Friday, 16 April 2021

रामबाण:- 36 -:

रामबाण:- 36 -:

#- नागफनी , जी हां, यह सच है। पुराने समय में नागफनी के काँटे से ही कान में छेद कर दिया जाता था। चूंकि इसके कांटे में एंटीसैप्टिक के गुण होते हैं, इस कारण तो कान पकता था और ही उसमें पस (पीव) पड़ती थी। इस कारण इसे वज्रकंटका के नाम से भी जाना जाता है। नागफनी (nagfani tree) स्वाद में कड़वी, पचने पर मधुर और प्रकृति में बहुत गर्म होती है। नागफनी कफ को निकालती है, हृदय के लिए लाभकारी होती है, खून को साफ करती है, दर्द तथा जलन में आराम देती है और खून का बहना रोकती है। नागफनी खाँसी, पेट के रोगों और जोड़ों की सूजन तथा दर्द में लाभ पहुँचाती है। इसके फूल (nagfani flower) कसैले होते हैं। इसका तना तासीर में ठंडा और स्वाद में कसैला होता है। तना हल्का विरेचक (Purgative), भूख बढ़ाने वाला और बुखार तथा विष को नष्ट करने वाला होता है ।
 


#- दमारोग - खाँसी और दम फूलने यानी दमा जैसे रोगों में नागफनी का प्रयोग काफी लाभदायक है। 10 मिली नागफनी के फल के रस में दोगुना मधु तथा 350 मिग्रा टंकण मिला कर सेवन करें। इससे खाँसी और दम फूलने की परेशानी में लाभ होता है।

#- काली खाँसी - नागफनी के फल की छाल के 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से खाँसी, दम फूलना और काली खाँसी में लाभ होता है। दमा-खांसी से राहत दिलाने में नागफनी के फायदे से लाभ मिलता है।
 
#- आँख रोग - नागफनी के तने के गूदे को पीसकर आँखों के बाहर चारों तरफ लगाने से आँखों के अनेक रोग ठीक होते हैं।

# आँखरोग - आँखों में लाली की समस्या हो तो नागफनी के तने से कांटे साफ कर दें और फिर बीच में से फाड़ लें। इसके गूदे वाले भाग को कपड़े में लपेट कर आँखों पर रखने से लाभ होता है।
 


#- कब्जरोग - नागफनी में पेट को साफ करने का भी गुण होता है। 1-2 ग्राम नागफनी के फल के चूर्ण का सेवन करने से कब्ज समाप्त होती है और मल खुल कर आता है।

#- पेचिश - नागफनी के फल की बजाय यदि 1-2 ग्राम फूलों के चूर्ण का सेवन किया जाए तो पेचिश की शिकायत में लाभ होता है।
 
#- ख़ून की कमी को पूरा करें- शरीर में खून की कमी होने से शरीर का रंग पीला दिखने लगता है और कमजोरी भी आती है। इसमें नागफनी का प्रयोग करें। नागफनी के पके हुए फलों का प्रयोग करने से खून की कमी से शरीर के पीला पड़ने की बीमारी में लाभ होता है।
 
#- श्वेत प्रदर - सफेद प्रदर यानी योनीमार्ग से सफेद पानी का जाना महिलाओं की एक आम बीमारी है। इससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर काफी खराब असर पड़ता है और वह कमजोर तथा पीली पड़ जाती है। नागफनी के फल के 1-2 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से सफेद प्रदर यानी ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।

#- सूजाक रोग - नागफनी  के सेवन से पुरुषों में होने वाले सुजाक यानी गोनोरिया रोग का भी नाश होता है।
 


#- प्रोस्टेट ग्लैंड ( गदूद बढ़ना ) - आयु बढ़ने से प्रोस्टेट ग्लैंडों यानी पौरुष ग्रंथि का बढ़ना, पुरुषों में होने वाली एक आम परेशानी है। पेशाब करने में समस्‍या ही प्रोस्‍टेट कैंसर के प्रमुख लक्षण है। प्रोस्‍टेट ग्रंथि बढ़ने के कारण पेशाब करने में परेशानी होती है। रात में बार-बार पेशाब जाना, अचानक से पेशाब निकल आना, पेशाब रोकने में समस्‍या आदि लक्षण प्रोस्‍टेट कैंसर में दिखाई पड़ते हैं। नागफनी के फूलों के चूर्ण का सेवन करने से प्रोस्टेट ग्लैंड के बढ़ जाने की समस्या दूर होती है।


#- दर्द, सूजन - नागफनी में एंटीसैप्टिक के साथ-साथ एंटी इनफ्लैमैटरी गुण भी होते हैं। इसलिए वे दर्द, सूजन और जलन आदि में काफी आराम पहुँचाते हैं। नागफनी के पत्तों को अच्छी तरह पीसकर जोड़ों पर लगाने से जोड़ों में हुई सूजन समाप्त होती है और उनमें होने वाली जलन और दर्द में भी आराम मिलता है।

#- घाव, पीव व संक्रमण - नागफनी (nagfani tree) में एंटीसैप्टिक गुण होते हैं। इसलिए यह अनेक चर्मरोगों में काम आता है। नागफनी घावों को शीघ्र भर देता है, उनमें संक्रमण नहीं पनपने देता और कीड़ों तथा पस यानी पीव को नष्ट करता है।

#- व्रण, संक्रमण - नागफनी के तने के गूदे को पीसकर घाव पर लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है। कीटाणुओं के संक्रमण के कारण होने वाले घावों को ठीक करने के लिए भी इसको पीसकर घाव पर लगाते हैं।

#- शोथ, चर्मरोग - नागफनी (nagphani) को पीसकर त्वचा पर लगाने से दाद, खुजली आदि चर्म रोगों और चोट के कारण हुई सूजन तथा जलन भी ठीक होते हैं।

#- यदि फोड़े कच्चे हों और पक रहे हों - तो नागफनी के पत्तों को पीसकर गुनगुना गर्म करके फोड़ों पर लेप कर दें। फोड़े शीघ्र पक कर फूट जाएंगे।

 

#- हड्डीरोग - एक रिसर्च के अनुसार नागफनी में कैल्शियम तत्त्व भरपूर मात्रा में पाया जाता है जिसके कारण यह हड्डियों को मजबूतबनाये रखने में भी मदद करता है। नागफनी के पत्तों का 10 मिली रस प्रतिदिन लेने से हड्डियाँ मज़बूत होती है।



#- बदहजमी - एक रिसर्च के अनुसार नागफनी का पल्प यानि गुदा या एक्सट्रेक्ट पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में भी मदद करता है जिससे खाना जल्दी पच जाता है। 

 

#- नागफनी (nagphani) के पके फलों का रस 10 मिलीग्राम प्रात: ख़ाली पेट प्रयोग करने से कामला या पीलिया रोग की चिकित्सा में किया जाता है।
 
#- मोटापा - एक रिसर्च के अनुसार नागफनी में एंटी ओबेसिटी गुण पाए जाने के कारण यह मोटापा यानी बढे हुए वजन को कम करने के लिए 10 मिलीग्राम स्वरस लेना भी लाभदायक होता है। 
 


#- एक रिसर्च के अनुसार नागफनी स्वरस 10 मिलीग्राम की मात्रा लेने से लाभ होता है क्योंकि इसमें एंटी डायबिटिक गुण पाए जाने के कारण यह डायबिटीज के लक्षणों को भी कम करने में मदद करता है। 


#- नाकुली का वानस्पतिक नाम Aristolochia indica Linn. (ऐरिस्टोलोकिआ इन्डिका) Syn-Aristolochia lanceolata Wight है, और यह Aristolochiaceae (ऐरिस्टोलोकिएसी) कुल का है।
नाकुली तिक्त, कटु, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, कफवातशामक, विषघ्न, लूता (मकड़ा), वृश्चिक (बिच्छू), चूहा, सर्प आदि के विष-प्रभाव को नष्ट करने वाली होती है। यह ज्वर, कृमिरोग, व्रण, कास, ग्रहरोग, वातव्याधि और जालगर्दभ नाशक होती है। इसका पौधा आर्तवस्राववर्धक, गर्भस्रावकर, आमवातरोधी, ज्वरघ्न और मूत्रल होता है। इसके शुष्क जड़ और प्रकन्द उदरोत्तेजक, तिक्त और बलकारक होते हैं। इसके पत्ते क्षुधावर्धक, बलकारक और ज्वरघ्न होते हैं।
 
#- आधासीसी - सर्पगन्धा और नाकुली की जड़ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 1-2 ग्राम चूर्ण को दो से तीन सप्ताह तक सेवन करें। इससे आधासीसी (माइग्रेन) में लाभ होता है।
 
#- दांतदर्द - दांत में दर्द होने पर आप नाकुली के औषधीय गुण से फायदा ले सकते हैं। नाकुली की जड़ लें। इससे दातुन करें या दांतों से चबाएं। इससे दांत का दर्द ठीक होता है।


#- घेंघारोग - घेंघा रोग में भी नाकुली का औषधीय गुण फायदेमंद होता है। इसके लिए आप नाकुली, नमक और सोंठ को पानी में घिस लें। इससे बीमार अंग पर लेप करें। इससे लाभ होता है।


#- उदररोग - 3 भाग नाकुली और 2 भाग काली मिर्च को पीसकर पेट पर लगाएं। इससे पेट की बीमारियों में फायदा होता है।

#- जलोदर - 5-10 मिली नाकुली के पत्ते के रस को पिलाने से जलोदर रोग में लाभ होता है।


#- हैजा - हैजा में नाकुली के इस्तेमाल से फायदा होता है। इसके लिए नाकुली के पत्ते का रस निकाल लें। इसे पेट पर लेप करें। इससे हैजा में लाभ होता है।


#- जोड़ो का दर्द - जोड़ों में दर्द हो तो नाकुली का उपयोग बहुत लाभ पहुंचाता है। इसके लिए आपको ईश्वरी की जड़ को पीस लेना है। इस पेस्ट को दर्द वाले स्थान पर लगाना है।


#- कुष्ठरोग - कुष्ठ रोग में भी नाकुली के इस्तेमाल से लाभ होता है। 1-2 ग्राम नाकुली की सूखी जड़ का चूर्ण बना लें। इसमें मधु मिलाकर प्रयोग करें। इससे सफेद दाग आदि कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
 


#- एलर्जी के फफोले - तीन भाग नाकुली के तने की छाल और एक भाग हरिद्रा को मिला लें। इसे पीसकर एलर्जी के कारण होने वाले फफोलों पर लेप करें। इससे लाभ मिलता है।


#- शोथ - लाल पुनर्नवा, कनेर के पत्ते, पलाश, इसरजड़, शालपर्णी, पृश्निपर्णी आदि द्रव्यों को पीसकर गुनगुना कर लें। इसका लेप करने से सूजन में लाभ होता है।


#- टाईफाइड - टाइफाइड बुखार में भी ईसरजड़ के सेवन से लाभ होता है। रोगी 1 ग्राम जड़ के चूर्ण का सेवन करे। इससे टाइफाइड में लाभ होता है।  


#- हाई ब्लडप्रेशर - हाई ब्लडप्रेशर में ईश्वरजड़ का सेवन करें। इससे बहुत फायदा होता है। 1 से 2 ग्राम नाकुली की जड़ चूर्ण में मधु मिला लें। इसे दो से तीन सप्ताह तक प्रयोग करें। इससे हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।


#- सर्पदंश - नाकुली सांप के डसने पर राहत पहुंचाने वाली सबसे अच्छी औषधि मानी जाती है। आप सांप के डसने के बाद तुरंत थोड़ा-सा विष-युक्त खून निकाल लें। इसके बाद गुंजा और नाकुली की जड़ को पीसकर उस स्थान पर लेप करें।

#- सर्पदंश - काले सांप के काटने पर काटने वाले स्थान पर थोड़ा खून निकाल लें। इसके बाद गुंजा और नाकुली या तीक्ष्ण जड़विष आदि को पीसकर लेप करें। इससे लाभ होता है। इससे सांप के डसने का उत्तम इलाज होता है।

#- सर्पदंश - नाकुली की जड़ और 7 काली मरिच को पीसकर सांप के काटने वाले स्थान पर लगाएं। इससे सांप का विष का असर कम होता है, और विष से होने वाला नुकसान जैसे दर्द, जलन आदि से आराम मिलता है।

#- सर्पदंश - 3 नाकुली के पत्ते में 7 काली मिर्च पीसकर पिलाएं। इससे सांप के डसने से होने वाली जलन, दर्द आदि प्रभाव ठीक होता है।




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