रसायन :- चोपचीनी -
परिचय - चोपचीनी लता जाति की वनस्पति है, इसकी मूल के टुकड़े प्राय: 15-20 सेंटीमीटर बडे होते है । इसका टुकड़ा चिकना, खुरदरा , या वज़नदार तथा हल्का होता है इसमें सबसे अच्छी चोपचीनी वहीं होती है जिसका रंग लाल या गुलाबी हो,स्वाद मीठा हो और चमकदार , चिकनी हो, तथा गाँठें कम हो, और रेशे ज़्यादा न हो , जो भीतर तथा बाहर एक रंग की हो , और पानी में डालने पर डूब जायें , जो टुकड़े वज़न में हल्के व सफेद रंग के होते है। उनको कच्चा समझना चाहिए चोपचीनी का मुख्यतया प्रयोग फिरंग की चिकित्सा में किया जाता है । यह मूलत: चीन, जापान, बर्मा , नेपाल व भारत के पहाड़ी इलाक़ों मे होती है।
बाह्यस्वरूप - यह कंटकित कठोर , स्थूल , प्रकन्दयुक्त , विस्तार से फैलने वाली वनस्पति है, इसके पत्र सरल , एकांतर , गोलाकार, अण्डाकार , 3-5 मुख्य स्पष्ट तंत्रिकायुक्त 3.2-8.2 सेमी लम्बे एवं 2.5-5 सेमी चौड़े होते है , इसके पुष्प श्वेतवर्ण के छोटे होते है।इसके फल 8 मिलीमीटर व्यास के चमकीले रक्तवर्ण के गोलाकार, सरस, व मांसल होते है,। इसकी मूल 15-20 सेमी लम्बी , -3 सेमी व्यास की , कंद समान , भारी गांठदार , रेशे रहित होती है। इसका पुष्पकाल व फलकाल अगस्त से दिसम्बर तक होता है।
वनस्पतिक नाम - स्माइलेक्स चाईना , कुल - स्माइलेकेसी , अंग्रेज़ी नाम - चाईना रूट ,संस्कृत - द्वीपान्तरवचा , अमृतोपहिता; हिन्दी - चोपचीनी , चोपचीनी , चोबचीनी, अंग्रेज़ी - बैम्बू ब्रेअर रूट आदि नामो से जाना जाता है ।
रासायनिक संघटन - चोपचीनी प्रकन्द में टैनिन, स्टार्च, राल , सिनकोनिन , स्माइलेसिन , सैपोनिन , फलेवोनॉइड, ग्लाइकोसाइड, डायोसजेनिन तथा रूटीन पाया जाता है। इसके बीजों में वाष्पशील तैल पाया जाता है । इसके पत्र में रूटिन पाया जाता है तथा इसके फल में सीलीबिन पाया जाता है ।
#- चोपचीनी ( बैम्बू ब्रेअर रूट Bamboo briar root ) कटू , तिक्त, उष्ण, लघु , रूक्ष , त्रिदोषनाशक , दीपन मल- मूत्र शोधक बलकारक , धातुवर्धक , तारूण्यप्रदायक ( जवानी लाने वाला ) पौष्टिक , वृष्य त था रसायन है ।
यह विबंध , अध्मान, शूल, वातव्याधि , अपस्मार , उन्माद , गात्र वेदना , फिरंग , धातुक्षय , उपदंश , कटिग्रह , पक्षाघात , ऊरूस्तम्भ , राजक्षमा , व्रण, गण्डमाला , नेत्ररोग , शुक्रशोणित दोष , सर्वांगवात , कम्पवात , कुब्जवात , कुष्ठ तथा विसर्प नाशक है। इसका प्रकन्द शोथरोधी , कर्कटार्बुदरोधी तथा रक्तस्कन्दरोधी क्रियाओं को प्रदर्शित करता है
पौधे के अपरिष्कृत सत्त् के ईथाइल ऐसीटेट खण्ड से पृथककृत सीबोल्डोजेनिन ( Seiboldogenin ) परखनलीय एवं जैवकीय परीक्षण में शोथहर क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। इसका मूल सत्त् मुक्तमूलक अपमार्जक ( Free radical scavenging ) तथा अनाक्सीकारक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता है। इसके प्रकन्द से प्राप्त अपरिष्कृत सत्त् मानवीय कर्कटार्बुद कोशिका रेखाओं पर कोशिकाविषी तथा प्रफलनरोधी प्रभाव प्रदर्शित करता है ।
चोपचीनी कटू, तिक्त , उष्ण , लघु, रूक्ष , त्रिदोषनाशक है, दीपन,मलमूत्र शोधक , बलकारक , धातुवर्धक , तारूण्यप्रदायक , पौष्टिक , वृष्य तथा रसायन होती है।
औषधिय प्रयोग -
#- शिर:शूल - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को गाय के दूध से बने मक्खन तथा मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से शिर: शूल में लाभ होता है ।
#- कण्ठमाला - 1-3 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में शहद मिलाकर खाने से कण्ठमाला में लाभ होता है ।
#- भगंदर - 2-4 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में शक्कर , मिश्री तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने के बाद गाय का दूध पीने से भगन्दर में लाभ होता है।
#- फिरंग रोग - 1-2 ग्राम चोपचीनी के चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से फिरंग रोग का शमन होता है।
#- उपदंश - सोंठ , गोखरू , वायविडंग , दालचीनी को समभाग लेकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को प्रतिदिन मधु मिलाकर 5-6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से उपदंश, प्रेमह , व्रण , वातरोग , एवं कुष्ठ रोग का शमन करता है इस अवधि मे परहेज़ का ध्यान अवश्य रखे ।
#- उपदंश+ कुष्ठ - चोपचीनी का चूर्ण 50 ग्राम , पीपर , पीपरामूल , मरिच , सोंठ ,अकरकरा तथा लवंग का चूर्ण ( प्रत्येक 12-12 ग्राम) और 650 ग्राम शर्करा को मिलाकर 5-10 ग्राम का मोदक ( लड्डू ) बनाकर प्रात: सायं सेवन करने से उपदंश , कुष्ठ , वातरोग , धातुक्षय आदि में अत्यन्त लाभकारी होता है ।
#- 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में समभाग अनन्तमूल चूर्ण मिलाकर प्रयोग करने से फिरंग मे लाभ होता है ।
#- सन्धिवात - उसब्वा और चोपचीनी के 25-50 मिली काढ़े में शहद मिलाकर प्रात: सायं सेवन करने से वातरोगो का विशेषकर जोड़ो के दर्द का शमन होता है। इस अवधि में अम्लादि पदार्थ का सेवन सर्वथा वर्जित है।
#- आमवात ( गठिया )- 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण में समभाग अन्नतमूल चूर्ण मिलाकर सेवन करने से आमवात ( गठिया ) मे लाभकारी होता है ।
#- गठिया - चोपचीनी का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा मे पिलाने से गठिया रोग में लाभ होता है। तथा चोपचीनी तैल का मर्दन करने से भी गठिया में अत्यन्त लाभ होता है।
#- त्वचा विकार- 2-3 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को शहद में मिलाकर खाने से चर्मरोगों में लाभ होता है ।
#- दौर्बल्य - 1-2 ग्राम चोपचीनी चूर्ण को दो गुणा शक्कर मिलाकर गौदुग्ध के साथ सेवन करने से दौर्बल्य का शमन होकर शरीर में ताक़त का संचार होता है ।
#- अपस्मार - समभाग वचा , अम्लतास का गुद्दा , बकायन की छाल ब्राह्मी , हींग , चोरक तथा गुग्गुल से बनाए कल्क को गौघृत के साथ पकाकर 3 ग्राम की मात्रा में प्रयोग करने से वातज , कफज , तथा वातकफज अपस्मार में लाभ करता है।
Sent from my iPhone
No comments:
Post a Comment