Tuesday, 30 March 2021

रामबाण :- 26 -:

रामबाण :- 26 -:

#- कण्ठमाला - 1 ग्राम चालमोगरा फल गिरी चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से कण्ठमाला मे लाभ होता है।
चालमोगरा के तैल को गाय के दूध से बने मक्खन में मिलाकर गाँठों पर लेप करने भी लाभ होता है।

#- क्षयरोग - तुवरक तैल की 5-6 बूँदों को गोदूग्ध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से तथा गौ- मक्खन मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से क्षयरोग में लाभ होता है।

#- हैज़ा - तुवरकफल की गिरी के 1 ग्राम चूर्ण को जल में पीसकर 2-3 बार पिलाने से विसुचिका ( हैज़ा ) मे लाभ होता है।

#- मधुमेह - एक चम्मच तुवरकफलगिरी चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से मूत्र-शर्करा ( पेशाब में शक्कर का जाना, मधुमेह ) कम हो जाती है , जब मूत्र में शक्कर जाना बंद हो जाये तो प्रयोग बंद कर दें।

#- मधुमेह - 1-2 ग्राम तुवरकबीज चूर्ण को दिन में 2-3 बार जल के साथ सेवन करने से मधुमेह मे लाभ होता है।

#- योनिदौर्गन्धय - तुवरक के क्वाथ से योनि का प्रक्षालन ( धोने ) से अथवा तुवरक कल्क की वर्ति ( बत्ती ) बनाकर योनि के अन्दर रखने से योनि से आने वाली दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है।

#- उपदंश, व्रण - तुवरक के बीजों के साथ जंगली मूँग को मिलाकर यवकूट कर भांगरारस की 3 भावना देकर चौथे दिन महीन पीसकर उसमें थोड़ा चन्दन या नारियल तैल या आँवला तैल मिलाकर उबटन बनाकर उपदंश व्रणों पर लगायें , फिर 3-4 घन्टे बाद स्नान करने से लाभ होता है।

#- उपदंश ( Syphilis सिफ़लिस )- पूरे शरीर मे फैले हुआ सिफ़लिस रोग और पुरानी गठिया में तुवरकतैल की 5-6 बूँदों से शुरू करके मात्रा को बढ़ाते हुए 60 बूँद तक सेवन करने से उपदंश मे लाभ होता है । जब तक इस औषध का सेवन करे तबतक मिर्च- मसाले , खटाई का परहेज़ रखें। गाय के दूध व घी तथा मक्खन का अधिक प्रयोग करे।

#- गठिया रोग - 1 ग्राम तुवरकबीज चूर्ण को दिन में तीन बार खाने से गठियारोग में आराम आता है।

#- दाद - तुवरकतैल में नीमतैल , गौ- नवनीत मिलाकर दाद मे मालिश करने से एक माह के अन्दर मे ही दाद ठीक हो जाते है।

#- दाद - तुवरकतैल व नीमतैल मे आवश्यकतानुसार सफेद वैसलीन मिलाकर रख ले ! इस मरहम को दाद पर लगाने से दाद मे आराम आता है।

#- खाज- खुजली :- तुवरक तैल को एरण्डतैल मे मिलाकर उसमें गंधक , कपूर और नींबू का रस मिलाकर लगाने से खाज तथा खुजली में लाभ आता है।

#- पामा, छाजन, एक्ज़िमा रोग - तुवरक बीजों को छिलके सहित पीसकर एरण्डतैल में मिलाकर पामा पर लेप करने से पामा मिट जाता है।

#- पामा, छाजन- तुवरक बीजों को गोमूत्र में पीसकर 2-3 बार लेप करने से पामा रोग दूर होता है।

#- खुजली रोग- तुवरक बीजों को गोमूत्र मे पीसकर लगाने से खुजली रोग मे आराम आता है।

#- कुष्ठ रोग- कुष्ठ रोगी को पहले तुवरकतैल की 10 बूँद पिलानी चाहिए , जिससे वमन होकर शरीर के सब दोष बाहर आ जाये । तत्पश्चात 5-6 बूँदों को कैप्सूल मे डालकर या गाय के दूध व मक्खन में भोजनोपरान्त सुबह- सायं दें। धीरे- धीरे मात्रा बढ़ाकर 60 बूँद तक लें जायें , तुवरकतैल को नीमतैल मे मिलाकर बाह्य लेप करें , कुष्ठ की प्रारम्भिक अवस्था में इस औषध सेवन करे तथा मिर्च- मसाले व खटाई न खायें।

#- घाव, व्रण - तुवरक बीजों को ख़ूब महीन पीसकर उनका बारीक चूर्ण घाव पर लगाने से रक्तस्राव ( ख़ून बहना ) बन्द हो जाता है और घाव को बढ़ने से रोकता है तथा घाव शीघ्रता से भरने लगता है।

#- नाडीशूल - तुवरकतैल की 5 बूँद कैप्सूल मे भरकर खाने से नाडीशूल ( नसों मे होने वाला दर्द ) बन्द हो जाता है

#- व्रण , घाव, कुष्ठ - तुवरक बीज , भल्लातक-भिलावा बीज , बाकुची मूल , चित्रकमूल , अथवा शिलाजीत का चिरकाल तक सेवन करने से कुष्ठ मे लाभ होता है।

#- महाकुष्ठ, कण्डू तथा चर्मरोग - तुवरकतैल को लगाने से महाकुष्ठ , कण्डूरोग, चर्मरोग व त्वकरोगों मे लाभ होता है।

#- मुर्छा रोग - चालमोगरा ( तुवरक बीज ) बीज चूर्ण को मस्तक पर मलने से मुर्छा दूर होती है।

#- रक्तशोधनार्थ - तुवरकतैल की 5 बूँद कैप्सूल मे भरकर या गाय के मक्खन के साथ भोजन के आधा घन्टे पश्चात सुबह- सायं खाने से रक्त का शोधन होकर रक्तजविकारों का शमन होता है।

#- रक्तजविकार - तुवरकतैल , नीमतैल , गौ- नवनीत मिलाकर लेप करने से रक्त विकारों मे लाभ होता है।

#- रसायनार्थ - तुवरक रसायन का सेवन करने से मनुष्य वली , पलित, आदि व्याधियों से मुक्त होकर स्मृतिवान तथा रसायन गुणों से युक्त हो जाता है । इसका प्रयोग सावधानीपुर्वक करना चाहिए क्योंकि यह अमाशय को हानि पहुँचाता है । तैल को गौ- मक्खन मे मिलाकर या कैप्सूल मे भरकर भोजन के बाद लेना चाहिए । यदि तैल के सेवन से किसी भी प्रकार का नुक़सान होता है तो गाय के दूध व घी को खिलाना चाहिए ।
औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधी -

#- नेत्रशूल - तगर के पत्तों को पीसकर आँखों के बाहर चारों तरफ़ लेप करने से आँख का दुखना बन्द हो जाता है।

#- पिल्लरोग , आँखों में कीच आना - तगर को हरीतकी स्वरस मे पीसकर अञ्जन करने से पिल्ल नामक नेत्ररोग में लाभ होता है।

#- मूत्रविकार - 1-2 ग्राम तगर चूर्ण को शर्करा के साथ मिलाकर सेवन करने से मूत्रविकार का शमन होता है।

#- मासिकधर्म सम्बंधी विकार- तगर 1-3 ग्राम चूर्ण या 30-40 मिलीग्राम क्वाथ का सेवन करने से मासिकधर्म का नियममन होता है। यह निद्राकारक है। तथा पुरातन प्रेमह मे लाभकारी है।

#- योनिरोग - तगर , बड़ी कटेरी , सैंधानमक तथा देवदारु का क्वाथ बनाकर , इसमें तिल तैल मिलाकर पाक कर ले , इस तैल में रूई का फाहा भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल का शमन होता है ।

#- संधिवात - 1 ग्राम तगर चूर्ण में 65 मिलीग्राम यशद भस्म देने से गठिया , पक्षाघात , गले के रोग तथा सन्धिवात इत्यादि रोगों में लाभ होता है ।

#- संधिशूल - 1 ग्राम तगर मूल छाल को पीसकर गौ-तक्र ( छाछ ) के साथ पीने से संधिशूल का शमन होता है।

#- घाव व्रण - पुराने घावों और फोड़ो पर तगर को पीसकर लेप लेप करना चाहिए । इससे घाव जल्दी भर जाता है। तथा घाव दुषित नहीं होता है।

#- अपस्मार - तगर का फाण्ट 15-20 मिलीग्राम मात्रा में पीने से अपस्मार तथा योषाअपस्मार मे लाभ होता है।

#-अपस्मार - 500 मिलीग्राम तगर चूर्ण को दिन में दो बार शहद के साथ उन्माद , अपस्मार तथा आक्षेप में लाभकारी होता है।

#- प्रलाप , पागलपन - तगर से साथ समभाग अश्वगन्धा , पित्तपापड़ा , शंखपुष्पी , देवदारु , कुटकी, ब्राहृी, निर्गुण्डी , नागरमोथा , अम्लतास , छोटी हरड़ , तथा मुनक्का सबको मिलाकर यवकूट करके , क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा मे सेवन करने से लाभ होता है।

#-स्नायु रोग एवं बॉयैटे - तगर के मूल को कूटकर उसमें 4 भाग जल व बराबर मात्रा में तिल का तैल मिलाकर मंदाग्नि पर पकायें , पकने पर छानकर रखें। इसके प्रयोग से बॉयैटें मिटते है । सभी तरह के स्नायु शूल व नसों की कमज़ोरी मे यह लाभप्रद है।

#- मक्षिका दंश, मक्खी के काटने पर- मक्षिका दंश स्थान पर कालीमिर्च , तगर , सोंठ तथा नागकेशर को पीसकर लेप करना हितकर होता है।


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रामबाण :- 25 -:

रामबाण :- 25 -:

#- दमनक का वानास्पतिक नाम Artemisia nilagirica (Clarke) Pamp.  (आर्टिमिजिया निलगिरिका) Syn-Artemisia vulgaris auct. (non Linn.) होता है। इसका कुल  Asteraceae (ऐस्टरेसी) होता है और इसको अंग्रेजी में Indian wormwood (इण्डियन वॅर्मवुड) कहते हैं। चलिये अब जानते हैं कि दमनक और किन-किन नामों से जाना जाता है। दमनक प्रकृति से कड़वा, तीखा, कषाय, शीतल होता है। यह रूखा, तीखा, त्रिदोष यानि वात, कफ, और पित्त को कम करने वाला, गन्धित, ग्राही, स्तम्भक (Styptic), बलकारक तथा रसायन होता है। यह विष, कुष्ठ, कण्डू (खुजली), विस्फोट (Blister), आमदोष को हरने वाला होता है।  इसके पत्ते कड़वे, सूजन कम करने वाले, घाव ठीक करने में मददगार, मूत्र संबंधी रोग, वाजीकारक (Libido), भूख बढ़ाने में सहायक, पाचन में सहायक, कृमि को खत्म करने वाला, बुखार के इलाज में लाभदायक तथा रक्त की कमी को पूरा करने में फायदेमंद होते हैं।इसकी जड़ बलकारक एवं पूयरोधी यानि एंटीसेप्टिक होती है।इसके फूल सांस संबंधी समस्या, खाँसी, सूजन, कुष्ठ, त्वचा रोग, मूत्रकृच्छ्र, दर्द, पेट की कृमि, बुखार तथा पाण्डु या पीलिया के इलाज में सहायक होते हैं।दमनक में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है,चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं-


#- कानदर्द - दमनक के पतों का रस कान दर्द से राहत पाने में दमनक का इस्तेमाल ज्यादा काम करता है। दमनक पत्ते के रस के 1-2 बूंद को कान में डालने से कान दर्द से राहत मिलती है।



#- बच्चों की खाँसी - अगर किसी भी तरह खांसी कम नहीं हो रही है तो 5-10 मिली दमनक के पत्ते का काढ़ा पिलाने से बच्चे की खांसी दूर होने में मदद मिलती है।



 #- जलशोफ - 5-10 मिली दमनक पत्ते के रस  का सेवन करने से जलशोफ में लाभ होता है, लेकिन सेवन का तरीका सही होना लाजमी होता है।



#- पेटदर्द - दमनक के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से का पेट दर्द को कम करने में असरदार तरीके से काम करता है

#- पेट के कीड़े -दमनक का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पीने से पेट की कृमियों तथा पेट दर्द से राहत पाने में मदद मिलती है।

#- पेटदर्द -दमनक के पत्ते के काढ़े में 1 ग्राम दालचीनी चूर्ण डालकर पिलाने से पेट दर्द दूर होता है।

#- उदररोग -दमनक के पौधे से बने काढ़े में 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से पेट संबंधी समस्या में लाभ मिलता है।
 
#- बदहजमी- अगर खान-पान में गड़बड़ी होने के कारण बदहजमी की समस्या कम नहीं हो रही है तो दमनक के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-15 मिली मात्रा में पिलाने से जठराग्नि बढ़ती है।
 


#- आँतों के कीड़े - 10-20 मिली दमनक पत्ते के काढ़े में 65 मिग्रा हींग चूर्ण डालकर पिलाने से आंतों के कृमि मर जाते हैं। इससे कृमि होने की समस्या धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है।
 


#- यकृतविकार - अगर लीवर संबंधी बीमारियों से परेशान है तो दमनक का इस्तेमाल इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिलता है, दमनक के तेल में शर्करा मिलाकर प्रयोग करने से पीलिया तथा अन्य यकृत्-विकारों में लाभ होता है।

#-यकृतविकार -दमनक के पत्तों को पीसकर पेट पर लगाने से यकृत्विकार का शमन होता है तथा पत्रों का काढ़ा बनाकर बफारा देने से भी यकृत् के विकारों का शमन होता है।



#- गर्भाशय दर्द - दमनक के वायवीय-भागों से बने चूर्ण (1 ग्राम) में सूखे आर्दक चूर्ण मिलाकर, काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से गर्भाशय के दर्द से राहत पाने में लाभ होता है।



#- मासिक धर्म - फूल के आगे के भाग एवं पत्ते से बने फाण्ट (10-20 मिली) का सेवन करने से मासिक धर्म संबंधी बीमारियों तथा रजोनिवृत्तिजन्य (मेनोपॉज)-विकारों में लाभ होता है।



#- रक्तस्राव स्तम्भन - दमनक का औषधीय गुण का लाभ पाने के लिए इसके पत्तों को पीसकर लेप करने से रक्त का स्तम्भक और घाव जल्दी भरता है।



#- एलर्जी - अगर किसी बीमारी के कारण एलर्जी से परेशान हैं तो पौधे को पीसकर लेप करने से अनूर्जता में लाभ होता है।
 


#- शिशुरोग , कम्पवात - दमनक का अर्क कंपवात के असर को धीरे-धीरे कम करने में लाभदायक होता है। इसको बच्चों के सिर पर लगाने से राहत मिलती है।

#- ज्वर रोग - दमनक के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से ज्वर से राहत मिलने में आसानी होती है।

#- दौर्बल्य - 10 ग्राम पत्तो में 10 ग्राम शतावरी जड़ को मिलाकर उसका काढ़ा बनाएं और इस काढ़े को 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से शारीरिक बल बढ़ता है।
 



 




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Saturday, 27 March 2021

रामबाण :- 24 -:

रामबाण :- 24 -:


#- विषमज्वर - दारुहरिद्रा की जड़ की छाल से काढ़ा बनाएं। इसे 10-20 मिली की मात्रा में सेवन करने से साधारण बुखार और गंभीर बुखार , विषमज्वर में लाभ होता है।
 
#- व्रणरोपण - दारुहल्दी की जड़ की छाल को पीस लें। इसे घाव पर लगाएं। घाव जल्दी सुख जाता है।


#- सूजन - दारुहल्दी की जड़ का पेस्ट बनाएं। इसमें अपांप्म तथा सेंधा नमक मिलाकर लेप करने से सूजन ठीक हो जाती है।

 #- आँख की काजल - 50 ग्राम दारुहल्दी पेस्ट को 16 गुना जल में पकाएं। इस काढ़ा को मधु मिला कर आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के विकार ठीक होते हैं।

#- आँख की काजल - 1 भाग रसांजन तथा 3 भाग त्रिकटु को मिलाकर 250 मिग्रा की गोलियां बनाएं। इसे जल में घिसकर काजल की तरह लगाने से आंखों की खुजली, आंखों का लाल होना आदि रोगों में लाभ होता है।

#- आँख की काजल - रसांजन, दारुहल्दी, हल्दी, चमेली और निम्बु के पत्ते लें। इन्हें गोबर के पानी में पीस लें। इसकी वर्ति बनाकर जल में घिसकर काजल की तरह लगाएं। इससे आंखों के पलकों से संबंधित विकारों में लाभ होता है।

#- आँख रोग - बराबर-बराबर मात्रा में हरीतकी, सेंधा नमक, गैरिक तथा रसांजन का लेप बनाएं। इसे पलकों पर लेप करने से पलकों से संबधित रोगों में लाभ होता है।

#- नेत्ररोग - दारुहल्दी तथा पुण्डेरिया की त्वचा का काढ़ा बनाएं। इसे कपड़े से अच्छी तरह छानकर आंखों में बूंद-बूंद डालें। इससे नेत्र रोग में फायदा होता है।

#- नेत्ररोग - रसाञ्जन को आंखों में लगाने भी आंखों की बीमारी ठीक होती है।

 #- नेत्ररोग - दारूहल्दी मूलपाठ से प्राप्त सत् को नेत्रों में लगाने से नेत्ररोगों में लाभ होता है।


#- ज़ुकाम - दारुहल्दी की छाल के पेस्ट की वर्ति बनाएं। इसका धूम्रपान करने से जुकाम ठीक होता है।
 


#- मुखरोग - दारुहल्दी काढ़ा का रसांजन बनाएं और मधु के साथ खाएं। इसके साथ ही लेप के रूप में प्रयोग करें। इससे मुंह का रोग, रक्त विकार तथा साइनस ठीक होता है।

#- नाडीव्रण - दारूहल्दी मूल का पेस्ट बनाकर घाव पर लगाने से नाडीव्रण का शमन होता है।

#- मुँह के छालें - चमेली के पत्ते, त्रिफला, जवासा, दारुहरिद्रा, गुडूची तथा द्राक्षा को मिलाकर काढ़ा बनाएं। 10-30 मिली काढ़ा को शहद में मिलाकर पीने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
 
#- पेटरोग - दार्व्यादि काढ़ा (10-30 मिली) में 6 माशा मधु मिलाकर सेवन करने से सभी तरह के पेट के रोगों में लाभ होता है।
 
#- पिलिया - 1.5 लीटर गोमूत्र, दारुहल्दी तथा कालीयक पेस्ट को 750 ग्राम भैंस के घी में पकाएं। इसे दार्वीघी कहते हैं। इसे 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।

#- पिलिया - दारुहल्दी के 5-10 मिली रस लें या निम्बू के पत्ते के रस या गुडूची के रस के साथ 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से भी पीलिया में फायदा होता है।

#- पाण्डूरोग -  प्रातःकाल दारूहल्दी स्वरस ( 5-10 ) या क्वाथ 10-30 मिलीग्राम मधु में मिलाकर सेवन करने से पाण्डूरोग का शमन होता है।

#- यकृतप्लीहा वृद्धि - दारूहल्दी मूलछालसे निर्मित फाण्ट 10-30 मिलीग्राम को पीने से यकृत तथा प्लीहा - वृद्धि का शमन होता है।


#- एनीमिया व पिलिया - सुबह दारुहल्दी के रस (5-10 मिली) या काढ़ा (10-30 मिली) में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे एनीमिया में फायदा होता है। यह पीलिया में भी लाभ पहुंचाता है।
 


#- कफजवृद्धिरोग - कफज विकार को ठीक करने के लिए दारुहल्दी का प्रयोग लाभ देता है। दारुहल्दी के 2-4 ग्राम पेस्ट को गोमूत्र के साथ सेवन करें। इससे कफज-वृद्धि रोग का ठीक होता है।
 


#- ल्यूकोरिया , श्वेतप्रदर - दार्व्यादि काढ़ा (10-30 मिली) में मधु मिलाएं अथवा रसांजन एवं चौलाई की जड़ के पेस्ट में मधु मिला कर चावल के धोवन के साथ पिएं। इससे सभी तरह की ल्यूकोरिया ठीक होती है।

#- ल्यूकोरिया, श्वेतप्रदर - दारुहरिद्रा, रसाञ्जन, नागरमोथा, वासा, चिरायता, भल्लातक तथा काला तिल लें। इससे काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर पीने से ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।

#- गर्भाशय सूजन व ल्यूकोरिया - दारुहल्दी, रसाञ्जन, नागरमोथा, भल्लातक, बिल्वमज्जा, वासा पत्ते और चिरायता का काढ़ा बना लें। इस काढ़ा में 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से गर्भाश्य में सूजन आदि के कारण होने वाली ल्यूकोरिया की  बीमारी सहित पेट के रोगों में लाभ होता है।

#- ल्यूकोरिया - रसौत को बकरी के दूध के साथ सेवन करने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।

#- ल्यूकोरिया - रसौत एवं चौलाई की जड़ से पेस्ट बनाएं। इसमें मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथ पीने से सभी दोषों के कारण होने वाली ल्यूकोरिया में फायदा होता है।

 #- प्रमेहरोग - 10-30 मिलीग्राम दारूहल्दी क्वाथ को मधु के साथ नियमित सेवन करने से प्रमेहरोग मे लाभ होता है।

#- पिष्टमेह- रीमाहल्दी व दारूहल्दी का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम पीने से पिष्टमेह मे लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ - दारूहल्दी चूर्ण को मधु के साथ सेवन करके अनुपान रूप में आँवला रस पीने से पैत्तिक मूत्रकृच्छ में शीघ्र लाभ होता है।

#- रक्तप्रदर - रसोत को बकरी के दूध में शामिल करने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

#- असृग्दर,रक्तप्रदर - दाव्यार्दि क्वाथ10-30 मिलीग्राम में मधु मिलाकर अथवा रसांजन एवं चौलाई की जड़ के कल्क में मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथ पीने से सर्वदोषोत्पन्न असृग्दर का शमन होता है।

#- प्रदररोग - रसोत एवं चौलाई की जड़ में मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथपीने से सभी दोषों से उत्पन्नप्रदर में लाभ होता है।

#- प्रदररोग - दारूहल्दी रसोत, वासा, चिरायता, भिलावा तथा कालातिल से निर्मित क्वाथ 10-30 मिलीग्राम मे मधुमिलाकर पीने से प्रदर रोग मे लाभ होता है।

#- गर्भास्यशोथ- दारूहल्दी, रसोत , नागरमोथा भिलावा, बिल्वमज्जा, वासा पत्र और चिरायता इन द्रव्यों से निर्मित क्वाथ में, 1 चम्मच मधु मिलाकरपीने से गर्भशायिक अन्त:शोथजन्य प्रदर रोग तथा उदररोगो में लाभ होता है।

#- पूयमेह - दारूहल्दी काण्ड में हल्दी मिलाकर लगाने से पूयमेह में लाभ होता है।


#- सूजाक रोग - दारुहल्दी के तने का काढ़ा बनाएं। इसमें हल्दी मिलाकर लगाने से सुजाक रोग में लाभ होता है।

 #- सिफ़लिस - रसौत, शिरीष की छाल तथा हरीतकी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें।  इसमें मधु मिलाकर सिफलिश के घाव पर लगाएं। इससे घाव भर जाते हैं।

#- सिफ़लिस - रसौत, शिरीष की त्वचा तथा हरीतकी का बारीक चूर्ण (1-4 ग्राम) लें। इसमें मधु मिलाकर सिफलिश के घाव पर लेप के रूप में  लगाएं। इससे घाव ठीक हो जाता है।

 #- नाडीव्रण - रसोत, हल्दी ,दारूहल्दी , मंजीठ , नीम के पत्ते, निशोथ तेजोवती और दन्ती से निर्मित कल्क का लेप करने से नाडीव्रण का शोधन होकर घाव शीघ्र भरता है।

#- व्रण- दारूहल्दी की मूलछाल को पीसकर लगाने से व्रण का रोपण होता है।

#- शोथ- दारूहल्दी के मूलकल्क में अफ़ीम तथा सैंधानमक मिलाकर लेप करने से शोथ का शमन होता है।


#- व्रण - दारुहल्दी त्वचा के पेस्ट को तेल में पका लें। इस तेल को घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है।

#- कुष्ठ रोग - दारुहल्दी के पेस्ट (2-4 ग्राम) को गोमूत्र के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोगों में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - दारुहल्दी के काढ़ा से रसाञ्जन बनाएं और इसे तेल या घी में पकाएं। इसे पाउडर तथा चूर्ण की तरह प्रयोग करने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - बराबर-बराबर मात्रा में दारुहल्दी, खैर तथा नीम की छाल का काढ़ा बनाएं। इसे 10-30 मिली की मात्रा में नियमित रूप से पीने से सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों में लाभ होता है।

#- कुष्ठ रोग - दारुहल्दी की जड़ीबीज, हरताल, देवदारु तथा पान के पत्ते को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसमें चौथाई भाग शंखचूर्ण मिलाएं। इसे जल में पीस लें। इसका लेप करने से सिध्म जैसे कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
 


#- विसर्प रोग - दारुहल्दी छाल, वायविडंग तथा कम्पिल्लक से काढ़ा बना लें और इसे तेल में पका लें। इसे विसर्प रोगों में उपयोग करें। इससे लाभ होता है।
 


#- मूत्ररोग - दारुहल्दी के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें। इसमें आंवले का रस पीने से मूत्र रोगों में तुरंत लाभ होता है।
 




 


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रामबाण :- 23 -:

रामबाण :- 23 -:


#- आमवात - दालचीनी पत्रों के तैल को लगाने से आमवात में लाभ होता है।

#- चर्मरोग - शहद एवं दालचीनी को मिलाकर रोग ग्रसित भाग पर लगाने से कुछ ही दिनों में खुजली, खाज, फोड़ें, फुन्सियां जेसे रोग नष्ट हो जाते है।

#- नाडीव्रण - दालचीनी , आक का दूध तथा दारूहल्दी को पीसकर बत्ती बनाकर नाडीव्रण में डालने से नाडीव्रण रोग ( नाड़ी के अन्दर का घाव ) ठीक होता है।

#- दालचीनी पावडर या तैल घावों पर लगाने से घाव के कीड़ों को मारता है तथा घाव साफ करके घाव भरता है।

#- रक्तस्राव - फेफड़ों में रक्तस्राव हो , गर्भाशय में रक्तस्राव हो और अन्य किसी भी प्रकार के रक्तस्राव में दालचीनी का काढ़ा 10-20 मिलीग्राम सुबह , दोपहर, सायं पिलाने से रक्तस्राव मे लाभ होता है।

#- रक्तस्राव - शरीर में किसी भी अंग से रक्तस्राव होने पर एक चम्मच दालचीनी चूर्ण को एक कप पानी के साथ 2-3 बार सेवन करने से रोग मे लाभ होता है।

#- कोलैस्ट्राल - एक कप पानी में दो चम्मच मधु तथा 2-5 ग्राम दालचीनी चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन दिन लेने से कौलेस्ट्राल की मात्रा कम होती है या एक कप पानी में एक इंच लम्बा दालचीनी का टुकड़ा रातभर भिगोकर सुबह उसका पानी पीने से भी कौलेस्ट्राल कम होता है।

#- ज्वर - एक चम्मच शहद में 5 ग्राम दालचीनी का चूर्ण मिलाकर सुबह सायं सेवन करने से शीत प्रधान संक्रामक ज्वर में लाभ होता है।

#- सूतिका सर्वरोग - त्रिकटू , पीपरामूल , दालचीनी , इलायची , तेजपात , अकरकरा के 1-2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ चटाने से सूतिका के सभी रोगों का शमन होता है।

#- वाजीकरण - 2-5 ग्राम दालचीनी चूर्ण , 10 ग्राम मिश्री मिलाकर गाय के दूध के साथ पीने से बाजीकरण कर स्तम्भन को बढ़ाता है।

#- शिर शूल-बडी दुग्धिका के आक्षीर को मस्तक में लगाने से शिरशूल का शमन होता है तथा मुँह पर लगाने से मुहासे तथा दाद पर लगाने से दाद का शमन होता है।

#- नेत्रविकार-बड़ी दुग्धिका के 1-2 बूंद स्वरस को आंखों में डालने से नेत्रविकारों में लाभ होता है।

#- दंतरोग-दुद्धी मूल को चबाने तथा मुख में धारण करने से दंत रोगों में अत्यन्त लाभ होता है तथा दांत की वेदना का शमन होता है।

#- तोतलापन-1-2 ग्राम दुग्धिका चूर्ण को पान में रखकर चूसने से तोतलापन मिटता है।

#- श्वासकष्ट- बड़ी दुग्धिका का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पीने से श्वासकष्ट (दमा) तथा जीर्ण श्वसनी संक्रमण में लाभ होता है।

#- फुफ्फुस- शोथ-दुग्धिका के पत्रों का क्वाथ बनाकर 5-10 मिली मात्रा में प्रयोग करने से फुफ्फुस शोथ में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका-दुग्धिका को चावल में पकाकर तैल मिलाकर चावल के साथ खाने से रक्तज-प्रवाहिका (रक्तयुक्त पेचिश) में लाभ होता है।

#- रक्तार्श- 2-3 ग्राम छोटी कटेरी तथा बड़ी दुग्धिका कल्क से विधि पूर्वक पकाए हुए गौघृत को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से रक्तार्श में लाभ होता है।

#- अतिमूत्रता-1 ग्राम बड़ी दुग्धिका मूल में 5 ग्राम गुड़ तथा 500 मिग्रा जीरक चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अतिमूत्रता में लाभ होता है।

#- श्वेतप्रदर- 1-2 ग्राम बड़ी दुग्धिका पत्र कल्क में मधु मिलाकर सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
पूयमेह-1-2 ग्राम दुग्धिका मूल चूर्ण का सेवन करने से फिरंग, सूजाक तथा अन्य मूत्र विकारों में लाभ होता है।
कामशक्तिवर्धनार्थ-दुग्धिका पञ्चाङ्ग को छाया में सुखाकर पीसकर 1-2 ग्राम चूर्ण में शर्करा मिलाकर खाने से कामशक्ति बढ़ती है।

#- दाद , दद्नु-दुग्धिका स्वरस को दद्रु में लगाने से लाभ होता है।

#- विस्फोट-समभाग करञ्ज बीज, तिल तथा सरसों के कल्क में दुग्धिका कल्क मिलाकर लेप करने से विस्फोट रोग का शमन होता है।

#- दुग्धिका कल्क में लवण मिलाकर लगाने से रोमकूपशोथ में लाभ होता है।पञ्चाङ्ग को पीसकर लेप करने से घाव, विद्रधि, सूजन तथा ग्रंथिशोथ में लाभ होता है।शल्य निक्रमणार्थ-जिस जगह पर कांटा चुभ गया हो तथा निकल ना रहा हो तो उस जगह पर दुग्धिका का आक्षीर लगाने से कांटा निकल जाता है।

#- सर्पविष-बड़ी दुग्धिका के 5 ग्राम पत्तों में 2 ग्राम काली मिर्च मिलाकर पीसकर खाने से सर्पविष जन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- मधुमेह - 10-30 मिली दारुहल्दी के काढ़ा को मधु के साथ नियमित सेवन करने से डायबिटीज रोग में लाभ होता है।


#- लिवर - तिल्ली रोग - दारुहरिद्रा की जड़ की छाल से बने काढ़ा 10-30 मिली को पीने से लिवर और तिल्ली से जुड़े विकार ठीक होते हैं।
 


#- विषैले कीटदंश - दारुहल्दी आदि द्रव्यों से बने गौराद्य घी का प्रयोग करें। इससे विषैली कीड़े-मकौड़े और अन्य कीटों के काटने वाले स्थान पर लगाएं। इससे फायदा होता है।
 


#- सर्पदंश - सांप के काटने पर भी दारुहल्दी बहुत फायदा करता है। हल्दी एवं दारुहल्दी का विविध प्रयोग सांप के काटने के स्थान पर लगाएं। इससे फायदा होता है।
 

#- नेत्र अञ्जन - मधु और रसौत से बने अञ्जन का प्रयोग करें। इससे आंखों के लाल होने जैसी बीमारी में फायदा होता है।

 #- अर्जून रोग- रसोत तथा मधु से निर्मित अंजन का प्रयोग करने से अर्जून रोग में लाभ होता है।


#- रसौत को स्त्री के दूध के साथ घिसें। इसमें मधु मिलाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कान के बहने और कान में घाव होने की बीमारी में लाभ होता है।
 


#- नासारोग - रसौत, अतिविषा, नागरमोथा तथा देवदारु का पेस्ट बना लें। इस तेल में पकाएं। इस  तेल को 1-2 बूंद नाक में देने से जुकाम में लाभ होता है।
 


#- ख़ूनी बवासीर - रसौत को रात भर पानी में भिगोएं। इसे छानकर गाढ़ा बना लें। जब यह एक चौथाई बच जाए तो इसमें छाया में सुखाए हुए नीम के पत्तों का बारीक चूर्ण मिलाएं। इसका 250 मिग्रा की गोलियां बना लें। इसका सेवन करने से बवासीर और खूनी बवासीर में लाभ होता है।
 


#- कुष्ठ रोग - रसौत को तेल या गाय के घी में पकाएं। इससे स्नान करने या पीने या लेपर करने से या फिर घाव पर रगड़ने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।

#- कुष्ठ रोग - 10-12 ग्राम रसौत को 1 महीने तक 15-20 मिली गोमूत्र में घोल कर पिएं। इसके साथ ही इससे शरीर पर लेप करने से कुष्ठ में शीघ्र लाभ होता है।
 


#- साइनस - रसौत, हल्दी, दारुहल्दी, मंजीठ, नीम के पत्ते, निशोथ, तेजोवती और दन्ती का पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट का लेप करने से साइनस की बीमारी में लाभ होता है।
 


#- ग्रहपद्रव - 10 मिली कूष्माण्ड फल का रस लें। इसमें दारुहल्दी (जो पुष्य नक्षत्र में जमा किए गए हों) की छाल को महीन रूप से पीस लें। इसे दोनों आंखों पर काजल की तरह लगाने से ग्रहोपद्रव शान्त होते हैं।

 #- ग्रहबाधा - ( अहिपूतना ) पित्त तथा कफदोष नाशक द्रव्यों से सिद्ध 15-25 मिलीग्राम जल में 2 ग्राम मधु तथा 1 ग्राम शुद्ध रसोत मिलाकर धात्री को पिलाने से तथा लेप बनाकर शिशु के गुदा प्रदेश एवं व्रण पर लेप करने से शीघ्र रोग का निवारण होता है।

#- शिशु गुदपाक- शिशु को गुदपाक हो तो रसोत को जल या गाय के दूध में पीसकर गुदा में लेप करने से शीघ्र लाभ होता है।

#- शिशु गूदारोग - शिशु को गुदा से संबंधित बीमार हो जाए जैसे गुदा लाल हो गया हो और दर्द हो रहा हो तो दारुहरिद्रा का प्रयोग फायदा देता है। रसौत को जल या गाय के दूध में पीस लें। गुदा में लेप करने से शीघ्र लाभ होता है।

#- शिशु गुदापाक - पित्त-कफज विकार को ठीक करने वाले द्रव्यों वाले 15-25 मिली जल में 2 ग्राम मधु और 1 ग्राम शुद्ध रसौत मिलाएं। इसे स्तनपान कराने वाली माता को पिलाएं, और लेप बनाकर शिशु के गुदा और घाव पर लेप के रूप में लगाएं। इससे पित्त और कफज विकार जल्दी ठीक होते हैं।

 #- रोमसंजननार्थ - हाथी दाँत की भस्म में शुद्ध रसोत मिलाकर लेप करने से रोमसजनन होता है।


#- मोटापा - मोटापा कम करने के लिए दारुहरिद्रा के रसांजन का प्रयोग करना बहुत लाभ देता है।
अरणी की छाल काढ़ा के साथ 1-2 ग्राम रसांजन को लंबे समय तक तक सेवन करने से मोटापा घटता है।



#- हृदयरोग - रसौत तथा मधु से बने अञ्जन का प्रयोग करने से ह्रदय रोगों में लाभ होता है।


दारुहरिद्रा (daruharidra) के इस्तेमाल की मात्रा ये होनी चाहिएः-
चूर्ण- 0.5-3 ग्राम
रस- 1-2 ग्राम
काढ़ा- 50-100


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