रामबाण :- 24 -:
#- विषमज्वर - दारुहरिद्रा की जड़ की छाल से काढ़ा बनाएं। इसे 10-20 मिली की मात्रा में सेवन करने से साधारण बुखार और गंभीर बुखार , विषमज्वर में लाभ होता है।
#- व्रणरोपण - दारुहल्दी की जड़ की छाल को पीस लें। इसे घाव पर लगाएं। घाव जल्दी सुख जाता है।
#- सूजन - दारुहल्दी की जड़ का पेस्ट बनाएं। इसमें अपांप्म तथा सेंधा नमक मिलाकर लेप करने से सूजन ठीक हो जाती है।
#- आँख की काजल - 50 ग्राम दारुहल्दी पेस्ट को 16 गुना जल में पकाएं। इस काढ़ा को मधु मिला कर आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों के विकार ठीक होते हैं।
#- आँख की काजल - 1 भाग रसांजन तथा 3 भाग त्रिकटु को मिलाकर 250 मिग्रा की गोलियां बनाएं। इसे जल में घिसकर काजल की तरह लगाने से आंखों की खुजली, आंखों का लाल होना आदि रोगों में लाभ होता है।
#- आँख की काजल - रसांजन, दारुहल्दी, हल्दी, चमेली और निम्बु के पत्ते लें। इन्हें गोबर के पानी में पीस लें। इसकी वर्ति बनाकर जल में घिसकर काजल की तरह लगाएं। इससे आंखों के पलकों से संबंधित विकारों में लाभ होता है।
#- आँख रोग - बराबर-बराबर मात्रा में हरीतकी, सेंधा नमक, गैरिक तथा रसांजन का लेप बनाएं। इसे पलकों पर लेप करने से पलकों से संबधित रोगों में लाभ होता है।
#- नेत्ररोग - दारुहल्दी तथा पुण्डेरिया की त्वचा का काढ़ा बनाएं। इसे कपड़े से अच्छी तरह छानकर आंखों में बूंद-बूंद डालें। इससे नेत्र रोग में फायदा होता है।
#- नेत्ररोग - रसाञ्जन को आंखों में लगाने भी आंखों की बीमारी ठीक होती है।
#- नेत्ररोग - दारूहल्दी मूलपाठ से प्राप्त सत् को नेत्रों में लगाने से नेत्ररोगों में लाभ होता है।
#- ज़ुकाम - दारुहल्दी की छाल के पेस्ट की वर्ति बनाएं। इसका धूम्रपान करने से जुकाम ठीक होता है।
#- मुखरोग - दारुहल्दी काढ़ा का रसांजन बनाएं और मधु के साथ खाएं। इसके साथ ही लेप के रूप में प्रयोग करें। इससे मुंह का रोग, रक्त विकार तथा साइनस ठीक होता है।
#- नाडीव्रण - दारूहल्दी मूल का पेस्ट बनाकर घाव पर लगाने से नाडीव्रण का शमन होता है।
#- मुँह के छालें - चमेली के पत्ते, त्रिफला, जवासा, दारुहरिद्रा, गुडूची तथा द्राक्षा को मिलाकर काढ़ा बनाएं। 10-30 मिली काढ़ा को शहद में मिलाकर पीने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
#- पेटरोग - दार्व्यादि काढ़ा (10-30 मिली) में 6 माशा मधु मिलाकर सेवन करने से सभी तरह के पेट के रोगों में लाभ होता है।
#- पिलिया - 1.5 लीटर गोमूत्र, दारुहल्दी तथा कालीयक पेस्ट को 750 ग्राम भैंस के घी में पकाएं। इसे दार्वीघी कहते हैं। इसे 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पीलिया में लाभ होता है।
#- पिलिया - दारुहल्दी के 5-10 मिली रस लें या निम्बू के पत्ते के रस या गुडूची के रस के साथ 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से भी पीलिया में फायदा होता है।
#- पाण्डूरोग - प्रातःकाल दारूहल्दी स्वरस ( 5-10 ) या क्वाथ 10-30 मिलीग्राम मधु में मिलाकर सेवन करने से पाण्डूरोग का शमन होता है।
#- यकृतप्लीहा वृद्धि - दारूहल्दी मूलछालसे निर्मित फाण्ट 10-30 मिलीग्राम को पीने से यकृत तथा प्लीहा - वृद्धि का शमन होता है।
#- एनीमिया व पिलिया - सुबह दारुहल्दी के रस (5-10 मिली) या काढ़ा (10-30 मिली) में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे एनीमिया में फायदा होता है। यह पीलिया में भी लाभ पहुंचाता है।
#- कफजवृद्धिरोग - कफज विकार को ठीक करने के लिए दारुहल्दी का प्रयोग लाभ देता है। दारुहल्दी के 2-4 ग्राम पेस्ट को गोमूत्र के साथ सेवन करें। इससे कफज-वृद्धि रोग का ठीक होता है।
#- ल्यूकोरिया , श्वेतप्रदर - दार्व्यादि काढ़ा (10-30 मिली) में मधु मिलाएं अथवा रसांजन एवं चौलाई की जड़ के पेस्ट में मधु मिला कर चावल के धोवन के साथ पिएं। इससे सभी तरह की ल्यूकोरिया ठीक होती है।
#- ल्यूकोरिया, श्वेतप्रदर - दारुहरिद्रा, रसाञ्जन, नागरमोथा, वासा, चिरायता, भल्लातक तथा काला तिल लें। इससे काढ़ा बना लें। 10-30 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर पीने से ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।
#- गर्भाशय सूजन व ल्यूकोरिया - दारुहल्दी, रसाञ्जन, नागरमोथा, भल्लातक, बिल्वमज्जा, वासा पत्ते और चिरायता का काढ़ा बना लें। इस काढ़ा में 1 चम्मच मधु मिलाकर पीने से गर्भाश्य में सूजन आदि के कारण होने वाली ल्यूकोरिया की बीमारी सहित पेट के रोगों में लाभ होता है।
#- ल्यूकोरिया - रसौत को बकरी के दूध के साथ सेवन करने से ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
#- ल्यूकोरिया - रसौत एवं चौलाई की जड़ से पेस्ट बनाएं। इसमें मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथ पीने से सभी दोषों के कारण होने वाली ल्यूकोरिया में फायदा होता है।
#- प्रमेहरोग - 10-30 मिलीग्राम दारूहल्दी क्वाथ को मधु के साथ नियमित सेवन करने से प्रमेहरोग मे लाभ होता है।
#- पिष्टमेह- रीमाहल्दी व दारूहल्दी का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम पीने से पिष्टमेह मे लाभ होता है।
#- मूत्रकृच्छ - दारूहल्दी चूर्ण को मधु के साथ सेवन करके अनुपान रूप में आँवला रस पीने से पैत्तिक मूत्रकृच्छ में शीघ्र लाभ होता है।
#- रक्तप्रदर - रसोत को बकरी के दूध में शामिल करने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
#- असृग्दर,रक्तप्रदर - दाव्यार्दि क्वाथ10-30 मिलीग्राम में मधु मिलाकर अथवा रसांजन एवं चौलाई की जड़ के कल्क में मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथ पीने से सर्वदोषोत्पन्न असृग्दर का शमन होता है।
#- प्रदररोग - रसोत एवं चौलाई की जड़ में मधु मिलाकर चावल के धोवन के साथपीने से सभी दोषों से उत्पन्नप्रदर में लाभ होता है।
#- प्रदररोग - दारूहल्दी रसोत, वासा, चिरायता, भिलावा तथा कालातिल से निर्मित क्वाथ 10-30 मिलीग्राम मे मधुमिलाकर पीने से प्रदर रोग मे लाभ होता है।
#- गर्भास्यशोथ- दारूहल्दी, रसोत , नागरमोथा भिलावा, बिल्वमज्जा, वासा पत्र और चिरायता इन द्रव्यों से निर्मित क्वाथ में, 1 चम्मच मधु मिलाकरपीने से गर्भशायिक अन्त:शोथजन्य प्रदर रोग तथा उदररोगो में लाभ होता है।
#- पूयमेह - दारूहल्दी काण्ड में हल्दी मिलाकर लगाने से पूयमेह में लाभ होता है।
#- सूजाक रोग - दारुहल्दी के तने का काढ़ा बनाएं। इसमें हल्दी मिलाकर लगाने से सुजाक रोग में लाभ होता है।
#- सिफ़लिस - रसौत, शिरीष की छाल तथा हरीतकी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें मधु मिलाकर सिफलिश के घाव पर लगाएं। इससे घाव भर जाते हैं।
#- सिफ़लिस - रसौत, शिरीष की त्वचा तथा हरीतकी का बारीक चूर्ण (1-4 ग्राम) लें। इसमें मधु मिलाकर सिफलिश के घाव पर लेप के रूप में लगाएं। इससे घाव ठीक हो जाता है।
#- नाडीव्रण - रसोत, हल्दी ,दारूहल्दी , मंजीठ , नीम के पत्ते, निशोथ तेजोवती और दन्ती से निर्मित कल्क का लेप करने से नाडीव्रण का शोधन होकर घाव शीघ्र भरता है।
#- व्रण- दारूहल्दी की मूलछाल को पीसकर लगाने से व्रण का रोपण होता है।
#- शोथ- दारूहल्दी के मूलकल्क में अफ़ीम तथा सैंधानमक मिलाकर लेप करने से शोथ का शमन होता है।
#- व्रण - दारुहल्दी त्वचा के पेस्ट को तेल में पका लें। इस तेल को घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है।
#- कुष्ठ रोग - दारुहल्दी के पेस्ट (2-4 ग्राम) को गोमूत्र के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोगों में लाभ होता है।
#- कुष्ठ रोग - दारुहल्दी के काढ़ा से रसाञ्जन बनाएं और इसे तेल या घी में पकाएं। इसे पाउडर तथा चूर्ण की तरह प्रयोग करने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है।
#- कुष्ठ रोग - बराबर-बराबर मात्रा में दारुहल्दी, खैर तथा नीम की छाल का काढ़ा बनाएं। इसे 10-30 मिली की मात्रा में नियमित रूप से पीने से सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों में लाभ होता है।
#- कुष्ठ रोग - दारुहल्दी की जड़ीबीज, हरताल, देवदारु तथा पान के पत्ते को बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसमें चौथाई भाग शंखचूर्ण मिलाएं। इसे जल में पीस लें। इसका लेप करने से सिध्म जैसे कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
#- विसर्प रोग - दारुहल्दी छाल, वायविडंग तथा कम्पिल्लक से काढ़ा बना लें और इसे तेल में पका लें। इसे विसर्प रोगों में उपयोग करें। इससे लाभ होता है।
#- मूत्ररोग - दारुहल्दी के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें। इसमें आंवले का रस पीने से मूत्र रोगों में तुरंत लाभ होता है।
Sent from my iPhone
No comments:
Post a Comment