Tuesday, 9 March 2021

रामबाण :-12-:

रामबाण :-12-:

#- शिरोरोग - तुलसी ( होली बेसील Holy basil ) - तुलसी की छाया शुष्क मञ्जरी के 1-2 ग्राम चूर्ण को मधु के साथ खाने से शिरोरोग में लाभ होता है।

#- मस्तिष्क वर्धन - तुलसी के पाँच पत्रों को प्रतिदिन पानी के साथ निगलने से बुद्धि, मेधा, तथा मस्तिष्क की शक्ति बढ़कर विकास होता है।

# - पुराना सिरदर्द - तुलसी तेल को 1-2 बूँद नाक में टपकाने से , पुराना सिरदर्द तथा अन्य सिर के रोग दूर होते है ।

#- जूऐं व लींखें - तुलसी तैल को सिर मे लगाने से जूएँ व लींखें मर जाती है।

#- चेहरे का गोरापन - तुलसी तैल को मुँह पर मलने से चेहरे का रंग साफ होता है।

#- रतौंधी - 5-10 बूँद तुलसी पत्र स्वरस को दिन में कई बार आँखों मे डालने से रतौंधी में लाभ होता है।

#- पीनस रोग - तुलसी व मञ्जरी को मसलकर सुँघाने से पीनस रोग का शमन होता है।

#- कर्णशूल - तुलसी पत्र स्वरस को गरम करके 2-2 बूँद कान मे टपकाने से कान की सूजन उतारकर कर्णशूल का शमन होता है।

#- कर्णमूलशोथ - तुलसी के पत्ते तथा एरण्ड की कोंपलों को पीसकर उसमें थोड़ा नमक मिलाकर गुनगुनाकर लेप करने से कान के पीछे की सूजन ( कर्णशूल शोथ ) नष्ट होती है।

#- दन्तशूल - कालीमिर्च व तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर दाँत के नीचे रखने से दन्तशूल का शमन होता है।

#- कण्ठविकार - तुलसी के रस को हल्के गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ला करने से कण्ठविकारों मे बहुत लाभ होता है।

#- मुख, दून्त, कण्ठविकार- तुलसी युक्त जल में हल्दी व सैंधानमक मिलाकर कुल्ला करने से भी मुख, दाँत , तथा गले के सब विकार दूर होते है ।

#- स्वरभंग - तुलसी की जड़ को मुलेठी की तरह चूसने से स्वरभंग मे लाभ होता है।

#- कास- श्वास - तुलसीपत्र मंजरी सहित 50 ग्राम , अदरक 25 ग्राम तथा कालीमिर्च 15 ग्राम को 500 मिलीग्राम जल में मिलाकर क्वाथ करें , चौथाई शेष रहने पर छानकर तथा 10 ग्राम छोटी इलायची बीजों के महीन चूर्ण मिलाकर 200 ग्राम चीनी डालकर पकाएँ , एक तार की चाशनी हो जाने पर छानकर रख लें, इस शर्बत की आधी से डेढ़ चम्मच तक बड़ों को सेवन कराने से खाँसी , श्वास, काली खाँसी , कुक्कुर खाँसी , गले की ख़राश आदि में लाभ होता है। इस शर्बत में गरमपानी मिलाकर लेने से ज़ुकाम तथा दमा में बहुत लाभ
होता है।

#- खाँसी - तुलसी पत्र 10 तथा वासा के पीले पत्ते तीन, कालीमिर्च 1 , अदरक ( मटर के 6-7 दानों के बराबर ) गिलोय काण्ड 30-40 ग्राम , सब चीज़ों को कूटकर 1 गिलास जल में पकाऐं आधा शेष रहने पर 10-15 ग्राम गुड मिलाकर 3 खुराक बना ले , चार- चार घन्टे के अन्तर से सेवन करने पुरानी खाँसी में लाभ होता है।

#- खाँसी - 5-10 मिलीग्राम तुलसी पत्र स्वरस में 2 कालीमिर्च मिलाकर चूर्ण करके पीने से खाँसी का वेग कम होता है।

#- सूखी खाँसी - तुलसी की मञ्जरी , सोंठ ,प्याज़ का रस और शहद मिलाकर चटाने से सूखी खाँसी और दमें मे लाभ करता है ।

#- छर्दि - 10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस में समभाग अदरक स्वरस तथा 500 मिलीग्राम इलायची चूर्ण मिलाकर सेवन करने से छर्दि ( जी मिचलाना ) बन्द हो जाता है।

#- अतिसार - 10 तुलसीपत्र तथा 1 ग्राम ज़ीरा दोनों को पीसकर शहद मिलाकर दिन मे 3-4 बार चटाने से अतिसार , मरोड़ , प्रवाहिका बन्द हो जाते है।

#- अतिसार - 50-60 मिलीग्राम तुलसी फाण्ट में 125 मिलीग्राम जायफल चूर्ण मिलाकर 3-4 बार पीने से अतिसार में लाभ होता है।

#- अग्निमांद्य - तुलसीपत्र स्वरस को दिन में तीनबार भोजन से पहले पिलाने से अजीर्ण , अग्निमांद्य तथा यकृत प्लीहा की विकृतियों में लाभ होता है।

#- पीलिया रोग - 1-2 ग्राम तुलसी के पत्तों को पीसकर गौतक्र ( छाछ ) के साथ मिलाकर पीने से कामला, पीलिया में लाभकारी होता है ।

#- वस्तिशोथ, मूत्ररोग - 1ग्राम तुलसी बीज व ज़ीरा चूर्ण 1 ग्राम , लेकर उसमें 3 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह - सायं गोदूग्ध के साथ लेने से मूत्रदाह , मूत्रपूय , वस्तिविकारों में लाभ होता है।

#- वृक्काशमरी , गुर्दे की पथरी - तुलसी के 2 ग्राम पत्तों को पीसकर उसमें मधु मिलाकर सेवन करने से पथरी टूट - टूट कर निकल जाती है।

#- स्तम्भनार्थ - 2-4 ग्राम मूल चूर्ण और जमीकन्द चूर्ण को मिलाकर 125-150 मिलीग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने से स्तम्भन होता है।

#- प्रसवोत्तर - शूल :- तुलसीपत्र स्वरस में पुराना गुड तथा खाण्ड मिलाकर , प्रसव होने के तुरन्त बाद पिलाने से प्रसव के बाद होने वाली वेदना का शमन होता है।

#- नपुंसकता - तुलसी बीज चूर्ण अथवा तुलसीमूल चूर्ण में बराबर की मात्रा में गुड मिलाकर 1-3 ग्राम की मात्रा में , गाय के दूध के साथ लगातार एक माह या छ: माह क खाने से लाभ होता है।बलवृद्धि करता है।

#- धातुदौर्बल्य - 1 ग्राम तुलसी बीज को गाय के दूध के साथ सुबह-सायं सेवन करने से धातु- दुर्बलता में लाभ होता है।

#- संधिशोथ - 2-4 ग्राम तुलसी पञ्चांग चूर्ण को सुबह-सायं गोदूग्ध के साथ सेवन करने से संधिशोथ एवं गठिया के दर्द में लाभ होता है।

#- गृधसी - तुलसी क्वाथ का पीडाग्रस्त वातनाडी पर बफारा ( काली तुलसी शोथ तथा वेदनायुक्त विकारों में ज़्यादा उपयोगी है ) देने से गृधसी में लाभ होता है।

#- वातरोग - उर्ध्वगतवात , अस्थिगतवात , संधिवात , पारददोषजनित- विकारों में तुलसी पञ्चांग का बफारा देने से लाभ होता है।

#- कुष्ठरोग - 10-20 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस को प्रतिदिन प्रात:काल पीने से कुष्ठरोग में लाभ होता है।

#- कुष्ठरोग - तुलसी पत्तों को नींबू रस मे पीसकर , दाद, वातरक्त , कुष्ठरोग आदि में लेप करने लाभ होता है।

#- कुष्ठरोग - तुलसीपत्र स्वरस , चूना तथा गौघृत इन सभी को एक साथ पीसकर लगाने से कुष्ठ में लाभ होता है।

#- कुष्ठरोग - 5 मिलीग्राम तुलसीमूल स्वरस का प्रतिदिन सेवन करने से कुष्ठरोग तथा दाद आदि का शमन होता है।

#- कुष्ठरोग - तुलसी की जड़ को पीसकर सोंठ मिलाकर प्रात: जल के साथ सेवन करने से कुष्ठ मे लाभ होता है।

#- वृश्चिक विष - बर्बरी तुलसी बीज चूर्ण को बकरी के दूध मे पीसकर लेप बनाकर दंश स्थान पर लगाने से दंशजन्य वेदना , व दाह ( जलन ) तथा सूजन का शमन होता है।

#- मलेरिया ज्वर - तुलसी का पौधा मलेरिया प्रतिरोधी है। तुलसी के पौधे को छूकर वायु में कुछ ऐसा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है कि मलेरिया के मच्छर वहाँ से भाग जाते है , इसके पास नहीं फटकते है। तुलसीपत्रों का क्वाथ बनाकर प्रात: दोपहर, सायं पीने से मलेरिया में लाभ होता है।

#- सौन्दर्य - तुलसीपत्र स्वरस , नींबू रस , कसौंदीपत्र स्वरस तीनों को बराबर मात्रा में लेकर एक ताँबे के बर्तन मे डालकर 24 घन्टे के लिए धूप में रख दें । गाढ़ा हो जाने पर लेप करने से श्वित्ररोग में लाभ होता है, इसको चेहरे पर लगाने से , चेहरे के दाग तथा अन्य चर्म विकार साफ करके चेहरे को सुन्दर बनाता है।

#- व्रण , घाव- तुलसी के 10-20 ग्राम पत्तों को उबालकर , पीसकर , ठंडा करके लेप करने से घाव का शोधन कर घाव की दुर्गन्ध को दूर कर घाव जल्दी भरता है।

#- व्रण - तुलसीपत्र को व्रण पर लगाने से घाव की सूजन उतारकर व्रण का शोधन तथा रोपण होता है।

#- व्रण - तुलसीपत्र स्वरस का घाव पर लेप करने से घाव मे पड़े कीड़ों मारकर , घाव साफकर , घाव को जल्दी से भरता है।

#- शीतपित्त -शरीर पर तुलसीपत्र स्वरस का लेप करने से शीतपित्त तथा उदर्द का शमन होता है।

#- बलवर्धनार्थ - 20 ग्राम तुलसी बीजचूर्ण में 40 ग्राम मिश्री मिलाकर पीसकर 1 ग्राम की मात्रा में शीत-ऋतु में कुछ दिन सेवन करने से वातकफज विकारों का शमन होता है। दुर्बलता दूर होती है , शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा स्नायुमंडल सशक्त होता है ।

#- कफजविकार- 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस में दौगुनी मात्रा में गाय का गुनगुना घी मिलाकर चटाने से कफजविकारों मे लाभ होता है।

#- मलेरिया - 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस में कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन मे तीन बार पीने से लाभ होता है।

#- विषमज्वर - तुलसीमूल क्वाथ को 15 मिलीग्राम की मात्रा में दिन में दो बार पीने से विषमज्वर का शमन होता है।

#- सभी प्रकार के ज्वर - 20 तुलसी दल तथा 10 दाना कालीमिर्च दोनों का क्वाथ बनाकर सुबह- सायं , दोपहर देने से सब प्रकार के ज्वरों का शमन करता है।

#- ज्वर - 21 नग तुलसीपत्र , 5 नग लवंग तथा अदरक रस 500 मिलीग्राम को पीसकर , छानकर इसमें 10 ग्राम मधु मिलाकर सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।

#- कफजज्वर - तुलसी पत्तों को पानी मे पकाकर जब आधा जल शेष रह जाये तब छानकर , चूटकीभर सैंधानमक मिलाकर पीने से कफज ज्वर मे लाभ होता है।

#- आंत्रज ज्वर - 10 तुलसीपत्र तथा 1/2 -1 ग्राम जावित्री को पीसकर शहद के साथ चटाने से आंत्रज ज्वर में लाभ होता है।

#- आंत्रज ज्वर - काली तुलसी आंत्रज ज्वर में तुलसी तथा पूदीना स्वरस समान मात्रा में मिलाकर 3-7। दिन तक सुबह- सायं लेने से आंत्रज ज्वर में लाभ होता है।

#- साधारण ज्वर - तुलसीपत्र , श्वेत ज़ीरा , छोटी पीपल तथा शक्कर , चारों को कूटकर प्रात: सायं देने से लाभ होता है।

#- साधारण ज्वर - तुलसी पत्र चूर्ण 1 भाग , शुंठी चूर्ण 1 भाग, तथा अजवाइन चूर्ण 1 भाग, मिलाकर दिन मे तीन बार सेवन करने से ज्वर का वेग कम होता है।

#- बालरोग - लवंग, तुलसीपत्र तथा टंकण चूर्ण को पानी में मिलाकर बालकों को पिलाने से , उदरविकार , श्वास , कास, कफजन्य ज्वर आदि विकारों का शमन होता है।

#- बालरोग - तुलसीपत्र स्वरस का प्रयोग शिशुओं के होने वाले रोग जैसे कास, प्रतिश्याय , ज्वर , अतिसार , एवं छर्दि की चिकित्सा मे किया जाता है।

#- बालरोग- छोटे बच्चों को सर्दी- ज़ुकाम हो जाने पर तुलसीपत्र स्वरस 5-7 बूँद अदरक रस में शहद मिलाकर चटाने से बच्चों का कफ , सर्दी, ज़ुकाम,ठीक हो जाता है , नवजात शिशु को यह अल्पमात्रा में ही दें।

#- सर्पविष - 5-10 मिलीग्राम तुलसीपत्र स्वरस को पिलाने से तथा इसकी मंजरी और जड़ो को पीसकर दंश स्थान पर लेप करने से सर्पदंश की पीड़ा में लाभ मिलता है।अगर रोगी बेहोश हो गया हो तो इसके रस को नाक मे टपकाते रहना चाहिए ।

#- शिरोगत विष - विष का प्रभाव यदि सिर प्रदेश में प्रतित हो तो बन्धुजीव, भारंगी तथा काली तुलसीमूल स्वरस अथवा चूर्ण का नस्य देना चाहिए।


#- ज़ुकाम , खाँसी - 7 तुलसीपत्र , 5 लौंग , लेकर एक गिलास पानी में पकायें , तुलसीपत्र व लौंग को पानी में डालने से पहले टुकड़े कर लें , पानी पकाकर जब आधा रह जाये तब थोड़ा सा सैंधानमक डालकर गर्म- गर्म पी जायें। यह काढ़ा पीकर कुछ समय के लिए वस्त्र ओढ़कर पसीना ले लें । इससे ज्वर तुरन्त उतर जाता है तथा सर्दी- ज़ुकाम व खाँसी भी ठीक हो जाता है।


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