Tuesday, 9 March 2021

रामबाण :-11-:

रामबाण :-11-:

#- चोट-मोच - तिल की खली को पानी मे पीसकर गर्म करके सुहाता- सुहाता मोच पर बाँधने से लाभ होता है।

#- सुर्यावर्त रोग- तिल को गोदूग्ध मे पीसकर मस्तक पर लेप करने से सूर्यावर्त शिरोरोग मे लाभ होता है।

#- घाव - तिल की पुलटीश बनाकर घाव पर बाँधने से घाव जल्दी भर जाता है।तथा सभी प्रकार के घावों पर तिल का तैल लगाना अच्छा रहता है।

#- काँटा निकालना- यदि शरीर के किसी भी अंग मे नागफनी या थूहर का काँटा घुस जाय और निकालने में दिक़्क़त हो रही हो तो उस जगह तिल का तैल बार- बार लगाने से कुछ ही समय में वह कांटा बिना परिश्रम के निकलकर बाहर आ जाता है।

#- निषेध - कुष्ठ , शोथ , प्रमेह के रोगियों को तिल तैल की मालिश व भोजन मे तिल तैल का सेवन नहीं करना चाहिए ।

#-शिरोरोग - तीखुर ( एण्डियन ऐरोरूट Indian arrowroot ) तीखुर आदि द्रव्यों से विधीपुर्वक निर्मित महायूर गौघृत का सेवन करने से अर्दित , धातु- विकार , कास, श्वास, योनिरोग , शिरोरोग , आदि का शमन होता है।

#- कास - तीखुर आदि द्रव्यों से निर्मित कण्टकारी अवलेह का 2-3 ग्राम मात्रा में सेवन करने से गुल्म , हृदयरोग , अर्श,श्वास, कास,में लाभ होता है।

#- राजक्षमा - तीखुर आदि द्रव्यों से निर्मित एलादि सर्पिगुड़ का प्रयोग मेधाशक्ति को बढ़ाने वाला' आँखों के लिए हितकर , आयु को बढ़ाने वाला , अग्निप्रदीपक तथा प्रमेह , गुल्म , क्षयरोग , पाण्डूरोग एवं भगन्दर का शमन करने वाला होता है।

#- अतिसार - तवक्षीर आदि द्रव्यों से युक्त दाडिमाष्टक चूर्ण का मात्रानुसार सेवन करने से वातातिसार में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका , आन्त्रव्रण - शुष्क प्रकन्द के चूर्ण को गोदूग्ध तथा मिश्री के साथ पथ्य के रूप में प्रवाहिका , आन्तरिक ज्वर , आंत्र व्रण तथा मूत्राशय व्रण की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।

#- मूत्रकृच्छ - 1-2 ग्राम प्रकन्द चूर्ण का सेवन करने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है । तथा बार- बार कष्ट के साथ मूत्र-प्रवृति होती हो तो तवक्षीर की बहुत पतली कॉजी बनाकर उसमें थोड़ा गोदूग्ध , मिश्री मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।

#- अग्निदग्ध - तीखुर , प्लक्ष की छाल , लालचन्दन, गेरू एवं गिलोय के चूर्ण को गौघृत में मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।

#- विरेचनार्थ - अजमोदा , तवक्षीर , बिदारीकन्द , शर्करा तथा निशोथ को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम चूर्ण में मधु तथा गौघृत मिलाकर सेवन करने से सम्यक् प्रकार से विरेचन हो जाता है ।

#- सर्वांगशोथ - तीखुर प्रकन्द के रस की मालिश करने से सर्वांगशोथ का शमन होता है।

#- पित्तज विकार- तवक्षीर को गौघृत में मिलाकर सेवन करने से पित्तज- विकारों का शमन होता है।

#- रसायन, वाजीकरण - 1-2 ग्राम त्रिफला चूर्ण समभाग तवक्षीर चूर्ण मिलाकर मधु अथवा गौघृत के साथ एक वर्ष तक प्रतिदिन सेवन करने से समस्त विकारों का शमन होता है तथा मेधाशक्ति , आयुवर्धन, तथा स्मृति की वृद्धि करता है।

#- उदर विकार - तीखुर भेद ( वैस्ट इण्डियन ऐरोरूट West I Indian arrowroot ) के 1 चम्मच अरारोट प्रकन्द चूर्ण में दो चम्मच गोदूग्ध मिलाकर , 500 मिली जल के साथ पकायें , फिर उसमें 250 मिली गोदूग्ध तथा थोड़ी शक्कर डालकर पकाएँ , आधा पानी जल जाने पर उतारकर ठंडा करके 125 मिलीग्राम जायफल चूर्ण मिलाकर सेवन करने से अतिसार , प्रवाहिका , अजीर्ण आदि उदरविकारो मे लाभ होता है।

#- मूत्रकृच्छ - तीखुर अरारोट 1-2 ग्राम चूर्ण को 200 मिलीग्राम पानी में पकाकर ठंडा करके , मिश्री मिलाकर पीने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

#- विसर्प,( चेहरे पर विषाणु जनित दाग मे खुजली व जलन होती है ) - तीखुर प्रकन्द को पीसकर त्वचा पर लेप करने से विसर्प मे लाभ होता है।

#- व्रण - तीखुर अरारोट को थोड़े जल में घोलकर गुनगुनाकरके व्रणों में लेप लेप करने से पूय ( मवाद ) तथा दुर्गन्धयुक्त व्रणो का शोधन तथा रोपण कर घावों को जल्दी ठीक करता है।

#- चेहरे की झाई- तीखुर अरारोट के महीन चूर्ण को गुलाबजल में पीसकर चेहरे पर लगाने से झाई तथा व्यंग का शमन होता है तथा इसके कण्डुयुक्त स्थान पर लगाने से कण्डुरोग का शमन होता है।

#- सामान्य दौर्बल्य - 1-2 ग्राम तीखुर प्रकन्द चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता का शमन होता है। तथा शरीर पुष्ट होकर बलवान बनता है।

#- पित्तज विकार- 1-2 ग्राम तीखुर प्रकन्द चूर्ण में 200 मिलीग्राम जल मिलाकर पकाए , फिर उसमें 250 मिलीग्राम गोदूग्ध तथा 50 ग्राम मिश्री डालकर पकाए , दूध मात्रा शेष रहने पर उतारकर सुखोष्ण ( गुनगुना ) सेवन करने से पित्तज- विकार , दाह, मस्तक शूल , नेत्ररोग तथा रक्तार्श में लाभ होता है।

#- स्वेदाधिक्य - किसी रोग में यदि अधिक पसीना आता है तो तीखुर चूर्ण की मालिश करने से लाभ होता है।

#- मुँह के छालें -तूत, सहतूत , मलबेरी ( Mulberry ) सहतूत के पत्रों का क्वाथ बनाकर गरारा करने से व सहतूत पत्र चबाने से भी मुँह के छालें दूर होते है।

#- कण्ठप्रदाह - सहतूत पत्रों का क्वाथ बनाकर गरारा करने से प्रदाह का शमन होता है।

#- कण्ठ, स्वरयन्त्रशोथ - सहतूतपत्र का क्वाथ बनाकर कुल्ला करने से कण्ठ प्रदाह, रोहिणी , कण्ठशूल, ग्रसनीशोथ , तथा स्वरयन्त्रशोथ में लाभ करता है।

#- कण्ठमाला - सहतूत के फलो का शर्बत बनाकर पिलाने से कण्ठमाला में लाभ होता है।

#- कण्ठशोथ - सहतूत के फलों का सेवन करने से कण्ठशोथ का शमन होता है।

#- उदरविकार - 10-15 मिलीग्राम सहतूत फल स्वरस सेवन करने से जलन ( दाह ) , अजीर्ण , क़ब्ज़ , कृमि , अतिसार में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।

#- पेट के कीड़े - 1 ग्राम सहतूत छाल के चूर्ण में शहद मिलाकर चटाने से पेट के कीड़े निकल जाते है।

#- अग्निमांद्य - सहतूत फलो का शर्बत बनाकर उसमें 500 मिलीग्राम पीप्पली चूर्ण डालकर पिलाने से जठराग्नि का दीपन होकर भूख खुलकर लगने लगती है।

#- मूत्रविकार - सहतूतफल स्वरस में कलमीशोरा को पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से मूत्रकृच्छ आदि मूत्रविकारों का शमन होता है।

#- पैर बिवाई - सहतूत के बीजों को पीसकर लगाने से पैरों की बिवाई ठीक होती है।

#- दाद - सहतूत त्वक चूर्ण मे नींबू स्वरस मिलाकर गौघृत में तलकर ठन्डाकर दाद पर लगाकर पट्टी बाँध देने से 15 दिनों में दाद तथा दाद के कारण होने वाली खुजली का शमन होता है।

#- त्वचारोग - सहतूतपत्रों को पीसकर लेप करने से त्वचा की बिमारियों में लाभ होता है।

#- पित्तोन्माद,( Hypochondrical ) - ब्राहृी के 10-20 मिलीग्राम क्वाथ में 5-10 मिलीग्राम सहतूतफल स्वरस मिलाकर पिलाने से पित्तोन्माद में लाभ होता हैं।

#- सहतूत के फलों को शरबत बनाकर पिलाने से दाह तथा तृष्णा ( अत्यन्त प्यास ) में लाभ करता है।

#- दुर्बलता - सूखे हुएे सहतूत के फलों को पीसकर आटे में मिलाकर उसकी रोटी बनाकर खाने से शरीर पुष्ट होकर बलवान बनता है।

#- सौन्दर्य - सहतूत फल रस वीर्यर्धक , बलकारक , जलन को रोकने वाला, भूख बढ़ाने वाला चेहरे का रंग निखार कर सुन्दरता लाता है।

#- नेत्रविकार - तूतमलंगा ( इजिप्शियन सेज Egyptian sage ) के बीजों का क्वाथ बनाकर नेत्रों को धोने से नेत्ररोगों का शमन होता है ।

#- अतिसार - तूतमलंगा के 2-4 ग्राम बीज चूर्ण का सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।

#- प्रवाहिका - तूतमलंगा के 2-4 ग्राम चूर्ण को सेवन करने से प्रवाहिका का शमन होता है।

#- अर्श - तूतमलंगा बीजों का 2 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन खाने से बवासीर मे लाभ होता है।

#- प्रमेह - 1-2 ग्राम तूतमलंगा बीज चूर्ण में मात्रानुसार खाँड़ तथा गाय का दूध मिलाकर नित्यप्रति प्रयोग करने से लाभ आता है।

#- पूयमेह - तुतमलंगा बीजों का क्वाथ बनाकर आधा कप नित्यप्रति पीने से लाभ होता है।

#- फोड़ा - फुन्सीं - तूतमलंगा को जल में भिगोकर , बिना मुँह वाले फोड़ो पर बाँधने से फोड़े शीघ्र फूट जाते है तथा पूय ( मवाद ) का निर्हरण ( मवाद का बाहर निकलना ) हो जाता है।

#- त्वचा विकार - तूतमलंगा को पीसकर लगाने से त्वचा विकारों का शमन होता है।

#- मस्तकशूल - तून, तूणी,( द तून ट्री The toon tree ) तूणी छाल तथा तूणीपत्र को पीसकर गुनगुना करके लेप करने से वातज शिर:शूल का शमन होता है।

#- अतिसार - तूणीछाल का क्वाथ बनाकर 10-15 मिलीग्राम की मात्रा मे पिलाने से अतिसार तथा प्रवाहिका का शमन होता है।

#- आर्तविकार - तुणी पुष्प या छाल का फाण्ट बनाकर पीने से आतर्व- विकारों मे लाभ होता है।

#- योन्यार्श, योनि मे बवासीर - तुणी छाल के साथ समभाग पठानी - लोध्र को कूट- पीसकर हल्का गुनगुना करके योनि में लेप करने से लाभ होता है।

#- मासिकविकार - तुणी के पुष्पों का फाण्ट बनाकर 10-20 मिली मात्रा मे सेवन करने से आर्तवविकारो का शमन करता है।

#- अण्डवृद्धि - तुणीपत्र स्वरस में समभाग तुलसी पत्र स्वरस तथा गौघृत मिलाकर पका लें । ठंडा होने पर अण्डकोष पर उसका लेप करने से लाभ होता है।

#- मोच - तूणी छाल को पीसकर मोच पर बाँधने से मोच में लाभ होता है।

#- व्रण - तूणी छाल चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी से भरने लगता है।

#- वेदनास्थापक , शोथहर - तुणी पत्र का लेप करने वेदना को हरता है तथा सूजन को उतारता है।

#- फोड़े - फुन्सीं - तुणी छाल को घिसकर लगाने से फोड़े - फुन्सीं में लाभ होता है।

#- विषम- ज्वर - विषम ज्वर के साथ जब अतिसार होने लगता है , तब तूणी की छाल का फाण्ट बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा मे देने लाभ होता है।

#- जीर्णज्वर - छाल का क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा मे पिलाने से से जीर्णज्वर में लाभ होता है।

#- विषमज्वर - तुणी छाल के साथ लताकरंज के बीजों को मिलाकर क्वाथ बनाकर 10-20 मिलीग्राम मात्रा में पीने से विषमज्वर में लाभ होता है।

#-अण्डकोष विकार- अंडकोष विकार में तूनी के इस्तेमाल से बहुत फायदे होते हैं। तूनी पत्ते के रस में बराबर मात्रा में तुलसी की पत्तियों का रस और गाय का घी मिला लें। इसे पका लें। ठंडा होने पर अण्डकोष पर लेप करें। इससे लाभ होता है।

#- मासिक विकार में भी तूनी का औषधीय गुण लाभ पहुंचाता है। तूनी के फूल या छाल का काढ़ा बनाकर पिएं। इससे मासिक धर्म विकारों में लाभ होता है।
#- मासिकधर्म - तूनी के फूलों का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से मासिक धर्म चक्र संबंधी विकारों में फायदा होता है।

#- योनि मे मस्सें योनि बवासीर - यह बीमारी बवासीर के जैसी है। इसमें योनि में मस्से निकल आते हैं। कई महिलाएं इस रोग से पीड़ित होती हैं। इसमें आप तूनी के औषधीय गुण का लाभ ले सकते हैं। तूनी की छाल लें। इसके साथ इतनी ही मात्रा में पठानी-लोध्र लें। सभी को कूटकर पीस लें। इसे हल्का गुनगुना करके योनि में लेप करने से लाभ होता है।

#- योनिरोग - तुणी पत्रों का लेप योनि पर करने स व तुणी पत्र क्वाथ से योनि को धोने से योनिसंकोचन होता है तथा रजस्थापन करता है।


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