रामबाण-4:-
#- स्मरणशक्ति- वर्धनार्थ :- गुड़हल की फूलों व पत्तों को सुखाकर दोनों को समभाग मिलाकर पीसकर शीशी में भरकर रख लें, एक चम्मच की मात्रा में सुबह- सायं एक कप मीठे गाय के दूध के साथ पीने से स्मरणशक्ति बढ़ती है।
#- सूजन, दर्द - गुड़हल के पत्तों तथा पुष्पों को पानी में पीसकर लेप बनाकर शरीर में जहाँ पर सूजन व दर्द के स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।
#- ज्वर - 20 मिलीग्राम गुड़हल मूल तथा गुड़हल पत्र फाण्ट का सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
#- ज्वर - 10 ग्राम गुड़हल पुष्प कल्क में शर्करा मिलाकर सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।
#- गुड़हल का शर्बत बनाने की विधी- गुड़हल के 100 फूल लेकर हरे डण्ठल को दूर कर फूल की पंखडियों को नींबू के रस में भिगोकर काँच के बर्तन में रात्रि में किसी खुले स्थान पर रख दें , प्रात: काल मसल- छानकर , इसमें 650 ग्राम धागा मिश्री पावडर मिलायें तथा एक बोतल उत्तम गुलाब जलमिलाकर , दो बोतलों में बंदकर धूप में दो दिन तक रखें , तथा हिलाते रहे । मिश्री अच्छी तरह घुलमिल जाने पर शरबत बन जाता है । इस शरबत की 5-6 मिलीग्राम तक की मात्रा में पीते रहने से शिर:शूल , जी मिचलाना, बेहोशी , चक्कर, नकसीर, अत्यधिक मासिकस्राव , नेत्रदाह, अरूची, छाती की जलन , उन्माद , निद्रानाश , आदि में लाभकारी सिद्ध होता है।
#- गुड़हल शरबत बनाने की विधी - गुड़हल के 100 पुष्प लेकर शीशे की बरनी में डालकर , 5 ग्राम कालीमिर्च पावडर , 20 नींबू निचोड़कर ढक दें, रातभर रखने के बाद , प्रात: काल मसलकर कपड़े में छानकर रस निकाल लें । रस में 800 ग्राम धागा मिश्री पावडर , 200 ग्राम गुले गाजबान का अर्क , 200 मिलीग्राम मीठे अनार का रस तथा 200मिलीग्राम संतरे का रस मिलाकर मंद- मंद अग्नि पर पकायें । जब चासनी गाढ़ी हो जायें तो उतारकर 250 ग्राम कस्तूरी , अम्बर 3 ग्राम , केशर 3 मिलीग्राम , तथा आवश्यकतानुसार गुलाबअर्क मिलाकर अच्छी तरह हिला- मिलाकर शरबत बनायें। यह शरबत हृदय तथा मानसिक शान्ति प्रदान करता है तथा उन्माद , पैत्तिक ज्वर तथा हर प्रदर में लाभकारी सिद्ध होता है।
#- नेत्र- विकार - बच्चों में जब दाँत निकलते हो , उस समय होने वाले नेत्राभिष्यंद में जामुन के 15-20 कोमल पत्रों को 400 मिलीग्राम पानी में पकाकर चतुर्थांश जब शेष रह जायें तो इस जल से आँखों को धोने से लाभ होता है।
#- मोतियाबिंद - जामुन की गुठली के चूर्ण को शहद में घोटकर तीन- तीन ग्राम की गोलियाँ बनाकर प्रतिदिन एक- दो गोली सुबह- सायं खाने से और इन्हीं गोलियों को शहद में घिसकर अञ्जन लगाने से मोतियाबिंद मे लाभ होता है।
#- कर्णपूय- स्राव :- जामुन की गुठली को शहद में घोटकर 1-2 बूँद कान में डालने से कान का बहना बन्द हो जाता है।
#- दाँत रोग - जामुन के पत्तों की राख को दाँत और मसूड़ों पर मलने से दाँत व मसूड़े मज़बूत होते है।
#- पायरिया - जामुन के पके हुए फलों के रस को मुख में भरकर , अच्छी तरह हिलाकर कुल्ला करने से पायरिया ठीक होता है।
#- मुँह के छालें - जामुन पत्र स्वरस से कुल्ला करने से मुँह के छालों में आराम आता है।
#- कण्ठ रोग- 5-6 जामुन नित्यप्रति खाने से गले के रोगों का शमन होता है।
#- श्वासनलिका शोथ - 1-2 ग्राम जामुन छाल चूर्ण का सेवन शहद के साथ करने से श्वास नली की सूजन में आराम आता है।
#- ख़ूनी अतिसार - 2-5 ग्राम जामुन छाल में 2 चम्मच मधु मिलाकर 250 मिलीग्राम गाय के दूध के साथ पिलाने से अतिसार के साथ आने वाला रक्त रूक जाता है।
#- अतिसार - जामुन की गुठली समभाग आम की गुठली और काली हरड़ मिलाकर भूनकर खाने से पुराने से पुराना अतिसार बन्द हो जाता है।
#- संग्रहणी - 10 मिलीग्राम जामुन छाल - स्वरस में समभाग बकरी का दूध मिलाकर पिलाने से संग्रहणी में लाभ होता है।
#- प्रवाहिका - 10 ग्राम जामुन छाल को 500 मिलीग्राम पानी में पकाकर चतुर्थांश शेष क्वाथ बनाकर पीने से प्रवाहिका और पुराने अतिसार में तुरन्त लाभ होता है। इस क्वाथ को 20-30 मिलीग्राम की मात्रा दिन में 3 बार देना चाहिए ।
#- प्लीहाशोथ - 10 मिलीग्राम जामुन की गुठली का रस पीने से तिल्ली की सूजन में लाभ होता है।
#- छर्दि ( जी मिचलाना )- आम तथा जामुन दोनों के समभाग कोमल पत्रों को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिलीग्राम पानी में पकायें , जब चतुर्थांश शेष क्वाथ को ठंडा करके पिलाने पित्तज छर्दि बन्द होती है।
#- अर्श रोग - जामुन की कोमल कपोलों के 20 मिली स्वरस में थोड़ी सी शक्कर मिलाकर दिन में तीन बार पीने से बवासीर में बहने वाला ख़ून बन्द हो जाता है।
#- अर्श - 10 ग्राम जामुन के कोमल पत्तों को 250 मिलीग्राम गाय के दूध में घोटकर सात दिन तक सुबह , दोपहर, सायं को पीने से ख़ूनी बवासीर मे गिरने वाला ख़ून बन्द होता है।
#- यकृतरोग - जामुन फल के अन्दर लोहे का अंश पाया जाता है , जो सौम्य होने से कोई अनिष्ट पैदा नहीं करता , इसीलिए जामुन का 10 मिलीग्राम सिरका नित्य लेने से तिल्ली और यकृत की वृद्धि में बहुत लाभ होता है।
#- कामला - जामुन के 10-15 मिलीग्राम रस में 2 चम्मच मधु मिलाकर सेवन करने से पीलिया , ख़ून की कमी तथा रक्तविकार में लाभ होता है।
#- पथरी - 10-12 पके हुए जामुन फल प्रतिदिन खाने से गुर्दे की पथरी गल कर निकल जाती है।
#- पथरी - जामुन के 10 मिलीग्राम रस में 250 मिलीग्राम सैंधानमक मिलाकर दिन में 2-3 बार कुछ दिनों तक निरन्तर पीने से मुत्राशय की पथरी नष्ट होती है।
#- पथरी- जामुन के 10-15 ग्राम कोमल पत्तों को पीसकर कल्क बनाकर इसमें 2-3 नग कालीमिर्च का चूर्ण बुरककर सुबह- सायं सेवन करने से अश्मरी ( पथरी ) के टुकड़े - टुकड़े होकर मूत्रमार्ग से मूत्र के साथ बाहर निकल जाते है, अश्मरी यह एक उत्तम उपचार है।
#- उपदंश , सिफ़लिस ( लिंग के अग्रभाग पर छालें या दाने होना )- उपदंश एवं फिरंग आदि त्वग् विकारों में इसके पत्तों से पकाया हुआ तैल लगाने से आराम आता है।
#- व्रण, घाव- जामुन छाल को महीन पीसकर घाव पर छिड़कने से शीघ्र घाव भरकर ठीक हो जाता है।
#- व्रण, घाव - जामुन के 5-6 पत्तों को पीसकर लगाने से घावों में से पीव ( पूय ) बाहर निकल जाता है एवं घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
#- व्रण, घाव- जामुन काण्ड त्वक क्वाथ से घाव को धोने से घाव का शोधन तथा रोपण होकर घाव जल्दी ठीक होता है।
#- अग्निदग्ध - जामुन के 8-10 कोमल पत्तों को पीसकर आग से जले हुए स्थान पर बने सफेद दाग को पर लगाने से सफेद दाग मिट जाते है।
#- जूतों के काटने पर - तंग जूतों से पैरों में ज़ख़्म हो जाये तो जामुन की गुठली को पानी में पीसकर लगाने से अच्छा हो जाता है।
#- रक्तपित्त - 5-8 मिलीग्राम जामुन पत्र स्वरस का दिन में तीनबार भोजन से पहले नियमित सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
#- रक्तपित्त - जामुन की एक चम्मच छाल को रात में पानी मे भिगोकर रखें, सुबह उसे मसलकर छान लें, इस प्रकार हिमफाण्ट में मधु मिलाकर पिलाने से रक्तपित्त मे लाभ होता है।
#- कुचला विष - जामुन की सूखी हुई गुठली को पीसकर 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कुचले से उत्पन्न विषाक्त प्रभावों का शमन करता है।
#- विषाक्त - जामुन के पत्तों को पानी मे पीसकर ज़हरीले जानवर के दंश से पीड़ित व्यक्ति को पिलाने से दंश जन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
#- मधुमेह - जामुन की 100 ग्राम जड़ को साफ कर , 250 मिलीग्राम पानी में पीसकर 20 ग्राम धागा मिश्री पावडर डालकर प्रात: सायं भोजन से पहले पीने से मधुमेह में लाभ होता है।
#- मधुमेह - जामुन की गुठलियों का चूर्ण एक भाग , शूण्ठी चूर्ण एक भाग , गुडमार बूटी दो भाग , इन तीनों चीज़ों को मिलाकर , पीसकर कपडछान करके मिश्रण को घृतकुमारी के रस में तर कर बेरी जैसी गोलियाँ बनाकर दिन में तीनबार 1-1 गोली मधु के साथ लेने से मधुमेह एवं प्रेमह रोगों मे लाभकारी होता है।
#- मधुमेह - 300-500 मिलीग्राम जामुन के सुखे बीज चूर्ण को दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभ होता है ।
#- मधुमेह - 250 ग्राम जामुन के पके हुए फलो को 500 मिलीग्राम उबलते हुए जल में डालकर कुछ समय के लिए उबलने दे, थोड़ी देर बाद ठंडा होने पर फलो को मसलकर कपड़े मे छान ले, प्रतिदिन तीनबार पीने से मधुमेह व धातुक्षीणता में लाभ होता है।
#- मधुमेह - बडे आकार के जामुन के फलो को धूप में सुखाकर चूर्ण कर ले, 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में दिन में तीनबार सेवन करने से मधुमेह में लाभकारी सिद्ध होता है।
#- मधुमेह - जामुन की छाल की राख मधुमेह की उत्तम औषधि है , 625 मिलीग्राम 2 ग्राम तक की मात्रा दिन मे तीन बार सेवन करने से कुछ ही दिनों में पेशाब में शक्कर आना बन्द हो जाता है।
#- खालित्य- पालित्य ( सिर का गंजापन )- जयंती ( इजिप्सियन रैटल पॉड ) के पत्रों को पीसकर सिर में लगाने से या जयंती के पत्रों का क्वाथ बनाकर सिर को धोने से खालित्य - पालित्य में लाभ होता है।
#- जयंती के फूलो को तिल तैल में पकाकर , छानकर , उस तैल को छाती और मस्तक पर लगाने से शिर:शूल तथा प्रतिश्याय ( नज़ला ) में लाभ होता है।
#- स्वरभेद - जयंती के पत्रों का क्वाथ बनाकर 15-20 मिलीग्राम मात्रा में पिलाने से स्वरभेद , प्रतिश्याय , इक्षुमेह , बहुमूत्रता , आदि विकारों में लाभ होता है। तथा जयंती पत्र कल्क को आटे मे मिलाकर उसकी रोटी बनाकर सेवन करने से कफज विकारों मे लाभ होता है।
#- अतिसार - 1-2 ग्राम जयंती चूर्ण तथा 5 मिलीग्राम जयंती छाल का स्वरस सेवन करने से अतिसार एवं अग्निमांद्य में लाभ होता है तथा 1-2 ग्राम जयंती बीज चूर्ण को खिलाने से अतिसार में लाभ होता है।
#- प्लीहावृद्धि - जयंती के बीज तथा त्वक को पीसकर उदर पर लेप करने से बढ़ी हुई प्लीहा तिल्ली सामान्य हो जाती है।
#- अण्डकोष वृद्धि - जयंती पत्रों को पीसकर लेप बनाकर लगाने से अण्डकोषों की सूजन मिटती है।
#- मासिक विकार - 1-2 जयंती बीज चूर्ण का सेवन करने से मासिक विकारों में लाभ होता है।
#- श्वित्र रोग ( सफेद ) - 1 ग्राम श्वेत जयंती मूल को गाय के दूध के साथ घोट- पीसकर सेवन करने से संफेद दाग मिटते है।
#- त्वक विकार - जयंती बीज स्वरस को खुजली तथा अन्य त्वचा की बिमारियां ठीक होती है।
#- त्वचा विकार - जयंती के बीजों में चक्रमर्द ( पवाड ) के बीज मिलाकर दोनों को पीसकर त्वचा पर लगाने से विकारों का समन होता है ।
#- त्वचा रोग- 5 मिलीग्राम जयंती छाल स्वरस में मधु मिलाकर पीने से त्वचा रोगों में लाभ करता है।
#- मसूरिका( खसरा ) - जयन्ती के बीजों पीसकर , गौघृत मे मिलाकर लगाने से मसूरिका तथा विस्फोट आदि विकारों में लाभ होता है।
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