Sunday, 4 April 2021

रामबाण :- 28-:

रामबाण :- 28-:


#- शिरोवेदना - देवदारु ( Himalayan cedar ) देवदारु , तगर, कूठ, खस और शूण्ठी इन 5 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर , कॉजी में पीसकर , एरण्ड तैल में मिलाकर मस्तक पर लेप करने से वातज शिरोवेदना का शमन होता है।

#- नासिका रोग - देवदारु फल तैल को गुनगुना करके 1-2 बूँद नाक में डालने से सिर, गले , तथा नासिका के रोगों में लाभ होता है।

#- शिर:शूल - देवदारु काष्ठ को पीसकर मस्तक पर लेप करने से शिर:शूल का शमन होता है।

#- पिल्ल रोग, ढीड आना - देवदारु के सुक्ष्म चूर्ण को बकरी के मूत्र में पीसकर , उसमें उसमें गौघृत (स्नेह )मिलाकर वर्त्म पर प्रतिसारण करने से पिल्ल नामक रोग का शमन होता है।

#- कर्णशूल - देवदारु , काष्ठ तथा सरल को जलाने से प्राप्त तैल ( दीपिका तैल ) को 1-2 बूँद कान मे डालने से कर्णशूल ( कानदर्द ) में लाभ होता है।

#- कर्णशूल - तैल से भिगा कपड़े को देवदारु की मूल पर लपेटकर , उसको जलाने से प्राप्त तैल को 1-2 बूँद कान में डालने से कान की वेदना का शमन होता है।

#- कान के समस्त रोग- समभाग सैंधानमक , हींग , देवदारु , वचा , कूठ तथा शूण्ठी के कल्क से विघिवत पकाए हुए तैल को 1-2 बूँद कान में डालने से कान के समस्त रोगों में लाभ होता है।

#- नासास्राव - देवदारु का तिक्ष्ण धूम्रपान कराने से नासास्राव में लाभ होता है।

#- पीनस - गौघृतयुक्त देवदारु तैल का सेवन करने से तथा गाय का दूध एवं शालि चावल का आहार लेने से कुष्ठ एवं पीनस का शमन होता है ।

#- गण्डमाला - देवदारु और इन्द्रवारूणीमूल रो पीसकर लेप करने से लाभ होता है।

#- गलगण्ड - देवदारु तथा इन्द्रायण को पीसकर लेप करने से गलगण्ड में लाभ होता है।

#- हिक्का- श्वास - देवदारु क्वाथ को पीने से श्वासजन्य तृष्णा का शमन होता है ।

#- कफजरोग - देवदारु तैल की बूँदों में सोंठ , मरिच, पिप्पली तथा यवक्षार मिलाकर पीने से कफजकास का शमन होता है।

#- हृदय वात - वात के कारण यदि हृदय में पीड़ा होती हो तो समभाग देवदारु तथा सोंठ चूर्ण 1-4 ग्राम को सुखोष्ण जल के साथ सेवन करने से पीड़ा का शमन होता है।

#- उदररोग - देवदारु , पलाश बीज , मदार की जड़ , गज्जपिप्पली , सहजने की छाल तथा अश्वगन्धा को उदर पर लेप करने से उदर विकारों का शमन होता है।

#- प्रमेह रोग - 10-20 मिलीग्राम देवदार्वाद्यारिष्ट को पीने से प्रमेह , वातव्याधि , ग्रहणी , बवासीर , मूत्रकृच्छ , कण्डूरोग तथा कुष्ठ रोगों में लाभ होता है ।

#- गर्भाशय शूल - देवदारु , वच, कूठ, पिप्पली , शूण्ठी , कायफल , नागरमोथा , चिरायता , कुटकी , धनिया , हरीतकी , गज्जपिप्पली , धमासा , जवासा , गोखरू , बड़ी कटेरी , अतीस, गुडूची, कर्कटश्रंगी तथा कालाजीरा - इन 20 द्रव्यों में से निर्मित अष्टमांश - शेष क्वाथ को 10-20 मिली मात्रा में प्रसूता स्त्री को पिलाने से गर्भाशय शूल , खाँसी , ज्वर , बेहोशी , कम्प तथा शिरोरोग आदि में लाभ होता है।

#- अण्डवृद्धि - देवदारु के 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में 10 मिलीग्राम गोमूत्र मिलाकर पिलाने से अण्डवृद्धि मे लाभ होता है।

#- संधिवात - देवदारु को पीसकर जोड़ो पर लगाने से जोड़ो के दर्द में लाभ होता है।

#- श्लीपद - चित्रकमूल तथा देवदारु को गोमूत्र में पीसकर किञ्चित उष्ण करके लेप करने से श्लीपद में लाभ होता है।

#- श्लीपद , हाथीपाँव - गुडूची , सोंठ तथा देवदारु चूर्ण 1-2 ग्राम गोमूत्र के अनुपान के साथ सेवन करने से हाथीपाँव में लाभ होता है।

#- श्लीपद, हाथीपाँव - श्वेत सरसों , सहजन , देवदारु तथा सोंठ को गोमूत्र में पीसकर लेप करने से श्लीपद में लाभ होता है।

#- श्लीपद - देवदारु चूर्ण को सर्षप तैल के साथ पीसकर लगाने से श्लीपद में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - 5-6 मिलीग्राम देवदारु स्नेह में 60 मिलीग्राम लौहभस्म , 5-6 ग्राम गौघृत तथा 10-12 ग्राम मधु मिलाकर लेप करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।

#- व्रण - सरल निर्यास , राल , सरल की छाल , देवदारु तथा सालसारादि द्रव्यों से व्रण का धूपन करने से व्रण का शोधन होता है।

#- वातज व्रण - मातुलुंग नींबू , अग्निमथ , मूली, कॉजी, सोंठ और देवदारु से निर्मित लेप को लगाने से वातजव्रण में लाभ होता है।

#- घाव- देवदारु के तैल को घाव पर लगाने से घाव जल्दी से भरता है।

#- शोथ- देवदारु , वर्षाभू , सोंठ से पकाऐं हुए गौदूग्ध को 100-200 मिलीग्राम की मात्रा पीने से शोथ का शमन होता है।

#- शोथ- देवदारु तथा सोंठ चूर्ण 1-4 ग्राम को गोमूत्र या वर्षाभू कषाय के अनुपान से एक मास तक सेवन करने से शोथ का शमन होता है ।

#- ज्वर - देवदारु , हरीतकी , वासा, शालपर्णी , शूण्ठी तथा आँवला इन द्रव्यों से निर्मित क्वाथ 10-30 मिलीग्राम में मधु 6 माशा या 6 माशा मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से खाँसी श्वास मन्दाग्नि तथा चातुर्थक ज्वर में लाभ होता है।

#- वातज ज्वर - देवदारु , बृहती , चित्रक , सोंठ , तथा पुष्करमूल का क्वाथ 10-30 मिलीग्राम बनाकर पीने से वातज ज्वर मे लाभ होता है।

#- ज्वर - देवदारु , धनिया, सोंठ बृहती तथा कण्टकारी का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम पीने से ज्वर में लाभ होता है।

#- चातुर्थिक ज्वर - देवदारु , हरड़, आँवला , शालपर्णी , वासा, तथा सोंठ इन औषधियों से निर्मित क्वाथ 10-30 मिलीग्राम में मधु मिलाकर पीने से चातुर्थिक ज्वर में लाभ होता है।

#- ज्वर - नल, बेतसमूल , मुर्वा , देवदारु से निर्मित क्वाथ 10-30 मिलीग्राम का क्वाथ का सेवन करने से त्रिदोषज ज्वर में लाभ होता है।

#- वेदना - देवदारु तैल की मालिश करने से वेदना का शमन होता है।

#- स्तन्यशोधनार्थ - देवदारु तैल स्तनयशोधक होता है अर्थात देवदारु तैल की स्तनों पर मालिश करने से स्तनों का शोधन होकर दूध बढता है ।

#- दुष्ट व्रण शोधक - देवदारु तैल से घाव पर लगाने से यह दुष्ट से दुष्ट घाव का शोधन कर रोपण करने में मदद करता है।

#- वक्र शोधन - देवदारु तैल से वक्र शोधन होता है ।

#- अर्श - देवदारु तैल लगाने से अर्श में लाभ करता है तथा यह अर्श नाशक है।

#- मेद - देवदारु तैल मालिश से चर्बी घटती है।

#- कीड़े - देवदारु तैल कीड़ों को मारता है।

#- जीवाणुरोधी - देवदारु तैल जीवाणु रोधी होता है।

#- आधासीसी - देवदाली ( Thorn gourd ) , वन्दाल फल को पानी में भिगोकर , मसलकर छानकर 1-2 बूँद नाक में डालने से आधासीसी में लाभ होता है।

#- तिमिर रोग - ताज़े देवदाली पत्रस्वरस तथा देवदाली फलस्वरस को शहद में मिलाकर आँखों में लगाने से तिमिररोग में लाभ होता है।

#- कुक्कुरकास - देवदाली फल फाण्ट को 1-2 बूँद नाक मे डालने से कुक्कुरकास ( खाँसी ) तथा पीलिया में लाभ होता है।

#- आंत्रज शूल - 5-10 मिलीग्राम देवदाली फल से निर्मित फाण्ट का सेवन करने से आंत्रशूल का शमन होता है।

#- बिबन्ध , क़ब्ज़ - देवदाली फल तथा काण्ड से निर्मित फाण्ट या हीम का अल्प मात्रा में सेवन करने से जलोदर तथा बिबन्ध मे लाभ होता है।

#- जलशोफ - देवदाली फल के स्वरस को 5-10 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से जलशोफ मे लाभ होता है।

#- विसुचिका - देवदाली फल से निर्मित फाण्ट का अल्पमात्रा में सेवन करने से विसुचिका में लाभ होता है।

#- कामला - जीमूतक ( देवदाली ) फल स्वरस का अथवा देवदाली फल चूर्ण का नस्य लेने से अथवा रातभर जल में भिगोए हुए देवदाली फल चूर्ण को मसलकर जल को नाक में टपकाने से पिलिया रोग में लाभ होता है।

#- कामला - देवदाली फल को पीनी में भिगोकर रख दें , प्रात: काल मसलकर छानकर 1-2 बूँद नाक में टपकाने से पिलिया , कामला रोग मे लाभ होता है।

#- यकृत तथा प्लीहा विकृति - देवदाली फल से निर्मित फाण्ट 5 मिलीग्राम में एक चम्मच नारियल का पानी या ककड़ी स्वरस मिलाकर यकृत तथा प्लीहा विकारों में लाभ होता है।

#- अर्श - बन्दाल डोडे के फल ( देवदाली फल ) तथा बीज को गोमूत्र के साथ पीसकर अर्श पर दिन में तीन बार लगाने से लाभ होता है।

#- सुखप्रसवार्थ - गौदुग्ध में पिसे हुए बलामूल तथा बेहडे में देवदाली पुष्प चूर्ण 1 ग्राम मिलाकर प्रसवोन्मुख स्त्री द्वारा पीने से प्रसव सुखपुर्वक होता है।

#- सुखप्रसवार्थ - 10 ग्राम देवदाली पुष्प को गौदूग्ध के साथ पीसकर 1 ग्राम मात्रा को पीने से सुखप्रसव होता है।

#- प्रदररोग - 500 मिलीग्राम देवदाली मूल को चावल के धोवन में पीसकर शहद मिलाकर सेवन करने से प्रदररोग का शमन होता है।

#- कुष्ठ रोग - थूहर के दूध तथा मदार का दूध के अलग अलग सात बार भावित देवदाली फल चूर्ण को 350-500 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है । इस अवधि में नमक का सेवन पूर्णतया वर्जित होगा।

#- ज्वर रोग - मात्रानुसार देवदाली फल चूर्ण का सेवन - जीवक, ऋषभक , ईख , या शतावर स्वरस के साथ करने से वमन होकर पित्तकफज ज्वर या वात- पित्तज्वर में लाभ होता है।

#- मुषकविष - समभाग श्योनाक , कड़वी तोरई मूल, मदनफल , तथा देवदाली फल चूर्ण 1-2 ग्राम को गोदधि के साथ सेवन करने से वमन द्वारा मूषक विषजन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- कीटजन्य पीडिका - देवदाली तथा कटूतुम्बी मूल अथवा बीजों को गोमूत्र में पीसकर लेप करने से विषाक्त कीटजन्य पिडिकाओं में लाभ होता है।


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