Sunday, 7 March 2021

रामबाण:-8-

रामबाण:-8-

#- मानसिक रोग - 10-20 मिलीग्राम टमाटर फल- स्वरस में शर्करा मिलाकर सेवन करने से शारीरिक व मानसिक कमज़ोरी , अवसाद, तथा नींद न आने के कारण उत्पन्न मानसिकक्षोभ में लाभ होता है।

#- ज्वर - 10-15 मिलीग्राम टमाटर स्वरस का सेवन करने से ज्वर तथा तृष्णा का शमन होता है।

#- रक्तशोधन, तृष्णा - डिण्डिश , टिण्डा, इण्डियन स्क्वैश ( Indian Squash )- टिण्डे के डण्ठल का शाक मलभेदक तथा क़ब्ज़ में लाभदायक होता है । टिण्डा फल- स्वरस का सेवन करने से रक्त का शोधन तथा तृष्णा जन्म विकारों का शमन होता है।

#- कामला , मधुमेह - टिण्डा फल का शाक बनाकर सेवन करने से कामला तथा मधुमेह मे लाभ करता है।

#- अश्मरी, पथरी - टिण्डा के ताज़े कोमल फलो को मसलकर - कुचलकर पीसकर वस्त्र से निचोड़कर स्वरस निकाल ले 10-15 मिलीग्राम स्वरस में 65-125 मिलीग्राम यवक्षार मिलाकर गुनगुना करके पिलाने से अश्मरी टूट- टूटकर निकल जाती है । यह स्वरस पित्तज - विकारों का शमन करने वाला व मूत्रकृच्छ , मूत्रदाह तथा यकृत विकारों में लाभ होता है।
#- मूत्राशय शोथ, मूत्रदाह - टिण्डाके फलो का शाक बनाकर सेवन करने से मूत्रदाह , मूत्रकृच्छ तथा मूत्राशय शोथ का शमन होता है।

#- रक्तस्राव - 5-10 मिलीग्राम टिण्डा मूल- स्वरस का सेवन कराने से गर्भस्रावजन्य रक्तस्राव का स्तंभन होता है।

#- प्रदररोग, प्रेमह रोग - टिण्डा फलो का रस निकालकर मिश्री मिलाकर पीने से प्रदर तथा प्रेमह रोगों मे लाभ होता है।

#- आमवात - टिण्डा फल को पीसकर लगाने से आमवात मे लाभ होता है।

#- शोथ - टिण्डा के बीज तथा पत्रों को पीसकर सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है ।

#- पौष्टिक , बलवर्धक - टिण्डे के पके हुए बीजों को निकालकर मेवे के रूप मे सेवन करने से यह पौष्टिक तथा बलकारक होता है तथा शारीरिक कमज़ोरी को दूर करता है।

#- इन्द्रलुप्त, गंजापन - तम्बाकू ( Common tobacco कॉमन टोवैको ) के पुष्पों को कंरज के तैल मे पीसकर अथवा तम्बाकू के पुष्पों की राख को तिल तैल में मिलाकर सिर पर लगाने से इन्द्रलुप्त ( गंज ) में लाभ होता है।

#- नेत्ररोग - तम्बाकू पत्र के सुक्ष्म, शलक्ष्ण ( चिकना ) चूर्ण से नेत्रों को विधिवत अञ्जन करने से नक्तान्ध्य ( रात्रि अन्धता, रतौंधी ) में लाभ होता है।

#- कण्ठरोग, गले की ग्रंथि - तम्बाकू को पीसकर गले पर लेप करने से गले की ग्रंथियों का शमन होता है।

#- दाँत दर्द - तम्बाकू को जलाकर उसकी भस्म से मंजन करने से दंतशूल का शमन होता है।

#- दन्तरोग- दो भाग तम्बाकू के चूर्ण में एक भाग कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर मंजन करने से दन्तपीडा का शमन होता है ।

#- मसूड़ों के रोग - तम्बाकू पत्रों को पीसकर मसूड़ों के ऊपर मलने से मसूड़ों के रोगों मे लाभ होता है।

#- श्वास रोग- तम्बाकू को जलाकर बनाई गयी भस्म को स्नूहीकाण्ड में भरकर , काण्ड पर कपडमिट्टी कर अर्धगजपुट में पकाकर , शीतल होने पर 60 मिलीग्राम भस्म में खाँड़ मिलाकर सेवन करने से साँस की बिमारियों में शीघ्र लाभ होता है।

#- उदररोग - अर्क ( मदार ) के पीले पड़े पड़े हुए पत्तों के टुकड़े , एरण्ड तैल , सैंधानमक तथा तम्बाकू पत्र को एक साथ पकाकर , वस्त्र में बाँधकर उदर पर पुलटीश बाँधने से गांठदार मल का नि:सरण ( निकलना ) होकर उदररोग में लाभ होता है।

#- मूत्राअवरोध - तम्बाकू पुष्प द्वारा बस्ति का स्वेदन करने से मूत्राअवरोध मे शीघ्र लाभ होता है।

#- वृषणशोथ - तम्बाकू पत्र को पीसकर , सुखोष्ण कर लेप करने से वृषण ( अण्डकोष ) की सूजन का शमन होता है।

#- अण्डवृद्धि - तम्बाकू में चूना तथा पुन्नाग की छाल को मिलाकर पीसकर लेप करने से अण्डवृद्धि का शमन होता है ।

#- अण्डकोष पीड़ा- तम्बाकू पत्रों को पीसकर लगाने से अण्डकोष की पीड़ा का शमन होता है ।

#- वातव्याधि - अरण्ड पत्र स्वरस से तम्बाकू पत्र को को पीसकर , गुनगुना कर लेप करने से वातज वेदना का शमन होता है।

#- धनुस्तम्भ - तम्बाकू पत्रों को पीसकर रीढ़ की हड्डी पर लेप करने से धनुस्तम्भ में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।

#- सन्धिवात , धनुर्वात, मोच - जोड़ो का दर्द - 50 ग्राम तम्बाकू को पानी में भिगोकर मसलकर छान लें ,फिर उस पानी में समभाग तिल तैल मिलाकर , पकाकर , छानकर मालिश करने से जोड़ो के दर्द का शमन होता है।

#- तम्बाकू पत्र स्वरस , मदार ( आक ) का अक्षीर ( दूध ) तथा धत्तूर पत्र- स्वरस को बराबर मात्रा में लेकर तीन गुणा सरसों के तैल में मिलाकर पाक करके छानकर रख लें , इस तैल की मालिश करने से गठिया रोग, संधिवात , मोच तथा धनुर्वात आदि विकारों में लाभ करता है।

#- मोच - तम्बाकू के हरे पत्तों पर तैल लगाकर हल्का गरम करके मोच पर बाँधने से सूजन दूर होती है तथा वेदना का शमन होता है।

#- सफेद दाग - तम्बाकू के बीजों का तैल निकालकर लगाने से सफेद दाग मिटते है ।

#- त्वचारोग - तम्बाकू को जलाकर उसकी भस्म बनाकर , त्वचा में लगाने से कण्डुरोग, दाद आदि त्वचा विकारों का शमन होता है।

#- नाडीव्रण - तम्बाकू पत्रों को तैल मे पकाकर - छानकर तैल को नाडीव्रण पर लगाने से नाडीव्रण का रोपण होता है।

#- विद्रधि , बालतोड, फोड़ा - तम्बाकू के पत्तों की पुलटीश बनाकर विद्रधि पर लगाने से विद्रधि शीघ्र पककर फूट जाती है।

#- त्वचा - विकार - तम्बाकू पत्र को गुलाब जल में पीसकर लेप करने से त्वचाविकारों का शमन करता है।

#- शोथ रोग - तम्बाकू की पत्तियों को पीसकर गुनगुना करके लेप करने से शोथ ( सूजन ) का शमन होता है।

#- कीटदंश - शुष्क तम्बाकू पत्रों को चूने के साथ मिलाकर , कीटदंश स्थान पर लगाने से दंशजन्य वेदना , दाह , शोथ आदि विषाक्त प्रभावों का शमन करता है।

#- जलौका ( जोंक ) - तम्बाकू पत्रों को पीसकर , लेप करने से जलौका दंशजन्य विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।

#- कुचला विष- कुचले के विष को उतारने के लिए तम्बाकू के पत्रों का हिमफाण्ट बनाकर 5-10 मिलीग्राम मात्रा में पिलाना चाहिए ।

#- शिर:शूल -30-40 मिलीग्राम तरबूज़ ( वाटर मेलन Water melon ) फल स्वरस में मिश्री मिलाकर पीने से उष्णताजन्य शिर:शूल का शमन होता है।

#- नेत्रप्रदाह - तरबूज़ के फलो को पीसकर आँखों के चारों तरफ़ बाहर की ओर लगाने से आँखों की जलन मिटती है।

#- मुखव्रण - तरबूज़ फल - स्वरस का गरारा करने से मुख के घाव तथा गले की जलन में लाभ होता है।

#- आंत्रजन्य शोथ - तरबूज़ के बीज तथा पत्रों को पीसकर उदर पर बाँधने से आँतों की सूजन मिटती है।

#- अतिसार - 5-10 मिलीग्राम तरबूज़ फल- स्वरस मे नींबू मिलाकर पीने से छर्दि , अतिसार तथा आमातिसार में लाभ होता है।

#- अम्लपित्त - तरबूज़ पक्व फल- स्वरस (20-50) मिलीग्राम पीने से अम्लपित्त , तृष्णाधिक्य आदि पित्तज - विकारों का शमन होता है।

#- कामला - 10-30 मिलीग्राम फल- स्वरस को पीने से कामला में लाभ होता है।

#- मूत्र- विकार - पक्व तरबूज़ , फल-स्वरस में समान मात्रा में गो- तक्र ( छाछ) तथा स्वादानुसार लवण मिलाकर सेवन करने से पित्तज विकार , पीलिया , पूयमेह , मधुमेह , तथा मूत्राशय विकारों में लाभ होता है ।

#- मूत्रदाह - तरबूज़ बीज चूर्ण ( 2-4 ) ग्राम का सेवन करने से अल्पमूत्रता तथा मूत्रदाह में लाभ होता है।

#- मूत्र- विकार - 10-20 मिलीग्राम फल- स्वरस का सेवन करने से मूत्राशय शोथ , बिन्दू मूत्रकृच्छ तथा अन्य मूत्रविकारो मे लाभ होता है।

#- तरबूज़ बीजों का चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्र विकारों मे अत्यन्त लाभकारी होता है।

#- ज्वर दाह - तरबूज़ फल त्वक को पीसकर शरीर पर लेप करने से ज्वरदाह का शमन होता है।

#- दौर्बल्य - 5-10 ग्राम तरबूज़ बीज चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर खाने से दौर्बल्य का शमन होता है तथा शरीर की पुष्टि होकर बलवान बनता है।

#- पित्ताभिष्यंद - ताड़ वृक्ष ( ब्राब ट्री ( Brab tree ) की नवीन नवीन ( ताज़ी ) ताड़ी से सिद्ध किए हुए गौघृत की 1-2 बूँदों को नेत्रों में डालने से पित्ताभिष्यंद में लाभ होता है।

#- क्षयज- कास - क्षयज- कास के रोगी को मूत्रविवर्णता अथवा मूत्रकृच्छ ( मूत्र त्यागने में कठिनता ) हो जायें तो विदारीकन्द , कदम्ब तथा ताड़ फल के क्वाथ एवं कल्क से सिद्ध किये हुए गोदूग्ध व गौघृत का सेवन प्रशस्त है।

#- हिक्का - 5-10 मिलीग्राम ताड़ पत्रवृन्त स्वरस में 5-10 मिलीग्राम ताड़ मूल स्वरस मिलाकर सेवन करने से हिचकी बन्द होती है।

#- प्लीहोदर - 65 मिलीग्राम ताड़ पुष्प क्षार में गुड मिलाकर सेवन करने से प्लीहा वृद्धि का शमन होता है।

#- विसुचिका- ताड़ के मूल को चावल के पानी से पीसकर नाभि पर लेप करने से विसुचिका ( कॉलरा ) तथा अतिसार का शमन होता है ।

#- बद्धकोष्ठ, क़ब्ज़ - ताड़ का ताज़ा रस बहुत मीठी तथा सारक होता है , इसको लगातार कई दिनों तक पिलाने से बद्धकोष्ठ में लाभ होता है।

#- उदरकृमि - समभाग ताडमूल चूर्ण को कॉजी मे पीसकर थोड़ा गुनगुना करके नाभि पर लेप करने से उदरकृमियों का शमन होता है।

#- मूत्राघात - ताड़ कोमल मूल से निर्मित कल्क ( 1-2 ग्राम ) को शीतल किये हुए शालि चावल के धोवन के साथ पीने से मूत्राघात ( मूत्र का रूक- रूक कर आना ) में लाभ होता है।

#- रक्तजमूत्रकृच्छ- समभाग नीलकमल की नाल , ताड़ का फल , कास , इक्षुबाल ( ईख की जड़ ) तथा कसेरू का अष्टमांश शेष क्वाथ बनाकर शीतल कर 20-30 मिलीग्राम क्वाथ में मधु एवं मिश्री मिलाकर पीने से रक्तजमूत्रकृच्छ ( मूत्र मे रूक- रूक ख़ून , लाल पेशाब ) में लाभ होता है ।

#- मूत्रकृच्छ - ताड़ के फलो का ताज़ा स्वरस में मिश्री मिलाकर पिलाने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

#- मूत्रातिसार - ताड़ मूल चूर्ण में समभाग खजूर , मुलेठी , विदारीकन्द तथा मिश्री का चूर्ण मिलाकर 2-4 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से मूत्रातिसार में लाभ होता है।

#- सुखप्रसवार्थ - ताड़ मूल को सूत्र मे बाँधकर , आसन्न प्रसवा स्त्री की कमर में बाँध देने से सुखपुर्वक प्रसव होता है।

#- प्रेमह पीडका , सूजाक, गोनोरिया - ताज़ी ताड़ी को चावल के आटे मे मिलाकर , मंद आँच पर पकाकर पुल्टीश बनाकर बाँधने से प्रमेह पीडिका तथा जीर्ण क्षत में लाभ होता है ।

#- उन्माद - ताड़ की शाखाओं से 5-10 मिलीग्राम स्वरस में मधु मिलाकर सेवन करने से उन्माद में लाभ होता है।

#- पित्तशोथ - ताड़ के फल के गूद्दे को पीसकर लगाने से पित्तजशोथ का शमन होता है।

#- शिर:शूल - तालीश पत् ( हिमालयों फर Himalayan fir ) को पीसकर मस्तक पर लगाने से शिर: शूल का शमन होता है।

#- खाँसी - 2-4 ग्राम तालीश पत्र चूर्ण में शहद या अदरक का रस मिलाकर चाटने से खाँसी मिटती है।

#- कफ विकार - तालीश पत्र को पीसकर छाती पर लेप करने से कफ के विकारों का शमन होता है।



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