रामबाण :-7-
#- खालित्य , गंजापन - ज़ैतून (Wild Olive वाइल्ड ओलिव के कच्चे फलो को जलाकर , उसकी राख में शहद मिलाकर , सिर मे लगाने से खालित्य , पालित्य , ( सिर में गंजापन ) तथा अरूषिंका ( फुन्सियों ) में लाभ होता है।
#- कर्णशूल - 5 मिली ज़ैतून पत्र स्वरस को गुनगुना करके उसमें शहद मिलाकर 1-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।
#- दन्तविकार - ज़ैतून के कच्चे फलों को पानी में पकाकर उसका काढ़ा बना लें , इस काढ़े से गरारा करने पर दाँतो तथा मसूड़ों के रोग मिटते है। तथा मुँह के छालें भी मिट जाते है।
#- कास - ज़ैतून के तैल को छाती पर मलने से सर्दी- खाँसी तथा अन्य कफज - विकारों का शमन होता है।
#- अतिसार - ज़ैतून के पत्तों को पीसकर जौ के आटे में मिलाकर कुछ पानी डालकर नाभि पर लेप करने से अतिसार बंद हो जाते है।
#- मूत्रविकार -ज़ैतून के पत्रों का क्वाथ बनाकर 5-10 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से मधुमेह तथा मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
#- आमवात - ज़ैतून की मूल को पीसकर लगाने से आमवात में लाभ होता है।
#-वातरक्त, आमवात, जोड़ा का दर्द- ज़ैतून के बीजों का तैल लगाने से आमवात , वातरक्त तथा जोड़ो की वेदना का शमन होता है।
#- व्रण, घाव - ज़ैतून के बीजों के तैल को घावों पर लगाने से घाव शीघ्रता से भर कर ठीक होता है।
#- व्रण - ज़ैतून के कच्चे फलों को पीसकर घावों पर या पुराने ज़ख़्मों पर लेप करने से घाव जल्दी भर जाते है।
#- व्रण - ज़ैतून के पत्तों के चूर्ण में। शहद मिलाकर घावों पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते है।
#- त्वचा विकार - ज़ैतून के कच्चे फलो को पीसकर लगाने से चेचक व दूसरे फोड़े- फुन्सियों के निशान मिट जाते है।
#- दाद- खाज- ज़ैतून के पत्रों को पीसकर लेप करने से पित्ती , खुजली , और दाद में लाभ होता है।
#- अग्निदग्ध - अगर शरीर का कोई भी भाग अग्नि से जल जाय तो कच्चे ज़ैतून के फलो को पीसकर लगाने से छाला नहीं पड़ता है।
#- दाद, छाजन - ज़ैतून के वृक्ष से प्राप्त गोंद दाद , छाजन पर लगाने से दाद ठीक होता है।
#- सौन्दर्यवर्धनार्थ - ज़ैतून के तैल को चेहरे पर लगाने से रंग निखरता है तथा सुन्दरता भी तेज़ी से बढ़ती है।
#- सेवेदाधिक्य ( अत्यधिक पसीना निकलना ) - जंगली ज़ैतून के पत्रों को सुखाकर पीसकर शरीर पर मलने से सेवेदाधिक्य ( पसीना अधिक आना ) तथा पसीने के कारण होने वाली दुर्गन्ध का शमन होता है।
#- तिमिररोग - 20-30 मिलीग्राम त्रिफला के क्वाथ में जौं को पकाकर , उसमें गौघृत मिलाकर खाने आँखों में धून्धलापन, रात को न दिखाई देना, तथा आँखों के सामने रंग- बिरंगी दिखना बन्द होकर तिमिररोग का शमन होता है।
#- प्रतिश्याय - जौं के सत्तू में गौघृत मिलाकर खाने से नज़ला , ज़ुकाम, खाँसी तथा हिचकी रोग में लाभ होता है।
#- प्रतिश्याय - जौ,यव के काढ़े 15-30 मिलीग्राम को पानी से पीने से नज़ला , ज़ुकाम में लाभ होता है।
#- रोहिणी ( डिपथरिया )- जौ के 5-10 मिलीग्राम पत्र स्वरस में 500 मिलीग्राम , कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर सेवन करने से रोहिणी ( डिप्थिरिया ) रोग में लाभदायक सिद्ध होता है।
#- गलगण्ड - सरसों , नीम के पत्ते , सहजन के बीज , अलसी , जौ तथा मूलीबीज को गौ-तक्र ( गाय के दूध से बनी खट्टी छाछ ) में पीसकर गले में लेप करने से गलगण्ड में लाभ होता है ।
#- हृद्रोग , क्षतज श्वास,खाँसी , व वीर्यवृद्धि- पिप्पल्यादि लेह में मधु तथा गौघृत मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से क्षतज-श्वास खाँसी , हृद्रोग तथा कृशता दूर होकर वीर्य की वृद्धि होती है।
#- तृष्णा, अत्यधिक प्यास - भूने हुए तथा कच्चे जौ की पेय बनाकर उसमें मधु एवं शर्करा मिलाकर पीने से तृष्णा का शमन होता है।
#- अम्लपित्त - छिलका रहित जौ , वासा तथा आँवले से निर्मित काढ़े 15-30 मिलीग्राम में दालचीनी , इलायची और तेजपत्ता का चूर्ण तथा मधु मिलाकर पीने से अम्लपित्त मे लाभ होता है ।
#- गुल्म रोग - गुल्म रोगी में यदि पुरीष तथा अधोवायु का अवरोध हो तब जौ से बनाए खाद्य पदार्थों में अधिक मात्रा में स्नेह एवं लवण मिलाकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
#- उदरशूल - जौ के आटे में जौ की क्षार एंव गौ-तक्र मिलाकर पेट पर लेप करने से उदरशूल का शमन होता है।
#- छर्दि, बुखार,दाह-यव ( जौ ) से बनाये यवागू या पेया में मधु मिलाकर सेवन करने से पैत्तिक शूलजन्य छर्दि , बुखार , दाह तथा अत्यधिक पिपासा ( प्यास ) का शमन होता है।
#- अजीर्ण - भूने हुए जौ ( यव ) से बनाए गये मण्ड तथा यव के डण्ठल की 65 मिलीग्राम भस्म में शहद मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है।
#- अतिसार - शुष्क यव से बनाये काढ़े का सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
#- कफज प्रेमह - कफज प्रेमह में जौ से बने हुए विविध-प्रकार के आहार का सेवन करना चाहिए । छिलका-रहित जौ के चूर्ण को त्रिफला क्वाथ में रातभर भिगोकर , छाया में सुखाकर उसका सत्तू बनाकर , मधु मिलाकर , मात्रानुसार प्रतिदिन पीने से क़फज - प्रेमह में लाभ होता है ।
#- प्रेमह , कुष्ठरोग - भूने हुए जौ , जौ का सत्तू आदि जौ से बनाये आहार द्रव्यों का नियमित सेवन करने से प्रेमह , मूत्रत्याग में कठिनता , सफेद दाग, कुष्ठरोगो आदि को उत्पन्न नहीं होने देता है।
#- जौ के चूर्ण में विभिन्न प्रेमह नाशक काढ़ो की अलग- अलग भावना देकर , सुखाकर , विविध आहार द्रव्य बनाकर सेवन करना प्रेमह में पथ्य है । अॉवला तथा मधु के साथ जौ का सेवन प्रेमह मे पथ्य है तथा शुष्क यव से निर्मित काढ़े का सेवन प्रेमह में पथ्य है।
#- स्तन्यशोधनार्थ - यदि माताओं के स्तन में झाग आने लगे तब जौ , गेहूँ , पीली सरसों को पीसकर स्तनों पर लेप कर सूखने दें तत्पश्चात धोकर , थोड़ा दूध निकालकर बाद मे शिशु को स्तनपान कराना चाहिए , इस प्रकिया से स्तनशोधन होता है।
#- वातरक्त - वातरक्त मे लालिमा , पीड़ा , दाह, हो तो रक्तमोक्षण के पश्चात मुलेठी चूर्ण , गोदूग्ध एवं गौघृत युक्त जौ के आटे का लेप करने से लाभ होता है।
#- शूल , जोड़ो का दर्द - उबले हुए यव को पीसकर जोड़ो में लगाने से आमवातजन्य वेदना तथा जोड़ो की वेदना का शमन होता है।
#- विसर्प रोग ( यह त्वचा का संक्रामक रोग है जिसमें त्वचा पर संक्रमण होकर लाल चकत्ते हो जाते है , इनमें भंयकर पीड़ा होती है।) - समभाग जौ तथा मुलेठी से बना कल्क में गौघृत मिलाकर विसर्प पर लेप करने से लाभ होता है। विसर्प रोगी को आहार में फालसा , अंगूर , आदि से सिद्ध जल में जौ का सत्तू तथा गौघृत मिलाकर अवलेह ( हलवा ) बनाकर सेवन करना चाहिए तथा जौ के सत्तू में गौघृत मिलाकर लेप करना विसर्प मे हितकर होता है ।
#- कुष्ठ रोग - कुष्ठ रोग में जौ से बनाए गये भोज्य पदार्थ का सेवन करना गुणकारी होता है।
#- व्रण - समभाग जौ , मुलेठी तथा तिल के चूर्ण में गौघृत मिलाकर गुनगुना करके घाव पर लेप करने से व्रण का रोपण होकर ठीक होता है।
#- व्रण - पीडायुक्त , कठिन , स्तब्ध तथा स्राव-रहित घाव पर गौघृत युक्त जौ के आटे का बार- बार लेप करने से घाव में मृदुता उत्पन्न होकर रोपण होता है।
#- अग्निदग्ध - जौ के सुक्ष्म चूर्ण को तिल तैल मे मिलाकर आग से जले स्थान पर लेप करने से जलन के कारण उत्पन्न वेदना का शमन होकर व्रण का रोपण होकर स्वस्थ होता है।
#- मुँहासे - माजूफल के छिलके को जौ के साथ घोटकर मुँह पर लेप करने से युवान पीडिका ( मुँहासे ) का शमन होता है।
#- ज्वरदाह - जौ के सत्तू को पानी में घोलकर शरीर पर लेप करने से बुखार के कारण उत्पन्न दाह का शमन होता है।
#- रक्तपित्त - गौघृत युक्त जौ के सत्तू को पानी में घोलकर , मथकर सेवन करने से अत्यधिक प्यास , जलन दाह , तथा रक्तपित्त में लाभ होता है।
#- ज्वरदाह, दौर्बल्य - जौ को गोदूग्ध में पकाकर , इसमें धागामिश्री तथा शहद मिलाकर सेवन से ज्वर दाह, तथा दौर्बल्य मे लाभ होता है।
#- स्थौल्य , मोटापा - जौ, आँवला तथा मधु का नियमित सेवन करने से तथा नित्य व्यायाम एवं अजीर्ण में भोजन न करने से मोटापे का शमन होता है।
#- शोथ, सूजन- जौ को पीसकर सूजन प्रभावित स्थान पर लगाने से सूजन कम होने लगती है।
#- मुखशोथ - टमाटर के फल का क्वाथ बनाकर 10-30 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से मुख तथा गले की सूजन उतरती है।
#- मसूड़ों का रोग - टमाटर फलस्वरस में पानी मिलाकर गरारा करने से मुखपाक तथा मसूड़ों से होने वाले रक्तस्राव का शमन होता है।
#- श्वास- 10-15 मिलीग्राम टमाटर फल- स्वरस में एक चम्मच हरिद्रा मिलाकर सेवन करने से श्वास ( साँस फुलना ) रोग में लाभदायक होता है।
#- उदरविकार - 30-40 मिली टमाटर मिली टमाटर फल - स्वरस का सेवन करने से अजीर्ण , भूख न लगना अत्यधिक प्यास , अफारा तथा क़ब्ज़ में लाभ होता है।
#- हृलास, मिचली आना - 10 मिलीग्राम टमाटर फल स्वरस में लवण तथा कालीमिर्च मिलाकर सेवन करने से मातृज हृलास ( जी मिचलाना ) , पित्तज- विकार , अफारा , क़ब्ज़ , अमाशय तथा आँतों की जलन आदि विकारों का शमन होता है।
#- विबन्ध , क़ब्ज़ - 10-20 मिलीग्राम टमाटर फल- स्वरस में शर्करा मिलाकर सेवन करने विबन्ध ( क़ब्ज़ ) में लाभ होता है।
#- संग्रहणी - टमाटर फल को बीच से काटकर उसमें 1-2 ग्राम कुटज चूर्ण डालकर खिलाने से संग्रहणी व अतिसार में लाभ होता है।
#- अजीर्ण - टमाटर फल को भूनकर उसमें सैंधानमक तथा कालीमिर्च चूर्ण डालकर खाने से अजीर्ण का शमन होता है।
#- मधुमेह - टमाटर यूष ( सूप ) का सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है,
#- सन्धिशूल - टमाटर मूल तथा पत्र से सिद्ध तैल को संधियों में लगाने से दर्द तथा मोच मे लाभ मिलता है।
#- घाव - टमाटर के पत्रों को पीसकर लगाने से घाव,रोमकूपशोथतथा अन्य त्वचारोगों मे लाभ होता है।
#- मुँहासे - टमाटर के पत्र तथा फलमज्जा को पीसकर लगाने से मुँहासे तथा त्वचारोगों मे लाभ करता है।
#- व्यंग्य ( चेहरे पर काले दाग ) - टमाटर को काटकर मुख पर मलने से मुख के काल दाग- धब्बे ठीक होते है।
#- सिररोग तथा रूसी- टमाटर के रस में कपूर व नारियल तैल मिलाकर सिर में लगाने से लाभ होता है।
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