Sunday, 7 March 2021

रामबाण:-9-:

रामबाण:-9-:

#- क्षयरोग - 2-4 ग्राम तालीश पत्र चूर्ण में अडूसा पत्र का रस 10 मिलीग्राम मिलाकर खिलाने से क्षय रोग में लाभ होता है।

#- अाध्मान - तालीश पत्र चूर्ण में 2 ग्राम अजवाइन चूर्ण मिलाकर खाने से आध्मान (अफारा ) में लाभ होता है।

#- उदरशूल - 2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में कालानमक मिलाकर खाने से उदरशूल मे लाभ होता है।

#- अतिसार - 2-4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में 2 ग्राम इन्द्रयव ( इन्द्र जौ ) मिलाकर खाने से अतिसार मे लाभ होता है। तथा तालीशपत्र चूर्ण को शरबत के साथ पीने से अतिसार मे लाभ होता है।

#- अजीर्ण - 2 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण मे लाभ होता है।

#- अपस्मार - तालीशपत्र चूर्ण 2-4 ग्राम मे समभाग बच चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से अपस्मार मे लाभ होता है।

#- अरूचि - 2 ग्राम कपूर , 20 ग्राम मिश्री तथा 4 ग्राम तालीशपत्र चूर्ण को मिलाकर 500 मिलीग्राम की गोलियाँ बनाकर प्रात: सायं 1-1 गोली को मुख मे रखकर चूसने से अरूचि का शमन होता है।

#- पीनस रोग - तिन्तिडीक ( Small flowered poison sumac स्मॉल फलावरड पॉइजॅन सुमैक )आदि द्रव्यों से निर्मित व्योषादि वटी 1-2 वटी का सेवन करने से पीनस , श्वास तथा कास रोग का शमन होता है।

#- कर्णशूल - बिजौरा नींबू , दाड़िम ( अनार ) तिन्तिडीक स्वरस तथा गौमूत्र से सिद्ध तैल को कान में 1-2 बूँद डालने से कर्णशूल का शमन होता है ।

#- राजयक्षमाजन्य मुख विसरता - समभाग अजवाइन तथा तिन्तिडीक के चूर्ण की 250 मिलीग्राम की वटी बनाकर वटी को मुख मे रखकर चूसने से, अथवा चूर्ण को मंजन के रूप में प्रयुक्त करने से या चूर्ण को पानी मे घोलकर कवल ( गरारा ) धारण करने से यक्ष्माजन्य मुखविरसता का शमन होता है।

#- अर्श आदि विकार - तिन्तिडीक आदि द्रव्यों से निर्मित यवानी षाॾव चूर्ण का मात्रानुसार प्रयोग करने से जिह्वा का विशोधन होता है तथा अरूचि , हृत्शूल , प्लीहाशूल , पार्श्वशूल , विबन्ध , अनाह , कास , श्वास , ग्रहणी तथा अर्श आदि विकारों का शमन होता है ।

#- उदर विकार - तिन्तिडीक आदि द्रव्यों से निर्मित हिग्वादिचूर्ण का 2-3 ग्राम मात्रा में सेवन करने से उदरशूल , पार्श्वशूल , हृद्वेना , वस्तिशूल , गुल्म , अरूचि , हिक्का , कास , श्वास तथा गलग्रह आदि रोगों में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका - तिन्तिडीक , कालीमिर्च , धनिया आदि द्रव्यों से निर्मित चटनी का सेवन अग्निवर्धक , पाचक, ग्राही , रूचीकर तथा प्रवाहिका रोग शामक होता है।

#- अतिसार - तिन्तिडीक त्वक चूर्ण पोटली बनाकर , जल में भिगोकर पोटली से नि:सृत जलीय - तत्व को गो- दधि मे मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।

#- उदरशूल - एक भाग तिन्तिडीक फल , भूनी हुई सौंफ तथा भूने हुएे जीरे का चूर्ण , दो भाग अनार के दानों का चूर्ण तथा पाँच भाग शर्करा चूर्ण मिलाकर 2-4 ग्राम मात्रा में लेकर सेवन करने से आमातिसारजन्य वेदना का निवारण होता है।

#- उदरकृमि - तिन्तिडीक के फल - स्वरस का सेवन करने से उदरकृमियों का शमन होता है।

#- अर्श - त्र्यूषणादि चूर्ण को मात्रानुसार गो-दधि , मद्य , या उष्ण जल के साथ सेवन करने से अर्श ग्रहणी , शूल , अनाह आदि रोगों का शमन होता है।

#- वातव्याधि - तिन्तिडीक आदि द्रव्यों से निर्मित हिंग्वादि गुटिका का सेवन करने से श्वास, कास, गुल्म,उदरशूल , अरोचक , हृद्रोग, आध्मान , पार्श्वशूल , उदरशूल , वस्तिशूल , अनाह , मूत्रकृच्छ , प्लीहाविकार , अर्श , तूनी , तथा प्रतितूनी , एवं वातविकारों का शमन होता है।

#- व्रण - तिन्तिडीक , अंकोल , धतूरा , पुनर्नवा मूल का क्वाथ बनाकर उससे व्रण का स्वेदन करने से लाभ होता है।

#- मांसपेशीय शोथ - तिन्तिडीक की त्वक कल्क को लगाने से व्रणशोथ व आघात के कारण उत्पन्न मांसपेशीय शोथ में लाभ होता है।

#- मदात्यय - तिन्तिडीक आदि द्रव्यों से निर्मित अष्टांगलवण का मात्रानुसार प्रयोग करने से स्रोतो की शुद्धि होती है । तथा जठराग्नि का दीपन होकर कफ- प्रधान - मदात्यय में लाभ होता है।

#- रक्तपित्त - शतावर्यादि गौघृत का सेवन करने से कास , ज्वर , अनाह , विबन्ध , शूल तथा रक्तपित्त का शमन होता है।

#- ज्वरजन्य उपद्रव - मुलेठी , हरिद्रा, नागरमोथा , अनार , तिन्तिडीक आदि द्रव्यों को मधुशुक्त ( जम्बीररस कृत संधान विशेष ) साथ पीसकर ज्वर पीड़ित व्यक्ति के सिर पर लेप करने से , शिरोवेदना , मुर्छा , वमन, हिक्का , कम्प आदि ज्वरजन्य उपद्रवों का शमन होता है।

#- तिंदुक ( गौब परसीमन Gaub persimmon ) कषाय , अम्ल, तिक्त, उष्ण , लघु , रूक्ष , कफपित्तशामक , संग्राही , लेखन, स्तम्भक , अन्य द्रव्य मे अरूचि पैदा करने वाला, उदर्दप्रशमन , व्रण तथा भग्नसंधानकारक, होता है।

#- व्रणरोपण आदि- तिंदुक फल एवं त्वचा स्तम्भक , अतिसाररोधी , ज्वरघ्न , जीवाणुरोधी , मुख व कण्ठ - शोधक तथा व्रणरोपण करता है।

#- नेत्रविकार - तिन्दुक फल- स्वरस का अंजन करने से नेत्रविकारों का शमन होता है।

#- कर्णशूल - तिंदुक , हरीतकी , लोध्र, मंजिष्ठा तथा आँवला के 1-3 ग्राम चूर्ण में मधु एवं कपित्थ रस मिलाकर छानकर 1-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल में लाभ होता है।

#- मुखव्रण - तिंदुक फल स्वरस का गरारा करने से मुख - व्रण तथा कण्ठ - व्रण जल्दी भरते है।

#- मुख के छालें - तिंदुक फलो का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुँह के छालों का शमन होता है।

#- कास - तिंदुक छाल का घनसत्व या गोली बनाकर चूसने से कास का शमन होता है।

#- अतिसार - तिंदुक त्वचा के कल्क को गम्भारी पत्र से लपेटकर पुटपाक - विधी से रस निकाल कर 5-10 मिली स्वरस में मधु मिलाकर सेवन करने से अतिसार का शमन होता है।

#- प्रवाहिका - 10-20 मिलीग्राम तिंदुक छाल क्वाथ को पीने से पेचिश ( प्रवाहिका ) अतिसार व मलेरिया ज्वर में लाभ होता है।

#- अतिसार - तिन्दुक फल के गूद्दे को खिलाने से तथा 1 ग्राम तिन्दुक बीज चूर्ण का सेवन करने से अतिसार मे लाभ होता है।

#- अश्मरी - तिंदुक के पके हुए फल को खाने से मूत्रमार्ग की पथरी टूट- टूटकर निकल जाती है।

#- श्वेतप्रदर - तिंदुक फल- स्वरस मे जल मिलाकर योनि का प्रक्षालन ( धोने) करने से श्वेतप्रदर मे लाभ होता है।

#- योनिस्राव - तिंदुक फलो का क्वाथ बनाकर योनि का प्रक्षालन करने से योनिस्राव का शमन होता है।

#- अर्दित - लकवा के कारण जिह्वा - स्तम्भ हो गयी हो तथा वाक्प्रवृति ( वाणी स्पष्ट ) स्पष्ट न हो रही हो तो तिंदुक मूल का क्वाथ बनाकर पीने से तथा1-2 ग्राम छाल चूर्ण में 1 ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर जिह्वा पर घिसने या रगडने से लाभ होता है।

#- व्यंग्य , दाग-धब्बे - तिंदुक स्वरस मे तिंदुक फल को पीसकर लेप करने से त्वचा की विवर्णता दूर हो जाती है तथा मुख का वर्ण तथा कान्ति की वृद्धि होती है।

#- अग्निदग्ध - तिंदुक क्वाथ में गौघृत मिलाकर अग्नि से जले हुए स्थान का चिंतन व लेप करने से शीघ्र व्रण भर जाता है।

#- अग्निदग्ध - तिंदुक छाल- क्वाथ में तिलतैल मिलाकर दग्ध स्थान पर लगाने से लाभ होता है।

#- क्षत, चोट - तिंदुक फल- स्वरस को नवीन घाव व पुराने घावों पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है।

#- ज्वर - 10-15 मिलीग्राम तिंदुक छाल क्वाथ में मधु मिलाकर पिलाने से ज्वर मे लाभ होता है।

#- शोथ - तिंदुक की काष्ठ को घिसकर सूजन वाली जगह पर लगाने से शोथ का शमन होता है।

#- हिक्का - जामुन तथा तिंदुक के पुष्प और फल के 1-3 ग्राम कल्क में मधु तथा गौघृत मिलाकर खिलाने से बच्चों की हिचकियाँ रूक जाती है।


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