रामबाण :- 22 -:
#- मूत्रसंड्ग - दर्भादि द्रव्यों को गाय के दूध में पकाकर पीने से मूत्र रोग में लाभ होता है।
#- कामला - दर्भमूल का क्वाथ बनाकर 10 ग्राम में दो चम्मच गोमूत्र को मिलाकर सेवन करने से पिलिया , कामला मे लाभ होता है।
#- मूत्राघात - नलादि- क्षीरपाक में चतुर्थांश गाय का घी मिला लें। इसका सेवन करने से पेशाब के बंद हो जाने की समस्या में लाभ होता है।
#- प्रमेह - दर्भ का काढ़ा पीने से भी पेशाब में दर्द तथा प्रमेह की बीमारी ठीक होती है।
#- मूत्रनलिका संक्रमण - दर्भ फूल का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में एक चम्मच गोमूत्र मिलाकर पीने से मूत्र मार्ग के संक्रमण का इलाज होता है।तथा (आन्त्रिक ) रक्तमूत्रता में लाभ होता है।
#- मूत्ररोग , मधुमेह - दर्भ की जड़ का काढ़ा को 10-30 मिली मात्रा में पिएँ। इससे मूत्र त्यागने के समय होने वाले दर्द, और डायबिटीज में फायदा मिलता है। इससे पेशाब में खून आने के रोग में भी लाभ मिलता है।
#- व्रण -घाव को ठीक करने के लिए दर्भ का उपयोग लाभदायक होता है। दर्भ की जड़ को गोमूत्र में पीसकर घाव पर लगाएं। इससे घाव ठीक होता है।
#- पूयमेह - दर्भमूल का क्वाथ बनाकर पीने से पूयमेह मे लाभ होता है ।
#- संधिवात - दर्भमूल का क्वाथ बनाकर पीने से संधिवात में लाभ होता है।
#- खाँसी - आप खांसी के इलाज के लिए भी दर्भ का सेवन कर सकते हैं। गोक्षुर और दर्भ आदि को श्वदंष्ट्रादि गाय के घी में पकाएं। इसे सेवन करने से खांसी और टीबी रोग में लाभ होता है।
#- ज्वर - दर्भ और चन्दन आदि द्रव्यों से बने चन्दनादि तेल की मालिश करने से बुखार ठीक होता है।
#- ज्वर - बला मूल, मुलेठी, विदारीकन्द, दर्भ, मुनक्का और यव का काढ़ा बना लें। इसे गुदा मार्ग से देने से बुखार ठीक होता है।
#- बला, दर्भ और गोखरू लें। इसका काढ़ा बना लें। एक चौथाई काढ़ा (10-30 मिली) में शर्करा और गाय के घी मिलाकर पीने से वातज दोष के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
#- ज्वर - 10-30 मिलीग्राम दर्भमूल क्वाथ पीने से ज्वर का शमन होता है।
#- वातज ज्वर - बला, दर्भ तथा गोखरू से निर्मित चतुर्थांश अवशिष्ट क्वाथ 10-30 मिलीग्राम में मिश्री और गौघृत मिलाकर पीने वातज ज्वर का शमन होता है।
#- सूजन, शोथ - सूजन को कम करने के लिए भी दर्भ का इस्तेमाल लाभदायक होता है। 10-30 मिली दर्भ की जड़ का काढ़ा का सेवन करें। इससे सूजन कम होती है।
#- जलन, दाह - बराबर मात्रा में कासमर्द, काण्डेक्षु, दर्भ, पोटगल (वृष विशेष) और ईख लें। इसका काढ़ा बना लें। इसमें गाय का दूध और गाय का घी मिला लें। इसे गुदा मार्ग से देने से शरीर की जलन ठीक होती है।
#- अर्श - गोक्षुर और दर्भ आदि से बने श्वदंष्ट्रादि गौघृत को मात्रानुसार सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
#- एनिमिया , पिलिया - दर्भ की जड़ काढ़ा (10-30 मिली) को पीने से एनीमिया और पीलिया में लाभ होता है। एनीमिया और पीलिया के इलाज के लिए यह बहुत ही उत्तम उपाय है।
#- रसायन - दर्भ आदि द्रव्यों से निर्मित ब्रह्मरसायन का मात्रानुसार विधीपुर्वक सेवन करने से दीर्घ आयुष्य ( लम्बी उम्र ) तथा रसायन गुणों की प्राप्ति होती है।
#- सौन्दर्य - बसन्त ऋतु में दर्भमूल , कपूर, खस, शिरीष बीज , सौंफ बीज तथा चावल के आटे से निर्मित लेप का प्रयोग मुख लेप के रूप मे करने से सुन्दरता मे निखार आता है।
#- सिरदर्द - दालचीनी ( सिनैमोन बार्क Cinnamon bark ) के 8-10 पत्तों को पीसकर बनाए गये लेप को मस्तक पर लगाने से ठंड या गर्मी से उत्पन्न वेदना का शमन होता है । आराम मिलने पर लेप को धोकर साफ कर लें ।
#- सर्दी के कारण सिरदर्द - दालचीनी के तैल को मस्तक पर मलने से सर्दी की वजह से होने वाला सिरदर्द मिट जाता है।
#- ज़ुकाम मे सिरदर्द - ज़ुकाम के कारण होने वाले सिरदर्द में दालचीनी को जल में घिसकर गर्म कर लेप करना चाहिए या दालचीनी का अर्क निकालकर मस्तिष्क पर लेप करने से लाभ होता है।
#- पैत्तिक , एसिडिटी के कारण सिरदर्द - समभाग दालचीनी , तेजपत्ता तथा शर्करा को चावल के धोवन के से पीसकर सुक्ष्म कल्क बनाकर नस्य देकर फिर गाय के घी का नस्य देने से पैत्तिक शिरोरोग का शमन होता है।
#- नेत्ररोग, आँख फड़कना - दालचीनी का तैल आँखों के ऊपर ( पलकों ) पर लगाने से आँख का फड़कना बन्द हो जाता है और नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है।
#- नासारोग - दालचीनी साढ़े तीन ग्राम , लौंग 600 मिलीग्राम , सोंठ 2 ग्राम, इन तीनों को एक लीटर पानी में उबालकर 250 मिलीग्राम शेष रहने पर उतारकर छानकर दिन में तीन बार 50 मिलीग्राम की मात्रा में लेने से नाक के रोगों में लाभ होता है।
#- कानरोग, बाधिर्य ( बहरापन ) - दालचीनी का तैल कान मे 2-2 बूँद टपकाने से बहरेपन को दूर करता है।
#- दन्तशूल - दालचीनी के तैल में रूई का फाहा भिगोकर दाँतो में लगाने से दंतशूल का शमन होता है।
#- दन्तरोग - दालचीनी के 5-6 पत्तों को पीसकर मंजन करने से दाँत स्वच्छ और चमकीले होते है तथा मुख का शोधन करता है व मुँह से आने वाली दुर्गन्ध का शमन करता है।
#- कासरोग - आधा चम्मच दालचीनी चूर्ण को 2 चम्मच मधु के साथ सुबह- सायं सेवन करने से कास (खाँसी ) में आराम आता है।
#- खाँसी ,ज़ुकाम - एक चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण में एक चम्मच मधु मिलाकर दिन में तीन बार देने से कास तथा प्रतिश्याय ( ज़ुकाम ) का शमन होता है।तथा 10-20 मिलीग्राम दालचीनी पत्रों के फाण्ट का सेवन करने से कास का शमन होता है ।
#- टी. बी. ,यक्ष्मा - दालचीनी के तैल का अल्प मात्रा में सेवन करने से किटाणुओं का नाश होकर रोग को ठीक करता है।
#- उदरविकार - 5 ग्राम दालचीनी चूर्ण में 1 चम्मच मधुमिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से उदर रोग अतिसार , जीर्ण अतिसार , ग्रहणी और अध्मान ( अफारा ) में लाभ होता है।
#- अतिसार - 750 मिलीग्राम दालचीनी चूर्ण में 750 मिलीग्राम कत्था चूर्ण मिलाकर जल के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से अतिसार बन्द होता है।
#- क़ब्ज़ रोग - 500 मिलीग्राम सूंठी चूर्ण 500 मिलीग्राम इलायची तथा 500 मिलीग्राम दालचीनी को पीसकर भोजन के पहले प्रात:सायं लेने से जठराग्नि दीप्त होकर भूख बढ़ाती है तथा क़ब्ज़ रोग का शमन होता है।
#- अतिसार - 4 ग्राम दालचीनी तथा 10 ग्राम कत्था को मिलाकर पीस लें, इसमें 250 मिलीग्राम खौलता हुआ पानी डालकर ढक देना चाहिए । दो घन्टे बाद इसको छानकर दो हिस्से करके पीना चाहिए । इससे अतिसार बन्द हो जाते है।
#- आँतों में खिंचाव - दालचीनी तैल को पेट पर मलने से आँतों का खिंचाव दूर हो जाता है।
#- अमाशय ऐंठन - दालचीनी ' इलायची, तेजपत्ता को बराबर मात्रा में लेकर क्वाथ बना ले, आधा कप क्वाथ लेने से अमाशय की ऐंठन दूर होती है।
#- वमन , उल्टियाँ - दालचीनी व लौंग का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पिलाने से वमन बन्द हो जाता है।
#- अतिसार - बेलगिरी के शर्बत में 2-5 ग्राम दालचीनी का चूर्ण मिलाकर प्रात:सायं पिलाने से अतिसार बन्द हो जाता है।
#- उदररोग - 10-20 मिलीग्राम दालचीनी क्वाथ पिलाने से उदररोगों में लाभ होता है ।
#- उदर रोग - दालचीनी मूल त्वक का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में पीने से आमाशयिक उद्वेष्टन , छर्दि , आमाशयिक क्षोभ , हृल्लास , अतिसार एवं प्रवाहिका में लाभ होता है।
#- उदररोग - दालचीनी मूल त्वक एवं काण्ड- त्वक चूर्ण को अकेले अथवा हरिद्राकन्द चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करने से उद्वेष्ट , अफारा, हिचकी दूर होती है।
#- आमाशयिक:शूल व वमन - दालचीनी के 5-10 मिलीग्राम तैल को 10 ग्राम मिश्री के साथ खिलाने से आमाशयिक:शूल ( अमाशय का दर्द ) व वमन ( उल्टियाँ ) बन्द होती है।
#- संधिवात - 10-20 ग्राम दालचीनी चूर्ण को , 20-30 ग्राम शहद में मिलाकर पेस्ट बना लें, पीडायुक्त संधि पर इसकी धीरे- धीरे मालिश करने से लाभ होता है । इसके साथ- साथ एक कप गुनगुने जल में 1 चम्मच शहद एवं दालचीनी का 2 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह- दोपहर- सायं को सेवन करना चाहिए ।
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