Thursday, 15 April 2021

रामबाण :- 33 -:

रामबाण :- 33 -:



#- नकछिक्कनी - नकछिक्कनी प्रकृति से कड़वा, तीखा, कषाय, गर्म, तथा कफवात से आराम दिलाने वाली होती है।यह अग्निदीपक या पाचन शक्ति बढ़ाने वाली, वामक या उल्टी, रुचिकर, पित्तकारक, घाव को ठीक करने में सहायक होती है।नकछिकनी कुष्ठ, कृमि, सांस संबंधी रोग, खांसी, विषरोग, त्वचा रोग, श्वेत कुष्ठ, वातरक्त, प्रतिश्याय (Coryza), अरुचि, रक्त संबंधी बीमारी, ग्रहपीड़ा, अर्श या बवासीर तथा भूतबाधा-नाशक होती है।यह प्रतिश्याय, दांत दर्द, सिरदर्द, अरुचि, अग्निमांद्य या अपच, प्लीहा (spleen) वृद्धि के उपचार में मदद करती ै। यह पत्ते भूख बढ़ाने, कृमिनाशक, पूयरोधी या एंटीसेप्टिक, कफनिसारक, वातानुलोमक तथा वामक यानि उल्टी में इलाज में सहायक होते हैं।

#- आँख - नाक रोग - यह नाक संबंधी बीमारी, जोड़ो के काढ़ा बनाकर नेत्रों को धोने करने से नेत्राभिष्यंद या कंजक्टिवाइटिस में लाभ होता है।
 
#- सिर्रदर्द - काम के तनाव से अगर सिर में दर्द होने लगता है तो नकछिकनी फूल के रस का नाक से लेने से सिरदर्द तथा प्रतिश्याय से आराम मिलता है।

#- नासारोग - नकछिकनी नाक संबंधी रोगों के उपचार में उपयोग आने वाला बूटी है। नकछिकनी तथा कट्फल के चूर्ण को नाक से सूंघने से नासा रोगों से आराम मिलता है। यह चूर्ण लेते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादा सूंघ लेने से छींक ज्यादा होने का खतरा रहता है, इसलिए ज्यादा सूंघे। इसके अलावा नकछिकनी के पत्ते एवं बीजों के चूर्ण को सूंघने से नाक यदि बंद जैसा महसूस हो रहा है तो, उससे आराम मिलता है।

#- दांत र्द - नकछिकनी को पीसकर दांतों पर रगड़ने से दांत दर्द से आराम मिलता है। नकछिकनी के पत्तों को पीसकर गोली बनाकर दांतों के बीच दबाकर रखने से दंतवेदना आदि दांत संबंधी रोगों से राहत मिलने में आसानी होती है। 


#- कानदर्द - नकछिक्कनी स्वरस कान दर्द, गले में दर्द, सूजन तथा हिक्का नाशक होती है।

#- सिरदर्द , कृमि - नकछिक्कनी बीज सिरदर्द, प्रतिश्याय (Coryza) शामक तथा कृमिनिसारक होते हैं।

#- एन्टीसैप्टिक - नकछिक्कनी पञ्चांग स्वरस पूयरोधी या एंटीसेप्टिक गुणों से भरपूर होती है।

#- खाँसी - अशोक बीज, नकछिकनी, वायविडंग, रसाञ्जन, पद्मकाष्ठ और विड़ लवण इन द्रव्यों के योग से बनाये हुए गाय के घी अथवा उक्त द्रव्यों का चूर्ण बनाकर उसमें गाय का घी मिलाकर सेवन करें तथा अनुपान रूप में बकरी का दूध पीने से खांसी की परेशानी से आराम मिलता है।



#- पेचिश - अगर खान-पान में गड़बड़ी होने के कारण दस्त या पेचिश से हाल बेहाल है तो नकछिकनी पंचाग स्वरस का सेवन इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिल सकता है

#- प्रवाहिका - शुण्ठी, गौघृत, नकछिकनी और तेल को पकाकर चाटने से प्रवाहिका रोग या दस्त को रोकने में मदद मिलती है।

#- हैज़ा , पेचिश - पिप्पली, अजमोदा एवं क्षवक को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर (2-3 ग्राम) अम्ल द्रव (कांजी) या कोष्ण जल के साथ सेवन करने से विसूचिका या पेचिश के कष्ट से राहत मिलने में सहायता मिलती है। 


#- बदहजमी - अगर खाना हजम होने की समस्या आम हो गई है तो 1-3 ग्राम नकछिकनी बीज चूर्ण में गुड़ मिलाकर सेवन करने से खाना हजम होता है और भूख लगने की समस्या से राहत मिलती है।


#- प्लीहा रोग - 1-3 ग्राम नकछिकनी पत्ते के चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करने से प्लीहा या स्प्लीन वृद्धि आदि प्लीहा विकार तथा मासिक-विकारों से जल्दी आराम मिलने में मदद मिलती है। 

#- अन्यरोग - नकछिक्कनी पञ्चांग लेप लगाने से त्वचा संबंधी समस्याओं के उपचार में आसानी होती है। इसके अलावा नकछिकनी पत्तों तथा बीजों को पीसकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से योनि रोगों, संधिशूल या जोड़ो के दर्द, पक्षाघात या लकवा, श्वित्र या ल्यूकोडर्मा, पामा या स्केबीज, विचर्चिका या खुजली तथा दद्रु या दाद आदि से आराम मिलता है।
 
#- चोट, घाव - नकछिकनी पञ्चाङ्ग को पीसकर अगर शरीर के किसी अंग में चोट लगी है वहां पर लगाया जाय तो घाव जल्दी ठीक होकर दर्द से जल्दी आराम मिलता है। 

 #- बड़ानल का वानस्पतिक नाम Phragmites karka (Retz.) Trin. ex Steud. (प्रैंग्माइटीज कर्का) है, और यह Poaceae (पोएसी) कुल का है। इसके अन्य ये भी नाम हैं, नल मधुर, तिक्त, कषाय, शीत, किञ्चित् उष्ण, लघु, स्निग्ध और त्रिदोषहर होता है। यह दीपन, मूत्रशोधक, वृष्य, वीर्यवर्धक और रुचिकारक होता है। इसका प्रकन्द मृदुकारी, मूत्रल, बलकारक, उत्तेजक और स्तन्यस्रावनाशक होता है।

#- महिलाओं के स्तनों मे दूध बढाना - कई महिलाओं को स्तनों में दूध की कमी होती है। आप बड़ानल (नरकट) के सेवन में दूध को बढ़ा सकती हैं। नल की जड़ का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।

 #- कुत्ते के काटने पर शरीर में जो विष आता है उसके उपचार के लिए नरकट का इस्तेमाल कर सकते हैं। 2-4 ग्राम नल की जड़ को पीस लें। इसका सेवन करें। इसके साथ ही कुत्ते के काटने वाले स्थान पर लेप करें। इससे विष के असर को कम करने में मदद मिलती है।


#- कीटदंश - चन्दन, रास्ना, इलायची, हरेणु, नल, वञ्जुल, कूठ, लामज्जक लें। इसके साथ ही तगर, बड़ानल लें। इससे बने अगद का इस्तेमाल करने से कीड़े-मकौड़ों के काटने से होने वाली परेशानी में फायदा होता है। लूता दंशजन्य विषाक्त प्रभावों ठीक होता है।


#- मूत्ररोग - पेशाब में संबंधित कई बीमारियों में नरकट के औषधीय गुण से फायदा होता है। आप बराबर मात्रा में नल, कूठ, कास, ईख और बला की जड़ लें। इसका काढ़ा बनायें। 10-20 मिली काढ़ा में मिश्री मिलाकर रोज सुबह ठंडा कर पीने से पेशाब के रुक-रुक कर होने की समस्या में लाभ होता है।

#- मूत्ररोग - नल, पाषाणभेद, दर्भ, गन्ना, खीरा और विजयसार को समान मात्रा में लेकर कूट लें। इसे गाय के दूध में पकाएं। जब यह एक चौथाई 10-20 मिलीग्राम बच जाए तो गाय का घी मिलाकर पिलाने से पेशाब में दर्द और रुक-रुक कर पेशाब होने की बीमारी में लाभ होता है।

#- मूत्ररोग - बड़ानल की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में सेवन करने से मूत्र के कई विकारों में लाभ होता है।

 #- मासिकधर्म - मासिक धर्म विकार में बड़ानल के सेवन से फायदा मिलता है। इसके लिए 20 मिली नल की जड़ काढ़ा में 2 पिप्पली मिला लें। इसका सेवन करें। इससे लाभ होता है।

#- गठियारोग - गठिया के रोग में भी नरकट से फायदा ले सकते हैं। इसके लिए आपको नल की जड़ को पीस लेना है। 2-4 ग्राम मात्रा गुनगुना करके दर्द वाले स्थान पर लेप करना है। इससे बीमारी ठीक होती है।

#- कफज विसर्प रोग - शैवाल, नल की जड़, वीरा और गंधप्रियंगु का 2-4 ग्राम पेस्ट बना लें। पेस्ट में थोड़ा गाय का घी मिलाकर लेप करने से कफज दोष के कारण होने वाले विसर्प रोग में लाभ होता है।

#- कफज विसर्परोग - हरड़, बहेड़ा, आँवला, पद्मकाष्ठ, खस, मंजीठ, कनेर लें। इसके साथ ही नल की जड़ और अनन्तमूल लें। सभी को जल से पीसकर 2-4 ग्राम लेप करने से कफज दोष के कारण होने वाले विसर्प रोग में लाभ होता है।
#- विसर्प रोग - बड़ानल की जड़ को पीसकर 2-4 ग्राम, थोड़ा गाय का घी मिलाकर लेप करने से भी विसर्प में लाभ होता है।










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