपर को उठा हुआ सा दिखाई देता हैं । पशु चारा - दाना व जूगाली करना बन्द कर देता है , कभी- कभी खाँसता भी हैं । उसकी आँखें पीली अथवा सुर्ख़ सी पड़ जाती हैं । पेशाब गहरे पीले रंग का आने लगता हैं , क़ब्ज़ रहता है अथवा पशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है । इस रोग के लक्षणों का पता चलते ही इलाज तुरन्त चालू कर देना चाहिए इलाज में देरी न करें अन्यथा रोग बढ़कर संघातिक रूप धारण कर सकता हैं । इस रोग में भी परहेज़ के अन्तर्गत अन्य रोगों के समान ही जल्दी पचने वाला आहार ही देना चाहिए तथा सर्दी- गर्मी , ठन्डी हवा , और ठन्डे पानी के प्रयोग से दूर रखें ।

१ - औषधि - हराकसीस ३ माशा , नीम के पत्ते ५ तोला , त्रिकुटा डेढ़ तोला , त्रिफला डेढ़ तौला, सज्जीखार ६ माशा , सेंधानमक ६ माशा , मेग्नेशियम साल्ट १ माशा , सभी को कुटपीसकर चूर्ण बनाकर रख लें तथा आवश्यकतानुसार गुनगुने पानी में घोलकर पशु को पिलायें । इस प्रकार सुबह-सायं दिन में दो बार १-२ दिन खिलाने सें लाभ होकर पशु चारा पानी ठीक से खाने लगता हैं ।

२ - औषधि - पहले दिन -- पशु को अप्समसाल्ट ५०० ग्राम , सोंठ पावडर २ तौला , कलमीशोरा २ तौला , नौसादर आधा छटांक , सभी नमक को पीसकर , ७५० मिलीग्राम पानी में मिलाकर पिला दें ।
दूसरे दिन -- कलमीशोरा १ तौला , नौसादर १ तौला , कपूर ३ माशा , देशीशराब १२० मिली ग्राम , इन सबको आधा किलो गुनगुने पानी में मिलाकर दिन में दो बार पिलाते रहे जब तक रोगी पूर्णरूपेण ठीक न हो जायें । जब पशु की दशा में कुछ - कुछ सुधार होना शुरू होने लगे तो उसे ताक़त प्रदान करने वाली औषधियों का सेवन कराना चाहिए । जिनका नीचे वर्णन कर रहे हैं --

# - औषधि - नौसादर , चिरायता चूर्ण , कुटकी चूर्ण , कलमीशोरा , प्रत्येक १-१ तौला , नमक ३ तौला , कुचला ३ माशा चूर्ण , सभी १किलो गुनगुने पानी में मिलाकर पिलाने से लाभ होता हैं ।

# - औषधि - एलुवा , आकाशबेल ( अमरबेल ) चिरायता , अफसंतीन, नीम के पत्ते , नौसादर प्रत्येक १-१ तौला , अप्समसाल्ट या मैग्निशियम साल्ट ५ तौला और कुचला १ माशा , - इन सभ दवाओं को कुटकर गरमपानी में मिलाकर पिलाने से लाभ होगा ।
इस रोग में राई का लेप तथा तारपीन का तेल व सरसों के तेल की मालिश करना लाभकारी सिद्ध होता है तथा मालिश करने के बाद रूई को गरम करके पेट की सिकाई करना अतिगुणकारी होता है ।

(१६)- गौ- चिकित्सा - बवासीर( Piles )

(१६)- गौ- चिकित्सा - बवासीर( Piles )

१ - पशुओं को बवासीर ( Piles )
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कारण- लक्षण :- अधिक दिनों तक क़ब्ज़ व दस्त आदि की शिकायत रहने तथा जिगर की बिमारी के कारण पशु को बवासीर होजाता है इस बिमारी से पशु के मलद्वार में मस्सें हो जाते है और उनसे के क़तरे निकलते रहते हैं । जो गोबर में अलग ही दिखाई देते हैं यदि अन्दर से ख़ून आता हैं तो समझ लेना चाहिए कि किसी घाव आदि के कारण आया हैं क्योंकि बवासीर की मुख्यत: एक ही पहचान है कि उसके मलद्वार में मस्सें होते हैं ।

१ - औषधि - ककरोंदा पावडर २ तौला , कबीला पावडर ढाई तौला , गाय के दूध से बनी छाछ ५०० ग्राम , में मिलाकर पशु को नित्य पिलाते रहने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - रसोंत ६ माशा , गेन्दें की पत्ती ढाई तौला , नीम की निबोली ढाई तौला लेकर दोनों को भली-भाँति घोंटकर पशु को प्रतिदिन पिलाना चाहिए, यह गुणकारी हैं ।

३ - औषधि - मलद्वार में बवासीर के मस्सों पर भाँग की ताजी पत्ती कूटकर गरम करके बाँधें अथवा गेंदें की पत्तियों की टिकीया बनाकर बाँधें। तदुपरान्त १ तोला माजूफल पीसकर उसमें तीन माशा अफ़ीम मिलाकर गाय के घी के साथ घोटकर लेंप तैयार करें और मस्सों पर लगायें । इस प्रयोग से शीघ्र लाभ होगा ।

४ - औषधि - रसकपूर १ रत्ती , कपूर २ रत्ती , काशकारी सफेदा ४ रत्ती , मुर्दासंग ८ रत्ती , और गाय का घी १ तौला , लें सभी को घोंटकर मरहम बना लें मरहम गाढ़ा - गाढ़ा होना चाहिए इस मरहम को पशु की गदा में मस्सों पर लगाने से मस्सें शीघ्र ठीक होने लगतें हैं ।

इस रोग में मस्सें अधिक कष्ट कारी होते हैं अत: इन मस्सों को मिटना अतिआवश्यक होता हैं ।

५ - औषधि - बवासीर के मस्सों पर सुअर की चर्बी की मालिश करते रहने से मस्सें नष्ट हो जाते हैं और पशु ठीक हो जाता हैं । यह अतिगुणकारी औषधि हैं । बवासीर की दवाये लम्बे समय करनी पड़ती हैं । तब यह रोग समूल नष्ट होता है इसका इलाज जल्दी बन्द नहीं करना चाहिए ।

# - बदहजमी व क़ब्ज़ पशु को न हो ये ध्यान रहे पशु को क़ब्ज़ कारक व भारी आहार न दें । हल्का सुपाच्य आहार देना चाहिए ।


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नकसीर फूटना ( Epistoxis )

क्या है नकसीर ?
 हृष्ट- पुष्ट पशुओं की नाक पर चोट लग जाने, अधिक छींके आने , धूप की गर्मी से अथवा गरम औषधियों के प्रभाव आदि कारणों से नाक की सुक्ष्म शिराएँ फट जाता हैं और ख़ून बहने लगता हैं इसी को नकसीर कहते हैं ।

औषधि

१- सिर पर ठन्डे पानी की लगातार धार डालते रहने से रक्त जमकर नाक से ख़ून बहना बन्द हो जाता हैं ।
२ - थोड़े से पानी में फिटकरी पीसकर ,घोलकर उसमें माजूफल घिसकर डाल लें इस पानी की बूँदें पशु के नाक में टपकाने रूई का फोहा तर करके नाक में रखने से रक्त गाढ़ा होकर नकसीर बन्द हो जाती है
३ - चिरायता एक छटांक कुटकी और गिलोय ढाई-ढाई तौला और शक्कर २५० ग्राम , लेकर सभी को पानी में घोलकर शर्बत बनाकर नाल द्वारा पशु को पिलायें । नकसीर फूटने में इस योग का सफल प्रयोग है ।

२- पशु के नाक में जोंक लगना ( Leiches in the Nostils )
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कारण व लक्षण :- जोंक एक पानी का कीड़ा होता हैं जो गन्दे पानी तालाब आदि में रहता हैं यह कीड़ा पशु के शरीर में चिपटकर उसका ख़ून चूसता रहता है । कभी-कभी पोंखर तालाब में पानी पीते समय जोंक पशु के नाक में चली जाती है और अन्दर ही चिपट जाती हैं । और ख़ून चूसती रहती हैं तब पशु की नाक से ख़ून बहने लगता हैं और साँस लेने में भी कठिनाई होती है ।

१ - औषधि :- पीने वाले तम्बाकू को पानी में उबालकर गुनगुना- गुनगुना पशु की नाक में डालना भी हितकारी हैं तम्बाकू की तेज़ गन्ध के कारण जोंक उस स्थान को छोड़कर स्वयं ही बाहर आ जायेगी ।

२ - औषधि - नमक को पानी में घोलकर उसमें थोड़ी सी पीसी हुई हल्दी भी डालकर घोल लें इसके बाद इस पानी को पशु के नाक में टपकाने से जोंक अपने आप तड़पकर बाहर आ जायेगी तभी उसको चिमटी से पकड़कर बाहर निकाल लेना चाहिए ।

३ - औषधि - पशु को दिनभर पानी न पिलाकर प्यासा रखें जिसके कारण पशु की स्वाँस गरम हो जायेगी पानी न मिलने के कारण जोंक प्यासी हो जायेगी उसके बाद पशु की नाक पर बाहर की साईड में पानी की धार डाले , जोंक पानी की ख़ुशबू पाकर बाहर को आयेगी तभी चिमटी से जोंक को पकड़कर बाहर निकाल लेना चाहिए ।

(१८)-गौ - चिकित्सा - न्यूमोनिया ( Pneumonia )

(१८)-गौ - चिकित्सा - न्यूमोनिया ( Pneumonia )

१ - न्यूमोनिया ( Pneumonia ) ( फेफड़ों की सूजन )

कारण व लक्षण :- न्यूमोनिया अर्थात फेफड़ों की सूजन का रोग है , यह एक भंयकर रोग हैं जिसके कारण मृत्यु भी हो जाती है अत: इसके इलाज में देरी व लापरवाही नहीं करनी चाहिए अक्सर खाँसी , ज़ुकाम ,के बाद न्यूमोनिया हो जाने का डर रहता हैं और इसी प्रकार बुखार के बाद भी न्यूमोनिया हो जाता हैं । इस रोग के कारण प्रतिवर्ष हमारे देश में हज़ारों पशु अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं ।
भयानक गर्मी से या सर्दी मे आ जाने से दौड़कर या अधिक परिश्रम करने पर पसीनें में होने पर पानी में भीग जाते हैं या ठन्डा पानी पी लेते हैं तो पशु के फेफड़ों पर सूजन आ जाती हैं और रोग तेज़ी से बढ़कर फेफड़ों को प्राकृतिक कार्य करने से रोक देता हैं जिसके कारण श्वास रूक जाने के कारण पशु की मृत्यु हो जाती हैं । गीलें गन्दे व शीलनयुक्त स्थानों पर पशुओं को नहीं रखना चाहिए या अधिक कमज़ोर पशु पर यह रोग आक्रमण करता हैं , पशु को हर समय तेज़ बुखार रहता हैं पिडित पशु काँपता रहता हैं , फेफड़ों तथा पसलियों में तेज़ दर्द के कारण कराहता तथा छटपटाता रहता हैं , और उसे साँस लेने में कठिनाई होती हैं । पशु के नथुनों बार- बार फूलते हैं पशु दाँत पीसता रहता हैं , अन्त में नाक से ख़ून मिला हुआ बलगम आने लगता हैं , पशु अपने अगले पैरों को चौड़ा करके खड़ा हो जाता हैं तथा उसे बैठने में कष्ट होता हैं , आँखें लाल हो जाती हैं पेशाब का रंग गहरा लाल हो जाता हैं इसके बाद पशु को दस्त भी होने लगते हैं । पशु की साँसें तेज़ और अधुरी चलने लगती हैं और यह लक्षण सात दिन तक बढ़ते है उसके बाद घटने लगते हैं ।

# - ध्यान रहे ---- इस रोग में यदि बुखार बिना इलाज के ही कम हो जाये और बिमार पशु आराम से साँस लेने लगे तो यह अशुभ लक्षण हैं ऐसा होने समझ लेना चाहिए कि पशु की मृत्यु के नज़दीक़ हैं

# - जो ज़ुकाम व सर्दी मे भपारा देने की विधी बतायी गयी हैं वह इस रोग में लाभकारी होता हैं ।

१ - औषधि :- पशु की छाती पर अलसी का लेप लगाकर रूई रखकर कपड़ा बाँध देना चाहिए तथा अलसी के तेल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करना व रूई के फाेहो से गरम- गरम सिकाई करनी चाहिए , यह लाभकारी सिद्ध होता है ।

२ - औषधि :- कपूर ३ तौला , जावित्री ३ माशा , मदार की छाल १ तौला , केसर ६ रत्ती , मुलहटी २ तौला , कलमीशोरा १ तौला , नौसादर १ तौला , अलसी २ तौला , गन्ने का शीरा १ छटांक , सबको आपस में मिलाकर दिनभर में २-३ खुराक देवें तथा पशु को पीने के लिए गुनगुना पानी देना चाहिए ।

३ - औषधि :- सोंठ , काकडासिंगी , छोटी पीपल , चाय पत्ती , प्रत्येक १-१ तौला , अजवायन २ तौला , लेकर मोटा- मोटा कूटकर आधालीटर पानी में डालकर पकायें जब पानी जल कर डेढ़ पाँव रह जायें तब उतारकर उसमें गुड १ तौला , कपूर २ माशा , धतुरा बीज पावडर १ माशा , ढाई तौला देशी शराब मिलाकर यह दवा पशु को नाल द्वारा पशु को पिलाना लाभकारी होता हैं ।


२ - फेफड़ों की सूजन ( निमोनियाँ )
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कारण व लक्षण - यह रोग शीत ऋतु में या वर्षाऋतु में अक्सर होता है । बुखार की हालत में पसीना होने पर बहुत ठन्डा पानी पिलाने से और ठन्डी हवा लग जाने से तथा वर्षा में अधिक समय तक भीग जाने से यह रोग हो जाता है । कभी-कभी पशु को समय पर पानी न मिलने से ,और अधिक प्यास में अधिक पानी पी लेने से यह रोग हो जाता है ।
इस रोग में रोगी पशु बहुत सुस्त रहता है । खाना- पीना और जूगाली करना बन्द कर देता है । उसके रोये खड़े हो जाते है । उसे ज़ख़्म और खाँसी हो जाती है । और पशु का शरीर काँपता है और साधारण ज्वर हर समय बना रहता है । आँखें लाल तथा गहरी हो जाती है,उसकी नाक से बलगम निकलता रहता है तथा नाड़ी तेज़ चलती रहती हैं ,पशु उस बाज़ू दबाव देकर बैठता हैं,जिस बाज़ू के फेफड़े में दर्द होता हैं और पशु बार- बार दाँत पीसता रहता है । रोग शुरू होने के बाद ६-७ दिन में यह बिमारी बढ़ जाती है । रोगी पशु के कान की जड़ ठन्डी हो जाती है , पशु के उपर के होंठ पर पसीने की बूँदें नहीं रहती है यानि होंठ ख़ुश्क बनारहता हैदर उसकी ठन्डी साँसें चलती रहती हैं तथा पशु कराहता रहता और आँखें अन्दर की और धँस जाती है ।

१ - औषधि -भैंसों के लिए- सादा नमक पिसा हुआ ३० ग्राम , नारियल तेल ४०० ग्राम , नमक को तेल में मिलाकर गुनगुना गरम करके रोगी पशु के पूरे शरीर में आधे घन्टा तक मालिश करनी चाहिए , फिर उसके शरीर पर सूखी घास रखकर ऊपर से चार कम्बल ओढाये और उन्हें रस्सी से बाँध देने चाहिए , जिससे घास और कम्बल अपनी जगह से सरकें। पानी गरम करके ठन्डा होने तक पिलाया जाय । रोगी पशु को बन्द कमरे में बाँधा जाय और रोगी पशु को हरी घास व ठन्डी चींजे न खिलायी जाय । केवल सूखी नरम घास व गेंहू का भूसा खिलाया जाय वही उसके नीचे बिछाया जाय इससे पशु को गर्मी पहुँचेगी

# - गाय के लिए- गाय व बैल की केवल हाथ से ही आधा घन्टे मालिश की जाये,और मालिश करने के बाद उपरोक्त विधी द्वारा ही घास व कम्बल बाँध दिये जाये ।

२- औषधि - देशी मुर्ग़ी के २अण्डे , १० ग्राम हल्दी पावडर ,गाय का दूध २ लीटर गरम करके उसमें हल्दी तथा अण्डे को तोड़कर दूध में डाले और अण्डे केछिलके को फेंक दें। तथा दो दिन तक दिन में एक बार , तीनों को आपस में मिलाकर गुनगुना पशु को पिला देना चाहिए ।

# - तीसरे दिन १ लीटर दूध तथा एक अण्डा व ५ ग्राम हल्दी मिलाकर गुनगुना करके पशु को पिला देना चाहिए, अगर आवश्यक हो तो चौंथे दिन भी दें ।

३ - औषधि - इन्द्रायण फल ६० ग्राम , घुड़बच ६० ग्राम , काला ज़ीरा ६० ग्राम , सेंधानमक ६० ग्राम , लहसुन ६० ग्राम , अदरक २५ ग्राम , गुड़ १२० ग्राम , अजवायन ६० ग्राम , पानी १४४० ग्राम , सभी को बारीक कूटपीसकर छलनी में छानकर ,पानी में उबालें ,जब पानी १००० ग्राम रह जाये तब गुनगुनापानी बिना छाने ही पशु को सुबह - सायं आराम होने तक इस मात्रा को पिलाते रहे ।

४- औषधि - अजवायन ६० ग्राम , सोंठ २४ ग्राम , लहसुन ३६ ग्राम , काला ज़ीरा ६० ग्राम , चन्द्रशूर ६० ग्राम , गुड़ ४८० ग्राम , पानी ५०० ग्राम , सभी को बारीक पीसकर पानी में उबालकर काढ़ा बनायें डेढ़ लीटर काढ़ा रहने पर रोगी पशु को दोनों समय बनाकर पिलाना चाहिए और आराम होने तक दवा को पिलाते रहना चाहिए।

५ - औषधि - कालीमिर्च १२ ग्राम , घुड़बच ६० ग्राम , लौंग १२ ग्राम , नमक ३० ग्राम , सभी को बारीक पीसकर ,पानी ५०० ग्राम व देशी शराब ५०० ग्राम को आपस में मिलाकर बिना छाने ही पशु को पिलानी चाहिए और आराम होने तक दोनों समय इसी मात्रा को पिलाते रहना चाहिए ।


३ - दमारोग ( Asthma )
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कारण- लक्षण :- बूढ़े एंव कमज़ोर शरीर के पशु को अधिक दौड़ाने या उससे भारी काम लेने , बदहजमी अथवा खाँसी की शिकायत बहुत दिनों तक बनी रहने और ठीक प्रकार से चिकित्सा न होने पर रोग के बिगड़ जाने के कारण खाँसी या दमा रोग हो जाता हैं । दमा से बिमार पशु को खाँसी जल्दी- जल्दी आती हैं तथा घोर कष्ट के साथ श्वास खींचकर अन्दर लें जाना पड़ती हैं । श्वास खींचने के कारण ही उसकी कोख और पेट में दर्द होने लगता हैं । खाँसी के साथ ही बलगम भी निकलता हैं ।

१ - औषधि :- श्वेत संखिया ५ रत्ती , आटे में मिलाकर खिला देने से पशु का दमा ठीक हो जाता हैं ।

२ - औषधि :- धतुरा बीज १ रत्ती , अफ़ीम १ माशा , दोनों को पीस- घोलकर २५० ग्राम पानी के साथ सेवन कराने से भी दमारोग में आराम आता हैं ।
ये दोनों दवाये पशु को बारी- बारी से १५ दिन तक देते रहने से पशु बिलकुल ठीक हो जायेगा ।

३ - औषधि :- धतुरा बीज १ माशा , कपूर १ माशा , अनार का छिल्का १ तौला , देशी शराब १छंटाक , गन्ने का शीरा १ छटांक , लें । कपूर व धतुरा के बीजों को पीसकर बाँस के पत्तों के रस में मिलाकर शराब के साथँ घोल लें । इसके बाद अनार के छिलके को ५०० ग्राम पानी में पकायें जब पानी जलकर आधा है जाये तब पानी को कपड़े में छानकर पानी को रख लें तथा गुनगुना होने पर उसमें बाक़ी सभी दवाये मिलाकर दिन में दो बार पिलाने से लाभँ होता हैं ।

४ - औषधि :- नौसादर १ तौला , अदरक १ छटांक ,पीसकर गुड १ छटांक , लेकर उसमें मिलाकर पशु को खिलायें यह दवाई ऐसी स्थिति में लाभकारी होता है जब रोगी पशु का बलगम निकलने मे कष्ट होता हैं ।

# - ध्यान रहे पशु को भारी व बादी चीज़ों से बचाना आपकी ज़िम्मेदारी हैं ।




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(२०)-३- गौ- चिकित्सा - मुखरोग ।

(२०)-३- गौ- चिकित्सा - मुखरोग ।


१ - गलफर में काँटे हो जाना ( अबाल रोग )
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कारण व लक्षण :- पशु के गलफर में काटें हो जाते हैं इस रोग को अबाल रोग कहते हैं अनछरा रोग में जीभ पर काँटे होते हैं इस रोग में गालों में होते हैं तथा इस रोग में गलफर में चिप- चिप होती रहती हैं पशु चारा नहीं खा पाता हैं
# - जो दवा अनछरा रोग में लाभ करती हैं वह गलफर में भी काम करती हैं ।
१ - औषधि - हल्दी व नमक पीसकर गालों में चुपड़ते रहना लाभकारी हैं दवा करने से पहले बाँस की खपच्ची से गलफर में उत्पन्न काँटों को धीरे-धीरे छीलकर बाद में दवा को रगड़ कर लगायें ।


२ - जिह्वा कण्टक ( अनछरा रोग या जीभ का काँटा )
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कारण व लक्षण :- पशु की जीभ के ऊपर छोटें- छोटें नोंकदार दानें - इस रोग में निकल आते हैं , जिन्हें आम बोलचाल में काटें कहते हैं । इस रोग से ग्रसित पशु खाने की तो इच्छा करता हैं किन्तु काटें चुभने के कारण खा नहीं पाता हैं ।

१ - औषधि - हल्दी व नमक पीसकर तैयार रखें , इसके बाद बाँस की खपच्ची लेकर जीभ पर रगड़कर काँटों को छील दें फिर दवा को सरसों के तेल में मिलाकर रगड़कर लगायें । इससे आराम आयेगा ।

२ - औषधि - काला ज़ीरा , काली मिर्च और अम्बा हल्दी - इन तीनों को सममात्रा में लेकर महीन कर लें और रोगी पशु की जीभ पर बार- बार लगायें ।

३ - औषधि - धाय के फूल २ तौला , रात्रि में में पानी में भिगोकर रख दें प्रात होने पर सेंधानमक कलमीशोरा , और समुद्रीफेन , प्रत्येक १-१ तौला , और रसवत ६ माशा , लेकर सबको बारीक पीसकर जीभ पर मलते रहना लाभकारी हैं ।
प्रात: काल रोगी पशु को कुछ भी खिलाने से पूर्व अदरक , पान तथा कालीमिर्च खिला देने से मुख के अन्दर उत्पन्न होने वाले तथा सभी जगहों के काँटों में लाभ होता हैं ।


३ - सूतबाम ( सुकभामी ) रोग
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कारण व लक्षण :- इस रोग में तालु अथवा तारू में छेद हो जाता हैं । इस रोग को सूतबाम या सुकभामी के नामों से जानते हैं । इसरोग में पशु की आँखों से पानी बहता हैं , उसे भूख नहीं लगती हैं जिसके कारण दिन- प्रतिदिन पशु दूबला होता जाता हैं पशु पानी पीने से डरता हैं । जब छेद में पानी पड़ता हैं तो दर्द अधिक बढ़ जाता हैं । इस पीड़ा से पशु की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं । इसी पीड़ा के भय के कारण पशु पानी नहीं पीता हैं । रोगी का मुख खोलकर देखने पर तालू का छेद साफ़ दिखाई देता हैं ।

१ - औषधि - लोहे खुब गरम करके छिद्र को दाग देना लाभकारी उपाय हैं । दागने के बाद घाव में देशी सिन्दुर व पीसी हूई हल्दी और गाय का घी मिलाकर मरहम तैयार करके पहले ही रखें दागने के तुरन्त बाद घाव में भर देंना चाहिए यह गुणकारी उपाय हैं ।


४ - मेझुकी ( कठभेलुकी या भेलुकी रोग
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कारण व लक्षण :- इस रोग में पशु की जीभ के ऊपर सूजन हो जाती हैं । इस रोग को मेझुकी, कठभेलुकी , भेलुकी , आदि नामों से लोग जानते हैं । इस रोग में पशु चारा न खा पाने के कारण पशु दुर्बल हो जाता हैं । इस रोग से ग्रस्त पशु चारा कम खाता हैं और पानी पीने में भी कम रूची रखता हैं ।

१ - औषधि -पशु की जीभ पर हल्के गरम लोहे से दाग लगाकर ऊपर की जली हुई खाल को खींचकर उतार दें इसके बाद गाय का घी , हल्दीपावडर , देशी सिन्दुर मिलाकर मरहम की तरह बनाकर जीभ पर लगायें इस योग को ठीक होने तक लगाना चाहिए ।

२ - औषधि - एक पक्षी होता है मैली बुगली उसको मारकर, पकाकर शोरबा बनाकर खिलाने से भी लाभ होता हैं । साथ-साथ उसके शरीर से निकली हूई हड्डियों को पीसकर पशु की जीप पर लगायें तो जल्दी आराम आता हैं ।


५ - बहता रोग
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कारण व लक्षण :- इस रोग में पशु की जीभ बहुत अधिक फूल जाती हैं , जिसके कारण उसके मुख से हर समय लार टपकती रहती हैं । रोगी पशु के नेत्रों से पानी बहने लगता हैं जिसके कारण रोगी पशु बहुत विकल्प रहता हैं , आँख से हर समय पानी बहता रहता हैं इसिलिए किसान इस रोग को बहता रोग कहते हैं ।

१ - औषधि - पशु की जीभ के नीचे वाले हिस्से के चारों रंगों में चार फस्दया फश्त खोल देना ही इस रोग का मुख्य इलाज हैं । नश्तर के घाव में - हल्दी पावडर , देशी सिन्दुर , गाय का घी मलना लाभकारी रहता है ।



६ - जिह्वा व्रण ( जीभ के घाव )
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कारण व लक्षण - पशु की जीभ पर घाव हो जाते हैं । जिसके कारण पशु ठीक प्रकार से खाना- पीना ठीक से नहीं कर पाता है और वह बहुत परेशान रहता हैं । यह रोग गायों को बहुत अधिक होता हैं ।

१ - औषधि - पशु की जीभ पर घाव होतों - पीपल की छाल जलाकर उसकी महीन राख जीप्रणाम रगड़कर कुछ देर के के लिए रोगी पशु के मुँह को बाँध देना चाहिए । दबाकर न बाँधे इतना बाँधे की पशु जबड़ा न चला पाये लेकिन नाक से साँस बन्द न हो । कभी इतना टाईट बाँध दें कि वह साँस भी न लें सकें ध्यान रहें ।


७ - गरदब्बा
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कारण व लक्षण :- इस रोग में जीभ की जड़ में अधिक सूजन आ जाती हैं जिसके कारण रोगी पशु का मुख काफ़ी गरम प्रतित होता हैं । यह भयंकर रोग हैं इसे भी जहरबाद की तरह असाध्य समझा जाता हैं । अत: इस रोग के लक्षण प्रकट होते ही तुरन्त इलाज करना चाहिए । पशु के मुँह में हाथ डालकर देखने पर मुँह अन्दर से काफ़ी ठण्डा रहता हैं ,जबकि गलाघोटू रोग में पशु का मुख अन्दर से काफ़ी गरम रहता हैं ।

१ - औषधि - मेंथी आधा पाँव प्याज़ ३ छटांक , पानी १ किलो में पकाकर पशु को नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - सरसों का तेल १० ग्राम , अफ़ीम ५ ग्राम , मिलाकर पशु के नाक में डालने से आराम आता हैं ।

३ - औषधि - बंडार, कालीजीरी और मकोय तीनों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें फिर गरम करके , महुए पुत्री बनाकर पुन: पतरी को रूई में रखकर हलक के ऊपर बाँधना भी लाभदायक हैं ।

४ - औषधि - धतुरे का पत्ता , मेउड़ का पत्ता , बकायन के पत्ते , आकाश बंवर का पत्ता और अरूस का पत्ता - इन सबको उबालकर सूजन के ऊपर बफारा ( भाँप देना ) देने से लाभ होता हैं ।

५ - औषधि - इस रोग में उपयुक्त दवाओं के प्रयोग से लाभ होता हैं । यदि इनके प्रयोग से कोई लाभ न हो तो रोगग्रस्त स्थान को लोहा छड़ को गरम करके दाग लगाना चाहिए ।


८ - दाँत हिलना
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१ - औषधि - पशुओं के हिलते हुए दाँत की जड़ में पीसी हुई हल्दी रखकर उपर से शुद्ध सरसों का तेल डाल देने से पशु का हिलता हुआ दाँत जम जाता है ।

२ - फिटकरी पावडर में पानी की बूँदें डालकर दाँत की जड़ पर लगाने से दाँत हिलने बन्द हो जाते हैं ।



९ - परिहुल ( मसूड़े फूलना )
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कारण व लक्षण :- इस बिमारी में पशुओं के दाँतों की जड़े ( मसूड़े ) फूलकर मोटे हो जाते हैं । जिसके फलस्वरूप पशु का मुख बड़ा गरम हो जाता हैं । शुरूआत में फूले हुए मसूड़े काफ़ी कठोर रहते हैं किन्तु कुछ दिनों के बाद वे पक जाते हैं और उनसे मवाद निकलने लगता हैं । इस रोग से ग्रस्त पशु न तो चारा ही चर सकता है और न ही दाना खा पाता हैं ।

१ - औषधि - शुरूआत में तो ३-४ बार साँभरनमक तथा हल्दी बारीक पीसकर व कपडछान करके मलते रहना चाहिए । यदि कुछ दिन तक मलने से सूजन नरम पड़ जाये तो नश्तर से चीरा देकर मवाद निकाल देनी चाहिए । उसके बाद पान के पत्ते पर बुरककर कालीमिर्च व सोंठ पावडर सूजन पर लगाना चाहिए ।

२ - औषधि - मेंथी , सांभर नमक और अलसी - प्रत्येक को समान मात्रा में लेकर पुलटीश बनाकर लेंप करना चाहिए यह उपयोगी होता है ।

३ - औषधि - यदि रोग की तीव्रता के कारण पशु को बुखार हो जाये और वह बुखार से परेशान होकर चक्कर काट रहा हो तो - गुड़ और चिरायता ५००-५०० ग्राम , लेकर लगभग १ लीटर पानी में औटायें । जब आधा पानी रह जाये तब छानकर रोगी पशु को गुनगुना ही पिला देना लाभप्रद होता हैं ।

# - मुलायम घास व अलसी या चावल का माण्ड में नमक मिलाकर पशु को पिलाना चाहिए ।


१० - दाँतों मे पायरिया
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कारण व लक्षण :- इस रोग को पिंग रोग के नाम से भी जानते हैं । तथा कहीं- कहीं इस रोग को "गहन " रोग से भी पुकारते हैं । यह दाँतों का भयंकर रोग है । इसमें दाँतों की जड़ों का माँस गल- गलकर क्षीण होने लगता हैं । दाँतों की जड़े खोखली हो जाती हैं और वे हिलने लगते हैं । पायरिया रोग में रोगी पशु को चारा दाना खाने का कष्ट रहता हैं ।

१ - औषधि - सरसों के तेल में रूई को भिगोकर दाँत की जड़ में रखे । साधारण गर्म लोहे को रूई के ऊपर रखें , ताकि तेल गर्म होकर दाँतों की जड़ों में चला जायें । इसके बाद बरगद का दूध रूई में भिगोकर दाँतों की जड़ों में रखने से दाँतों की जड़े मज़बूत हो जाती हैं ।


११ - दाँतों का अनियमित बढ़ना
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कारण व लक्षण :- आमतौर पर यह रोग बूढ़े पशुओं को होता हैं । उनके दाँत ऊँचे - नीचें हो जाते हैं । तथा दाढें बढ़ जाती हैं , जिसके कारण उन्हें चारा - दाना खाने में कष्ट होता हैं । इस रोग से ग्रस्त पशु चारे को दाँतों से भलीप्रकार चबा नहीं पाता हैं और उसे चबाने में कष्ट होता हैं ।
१ - औषधि - इस रोग के इलाज हेतु पशु को किसी सुयोग्य डाक्टर के पास जाकर दाँतों को रितवा देना चाहिए अथवा अनियमित रूप से बढ़े दाँतों को निकलवा देना चाहिए ।


१२ - मुँह पका रोग
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१ - मूहँ पकारोग - जूवाॅसा - १५० ग्राम , अजमोदा - १५० ग्राम , चीता ( चित्रक सफ़ेद ) -१०० ग्राम , बड़ी इलायची - ५० ग्राम , इलायची को कूटकर बाक़ी सभी दवाओं को साढ़े तीन किलो पानी में उबालकर ,छानकर पानी की एक-एक नाल सुबह-सायं देने सेल लाभ होता है ।


१३ - जीभ पर छालें पड़ जाना
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कारण व लक्षण - कभी - कभी गरम चीज़ें खा लेने के कारण शरीर का ताप बढ़ जाता है , या बदहजमी के कारण यह रोग हो जाता है , यह रोग फेफड़ों में भी हो सकता है । पशु की जीभ में छालें पड़ जाते है । मुँह से दुर्गन्ध आती है । लार टपकती है ।खाना - पीना तथा जूगाली करना कम हो जाता है । पश सुस्त रहता है और दिनोंदिन कमज़ोर होता जाता है ।

१ - बछाँग की जड़ ( जलजमनी ) ६० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , जड़ को महीन कूटकर उसे घी में गुनगुना गरम करके , बिना छाने , रोगी पशु को एक समय , चार - पाँच दिन तक , दी जाय । उससे अवश्य आराम होगा ।

२ - औषधि - मुर्ग़ी का अण्डा १ नग , गाय का दूध ९६० ग्राम , अण्डे को फोड़कर और गूद्दे को दूध में मिलाकर ख़ूब फेंट लिया जाय । फिर रोगी पशु को दोनो समय ,तीन दिन तक , पिलाया जाय ।

आलोक -:- रोगी पशु को पहले जूलाब दिया जाय । उसके बाद जलजमनी की पत्तियाँ खिलाने से वह अच्छा हो जाता है । यदि वह न खाये , तो उसे बारीक पीसकर पानी के साथ मिलाकर पिलाये ।

३ -औषधि - फिटकरी ६० ग्राम , पानी २४० ग्राम , फिटकरी को पानी में मिलाकर रोगी पशु का सिर धोना चाहिए तथा उसे पिलाना भी चाहिए ।

४ - औषधि - इलायची १२ ग्राम , शीतल चीनी २४ ग्राम , पानी २४० ग्राम , इलायची और शीतल चीनी को पीसकर , पानी में मिलाकर गुनगुना करके , रोगी पशु को आठ दिन तक , देना चाहिए ।

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१४ - पान कोशी
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कारण व लक्षण - मुहँपका रोग में या माता की बिमारी में पशु के भूखे रहने से यह बिमारी हो जाती है । इस रोग में पशु अधिक गर्मी नहीं सहन कर सकता । रोगी पशु अधिक हाँफता हैं । उसे दम चलती है । वह हमेशा छाया में या पानी में रहने की कोशिश करता है । उसके रोयें बढ़ जाते है और काले पड़ जाते हैं । अगर रोगी मादा पशु हो तो गाभिन नहीं होता और हुआ भी तो दूध नहीं देता है ,उसका दूध प्रतिदिन सूखता जाता है।

१ - औषधि - बत्तख का अण्डा १ नग ,गाय का दूध ९६० ग्राम , प्रतिदिन अण्डे को फोड़कर और दूध के साथ ख़ूब फेंटकर रोगी पशु को ८ दिन तक पिलाया जाय। अगर इसके बीच रोगी पशु अच्छा हो जाय तो फिर एक समय यह दवा पिलानी चाहिए ।

२ - औषधि - मुर्ग़ी का अण्डा २ नग , गाय का दूध १ लीटर , अण्डों को तोड़कर , दूध में मिलाकर , रोगी पशु को दोनों समय ८ दिन तक देना चाहिए ।

टोटका -:-
३ - औषधि - गाय के दूध की छाछ १४४० ग्राम , कालीमिर्च ३० ग्राम , कालीमिर्च को महीन पीसकर उसे छाछ में मिला लिया जाय । फिर लोहे के टुकड़े को या पत्थर को लाल गरम करके उसे छाछ में एक दम डालकर तुरन्त ढँक दिया जाय । १५ मिनट बाद उस लोहे के टुकड़े को निकालकर , गुनगुनी छाछ रोगी पशु को दोनों समय , एक माह तक ,इसी मात्रा में पिलायी जाय ।

४ - औषधि - नीम की पत्ती १०० ग्राम , २५० ग्राम पानी में पीसकर पिलानी चाहिए । बाद मे २५० ग्राम , गाय का घी भी दोनों समय देना चाहिए ।

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१५ - फाँसी या छड़ रोग, जीभ के नीचे नसों में काला ख़ून इक्कठा होना ।
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कारण व लक्षण - यह रोग गाय व भैंस और मादा पशुओं की जीभ के नीचे यह प्राय: होता है । यह रोग अन्य पशुओं को नहीं होते देखा गया है । यह रोग गर्मियों में अधिक होता है । पशुओं को सूखी घास खाने तथा ठीक समय पर पानी न मिलने के कारण यह रोग होता है । जीभ के नीचे के भाग की नसों में काला ख़ून भर जाता है । पशु का शरीर अकड़ जाता है। उसकी कमर को ऊपर से दबाने से वह एकदम नीचे झुक जाता है । यह रोग अधिकतर दूधारू भैंसों को होता है । दूधारू पशु दूध देने तथा खाने में कमी करते हैं।

१ - औषधि - पहले रोगी पशु को धीरे से ज़मीन पर लिटा देना चाहिए । फिर उसकी जीभ बाहर निकालकर उसकी बड़ी - बड़ी दो नसों को ( जिनमें काला ख़ून भरा हो ) , जोकि कई छोटी -छोटी नसों को मिलाती है । उसे सुई से तोड़कर काला ख़ून बाहर निकाल देना चाहिए ।और बाद में २४ ग्राम हल्दी, गाय का घी २४ ग्राम , दोनों को मिलाकर जीभ पर नसों के पास लगा दें । इससे ज़ख़्म नर्म और ठीक हो जायगा ।

# - रोगी पशु की पूँछ के नीचे के भाग में थोड़ा - सा चीरा ( नश्तर) लगाकर ख़ून निकाल दिया जाना चाहिए । उसे ऊपर से नीचें की ओर लौटाना चाहिए , जिससे काला रक्त निकल जायेगा । अच्छी तरह दबाकर काला ख़ून निकाल देना चाहिए । काला ख़ून निकल जाने के बाद ज़ख़्म में अफ़ीम चार रत्ती पानी में मिलाकर नरम करकें , भर देनी चाहिए । इससे रोगी को यह रोग दूसरी बार नहीं होगा ।

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१६ - मुँह मे आँवल या मुँह में काँटों का बढ़ना
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कारण व लक्षण - यह रोग गौ वर्ग को होता है कभी - कभी गाय को नमक क्षारयुक्त पदार्थ न मिलने पर भी यह रोग हो जाता है । जिस गाय बैल को सदैव कब्जियत रहती है । उसे यह रोग अधिक होता है । इस रोग में रोगी के मुँह के आँवल बढ़ जाते है । ये आँवल गाय व बैल के जबड़े के अन्दर अग़ल - बग़ल दोनों ओर रहते है । ये काँटे लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई में बढ़ जाते है । जिससे पशु घास ठीक प्रकार नहीं खा सकता है । वह दिनोंदिन कमज़ोर होने लगता है । दाना भी कम खाता है ।दूधारू गाय दूध देना कम कर देती है ।

१ - औषधि - रोगी पशु को सबसे पहले जूलाब देकर उसका पेट साफ़ कर देना चाहिए ।

२ - औषधि - रोगी पशु को प्रतिदिन २४ ग्राम , पिसानमक उन काँटों पर हाथ से मलना चाहिए ।

३ - औषधि - नारियल के रेशे , कत्थे की रस्सी को या भाभड़ के बाण को इन काँटों पर रगड़ें तथा ख़ूब मलना चाहिए ।

४ - औषधि - रोगी पशु के ज़मीन पर लेटाकर फिर उसके बढ़े हुए काँटे तेज़ कैची द्वारा काट दिये जायँ फिर बाद में हल्दी २४ ग्राम , गाय का घी या मक्खन २४ ग्राम , दोनों को मिलाकर काटो के स्थान पर हाथ से मला जायें । यह क्रिया केवल एक ही दिन करनी होती है । इससे पशु को आराम होगा । तथा ध्यान रहे की रोगी पशु को मुलायम घास , हल्की पतली ,पोषक घास देनी चाहिए । और पशु को हर चौथे नमक देना पड़ता है ।
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(२२)- गौ- चिकित्सा - आँखों के रोग।

(२२)- गौ- चिकित्सा - आँखों के रोग।

पशुओं में आँखों के रोग होना


१ - आँखों में जाला पड़ना ( दृष्टिमांद्य )

कारण व लक्षण - पशुओं की आँख के अन्दर जो नीले रंग की पुतली दिखाई देती हैं और जब वह सफ़ेद रंग की या मैटमेले रंग से ढक जाती हैं तब अन्य प्राणियों के समान ही पशुओं को भी दृष्टिमांद्य हो जाता हैं इस रोग को ही गाँव के लोग आँख में जाला आना बोलते हैं । इस रोग में पशु को कम दिखाई देने लगता है बहुत पुरान होने पर दिखाई देना भी बन्द हो जाता है इसलिए इसका उपचार अनिवार्य रूप से करना चाहिए ।

१ - औषधि - हाथी के नाख़ून को तीन साफ़ पत्थर पर २-२ बून्द पानी की डालकर नाख़ून को चन्दन की तरह घिसकर तैयार कर लें और रोगी पशु की आँख में आँज दें ( आँख में लगाना ) यह दवा ३-४ हफ़्ते तक लगाने से पशु की आँख ठीक हो जाती हैं ।

२ - औषधि - गुम्मा ( द्रोणपुष्पी ) के पत्तों का रस निकालकर कपड़े में छानकर रोगी पशु की आँख में पाँच- पाँच बून्द २-३ बार डालने से ही लाभ हो जाता हैं । और यह औषंधि आँखों के हरप्रकार की बिमारी में चमत्कारी सिद्ध होता हैं ।

३ - औषधि - शोरा मीठा १० ग्राम ,तथा गेरू १० ग्राम - दोनों को बारीक पीसकर रख लें और प्रतिदिन कोई काग़ज़ की ६ इंच लम्बी व आधा इंच मोटी नली बनाकर उसमे २ ग्राम पावडर भरकर पशु की आँख के पास लेजाकर नली में ज़ोर से फूँक मार दें जिससे दवाई पशु की आँख में चली जाये ,ठीक होने तक करना होगा ।

४ - औषधि - कटैरी ( कण्टकारी ) ज़मीन पर फैलती है छोटे- छोटे टमाटर जैसे सफ़ेद फल लगते है और पककर फल पीले हो जाते है तथा इसके पत्तों पर काँटे होते है इसको लेकर पलों का रस निचोड़ लें । इस रस को रोगी पशु की आँख में ५-५ बून्द प्रतिदिन टपकाने से उसकी आँख का जाला जड़ से जाता रहता हैं किन्तु यह दवा आँख में डालने के बाद पशु की आँख लाल होकर उसमें सूजन आ जाती हैं लेकिन धीरे-धीरे सूजन उतर जाती हैं और पशु की आँख ठीक अवश्य हो जाती हैं ।

५ - औषधि - शिंगरफ और मिश्री समान मात्रा में लेकर एक नींबू के रस में खरल करकें रख लें और प्रतिदिन मुर्ग़े के पंख से इस दवा को पशु की आँख में प्रतिदिन लगाने से आराम आता हैं और जाला नष्ट हो जाता हैं ।

६ - औषधि - ममीरा व नीला थोथा और सिन्दुर को सममात्रा में लेकर काग़ज़ी नींबू का रस में ख़ूब घोटकर नैत्रो में अंजन करते रहने से ही लाभ हो जाता हैं ।


२ - आँख में फूली अथवा फूल पड़ना ' ढेढर ( आँख में चोट लगने के कारण भी )

५ - औषधि - अधिक दिनों तक आँखों के दुखते रहना तथा समुचित इलाज न किये जाने के कारण कभी- कभी पशुओं की आँख में घाव हो जाता हैं आँख की पुतली पर सफ़ेद - सफ़ेद जाला सा आ जाता हैं तथा उसे कम दिखाई देने लगता हैं और आँखों से हर समय पानी और कीचड़ बहता रहता हैं और अन्त में आँख मे फफोला सा पड़ जाता हैं । यदि शीघ्र इलाज नहीं किया तो ऐसा रोगी पशु अन्धा हो जाता हैं ।

# - कभी- कभी पशु की आँख पर चोट लगने से भी फूली पड़ जाती है और पानी बहता रहता है ।

१ - औषधि - गुम्मा ( द्रोणपुष्पी ) की पत्तियों का रस आँख में डालना लाभकारी सिद्ध होता हैं । यह औषधि आँख की समस्त प्रकार के रोगों का निदान करती हैं यह रामबाण औषधि हैं ।

२ - औषधि - सरसों का शुद्ध तेल भी आँख में डालना हितकारी रहता हैं ।

३ - औषध - चीनीपत्थर के कटोरे में नींबू का रस निकालकर चुटकी भर सादा नमक डालकर लोहे की मूसली या किसी वस्तु से घोटकर आँख में डालना उपयोगी रहता हैं ।

४ - औषधि - गाय घी १ छटांक , आधा छटांक फिटकरी , अफ़ीम १ रत्ती लेंकर पहले घी को आग में गरम करे और गरम होने पर इसमें फिटकरी का चूर्ण डाल दें ( इसको डालते ही घी में झाग उठने लगेंगे और अफ़ीम डालते ही बन्द हो जायेंगे ) इसके बाद उसे ठन्डा करके दिन में ३-४ बार आँख में प्रतिदिन लगाने से आँख ठीक हो जाती हैं ।

५ - औषधि - मिट्टी के ढक्कन दार बर्तन में मदार ( आक ) का दूध डालकर उसमे साठी के चावल भिगोवें । उस बर्तन के मुख को कच्ची मिट्टी का गारा बनाकर उससे मुँह बन्द कर दें और आँच पर चढ़ा दें । जब चावल ख़ूब जल जायें तब ठन्डा करके पीसकर कपडछान करके रखें और प्रतिदिन पशु की आँख मे आँजना लाभकारी सिद्ध होता हैं ।

६ - औषधि - काला सूरमा १ तौला , चाकसू ६ माशा , ( ऐसा चाकसू जिसे इमली के पत्तों में पकाकर उसका छिल्का उतार कर रख लिया हो ) तथा कलमीशोरा - सभी को काग़ज़ी नींबू के रस में डालकर एक दिन लगातार खरल करके चने के बराबर गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रख लें । और एक गोली प्रतिदिन सफ़ेद पत्थर पर दो बून्द पानी डालकर ,घीसकर पेस्ट बनालें ओर इस पेस्ट को पशु की आँख में लगाने से कुछ दिनों में आँख का जाला , फोले , धुन्ध आदि कटकर दृष्टि साफ़ हो जाती हैं ।

७ - औषधि - शीतल चीनी १ रत्ती , लौंग २ रत्ती , बड़ी इलायची डेढ़ माशा , त्रिफला चूर्ण डेढ़ माशा , कालीमिर्च १ रत्ती , महीन पीसकर कपडछान करके नीम का रस ५ छटांक , डालकर अच्छी तरह से घोट लें । फिर इसमें कपूर पावडर ६ रत्ती , पिपरमेन्ट पावडर २ रत्ती मिलाकर एक शीशी में भरकर रखँ लें तथा प्रतिदिन सलाईँ द्वारा पशु की आँख में लगाने से जाला , फोला , धुन्ध , मोतियाँ बिन्द आदि समस्त नेत्र रोगों में लाभ होता हैं तथा दृष्टि तेज व साफ़ होती हैं ।
८ - औषधि - पशु की आँख में चोट लगने पर -- घरेलू पालतू कबुतर की बीट को पत्थर पर दो बून्द पानी डालकर घीसकर पेस्ट बनाकर पशु की आँख में लगाने से पशु की आँख की पीड़ा चली जाती हैं । कबूतर की बीट में चोट की पीड़ा हरने की बड़ी क्षमता होती हैं ।

९ - औषधि - मदार ( आक ) १० ग्राम , गन्ने के शीरे की सात बून्द डालकर मिला लें ।रविवार के दिन दूध में अंगुली भिगोकर भीगी हूई अंगुली से पशु की आँख के चारों ओर अंगुली से सात चक्कर बना दे । ध्यान रहे चक्कर बनाते समय अंगुली न उठे । इस प्रकार दवा लगाने से जहाँ चक्कर बनाये थे वहाँ से बाल व खाल उड़ जायेंगे और फूली में आराम आ जायेगा ।

१० - औषधि - काँच की हरी चूड़ियों १० ग्राम ,को खरल में डालकर बहुत महीन पीसकर कपडछान कर लें । इसके बाद सिरस के पत्तों का रस १० ग्राम , लेकर खरल में डालकर बहुत खरल करें जिससे घुटकर काजल व सूरमे की भाँति चिकना हो जायें फिर किसी शीशी में भरकर रख लें और प्रतिदिन एक चुटकी दवा लेकर रोगी पशु की आँख में लगाने से पशु की आँख की फूली या ढेढर बिलकुल ठीक हो जायेगी


३ - आँख की फूली


कारण व लक्षण - गाय- भैंस व अन्य पशु की आँख आ जाने से ( किसी पशु की दोनों आँखें एक साथ आ जाती हैं और किसी पशु की एक आँख आती है ) और अचानक चोट लग जाने से फूली बन जाती है । पहले पशु आँख बन्द रखता है और उसकी आँख से पानी बहता है, फिर पशु की आँख में सफ़ेद झिल्ली की टीकिया बन जाती है। उसके बाद पशु को आँख से नहीं दिखता । उसकी आँख बिलकुल ख़राब हो जाती है। आँख में फूली पड़ते ही इसका इलाज जल्दी होना चाहिए , वरना बाद में इलाज होना कठिन है ।

१ - औषधि --फूली बनते ही पशु की आँख को कनपटी पर चाक़ू द्वारा लगभग अठन्नी की जगह भर, चौथाई हिस्से के बाल खुरचकर निकाल देने चाहिए। इससे वहाँ की जगह लाल हो जायेगी। इसके बाद थोड़ी - सी रूई लेकर उसमें २-३ भिलावें कूट लो । उसका तैल रूई द्वारा सोख लिया जायेगा। भिलावें का बचा हुआ कचरा गिरा देना चाहिए। फिर तैल युक्त रूई लेकर कनपटी पर खुरची हुई जगह पर दोनों तरफ़ की कनपटी पर बार लगा देनी चाहिए , ८ दिन में ज़ख़्म आराम हो जायेगा ।

आलोक-- जिस पशु को यह दवा लगायी जाय, उसे लगभग ८ दिन तक गर्मी में न जाने दिया जाय, क्योंकि सूर्य का प्रकाश वह सहन नहीं कर सकता है। पानी बरसे तो उसको घर बाँधकर रखना चाहिए। पशु यदि पानी में भीगेगा तो दवा रोग पर काम नहीं करेगी ।

२ - औषधि-- पहले बताये गये अनुसार पशु की दोनों कनपटी के बाल उखाड़कर चम्पाथुवर का दूध ( डंडाथुवर ) रूई द्वारा लगभग ८ दिन तक एक समय लगाया जाय।

३ -औषधि-- रोगी पशु की आँख में आगे लिखा हुआ घोल लगभग ८ दिन तक छिड़कना चाहिए-घोल बनाने के लिए , पानी ९६० ग्राम , तम्बाकू ९ ग्राम , चूना डेढ़ ग्राम ,नमक १२ ग्राम , सबको महीन पीसकर पानी में डालकर उबाल लेना चाहिए। फिर छानकर कुनकुना पानी आँखों में छिड़कना चाहिए ।

४ - औषधि -- पानी में घीसा हुआ साभँर ( बारहसिंगा ) का सिंग ३ ग्राम , नींबू का रस ३ ग्राम , ३ ग्राम , मक्खन ३ ग्राम , कामिया सिंदूर ( असली सिंदूर ) ३ ग्राम , सबको मिलाकर तथा मरहम बनाकर रोगी पशु की आँख में ८-१० दिन दोनों समय लगाना चाहिए।

५ - औषधि -- गुराड़ ( सफ़ेद शिरस ) के पौधे की जड़ लाकर तथा पानी द्वारा धोकर उसे गोमूत्र के साथ घिसना चाहिए। इस प्रकार बना हुआ मरहम रोगी की आँख में दोनों समय लगभग १० दिन तक लगाना चाहिए।

६ - औषधि -- गाय का घी और नमक का मरहम बनाकर ८ दिन लगायें पशु की आँख में लगाते रहे ।

७ - औषधि -- गुराड़ सफ़ेद सिरश के पौधे की जड़ को गोघृत के साथ घिसकर दोनों समय २० दिन तक लगाना चाहिए ।
८ - औषधि -- जिस पशु की आँख आ जायें ( किसी पशु की एक और किसी पशु की दोनों आँखे आ जाती हैं ) तो उसे मीठे प्याज़ का रस ९ ग्राम , फिटकरी साढ़े चार ग्राम , आबाँहल्दी भी साढ़े चार ग्राम , लेकर । फिटकरी व आबाँहल्दी को महीन पीसकर उसे प्याज़ के रस में मिलाकर अंजन बना लें। उसे रोगी पशु को रोज़ाना दोनों समय आराम होने तक लगाया जायें ।

९ - औषधि -- अच्छा होने तक रोगी पशु के दोनों सींगों की जड़ के चारों ओर लगभग २० ग्राम , ताज़े नींबू का रस दोनों समय मला जाय। यह आँख आने पर तथा आँख में फूली होने पर भी लाभ करता है।



४ - रोग - आँख में सफ़ेद कीचड़ सा ( क्लेद ) आना

१ - औषधि - गाय का ताज़ा मक्खन -- गाय या भैंस की आँखों में जब सफ़ेद कीचड़ सा आये तो गाय का ताज़ा मक्खन लेकर थोड़ा - थोड़ा हाथ में लेकर बिमार पशु के सींग की जड़ में मक्खन की मालिश करें । यह क्रिया दो - तीन दिन तक करनी चाहिए रोगी पशु स्वस्थ हो जायेंगे तथा आँख में कीचड़ आना बन्द हो जायेगा ।


२ - गाय की आँख मे ढीड़ आना -- ताज़े पानी में नमक मिलाकर , पानी की घूँट भर कर गाय की आँख के ऊपर कुल्ला करें । दिन में तीन चार बार करें,२-३ दिन में ठीक हो जायेगा ।


५ - आँख में भिलावा लगना

कारण व लक्षण - कभी- कभी पशु की आँखों में भिलावा लग जाता हैं । भिलावा तेज़ विष औषधि हैं इसके लग जाने से आँखों में सूजन आ जाती हैं लाल हो जाती है है क्योंकि इसमें तेल होता हैं वह त्वचा पर जहाँ लग जाता है वहाँ जला देता है ।

१ - औषधि - कुटकी २ छटांक लेकर पीस कर कपडछान करके रोगी पशु की आँख में लगाने से लाभ होने लगता हैं ।


६ - आँख उठना , आँखें लाल होकर दूखना

कारण व लक्षण - आँख में चोट लगने से अथवा धूल पड़ने से पशुओं की भी आँखें उठ जाती हैं । इस रोग में - आँखें लाल हो जाती हैं । हर समय आँखों से पानी बहता रहता है तथा पशु को कम दिखाई देने लगता हैं । इस रोग की यदि शीघ्र समुचित चिकित्सा नहीं की जाती हैं तो पशु की आँखो में फूली हो जाती हैं ।

# - औषधि - सबसे पहले फिटकरी के पानी से पशु की आँखों की धुलाई व सफ़ाई करनी चाहिए । इसके बाद इन दवाओं का प्रयोग करना चाहिए ।

१ - औषधि - छोटी हरड़ को गाय के घी में भूनकर इसके बाद उसे थोड़े से साजे नमक के साथ मिलाकर तीन- चार बून्द पानी डालकर घोटकर लेप बना लें फिर उसको पशु की आँख के चारों ओर लगा देना चाहिए । यह क्रिया दिनभर में ३-४ बार करनी चाहिए । लाभ अवश्य होगा ।

२ - औषधि - लाल चन्दन , हल्दी , अफ़ीम , १-१ छटांक , आम ३-४ पत्तियाँ , कुटपीसकर । सेहुड़ का दूध २ छटांक लेकर उसमें मिलाकर आँख के चारों तरफ़ सावधानी से लगाये । ध्यान रहे की दवाई पशु की आँख में अन्दर नहीं जानी चाहिए । क्योंकि सेहुड़ का दूध आँख में लगने से पशु अन्धा हो जाता हैं ।


७ - आँखें दूखना ( आँख मे तिनका पड़ने से या किसी कीट के काटने पर )

कारण व लक्षण - पशु की आँख में चोट लगने व आँख में तिनका गिर जाने व ज़हरीले कीट के गिर जाने व उसके काट लेने के कारण आँखें लाल होकर सूज जाती है । आँख से दिन मे पानी बहता रहता हैं और रात में कीचड़ आ जाता हैं रोगी पशु हर समय आँखें बन्द किये रहता हैं ।

१ - औषधि - यदि किसी चीज़ के आँख में पड़ जाने के कारण आँख दुखने लगी हैं तो आँख के अन्दर से उस चीज़ को सावधानी पूर्वक निकलना चाहिए । और बाद मे २-२ बून्द अरण्डी के तेल की आँखों में डालनी चाहिए । इसके बाद गुलाबी फिटकरी १० रत्ती , को आधा छटांक गुलाब जल में घोलकर इस लोन की बून्दे आँखों में टपकाना चाहिए ।

२ - औषधि - यदि पशु की आँख में सूजन हो तो खशखश के छिलके पानी में पकाकर साफ़ रूई से सेंक करें । पहली अवस्था में रूई तर करके बाँध देने से भी आराम हो जाता हैं । किन्तु २-४ दिन के बाद सेंक ही करना पड़ेगा ।

३ - औषधि - यदि मक्खी - मच्छर या कीट आदि ने काटा हो तो पशु की आँख से पानी व कीचड़ आता हैं । मिश्री , सेंधानमक , फिटकरी , प्रत्येक १-१ तौला लेकर , नीला थोथा ४ रत्ती , रसौत ६ माशा , गुलाबजल या उबला हूआ पानी १ लीटर ठन्डा करके , सभी दवाओं को पीसछानकर गुलाबजल या पानी में घोल लें इससे रोगी पशु की आँखों में छबके मारने चाहिए और दो- चार बून्द आँखों में भी डालनी चाहिए । यह क्रिया दिन मे ३-४ बार करनी चाहिए ।

टोटका :-
१ - थोड़ी सी मात्रा में पशु को सुअर की विष्टा देने से भी आँखों का दूखना ठीक हो जाता हैं ।

२ - आटे की लोई में भुजायल पक्षी के पंख को रखकर रोगी पशु को खिलाने से भी रोग जाता रहता हैं । और आँखें ठीक हो जाती हैं ।

३ - मंगलवार या रविवार के दिन रजस्वला स्त्री ( ऐसी महिला जिसको M c - मासिक धर्म ) हो रहा हो । ऐसी महिला के ख़ून में भीगा हुआ कपड़े का थोड़ा सा टुकड़ा लेकर पशु को खिला देने से रोग समाप्त होसजाता हैं ।

४ - गुम्मा का रस आँख में डालने से भी यह रोग जाता रहता है ।


८ - रतौंधी ( Night blindness )

कारण व लक्षण - यह रोग पशुओं में प्राय : दिमाग़ की कमज़ोरी से होता हैं । इसमें पशु को दिन में तो साफ़ दिखाई देता हैं किन्तु सांय होते- होते ही ( सूरज ढलने के बाद ) उसे कुछ भी दिखाईं नहीं देता हैं । इस रोग का यदि प्रारम्भ में ही ठीक प्रकार से इलाज हो जाये तो ठीक हो जाता है वरना बाद में पशु अन्धा हो जाता हैं चूँकि इस रोग में दिन में दिखाई देता है और रात में नहीं दिखाई देता इसलिए इस रोग को ( रात + अन्ध =रातअन्ध , रात का अन्धा ) रतौंधी कहते हैं ।

१ - औषधि - हुक्के का मैल पानी में पीसकर आँखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - अलसी या अरण्डी का तेल पशु के सिर के ऊपर मालिश करना भी गुणकारी सिद्ध होता हैं ।

३ - औषधि - चिरमिटी के पत्तों का रस पशु की आँखों में लगाने से भी लाभ होता हैं ।

४ - औषधि - मछली के पित्ता ४ छटांक , व शुद्ध शहद ४ छटांक , दोनों को मिलाकर ५-६ दिन तक आँखो में डालने से पशु का रतौंधी रोग ठीक हो जाता हैं ।

५ - औषधि - गाय के गोबर में एक साफ़ रूमाल को उसके अन्दर दबाकर ५ -१० मिनट के लिए छोड़ दें उसके बाद कपड़ा निकालकर एक बर्तन में निचोड़ ले और इस गोबर के रस की ४-५ बून्दे आँख में डालने बिलकुल ठीक हो जाता हैं ।=


९ - आँख कोया निकलना

कारण व लक्षण - आँख का कोया निकल जाने के तीन कारण है ।-१ - वज़न खींचते समय झटका लग जाना । २ - पशुओ का आपस में लड़ जाना । ३ -पशु का पैर अचानक गड्ढे में गिर जाना । इन कारणों से पशु की यह बिमारी होती है । आँख का कोया जब बाहर आता है तो आँख में लाल -लाल दिखाई देता है ।

१ -औषधि - बासी पानी ( रात का बचा हुआ पानी ) ९६०ग्राम , सादा नमक २४ ग्राम , नमक को लेकर पीसकर पानी में डालकर पानी को गर्म किया जाये । फिर उसे छानकर कुनकुना होनेपर रोगी पशु की खुलीआँखों में दोनों समय अच्छा होने तक पानी को मुँह में भरकर आँख पर कुल्ला करें या अंजुली भर कर आँख पर छींटें मारे ।

२ - औषधि - सादा नमक १२ ग्राम , गुनगुना पानी ९६० ग्राम , दोनों को लेकर छान लें । और रोगी पशु की आँख पर हाथ से छींटना चाहिए । आँख का कोया बैठ जायगा और पशु को आराम हो जायेगा । दोनों समय ७-८ दिन तक एेसा करना चाहिए । यह दवाई गाय के शरीर जैसा बड़ा या छोटा । हो वैसे ही खुराक बढ़ा व घटा सकते है ।

१० - आँख में चिर्मियाँ होना

कारण व लक्षण - जाला , ये एक प्रकार के महीन कीड़े है , जो पशु की आँख को अन्दर ही अन्दर खाया करते है । ग़ौर से देखने पर हमें रोगी पशु की आँख में वे दिखाई देते है । ये कीड़े रंग में सफ़ेद , लम्बे , बारीक होते हैं और ये आँख में इधर से उधर घुमा करते है , भीगी रूई से निकालने से वे निकल भी जाते है । पशु की आँख से पानी बहता रहता है । उसमें कीचड़ आ जाता है , जिससे पशु आँख बन्द रखता है ।

१ - औषधि - सेंधानमक २ तोला या २४ ग्राम पानी ८० तोला या ९६० ग्राम नमक को पीसकर ४० तोला पानी में उबालना चाहिए । िफर उसे छानकर कुनकुना पानी रोगी पशु की आँख पर दोनों समय अच्छे होने तक छिड़कना चाहिए ।

२ - औषधि - नीम की पत्ती १२ ग्राम , पानी ९६० ग्राम , नमक २४ ग्राम , नीम की पत्ती व नमक को पीसकर पानी में उबालना चाहिए । फिर उसे छानकर गुनगुने पानी को हाथ की अंजुली में लेकर पशु की आँख पर सुबह-सायं छींटें मारने चाहिए यह उपाय आँख ठीक होने तक करना चाहिए ।

३ - औषधि - पानी ९६० ग्राम , तम्बाकू १२ ग्राम , नमक १२ ग्राम , नमक व तम्बाकू को महीन पीसकर पानी में डालकर गरम किया जाय । फिर छानकर गुनगुना पानी पशु की की आँख में ठीक होने तक दोनों समय हाथ से छींटें मारने चाहिए ।

४ - औषधि - गाय की दही २४ ग्राम , अफिम २ ग्राम , अफिम को पानी में घिस लें और दही में मिलाकर अंजन बना लें । रोगी पशु की की आँख में सुबह -सायं यही अंजन रोज़ाना बना कर लगाते रहे , अच्छा होने तक लगाया जायें।

५ - औषधि - वराहीकन्द को पानी में घीसकर क्रीम जैसा बनाकर रोगी पशु की आँख में दोनों समय अंजन बनाकर अच्छा होने तक लगाया जाय।

६ - औषधि - मीठे प्याज़ का रस १० ग्राम , लेकर रोगी पशु की आँख में दोनों समय डालते रहे, अच्छा होने तक इस क्रिया को करते रहें ।


११ - अन्धा हो जाना

कारण व लक्षण - कभी - कभी पशुओं को चरते समय खरगोश और गोच आदि जानवर आँख में फूँक मार देते है , जिससे पशु अक्सर अन्धे हो जाते है ।

१ - रोगी पशु की आँख में रोज़ सुबह - सायं दोनों समय ५-५ बूँद नींबू का रस छानकर अच्छा होने तक डालना चाहिए ।

२ - कचनार के छोटे पौधे की जड़ लाकर उसे धोकर गोमूत्र के साथ पत्थर पर खड़ी घिसना चाहिए फिर उसे छान लीजिए । और सुबह- सायं ठीक होने तक आँख में आंजना चाहिए ।

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.पशुओं में दाद-खुजली का इलाज कैसे करें ?

 दाद ( खोंडा ) रोग- 
कारण व लक्षण - यह रोग छोटे- छोटे दूध पीते बछड़े व बछडियों को अधिक होता है । जो बच्चे तंग, गन्दी और सुविधाजनक जगह में रहते हैं । सुर्य की धूप और ताज़ी हवा से वंचित रहने से यह रोग होता है । रोगी बच्चों के शरीर पर गोल- गोल चकत्ते पड़ जाते हैं । चकत्तों का रंग काला होता हैं । यह रोग अक्सर गर्दन से मुँह और कान पर शुरू होता है ।

१ - औषधि - मीठे तैल में पूरी और भांजियाँ बनायें । कढ़ाई का जला हुआ तैल रोगी बछड़ों को रोग - स्थान पर दिन में एक बार , अच्छा होने तक , लगायें । आराम अवश्य होगा ।

२ - औषधि - करंज का तैल ९६ ग्राम , गंधक ३० ग्राम , गन्धक को बारीक पीसकर , तैल में मिलाकर , रोग - ग्रस्त स्थान पर , अच्छा होने तक लगायें ।

३ - औषधि - करंज का तैल ९६ ग्राम , गन्धक ३६ ग्राम , नीला थोथा १२ ग्राम , सबको बारीक पीसकर , तैल में मिलाकर , रोग- ग्रस्त स्थान पर सुबह ,आराम होने तक लगायें।

टोटका -:-

४ - औषधि - रविवार के दिन सुबह रोगी पशु के बायें कान में सुई द्वारा काला धागा डालकर बाँध दिया जाय । तथा बछड़ों को सुबह १० बजे तक और शाम को ३ बजे से धूप में ,रोग समाप्त होने तक ,नियमित बाँधने पर , यह रोग अक्सर समाप्त हो जाता हो जाता है ।

२ - चैपा या चर्मरोग

कारण व लक्षण - गोवंश में यह रोग होता है ,उनके शरीर पर दाग से बन जाते है । यह एक प्रकार का चर्मरोग होता है ।
१ - औषधि - संफेद फिटकरी फूला ( फिटकरी को तवें के ऊपर भून ले ) ५०० ग्राम , बाबची १०० ग्राम , शतावर १०० ग्राम , सौँफ १०० ग्राम , अनार दाना १०० ग्राम , कूटपीसकर , ताज़े पानी से ५० ग्राम , रोज़ दिन में एक बार ठीक होने तक देते रहे । और ध्यान रहे की नमक का परहेज़ कराना चाहिऐ ।

३ - खुजली रोग

कारण व लक्षण - अक्सर देखने में आता है कि इस रोग में पशु के गले के बाल उड़ जाते है । गला छिदा- छिदा हो जाता है ।पशु किसी वृक्ष अथवा दीवार से गला रगड़ता हुआ नज़र आता है । यह रोग एक प्रकार के बारीक जन्तुओं से होता है और समय पाकर पुरे शरीर में फैल जाता है ।

१ - औषधि - मैनसिल ६० ग्राम , गन्धक १२० ग्राम , भिलावा २० नग, गाय का घी ४८० ग्राम , पहले इन सब चीज़ों को अलग - अलग पत्थर पर पीस लें । एक चीज को पीसने के बाद हाथ धोकर , फिर दूसरी चीज दूसरे पत्थर पर पीसें । फिर हाथ धोकर तीसरा,तीसरे पत्थर पर पीसें । इस प्रकार सबको अलग - अलग पीसना चाहिए । ऐसा न करने पर आग लग जाती है । भिलावें को भी अधकचरा कूट लेना चाहिए । बाद में इन्हें घी में पकना चाहिए । इसके लिए गाँव या शहर के बाहर कोई एकान्त स्थान चुनना चाहिए । इसका धुँआँ ज़हरीला होता है , इसलिए धुएँ से ख़ुद बचना चाहिए । पकाने के लिए गोबर के कण्डो का उपयोग करना चाहिए ।


मरहम बनाने की विधी -:- पहले लगभग १ किलोवाला मिट्टी का नया बर्तन लेकर उसमें घी डाल देना चाहिए । फिर गरम होने के बाद उसमें पहले मैनसिल , फिर गन्धक क्रमश: डालना चाहिए । अन्त में भिलावा डाल देना चाहिए । ध्यान रहे पकाते समय धुँआ शरीर को न लगने पाये । दवा हिलाने के लिए लकड़ी का एक लम्बा डंडा और बर्तन पकड़ने के लिए एक लम्बी सडासी का उपयोग करना चाहिए । मरहम बनाते समय बर्तन में जब हरे रंग का धुँआँ निकलने लगे तो उसे उठाकर पास में पानी भरें ( लगभग २० लीटरपानी का भोगना होना चाहिए ) भगोने में उँड़ेल देना चाहिए । जब मरहम ठन्डा हो जाय तो उसे हथेली से उठाकर, किसी बोतल में भर लिया जाय । रोगी पशु को दिन में दोपहर के समय धूप में इस मरहम की मालिश की जाय । पशु को मरहम चाटने नहीं देना चाहिए । अगर वह चाटने की कोशिश करें तो उसका मुँह बाँध देना चाहिए । उक्त मरहम का मनुष्य और कुत्ते पर भी प्रयोग किया जा सकता है ।

# - मनुष्य पर प्रयोग करने के बाद उस व्यक्ति को एक घंटे बाद गोबर से फिर साबुन से नहलाया जाय ।

आलोक -:- इस दवा को बनाने में अगर किसी व्यक्ति को असावधानी के कारण हानि पहुँचे तो उसका लेखक जवाबदार नहीं है ।इसे बनाते समय बहुत अधिक सावधानी बरतनी चाहिए ।

२ - औषधि - शु्द्ध गन्धक २४ ग्राम , गाय का दूध ९६० ग्राम , गाय का घी ६० ग्राम , पहले गन्धक को महीन पीसकर घी में पका लें । बाद में उसके दूध मिलायें । फिर रोगी पशु को रोज़ सुबह आठ दिन तक इसे पिलायें । जिस पशु को यह रोग हो जाये , उसे अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए ।

३ - औषधि - गाय का गरम गोबर या तुरन्त का गरम मूत्र में से कोई एक खुजली पर लगाये तो मनुष्य , पशु और कुत्ते , बकरी की बिमारी भी ठीक हो जायेगी ।

नज़र व झनका रोग का इलाज़ कैसे करें ?

चटकाने ( झनका ) की बीमारी


कारण व लक्षण - यह बादी की बिमारी और नस की ख़राबी की वजह से हो जाती है । सुबह के समय पशु अपने पैर को बार - बार उठाता और ज़मीन पर रगड़ता है । इसको चटकाने की बीमारी कहते है । यह पिछले पैरों में होती है तथा कभी - कभी एक और कभी दोनों पैंरो में हो जाती हैं ।

१ - औषधि - अरहर ( तुहर ) ९६० ग्राम , पानी १९२० ग्राम , तुहर को पानी में डालकर उसे १० घन्टे भिगोकर पशु को खिलाया जाय । प्रतिदिन , सुबह - सायं उपर्युक्त मात्रा को एक खुराक में दें । उनाडू तुअर ( देर में होने वाली अरहर ) खिलाने से ज़्यादा फास होता है ।

२ - औषधि - तुअर की चूरी १४४० ग्राम , पानी ३ लीटर , तुअर की चूरी को पानी में १०-१२ घन्टे गलाकर सुबह - सायं दोनों समय उक्त मात्रा में खिलाना चाहिए । गर्मी की ऋतु में ८ घन्टे ही भिगोना चाहिए । भिगोते समय नमक ६० ग्राम मिला देना चाहिए । इसके बाद खिलाना चाहिए ।


 पशुओं को नज़र लगना

कारण व लक्षण - अच्छे स्वस्थ और ख़ूबसूरत पशुओ को अक्सर नज़र लग जाया करती है । अधिक दूध देनेवाले दूधारू पशु , अच्छे बछड़े इसके अधिक शिकार होते हैं । और पशु सुस्त रहता है । उसके कान ढीले पड़ जाते है । बच्चे दुध पीना छोड़ देते हैै और दूधारू पशु दूध नहीं देते और लात मारकर अलग हो जाते है । कभी - कभी दूध में ख़ून भी आने लगता है ।
१ - औषधि - सुन्दर बेल १२० ग्राम , रोटी के साथ दोनों समय ,अच्छा होने तक दोनों समय देना चाहिए ।

टोटका -:-

१ - औषधि - बहेड़ा का फल १५ नग लेकर उसमें छेद करके धागे में पिरोकर रोगी पशु के गले में बाँध देना चाहिए । बच्चे, पशु को नज़र लग जाने के कारण वे फल अपने - आप फूट जायेंगे । जितने फल फूट जायँ ,उतने ही फल फिर बाँध देने चाहिए ।

२ - औषधि - पत्थरचटा पाषाण भेद ९ ग्राम लेकर रोगी पशु को ,दोनों समय धूनी दी जाय ।पशु अवश्य ठीक होगा

३ - औषधि - पत्थर पर का कोष्ठा १ नग , मीठा तैल ५ ग्राम , कोष्ठे को तैल में भिगोकर आग पर रखकर पशु के चारों और धूनी देने से ठीक होगा ।

४ - औषधि - मड़सिग ( संगमरमर ) वृक्ष की डाली का एक खूँटा बनाकर घर में गाड़कर उससे रोगी पशु को बाँधा जाय ।

५ - औषधि - बजरंग बली की मूर्ति के बायें हाथ की ओर से थोड़ा मली सिन्दुर लेकर आग पर रखकर , रोगी पशु के चारों ओर दो दिन तक धूनी देनी चाहिए ।

(४४) - गौ- चिकित्सा.रक्तप्रदर।

(४४) - गौ- चिकित्सा.रक्तप्रदर।

१ - रक्तप्रदर ( ख़ून बहना )
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कारण व लक्षण - मादा पशु के प्रसव के चारा दाने में गड़बड़ होने से यह रोग कभी - कभी हो जाता है । उसके प्रसव के समय असावधानी रखने के कारण यह रोग हो जाता है । रोगी मादा पशु की योनि से रक्त बहता रहता है । उसमें दुर्गन्ध आती रहती है । वह रोज़ दूध में और शारीरिक शक्ति में कमज़ोर होती है ।

१ - औषधि - गाय के दूध की दही ४८० ग्राम , गँवारपाठे का गूद्दा ४८० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , सबको आपस में मिलाकर और मथकर रोगी पशु को दोनों समय उक्त मात्रा में , आराम होने तक पिलाया जाये ।


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(२६)- गौ - चिकित्सा .कानरोग ।

(२६)- गौ - चिकित्सा .कानरोग ।

१ - कान का पकना
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कारण व लक्षण - कान पर मारने या अन्य प्रकार से चोट लगने पर या स्वयं अपने आप कान पक जाते है । कभी- कभी खरोंच पड़ने से भी कान पक जाता हैं । तथा कान में फोड़ा- फुन्सी होना , कान में सूजन होना , कान में मवाद पड़ जाना , घाव होना , इन सब कारणों से रोगी पशु बार-बार कान को फड़फड़ाता रहता हैं व कानों को हिलाता रहता हैं या किसी भी वस्तु से कानों को रगड़ता रहता हैं खुजलाता रहता हैं और जिस कान में दर्द रहता है उस कान को बार- बार देखता रहता हैं ।

१ - औषधि - नीम की पत्ती ४०० ग्राम , साफ़ पानी २८२० ग्राम नीम की पत्ती को भाँग की तरह बारीक पीसकर पानी के साथ उबालना चाहिए । जब आधा पानी रह जाय तो गुनगुना होने पर पिचकारी से कान धोना चाहिए । एनिमा से भी धो सकते हैं । उबालें हुए पानी को प्रयोग में लाने से पहले छान लेना चाहिए । कान धोने के बाद रूई से घाव सुखा देना चाहिए । अगर कान में पानी रह जाय तो मुँह तथा गर्दन टेढ़ी करके पानी को निकाल देना चाहिए ।

२ - औषधि - नारियल का तैल ६ ग्राम , बेकल ( ब्रह्मपादप ) की हरी पत्तियाँ ६ ग्राम , बेकल की हरी पत्तियों को तवें पर भूनकर जला देंना चाहिए और बारीक पीसछानकर , इसके बाद बीमार पशु के कान में डाल देना चाहिए । दवा डालने के बाद रूई की डाट लगा देनी चाहिए ।

आलोक-:- नारियल का तैल डालकर फिर कान में ख़ूब ठूँसकर भर समय सुबह ,रोज़ाना ,अच्छा होने तक लगायें ।

३ - औषधि - ब्रह्म डंडी,कमर( ट्रकोलैप्सस ग्लेबेटीमा ) की पत्ती का रस निकालकर कान में १०-१५ बूँद डालकर रूई लगा दें। और ठीक होने तक रोज़ लगायें।

४ - औषधि - गर्भिणी गाय का गोमूत्र १२० ग्राम , नीला थोथा १२ ग्राम , ताज़ा गोमूत्र ठीक रहता है यदि बाँसी हो तो उसे गरम कर लें और नीला थोथा मिलाकर ( मिलाने पर झाग उठता है,उससे डरना नही चाहिए ) पिचकारी से या एनिमा से धोना चाहिए । इसमें गोमूत्र के अलावा बकरी का मूत्र भी चलता है । गर्भिणी गाय के गोमूत्र में नीला थोथा डालते ही गैस तैयार होगी । उससे डरना नहीं चाहिए । उससे डरना नहीं चाहिए ।

५ -( औषधि - कण्डैल या बधरेंडी ) रतनजोत का दूध कान में १० - १५ बूँद डालकर रूई लगा देनी चाहिए । इससे आराम होगा ।

आलोक-:- उपर्युक्त इलाज नीम के गरम पानी से धोकर किये जाने चाहिए ।

६ - औषधि - नीम की पत्तियों को उबालकर पशु के पीड़ित कान में उसकी भाप देनी चाहिए । उसी गरम पानी से कपड़ा भिगोकर धीर-धीरे कान की सफ़ाई के बाद सरसों के तेल में लहसुन पकाकर गुनगुना तेल कान में डालना चाहिए ।

७ - औषधि - गेंदा की पत्ती का रस पशु के कान में डालने से लाभकारी सिद्ध होता हैं ।

८ - औषधि - नीम का तेल या सरसों का तेल १० ग्राम , मैथिलेटिड स्प्रिट १० ग्राम , दोनों को मिलाकर ६-७ बूँदें कान में टपकाते रहना चाहिए तीन- चार बार प्रतिदिन और तेल को गुनगुना करके कान के बाहर लगाकर रूई द्वारा सिकाई कर देने से कान की सूजन में आराम आता हैं ।

९ - औषधि - अँगारो पर लोबान डालकर उसकी धूनी कान में देने से अन्दर की सूजन में आराम आता हैं ।

१० - औषधि - नीम के कोमल पत्ते और पोस्त के छिलके आधा-आधा छटांक लें । इन दोनों को लगभग २ लीटर जल में पकाकर उसमें कम्बल का टुकड़ा तर करके उससे पशु के पीड़ित कान को सेंकें तथा सुदर्शन के पत्तों का रस गुनगुनाकरके उसमे २ रत्ती अफ़ीम घोलकर सुबह- सायं दिन में दो बार कान में डालने से कान की सूजन नष्ट हो जाती हैं ।

११ - औषधि - नीम के पत्तों के पानी से कान को धोकर पोंछकर उसमें कपूर ५ ग्राम , नारियल तेल १० ग्राम , नारियल तेल को गरम करके नीचे उतारकर उसमें कपूर मिलाकर गुनगुना करके ७-७ बूँद पशु के कान में डालें व कान के बाहर चुपड़ देंने से कान की मवाद पड़ना ठीक हो जाता हैं ।

१२ - औषधि - पशु के कान को फिनाइल की पिचकारी से तथा रूई की फुरैरी से अच्छी तरह साफ़ करके सुदर्शन ( सुकदर्शन ) के पत्तों का रस निकालकर गुनगुना करके सुबह- सायं कान में डालने से ७-८ दिन में कान का बहना बन्द हो जाता हैं ।

१३ - औषधि - नीला- थोथा १ रत्ती पानी में घोलकर उसके कान को धोने से भी लाभ होता हैं ।

१४ - औषधि - निशादि तेल गुनगुना करके कान में डालते रहने से भी कान का घाव भरकर सूख जाता हैं और कर्णस्राव ( कान का बहना ) रूक जाता हैं ।

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२ - कान में सूजन हो जाना
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कारण व लक्षण - कान में मैल अधिक जमा हो जाने पर , चोट लगने या फुन्सी आदि हो जाने से कान के अन्दर सूजन हो जाती हैं , जिससे दर्द होता हैं । पशु दर्द के कारण बेचैन हो जाता हैं । बार- बार अपना पीड़ित कान फड़फड़ाता हैं अथवा पैर या खूँटे से कान को रगड़ता रहता हैं जिस ओर के कान में सूजन होती है उसे ही रगड़ता हैं और पशु उसी ओर को गर्दन घुमाकर कान की ओर देखता रहता हैं तथा गर्दन झुकाये रहता हैं ।

१ - औषधि - नीम का १० ग्राम , मैथिलेटिड स्प्रिट १० ग्राम , दोनों को मिलाकरकान में टपकावें तथा थोड़ा नीम का तेल कान के बाहरी हिस्से पर चुपड़कर रूई गरम करके कान की सिकाई करने से लाभ होता हैं ।

२ - औषधि - नीम की कोमल पत्ती और पोस्त के छिलके आधा - आधा छटांक लें । इन दोनों को लगभग २ लीटर जल में पकाकर उसमें कम्बल का टुकड़ा तर करके उससे पशु के पीड़ित कान को सिकाई करें तथा सुदर्शन के पत्तों का रस गुनगुना करके उसमें २ रत्ती अफ़ीम घोलकर सुबह- सायं कान में डालें इस प्रयोग से भी कान की सूजन नष्ट हो जाती हैं ।

३ - टोटका - अँगारो पर लोबान डालकर उसकी धूनी पशु के पीड़ित कान के अन्दर धूआँ देने से भी कान की सूजन दूर होती हैं ।

# - यदि किसी कारण से कान में मवाद बहने लगे तो नीचे लिखी दवाओं का प्रयोग करने से लाभँ होता हैं -

४ - औषधि - नीम के पत्तों को पानी मे डालकर उबले हुएे गुनगुने पानी से कान को अन्दर- बाहर से धोकर , नारियल तेल गुनगुना करके उसमें कपूर मिलाकर , कान को ऊपर करके तेल को टपकायें और थोड़ा - सा तेल कान के बाहर चुपड़ देंना चाहिए ।

५ - औषधि - कान को फिनाइल की फुरैरी से साफ़ करके सुदर्शन के पत्तों का रस गुनगुना करके रोगी पशु के कान में डालने से लाभ होता हैं ।

६ - औषधि - निशादि तेल गुनगुना करके कान में डालते रहने से कान के अन्दर का घाव आदि ठीक होकर सूख जाते हैं और कान का बहना रूक जाता हैं ।


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(९) -१- गौ - चिकित्सा- पेटरोग ।

(९) -१- गौ - चिकित्सा- पेटरोग ।

१ - पेट दर्द
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कारण व लक्ष्ण - अधिक अनियमित व अधिक भोजन के कारण पशुओं को यह रोग होता हैं , भोजन करते ही पशु के पेट में वायुज शूल उत्पन्न हो जाते हैं , जिसके कारण वह अंगों को इधर उधर फेंकता है तथा बूरी तरह छटपटाता हैं । खाना पीना व जूगाली करना बन्द कर देता है । उसके गोबर में अत्यन्त दुर्गन्ध आती है ।

१ - औषधि - गाय का घी मिलाकर गरम दूध में गरम- गरम पिलाने से तुरन्त लाभ मिलता है ।

२ - औषधि - पत्ता तम्बाकू तथा कंजे की मींगी पीसकर आटे में गूथकर लगभग १५ -१५ ग्राम की गोलियाँ खिलाने से अवश्य लाभ होता है ।

३ -औषधि - सोंठ पीसी हूई २० ग्राम , ५ ग्राम हींग , पुराना गुड ५० ग्राम , लेकर इन सबकी गोलियाँ बना कर पशु को खिलाने से आराम आता है ।

४ - औषधि - १०-१० ग्राम की मात्रा में ज़ीरा व हींग और भांग को बारीक पीसकर १ किलो पानी में मिलाकर ३-३ घन्टे के अन्तर से पिलाने पर परम लाभकारी होता हैं ।

५- यदि उदरशूल पुराना हो तो तथा साथ ही शोथ ( सूजन ) की स्थिति हो तो आँबाहल्दी २५ ग्राम , छोटी हरड़ ३५ ग्राम , लहसुन ३० ग्राम , मकोय पञ्चांग इन सबको कूटपीसकर छानकर चूर्ण बना लें , तथा १०० ग्राम पुराना गुड़ लेकर उसमें यह चूर्ण मिलाकर गोलियाँ बना लें ५-७ गोलियाँ गरम पानी के साथ या रोटी में रखकर सुबह दोपहर सायं खिलाने से सुजन ठीक हो जाती है ।

२ - पेट दर्द ( Colin pain )
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कारण व लक्ष्ण - जब पशु कठोर रूखी घास अथवा पेड़ों की टहनियाँ आदि खा लेता हैं और उसे पीने के लिए पानी कम मिलता है तो वह भोजन सूखकर पेट में जम जाता है अथवा आँतों में अटक जाता है । इस कारण से पशु के पेट में दर्द उत्पन्न हो जाता है । गर्मी के दिनों में पशु को ठंडा पानी पिलाकर खडाकर देने से भी कभी -कभी यह रोग हो जाता है । इससे रोगग्रस्त पशु जूगाली करना तथा खाना- पीना छोड़ देता है और बहुत बेचैन हो जाता है पेट में भयंकर दर्द होने के कारण पशु तड़पता रहता है , अपने दाँत पीसता रहता है अपने पैरों को पटकता रहता है । गोबर या तो पशु बिलकुल ही नहीं करता है और यदि करता है तो वह तेज़ दुर्गन्ध युक्त होता है ।

१ - औषधि - यदि उदरशूल के साथ ही पशु को अफारा भी हो अर्थात पेट में गैस रूककर पेट फूल गया हो तो - पहले अफारा दूर करने का तत्काल प्रयत्न करें तदुपरान्त उदरशूल की चिकित्सा करें क्योंकि अफारा अधिक ख़तरनाक हैं ।
एक तोला हींग , तारपीन तैल एक छटांक और ढाई पाँव अलसी तैल , इन सभी दवाईयों को आपस में मिलाकर पशु को पिलायें , पेट दर्द शीघ्र दूर हो जायेगा ।

२- दो तौला सोंठ , ६ माशा हींग , दोनों को पीसकर आधा पाँव गुड में रखकर खिलाने से पेट दर्द में लाभ होता है ।

३- अजवायन २ तौला , कालानमक १ तौला , सोंठ १ तौला , मदार के पत्तों का ताज़ा रस तौला और गुड ४ छटांक पीसकर खिलायें । यदि दवा खिलाने के १ घन्टे बाद तक पशु को आराम न हो तो उपरोक्त दवा की आधी मात्रा ( आधी खुराक ) पुनः दें दें । पेट दर्द की रामबाण दवा है ।

४- तम्बाकू पीने वाला २ तौला , पुराना गुड ६ छटांक - इन दोनों को २५० ग्राम जल में खुब पकाकर नाल द्वारा पशु को पिलाना भी परम लाभकारी है ।

५- हींग १ तौला और नौसादर, व खाने वाला सोड़ा , काला नमक , लहसुन प्रत्येक २-२ तौला - इन सभी को लेकर बारीक पीसकर गुनगुने पानी अथवा अजवायन के काढ़े में घोलकर रोगी पशु को नाल द्वारा पिलाने से पेट दर्द दूर हो जाता है ।

६- अजवायन २ तौला , कालीमिर्च और सोंठ १-१ तौला तथा गुड २५० ग्राम , लेकर आधा लीटर पानी में औटाकर गुनगुना - गुनगुना पिलाना चाहिए ।


३ - पेट में अफारा आना ( पेट फूलना )
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कारण व लक्षण - इस रोग को पशुपालक अत्यन्त साधारण बिमारी समझते है , जबकि यह अत्यन्त ही भयंकर प्राणनाशक बिमारी है । कभी - कभी तो इस रोग में कई - कई पशु एक साथ कुछ घन्टो में ही मर जाते है और पशुपालक को अपने पड़ोसियों पर ही शक हो जाता है कि किसी ने इन्हें ज़हर दें दिया है ।

प्राय: ग्रीष्म - ऋतु में या अकाल पीड़ित क्षेत्रों में पशुओं को भर पेट चारा न मिलने के बाद , बरसात ऋतु में जब नई घास चरने को मिलती है तो वे स्वाद - स्वाद में अधिक खा जाते है , सडीगली व ज़हरीली घास भी होती है तथा कभी- कभी पशु खुटे से खुलकर अनाज के डेर पर जाकर अधिक अनाज खा जाता है ।तदुपरान्त पानी पीने पर वह पेट में पड़ी चींजे फूलने लगती हैं तब पशु का अमाशय उन्हें पचाने में असमर्थ हो जाता हैं , जिसके स्वरूप वें पेट में पड़ी चींजे सड़ने लगती हैं । जिससे पेट में विषैली गैस बनती है और वह गैस उपर उठकर हृदय तथा फेफड़ों के काम में रूकावट पैदा कर देती है जिससे पशु का पेट फ़ुल जाता है और अफारा आ जाता है । यदि दूषित गैस को शीघ्र नहीं निकाला जाये तो और रोगी पशु कुछ घन्टो में ही मर जाता है और हाँ कंभी-कभी पशु को चारा खिलाकर तुरन्त ही जोत देने से सर्दियों में अधिक जोतने व गर्मी में बहुत दौड़ाने से अपानवायु बन्द हो जाने पर या जूगाली बन्द होने पर तथा बदहजमी हो जाने पर यह रोग हो जाता है । उपरोक्त सभी कारणों से पेट फूलने पर , फूले हुए पेट पर अंगुली मारने पर ढब- ढब की आवाज़ आती है पशु को श्वास लेने में कठिनाई होती है तथा जूगाली बन्द हो जाती है , कभी-कभी पेट में तनाव हो जाता है तथा पेट में दर्द हो जाता है, या मलावरोध हो जाता है, पशु को श्वास लेने में बैचनी हो जाती है समय पर चिन्ता न होने पर पशु की मृत्यु हो जाती हैं ।

# - इस रोग में पशु के पेट में भरी गैस निकालना अतिआवश्यक है जिसके लिए नीचे लिखी औषधियों में से किसी एक का प्रयोग किया जा सकता है ।

१- औषधि - खाने वाला सोडा ५ तौला, नौसादर पावडर ४ तौला , लेकर आधा लीटर गरम पानी में घोलकर पिलायें ।

२- औषधि - सरसों , अलसी , या तिल का तेल ३ पाँव , तारपीन का तेल २ तौला , - इन दोनों को मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ मिलता है ।

३- औषधि - सोंठ पावडर आधा छटांक , कालीमिर्च पावडर डेढ़ तौला , देशी शराब आधा पाँव सभी को मिलाकर पशु को पिला दें । दस्त आकर पेट का मल तथा गैस बाहर निकल जायेगी पशु को आराम आयेगा ।

४- औषधि - कालानमक पावडर १२५ ग्राम , सरसों या अलसी का तेल ५०० ग्राम , मिलाकर नाल द्वारा पशु को पिलाने से लाभ मिलता है ।

५- औषधि - कालानमक पावडर व २ तौला , अजवायन पावडर २ तौला , कच्चा आम चटनी २ छटांक लेकर आपस में मिलाकर गरम पानी में घोलकर पशु को नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है ।

६- औषधि - आम का अमचूर आधा पाँव गरम पानी में ख़ूब घोटकर गरमागरम नाल से पिलाने से तुरन्त आराम मिलता है तथा प्रभावकारी रहताहैं ।

७- औषधि - राई बारीक पीसकर १० तौला, आधा लीटर गरम पानी में मिलाकर - घोलकर नाल द्वारा पिलाना लाभकारी रहता हैं ।

८- औषधि - सोंठपावडर २ तौला , हींग ६ माशा , सादा नमक १० तौला , कालीमिर्च पावडर २ छटांक ,तारपीन तेल २ छटांक , सबको गरम पानी में घोलकर कर नाल द्वारा पिलाना गुणकारी होता है ।


# - बदहजमी के कारण अफारा होने पर इस प्रकार से इलाज करना चाहिए -
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१ - औषधि - गाय का घी २०० ग्राम , १ लीटर गाय , गाय के घी को गरम करके दूध में मिलाकर गुनगुना- गुनगुना नाल से पिलाने पर आराम आता है ।

२ - औषधि - आम की मुलायम पत्तियाँ २० ग्राम , अथवा आम का फूल बारीक पीसकर पानी में मिलाकर नाल द्वारा पिलाना गुणकारी होता हैं ।

३ - औषधि - मेंहन्दी के पेड़ के ताज़ा पत्ते १०० ग्राम , अमरूद की जड़ की छाल १०० ग्राम , कालीमिर्च पावडर १० ग्राम ,मेहन्दी पत्ते व अमरूद जडछाल को बारीक पीसकर चटनी जैसी पीसकर उसमें कालीमिर्च पावडर डालकर सिरके में मिलाकर लेप बनाकर पेट पर लगा देना लाभकारी रहता हैं ।

४ - औषधि - पशु के नासिका मार्ग से २५० ग्राम सरसों तेल , कालानमक ५० ग्राम मिलाकर पिलाने से इस रोग में तुरन्त लाभ होता हैं ।

५ -औषधि - देशीशराब १२० ग्राम , सौँफ १२ ग्राम , ८-९ कालीमिर्च , कालीमिर्च व सौँफ को गरम पानी ६० ग्राम गरम पानी में पकाकर गुनगुना करके शराब मिलाकर नाल द्वारा पिलानें से आराम आता है ।

६ - औषधि - सादानमक पावडर ५० ग्राम , सोंठ पावडर ५० ग्राम , मुसब्बर ५० ग्राम , देशीशराब २५० ग्राम , अलसी का तेल २५० ग्राम , १ किलो तेज गरम पानी में मिलाकर, गुनगुनाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभकारी होता हैै ।

# - सर्दियों में पशुओं से अधिक मेहनत कराने पर पैदा हुए रोग का उपचार -
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१ - औषधि - यदि सर्दी लगने से पेट में सूजन हो तो - सरसों का तेल बड़े पशुओं को आधा लीटर व छोटे पशुओं को २५० मिली लीटर की मात्रा में मदार का फूल या सोंठ २ तौला , आवश्यकतानुसार गरम पानी मे मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभकारी रहता है ।

२ - औषधि - कुटकीपावडर १ तौला , पीसा हुआ लहसुन २ तौला , कालाजीरा पावडर १ तौला , आवश्यकतानुसार गरम पानी में डालकर ,घोटकर नालद्वारा पिलाने से लाभ मिलता है ।


# - वायु बन्द होने पर पैदा रोग का इस विधी से उपचार करे -
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कारण व लक्षण - वायु बन्द अर्थात कभी-कभी हवा खुलती है या दर्द जैसा होता है ,इसी को पशुओं की वायु बन्द होना कहते है । ऐसी िस्थति में नीचे लिखी दवाओं के द्वारा उपचार कर सकते हैं -

१ - औषधि - हुक्के का पानी २ लोटा , २ तौला पीने का तम्बाकू पावडर घोलकर नाल द्वारा पिलायें।
२ -औषधि - अरण्डी का तेल २५० ग्राम , २५० मिली लीटर गरम पानी में मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ मिलता हैं ।
३ - औषधि - गाय का दूध गरम १ लीटर , गाय का घी २५० ग्राम , में मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है ।
४ - औषधि - हुक्के का जल १ लीटर , कलमीशोरा १० ग्राम , पीने का तम्बाकू पावडर १० ग्राम , मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभँ होता है । ये दवाये प्रत्येक प्रकार की बदहजमी में हितकर है इन्हें नि :सकोंच दें सकते है ।
# - गर्मीयो में पशु के अधिक दौड़ने के कारण से पशु का पेट फूल जाता है -
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कारण व लक्षण - इस रोग में बिमार पशु बार- बार गुदामार्ग को खोलता है और बन्द करता है जिससे थोड़ी- थोड़ी वायु निकलती रहती है और बाक़ी रूकी रहती है । इस रोग में वायु बन्द वाली दवाये भी दें सकते है यदि किसी दवा से लाभ नहीं हो रहा है तो पशु को एनिमा देकर भी पेट साफ़ कर सकते है ।

१ - औषधि - मेहन्दी के पत्तों को उबालकर छानकर पानी को पिलाने से लाभ होता है ।


८ -- औषधि - सफ़ेद ज़ीरापावडर २ तौला , धनियाँ पावडर २ तौला , जौ का आटा २५० ग्राम , पानी में मिलाकर पिलाने से लाभँ होता है ।
इस रोग में खाना पीना उस समय तक नहीं देना चाहिए जब तक अफारा ठीक न हो जाये । बल्कि ठीक होने पर भी २४ घन्टे तक पशु को भूखा रखे , फिर हल्का सुपाच्य भोजन देना चाहिए । पशु धीरे- धीरे टहलाकर शेष पूरे समय आराम करने देना चाहिए ।

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४ -औषधि - गाय - भैंस व अन्य पशुओ को क़ब्ज़ व अफारा -- ऐसे में पशु का पेट फूल जाता है और पेट पर हाथ मारने से पेट से ढप -ढप की आवाज़ आती है ,पशु घास खाना छोड़ देता है । जूगाली भी बन्द कर देता है ।एसे में हरा कसीस ५० ग्राम , साल्ट ( नमक ) ५० ग्राम , हीरा हींग १० ग्राम , बड़ी पीपल १५ ग्राम , सभी दवाईयों को कूटकर पाँच खुराक बना लें । २५० ग्राम गाय का दूध लेकर उसमें १०० ग्राम पानी को मिलाकर उबाल लें , फिर ठंडा करके तेज मीठा कर लें , तब एक खुराक उपरोक्त दवाईयाँ मिला कर दें ।
अगर ज़रूरत पड़े तो ७-८ घन्टे बाद दूसरी खुराक दें, आवश्यक होतों पाँच खुराक या ९ खुराक पाँच-पाँच घन्टे बाद देवें , ९ से ज़्यादा खुराक न दें दवा नुक़सान करेगी । तथा क़ब्ज़ या अफारा टूटने पर दवाई न दें ।

५ -औषधि - दर्द व अफारा -- इस बिमारी में गाय -भैंस व अन्य पशु जब बिमार होता है तो वह पिछले पैर को ज़मीन में बार - बार मारती रहती है । ऐसे मे कालानमक १० ग्राम , अजवायन ५ ग्राम , दूधिया हींग ५ ग्राम , खाने का सोडा १० ग्राम,सभी दवाओं को कूटपीसकर पशु के मूंह को खोलकर उसकी जीभ पर रगड़ने से ठीक होता है।

#~ आधा लीटर सरसों का तैल पिलाने से भी अफारा टूट जाता है ।



६ - गर्मी की दवा
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कारण व लक्षण - गर्मी अधिक होने से यह बीमारी होती है । बाहर की गर्मी द्वारा यह बीमारी अधिक होती है । जेठ मास की गर्मी से भी यह बीमारी फैलती है , किन्तु क्वार की गर्मी का प्रभाव रहता है ।
पशु का दम घुटने लगता है । वह अस्वस्थ हो जाताहै । भैंस को क्वार में पानी में लौटने की ज़रूरत पड़ती हैं ,क्योंकि , अधिक गर्मी के कारण वह दूध देना कम कर देती है । गर्मी के कारण यह बीमारी पशु को होती है और पशु का दम घुटने लग जाता है । इस गर्मी से बचाने के लिए पशु को छाया में रखना चाहिए ।

१ - औषधि - गाय के दूध से बनी दही १६८० ग्राम , गुड़ या शक्कर ४८० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा २४० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , गँवार पाठे का गूद्दा निकालकर दही में मथकर शक्कर और पानी मिलाकर रोगी पशु को रोज सुबह , अच्छा होने तक , पिलायें ।

२ - औषधि -गाय का दूध ९६० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा २४० ग्राम , गाय का घी १२० ग्राम , गँवारपाठा का २०० ग्राम गूद्दा निकालकर , एक लीटर दूध में मिलाकर गुनगुना करके गरम होने पर रोगी पशु को रोज़ाना आराम होने तक दिया जाय ।

आलोक-:- रोगी पशु को शीशम की पत्तियों और जलजमनी और हरी घास खिलानी चाहिए और गर्मी से बचाना चाहिए ।

३ - औषधि - अलसी का आटा ९६० ग्राम , पानी १५०० ग्राम , अलसी के आटे को उपर्युक्त मात्रा में पानी मिलाकर रोगी पशु को सुबह- सायं ,अच्छा होने तक देना चाहिए । उपर्युक्त मात्रा केवल एक खुराक की है ।

आलोक -:- कभी- कभी मादा पशु चार महीने ब्यायी हुई होने पर भी गर्मी के कारण दूध देना बन्द कर देती है तो ऐसा होने पर उसे ३४० ग्राम गाय का घी देने से वह दूध देने लगती है। यह मात्रा एक खुराक की है । इसे ४-५ दिन तक देना चाहिए ।

४ - जब गाय का घी न हो तो ३५० ग्राम , अलसी का तैल पिलाना चाहिए । इससे भी मादा पशु दूध देने लग जाती है । यह मात्रा एक खुराक की है ।

७ - क़ब्ज़ रोग , मलावरोध ( Constipation )
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कारण व लक्षण - यदि किसी अन्य रोग के उपलक्ष्ण स्वरूप यह रोग हूआ हो तो मूल बिमारी की चिकित्सा करनी चाहिए , कभी - कभी मूलरोग करने के साथ किये गये उपचार के साथ ही मलावरोध को दूर करने के लिए भी अलग से औषधि देनी होती है ।
# - देशी आयुर्वेदिक इलाज के अन्तर्गत - क़ब्ज़ या दूर करने के लिए पशु को रेचक ( दस्तावर ) दवा देकर पेट साफ़ करा देना चाहिए , यह लाभकारी सिद्ध होता है । आगे कुछ औषधियों का वर्णन कर रहे है जो रेचक व कब्जनाशक होती है -

१ -औषधि - अलसी का तेल या अरण्डी का तेल १० छटांक , में सोंठ पावडर २ तौला , मिलाकर पशु को पिलाने से खुलकर दस्त हो जायेगा वह पशु ठीक हो जायेगा ।

२ - औषधि - अमल्तास का गूद्दा ढाई तौला , सौँफ २ छटांक लेंकर कूटपीसकर २५० ग्राम गुड के शीरे में मिलाकर पशु को गुनगुने पानी में मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है । इस दवाई को पशुओ के बच्चों को भी दें सकते है ।

३ - औषधि - शुद्ध ऐलवा १ तौला , सोंठ १ तौला , कूटपीसकर २५० ग्राम तेल या गुड़ के शीरे में मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभकारी होता हैं ।

४ -औषधि - तिल या सरसों का तेल ५०० ग्राम , तारपीन तेल डेढ़ छटांक , दोनों को मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लांभकारी होता है ।

५ -औषधि - कालानमक पावडर ५०० ग्राम , सोंठपावडर २ तौला , आधा लीटर गुनगुने पानी में मिलाकर पिलाने से लाभकारी होता हैं ।

# - यदि इन सब उपायों से लाभ न हो तो पशु को एनिमा देकर पेट साफँ कर देना चाहिए ।


८ - आवँ , पेचिश , मरोड़ , ख़ूनी दस्त ( Dysentery )
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कारण व लक्षण - यह एक अत्यन्त कष्टप्रद रोग है , इससे पशु के पेट में मरोड़ें उठती है तथा दर्द के साथ ख़ून व आवं मिला हुआ गोबर करता है ।
इस रोग की उत्पत्ति का कारण पेट में एक विशेष कीड़े का उत्पन्न होना है , जोकि पशुओं द्वारा सड़ी - गली चीज़ें खा लेने अथवा अधिक दिनों तक दस्त होते रहने पर हो जाता है । कभी - कभी यह रोग सर्दी - गर्मी के तीव्र प्रभाव के कारण भी हो जाता है । भोजन की ख़राबी के कारण तथा अमाशय एवं पाचन सम्बन्धी विकार के कारण यह रोग उत्पन्न होता है । किन्तु ध्यान रखें कि - अखाद्य पदार्थ सेवन करने से या अधिक खा लेने आदि किसी भी कारण से रूधिरातिसार हो रहे हो , किन्तु जलवायु का प्रभाव अवश्य पड़ता है । इस रोग के कई नाम हैं - आवँ पड़ना , रक्तमाशय, पेचिश , मल पड़ना , दस्त में ख़ून पड़ना , मरोड़ आदि ।
लक्षण :- बार - बार आवँ पड़ना अथवा ख़ून मिला गोबर करना , इस रोग का मुख्य लक्षण है , पशु के पेट में तेज़ मरोड़ उठती है , वह बेचैन होकर इधर - उधर चक्कर काटता रहता है तथा कभी - कभी शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है गोबर के साथ गोबर की कड़ी - कड़ी गाँठे भी आती है , गोबर करते समय रोगी पशु इतना ज़ोर लगाता है , कि उसकी काँच बाहर निकल आती है , कलेजे में भी विकार पैदा हो जाने के कारण प्राय: पशु के मूंह की खाल या आँखों के पपोटे तथा शरीर की खाल पीली पड़ जाती है , पशु का गोबर दुर्गन्ध भी रहती है , उसके शरीर के रोये खड़े रहते है , पशु चारा ठीक से नहीं खा पाता है , दरअसल में रोगी पशु हर समय गोबर करने की इच्छा करता है किन्तु थोड़ी - थोड़ी मात्रा में ही मल त्याग हो पाता है ।

चिकित्सा :- प्रारम्भ में पशु के दस्त एकदम रोकने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए , बल्की पेट का विषैला अंश निकाल देना चाहिए , १-२ दिन के बाद जब पेट की गर्मी कम हो जायें तब इन दवाओं का उपयोग कर रोगी पशु का उपचार करके अधिक से अधिक आवँ निकालना चाहिए ।

१ - औषधि - अरण्डी या अलसी का तेल ५०० ग्राम , सौँफ पावडर १ छटांक , बेलगिरी पावडर २ तौला , इनको मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से आवँ बाहर आकर पेचिश ठीक हो जाती है ।

# - जब दस्त ख़ूब हो ओर आवँ भी काफ़ी निकल जाये तब ये दवाये कामयाब सिद्ध होगी -

२ -औषधि - चूने का पानी आधा लीटर , बबूल का गोंद २ छटांक , अफ़ीम २ माशा , गोंद व अफ़ीम को किसी कटोरी में भलीभाँति घोल लेना चाहिए फिर चूने वाले पानी में डालकर पिला देना चाहिएँ ।

३ - औषधि - सफेदा काशकारी २ माशा , अफ़ीम ३ माशा , शैलखडी २ तौला , बेलगिरी २ तौला , लेकर सभी को बारीक पीसकर चावलों के माण्ड में घोलकर पशु को पिला दें ।यह दवा पेट की मरोड़ तथा दस्तों को रोकती हैं तथा पेट से निकलने वाले ख़ून को भी बन्द कर देती है ।

४ - औषधि - पीपल के पेड़ की छल पावडर या बेरी के पेड़ की छाल का पावडर २ तौला , मेहन्दी पावडर २ तौला , सफ़ेद ज़ीरा पावडर २ तौला , देशी कपूर ३ माशा , धतुराबीज पावडर २ माशा , आवश्यकतानुसार चावल के माण्ड को लेकर सभी को आपस में मिलाकर ( गायक दूध से बनी छाछ ) भी लें सकते है , इससे पशु की ख़ूनी पैचीश व दस्त बन्द हो जायेंगे ।

५ -औषधि - भाँग , कपूर , मेहन्दी , सफ़ेद ज़ीरा , और बेलगिरी , प्रत्येक १-१ तौला लेकर सभी को कुटपीसकर आधा किलो चावल का माण्ड में मिलाकर पिलायें ।
६ - सुखा आवंला पावडर २ तौला , सोंठ पावडर १ तौला , खाण्ड या बताशे २ तौला , आधा लीटर पानी में घोलकर नाल द्वारा पिलायें ।

७ - औषधि - किसी बड़े बर्तन में चार लीटर पानी को ख़ूब खोलाये , जब पानी उबल जाये , तब उसे नीचे उतारकर उसमें थोड़ा तारपीन का तेल डाल दें इसके बाद कम्बल का एक टुकड़ा उसमें तर करके तथा निचोड़कर उससे पशु के पेट पर सेंक करें । जब तक पानी गरम रहे , इसी प्रकार सेंक करते रहना चाहिए ।

# - इस रोग के इलाज में सर्वप्रथम जुलाब ( सरसों का तेल और सोंठ ) देना चाहिए , तदुपरान्त दवाई करनी चाहिए । यह भी स्मरणीय है कि ग्रीष्म - ऋतु में आंव पेचिश की दवायें कुछ और ही होती है और शरद ऋतु में कुछ और । अत: आवँ की दवा करते समय ऋतुकाल का विचार करना आवश्यक है ।

८ - औषधि - पैचिस -यदि पैचिस हल्की होतों दो टी स्पुन फिटकरी पीसकर रोटी में रखकर दें दें।यह खुराक सुबह-सायं देने से २-३ दिन में ठीक होता है

९ - औषधि - पैचिस यदि तेज़ हो और बदबूदार हो-- ऐसी स्थिति में किसान को हींगडा १ तौला लेकर चार खुराक बना ले , एक खुराक रोटी में रखकर या गुड़ में मिलाकर दें । बाक़ी खुराक सुबह- सायं देवें ।

#~ ध्यान रहे बिमारी की अवस्था में पशु को खल का सेवन न कराये ।


१ - ग्रीष्मकालीन उपचार :-
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१ -औषधि - गाय के दूध की छाछ आवश्यकतानुसार , बेलगिरी पावडर २ तौला , मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है ।

२ - औषधि - ख़ूनी आंव मे चौलाई की जड़ १२५ ग्राम , पीसकर गाय के दूध की छाछ में मिलाकर पिलायें ।

३ -औषधि - बेल का शर्बत ( कच्चा बेल होतों उसे भूनकर और पका बेल हो तो उसका २५० ग्राम गूद्दा , पशु को देने से लाभ होता है ।

४ - औषधि - भांग पावडर १० ग्राम , कतीरा २० ग्राम , और गुड ५० ग्राम , लें । पहले कतीरा को पानी में भिगोकर फुला लें , फिर भांग को बारीक पीसकर गुड़ मिलाकर तथा उसी में कतीरा डालकर रोगी पशु को पिलावें ।

५ -औषधि - रात को पानी में भिगोई गयी इश्बगोल में प्रात: काल दागनी मात्रा में मिश्री घोलकर पिलायें ।

६ - औषधि - रात को सोते समय मिट्टी के पात्र में २५० ग्राम , के लगभग आँवले भिगोकर प्रात: काल उसके जल में २० ग्राम , धनियाँ पावडर ५०० ग्राम , गाय के दूध से बनी दही को मथकर रोगी पशु को पिलाने से लाभकारी होता है ।

७ -औषधि - बेल व शीशम तथा बबूल की पत्तियों को कूटपीसकर लूगदी को चावलों के माण्ड या गाय के दूंध से बनी छाछ में मिलाकर इसके उपर भूनें ज़ीरा पावडर को बुरक कर पशु को पिलाना चाहिए । यह गुणकारी योग है ।

२ - शीतकालीन उपचार :-
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१ - औषधि - धतुरा के बीज का पावडर ३ माशा , या अफ़ीम , और खडिया मिट्टी पावडर २० ग्राम , कत्था पावडर २० ग्राम , चावल का माण्ड ५०० ग्राम , में मिलाकर २-३ बार में रोगी को पिलायें ।

२ - औषधि - धतुरा बीज पावडर ५ ग्राम , कपूर पावडर ८ ग्राम , और देशी शराब १२० मिली लेकर इन सबको चावल के माण्ड में मिलाकर पशु को पिलायें ।

३ - औषधि - सोंठ पावडर २० ग्राम , आँवला पावडर २० ग्राम , खाण्ड २० ग्राम , में मिश्रित करके आधा लीटर जल में घोलकर छान लें और रोगी पशु को पिलाये ।


९ - पतले दस्त , अतिसार ( Diarrhoea )
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कारण व लक्षण - यह रोग पेचिश से भिन्न होता है। पेचिश पशु को दस्त के साथ आंव अथवा ख़ून मिला होता है । किन्तु इस रोग में केवल पानी जैसे पतले दस्त ही आते है , आंव अथवा ख़ून नहीं और न ही इसमें पेचिश की भाँति पेट में मरोड़ उठती है ।
अधिक गर्मी - सर्दी लगने से तथा पेचिश से बदहजमी से व गन्दा पानी पीने से या खाने - पीने के पदार्थों से हो जाता है और अधिक परिश्रम करने के पश्चात् एक साथ ठण्डा पानी पीने से भी दस्तातिसार हो जाता है। प्राय: शीतकाल या गर्मी के बाद सहला ठण्डी वायु लगने से भी यह रोग हो जाता है । विषम जलवायु में प्रवेश करना भी एक कारण हो जाता है ।
प्राय: यह रोग अजीर्ण अथवा अपच के कारण ही होता है । सडा- गला खाना या गन्दा पानी पीने के कारण या अधिक भारी व रूखी वस्तुएँ खाने के कारण व जुगाली करने का समय न मिलने के कारण , तारा खिलाकर तत्काल जोत देने के कारण पशु को अजीर्ण होकर दस्त आने लगते है । और पेट में कीड़े होने के कारण भी यह रोग हो जाता है ।
लक्षण :-
इस रोग में पशु बार- बार गोबर करता है किन्तु इसमें रक्तातिसार की तरह ख़ून नहीं होता है । रोगी पशु थकावट सी मैहसुस करता है और वह जूगाली नहीं करता है और करता है बहुत थोड़ी करता है ।
जिसके कारण से यह रोग होता है उसी के अनुसार लक्षण प्रकट होते है जैसे कि- पेट के कर्मियों से उत्पन्न रोग में दस्तों के साथ कीड़े निकलते है । घास अधिक खा जाने पर पशु हरा - हरा पतला गोबर करता है । भारी व रूक्ष वस्तुऐ खा जाने पर दस्ते में उन चीज़ों के साबुत टुकड़े निकलते है , पशु की भूख नष्ट हो जाती है । वह खाना व जूगाली बन्द कर देता है । पानी की प्यास बढ़ जाती है व शरीर की खाल सुखने लगती है । अधिक दस्त होने से पशु अधिक कमज़ोर हो जाता है ।

सर्दी से उत्पन्न अतिसार के लक्षण :-
पेट बोलता है प्यास नहीं लगती है शरीर ठण्डा रहता है , गोबर से दुर्गन्ध आती है , पशु पानी नहीं पीता है ।
इसमें पशु को हल्का ओर हरा चारा देना चाहिए , ताज़ा पानी पिलाना चाहिए , २-१ दिन का उपवास कराना चाहिए । दस्त होने के बाद अलसी व चावल का माण्ड खिलाना चाहिए ।

१ - औषधि - अलसी , तिल , अरण्डी , या सरसों का तेल आधा शेर में सौँफ आधा छटांक मिलाकर पशु को पिला देने से आँतों की ख़राश दूर होकर दस्तों में लाभ होता है । पानी के स्थान पर चावल का माण्ड पिलाने से ज़्यादा लाभ होता है ।

२ - औषधि - सोंठ , ज़ीरा , ढाककणी - प्रत्येक सवा - सवा तौला , भांग आधा तौला , सभी दवाओं को पीसकर आधा किलो चावल के माण्ड में मिलाकर पिला देना चाहिए । दस्त रूक जायेंगे ।

३ - औषधि - अजवायन २ तौला , कत्था २ तौला , सौँफ ३ तौला , सभी को कुटपीसकर चावल का माण्ड आधा किलो लेकर आपस में मिलाकर पशु को पिला देना चाहिए ।

४ - औषधि - मोचरस २ तौला , अनार के पेड़ की छाल २ तौला , सफ़ेद ज़ीरा २ तौला , और अफ़ीम डेढ़ माशा , चावल का माण्ड आधा किलो , सभी को कुटपीसकर चावल के माण्ड में मिलाकर पिलाने से दस्त अवश्य रूक जायेंगे ।

५ -औषधि - सेलम खडिया सवा तौला , बेलगिरी ५ तौला , दोनों को कुटपीसकर आधा लीटर पानी में मिलाकर पिलाने से लाभँ होता है ।

६ - औषधि - खडिया मिट्टी १ छटांक , सोंठ २ तौला , कत्था आधा तौला , भांग १ तौला , धतुरा बीज ३ माशा , सभी को कुटपीसकर कर आधा किलो चावल के माण्ड में मिलाकर पशु को पिलाऐ , लांभ होगा ।

७ - औषधि - सफ़ेद ज़ीरा १ तौला , कत्था १ तौला , जायफल ६ माशा , कपूर १ माशा , अफ़ीम १ माशा , रसौत १ माशा , सभी को कुटपीसकर आधा किलो चावल के माण्ड में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

८ - औषधि - नीला थोथा फुला ३ माशा , फिटकरी फुला ३ माशा , पीसकर आधा किलो चावल के माण्ड में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

९ - औषधि - भूना कसीस ४ माशा , मोचरस १ तौला , पीसकर चावल के माण्ड के साथ देने से पुराना दस्त भी ठीक हो जाता है ।

१० - औषधि - सोंठ १५ ग्राम , चिरायता १५ ग्राम , कालीमिर्च १५ ग्राम , अजवायन १५ ग्राम , नमक १ छटांक , भूना कसीस पावडर डेढ़ माशा , कुटपीसकर चावल के माण्ड में मिलाकर नित्य पशु को कुछ दिनों तक पिलाने से पशु के दस्त रूक जाने के बाद पशु की कमज़ोरी दूर हो जाती है , इस दवाई को शकि्तवर्धक टेनिस के रूप में प्रयोग कर सकते है ।

११ - औषधि - काला नमक , सोंचर नमक , सैंधा नमक , सांभर नमक , जवाॅखार , सज्जी , हरड़ , बहेड़ा , आवंला , हल्दी , छोटी हरड़ , सफ़ेद ज़ीरा , काला ज़ीरा , भांग , देवदारू , कालीमिर्च , पीपल , पीपरामूल , मूली का बीज , सोया का बीज , बायबिड्ंग , शतावर । नागोरी , अश्वगन्धा , सोंठ , अजवायन , अजमोदा , सहजन की छाल , सभी को सममात्रा में लेकर कूटपीसकर तथा छानकर चूर्ण बनाकर रख लें सर्दी से उत्पन्न अतिसार से ग्रस्त पशु को २-२ तौला प्रतिदिन खिलाने से लांभ होता है ।

# - गर्मी से उत्पन्न अतिसार में निम्नांकित योगों का सेवन लाभकारी होता है :-

१ - औषधि - कतीरा १ छटांक , सायं के समय पानी में भिगोकर रख दें और फूल जाने पर २५० ग्राम जौ का आटे में मिलाकर रोगी पशु को खिलाने से लाभ होता है ।

२ -औषधि - सफ़ेद ज़ीरा १ तौला , धनिया १ तौला, और भांग आधा छटांक , सभी को पीसकर २५० ग्राम , जौ के आटे में मिलाकर रखें और पानी में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

३ - औषधि - जामुन की गुठली १ तौला , आम की गुठली १ तौला , इनको पीसकर २५० ग्राम जौ के आटे में मिलाकर खिलाना लाभप्रद होता है ।

४ - औषधि - अलसी के बीज पावडर २५० ग्राम , जौ का आटा २५० ग्राम , बेलगिरी पावडर १२५ ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ १ लीटर , आपस में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

# - पेचिश से उत्पन्न अतिसार में निम्नांकित योग लाभप्रद हैं :-

१ - औषधि - कच्चे बेल को भूनकर गूद्दा निकालकर ५०० ग्राम , और गुड २५० ग्राम , लेकर तथा इन्हें मिलाकर सुबह सायं खिलाने से लाभ होता है ।

२ - औषधि - बेल की पत्तियाँ पीसकर गाय केदूध से बनी । छाछ मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

३ - औषधि - चौलाई की जड़ का पावडर २५० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ में मिलाकर देने से लाभ होता है ।

४ - औषधि - खडिया मिट्टी ५ तौला , सोंठ पावडर १ तौला , कत्था ६ माशा , भांग १ तौला , धतुरा बीज ३ माशा , सभी को कुटपीसकर आधा किलो माण्ड में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।

# - बदहजमी से उत्पन्न अतिसार में निम्नांकित योग विषेश गुण कारी रहते है :-
सर्व प्रथम जूलाब दें । इससे रोगी का पेट साफ़ हो जायेगा ।

१ - औषधि - जूलाब :- अरण्डी तेल आधा किलो ( बड़े पशु के लिए ) या ( एक पाँव छोटे पशु के लिए ) सोंठ आधा छटांक , तथा सरसों का तेल २५० ग्राम , मिलाकर पशु काे सेवन कराये । जूलाब के बाद ये दवाइयाँ देकर उपचार करें ।

२ - औषधि - बेल का गूद्दा आधा किलो , पुराना गुड २५० ग्राम , १ किलो पानी में डालकर शर्बत बनाकर पशु को पिलाना चाहिए ।
३ -औषधि - सोंठ १ तौला , दूधिया हींग ५ ग्राम , आधा किलो चावल के माण्ड में मिलाकर देवें ।

# - रक्तातिसार ( रूधीर पोंकें ) गर्मी से पोंकें में निम्नांकित याेग लाभकारी है :-

१ - औषधि - धनियाँ पावडर २ तौले , सेंधानमक पावडर २ तौला , जौ का आटा २५० ग्राम , सभी को आपस में मिलाकर पशु को खिलाने से लाभकारी सिद्ध होता है ।

२ -औषधि - बबूल का गोंद २ तौला , गोंदकतीरा २ तौला , इन्हें पानी में भिगो दें । फूल दाने पर जौ का आटा २५० ग्राम में मिलाकर पिण्ड बनाकर खिलायें । इस प्रयोग से रूधीर दस्त बन्द हो जाते है ।

# - दस्तों में पशु को हरा चारा, दाना , देना बिलकुल बन्द कर देना चाहिए , केवल अलसी की चाय अथवा चावल का माण्ड ही देवें । पानी में बेल का गूद्दा या बबूल के पत्ते औटाकर छानकर पिलायें । साथ ही पशु को सर्दी - गर्मी धूप , बरसात , ठण्डी , हवा से बचाकर रखें ।पशु के दस्तों को तत्काल साफ़ करते रहे । उसके बाँधने का स्थान स्वच्छ व किटाणुरहित होना चाहिए ।


१० - बदहजमी या अपच ( Indigetion )
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कारण व लक्षण :- गन्दा , सड़ा- गला अथवा सूखा चारा आदि खाने- पीने के के कारण प्राय: पशुओं को बदहजमी हो जाती है उनका मेदा ( अमाशय ) ठीक काम नहीं करता तथा उसमें खाना पचाने की शक्ति नहीं रह जाती है । कभी - कभी पेट में कीड़े हो जाना या पट्ठों की दुर्बलता भी इस रोग की उत्पत्ति का कारण होता है ।
पशुओं से अनियमित ढंग से काम लेना किसी दिन १०-१२ घन्टे काम लेना तो किसी दिन काम न लेना यह भी अपच के प्रधान कारणों में से एक कारण है ।
इस रोग में रोगी पशु की पाचनक्रिया दूषित हो जाने से भोजन का पौष्टिक अंश ठीक प्रकार से न मिलने के कारण पशु दिन- प्रतिदिन दूबला होता जाता है् , भूख बन्द हो जाती है और प्यास बढ़ जाती है , कभी - कभी पशु मिट्टी भी चाटने लगता है । जूगाली नहीं करता , क़ब्ज़ तथा अफारा भी कभी - कभी हो जाता है , मूहँ मे काँटे पड़ जाते है तथा गोबर रंगबिरगां पतला थोड़ा तथा कष्टपुर्वक निकलता है ,पशु उदास सा रहता है ।


चिकित्सा - पेट सम्बन्धी सभी रोगों में प्राय: हल्का जूलाब देना लाभप्रद होता है । अत: इस रोग में भी पशु के पेट से बिना पचा भोजन निकालने के लिए निम्नांकित में से एक विरेचन देकर रोगी पशु को थोडें से दस्त करा देना आवश्यक तथा लाभकारी है ।


१ - औषधि - अरण्डी का या सरसों का तेल १२५ ग्राम , सोंठ या छोटी पीपल पावडर २ तौला , दोनों को मिलाकर नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है ।

२ - औषधि - सरसों का तेल ८ छटांक , तारपीन तेल आधा छटांक , भूनी हूई हींग ६ माशा , सभी को आपस में मिलाकर पशु को नाल द्वारा पिलायें , यह जूलाब थोड़ा तेज़ है परन्तु पेट के कीड़ों को मारता है तथा जमा हूआ मल निकालकर बदहजमी को दूर करता है ।

# - उपरोक्त जूलाब देकर जब पेट साफ़ हो जायें तब बाद में निम्नांकित दवायें देना लाभकारी रहता है --

१ - औषधि - सोंठ पावडर १ तौला , राई पावडर १ तौला , अजवायन २ तौला ,काला नमक डेढ़ तौला , तथा हींग भूनी हूई पावडर ६ माशा , लें ।सभी को आपस में मिलाकर २५० ग्राम गरम पानी के साथ पिलादें ,और दवा देने के दो घन्टे तक पानी नहीं पिलाना चाहिए ।

२ - औषधि - कालानमक पावडर २ तौला , नौसादर पावडर १ तौला , कसीस पावडर ६ माशा , कुचला पावडर ३ माशा , कुचला न हो तो भांग पावडर १ तौला , सभी को आपस में मिलाकर आधा लीटर गरम पानी में मिलाकर पशु को नाल द्वारा पिलाने से लाभ होता है ।

# - हल्का तथा थोड़ा - थोड़ा खाना पशु को दिन में कई बार देना चाहिए । अलसी का दलिया , चोकर का दलिया , चावल का माण्ड आदि देना विशेषकर लाभकारी होते हैं , पशु को भूख लगने तक थोड़ा - थोड़ा हरा चारा भी दें ।

११ - दस्त ( छेरा )
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१ - औषधि - गाय - भैंसों या अन्य पशुओं मे छेरा ( दस्त ) -- दस्त होने पर मोचरस १५० ग्राम , इश्बगोल भूसी ५० ग्राम , कतरन कत्था ५० ग्राम , इन दवाईयों को कूटछानकर २५-२५ ग्राम की खुराक बना लें । एक खुराक को २५ ग्राम शराब व २५० ग्राम गाय के दूध की दही मिलाकर दोनों समय नाल से पिला दें ।

१२ - छेरा मरोड़ा दस्त
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कारण व लक्षण - छेरा मरोंडा ( दस्त ) पशु के पेट मे घरड- घरड की आवाज़ आती है --

१ - औषधि - इश्बगोल बीज २५० ग्राम , इश्बगोल भूसी ५० ग्राम , माई १०० ग्राम , कत्था पपड़ियाँ ५० ग्राम , हरड़ छोटी १०० ग्राम ,इन सब दवाओं को कूटछानकर ५०-५० ग्राम , की खुराक बना लें । एक खुराक ५०० ग्राम पानी में भिगोकर रख दें , प्रात: की भीगी दवाई सायं को देवें और सायं की भीगी दवा प्रात: को देवें , आराम आयेगा ।

१३ - छेरा ख़ूनी दस्त
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कारण व लक्षण - गाय - भैंस या अन्य पशुओं को छेरा , मरोड़ा , ख़ूनी छेरा --
१ - औषधि - १००ग्राम धनियाँ , १००ग्राम मिश्री ( चीनी ) पानी में घोलकर नाल से देवें तथा दो घन्टे बाद फिर एक खुराक देवें तथा आवश्यक होतों तीन घन्टे बाद एक खुराक और देदें ।

२ - औषधि - ख़ूनी छेरा ,दस्त , मरोड़ा -- ऐसी स्थिति में छोटी दूद्धी १०० ग्राम ,खिलायें और दो घन्टे बाद एक खुराक और दें पशु अवश्य ठीक होगा ।यदि पशु को खिला न पाये तो दूद्धी का रस निकालकर एक-एक घन्टे बाद एक नाल से दें ।


१४ - अलस
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-- ( अलसी , बर्रे या ज्वार - चारा - विष )

कारण व लक्षण - जब कोई पशु अलसी , बर्रे या ज्वार की विषैली चेरी ज़्यादा मात्रा में खा लेता हैं तो उसे एक प्रकार का नशा आ जाता है । वह खाना -पीना छोड़ देता है । वह जूगाली नहीं करता और पागल - सा होकर मर जाता हैं ।

१ - औषधि - - जलजमनी (बछाँग) ४८० ग्राम , पानी ९६० ग्राम , बछाँग को महीन पीसकर पानी में मिलाकर लगभग दो- दो घन्टे में आराम होने तक देते रहना चाहिए , आराम होगा । रोगी पशु को खुब नहलाना चाहिऐ और पानी से भीगे थैले को उसकी पीठ पर रखना चाहिऐ ।

२ - औषधि -- गुड़ ४८० ग्राम , गाय के दूध से बनी छाछ १९२० ग्राम , हमें छाछ को लेकर गुड़ में मिलाकर रोगी पशु को पिलाना चाहिऐ । यही खुराक रोगी पशु को आराम होने तक तीन-तीन घन्टे के बाद पिलानी चाहिऐ ।

आलोक -- गर्मी में जो चेरी बोयी जाती है , उसमें विष हो जाता है । उसको खाने से पशु मर जाता है । इसलिए ऐसी चेरी को तभी खिलाना चाहिए , जब उस पर अच्छी मात्रा में वर्षा का दो-तीन बार पानी गिर जायें, जिससें उसका विष धुल जाये । सबसे पहले चेरी को बूढ़े पशु को खिलाना चाहिए , क्योंकि अगर चेरी में विष भी हुआ तो बुढें को ही नुक़सान होगा और पता भी चल जायेगा चेरी में विष है या नहीं, जाँच पड़ताल करने के बाद ही चारे का प्रयोग करना चाहिऐ ।

#~ कभी -कभी वर्षा में बोयी हुई ज्वार लगभग १ फ़ुट उग आने के बाद खुरड़ होना ( पानी न गिरने ) से वह पौधा कुम्हला जाता है और सूखने पर उसमें विष पैदा हो जाता है । उसे खिलाने से पशु मर जाते है ।
#~ बर्रे में भी विष होता है। दो - तीन बार अच्छी मात्रा में पानी गिरने के बाद उसका विष धुल जाता है। फिर उसे पशु को खिलाना चाहिऐ।

#~खजेड़ा ( संफेद कीकर ) में जो काले - काले रंग की फलियाँ आती है , उसमें भी विष रहता है,उसे भी नही खिलाना चाहिए। खजेडे की हरे रंग की फलियाँ खिलानी चाहिए, पहले तो पशु को हरी फलियाँ एक पौण्ड खिलायें। फिर मात्रा बढ़ाये । तीसरे दिन २ पौण्ड खिलाये। इस हिसाब से मात्रा बढ़ानी चाहिए , क्योंकि धीरे- धीरे खिलाने से वह आहार में आ जाता है तथा उससे नुक़सान नहीं होता। इससे दूधारू पशु बहुत अधिक दूध देता है और बिना दूध के पशु बहुत तगड़े हो जाते है ।

#~ अफ़ीम के पौधे और डोंडियों को भी नही खिलाना चाहिए, क्योंकि उसमें भी विष रहता है । उसको गड्ढे में दबा देना चाहिए या जला देना चाहिए ।

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